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अध्यात्मकल्पद्रुम ___अर्थ - "इन्द्रियों से इस संसार में जो सुख प्राप्त होता है वह बिन्दु के समान है और परलोक में (उसके त्याग से) जो स्वर्ग और मोक्ष का सुख प्राप्त होता है वह समुद्र के समान है। इन दोनों प्रकार के सुखों में परस्पर शत्रुता है । इसलिये हे भाई ! विचार करके उन दोनों में से विशेष एक को ग्रहण कर ।" भुङ्क्ते कथं नारकतिर्यगादि
दुःखानि देहीत्यवधेहि शास्त्रैः। निवर्तते ते विषयेषु तृष्णा,
बिभेषि पापप्रचयाच्च येन ॥४॥ अर्थ - "यह जीव नारकी, तिर्यंच आदि के दुःख क्यों भोगता है? इसका कारण शास्त्र में भली भाँति प्रकट है उसे पढ़, जिससे विषय पर तृष्णा कम होगी और पाप एकत्र न होंगे।" गर्भवासनरकादिवेदनाः,
पश्यतोऽनवरतं श्रुतेक्षणैः । नो कषायविषयेषु मानसं,
श्लिष्यते बुध ! विचिन्तयेति ताः ॥५॥ अर्थ - "ज्ञानचक्षुषे गर्भवास, नारकी आदि की वेदनाओं का बारंबार विचार करने के पश्चात् तेरा मन विषयकषाय की ओर आकर्षित नहीं होगा, अतः हे पण्डित ! तू इसके लिये बारंबार विचार कर ।"