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अध्यात्मकल्पद्रुम
अर्थ – “पुरुष के वीर्य और स्त्री के रक्त-इन दोनों के संयोग से स्त्री की योनि में विचित्र प्रकार के कीड़े उत्पन्न होते हैं, उन पर स्त्री का तथा उसके पति का राग नहीं होता है तो फिर पुत्रों पर क्यों राग होता है ?" त्राणाशक्तेरापदि सम्बन्धान
त्यतो मिथोंऽगवताम् । सन्देहाच्चोपकृते
पित्येषु स्निहो जीव ॥४॥ अर्थ - "आपत्ति में पालन करने की अशक्ति होने से, प्राणियों के प्रत्येक प्रकार का परस्पर सम्बन्ध अनंत बार होने से और उपकार का बदला मिलने का सन्देह होने से हे जीव ! तू पुत्रपुत्रादि पर स्नेह मत कर ।"