Book Title: Adhyatma Kalpadruma
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 22
________________ अध्यात्मकल्पद्रुम २१ थोड़ा और थोड़े समय के लिये पैसों से सुख होता है, परन्तु आरम्भ के पाप से दुर्गति में लाखों समय तक भयंकर दुःख होते हैं, इसप्रकार तू समझ ।" द्रव्यस्तवात्मा धनसाधनो न, धर्मोऽपि सारम्भतयातिशुद्धः । निःसङ्गतात्मा त्वतिशुद्धियोगान्, मुक्तिश्रियं यच्छति तद्भवेऽपि ॥४॥ अर्थ - "धन के साधन से द्रव्यस्तव स्वरूपवाले धर्म की सिद्धि हो सकती है, परन्तु वह आरम्भयुक्त होने से अति शुद्ध नहीं है, अतः निःसङ्गता स्वरूपवाला धर्म ही अति शुद्ध है और उससे उसी भव में भी मोक्षलक्ष्मी प्राप्त हो सकती है । " क्षेत्रवास्तुधनधान्यगवाश्वै र्मोलितैः सनिधिभिस्तनुभाजाम् । क्लेशपापनरकाभ्यधिकः स्यात्, को गुणो न यदि धर्मनियोगः ॥५॥ अर्थ – “प्राप्त अथवा प्राप्त होनेवाले क्षेत्र, वस्तुओं (घर आदि), धन, धान्य, गाय, घोड़ा और भण्डार का उपयोग हो धर्मनिमित्त न यदि तो उससे क्लेश (दु:खों), पाप और नरक के सिवाय अन्य क्या विशेष गुण है ?" हो सकता

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