Book Title: Adhyatma Kalpadruma
Author(s): Munisundarsuri
Publisher: Ashapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar

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Page 19
________________ अध्यात्मकल्पद्रुम अथ तृतीयोऽपत्यममत्वमोचनाधिकारः मा भूरपत्यान्यवलोकमानो, ___ मुदाकुलो मोहनृपारिणा यत् । चिक्षिप्सया नारकचारकेसि, दृढं निबद्धो निगडैरमीभिः ॥१॥ अर्थ - "तू पुत्र-पुत्री को देखकर प्रसन्न मत हो, कारण कि मोहराजा नामक तेरे शत्रुओं ने तुझे नरकरूप बन्दीखाने में डालने की अभिलाषा से इस (पुत्र-पुत्रीरूप) लोहे की जंजीरों से तुझे कसकर बांधा है।" आजीवितं जीव ! भवान्तरेऽपि वा, शल्यान्यपत्यानि न वेत्सि किं हृदि ? चलाचलैर्विविधार्तिदानतोऽ निशं निहन्येत समाधिरात्मनः ॥२॥ अर्थ - "हे चेतन ! इस भव में और परभव में पुत्रपुत्री शल्य रूप हैं इसका तू अपने मन में क्यों नहीं विचार करता? वे थोड़ी अथवा विशेष आयुतक जीवित रहकर तुझे अनेक प्रकार के कष्ट पहुँचाकर तेरी आत्मसमाधि का नाश करते हैं।" कुक्षौ युवत्याः कृमयो विचित्रा, अप्यस्त्रशुक्रप्रभवा भवन्ति । न तेषु तस्या न हि तत्पतेश्च, रागस्ततोऽयं किमपत्यकेषु ? ॥३॥

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