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।
श्री। 5 वैद्यक रसराजमहोदधि भाषा।
प्रथमभाग।
जिसमें यूनानी हिकमत यूनानी दवा फकीरोंकी जड़ीबूटी और सन्तोंकी पुस्तकोंका संग्रह है ।
जिसको मुन्शीभगवानप्रसादके शिष्य भगतभगवानदास वल्द सुबराज गाँव चकवहवल निवासी जिलअ जौनपुरने विरचित किया।
वही खेमराज श्रीकृष्णदासने
मुंबई निज" श्रीवंकटेश्वर" छापाखानामें
छापकर प्रगट किया। संवत् १९५५ शके. १८२०
यह पुस्तक सन् १८६७ के २५ व ऐक्ट बमूजिब
यंत्रालयाधीशने रजिष्टर किया है।
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श्री। अथानुक्रमणिका प्रारंभः।
....
१६
विषय,
पृष्ठ. विषय. १भूमिका .... .... २८ सर्वज्वरकी उत्पत्ति १वन्दना .... .
२९ वातज्वर लक्षण .... १५ ३रोगविचार
३० वातज्वरकी दवा ... १४ सर्वरोगकी परीक्षा .... ३१ गुडूच्यादिकाढ़ा .... ५ नाडीपरीक्षा
३२ भैरवरस .... .... मूत्रपरीक्षा
३३ पित्तज्वरका लक्षण दवा कफखाँसीडाँसीउद्रल ३४ पित्तज्वरको काढा .... ४मंद अग्निलक्षण .... ३५ पुनः काढा ९संग्रहणीका लक्षण .... ३६ कफज्वर लक्षण दवा। १० खुनीयवासीरका लक्षण ३७ कफज्वरको त्रिफलादि ११ दाहलक्षण
चूर्ण .... .... १५ १२ खून बिगडेका लक्षण
३८ निम्बादिका काढा ... १६ १३ वात पित्तमिश्रित
३९ वात पित्तज्वरका लक्षण हो० उ. ल.
५० वात पित्तज्वरके पंचम् १४ वायुका लक्षण
लादि काढा .... १६ १५ वातका लक्षण
४१ मुस्तादि काढा .... १६ १६ कफज्वर लक्षण
४२ वात कफज्वरकेलक्षण १६ २७ निरोग रहनेका बयान ४३ वात कफज्वरकी दवा १७ १८ स्वप्रका विचार
४४ दूसरा काढा .... १७ १९ दूतपरीक्षा
४५ कफ पित्तज्वरलक्षण .... १७ २० साध्य लक्षण .... ४६ कफ पित्तज्वरकी दवा २१ असाध्य लक्षण .... ४७ दूसरा काढा .... २२ मलज्वर लक्षण
४८ ज्वरांकुश रस कफपित्त २३ कालज्वरके लक्षण ...
सब ज्वरोंपर .... २४ कफज्वर शीतज्वाका ४९ सन्निपातलक्षण .... लक्षण
५० सन्निपातकी दवा वीर२५ कामज्वरका लक्षण १३ भद्ररस २६ रक्तज्वरका लक्षण .... १३ | ५१ पुनः दूसरारस .... ९ २७सर्वज्वरके दूर होनेकाचूर्ण १३ | ५३ रोगीकी परीक्षा
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रसराज महोदधि ।
कावाध २१
९१ यंत्र १४
९४ यंत्र
विषय.
पृष्ठ. विषय. ५३ सर्वतगाजबाँ .... २० ८४ यंत्र ७ ५४ गाजबाँकीदूसरी विधि ८५ यंत्र ८ ५५ शर्बतनीलोफरकीविधि ५६ शर्बतदीनारकी विधि ५७ शर्बतजूफाकी विधि ५८ शवेतअनार
८९ यंत्र १२ विलायतीकीवि० .... २२ ५९ शर्बतसहतूतकी विधि २२ ६० शतगुलाबकीविधि २२ ६१ शर्बतबनफशाकीविधि ६२ शर्बतबेलकीविधि .... २३ ६३ शर्बतपुदीनाकीविधि २३
९५ यंत्र १८ . .... ६४ शर्बतनींबूकी विधि .... २३ ६५ शर्बतकेवडाकी विधि ३
९७ यंत्र ६६ शर्बतबनानेका यंत्र विधि २४
९८ यंत्र २१ .... ६७ यंत्र अर्कउतारने की विधि २४
९९ यंत्र ६८ शबंतपानकी विधि .... २४ ६९ शर्बतइमलीकी विधि ७० शर्यतचन्दनकी विधि ७१ मृगीकी दवाई ..... ७२ प्रमाकीदवाई .... ७३ बवासीरकी दवाई .... २६ ७४ बूटीकागुण ७५ बांझिनीस्त्रीकालक्षण
१०६ यंत्र २९ ७६ दरिदिनस्त्रिीका लक्षण
१०५ यंत्र ३० ७७ गुजाप्रकाश विधि .... २६
१०८ यंत्र ३१ ७८ यंत्र १ .... ७९ यंत्र २
३० १५० यंत्र ३३ ८० यंत्र ३ ....
३० १११ यंत्र ३४ .... ८१ यंत्र ४
३१ : ११२ यंत्र ३५ ८२ यंत्र ५
३१ ११३ यंत्र ३६ ८३ यंत्र ६
.... ३१ ११४ यंत्र ३७ ....
२९ १०९ यंत्र ३२
.... ४३ .... ४४
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विषय.
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-DAMRArm
अनुक्रमणिका । (५)
पृष्ठ, विषय. ११५ यंत्र शरीरकी हड्डीका . | १४६ खपरियाशोधन ....
शिरसे पांवतक .... ४५ १४७ नीलाथोथा शोधन .... ११६ सिंधिया विषशोधन ४६ / १४८ मोतीमूंगामारन .... ११७ विषका गुण .... | १४९ शंख कौडीमारन .... ५१८ कुचिलाशोधन .... १५० गुंजाशोधन ११९ धतूराशोधन
१५. फिटकरी सोहागा .... १२० जमालगोटाशोधन
मारन .... .... १२१ भेलावांशोधन
१५२ समुद्रफेनशोधन .... १२२ गुंजाशोधन .... ४७ १५३ तांबामारन । १२३ आकशोधन
१५४ दूसरीतांब की विधि १२४ कलियारीशोधन .... ४८ | १५५ तांबामार तीसरीविधि ५४ ५२५ कनेरशोधन .... १५६ तांबेकाभस्मखानेकागुण ५५ १२६ विषसेवनकी विधि ..... ४८ | १५७ रूपामारनविधि .... १२७ प्रमाण खानेका ....
| १५८ रुपामारन दूसरीविधि ५५ १२८ वच्छनागकी शांति .... ४८ १५९ रूपरस खानेका १२९ धतूरेके विषकीशांति
गुणछन्द .... .... १३० भिलावेके विषकीशांति ४९ १६० सोनामारन १३१ भांगके विषकीशांति १६१ सोनामारनविधिदूसरी ५६ १३२ गुंजाके विषकीशांति
१६२ गुणछन्द .... .... १३३ कनेरके विषकीशांति
४९ | १६३ लोहामारन १३४ थूहरके विषकीशांति १६४ पोलाद मारनकी दुसरी ५३५ जैपालके विषकीशांति ४९ | विधि .... .... ५५ १३६ अफीमके विषकीशांति ५० १६५ त्रिवंगमारन .... १३७ संखियाके विषकीशांति ५० १६६ वंगरसमारन .... ५८ १३८ हरतालमारज
५० १६७ वंगरसखानेकागुण .... १३९ दूसरी विधि .... ५० १६८ सीसामारन १४० अबरखमारन
| १६९ शिंगरिफमारनविधि १४१ संखियामारन
| १७० गंधकशोधन १४२ फिरदूसरीविधि
| १७१ पारामारन १४३ शिलाजीतशोधन .... ५२ १७२ पुनि दूसरीविधि १४४ मैनशिलशोधन .... ५२ | १७३ जस्तामारन १५५ रसकपूरमारन .... ५२ | १७४ कीटमारन
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विषय.
-
-
६४
(६) रसराज महोदधि ।
पृष्ठ. विषय, २७५ मृगांकरस बनानेकी |२०३ दूसरा इलाज .... ७०
विधि .... .... ६१ २०४ तीसरा इलाज .... ७० १७६ सबरसका उतार .... ६२ | २०५ तेल बनानेकी विधि ७१ १७७ शीतपित्तके लक्षण .... ६२ २०६ कडक पेशाबकी दवा ७१ १७८ शीतपित्तकी दवा .... २०७ इन्द्री जुलाबकीविधि ७१ १७९ अमृतादिकाढा .... २०८ शंखियाकीगोली गर्मीपर १८० अम्लपित्तकालक्षण .... २०९ दवा .... .... १८१ अम्लपित्तकीदवा ....। ! २१० इन्द्रीकामलहम .... १८२ मधुपीपलीयोग .... २११ इन्द्रीकीदवा .... १८३ पुनः अम्लपित्तकीदवा २१२ टांकलेप १८४ काढ़ा
| २१३ फिरलेप १८५ लक्ष्मीविलासतेल .... ६३ २१४ उपदंशकी हुक्कापीनेकी १८६ फकीरकी बूटी हरताल . दवाई ....
रसको ... .... २१५ गर्मीकाहुकापीना १८७ शंखिया मारनकी विधि २१६ आककीगोली
फकीरकी बताई हुई ६४ २१७ अरुशकी गोली १८८ मूत्रकृच्छ्रका लक्षण.... ६५ २१८ हुक्कापीना .... १८९ काढ़ा .... .... ६५ २१९ हुक्कापीना .... १९० कुशकाशादिक हा
२२० हुक्कापीना .... १९१ दूसरीदवा मूत्रकृच्छकी ६५
२२१ लेप घावको .... १९२ दुग्धयोग .... .... २२५ फिरदूसरालेप १९३ यवाखारयोग .... ६६ २२३ मलहमबनानेकीविधि १९४ मुनजिस चारप्रकारका ६६ २२४ दूसरामलहमबनानेकी १९५ दूसरा मुन्जिस .... ६७१,
विधि .... ..... १९६ तीसरा मुन्जिस ..... ६७
। २५५ बदकालेप .... १९७ चौथा मुन्जिस .... ६७२२६ दूसराबदका लेप .... ७६ १९८ उपदंश फिरंगवायगर्मीका २२७ पुनिबदपकानेका लेप ७६
बयान ........ | २२८ पुनि लेप .... १९९ गर्मीका भेद
२२९ सानागठियेकाइलाज ७६ २०० उपदंशका लक्षण .... ६९ |२३० दूसरीखानेकीदवा .... २०१ दवादेनेकी विधि .... ७० | २३१ मालिशका तेल .... ७७ २०२ गर्मीका पहिलाइलाज ७० / २३२ तमाखूकातेल ....
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अनुक्रमणिका।
(७)
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विषय.
पृष्ठ. विषय. २३३ तमाखू कातेल
२६२ जुलाबछठवाँ .... ९१ १३४ काढा
२६३ शिररोगकीदवा .... २३५ गंठियाके चूर्ण .... २६४ शिरकादूसरा इलाज ९१ २३६ गोली गंठियाको
२६५ शिरकोलेप .... ९१ २३७ उपदंशका लेप
२६६ शिररोगकादूसरालेप ९२ २३८ जवारीसहिन्दी
२६७ शिररोगकेखानेकीदषा ९२ २३९ जवारीससहरान
२६८ कर्णरोगका इलाज ....१-९२ २४० जवारीसतीसरी
२६९ कर्णोगका इलाज ....२-९३ २४१ जवारीस दूसरी
२७० कर्ण रोगका इलाज ....३-९२ हिंदुस्तानी
२७१ कर्णरोगका इलाज ....४-९२ २४२ जवारीसजारीनोस .... ८२
२७२ कानका इलाज ....५-९३ २४३ वरशबनानेकी विधि
२७३ आंखोंका इलाज .... ९३ २४४ वरश विधि दूसरी .... ८३
२७४ आंखोंकादूसरा इलाज ९३ २४५ आनन्ददातागोली .... | २७५ आँखोंकातीसराइलाज ९४ २४६ आनन्दभैरोरस ....
२७६ आंखोका इलाज ४ .... ९४ २४७ अजीर्णकंटकरस .... २७७ आंखोंका इलाज ५ .... ९५ २४८ त्रिफलादक्रिया .... २७८ भांखोंकाछठवाँ इलाज ९५ २४९ राजमृगांकक्रिया .... २७९ नाकरोगकी दवा .... ९५ २५० हरडैखानेकी विधि २८० नाकरोगके खानेकी दवा ९५ २५१ काबुलीहरडोंकामुरब्बा २८१ नाकरोगकीदूसरी दवा ९६ २५२ मुरब्बा आंवराका .... २८२ जीभरोगका इलाज २५३ मुरब्बा गाजरका
२८३ दांतरोगकी दवा .... २५४ मुरब्बा वचका
२८४ दांतकीदूसरी दवा .... २५५ मुरब्बा बेलका
२८५ दांतकीतीसरीदवा .... २५६ जुलाबलेनेकी विधि २८६ दांतकीचौथी दवा .... २५७ जुलाब पहिला .... २८७ दांतकीपांचवीं दवा २५८ जुलाबदूसरा .... २८८ श्वासरोगकाबयान .... ९८ २५९ जुलाबतीसरा .... ९० २८९ श्वासरोगकी पहिचान ९८ २६० जुलाबचौथाइच्छाभेदी २९० श्वासका लक्षण .... ९८ २६१ जुलाबपांचवा .... ९० २९१ खांसीबासकी दवा .... ९८
5333333336892
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(८) रसराज महोदधि। विषय.
पृष्ठ. विषय. २९२ सीतोपलादिचूर्ण .... ९८ | ३२८ प्लीहोदरकी दवा .... १०७ २९३ दमाखांसीश्वासकी दवा ९९ ३१९ जलोदरकी दवा .... १०८ २९४ हुचकीकी दवा ' .... ९९ ३२० उदररोगकाइलाज .... १०९ २९५ श्वासरोगकीदवासुं
३२१ उदररोगकादूसराइ० ११० ठ्यादिचूर्ण ....
३२२ उदरकातीसराइलाज ११० २९६ भारंगी गुडश्वालको.... १०० ३२३ दस्तबंदकरनेकीदवा ११० २९७ श्वासखांसीका दवा .... १०० ३२४ दस्तबंदकरनेकादूसरा २९८ दमाखांसीका इलाज १०१ इलाज २९९ दमाखांसीकी दूसरा । ३२५ दस्तवंदकरनेका इलाज
.... १०१ इलाज तीसरा .... १११ ३०० दमाखांसीश्वास
३२६ पाचककी गोली .... १११ काइ०३ .... १०२ ३२७ संग्रहनीकी गोली ... १११ ३०१ खांसीदमाका इ० ४ १०३ ३२८ संग्रहनीकी दूसरी ३०२ खांसीश्वासका इ०५ ।
गोली ३०३ उदररोगकाबयान १०३ ३२९ अजीर्णका चूर्ण .... ११३ ३०४ वातोदर लक्षण .... १०३ | ३३० अजीर्णका दूसरा चूर्ण ११२ ३०५ पित्तोदरलक्षणा .... १०३
३३१ अजीर्णका चूर्ण ३०६ कफोदरलक्षण
अग्निमुख .... ११३ ३०७ सत्रिपातोदरलक्षण
३३२ कृमिरोगका चूर्ण .... ११३ ३०८ प्लीहादरकालक्षण .... १०४
३३३ पांडुरोगका इलाज .... ११३ ३०९ मलबंधसेयकृतोदर
३३४ वातका तीसरा चूर्ण ११३ लक्षण
३३५ अतीसारकी दवा .... ११४ ३१० क्षतोदरकालक्षण
३३६ पित्त तीसरीकी दवा ११४ ३११ जलोदरकालक्षण
| ३३७ कफ की तीसरी दवा ११५ ३१२ वातोदरकी दवा
३३८ चौहारम चूर्ण .... ११४ ३१३ पित्तोदरकी दवा
३३९ सुनबहरीकी दवा .... ११५ ३१४ कफोदरकी दवा .... १०६ ३४० सुनबहरीका लेप .... ११५ ३१५ पुनः दूसरी दवा | ३४१ नामर्दयानी वाजीकरणका ३१६ सन्निपातकी दवा .... १०७ वयान ....... .... ११५ ३१७ पुनः दूसरी दवा .... १०७ ३४२ न मर्दकी दवा सेक.... ११६
___ .... ११२
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(९)
-
अनुक्रमणिका। - विषय.
पृष्ठ, विषय. ३४३ सेंकके पीछे लेप .... ११७ | ३६७ सफेदपरमाकी दवाई १२७ ३४४ लेपके ऊपर खानेकी । ३६८ लालपरमाकीदवाई १२७
दवा .... .... ११७, ३६९ पीलापरमाकीदवाई १२७ ३४५ इसके खानेके पीछे ३७० मूत्रियापरमाकीदवाई १२७
दूसरी दवा खानेकी ११७ ३७१ परमाकी दवाई ३४६ सेंक दूसरा .... ११८ । नोनियाक्षार .... १२८ ३४७ सेंकके उपर लेप .... ११८ ३७२ घृतपरमाकीदवाई .... १२८ ३४८ घीकुवारियोग लेप- । ३७३ वीसपरमाकीदवाई .... १२८
के ऊपर .... .... ११९ ३६४ वीसपरमाकी चन्द्र३४९ नामर्दीक दूर कर
प्रभावटी .... .... १२८ नेका तेल .... .... ११९ । ३७५ गंडकजोग ३५० पाताळयंत्र .... ....
३७६ सिलाजीतजोग ३५१ इंद्रियका लेप १ ....
३७७ अबरखजोग .... १२९ ३५२ लेप २ ....
३७८ सल्यपाक .... ५२९ ३५. इन्द्रियका सेंक .... १२१ ३७९ बवासीरका लक्षण .... १३० ३५१ दवा नामर्दकी
३८० वादीबवासीरकालक्षण १३० ३५५ दवा दूसरी .... १२१ | ३८१ खूनी बवासीरका लक्षण१३० ३५६ बँधेजकी गोली .... १२२ ३८२ बवासीरकाइलाज १ १३० ३५७ नामर्दकी दवाई .... १२२ ३८३ बवासीरकाइलाज२ १३१ ३५८ नामर्दकी दवाई .... १२२ । ३८४ खूनीववादीकाइलाज ३५९ छोहारा
| ३८५ दवादूसरी .... १३१ पाककी विधि .... |३८६ ववासरीकाइलाज .... १३१ ३६० सोंठिपाककीविधि .... १२३ ३८७ ववासीरकीमोली .... १३१ ३६१ असगंधपाककी
३८८ ववासीरकीगोली २.... १३२ विधि .... .... ३८९ भगंदररोगकाबयान.... १३२ ३६२ पुष्टाईकापाक .... ३९० भगंदरकालक्षण .... १३३ ३६३ अँवरापाककीविधि .... १२६ ३९१ भगंदररोगकीदवा .... १३२ ३६४ नामर्दकी दवाई .... १२६ ।
| ३९२ पुनःलेप' .... .... १३३ ३६५ वीसपरमेकी दवाई .... १२६ ३९३ भगंदरकोखानेकीदवा १३३ ३६६ परमाकी दवाई .... १२७,३९४ पुनः दूसरी .... १३३
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(१०)
रसराज महोदधि।
विषय.
पृष्ठ.
पिय.
-
-
-
३९५ अमवातकासवलक्षण १३३ ४२१ वातपाण्डुकालक्षण .... १४१ ३९६ आमवातकालक्षण .... १३४ | ४२२ पिसपाण्डुकालक्षण .... १४१ ३९७ आमवातकीदवा .... १३४ | ४२३ कफपाण्डुकालक्षण .... १४१ ३९८ दूसराकाढा .... १३५
४२४ सन्निपातपाण्डुका ३९९ फिरअजमोदादि चूर्ण · १३५
लक्षण ... .... १४१ ४०० अरंडीकायोग .... १३५
४२५ मिट्टीखानेका पाण्डुका ४०१ पुनः हरीतकीयोग .... १३५
लक्षण .... .... १४२ ४०२ आमवातकाइलाज .... १३५ ४०३ पिलहीरोगकाइलाज.... १३६
४२६ वातपाण्डुकीदवा .... १४२ ४०४ सर्वउदररोगकाइलाज
४२७ पित्तपाण्डुकीदवा ....
४२८ कफपाण्डुकी दवा .... १५३ चूर्ण .... .... १३६ ४०५ उद्ररोगके चूर्ण .... १३६
४२९ पुनः मंडूरलक्षण .... १५३
४३० सनिपातपाण्डुका ४०६ स्त्रीरोगके इलाज .... १३६
लक्षण .... ... १५३ ४०७ वातकाप्रदररोगकादवा १३७ ४०८ सबप्रदररोगकाइलाज १३७
४३१ फिरपाण्डकी दवा .... १४४ ४०९ स्त्रीधर्महोनेकाइलाज १३७
४३२ अमृतहरीतकीपाण्डुको १४४
४३३ गजकर्णकी दवाई .... १४५ ४१० स्त्रीधर्महोनेका
४३४ दूसरी दवाई .... १४५ इलाज २ .... .... १३७ ४११ स्त्रीधर्महोनेकाइलाज १३७
४३५ मलहमफोरीफोराके.... १४९ ४१२ वेश्यास्त्रीको गर्भ
४३६ मलहमदूसरा .... १४६ न रहनेकाइलाज .... १३७ / ४३७ लेपसबदर्दपर .... १४६ ४१३ गर्भनरहनेकाइलाज १३८
४३८ पेटकेपीराका लेप .... १४६ ४१४ गर्भिनीस्त्रीकायंत्र .... १३८४३९ लपछाता
४३९ लेपछातीपरजो कफ १४७ ४.५गर्भिनीकायंत्र २ .... १३८
रहताहै .... .... १४७ ४१६ गर्भिनीस्त्रीकायंत्र .... १३८
४४० खांसीदमाकालौक .... १४७ ४१७ गर्भिनीस्त्रीकालक्षण.... १३८
४४१ तेल बनानेकी विधि.... १४७ ४१८ जो लडकाजलदी न होवे।
५४२ जीवनरायनतेल .... १४८ उसकी दवा .... १३९ ४४३ अण्डकोससूजेका ४.९ बालककी दवाई .... १४८ इलाज .... .... १५९ ४२० पाण्डुगेगकाबयान .... १४० ४५४ दूसरा इलाज .... १५९
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(११)
अनुक्रमणिका।
पृष्ठ. विषय.
विषय.
पृष्ठ.
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५
.
२
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४४५ तीसराइलाज .... १४९ ४७० केशजमनेकाइलाज .... १५९ ४४६ अंडकोसकेयंत्रकीविधि १४९ ४७१ चित्रकादि चूर्ण .... १५९ ४४७ सांपकाटेकी दवाई .... १५० ४७२ हरीतक्यादिचूर्ण........ ४४८ सांपकाटेकानासं .... १५० ४७३ पंचवटकादि चूर्ण ४४९ विद्रकी दवाई .... १५१ ४७४ हिंगुष्टादि चूर्ण .... ४५० वावले कुत्ताकेकाटनेकी ४७५ दशमूलासव .... ....
दवाई .... .... १५१ ४७६ गूगलयोग .... .... ४५१ नोकरससानाअसाध्य ४७७ गूगलकिशोर.... ....
रोगका ... .... १५२ ४७८ हैजाकी बीमारीकोतुर्त ४५२ महजूमसांदेका .... १५३ शांतकरै .... .... १६२ ४५३ दूसरामहजूमसांदेका १५२ ४७९ दूसरीदवाहैजाकी .... १६३ ४५४ बंधेजकी दवाई .... १५३ | ४८० तीसरीदवाहैजाकी .... १६ ४५५ गर्मीउपदंशकी तीन
४८१ हुचकीकी दवाई दिनमें अच्छाकरै .... ४८२ पीपलकाचूर्ण.... ४५६ तिजारीकाइलाज .... | ४८३ पीपलकी गोली ४५७ सर्वरोगका दवा .... १५३ ४८४ जवारीसहरैंका ४५८ हूककाइलाज
४८५ मिर्चादिचूर्ण .... .... ४५९ सर्वज्वरकचूर्ण .... १५४
४८६ सोंठादिचूर्ण .... .... ४६० तिजारीज्वरकाकाढा । ४८७ कुष्ठरोगका बयान .... १६५ ४६१ चौथिया ज्वरकाकाढा १५४ ४८८ सातमहाकुष्ठका लक्षण १६६ ४६२ चौथियाज्वरका
४८९ कुष्ठकी दवा .... १६६ काढा २ .... .... १५४ ४९० पुनः दूसरा लेप .... १६७ ४६३ रोगदोषदूरहोय .... १५५ | ४९१ कुष्ठके खानेकीदवा .... १६७ ४६३ मंत्रघावकेझारनेका .... १५५४९२ कुष्ठकी दूसरी दवा.... १६७ ४६५ मंत्रबरवाधिनहीजहरबा | ४९३. त्रिफलादि मोदक .... १६८
तथनइलगोहियाकाइ. १५५४९४ सफेद कुष्ठकोलेप .... १६८ ४६६ मंत्रकानका .... १५६ ४९५ पुनः लेप .... .... ४६७ मंत्रप्रेतका.... .... १५६ ४९६ घोडाचोली .... .... ४६८ सनायखानेकीविधि.... १५६ | ४९७ औषध .... .... ४६९ पारेकीसिद्धगुटिका १५८ ४९८ दूसरा घोडाचोली .... १७३
CCCCWav av
१५४
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( १२ )
विषय.
४९९ गोरखमुंडीकल्प
५०० शुलपाक ५०१ मेथीपाक ५०२ जुलाब अमीरोंका ५०३ लकवाकीदवा ५०४ पुनः लकवाकी दवा ५०५ पुनः मिर्चादिलेप
....
रसराज महोदधि ।
पृष्ठ.
विषय.
---
१७९
१७३ | ५१३ दूसरा १७४ | ५१४ अजीर्णका बयान
१७९
१७९
१८०
१७५ ५१५ अहारकाबयान १७६ ५१६ मलकाबयान १७६ | ५१७ पानी काबयान १७७ ५१८ शीतपित्तकावयान
१८०
१८१
१७७ ५१९ शीतपित्तकी मालिश.... १८१ १७७ | ५२० शीतपित्तको खानेकी
....
....
....
....
***
....
५०६ पुनः वचका पान ५०७ पुनः लकवाकीदवा.... १७७ ५०८ लवंगादि चूर्ण ५०९ व्रणतोडनेका लेप ५१० फोरने कालेप ५११ पुनः लेप ५१२ भंडाका लेप
*NG.
6.34
$400
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इति अनुक्रमणिका समाप्ता ।
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दवा १७८ ५२१ शीतपित्तका पथ १७८ ५२२ अपथ्य है १७८ | ५२३ अच्छीरीतिले खानेका १७८
बयान
१७८ | ५२४ नाडीभेद चौपाई
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भाग १
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कालज्वरका भयंकर स्वरूप.
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भूमिका।
कोटि कोटि दंडवतहै उस निर्गुण निराकार पूरण ब्रह्म सच्चिदानंदघन अवधविहारी गोवर्द्धनधारी श्याम सुंदर श्रीमुरारी मोरमुकुटधारीको जिसकी अपार महिमाको शारदा, ब्रह्मा, शिव, वेद, पुराण कोई बयान नहीं कर सकता। जिसके चरित्र को गायके कैसाही अधम और पातकी होवे सोभी इस अपार संसारके भवसागरसे पार उतराहै यह ओषधि रूपी “रसराजमहोदधि" वैद्यक ग्रंथ पांचखंड प्रगट करताहूं, और सब सज्जन पुरुष और पंडित साधू स्वामी लोगोंकी बहुत तरहसों विनती करताहूं कि जिस जगह कोई भूल हाय तो संभार लव और इस ग्रंथमें यूनानी और फकीरोंकी दी हुई बूटियोंकी संग्रह है इसके पढनेसे हजारों आदमीकाहित कारज होगा. और जो इसकी विधिप्रमाण दवा करैगा तो उस पुरुषको इस संसारमें मान और यश मिलेगा और एक पैसेकी दवाईमें हजारों रुपयका गुण दिखावेगा.
और इस ग्रंथका वर्णन लिखने योग्य नहीं है जो देखेगा उसको इसका गुण मालम होगा. श्रीपंडित कामताप्रसाद संतन प्रतिपालक और सुकुल भगवान
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(२) भूमिका। दत्त पंडित और बाबाहंसदास और शिरोमणि पंडित
और ठाकुर उदवंतासिंह ये सब सज्जनपुरुषकी आज्ञानुसार मुंशी भगवानप्रसाद कायथ जिले जौनपुर गांव रसूलपुर शिष्य भगत भगवानदास मुराई जिला जौनपुर गांव ठाठर गोदामकेपास गाम चकबढ वल इन्होंने बनाया.
भगत भगवानदास.
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खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेङ्कटेश्वर" छापाखाना-खेतवाडी-चंबई.
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श्रीगणेशाय नमः । वैद्यक रसराजमहोदधि।
वन्दना।
दोहा। उमा महेश गणेश गुरु, ब्रह्मा विष्णु फणीश। भगवानदासकरजोरिकहै, कृपाकरहुजगदीश॥ विष्णुरूप हियमें धरौं, करौं गुरूकोध्यान॥ सरस्वती उर धारिक, रचौं ग्रंथ परमान ॥ जग कारज कल्याणहित, वैद्यक अमृतरूप॥ धन्वंतर वैद्यक किये, औषध अमृतरूप ॥ कहा फारसी वैद्यक, जिसमें वैद्यकसार ॥ रसराजमहोदधिकहाँ, वैद्यक भाषिविचार॥ विविधभांति सुमिरण करौं,शिवचरणनकी आस॥ सर्वद्विजन आशीशके, सुजन पुरुषकी आस ॥ मुन्शी भगवान प्रसादके, चरणन करौं प्रणाम। वैद्यकग्रंथविरचितकियो, भगवानदासहैनाम॥ जगतमही परकाशहै, विधिहरिहरहै नाम॥ ऐसे उस जगदीशको, बहुविधिकरौं प्रणाम॥
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(४)
रसराज महोदधि ।
जो वैद्यकहै निगमके, भाषा वैद्यकभूप ॥ गणपतिको करिदंडवत, वैद्यक रचों अनूप ॥ अथ प्रथमरोगविचार.
अनेक प्रकारकी पीड़ाओंको रोग कहते हैं. रोग दो प्रकारके हैं. एक कायिक दूसरा मानसिक कायामें रहै सो कायिक, उसका नाम व्याधिहै. मनमें रहे उसका नाम आधिहै सो ये दोनों शरीरमें किसी प्रकारके कुपथ्यसे वात पित्त कफरूप दोष और मिथ्या आहार वा मिथ्या विहारके होनेसे सब रोगों को उत्पन्न करते हैं और यह वात, पित्त, कफ कई प्रकार के कुपथ्यसे बिगड्रकर देहको बिगाड़ते हैं. और यही अच्छेप्रकार पथ्य के सेवनेसे शरीरको पुष्ट करते हैं. अथ सर्वरोगोंकी परीक्षा
नाडीपरीक्षा, मूत्रपरीक्षा, और मल शरीर या सकल व नेत्र शिरसे पैरतक येरोगीके परीक्षा करे. अथ नाडीपरीक्षा.
पुरुष रोगी होय तो उसके दहिने हाथकी और स्त्रीरोगिनी होय तो उसके बायें हाथकी नाड़ीदेखे परंतु वैद्यको उचित है कि एकाग्र चित्त और प्रसन्नमन होकर विचारपूर्वक रोगीके हाथको हिलने न
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रसराज महोदधि। (५) देव और चतुर वैद्यजन नाडी ऐसे देखे कि रोगीका हाथ लंबा करावे और कछुक टेढ़ा हाथकी अंगुली सब पसारके हाथको न हिलावे और कडा करै ऐसी विधि करायके अंगुष्ठमूलसे नाडी देखै प्रभात समयमें तीनवार नाडीपरीक्षा धारण करै फिर छोडदे. ऐसे तीनवार परीक्षा करै और फिर बुद्धिसे विचारकर रोगको नाडीद्वारा प्रगटकरै वैद्य गुरुका ध्यान करिकै नाडी देखै कौवाकी चाल नाडी चलै तौ उसके ज्वर जाने और बहुत सुस्त बारीक नाडी चलै तो कफज्वर जानो और मोर या मुर्गा या बतक इसके मिसाल चलै तौ कफ पित्तका ज्वर जानो और अँगुलीमें दबि दबि जाय तो बातकै फिसाद ज्वर जानो. और सांपकीचाल नाडी चलै तो वात कफका ज्वर समुझना और काठफोरा जो काठको ठाक ठंक काटतेहैं जो नाडी ऐसी चाल चलै तो सन्निपातज्वर जानो यही सब नाडीपरीक्षा है और इसीसे सब रोग जाना जाता है.
अथ मूत्रपरीक्षा. लाल रंग मूत्र होय तो उसके खूनका जोर समझना चाहिये. और पीला हो तो ज्वर समुझना और सफेद रंग होय तौ बलगमकै व्याधि जानो और
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(६) रसराज महोदधि । अंजीरके रंग मूत्रहोय तो खूनसे बिगडा मूत्र समझो. और केसरीके रंगका मूत्र होय तो वादीवा पित्तसूं बिगडा मूत्र जानो. और खूनके रंग मूत्र होय तो और जडा स्याही रंगलिये होय तो गरमीका रोग जानो. और जो निहायत कालारंग हो तो असाध्य जानो और जोकि ज्वर मिला होतो ६ महिनाके अंदर मरै और ज्वर न रहै काला रंग मूत्रहोय तो रोगी जीवैगा मरै नहीं. ____ जो तस्वीरमें नसें बनाई हैं इसी तरहसे मनुष्यके शरीरमें नसें होती हैं, तमाम शरीरमें जो नसें हैं सो इनकी जड छातीसे है. सो वह नसें छातीसे पैर व हाथ तकहैं.
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रसराज महोदधि ।
अथ कफ खाँसी डाँसी ऊर्द्धश्वासका लक्षण.
दोहा - उद्र विषे एक नाटिका, होवै मलसों बन्द | कफ खाँसी उद्र श्वास बहु, करै व्यथा सब अंग ॥ अथ मन्दअग्निलक्षण.
(७)
जिस पुरुषके पेटमें मल खराब हुआ हो उसकी नाडी बहुत सुस्त चलै पेटमें गर्मी मालूम हो शरीर सुस्त रहै. खाना बराबर हजम न होय. मूत्र लालउतरे और सब अंगमें पीडा हो, या अंग गर्म रहै. मल बराबर उतरे नहीं ये लक्षण मन्द अग्निके हैं. अथ संग्रहणीका लक्षण
जिस पुरुषके अंग में संग्रहणी होय शिर भारी रहै. आंख बैठ जाय. मल, मूत्र साथही उतरे दस्त पानीके सरखा होय अन्न पचै नहीं. दस्तके साथ वह अन्न गिरा करै शरीरका चेहरा बदल जाय. ये लक्षण संग्रहणीके हैं.
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खूनी बवासीर का लक्षण
तृषा अरुचि रुधिर निकले. दुर्बलहोय अतीसार होय. खाज होय. गुदा बीचमें फोड़ा निकलें ये लक्षण खूनीका है.
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(८) रसराज महोदधि।
अथ दाहका लक्षण. बाहर अन्दर दाह बहुत होय. उदर गरम रहै मुरछा होय. तृषा होय. ये लक्षण दाहके हैं.
अथ बदनमें बादी कब्जियत
बिगडेका लक्षण. जिस आदमीके अंगमें बादीका बहुत जोर होता है उससे खाना नहीं खाया जाता. और न बराबर हजम होय. तमाम अंगमें सुस्ती होवे हाथ पांवमें चिकनाहट होवे और पानीके मुवाफिक मालूम होय पानी पीनेकी इच्छा न लगै गर्मी मिजाजमें मालूम होय.
अथ खून बिगड़ेका लक्षण. जिस पुरुषके अंगमें रक्त बिगडा होवे उसके मुंहका स्वाद मीठा कडुआ होय. शिर भारी होय. और हड्डीके अन्दर दर्द होय. जबान सूखी रहै और अंगमें खुजली, आंख सुर्ख रहै पेशाब लाल उतरै नाडी बहुत जलदी जलदी चलै ये लक्षण रक्त बिगडेके हैं.
वात पित्त मिश्रित होय उसका लक्षण. दोहा-चात पित्त कफ धीरते, करत बदनके रोग।
जील दोष दुर्वासना, फोडा फुडिया योग ॥
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रसराज महोदधि। (९)
अथ वायुका लक्षण. दोहा-तनु कांपै सूखै अधर, तृषा जलकी होय । हुचकी शूलरु उदर दुख, मुख फीका कहुसोय ॥
अथ वातका लक्षण. दोहा-सब शरीर नख नेत्रको, विष्ठा मूत्र जु होय । ये लक्षण ज्वरवायुके, मूत्र रुधिररँग होय ॥
अथ कफज्वर लक्षण. मूत्र बहुत जल्दी जल्दी उतरै चित्त भ्रमित रहै बुद्धि नष्ट हो जाय नींद बहुत आवे कफ छाती छेके रहै देहमें दँदोरा ऐसा मालूम होय तो कफज्वरका लक्षण है.
निरोगरहनेका वयान. ___ मनुष्यको चाहियेकि दिनको सोना नहीं. और रातको जागना नहीं बहुत आदमी ऐसे निद्रा करनेसे रोग उत्पन्न करतेहैं. और खराब खाना खाय नहीं. और दिनको स्त्री भोग करैनहीं, जोडा पहननेसे आँखों को गुण करताहै. छतरी धारण कियेसे शरीरको सुख होताहै. और मनुष्यको उचितहैकि सज्जन पुरुषसे प्रीति करै, और सत संगति करै. ब्राह्मण वृद्ध पुरुष वैद्य और राजासे प्रीति करै और गुरुका कहना मानें
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(१०)
रसराज महोदधि। दुष्ट पुरुषको त्याग करै. वैरीसे दूर रहै. और किसीको दुःख देवै नहीं, और विश्वास विचारके करै मिथ्या बोले नहीं, अपनेसे वलवान पुरुषसे युद्ध करै नहीं, स्त्रीका विश्वास करै नहीं. सामके वक्त घड़ी दिन रहे सोवै नहीं. सोनेसे आयुहीन और दरिद्र होता है स्त्रीका सोलह वर्षतक बाला नामहै और बत्तीस वर्षकी स्त्री तरुणी संज्ञा है पचास वर्षतक अधिरूढ़ा पचास वर्षके उपरांत वृद्ध अवस्थाहै रजस्वला. वृद्ध गर्भिणी वैरवाली और गोत्रकी गुरुकी स्त्रीसे मनुष्यको उचितहै कि ऐसी स्त्रीसे भोग करैनहीं जो मूर्ख लोग करते हैं तो पूर्वजन्म में गूंगे होतेहैं और परीक्षित रोग होताहै. वह आदमी सदा कलेशमें रहताहै. मनुष्यको चाहिये कि अपनी स्त्री सिवाय दूसरी स्त्रीसे भोग नहीं करे और स्त्रीको चाहिये कि अपने पतिको छोड़कर दूसरेसे भोग करै नहीं यह धर्म और वेदकी रीतिहै.
अथ स्वप्न विचार. जो स्वप्न मनुष्यको शामसे आधीराततक दीखआवै तो छ-महीनेके अंदर फल करे और आधी रातसे सबेरेतक जो स्वप्न देखै तो दश महीनाके अन्दर फल करै और वैद्य धर्मवाला और भक्तिवाला
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रसराज महोदधि। (११) शीलवाला ये अच्छा है पढे लिखे शास्त्रविषे निश्चयवाला और गैर लालची ये वैद्य अच्छाहै ये स्वप्नेमें आवें तो श्रेष्ठ है. जो खराब स्वप्ना देखै तो किसीसे कहै नहीं और ब्राह्मणको दानदे
और सींगवाला बैल बंदर और शूरवीर और नाव पर चढा ये देखै तो राजाका भय होय और काला कपडालाल कपडा पहरे स्त्री देखे तो मृत्यु होय और शिर मुंडाये और अपना व्याह देखै और घरमें नाच तमासा देखै तो मृत्यु होय. और भैंसा ऊंट गधा दक्षिण दिशाको जाता देखै अच्छा मनुष्य देखै तो बीमार होय. और बीमार देखै तो अवश्य मरै और जो सफेद कपडा पहरे सफेद माला पहरे स्त्री को पुरुष देखै तो लक्ष्मी प्राप्त होय. ब्राह्मण गुरु और बर्तिआगि साधुनका झुंड बुढापा ये स्वप्रा सदा आनंदकारीहैं.
___ अथ दूतपरीक्षा. पवित्र होकर शीलमान आदमी वैद्यको बुलाने जाय तो श्रेष्ठ है. और काना और अंधा लँगडा मैला कपड़ा ये अशुभहै वैद्यको अच्छा दृष्टांत मिले तो जाय और मान होय रोगी जीवै परीक्षा बहुत है जियादा लिखनेसे काम नहीं.
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(१२) रसराज महोदधि ।
अथ साध्यलक्षण. रोगीआदमीका सबशरीर शोभायमान होय चेहरा ज्योंका त्यों रहै मुख रूखा रहै दाँत सफेद रहैं वो रोगी जीवै ओंठ लाल हैं शरीरमें मैल बास न रहै कानसे सुनै ये लक्षणका रोगी जीवै. और जिसके पैरगर्म रहैं और कपडामें खराब बास नहीं आवै मधुर वचन बोलै वह रोगी अवश्य जीव सबेरे रोगीका मूत्र पानी सरीखा हो तो वह रोगी मरै नहीं.
असाध्यलक्षण. देहकी शोभा जाती रहै. और चेहरा भयंकर होय रात दिन अचेत रहै तो वह रोगीअवश्य मरैऔर रोगी का मुँह रोरी सरीखा होय. जीभ काली होय और वचन दब दब बोले वह रोगी असाध्यहै. और जिस रोगीके शरीरमें खराब बास आवै तो वह रोगी असाध्य. आँखि बैठ जाय और किसीको पहिचाने नहीं और बोले औरका और तो वह रोगी असाध्यहै.
अथ मलज्वरलक्षण. कंठ सूखै, दाह बहुत होय, मस्तक पीडा होय, भ्रम उपजे, मूर्छा होय, हड फूटनी होय, हिचकी, पेटमें शूल, वमन होय तो मल ज्वर लक्षण जानो.
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रसराज महोदधि। (१३)
कालज्वरके लक्षण. पेशाव बहुत होय, देह गलिजाय, माथ नाक शीतल होय ये लक्षण कालज्वरके हैं.
कफज्वर, शीतज्वरका लक्षण. अरुचि होय, अग्नि मंद होजाय, मुखमें खराब गंध आवै, ज्वर बहुत होय, देह शीतल होय, निद्रा बहुत होय, येलक्षण कफज्वर और शीतज्वरके हैं.
कामज्वरका लक्षण. शीत लगै, शरीर काँपै, चित्तभ्रम होय, माथामें पीड़ा होय, कंठ सूखा रहै, मुँह कसैला होय, यह लक्षण कामज्वरका है.
रक्तज्वरका लक्षण. शरीरमें पीड़ा होय, मुख नाकसे खून निकले, ये लक्षण रक्तज्वरके हैं.
सर्वज्वरके दूर होनेका चूर्ण. सोंठिधनियां छोटी बड़ी कटाई देवदारु सब बराबरि ले कपडछान करिके छःमासा शामको छ:मासा सबेरे गर्म पानीके साथ खाय तो सब प्रकारका ज्वर दूरहोय.
अथ सर्वज्वरकी उत्पत्ति. श्रीमहादेवजीने अपने तीसरे नेत्रसे वीरभद्रको उपजाया सो यही वीरभद्रसे आठ प्रकारका ज्वर उत्पन्न
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(१४) रसराज महोदधि । हुआ सो आठ प्रकार ज्वरसे सैकरों ज्वर हैं जो लिखने योग्य नहीं. आठ प्रकारके ज्वरोंको अलग२ लिखते हैं सातज्वर १ पित्तज्वर २ कफज्वर ३ वातपित्त ज्वर ४ वातकफज्वर ५ कफपित्तज्वर ६ सन्निपात ज्वर ७ आगंतुकज्वर ८ यही आठ प्रकारके ज्वर हैं.
अथ वातज्वरलक्षण. शरीर काँपै, कभी शरीर जलै, कभी कम होना,गल ओठ मुखका सूखना निद्रा न आना छींक न आना अंगमें रुखाई शिर हृदय व देहभरमें पीडा मुख फीका बहुत कडा दस्त होना,पेटकी पीडा पेट फूलना जंभाई आना ये सब वातज्वरके लक्षण हैं.
अथ वातज्वरकी दवा. सोंठि चिरायता नागरमोथा गिलोय इन्होंका काढ़ा करि देइ तो वातज्वर दूर होय.
गुडच्यादि काढा. गिलोय, छोटी पीपली जटामासी सोंठि इन्होंका काढा करिदेय तो वातज्वर जाय. यहीसुब्यादि काढाहै.
(भैरवरस) बचनाग विष सोंठि पिपली मिरच रक्त आक सब बराबर लेय अदरखके रसमें खल करिके दे वातज्वर तत्काल दूर होय.
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रसराज महोदधि। (१५) पित्तज्वरका लक्षण दवा. नेत्रमें दाह होय, मुँह करुवा होय पियास बहुत लगै भवर छुटै बकै शिर गरम रहै, मल पतला उतरे, वमन होय, नींद न लगै, मुख सूखै और पाकि जाय पसीना आवै, नेत्र मूत्र मल पियर होय ये लक्षण जेहि पुरुष के होय तो पित्तज्वर जानो.
अथ पित्तज्वरका काढ़ा. धमासा बांसा कटुकी पित्तपापडा मालकांगुणी चिरायता इन्होंका काढ़ा बनाय मिसिरी डारि पिये तो पित्तज्वर दाहसहित नाश होय.
( पुनःकाढ़ा) गिलोय नागरमोथा धनियाँ मुलहटी चिरायता इन्हों का काढ़ा तृषा शूल अरुचि छर्दि पित्तज्वरको दूरकरैहै.
अथ कफज्वर लक्षण दवा.. अन्नकी अरुचि होय, शरीर भारी होय, मूत्र नेत्र नख सफेद होय, नोंद घनी आवै, शरीरमें ठंढी होय मुँह मीठा होय दस्त न उतरै आलस्य आवै, श्वास खांसी होय ये लक्षण कफज्वरके हैं.
कफज्वरपर त्रिफलादि चूर्ण. त्रिफला पिपली चूर्ण करि शहतके साथ चाटै तो कफज्वर श्वास खांसी दूर होय.
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(१६) रसराज महोदधि ।
निम्बादिका काढ़ा. निम्ब सोंठि गिलोय शतावरी धमासा चिरायता पुष्करमूल पीपलामूल कटैली इन्होंका काढ़ा कर पिये तो कफज्वर दूर होय.
अथ वात पित्तज्वरका लक्षण. मूछो होय, भवरी छूटै, दाह नींद आवै नहीं, माथेमें पीडा हो कंठ मुँह सूखै, वमन रोमांच होय अरुचि होय सर्व अंगमें पीडा होय अँभाई आवै और बकवाद करै ये लक्षण वातपित्तके हैं. अथ वात पित्तज्वरपर पंचमूलादि काढा. पंचमूल गिलोय नागरमोथा सोठि चिरायता इन्हों का काढ़ा करि पिये तो वातपित्तज्वर दूर होय.
मुस्तादि काढ़ा. नागरमोथा धनियाँ चिरायता गिलोय नींब कटुकी कडू परवर इन्होंका काढ़ा करि पिये तो वातपित्त ज्वर दूर होय.
अथ वात कफज्वरके लक्षण. खांसी अरुचि संधि २ में पीडा माथ बाय पीनस संताप अंग कंपै शरीर में भारीपना होय नींद आवै नहीं पसीना श्वास पेटमें शूल होय और यही लक्षण
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रसराज महोदधि। (१७) जिस मनुष्यके होयँ और नाड़ी सर्प हंसकी चाल चले तो वात कफज्वर जानो.
अथ वात कफज्वरकी दवा. कली चूना १० टंक हरताल तबकी १० टंक ले घीकुवारके रसमें ४ पहर घोटै तब गोला बांधि झुरावै फिर गजपुट कर आंच देय शीतल भयेपर रोगीकाबल देखिके १ टंक गरम पानीके साथ देय तो नित्य ज्वर अंतरावर तिजारीज्वर चौथियावर वात कफ ज्वर ये सब ज्वर जायँ.
और काढ़ा. __कायफल सूंठिवच नागरमोथा पित्तपापडा धनियाँ हर्र काकडासिंगी देवदारु भारंगी इन्होंका काढ़ा बनाय पिये तो वात कफज्वर जाय.
अथ कफपित्तज्वर लक्षण. चटचटाहट और मुख कडू होना, आलस्य होना और खांसी आना, अरुचि प्यास बार२ लगै, दाह होय शरीर ठंढा रहै , ये कफ पित्तज्वरके लक्षण हैं.
कफ पित्तज्वरकी दवा. सोंठि पित्तपापडा धमासा इन्होंका काढ़ा कफ पित्तज्वरको दूर करता है.
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(१८) रसराज महोदधि ।
और काढा. कटैली गिलोय सोठि पुष्करमूल चिरायता इन्होंका काढ़ा सर्वज्वरको हरैहै. ज्वरांकुश रस. कफ पित्त सब ज्वरोंपर.
पारा२५ गंधक २५विष२५ साहागाचौकिया २५ त्रिफला ३७॥लेकर कूटि कपड छानकर अदरखके रसमें घोटि गोली उरद प्रमाण बांधै एक शाम एक सवेरे खाय तो कफ पित्तज्वर सर्वज्वर दूर होय.
अथ सन्निपातका लक्षण. .. अकस्मात् क्षण २ में रोवै हँसै गावै क्षणमें दाह होय क्षणमें सीतलगै क्षणमें स्वभाव फिर जाय इन्द्रियां अपने अपने धर्मको छोड़देंशरीरकी संधियोंमें हाडोंमें माथेमें पीडा होय आँसू आवै नेत्र काले वालाल होय कानमें शब्दहोय अंगमें पीड़ा होय कंठ परि जाय तंद्रा श्वास कास अरुचि भ्रम होय. जीभ काली खरदरी लाठरसी होय लोहसे मिला कफ होय दिनमें सोवै रातिकोजागै पसीना बहुत आवै वा न आवै तृषा बहुत होय छातीमें पीडा होय मल मूत्र उतरे नहीं उतरै तो थोडा उतरै दूबर होय कफ घुरघुराय मौन रहै ओंठ आदि इन्द्रिय पाकि जायँ पेट भारी रहै नाडीकी गति महामन्द होय, सूक्ष्म टूटीसी होय मूत्र
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रसंराज महोदधि। (१९.) पीला वा लाल वा काला वा सेंदुर समान होय मल काला या सफेद वा सुवरके मांसके समान होय ये लक्षण होयँ तो जानो कि सन्निपात रोग है.
अथ सन्निपातकी दवा, बीरभद्र रस. (त्रिकुटा ) तिरकूठ ३। नोन ६। सौंफ १। दोनों जीरा ३। पारा १॥ गंधक १। अभ्रक रस १। सबकी कजरी करै फिर अदरख रसमें सब दवा छोड़िके घोटै फिर अनोपान आदिके रसमें औरसेंधौ और चितावरिमें देइ तो तेरहौं प्रकारका सन्निपात दूर होय जैसे सिंह हाथीको मारै तैसे ज्वरको वीरभद्र रस मारै.
पुनःदूसरा रस. पारा शुद्ध,गंधक शुद्ध, विष शुद्ध, २५ टंक जायफल ६२ टंक पीपरी १० टंक पारा गंधककी कजली करे तब दवा डारिके अदरखके रसमें एकदिन खरल करे फिर १ रत्ती प्रमाण रोगीको दीजे तौ सन्निपातज्वर शीतज्वर जीर्णज्वरविषूचिका विषमज्वर मन्दाग्नि माथेके रोग सब दूर होय.
अथ रोगीकी परीक्षा. रोगीकी उमरबाकी होतबभी औषध बिनारोगीकी पीडा दूर नहीं होती दृष्टांत जैसे हस्ती कीचडमें खड़ा हुआ उपाय बिना निकल नहीं सक्ता उमर बाकी हो
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(२०) रसराज महोदधि। अरु चिकित्सा नहीं करे तो रोगी मरसक्ता है जैसे दीपकमें तेल बाती होतेभी पवनसे दीपक नष्ट होता है तैसे साध्य रोगी चिकित्सा नहीं करे तो स्वल्पासाध्य होस्वल्पासाध्य चिकित्सा नहीं करे तो असाध्य हो असाध्य चिकित्सा नहीं करे तो मृत्यु होय जबतक श्वास आवें तबतक चिकित्सा करनी चाहिये कोई समयमें चिकित्सासे मरणप्रायभी जीवताहै आदिमें रोगीकी परीक्षा करै पीछे औषधकी परीक्षा करै पीछे समझकर औषध रोगीको देवै.
१ अथ शबंत गाजुबाँ. गाजुबाँ पावसेर, खांड एक सेर, पहिले गाज़वांको साफ करके दो या तीन पानीसे धोकर कपडेमें बांधि कै रातिको भिगावै सबेरे अग्निपर दोसेर पानी डारिकै चुरावै जब आधासेर पानी रहिजाय तो खांडडारिके शर्वत तयार करै, एक तोला खुराक शर्बतकी है सब रोगोंपर देवै.
२ अथ गाजबांके शर्बतकी दूसरी विधि. ___ हरी गाज़बाँका रस एक सेरले और एक सेर सफेद कंदले दोनोंको एकमें मिलायके चुरावै तब छानिले सात तोले छ:मासे गुलावका अर्क मिलायके चासनीकरले खुराक एक तोले दे यह हौलदिलकोशांत
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रसराज महोदधिः। (२१) करताहै और कलेजेको फायदा देताहै. सुस्ती और फेफराको दूर करताहै.
३शर्बत नीलोफरकी विधि नीलोफरका फूल आफ सेर दोसेर पानीमें सामको भिगावै सबेरे एक सेर चीनी मिलाय कर शर्बत तैयार करै खुराक ९ मासे दिमागको खुश करताहै और पित्तज्वरको दूर करताहै.
४ शर्बत दीनार (कासनी) की विधि.
कासनीका बीज ८ मासे गुलाबका फूल ८ मासे कासनीकी जडका छिलका ४ मासे गाजवां ४ मासे कुसुम ४ मासे सब दवा डेढसेर पानीमें चुरावै और आधा रहजाय तब डेढपाव शकर मिलायके चासनी करके खुराक एक तोला अनोपान मुवाफिक सब रोगोंपरदे.
५शर्बत जूफाकी विधि. सम्पुकी जड अजमोदाकी जड सोसनकी जड हंसराज अंजीर ये सब बारह बारह मासे ले सवा दोसेर पानीमें चुरावे और आधा रहजाय तब डेढ पाव शक्कर मिलाके शर्बत तय्यार करै खुराक चारि मासे खांसीको दूर करताहै. कलेजेको तर करताहै.
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(२२) रसराज महादधि । ६शर्बत अनार विलायतकी विधि.
दो सेर अनारके दानेका रस निकालले और हाई सेर शक्कर मिलाके शर्बत तय्यार करले खुराक दो तोले नज़लाको दूर करताहै दिल और दिमागको ताकत देताहै.
७ शर्बत शहतूतकी विधि. लाल शहतूत दो सेर मलिकै छानिले और दोसेर कन्द मिलाकर चासनी करले खुराक दो तोले दिलको प्रसन्न करताहै और कफज्वरको दूर करताहै.
८शर्बत गुलाबकी विधि. पावसेर गुलाबके फूल लेकर दोसेर पानीमे चुरावै आधा रहजाय तब आधासेर शकर मिलाकर चासनी करले खुराक एक तोले. पित्तकी गर्मीको शान्त करताहै, और पियासको बुझाताहै. कलेजेको ताकत देताहै...
९ शर्बत बनफशाकी विधि. वनफ्शाके पत्ता आधपाव लेकर डेढ पाव पानीमें चुरावै जब आधा रहजाय तब आधसेर चीनी डारिके चासनी करले खुराक एक तोले फायदा पलईको गुणकारकहै. फेफडेकी पीडाऔर शिरकी पीडाके दुःखको दूर करताहै. और ज्वरको फायदा करताहै.
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रसराज महोदधि। (२३)
१० शर्बत बेलकी विधि. पावभर बेलका मगज लेकर भिगावै, एक सेर पानीमें थोड़ा चुरावै फिर डेढ पाव शकर मिलाकर चासनी करले खुराक एक तोले कब्जियत दूर करता है खूनी बवासीरको फायदा करता है और दस्त बंद करताहै.
११ शर्बत पुदीनाकी विधि. एक पाव अनारको कूटकर रस निकाल ले और पुदीनाका रस पावभरि आधासेर कन्द मिलाकर चासनी करले खुराक एक तोला. दिलको प्रसन्न करता व प्यास बुझाताहै...
१२ शर्बत नींबूकी विधि. बीसनींबू लेकर उसका रस निकाल कर डेढ सेर सफेद चीनी मिलाकर चासनी करले खुराक एक तोलेसे डेढ तोले तक कलेजेकी गरमीको शांत करताहै भूख लगाताहै और मन प्रसन्न करताहै.
१३ शर्बत केवड़ाकी विधि पावभर केवड़ेके फूल लेकर एकसेर पानी में भिगोकर फिर थोड़ा चुरावै जब आधा रह जाय तब तीनपाव चीनी मिलाकर चासनी करले खुराक एक तोलाहै.
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(२४) रसराज महोदधि।
यह यंत्र शर्बत बनानेकी विधिहै. देवाईका अर्क कढ़ाईमे डालकर मिश्री डालके चुरावै जब गाढा होजावे तब कलछुलीसे चलाकर
उठावै जोकि टोप बांधि लेवै तब कढाईमेंसे निकालकर सीसीमें रखदे इसी तरहसे शर्बत
. बनाले. ये यंत्र अर्क उतारनेकी विधिहै. एक घडाले उसमें पानी डालकर तब उसमें दवाई डालके ढपनासे घड़ाको बन्द करदे मधुरी आंचसे
चुरावै जब आधा रहजाय तब कोई दवाईका अर्कहो इसी तरहसे बनाले अर्क की यही विधिहै शर्बत बनानेके वास्ते.
१४ शर्बत पानकी विधि. पका पान दोसै मलकै रस निकाल ले और एक सेर कन्द मिलाकर चासनी करले खुराक एक तोलेसे दोतोले तक दिलको प्रसन्नकरता है शरीरको ताकत देताहै.
१५शर्बत इमली विधि. आधासेर इमलीको दोसेर पानीमें भिगोकर उस
- घडा
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रसराज महोदधि (२५) को मलिके छानिके एक सेर कन्द मिलाकर चासनी करले. खुराक सवातोला, उलटीको शान्त करताहै.
१६शर्बत चन्दनकी विधि. चन्दनका चूरन एकसेर पांचसेर पानीमें अंगार पर चुरावै जब आधा रहजाय तब चारसेर कन्दमें मिलाकर चासनी करले खुराक एक तोला पित्तज्वरको दूर करताहै उलटी शान्त करताहै, भूख लगाताहै, और तमाम शरीरको खुश करताहै.
मृगीकी दवाई. दोहा-बच खुरशानी शहद सँग, दोयटंक जो देय ॥
मृगी रोग तुरतै हरै, दूध भात पथ लेय ॥ ब्रह्मणी वच कुट संगसों, शंखाहोली लेय ॥ गऊ घीवमें पीजिये, मृगी व्याधि क्षय होय ॥ मिरच डिठोहरिमें धरै. दिनइकिस परिमान ॥ जलसों नाश जुलीजिये, होय मृगीकी हान ॥
परमाकी दवाई. शंखाहोलि, इलाइची, शिलाजीत पुनिलेय ॥ सब परमोंका दुख हरे, प्रात समय जो सेय ॥ रस गिलोय निकालके, पीजै शहद मिलाय ॥ सब परमाका दुख हरै प्रात समय जो खाय ॥
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(२६) रसराज महोदधि ।
बवासीरकी दवाई. दोहा-दुद्धीबडि जो आनिकै, लौंग संगमें खाय ॥ वा घृतसँग जो पीजिये, खून बवेशी जाय ॥
बूटीका गुण. दोहा-पातकसौंजी विष हरै, जडसे सांप डराय ॥ फलसे बाघडरातहै, फूल रतौंधी जाय ॥
बांझिनी स्त्रीका लक्षण. दोहा-मुखडब्बाकुचपुहुप सम, कटिविसाल जो होय॥
कवि कोविद दोऊ कहैं, होय वांझिनी सोय ॥
. दरिदिनी स्त्रीका लक्षण. दोहा-जाकीनाभिगंभीरअति, श्रवणहोइँ जसशूप ॥ सोतिय होय दरिद्रिणी, जो पावैपतिभूप ॥
अथगुंजाप्रकाशविधि. दोहा-गुंजाकी गति कहतहौं, कौतुक चरित अपार ॥ गिरिजासों शिव यों कह्यो, सब कल्पनको सार ॥ भूत रु डाकिनि प्रेत गण, यक्ष बीर वैताल ॥ इक गुंजाके कल्पमें, कोटिन माया जाल ॥ बहुत चरित हैं कहीं कुछ, सकल कल्पकी खानि ॥ जो चाहै सोई करे, साधनके बरदानि ॥ अब याके साधन करै, यथायोग उपदेश। जो साथै सो सिद्धिहै, कसर नहीं लवलेश ॥
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रसराज महोदधि। (२७) पुष्य होय आदित्यको, जो लीजै यह मूल ॥ शुक्रवार की रोहिणी, गहन होय अनुकूल ॥ कृष्णपक्षकी अष्टमी, हस्त नक्षत्र जु होय ॥ अर्धरात्रिको जायके, मनकी शंका खोय ॥ धूप दीपदे लायकर, धरै दूधमें धोय ॥ जो काह नर नारिके, विषधर काटे होय ॥ विष उतरे सब तुरतही, जानि पिलावे सोय ॥ जो पिसिकर मुखमें तबै, सभामध्य नर जाय॥ हाँजी हाँजी सबकहै, जोइ कहै सो थाय ॥ चतुरलोग याविधि करै, कबहुँ न आवे आंच॥ एक जड़ीके युक्त सों, सबै नचावै नाच ॥ तांबा माहि मदायकै, कटिमें बांधे कोय ॥ नवें मास वहि नारिके, निश्चय बालक होय ॥ काजलसों घिसि आंजिये, मोहै सब संसार ॥ जो माँगे वह वस्तु कछु, सो लावे तत्कार ॥ जोघिसि पयके योगसों, लेपनकीजै अंग ॥ भूत प्रेत अरु यक्ष गण, लगे फिरें सब संग ॥ घिसिके रुई भिगायकर, बाती करे बनाय ॥ फेर भिगावे तेलसों, दीपक धरे जलाय ॥ होय अचंभो शयन तब, मृत्युकसभा देखाय ॥ मनमें ले स्तुति करे, सवही पूजे पाय ॥ जो घिसिये वह पीवसों, लेप शरीर बनाय॥ कैसाही होवे हठी, लावै प्रीत लगाय ॥
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(२८) रसराज महोदधि । मेष मूत्रसों रगरिकै, जो लेप द्वौ हाथ ॥ कहै दूरकी बात वह, सब मानो है साथ ॥ गोरोचनको लौंगसे, लिखिये जाको नाम ॥ मित्र होय वह तुर्तही, नहिं वैरीको काम ॥ बेल अर्कसों युक्तकर, अंजन लेय बनाय ॥ भूत प्रेत अरु डाकिनी, देखतही भगिजाय ॥ खांड संग जो रगरिकै, तलवातले लगाय ॥ आंखि मिजतकै पलकमें,सहस कोस रडिजाय॥ जो घिस आजै पीकसों, जादिश नज़र कराय॥ व्याधि परेसो छुट नहीं, कोटिन करै उपाय ॥ जो गुलाबसों रगरिकै, नाभी लेपकराय ॥ त्यहि शरीर घड़िचारमें, जागे सहज उपाय॥ फिरि वाकोले तेलसों, जो पिसि आंजे कोय॥ धन देखे पातालका, दैवी दृष्टी होय ॥ जो वापिनिके घीवसों, पिसि चुपरे सब देह ॥ तीर तुपक लागे नहीं, ज्यों बरसे घन मेह ॥ घिसिकै तिलके तेलमें, मर्दन करै शरीर ॥ देखे सब संसारको, महावीर रणधीर ॥ जो अलसीके तेलमें, घिसिये शहद मिलाय ॥ कूटकाट लेपन करै,कंचन तनु बजाय ॥ जो मुर्गीके बीटसों, अंधा आंजे कोय ॥ सात दिना जो आजही, दृष्टि चौगुनी होय ॥
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रसराज महोदधि (२९) कस्तूरीसों आँजिये, प्रातसमय लवलाय ॥ नृत्य लखै संसारकी, काल रूप दरशाय॥ गंधक संग मिलायके बीसों नखन लगाय ॥ जो नर होय कुमारगी, देखत वश है जाय ॥ जो आजै निज मूत्रसों, खुलै रागिनी राग ॥ जो पीवै घिसि गाभमें, मिटे देहका दाग ॥ गंगाजलसों आंजिये, दोनों नयनों माह ॥ वर्षा वर्षे पुष्पकी, होय अचंभो नाह ॥
यंत्र. १ यह यंत्र गोरोचनसों भोजपत्रपर लिखे फिर गूगुल __ संकरमातु संकरपितु . की धूप देकर कंठमें १०१२ | ४ | द बांधै जिस औरतका
१ | ३ | ४८/१३/ लड़का जीता नहो तो #१६ १५५४ जीवै और होता नहीं २। ७/४७/४४ होय तो होवै,यंत्रलि
als hb खनेकी विधि. अच्छे दिन और अच्छे नक्षत्र में लिखै और जिस जगह किसी चीजपर लिखनेका प्रमाण नहीं है वहां भोजपत्रपर लिखे और जहां कलम नहीं लिखीहै वहां अनारकी कलमसों लिखना चाहिये. और जो
करै परनलक्षीमपति
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(३०) रसराज महोदधि । किसी चीजसे लिखनेको न लिखा हो तो देवी चंदनसे लिखना चाहिये. प्रथम स्नान करिके कोई होवे. यंत्र फूल और नैवेद्य देय करकै उत्तर मुँह होकर लिखना.
यंत्र २
___ यह यंत्र शीघ्र काम पूर्ण करनेके वास्ते है जो कोई मं. ४ हाँ १ ॐ ८ अपने संकेत पड़े पर लिखे महः५ ह्रीं २ श्री. ९ और दहिने हाथपर बांधतो सः ६ भ्री ३ ह्रीं. ८ अवश्य काम सिद्धि होय.
यंत्र ३
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सः सः सा यह यंत्र एतवारके रोज | ४ (१८ | लिख दहिने हाथमें बांधे |सः ९ २ सः सः५/ तो चौथिया ज्वर छूटिजाय,
पीछे जो कुछ बनि परै सो स. ८ सः६ सः ४ दान देय जरूर.
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सही
रसराण महोदधि। (३१)
यंत्र __यह यंत्र सब काम - धसों लिखै और धूप सिद्धि करनेके / दीप दे पूजा करिके वास्ते है इसको
अपने पास रक्खै भोजपत्रपर/ रा:- तो सब काम अष्टगं / पच. ह्रीं गद. सिद्धि होवे
/पच हल ही. 1 गद.. . मद. ।
यंत्र ५ इस यंत्रको भोजपत्रपर लिखकर वधूप देकर गलेमें |१४| ७| ४ | ३ बाँधे तो किसी तरहका भय
६. ३ | ६ । ५ न होवै. भूत नहीं लगै जो | ७ ३ | ४|१४ लगा होय तो छूट जाय. इस |४|१४| ३ । ७. यंत्रको जगाइ करके लिखै.
यंत्र २८ यह यंत्र जूडीके वास्ते है इस ८ | ६ | १ को भोजपत्रपर लिखकर जगा३ ८५ यके गलेमें बांधेतोजूडीजाय सही.
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(३२) रसराज महोदधि।
यंत्र ७ यह यंत्र पंद्रहाँ है बहुत दिन जगायके भोजपत्र २ | ९ | ४ पर लिखै जिस औरतके लड़का | ७ | ५ । ३ न होता हो उसके कटिमें बांधे |६ १८ तो बहुत जलदी लड़का हो जावे
यंत्र८ यह यंत्र (अधकपारी) आधाशीशीके वास्ते है
एतवारको वा मंगलको 4ws_लिखकर बांधे तो अध
कपारी जाय.
यंत्र ९ (PO यह यंत्र पीपरके -
पत्तापर रविवारको ५२ लिखकर हाथमें बाँधै ३७. तो अंतरावर जाय.
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(३३)
रसराज महोदधि।
यंत्र १०
यह यंत्र अष्टगंधसों ह्री. श्री. ह्री. \\ श्री. ह्री. श्री.
जिसका नाम लिखकर रामलिखतको ) जाप करै वह मान करै
यंत्र ११
इस यंत्रको अष्टगंध सों भोजपत्रपर लिखकर |११७ / १२४१ २ ७ | धूप दीप देकर प। ६ । ३ । १२१ | १२० गियामें राखै तो |११३ | ११८८१ राजा प्रीति करे और | ४ ५ ११९ / १२२, संसारमें मान होय.
यंत्र १२
-
-
의
ज. यह यंत्र धतूरके रससों देव. दत्त. ज. रविदिन शत्रुका नाम लिखै
न. शत्रु भागि जाय.
의
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( ३४ )
रव हा
の
४२
५३ ३११ ७०
९
भ.
र. वह,
देवदत्त
क
छः
१
And
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ज
ग
छः
रसराज महोदधि । यंत्र १३
यंत्र १४
यह यंत्र स्याहीसों लिखकर माथेमें बाँधे तो आधाशीशी दूर होय सही.
यंत्र १५
यह यंत्र कागजपर स्याहीसों रवि
५ दिन लिखे और सूर्य के सामने पानीमें धोय कर पीवै तो वायगोला जाय.
यह यंत्र नीबीके कौवाके परसों शत्रु दूर होय.
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यंत्र १६
रससों
लिखे
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ब.
यह यंत्र कानकी पीडाके
जः वास्ते है लिखकर कानमें बाँधे तो पीडा दूर होय.
दः
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रसराज महोदधि । यंत्र १७
६
१४८ | १३ | १३८ २ | १४६ | १३ | १३९ ९३ ७ १४० 9 २० १३४ ९ १४७
यह यंत्र कागजपर बुधकेदिन हरदीसे लिखकर जो
लड़का बहुत रोता होय उसके गलेमें बाँधे तो रोवै नहीं और चुप होय.
| ३७१००३ ७१३७१००
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यंत्र १८
यह यंत्र स्याहीसे कागज पर लिखै जिसकी आँख ५७८२०६०२ आवती होय उसको देखावै तो आंखें न उठें.
यंत्र १९
२५१००७७००३७०० २७७०० देवदत्त. ३००
( ३५ )
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यह यंत्र पीपरकेप त्तापर लिखे जिसके चुरैल लगी होय उसके गलेमें गूगलकी धूप देके बाँधे तो छूटिजाय.
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m
en
-
-
(३६) रसराज महोदधि।
यंत्र २० यह यंत्र कोरे खपड़ापर लिखे और जिसके प्रेत लगा ९- होय उस आदमीका नाम GR १२
लिखे पीछे रोगीको देखा
यके अग्निमें जशय दे तो ७ ७ प्रेत भागे.
यंत्र २१ ६६९ / २१७ | ३६९ यह यंत्र रवि दिन २५५ १३८७:१९३ लिखिकै गलेमें बाँधे तो | ७७२ १२७७ १५२१ तापजाय. ८८१ ९६६ | १००१)
यंत्र २२ [६९ १९ ८९] यह यंत्र गुडगुडीके वास्तैहै |७९ ६९| ३९/ पीपरके पत्तापर लिखिके दहने | १९९९४९] हाथमें बाँधै तोगुडगुडी दूरि होय.
यंत्र २३ यह यंत्र कैसो संकट होय तो अष्टगंधसों भोगपत्र Basicापर लिखिके गले में धूप देके गधे
संकटसे छूटै सही.
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. देवदत्त.
हीं.
डुबावै जिस
ॐ
ॐ
रसराज महोदधि । यंत्र २४
no
यह यंत्र कागज पर लि खके नई रुईमें ल पेटिके चमेली के तेल में
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ॐ
यह चक्रव्यूह जो स्त्रीके लडका भया होवे और वह
यंत्र २५
यह यंत्र नजरके वास्ते है कागजपर अष्टगंध से लिखकर गलेमें बाँधे तो
नजर दूर होय.
ॐ
ॐॐ
ॐ
यंत्र २६
चक्रव्यूह.
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आदमी के चुरेललगी होय उस आदमीको यंत्र जरायके धुए ॐ कानासदेवै तो
923
( ३७ )
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ॐ
चुरैलभा
गिजा
य.
ॐ
कागज पर लिखके होनेका दिन पूरा स्त्री कष्टमें होय
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यह यंत्र लीका है
नानेकी द
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(३८)
रसराज महोदधि ।
लडका होता न होय तो इस चक्रव्यूहको बनाकर दिखावै तो उस स्त्रीके तुर्त लडका होवै और कष्ट सब दूरहो और एक छटांक गायके दूधमें पावभर पानी मिलाके पियावै तो तुर्त लडका होय.
यंत्र २७
हैं गुलाब आधा सेर
वडाके
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डबल नइसमें बवाईलिखते
के फूल और के
फूल पाव
भरि चमेली के फूल पाव भरि सौंफ एक सेर चिरैता एक सेर कुलंजन आधा सेर बच पावभर सनायकी पत्ती आधा सेर अमिलतास पाव भर इन सब चीजोंको मिलाकर घडामें डाले और डेढ मन पानी डालै सबेरे भट्टीपर चढ़ावै मधुरी आंसों अर्क खींचे बारह बजेतक समाप्त हो तब अर्क निकाल कर शीशी में रक्खै जिसको जुलाब देना होय उसको पाव २ दो दिन पिलावै तब जुलाब देतौ शरीर निरोग होय और जुलाब बहुत अंत्यु
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रसराज महोदधि। (३९) त्तम होय जिसका कोठा शर्द होय उसको गर्म करै और जिसका गर्म होय उसका नर्म करै.
यंत्र २८
यह यंत्र एक
- नलीकाहै कि सी तरहका
अर्क खींचना होतो इसीतर
हसे खींचैधनियाँ पाव भर
कासनीका बीज पाव भर
पुदीना पाव भर गुलाबके
- फूल पावभर सौंफ पावभर शकर एक सेर ये सब एक घड़ामें डालके शामको एक मन पानी डालके रखदे सबेरे अग्नि जरावै मधुरी आंचदे अर्क निकले सो शीशी रखदे ॥ गुण ॥ करेजेकी गर्मीको तर करताहै उलटीको रोकताहै इन्द्रीको साफ कर देताहै गर्म मिजाज पालेको बहुत फायदा करता है भूख लगाताहै सब रोगोंको हरताहै जो किसी दवाईका अर्क खींचना होतो डबल नली या एक नलीसे खींच लेये.
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(४०) रसराज महोदधि ।
यत्र २९ इस यंत्रको विद्याधर कहते हैं जो किसी धातुका
या कोई दवाईका पारा निकालना होय तो इसी यंत्रसे निकालै सिंगरफ रसकपूर और सेंदुर जिस धातुसे पारा निकलताहै उससे निकालै सिंगरफ २ तोला लेकर नीबीके पत्तामें खल करै तब टिकिया बनाकर नीचेके घड़ाकी पेंदीमें रखके कपड़मिट्टी कर सुखायके उस घ
डेको चूल्हापर रखकर नीचे अग्नि जरावै और सिंगरफसे जो पारा निकलकर ऊपरके घडामें लगै तो वह पारा लोकप्रसिद्ध होय और आधाचावल पानके साथ खाय तो नामर्द मर्द होय.
- यंत्र३०
यह डमरू यंत्र है जो किसी धातुका जौहर उड़ानाहो तो वह दवाई खल करके नीचेकीहंडीमें रक्खे और अग्नि ६ घंटा लगावै जब जौहर उड़के उपरकी हंडीमें लगे तो सब काममें बैपरै अब इसके बनानेकी और एक विधि लिखते
हैं अँवरासार गंधकको चूर्ण करके जौहर दवा
उड़ाये तो सब काममें बैपरे.
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(४१)
रसराज महोदधि।
यंत्र ३१
इसको स्वेदनयंत्र कहते हैं एक बड़ा पड़ा लेकर
उसमें आधा घड़ा पानी डालके तब आधा सेर गंधापिरोजा लेकर गोदन दुद्धीके लुगदीमें रखकर तब कपडामें पोटरी बांधिक रस्सी में बांधकर घड़ामें लटकावै और
घड़ाके ऊपर एकछोटीहंडी रखकर कपड़मिट्टी करके तब अग्नि जरावै ६ घंटा आंचदे तो सब गंधापिरोजा घडाकी पेंदीमें चूचकर गिरै सोगंधापिरोजा फिर इसी विधिसे चार दफे कपडमिट्टी करके चुआवै तो सब काममें बैपरै सुजाक जो कि पीव बहता हो सो सात दिनमें अच्छा होय मिश्री ६ मासे इलायची ६मासे गंधापिरोजा६मासे ये सब दवा खाय १५ दिन और गायका दूध आधासेर पीवै तो परमा पथरी सब रोग दूरि होयँ और यह गंधापिरोजा सब रोगपर देय और इसीविधिसे गंधापिरोजाका शत निकाला जाता है.
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(४२)
रसराज महोदधि । यंत्र ३२
इस यंत्र को वालुकायंत्र कहते हैं इस यंत्र में ऐसा करे कि लोहेकी कराही लेकर उसमें बालू भरके वालूके बीचमें सीसीरखके मधुरी आंचदे जितना रसका परिमाण होय तितना आँच कोईभी रस होय.
यंत्र ३३
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६०
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यह गौरीयंत्र है कोई रस होय तो इसी यंत्र में सिद्ध कर लेय.
यंत्र ३४.
इसको चक्रयंत्र कहते हैं इस यंत्र में पारा सिद्ध होताहै बीचके घरमें पारा बाहरके घरमें उपरी इस विधि से भट्ठी लगावे.
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रसराज महोदधि । यंत्र ३५
इस यंत्र को जल यंत्र कहतें हैं अब तेजाब उतरनेकी विधि लिखते हैं फिटकरी पावभर नौसादर पावभर चौकिया सोहागा पावभर कलमीसोरा पावभर नीलाथोथा पावभर आंवरासार गंधक पावभर सबको एकमें मिलायके खल करै तब नीचेकी हंडीकी पेंदीमें
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मिट्टी धेरै और मिट्टी के ऊपर गिलास रक्खै और बड़ा अंदर दवाई रक्खे और दूसरे घड़ामें पानी भरके दवा वाले घड़ाके ऊपर रक्खै मधुरी आंच दे जब ऊपरके घड़ाका पानी गर्म होजाय तो सँभारके तेजाब निकालले अब इसका गुण लिखते हैं बरबट वायगोला तापतिही कछुई जाकूट पिलही उदररोग सब दूर होय खुराक ९ मासे ६ तोले पानी डालके पीवै.
(४३)
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यंत्र ३६
लंबा एक
इस यंत्र कोगजपुट बोलते हैं एक गज गज चौड़ा एक गज गहिरा इसके बीच में दवाईका कपड़मिट रक्खै उसके चारों तरफ बीना हुआ कंडा
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8
(४४ ) रसराज महोदधि । रखकर अग्नि जरावे और इसी मंत्रसे कोई यंत्र होवे
अग्नि जरावै (मंत्र) खाक फूँकै तो मंत्र स्यों ह्रीं क्रीं श्रीं गुरुकी शक्ति मेरी भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ऊं ऊं कर बीज मंत्र इति.
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यंत्र ३७
यह शीशी मृगांक बनानेकी है इसके चारों तरफ अग्निहै बीचमें कांच की सीसीहै, जो
मृगांकके सदृश दवाई बनावे
तो इसी तरहसे बनावे. इति श्री मुन्शी भगवानप्रसाद शिष्य भगत भगवानदास विरचित वैद्यकरसराजमहोदधि वंदना भूमिका रोगविचार नाडीपरीक्षा शरीरकी चेष्टा निरोग होनेका वर्णन स्वप्न विचार दूतपरीक्षा असाध्यलक्षण मलज्वर आठोंज्वरका लक्षण दवा कफज्वर शीतज्वर कामज्वर रक्तज्वर लक्षण उपाय सर्वज्वर दूर होनेका लक्षण वादी बिगडेका लक्षण खून बिगडेका लक्षण वात पित्त मिश्रित होनेका लक्षण वातका लक्षण, और कफ खांसीका लक्षण मन्दाग्नि और संग्रहनीका लक्षण, खूनी बवासीर और दाहका
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रसराज महोदधि । (४५) लक्षण अठारह तरहके शर्बत बनानेकी विधि और गुण मृगीकी दवाई परमाकी दवाई बवासीरकी दवाई बूटीका गुण और बांझनी दरिदिनी स्त्रीका लक्षण गुंजा प्रकाशकी बत्तिस विधि और गुण, छव्वीस प्रकारके यंत्र और अर्क खींचने और रससिद्धि करनेकी विधि नाम प्रथमखंडं समाप्तम् ॥१॥
यह यच शिरसे पाँव तक शरीरकी हड्डीका है.
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(४६) रसराज महोदधि।
१सिंघियाविषशोधन. दो तोले सिंघिया विष लेकर भैंसाके गोबरमें डारिके दो घंटे चुरावै तब सिंघियाको निकाल कर सींक गोदे जोकि सींक उसमें फँसजाय तो उसको सफाकरके दूधमें चुरावै तो सब काममें वैपरै.
२ अथ विषका गुण. रसायनहै, बलकरै है, त्रिदोषको दूरि करैहै, वात व शीत पित्त कफ कोढ़ खांसी दमा श्वास पील्ही जाकृति कंठोदर उदररोग इत्यादिको अनोपान मुवाफिक सब रोगोंको हरै.
३ कुचिला शोधन कुचिलाको गऊके मूत्रमें दशदिन डारिके रक्खै तब उसको निकालके छीलके टुकड़े २ काटै फिर दूधमें चुरावै शुद्ध होयगा (गुण) गर्म है वातको हरताहै लकवाको हरताहै और दमाको दूर करताहै अनोपान मुवाफिक सब रोगको हरताहै जो जडा घीमें चुरावै तो निहायत फायदादेवैगा.
४ अथ धतूरा शोधन. गऊके मूत्रमें धतूरको चार घडी रक्खै फिर निकाल कर धो डाले तब सब काममें बैपरै ( गुण) गर्म है
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रसराज महोदधि। (१७) अग्निको बढाता और नसा करताहै वमनकारीहै ज्वर आदि सब रोगों को दूर करताहै.
५ जमालगोटा शोधन. जमालगोटेको भैंसाके गोबरमें डारिके छःघंटे चुरावै तब फिर उसकी छालको निकाल कर जीभी निकालके नीबूके रसमें दो दिन खल करै तब सब काममें वैपरै (गुण) पित्त कफकोहरताहै और दस्त लाताहै उदर रोगको पील्हा बीछूको सर्वविषको व सब रोगको दूर करताहै.
६ भेलावाँ शोधन. भलावाँको पानी में डालकर एक दिन चुरावै फिर उसका टुकड़ा २ करके दूधमें चुरावै फिर उसको निकालके एक तोला सोंठि और अजवाइन चार तोला डाल खूब खल करै तो सब काम में वैपरै (गुण) फोडा खाज खाँसी दमा इत्यादिक सब असाध्यरोग कोढ़ रोगको हरै.
__७ गुंजा शोधन. गुंजाको कांजीमें चुरावै तीन घंटे (गुण ) हल्कीहै शीतलहै खांसी श्वास कोढ खुजली कफ पित्त सब विकारको दूर करती है.
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(१८) रसराज महोदधि ।
८आक शोधन. आकको खल क के शुद्ध हुआ (गुण) वादी कोढ़ खुजली तापतिल्ली गोला बवासीर जाकृती कंठोदर कृमिरोग सब रोगको हरै...
- ९ कलियारी शोधन. कलियारी के टुकड़े २ करके एकदिन गोमूत्रमें भिगोनेसे शुद्ध हो (गुण ) दस्त लाताहै कुष्ठ बवासीर यकृति कफोदर और कृमिरोगको दूर करताहै.
१० कनेर शोधन.. कनेरके टुकडे २करके गायके दूधमें डोलायंत्रसे चुरावै शुद्ध हुआ (गुण) गर्म है नेत्रको गुण करताहै कोढ़ जरन खुजली सब रोगको दूर करताहै.
विष सेवनेकी विधि. __ मिश्री दूध शहद घृत चावल गेहूंकी रोटी इतना सेवन करै आचारपनसे रहै.
प्रमाण खानेका. एक बजरीसे दो बजरी तक जैसा बल देखे तैसा रोगी को दे तो सब रोगोंको अनुपान मुवाफिक हरै.
अथ बछनागकी शांति. हीरवण वृक्षके रसमें मिश्री मिलाकर पिये तो विष शांति होय.
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रसराज महोदधि ।
( ४९ )
२ अथ धतूरके बिषकी शांतिबैंगन के बीजोंका रस पीनेसे धतूरका बिष शांति होय तथा मिश्री दूध पीने से शांतिहोय. ३ अथ भिलावेके बिषकी शांतिचौलाईका रस मक्खनमें मिलाकर जहां भिलावेकी सूजन होवे उस जगह लगानेसे भिलावेका बिष शांति होय.
४ अथ भांगकेबिषकी शांतिसोंठ चूर्णको गाय के दही के साथ सेवन करने से भांगका विष शांति होय.
५ अथ गुंजाके विषकी शांति.
चौलाईके रसमें मिश्री मिलाय पीनेसे और ऊपर दूध पीने से गुंजाका विष शांति होय. ६ अथ कनेरके विषकी शांतिमिश्री में भैंस का दही मिलायके पीने से कनेरका विष शांति होय.
७ अथ थूहरके विषकी शांतिशीतल जलमें मिश्री मिलाय पीनेसे थूहरका विष शांति होय.
८ अथ जयपाल के विषकी शांति
३
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(५१) रसराज महोदधि।
धनियाँ मिश्री दही तीनों मिलाय पीनेसे जयपालका विष शांति होय.
९ अथ अफीमके विषकी शांति. बड़ी कटेरीके रसमें दूध मिलाय पीनेसे अफीमका विष शांति होय. १० अथ शंखियाके विषकी शांति.
घी गर्म करि पीनेसे तथा दूध मिश्री मिलाइके पीनेसे शंखियाका विष शांति होय. . ___ जो बहुत विष खालिया होय तो जुलाब देवै उलटी करावै. इति विषकी शांति समाप्त.
अथ हरताल मारनविधि. १एक तोला हरताल इन्द्रायणके एक फलमें रखके चार कपडमिट करके सुखाय डालै फिर सवासेर बिनुवा कंडोंमें फूंकदे इसी तरहसे इक्कीस इन्द्रायनमें फुकै तो हरताल पानी सोखन ( गुण) कुष्ठ रोग व अनोपान मुवाफिक सब रोग दूर करता है.
__ दूसरी विधि. हरताल दो तोला लेके घीकुवारि के रसमें दो दिन खल करै तब गोला बांधिके सुखावै फिर सनईके वियों की लुगदीमें रख कपडमिट करिकै तीन सेर कंडोंमें फूंकदे (गुण ) कोढको दूर करताहै इसका गुण वर्णने योग्य नहीं है.अनोपान मुवाफिक सब रोग दूर करताहै.
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रसराज महोदधि । अबरख मारनेकी दूसरी विधि.
अबरख लेकरके कूटै तब मूलीके रसमें १५ दिन रक्खै फिर गुरमें खल करके फूंकदे फिर मूलीके रसमें १५ दिन रक्खै फिर हुरहुरके रसमें १५ दिन रक्खै फिर कलमीसोरामें खल करे फिर गुरमें १५ दिन खल करै तब कपड़मिट करिके फूँकदे इसी तरह चार दफे फूंके तो सब रोग हरै अनोपान मुवाफिक. शंखिया मारन विधि.
शंखिया एक तोला लेकर मुरईकी राख आधा सेर एक हंडी लेकर हंडीके अन्दर आधी राख रक्खै तब शंखिया रक्खै और जो आधी राखहै उससे ढांक दे फिर हाथसे दबादे हंडीके ऊपर ढकना रखकर कपडमिट करके चूल्हे पर रखके एक दिन चिराग की टेम सम आँचदे तब शुद्ध होय खुराक आधा चावल श्वास कास दमा शीतज्वर पित्तज्वर अनोपान मुवाफिक सब रोग हरै. दूसरी विधि.
पापडखार चारतोला शंखिया एक तोला लेकर मिट्टीकी एक ढकनी लेकर उसमें आधा पापडखार रखना तब शंखियारखना फिर दूसरे ढकनेसे ढांक देना. कपडमिट करके सुखायके आधामन गोबरीमें फूंकदे फिर रोगीको देख कर बल विचारके दे आधा
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(५२)
रसराज महोदधि ।
चावल से एक चावल तक ये दवा सर्व प्रकारके रोग को दूर करती है, अनोपान मिश्री, दूध, घी. अथ शिलाजीत शोधन.
त्रिफलाके रसमें एक दिन घोटै फिर एकदिन दूध में घोटै तौ शिलाजीत शुद्ध होय खुराक ६ मासे आधासेर दूधके साथ जो मनुष्य एक महीनासेवै तो शरीर पुष्ट होय वल होय बीर्य बढै अनोपान मुवाफिक सब रोग हरै शिलाजीतका गुण कुछ वर्णने योग्य नहीं. अथ मैनशिल शोधन
मैनशिल अगस्त्य के रस में घोटै अथवा अदरख के रसमें घोटै शुद्धहोय तो सब काम में बैपरै ( गुण) कडु - at farst stara कास आदि सब रोगोंको हरै. अथ रसकपूर मारनविधि.
एक तोला रसकपूर लेके बिजौरा नींबूके बीच में रखके मुलतानी मिट्टीसे कपडमिट करके सुखायके एक सेर बीना हुआ कंडा लेकर उसमें रखके फूँकिदे पीछे रस निकालके ताँबामें डाले तो पानी सोखन होय. अथ खपरिया शोधन
खपरिया लाल करिके सात बेर नींबू के रस में बुझावे तो शुद्ध होय और सब काममें आवै. अथ नीलाथोथा शोधन. सिर्का अथवा अचार में दो तोला नीलाथोथा को
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रसराज महोदधि। (५३) एक पहर घोटै फिर टिकरी करिकै आगमें फूंक दे तो सब रोगोंको गुणकारीहै. खाज, कोढ, और सम्पूर्ण आंखिके रोगोंको बहुत फायदा करताहै. ___ अथ मोती मूंगा मारन विधि.
मोती, मूंगा कपड़ामें बाँधिके एक घड़ामें आधा घडा इंद्रायणका रस डालके उस घड़ेमें लटकाइ देइ पीछे एक पहर चुरावै तोशुद्धहोय तबु गजपुटमें फूंकिदे तो भस्म होय सब कामोंमें आवै (गुण ) आँखोंके रोग खांसी परमासुजाक ज्वर मूत्रकृच्छ्र इन सबको दूर करताहै ठंढा है सब रोगोंको नाशकरताहै मोती मूंगाकी भस्मका गुणु अगाध है.
अथ शंख, कौड़ीमारन. शंख, कौडी आठ दफे आगमें लाल करिकै नींबूके रसमें बुझावै तो शुद्ध होय. सब रोग पर देय (गुण) श्वास खाँसी, आँखोंको गुणकारी है.
अथ गुजा शोधन. गुंजा लेकर एक पहर दूधमें चुरावै तब शुद्ध होय सब काममें बैपरै (गुण) आंखों के रोगको दूर करै और शिरके बालोंको बढ़ावै अनोपान मुवाफिक सब रोग दूर करै.
अथ फिटकरी, सोहागा मारन. फिटकरी, सोहागा नींबूके रसमें खल करके गोला
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(५४)
रसराज महोदधि ।
बनायके गजपुटमें आंच देय तो सब रोग हरै इसका गुण वर्णने योग्य नहीं है. अथ समुद्रफेन शोधन
समुद्रका फेन कागजी नीबूके रसमें डेढ पहर घोटे तो शुद्ध होय तब सब काम में बैपरै ( गुण) शीतल है नेत्र रोग तथा कानोंकी पीडाको दूर करता है. और कानका बहना निश्चय दूर करता है. अथ तांबा मारन.
शुद्ध तांबा दो तोले लेकर बनगोभी की एकसेर लुगदीमें रखदे फिर दश तोले मुलतानी मिट्टीसे कपड़मिट करके सुखावै तब दोमन विनुआंकडोंमें रखके फूँकि दे तो भस्म होय सब रोगोंको हरै पानी शोषण है खुराक आधा चावलसे एक चावल तक.
अथ तांबा मारन की दूसरी विधि.
सागवीब एक जातकी बूटी है तांबा उसके पत्ताकी लुगदी में रखके फूंक दे तो सुवर्ण होय इसमें कुछ संशय नहीं जो फिर फूंके तो भस्म होय जो कोई खावे उसकी सूर्यकी ज्योतिकेसमान ज्योति होय लोकप्रसिद्ध होय सब रोग नाशहों सोनारस सेवै, तो बहुत दिन जीवे. इसका गुण कुछ वर्णने योग्य नहीं है. तांबा मारने की तीसरीविधि. काकजंघा एक बूटी है फागुनके महीने में पैदा
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रसराज महोदधि । (५५) होतीहै उस बूटीकी लुगदीमें एक तोला तांबा रखके कपड़मिट कर सुखायके गजपुटमें फूंकदे तो भस्म बहुतही अच्छा होय खानेसे लोक प्रसिद्ध होय.
तांबाकी भस्म खानेके गुण. छेद-ताँबेकी खाक बनायके एक रती भर पानमें कोइभि खावै॥पुष्ट शरीर बने अति सुंदर साँझ सवेरे जो दूध सों पावै ॥ तज खान व पान अहार तजै सब दूधरु भात जो भोजनकीजै ॥ बल होय शरीर बनें निश्चय पर सात दिना यह साधन कीजै.
अथ रूपा मारन विधि तितली जो गेहूं चनाके खेतमें होती है उसके रस में रूपा भिगोय रक्खै फिर उसी तितलीकी आध सेर लुगदीमें एक तोला रूपा रखके कपड़मिट करके गजपुट आंच देय तो भस्म होय खुराक एक चावल अनुपान मुवाफिक सब रोग हरै.
रूपा मारनेकी दूसरी विधि. सिका रुपइया अग्निमें लाल करिके मेहँदीके रसमें आठ दफे बुझावै तब मेहँदीकी पत्ती आधा सेर ले लुगदी करिके बीचमें सिक्का रुपइया रखके कपड़ मिट करके सुखायके दोगजपुट आंचदे तो भस्म होय. खुराक एक चावलसे डेढ़ चावलतक.
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(५६) रसराज महोदधि।
रूपरसखानेका गुण. छंद-रस रूप विधान कहूं नर एक रतीभर पानमें ताहि जो खावै ॥ कफ अरु कास औ खांस हरै सब लागती भूख अरु काम जगावै॥अति गर्म जो शरदकी हानि करै सब अन्नके रोगको तुरत नशावै ॥ ताहिते जानिकरै यह साधन निष्ठ शरीरको पुष्ट करावै.
अथ सोना मारन विधि. कामदेव झमकोइया एक बूटी है उसकी लुगदीमें एक तोला शुद्ध सोना रख कपडमिट कर सुखायके तीन गजपुट आंचदे तो भस्म होय लोकप्रसिद्ध होय. खुराक आधा चावल, अनोपान मुवाफिक सब रोग हरै.
अथ सोना मारन दूसरी विधि. एक सेर कचनारके पत्तोंके बीचमें आधा तोला सोना रखके गोला बनाय कपडमिट करिके सुखाके दोगजपुट आंचदे तो बहुत उत्तम रस बनै.
गुण ॥ छंद॥ सौनेकी खाक बनायके सुंदर चावल एक चिरोंजीमें खावै।पुष्ट शरीर बढे अति वीरज लागति भूखरु काम जगावै ॥ श्वास औ कास सफोदर ओदर आदि जलंधर रोग नशावै ॥ रोग हरै सबही तनुके अनोपान मुवाफिक जो कोइपावै.
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रसराज महोदधि । (५७) अथ लोहा मारन विधि. अच्छा स्वच्छ लोह लेकर रेतै तब अनारका रस एक सेर और चार तोलालोहाका रेत पहले एक बरतनमें रस डालदे फिर उसमें रेत डालदे पंद्रह दिन धूपमें रक्खे तब आधामन गोवरीमें फूंक दे तो बहुत उत्तम लोहासार रस बनै अनोपान मुवाफिक सब रोग हरै.
अथ पोलाद मारनेकी दूसरी विधि.
अच्छा स्वच्छ पोलाद रेतायके धरै फिर ब्रह्मी एक बूटीहै उस बूटीके पत्ताकी लुगदीमें रक्खै पोलाद बीचमें रखिके गोलाबनायकपडमिट कर सुखाय गजपुट आंचदे तो बैंगनी रंग रसबनै सब कामको मातदिल है आमवात आंख और खांसी इन सब रोगों को दूर करता है अनोपान मुवाफिक सब रोगोंको हरण करताहै.
अथ त्रिवंग मारन. शुद्ध एक तोला, शुद्ध राँगा एक तोला, शुद्धसीसा एक तोला, लेकर तांबापर रखिकै चूल्हेपुर रक्खै उसके नीचे अग्नि जरावै करछुलीसे चलाता जावै
और हरप्रियाका रस छोडता जावै तो आध घंटामें नौरंगीके बरन रस बनेगा अनोपान मुवाफिक सब रोग हरे कैसो ज्वर नया पुराना होय तो एक चावल रस और दो मासे चिरैता दोमासे पीपरी दोनों एकमें
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(५८) रसराज महोदधि । मिलाके कूटिके कपड़छान करिके शहदके साथ सांझ सबेरे खाय तो सर्व प्रकारके रोग हरै इसमें कुछ सन्देह नहीं.
अथ वंगरसबनानेकी क्रिया. शुद्ध राँगा चार तोले लेकर गलावै नीचे अग्नि जलावै ऊपरसे अमलीके छाल व पीपरीके छाल दोनों का चूर्ण करिकै छोड़ता जाय और राँगाको चलाता जाय तो चालीस मिनटमें भस्म होय बहुत उत्तम बंगरस बनै.
बंगरस खानेका गुण. छंद-बंग सदाशिवको गुणदायक खाय नपुंसक मर्द भयेहैं ॥ खातहि रोग हरै तनुके बल पुष्ट शरीर अतुल्य भयेहैं । अनोपान मुवाफिक पान करै पट भाँति कि व्याधिन दूरि कियेहैं । दिन सातमें काम सुधारनीके अत्यंत नपुंसक मर्द भये हैं.
अथ सीसा मारनविधि. शुद्धसीसा लेकर तांबापर रख गलावै फिर केवडाके डंडासे चलाता जावै और घोटता जावै इसी हिकमतसे एक घंटामें भस्म होवै फिर उस रसको घीकुवारके रसमें आठ पुटदे फिर भंगराजकी आठ पुददे फिर गोदनदुद्धीकी आठ पुटदे फिर गोला
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रसराज महोदधि। (५९) बनाय कपड़मिटकरके गजपुट आंचदे तो बहुत अच्छा नागरस बनै लोकप्रसिद्ध होय अनोपान मुवाफिक सब रोग हरै, खुराक एक रत्तीसे डेढ़ रत्तीतक गर्म मिजाज वालेको ठंढे अनोपानमें देवै इसी विधिसे सब रोग हरे.
. अथ सिंगरिफ़ मारनविधि. सिंगरिफ चार तोला लेकर नीबूके पत्तामें खल करके टीकरी बनायके गौरी यंत्रसे आंचदे जो पारा उपरकी हंडीमें उड़के लगे तो सब काममें बैपरै और सब रोग हरै.
अथ गंधक शोधन. गंधकको धीमें लगावै दूधमें बुझावै इस तरह चार दफे लगावै बुझावै और दो दफे भंगराजके रसमें बुझावै तौ शुद्ध होय सब काममें बैपरै (गुण ) बीस प्रकारके परमाको दूर करे और खांसी दमा वगैरह सब रोगों को हरै और छःमहीना गंधक सेवनेसे उसकी दृष्टि गिद्धके समान होय फिर उसके मैलसे तांबेका सोना बने इसमें कुछ संशय नहीं है क्यों कर कि गंधक सब धातुको जलाताहै.
अथ पारा मारन विधिः पारा लेकर सीसीमें डालके उसीमें मकोईका रस डालके एक दिन झकझोरै तब निकालके गूलरके दूधमें खल करै तब फिर हींगका मूसा बनाइके उसी
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(६०) रसराज महोदधि । पाराको मूसामें रखकर मुलतानी मिट्टीके साथ कपड़ मिट करके सुखावे तब गजपुटमें फूंकदे और शीतल होय तब खानेको देय एक रत्ती भर पानमेंखावै तो नामर्दको मर्द करै और कोदको शिरसे पैरतक निरोग करै और आचारपनसों रहै तो अजर अमर होय.
पुनि दूसरी विधि. शुद्धपारा लेवे और एक माटीकी पराई अग्निमें लाल कर निकालके बाहर स्क्खे फिर काले धतूरका रस निकालके परईमें डाल अग्निपर चढावे पीछे पारा डालै तब रस जरै और पारा भस्म होय सब रोगोंको हित है अनोपान बदलता जाय तो सब रोग हरै और खट्टा मीठा तीताये सब चीज त्याग करे,
जस्ता मारन विधि. शुद्ध जस्ता लेकर तांबापर गला और बथुईका रस छोड़ता जाय कलछुलीसे चलाता जाय सवा घंटामें भस्म होय सब काममें बैपरै ( गुण ) कडू है हलका है शीतलहै कफ और खाज दूर करताहै अनोपान मुवाफिक सब रोग हरता है.
कीट मारन विधि. पुरानी कीट आधा सेर लेके त्रिफलाके रसमें सात दफे लाल करिके बुझावै और नीबूके रसमें सात दफे
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रसराज महोदधि। (६१) बुझाकर आंवरासार गंधकमें खल करके गोला बनायके गजपुटमें फूंक देवै तो बहुत उत्तम रस बनै ( गुण ) पांडुरोग प्लीहा आमवात उद्ररोग इत्यादिक सब रोगोंको हरै है.
मृगांक रस बनानेकी विधि. पारा एक तोला, रांगा एक तोला, आँवरासार गंधक एक तोला, नौसादर एकतोला, ये सब शुद्धले पहिले पारा और आंवलासार गंधक. दोनोंको खल करै पीछे आठ टोप रेडीका तेल खलमें डारि दे तब रांगा और नौसादर गलायके डारै. फिर दोदिन खल करै पीछे एक अमि सीसी कांचकी ले मुलतानी मिट्टीकी सात कपडमिट कर अच्छी तरहसे सुखावै फिर सीसीमें दवाई रखके कोइयाकी मट्टीमें सीसी रक्खै मुख सीसीका खुलारक्खै अग्नि जरावै एक लोहेकी सीकसे पन्द्रह २ मिनटमें सीसीमें हिलावै पहिले काला धुआँ निकलै पीछे हरा निकलै. फिर पीला निकलै फिर लाल निकलै. तब अग्नि आहिस्तेसे बुझादे शीतल भयेपर सँभारिकै रस निकालिले सोने के बरन रस होय. सोनेके भाव रसका मोल होय इसका गुण कुछ वर्णन योग्य नहीं है. जिस रोगपर देय सो रोग हरै. और जो नर सेवै अजर अमर होय.
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(६२) रसराज महोदधि ।
अथ सब रसका उतार. मिश्री घृत दूध खिलावै तौ शांति होय.
अथ शीत पित्तके लक्षण. शीतल पवनके अधिक लग जानेसे कफ और वायु अतिदुष्ट होकर पित्तके संग मिलकर रुधिरमें प्रविष्ट होजातेहैं व बाहर त्वचामें फैल जाते हैं उसे शीत पित्त अर्थात् पित्ती उछलना कहते हैं शरीरमें सूजन और चकोटा पर जातेहैं और खाज होती है कोप करिके खजुलीसहित बहुतसे लाल २ चकत्ते शरीर भरमें पड़ जातेहैं.
शीत पित्तकी दवा. गुड़ अजवाइन मिलाय १४ दिन खानेसे शीतपित्त नाश होय अथवा सोधा पारा ८ भाग कुचला १० भाग गन्धक सोधा १२ भाग सुंठि १ भाग मिर्च १ भाग पीपल भाग त्रिफला ३ भाग भिलावाँ भाग चीता १ भाग नागरमोथा १ भाग बच १ भागरेणुके बीज १ भाग असगन्ध १ भाग मीठा तेलिया १ भाग कूट १ भाग पीपला मूल १ भाग नागकेशर १ भागगुड़ २४ भाग इन्होंकी बेर समान गोली बनाय खानेसे शीतपित्त नाश होय.
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रसराज महोदधि। (६३)
अमृतादि काढ़ा. गिलोय हल्दी नीव धनियां धमासा इन्होंका अलग अलग काढ़ा बनाय पीनेसे शीतपित्त नाश होय और पहिले शीत पित्त रोगीको सात रोज मुजिस पिलावै तब दवा करै.
अथ अम्लपित्तका लक्षण. अन्न पचै नहीं कडुई खट्टी डकारे आवें शरीर भारी रहै हिया और कंठमें दाह होय भोजनमें अरुचि हो ये लक्षण अम्ल पित्तके जानो.
अम्ल पित्तकी दवा. गिलोय चीता नींव कडू परवर इन्होंका काढ़ा बनाय शहद मिलाय पीनेसे अम्लपित्त नाश होय.
मधु पीपली योग. पीपलका चूर्ण करि शहदमें मिलाय चाटनेसे अम्लपित्त दूर होय.
_पुनः अम्ल पित्तकी दवा. चिरायता नींब त्रिफला कडूपरवर बांसा गिलोय पित्तपापड़ाभाँगराइन्होंका काढ़ाबनाय शहद मिलाय पीनेसे अम्लपित्त नाश होय.
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(६४) रसराज महोदधि ।
काढा. कटैली गिलोय वांसा इन्होंका काढ़ा बनाय पीनेसे श्वास, कास, ज्वर छर्दैि अम्लपित्त ये नाश होय.
अथ लक्ष्मीविलास तेल. इलायची चंदन रासना लाख कपूर कंकोल नागरमोथा बलिया दालचीनी दारुहल्दी पिपली अगर तगर जटामासी कूट ये सब दवा सम भागले और सब दवासे तिगुनी रालले पीछे इन सबोंका डमरू यंत्रसे तेल निकालिले इस तेलका शरीरमें मालिश करनेसे शिरसे पाँवतकके रोग हरै और इस तेलके मालिश करनेसे राजाओंसे मुलाकात होतीहै.
हरतार रस बनानेको फकीरकी बूटी.
स्नान करिके मंत्र जपके अच्छे दिन असगन्धको उखाड़ि लावै उसकी लुगदीमें हरताल तबकी रखके मुलतानी मिट्टीसे कपड़मिट करके सुखावे फिर पाँचसेर बिनुवा कण्डोंमें फूंकि देय एक आँचमें भस्म सफेद होय इस रसके खानेसे सर्व कुष्ट जायँ लोक प्रसिद्ध होय और त्यागी भक्त मनुष्य कै. शंखिया मारन विधि फकीरकी बताई हुई. कालाशंखिया ५ तोले लेके दोसेर आकके दूधमें.
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रसराज महोदधि। (६५) खल कर सुखावै फिर कपरमिट करके ९ सेर बिनुवा कण्डोंमें फूकिदे तो सफेद भस्म होय और शरीरभरके रोगोंको हरै खुराक आधारत्ती पथ्य घी दूध मिश्री.
__ अथ मूत्रकृच्छ्रका लक्षण. जांघ पेट लिंगमें पीड़ा होय और थोरा २ बार बार मूत्र उतरे तो बात से जानना और यदि पीला लाल औ गरम मूत्र कष्टसे उतरै और बहुत पीड़ा से उतरै तो पित्तका जानना और यदि पेडू और लिंग दोनों भारी हों और दोनों में सूजन होय मूत्रमें झाग आवै मूत्र कष्टसे उतरै तो कफ का जानो कफ में बमन हित है पित्त का होय तौ जुलाब दे और घात का होय तो बस्ति कर्म हितहै.
काढा. गिलोय सुठि आमला असगन्ध गोखुरू इन्होंका काढ़ा बनाय पीने से मूत्रकृच्छ्रको नाशै.
कुश कासादि काढ़ा. कुश कास डाभ शर इष इन्होंका काढ़ा बनाय पीनेसे मूत्रकृच्छ्र को नाशै.
मूत्र कृच्छ्रकी दूसरी दवा. ककडीके बीज मुलहटी दारुहरदीइन्होंके चूर्णको
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(६६) रसराज महोदधि चावलके धोवनके साथ पीनेसे मूत्रकृच्छ्र नाशे (अथवा ) आँवलेका रस दारुहर्दी शहद मिलाय पीनेसे नाश होय.
. दुग्ध योग. दूधमें गुड़ मिलाय थोरा गर्म करि पीनेसे सब प्रकारका मूत्रकृच्छ्र दूर होय.
यवाखार योग.
५ मासा मिश्री मिलाय यवाखार पीनेसे मूत्रकृच्छ्र नाश होय संशय नहीं.
गोखुरू का काढा बनाय यवाखार मिलाय खाने से पुराना मूत्रकृच्छ्र दूर होय.
कुडाकी छालको गोके दूधमें पीसि पीने से भयंकर मूत्रकृच्छ्र नाशहोय अथवा ताकमें यवाखार मिलाय पीनेसे मूत्रकृच्छ्र नाश होय अथवा सनायकी पत्ती ककडीके बीज मिलाय खानेसे मूत्रकृच्छू नाशै.
अथ चार प्रकारका मुञ्जिस. उनाब विलायती ५ नग संवरा ५ मासे चिरायता ६ मासे गाजुबाँ का पत्ता ५ मासे सौंफकी जड ९ मासे मकोय सूखी ४ मासे कासनी की जड़ ९ मासे यह सब दवा मिलायके पाव भर पानी में शाम
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रसराज महोदधि। (६७) को भिगोय दे सबेरे चुरावै जब आधा रहजाय तो छानिके पिये इसी विधि से सात रोज पिये पीछे जुलाब लेतौ निरोग होय.
दूसरा मुजिसगाजुबाँ की पत्ती ६ मासे काली दाख ९नग गुलाब के फूल सूखे मासे मुलहटी पत्तीदमासे सौंफकी जड़ मासे सनायकी पत्ती ३मासे अंजीर का छिलका९मासे गुलकन्द २ तोले सब दवा तीन पाव पानी में शामको भिगोयके सबेरे चुरावै जब आधा शेष रहै तो छानिके पिये तो शरीर भरेके रोगोंको नाशै ९ दिन पीने केपीछे जुलाब दे.
तीसरा मुजिस. कच्ची अथवा गीली सोंफ १ तोला मकोय सूखी १ तोलामुनक्का काला १५ नग. खतमी काबीज १ तोला तुख्म खब्बाजीतोला गुलकन्दरतोला मिलाय पानीमें शामको भिगोवै सबेरे चुरावै जब आधा सेर रहै तो छानके पिये शरीरकी नस नसको फायदा करे.
चौथा मुनजिस. सनाय ६ मासे गुलाबके फूल ६ मासे लसोढ़ा सूखा ६ मासे मुलहटी ६ मासे कालादाना ६ मासे
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(६८) रसराज महोदधि। गाजबाँ६मासे बनफ्शा ६मासे मुनक्का ७ नग उनाब विलायती ५ नग मिश्री २ तोला सब दवा एक में मिलाय शामको भिगोय सबेरे एक सेर पानीमें चुरावे जब आधासेर रहै तो छानिके पीनेसे शरीरभरेके रोगोंको नाशै. ___ इति श्री मुन्शी भगवान् प्रसाद शिष्य भक्त भगवान् दास विरचित वैद्यक रसराज महोदधि नव विष, नव उपविष शोधन, खाने के गुण, सातो धातु और सातो उपधातु मारन,खाने के गुण,मूत्रकृच्छ्र के लक्षण, खाने की दवा, अच्छी २ मुन्जिस शीत पित्तके लक्षण और खानेकी दवा अम्ल पित्तका लक्षण और खानेकी दवा लक्ष्मी बिलासतेल हरतारमारन शंखियामारन नाम दूसरा खंड समाप्त ।
अथ तीसरा खंड. (उपदंश) फिरंगवाय-गरमीकावर्णन.
वेश्या स्त्री तथा रजस्वला तथा चंडालिनी स्त्रीके पास जानेसे गर्मी पैदा होतीहै तथा गर्मीवाला मनुष्य जिसजगह पेशाब करे उसकी जगहपर पेशाब करनेसेभी गर्मी पैदा होतीहै और वात पित्त और कफके कोपसे फिरंग वायरोग तीन रोजमें पैदा होताहै.
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रसराज महोदधि । अथ गर्मीका भेद. गर्मीवाले मनुष्यको चाहिये कि छिपावै नहीं इलाज बहुत जल्दी करे बहुत मनुष्य शर्म के सबबसे किसी से कहते नहीं मूर्ख लोगोंकी दवा करते हैं दवा लगे तो अच्छा है नहींतो कोपकरके तमाम शरीरपर फैल जाती है पीली पीली फुन्सी पैदा होती हैं और ज्यों ज्यों दिन बीतता है त्योंत्यों अधिक दुःख होता है इन्द्रीपर घाव शरीरपर कोढके समान चट्टा फैल जातेहैं और पेडू में बद निकलती है कुछदिनमें शाना पकड लेता है चलने फिरने की शक्ति नहीं रहती असाध्य होजाता है जीव नाश होजाता है इससे गर्मीवाले मनुष्यको चाहिये कि शर्म नहीं करै अच्छे उस्ताद या हकीमके पास जाके इलाज करै जो हकीम बोलै वही खावे पथ्यसे रहै और कोई बुरी चीज न खाय न जीभ की चालाकी करे तो दश दिनमें अच्छा होय और गर्मीकी निशानी तो तीन पुश्त तक रहती है.
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(६९)
अथ उपदंशका लक्षण.
ज्वर होय भूख नहीं लगै मुख काला पड़जाय शरीरकी द्युति बदल जाय झाडा पेशाबमें कड़क होय ये लक्षण उपदंशके हैं.
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(७०) रसराज महोदधि।
अथ दवादेनेकी विधि. उपदंश वाले मनुष्यको जुलाब देना पीछे इन्द्रिय जुलाब देना और फिर घाव बद शाना इत्यादिका इलाज करै.
. अथ गर्मीका पहिला इलाज. मकोईकी पत्ती, सनायकी पत्ती सौंफ मुनक्का गुलाबके फूल, अमिलताश ये सब दवाई ले आधासेर पानी में चुरावै जब पानी आधा रहजाय तब छानके गर्मीवाले मनुष्यको देय इसीतरहसे तीनदिन देवे पीछे दूसरी दवा करै.
दूसरा इलाज. शुद्ध जमालगोटा एक तोला. आंवरा चार तोला इन दोनों को कूटकर कपड़छान करके एक दिन नींबूके रसमें खल करै पीछे मिर्च बराबर गोली बांधै तब ठंढे पानीके साथ एक गोली सांझ और एक सबेरे खानेको दे तो पंद्रह दिनमें गर्मी दूर होय.
तीसरा इलाज. शुद्ध शंखिया अकरकरा सफेद खैर भंगराज और सफेद सुपारी ये सब चीज छः२ मासे ले कपडछान करके पानीमें खल करै फिर बाजराके समान गोली बाँधै एक गोली शाम और एक सबेरे पानीके
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रसराज महोदधि। (७१) साथ खानेको दे तो गर्मी दूर होय आठ दिनमें असाध्य रोग भी दूर करै.
अथ तेलबनानेकी विधि. मिरचा हरा पाव भरि तिल्लीके आधे सेर तेलमें चुरावै जब मिरचा जरि जाय तब तेल मालिश करे तो गर्मी दूर होय.
अथ कडक पेशाबकी दवा शद्ध राल पावभर, मिश्री पावभर एकमें मिलायके कपड़छान करके एक तोला खानेको दे तो जितना पानी पीवै तितना पेशाब होय. और दवा दिन भरमें तीन दफे करै तो कडक पेशाब छूटै.
अथ इन्द्री जुलाबकी दवा. गुलारमनी एक जातकी मिट्टी है उसको ९ मासे लेवे और ९ मासे कलमी सोरा दोनोंको एकमें मिलायके तीन सेर पानीमें मिलावै पीछे रोगीको पीनेको दे तो जितना पानी पी तितना ही पेशाब बहुत खुलाशा होय.
शंखियाकी गोली गर्मीपर. शुद्ध शंखिया एक तोला और पापरीखैर दो तोले एकसौ बँगलापानमें दो दिन खल करै तब बजरीके समान गोली बांधकर एक गोली शामको और एक
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(७२) रसराज महोदधि । सबेरे पानीके साथ खानेको देवै तो उपदंश दूर होय. पथ दूध भात और खट्टामीठातीता वगैरह त्याग करे.
पुनःदवा मंदारकी लकडी जलाई हुई दो तोले मिश्री दो तोले दोनोंको मिलाकर छःमासे शाम व सबेरे खाय तो गर्मी आठ रोजमें दूर होय.
इन्द्रीका मलहम काली मेल दो तोले दश मासे,मेंहदीका बीज सात मासे, रूमीमस्तगी सात मासे, सुरंजन सात मासे निसोत साढे सत्रह मासे. रोगन गुल तीन तोले. रोगन जितून पांच तोले नीबूकी पत्ती एक तोले, बकरीकी चर्बी ग्यारह तोले मिलाकर मलहम तयार करै तब सब शरीरपर मालिश करै जिधर जिधर चट्टा हों उधर उधर करै तो बहुत जल्दी चट्टा फुन्सी घाव इत्यादिक दूर होय.
अथ इन्द्रीकी दवा। काली मेल एक तोले. कवेला दोतोले. सफेदा दो तोले, प्युली दवा ६ मासे मसका घी धोयाहुआ छः तोले मिलाइकै घावपर लगावै तो बहुत जल्दी घाव अच्छा होय असाध्य हुआ आदमी अच्छा होय.
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रसरीज महोदधि। (७३)
अथ टाँकालेप. मुंः संग १ पैसा भरि, राल एक पैसा भरि और घी चार तोले मिलायके मलहम तय्यार कर घावपर लगावै तो तुर्त टाँकी चट्टा अच्छा होय.
फिर लेप. त्रिफला जलाया हुआ मधुमें मिलायके घावपर लेप करै तो बहुत दिनकी गर्मी अच्छी होय घाव भरपूर होजाय पावकी जगह पहिचानमें नहीं आवै.
अथ उपदंशकी हुक्का पीनेकी दवाई. शिंगरफ माजूफल मदारकी जड और भंगराज ये सब चीजें एक एक तोला लेकर एकमें खल करै तब नवमासे चिलममें रखके खैरकी लकड़ीके अंगार धर पीवै तो सब तरहकी गर्मी दूर होय इसके बराबर दूसरी दवा नहीं है.
अथ गर्मीका हुक्का पीना. इन्द्रायणकी पत्ती और इन्द्रायण की जड़ सोराभंगराज ये सब मिलाके चिलममें रखके पीवै तो गर्मी जाय.
अथ आककी गोली. आककी जड एक तोला पांच मासे मिर्च ४ तोले दोनों एक साल करके छोटी मटरके बराबर गुडमें
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(198)
रसराज महोदधि ।
गोली बाँधे और शाम सबेरे एक एक गोली खाय तो अच्छा होय.
अथ अरुशकी गोली.
अरुशकी जड दो तोले मिर्च दोतोले मिलाके खल करके चना बराबर गोली बांधकर शाम सबेरे एक २ गोली खाय तो बहुत जल्दी अच्छा होय. अथ हुक्का पीना.
खुरासानी अजवायन ढाई मासे शिंगरफ पांच मासे नीलाथोथा दोरत्ती अकरकरा पांच मासे आककी जड दश मासे ये सब दवाई कूट कर बेरकी लकड़ी की आगसे चिलमपर रखके पीवे तो बहुत जल्दी अच्छा होय फिरंगवाय जाय.
तथा.
कसौंजीकी जड़ व पत्ती एक तोला पांच मासे मिर्च ग्यारह मासे दोनोंको भांगके समान घोटि पीवे तो बहुत जल्दी अच्छा होय उपदंश जाय.
तथा.
शिंगरफ अकरकरा नीवका गोंद माजूफल सोहागा ये सब चीज एक एक तोला मिलाके चिलम पर रखके ऊपरसे अंगार रखके पीवे तो सब तरहकी ग्रजाय इसमें संशय नहीं.
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रसराण महोदधि। (७)
अथ धावको लेपन. जराया हुआ नीलाथोथा छामासे और मोम एक तोला घी दो तोला एकमें मिलाय गरम कर घावपर लेप करै तो उपदंश चट्टा फुन्सी सब दूर हों.
पुनःदूसरा लेप. करू तेल पाव भर मोम पांच टंक कवेला बारह टंक सिंदूर दो टंक शोरा दो टंक सुरदाशंख दो टंक सब बारीक पीस धीमें मिलाके मलहम तय्यार करै फिर जहां जख्म भया होय वहां लगावै तो बहुत जल्दी अच्छा होय.
अथ मलहम बनाने की विधि. सफेदराल छ मासे रसकपूर छ:मासे गुलावका तेल दो मासे सब एकमें मिलाके एकसौ दश दफे पानीसे धोवे तब घावपर लगावे तो सब प्रकारका जख्म दूर होय. _ मलहम बनानेकी दूसरी विधि.
नेनू एक तोला लेकर एक सौ दफे पानीमें धोवे फिर जख्म पर लगावे तो घाव फौरन् अच्छाहोय.
अथ बद का लेप. नागफनीका एक पट्टा लेकर उसको फाड़के आंबाहरदीका चूर्ण भरै फिर कपडमिट करके अनिमें मंजिले तब बदपर बांधे तो बद तीनदिनमें
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(७६) रसराज महोदपि। अच्छी होय (पुनःबदकालेप) तीसी कूटिके गर्म करि के बद पर बांधे तो बहुत जल्दी बैठ जाय.(पुनःलेप) आंबाहरदी तीसी ईसबगोल घीकुवारिका गोंद सब दवा एकमें मिलाकर पीसके गर्म करके बदके ऊपर बांधे तो बहुत जल्द बद अच्छी होय. (पुनः लेप) आंबाहरदी घरकारंडस चूनागुड सबबराबर पीस लेप करै तो बद पकै फिर फूटिकै बहुत जल्दी अच्छी होय. (पुनः लेप )रेंडीके वीज हर रेंडीका तेल सिरका सब एकमें मिलाके गरम करके बदके ऊपर बांधै तो जो थोड़े दिनकी बद हुई होय तो बैठ जाय. जो ज्यादह दिनकी होय तो पक फूटके बहुत जल्दी अच्छी होय. इसमें संशय नहीं (पुनः बदपकानेकालेप.)नीलाथोथा६मासे. आंबाहरदी एक तोला, राल एक तोला. गूगल ६ मासे. गुड एक तोला. सब एकमें पीस गरम कर बदपर बांधै तो बहुत जल्दी फूट जाय. (पुनःलेप) मेथी, हरदी, रेडीका तेल, मिलाकरके बदपर बांधे तो बद बहुतजल्दी अच्छी होय (पुनः) मदारके पत्तामें रेंडी का तेल लगाके बदपर गरम करके बांधै तो अच्छी होय. फिर धतूरके पत्तासे सेंकदे तो बहुतही गुण करै.
अथ साना गठियेका इलाज. उसवाका माजूम गर्मीके चट्टा फोडा गठिया ग
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रसराज महोदधि । ७७) लीज खूनको दूर करताहै. और नया खून पैदा करताहै. (दवा) उसवा मगरवी साततोले सनायकी पत्ती अढ़ाई तोले सौंफ अढ़ाई तोले विसपंज दो तोले लाल चंदनकाचूर्ण एक तोला मिश्री सात तोले शहद सात तोले पहिले उसवाको एक सेर पानीमें चुरावे जब आधा पानी रहजाय तब मिश्री शहद डारिके चासनी करै पीछे कपडछान करके चासनीमें मिलाके बरतनमें रक्खै खुराक ६ मासेसे एक तोला तक यह माजूम बहुत गुणकारीहै.
दूसरी खानेकी दवा. रेंडीकी एक दानाकी छाल निकालके एक दिन एक दाना दूसरे दिन दो दाना. इसी तरहसे दररोज एक दाना बढ़ाताजाय जब सातदिन होय तो एक दाना कमती करताजाय. खाते खाते एक दाना अंतमें रहजाय तब सब तरहका जोडा साना और गठिया दूर होय.
मालिशका तेल. अलसीका तेल, तिल्लीका तेल, करू तेल ये सब तेल आधा आधापाव लेकर और धतूरेके पत्ता जड व फल फूल इनको कूटकर तेलमें चुरावै जब
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(७८) रसराज महोदधि । वाई जल जाय और तेल मात्र रहिजाय तब मालिश करे तो शरीर भरे का जोडा साना सब दूर होय.
१ तंबाकूका तेल. तंबाकू आध सेर लेकर शामको डेढ सेर पानीमें भिगोय दे सवेरे पानी छानि एक सेर तिल्लीका तेल डालके मधुरी आँचसे चुरावै, जब पानी जलजाय तेल मात्र रह जाय तब मालिश करे तो गठिया जोडा साना वगैरह दूर होय.
२ तंबाकूका तेल. मालकाँगनी २ तोले कायफल एक तोला बकाइन १ तोला सोंठि एक तोला कतीरा १ तोला जायफल १ तोला अकरकरा एकतोला इलायची १ तोला लौंग १ एकतोला हल्दी १ तोला समुद्रखार १ तोला कुचिला १ तोला बदाम एक तोला गरी १ तोला करंज १ तोला सोर १ तोला कुलंजन एक तोला काला धतूर १ तोला मंदार १ तोला सहिजन १ तोला गोम एक १ तोला मकोय १ तोला भंगराज १ तोला कडूतेल १ सेर तिल्लीका तेल १सेर रेंडीका तेल आधा सेर पहिले यह सब दवा आठ सेर पानीमें चुरायै जब आधा पानी रहजाय तो छान कर तेल डालके मधुरी आंचसे चुरावे जब सब पानी जलजाय तेल मात्र रह
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रसराज महोदधि । (33)
नाय तब मालिश करे तो जोडा गँठिया साना सब दूर होयँ गरमीके बात रोगको बहुत फायदा करता है. अथ काढा.
सौंफ, कासनीके बीज, मकोय, हंसराज, सौंफकी जड़, कासनीकी जड, मुलहठी, बबूल के फूल सब मिलाकर पानी डालके काढ़ा करिके पीवे तो जोड़ा साना गँठिया दूर होयँ तथा पोस्ताके ढोढका काढ़ा गुण करता है.
गठियाकोचर्ण
सुरंजन दो तोल, सनाय २ तोले, हर्र एक तोला, निसोत सफेद दशमासे, बादाम दश मासे, मेहँदी की पत्ती सात मासे, केसरि चार मासे और सबके बराबर मिश्री मिलाकर कपडछान करके दो तोले नित सबेरे फांकै तौ जोडा सानाको बहुत फायदा करता है.
अथ गोली गँठियापर -
एलवा दोताला ग्यारह मासा. काबिली हर्र एक तोला दश मासा. शुद्ध निसोत सात मासे सुरंजन सात मासे शुद्ध गूगल सात मासे. सोंठ, चीता, राई, सेंधानोन इन्द्रायणका गुज्झा मजीठ एक २ तोले आठ २ मासे अजवाइन पीपल कालीमिरच पौने दो
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(८०)
रसराज महोदधि ।
दो मासे मिश्री चार मासे सब कूट कपडछान करिके पानीमें गोली बनाकर तादाद गोलीकी दश मासे सबेरे एक गोली खाय तो दो दस्त आवैं गँठिया जोडा साना गरमीके सब रोग दूर होयँ. उपदंशका लेपकनेरकी जड पीसकर लेप करे तो असाध्य गर्मी दूर होय.
•
इति श्री मुन्शी भगवान् प्रसाद शिष्य भगवान्दास विरचित रस उपदंश फिरंगवाय पांच प्रकाकी गर्मी का दुक्का तेलादिविधियत्नवर्णनं नाम तीसरा खंड समाप्त ॥ ३ ॥
चौथा खंड . जवारीस हिन्दी -
कलेजेकी गर्मीको तर करताहै कब्जियतको दूर करता है भूखको लगाता है (दवा) लौंग सात मासे वालछड साढे तीन मासे, अगर खाम साढ़े तेरह मासे मिश्री तीन पाव सवा छटांक गुलाबका अर्क आधा सेर पहिले गुलाबका अर्क और मिश्री दोनोंकी चासनी करे तब दवा कूटके कपडछान करके चासनीमें मिलावै खुराक नौ मासे सबेरे..
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रसराज महोदधि। (८)
जवारीस सहरान. कलेजेके दर्दको दूर करताहै पेट फूलाहोय तो उसको फायदा करताहै. जिसको बहुत कडक पेशाब होय उसको बहुत फायदा करताहै (दवा) लौंग दारचीनी बालछड जायफल दोनो इलायची रूमी मस्तंगी, हुब बेलसा, सक मुनियां केसर ये सब दवा सोलह २ मासे ले निसोत दोतोले चार मासे सब दवाके बराबर मिश्री लेना शहद और मिश्री इन दोनोंकी चासनी करिलेय फिर दवा कपडछान करके चासनी में मिलाय देय खुराक एक तोले सबेरे खावै.
अथ जवारीस तीसरी. जवारीस जुलाबहै पेटके गलीजको साफ करताहै. (दवा) निसोत दो तोले ग्यारहमासे सोठि सत्रह मासे मिश्री चार तोले चार मासे मिश्रीकै चासनी करिकै दवा कूटके चासनीमें मिलाक तय्यार करले खुराक एक तोला सबेरे खावै.
अथ जवारीस दूसरी
हिंदुस्तानी. शरिकी गाँठि गाठिको, पेट, शिरके दर्दको दूर करता है ( दवा ) सक मुनिया दो तोले ग्यारह मासे छोटी और बड़ी इलायची दारचीनी सोंठि
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(२) रसराज महोदधि । तज नागकेसर लौंग कालीमिरच सब दवा साढे सात २ मासे लेना मिश्री २७ तोले ग्यारह मासे आधा सेर मधु, मधु और मिश्रीकी चासनी करिकै दवा कूटके चासनीमें मिलाके जवारीस तय्यार कर लेय खुराक एक तोला सबेरेके वक्त खावे.
अथ जवारीसजारीनोस. बालछड इलायची सली खाँदारचीनी कुलिंजन लौंग नागरमोथा सोंठि कालीमिरच पीपरि कूट दरियाई अगर कच्चा अस्सारून मूलीके बीज चिरैता रूमीमस्तंगी सब दवा एक एक तोलेले नागकेसर छःमासे मिश्री दश तोले शहद आधा सेर मिश्री और शहदकी चासनी करिके सब दवा कूट कपडछान करिके चासनीमें मिलाके तय्यार करलेवै खुराक नौ मासे सबेरे शाम खावे तो तमाम शरीरको ताकत देताहै शरदीको कब्जियतको शिर कमरके दर्दको दूर करताहै. सुस्तीको नाश करता और मस्ती लाताहै, बलगम बवासीर सेहुआं दाद चट्ठा खुजली इन सबको दूर करता है कालेबालोंको सफेद नहीं होने देताहै.
बरश बनाने की विधि. सफेदमिर्च अजवायनखुरासानी पांचतोले ले केसर एक तोले साढे पांच मासे बालछड तीन मासे
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रसराज महोदधि ।
(८३)
फरफिऊन तीन मासे, सब दवा कूट करिके कपड छानकर मधुमें मिलायके बरतन में रख दे यवमें छः महीने तक गाड़ रक्खे पीछे निकाल कर तीन मासे सबेरे खाय तो सब रोग हरै. बरश बनाने की दूसरी विधि.
कालीमिर्च चार तोले, सफेद मिर्च चार तोले खुरासानी अजवाइन चार तोले, उस्तु खुश एक तोला पीली हर्र दो तोले, अफीम दो तोले, केसर एक तोला फरफीऊन छः मासे, जटामासी छः मासे, अकरकरा छः मासे, सब एकमें मिलाके कूट कपडछान करिके मधुकै चासनी करिके दवाई मिलाके वरश तय्यार करै खुराक तीन मासे सबेरे खाय तो एक महीने में सब रोग हरै.
अथ आनन्द दाता गोली
जिसको पाँव से शिरतक साना पकडे होय चलने फिरनेकी शक्ति न होय उसकी ( दवा ) एलवा साढ़े चार मासे निसोत सवा पांच मासे. कालादाना पौने दो मासे. गोरोचन पौने दो मासे. इन्द्रायनके फलका मगज छः रत्ती सवा दो चावल, अजमोदाके रसमें चना बराबर गोली बनावै इस गोलीका गुण कुछ वर्णन योग्य नहीं. खुराक एक गोली शामको एक सबेरे.
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(८) रसराज महोदधि ।
अथ आनन्द भैरो रस शुद्ध शिंगरफ. शुद्ध शंखिया विष. कालीमिरच, पीपरि. शुद्धचौकियासोहागा, सब बराबरिले कपड़ छान करिके दो दिन निम्बूके रसमें खल करै तब आनंदभैरो रस तय्यार होवै, खुराक आधा चावलसे एक चावल तक रोगीका बलं देखके देवै. सब रोगोंको दूर करताहै.इसका गुण बहुत है लिखने योग्यनहीं.
अजीणं कंटक रस. शुद्ध शंखिया, शुद्ध चौकिया सोहागा. सेंधा निमक सब बराबर लेकर कूट कपडछान करिके अदरखका रस पाव भरि दही पाव भरि निम्बूका रस एकसेर इन सब रसोंमें मिलाके खल करै तब दो रत्तीके बराबर गोली बांधे खुराक एक गोली शामको और एक सबेरे खाय तो वात रोग,अजीर्ण,पेटका फूलना दूर होय और सब प्रकारके उदर रोग दूर होय. भूख बहुत लगै. यह दवा अमृतके तुल्य है.
त्रिफलादि क्रिया. त्रिफला एक सेर, मुलहटीएकसेर दारचीनी एक सेर, महुआके फूल एक सेर, सब दवा कूट कपडछान करिके दवाके बराबर मधु और मधुके बराबर धीमें मिलाके तीन दिन पीछे सोते समय खाय तो शरीर
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रसराज महोदधि। (८५) पुष्टहोय. और आँख कान नाक मुँह छाती उदर रोग इत्यादि सब रोग दूर होय. बुद्धि बहुत होय. कितनीही मेहनत करै तोभी बल घटै नहीं बहुत दिन जीवै और अजर, अमर होय कुछ दिन सेवे तो आंखोंके रोगको बहुत फायदा करताहै.
राज मृगांक क्रिया. ___ मिरच छः मासे घी छः मासे तुलसीके पत्ते छः मासे एकमें मिलाके जो कोई कुछ दिन सेवै तो इस क्रियाके बराबरः कोई दवा नहीं यह दवा गरीब अमीर सबके वास्ते है बात रोगको बहुत गुण करतीहै.
हरै खानेकी विधि, ज्येष्ठ आषाढ़में हरैं गुडसे खाय सावन भादों में सेंधा नमकसे खाय कुवाँर कार्तिकमें मिश्रीसे खाय अगहन पूसमें सोंठिसे खाय, माघ फाल्गुनमें पीपरिसे खाय चैत बैशाख में मधुसे खाय (हरै खानेका गुण ) जेठमें खाय खांसी जाय आषाढ़में खाय पेट साफ होय सावनमें खाय तो आंखोंकी ज्योति बढ़े भादोंमें खाय तौ कूवत होय कुवॉरमें खाय तो बाल काले होय कातिकमें खाय तो सब रोग हरै अगहनमें खाय तो मर्द होय पूसमेंखाय तो पुष्ट होय माघLखायतो बुद्धिबढे फाल्गुनमेंखाय तो बहुतदेखै चैतमें खाय तो अबढे बैशाख
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(८६) रसराज महोदधि। में खाय तो भूली बात याद होय इसी विधिसे बारहो महीना खाय तो शरीरमें रोग नहीं व्यापै निरोग रहै.
काबुली हरोंकामुरब्बा. एक सौ ह लेकर पानीमें डालदे और थोड़ी सीअच्छी माटी लेकर इसी पानीमें डालदे तीन दिन पीछे चुसवै तब साफ करके मधुमें बारह दिन रक्खै फिर दूसरी मधु लेकर दोनों मधुकी चासनी करके उसीमें हरॆ डालदे और फिर ये दवा डालै तज, लौंग, सोंठि, बड़ी इलायची, जायफल, रूमी मस्तंगी ये सब दवाई एक २ तोले दश २ मासे कस्तूरी दोमासे केसरि चारिमासे ले सब दवा मिलाके चालीस दिन पीछे खानेको देय खुराक एक तोले तमाम शरीरको ताकत देताहै दिवानगी दूर करताहै मस्ती लताहै संग्रहणी वात शिर वादी ये सब रोगोंको दूर करताहै आंखोंकी ज्योति बढ़ाताहै कबज़ियतको दूर करताहै.
अथ आँवराका मुरब्बा. अच्छे अँवरा एक सेर लेके एक दिन एक रात पानीमें भिगोदे फिर फिटकरीके पानीमें एक दिन भिगावै तब चूनाके पानीमें एक दिन भिगो पीछे चूना के पानीसे आँवरा धो डालै तब आधा सेर मधु और
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रसराम महोदधि । (८७)
एक सेर मिश्री इन दोनोंकी चासनी करले और चासनीमें गवरा डालदे फिर दवा केवडाका अर्क एक तोला, गुलाबका अर्क एक तोला, कस्तूरी एक तोला, अगर एक तोला, सब कूट कपड छान करके चासनी में मिला पन्द्रह दिन रक्खै पीछे खानेको देवै खुराक एक तोला हडके मुरब्बासे ऑवराके मुरब्बेका गुण ज्यादा है सब रोगोंपर दे. अथ गाजर का मुरब्बा
अच्छा गाजर चार सेर लेकर उसका छाल छोल कर दूर करे फिर छोटे २ कतरा कर एक दिन पानीमें भिगोदे तब पानीसे निकाल दो सेर मधुमें चुरावै फिर दो सेर मधु लेवे दोनो मधुकी चासनी करे उस चासनीमें गाजर छोड देवै फिर सोंठि बालछड मिरच बड़ी इलायची रूमीमस्तंगी पीपरि कंफरकेवीज यह सब दवा एक २ तोला ले कपड़छान करके मुरब्बामें मिलाय देवै आठ दिन पीछे खुराक डेढ़ तोलादे मनीको बढाता है छाती व कमरके दर्दको दूर करताहै मन प्रसन्न करता है कलेजेकी गर्मीको शान्त करता है सब रोगोंको फायदा करता है.
अथ बचका मुरब्बाअच्छी बच दो सेर लेके पानीमें एक सत एक दिन
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(८८) रसराज महोदधि। भिगावै फिर दूसरे दिन डेढ सेर मधुकी चासनी करके वच डाल चुरावे आठ दिन पीछे खाने को देवै खुराक नौ मासे लकवाको गुण करता है पेट और छातीको ताकत देताहै सुस्ती दूर करता है जो एक महीना खावै तो सब रोग दूर होवें शरीर निरोग रहै मुरब्बा खाय तो खट्टा मीग नहीं खावे स्त्रीसे बचा रहै.
- अथ बेलका मुरब्बा अच्छा बेलका चार सेर मगज ले थोडा घी डाल पानीमें चुरावे तब मिश्री एक सेर मधु दो सेर मधु
और मिश्रीकी चासनी करै फिर छड़ीला तीन मासे बालछड पांच मासे नागरमोथा चारमासे जहरमोहरा खताई दो मासे जौहर कपूर दो मासे इलायची तीन मासे सब दवा कूट कपडछान करके चासनी में मिला देव चालीस दिन पीछे खानेको देवै खुराक एक तोला संग्रहणीको दूर करताहै. पेट के मुर्राको फायदा करताहै, आंव और खूनी बवासीरको दूर करता है. आँखों व कलेजे की गर्मीको दूर करताहै. प्यास बुझाताहै. यह मुरव्या सब रोगोंको फायदा करताहै.
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रसराज महोदधि । अथ जुलाब लेनेकी विधि,
जिस रोगीको जुलाब देना होय उसको पहले नरम २ भोजन करावे. जैसे दूध मिश्री और अच्छा भोजन करावै. जिसमें सब रोग दोष प्रगट होवें. तब जुलाब देवै जुलाब लेनेसे बुद्धि निर्मल होती है. इन्द्रियां प्रबल होती हैं. शरीरकी सुस्ती दूर होती है. और आंखकी ज्योति बहुत बढती है. वात पित्त कफके लोहूके बिगडे को दूर करता है. खराब खूनको दूर करता है. नया खुन पैदा करता है. सब रोगों को दूर करता है. जुलाब पहिला.
(८९)
कालादाना थोडा भूनकर एक तोला सनायकीं पत्ती एक तोला काली हर्र एक तोला लेकर खलमें खल करै तब चना बराबर गोली बनावै एक गोली गर्म पानी के साथ खाय तो बहुत उत्तम जुलाब होय पत्थ्य खिचडी घी स्नान नहीं करै और न सोवै, जुलाब दूसरा
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शुद्ध जमालगोटा, कालादाना. गरी यै दवा एक २ तोला ले कूट कपडछान करके अदरखके रसमें गोली बांध, चना बराबर एक गोली गर्म पानीके साथ खाय तो बहुत उत्तम जुलाब होय पत्थ्य खिचड़ी घी.
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रसराज महोदधि।
जुलाब तीसरा. शुद्ध जमालगोटा तीन मासा, सोंठि चार मासा कतीरा गोंद तीन मासा एकमें मिलायके कूट कपड़छान करके खल करै पीछे चना बराबर गोली बाँधै एक गोली गरम पानीके साथदे ऊपरसे सौंफका पानी पीनेकोदेवै तो बहुतही अच्छा जुलाब होय.
जुलाब चौथा इच्छाभेदी. सोंठि,मिरच, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध सोहागा, सब दवाछ-मासे ले और शुद्ध जमालमोटा डेढ तोला लेकर पीछे एकमें सब दवा खल करै पीछे दो रत्तीकी गोली बांधै एक गोली एक तोला मिश्रीके साथ खाय ऊपर जितनी अँजुरी गरम पानी पीवै उतनाही जुलाब होय इसका पत्थ्य चावल और ताक है.
जुलाब पाँचवाँ. सनाय की पत्ती पच्चीस भरि काला दाना पच्चीस भरि गुड पच्चीस भरि सोठि पच्चीस भरि, शुद्ध जमाल गोटा पच्चीस भरि. सब दवा एकमें मिलायके खल करै पश्चात् बड़ी मटरके बराबर गोली बाँधे, एक गोली चार मासे मिश्रीके साथ खाय उपरसे गरम पानी पीवै तो जुलाब होय पत्थ्य खिचडी घी.
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सरान महोदपि। (९)
जुलाब छठवाँ. सनायकी पत्ती, गुलाबके फूल, मुनका, कालादाना, अमलताशका मगज, सौंफ, काला नमक सब दवा एकमें खल कर जंगली बेरके बराबर गोली बांधै एक गोली गरम पानीके साथ खाय तो तीन जुलाब बहुत उत्तम होय पत्थ्य मूंगकी खिचडी.
अथ शिररोगकी दवा. कसरि, मिश्री, घी तीनों बराबर दूधमें घिसके नास लेय तो शिररोग, अधकपारी (आधाशीशी) सूर्यवती मुँहकी पीडा ये सब रोग दूर होय,
अथ शिरकी दूसरी दवा. अदरखका रस. पीपरि. सेंधानमक, गुड ये सब दवा एकमें घिसके पानीके साथ नास लेय तो शिरके सब रोग दूर होय.
अथ शिरका लेप. चौराई दो तोला, सोंठि एक तोला, मिरचछामासे सब दवा एकमें पीस लेप करै तो शिरके सब रोग दूर हो
शिररोगका दूसरा लेप. रेडीकी जड़, सोंठ, कूट सब दवा एकमें पीसके शिरपर लेप करे तो शिरके सब रोग दूर होय.
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(९२) रसराज महोदधि ।
शिररोगपर खानेकी दवा. त्रिफला, मिश्री, पीएकमें मिलाके एक तोला खाय तो शिररोग दूर होय. इति शिर रोगकी दवा समाप्तः ।
१ अथ कर्णरोगका इलाज. जो कानकी पीडा बहुत होती हो तो मूलीका रस पाव भर और मंदारके पत्ताका रस पाव भर और पाव भर कडू तेल इन सब दवाइयोंको एकमें चुरावै
और जब दवा जलजाय केवल तेल मात्र रहजाय तब थोड़ा थोड़ा कानमें डाले तो कानकी पीड़ा और खाज दूर होय.
२ तथा. कानके पीडा होने पर थोड़ासा समुद्रफेन कानमें डाले और फिर नीबूका रस डाले तो कानकी पीडा व शूल तुर्त हरै.
३ तथा. सेहुंडके पत्ता और मन्दारके पत्ता दोनोंका रस निकालके गर्म कर कानमें छोडै तोकानकी सव पीडा दूर होय.
४ तथा. सेंधा नमक,अदरखका रस,शहद, कडू तेल मिलाकर गर्म कर कानमें छोडै तो कान अच्छे होय.
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रसराज महोदधि। (९३)
५तथा. जो कानमें पीब बहता होय और थोड़ा २ शब्द सुन पड़े तो सफेद दूबका रस ८ तोले और मूलीका रस ६ तोले और सेंधानमक १ तोला और तिल्लीका तेल पावभर इसमें सब दवाई डालके चुरावै जब दवा जल जाय तेलमात्र रहजाय तब कानमें डालै तो कानके सब रोग दूर होय.
१ अथ आँखोंका इलाज. अगर आँखोंमें लाली छाई होय और पीडा करती होयँ तो आँवला, हरें, बहेडा यह तीनों दवा एकमें मिलायके पानीमें भिगोयदे पश्चात् चार घडी पीछे पानी से निकालकर आंखोंमें डाले तो आंखोंके सब रोग दूर होय.
२ तथा. हड छोटी दो मासे, बहेडा दोमासे, आँवला दो मासे, मिरच एक मासे, दालचीनी दो मासे,पीपर एक मासे, सेंधा व सांभरनमक एक एक मासे सब दवा एकमें मिलाकर खल करै पीछे, कपड़ छान करके नीबीके पत्ताके रसमें एक दिन खरल करे फिर एक दिन काली मकोय के रस में खलकरके सुखायके गोली बांधिके सुखावै पीछे जुदे २ अनोपानसे आंखोंके सब
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(९४) रसराज महोदपि । रोग हरै ब्राह्मनी होय तो गायके मूत्रमें घिस सात रोज आजै तो सब रोग दूर होय. और फूली होय तो शहदमें घिस आजै तो पन्द्रह दिनमें फूली अच्छी होय. और नाखूनके वास्ते अदरखके रसमें घिसि
आंजे तो अठारह दिनमें दुःख दूर होय. और जो कमती देखाता होय तो बासी पानीमें षिसिके ऑजे तो बाईस दिनमें अच्छी होय.
३ तथा. मैनशिल, जीरा, पीपरि, धमासा, मिश्री, सफेद नीबोल, सांपकी केंचुल ये सब दवा बराबर लेकर कूट कपड़छान करके करेलीके रसकी तीन पुट दे पीछे भुंगराजके रसमें तीन पुट दे फिर खूब खलकरके
घुची प्रमाण गोली बांध छायामें सुखावे जो कोई नींबूके रसमें गोली चिसि एक आंखिमें आजै तो एक अंगका ज्वर जाय और दोनों आँखोंमें आँजे तो शरीर भरेका वर जाय और जो गूगलकी एक गोली का धूप देय तो भूत प्रेत डाकिनी शाकिनी लगी हो तो सब शूटि जायँ.
४ तथा. शुद्ध खपरिया, सेंधानोन, शुद्धनीलाथोथा, शुद्ध सोहागा, सोंठि, मिरच, पीपरि, यह सब चीजें एकमें
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रसराज महोदधि। (९५) मिलाके नींबूके रसमें चार पहर घोटै तब गोली बनाय छायामें सुखायके शहदमें आंजे तो सब तरहके नेत्ररोग दूर होयँ और फुनसी फोडा मांसका गलना चूंधी मोतियाबिंध आदि सब रोग दूर होय.
५ तथा. जराया हुआ भेलावाँ एक, फिटकरी दो चना भर, अफीम एक चना भर, छः नीबूके रसमें खल करके छायामें सुखाय गोली बनाकर नीबूके रसमें घिसि आँजे तो फूली,फेफरा, आंखोंसे पानी बहना ये सब दुःख दूरि होय.
६ तथा. जेठी मधु, गेलं, सेंधानमक, दारुहल्दी, रसोत सब दवा बराबर लेके पानीमें एक दिन घोटै पीछे मटर बराबर गोली बाँधै पश्चात् पानीके साथ घिसके पलक पर लेप करे तो सब तरहके नेत्ररोग दूर होय.
१ अथ नाकरोगकी दवा. जो बहुत छींके आती होय तो धनियांकी पत्ती सुंधै अथवा चंदन सूंघना गुण करताहै.
२ नाकरोगकी खानेकी दवा। सोंठि, पीपर, इलायची तीन २ मासा ले गुड सात
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(९६)
रसशज महोदधि ।
तोला एकमें मिलाके चार मासे खाय तो नाकके सब रोग दूर होयँ
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नाक रोगकी तीसरी दवा भृंगराजका रस पाव भर तिल्लीका तेल पाव भर, सेंधानमक दो तोला सब एकमें मिलाके चुरावै जब पानी जर जाय तेल मात्र रहि जाय तब नास लेवै तो जो नाक में चइली (पपरी ) पडती होयँ वह न पडें और पीनस इत्यादि सम्पूर्ण नाक के रोग हरे. अथ जीभरोगका इलाज.
जो जीभपर छोटे २ फोडे निकल आवैं और जीभ लाल लाल होजाय तो जानो यह रोग कलेजेकी गर्मीसे होता है (दवा) शीतलचीनी वंशलोचन रूमीमस्तगी गुजराती इलायची गुरुचकोसत पीपरि मिश्री ये सब दवा छः छः मासे ले कूट कपडछान करके एक तोला माखनके साथ छः मासा दवा खाय तो जीभके सब रोग दूर होयँ.
-
अथ दाँतरोगकी प्रथम दवा
फिटकरी, हरे खट्टे अनारका छिलका सेंधानमक सब दवा एकमें मिलाके कूट कपडछान करके मंजन करै तो सब प्रकारकी दांत की पीडा दूर होय. यदि दांत हिलते होयँ तो वज्र समान होय.
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रसराज महोदपि। (९७)
दाँतकी दूसरी दवा. बालछड एक मासे. अकरकरा छः मासे. सेंधा नमक छ मासे तूतियाकी भस्म एक मासे सुपारी जराई हुई छ मासे तुलसीको पाती एक तोला, रूमीमस्तंगी एक तोला. कस्तूरी एक मासा. नागरमोथा एक मासा. जराई हुई तमाखू एक तोला.जराया हुआ बादाम एक तोला. कालीमिर्च छःमासा ये सब दवा कूट कपडछान करके मंजन करै तौ दांतके सब रोग पीड़ा इत्यादिक दूर होय.
तथा. जराई हुई सुपारी एक तोला, पीली हरैकी छाल एक तोला. इन्द्रायनका मगज एक तोला, गुलाबके फूल एकतोला, गुलनार तीन मासा ये सब दवा कूट कपडछान करके मंजन करै तो दांतके सबरोग दूर होय. दांतकी पीडा तथा दातोंका हिलना दांतमें कीडा पडजाना इत्यादिक ये सब रोग दूर होय.
तथा. खट्टे अनारके छिलके ग्यारह मासा दो तोला, शुद्ध फिटकरी दो तोला चार मासा, अकरकरा सात मासा गुलाबके फूलसातमासा, माजूफल सात मासा
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(९८) रसराम महोदधि। ये सब दवा कूट कपडछान करके मंजन करैतोदांत की पीडा,कीडों का पड़ना तथा हिलना मिटै और दांत मजबूत होय. कभी न हिलें दांतके सब रोग दूर होय
तथा. कालेदाँतोंको सफेद करताहै, पीली हरडोंका छिलका दोतोला ग्यारह मासा कालीमिर्च चौदह मासा अनारका चूरण दश मासा तेजपात सात मासा माजूफल जलाया हुआ दो तोला चार मासा सब दवा कूट कपड़छान कर मंजन करै तौ मुँह दांत पीड़ा इत्यादिक सब दूर होय.
अथ श्वास रोगका वर्णन जिन वस्तुओंके खानेसे हुचकी होतीहैं उनहीं पदाथाके खानेसे श्वास पैदा होताहै वह श्वास ५ प्रकार काहै महाश्वास १ ऊई श्वास २ छिन्न श्वास ३ तमक श्वास ४ क्षुद्र श्वास ५ .. ___ अथ श्वास रोगकी पहिचान.
हिया कनपटी दूखै, शूल होय, अफरा होय, मल मूत्र नहीं उतरै और न मुखमें रसको स्वाद आवै तब जानिये श्वासरोग होगा इस रोगकी शांतिके वास्ते ३ चांद्रायणबत कार ब्राह्मणोंको भोजन जिमावै और विष्णुसहस्र नामका पाठ कराय ब्राह्मणों की भ
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रसराज महोदधि। (९९) क्तिसे पूजा करै और सोना दानदे तो श्वास शांति होय पीछे दवा करै.
अथ श्वासका लक्षण _जब मनुष्य श्वाससे दुःखी होय तबमस्तबैलकी नाई लंबे २ श्वास निरंतर लेय संज्ञा और ज्ञान नष्ट होजाय, नेत्र तरतराट करैं और श्वास लेते मुँह कट व 'फट जाय, बोला नहीं जावै, गरीबसा होजाय और जिसका स्वर बहुतही दूर सुनाई देय तो बैद्यको चाहिये कि इस श्वास वाले रोगीको असाध्य जान दवा न करै (पुनः) सर्व शरीरमें पीड़ा होय और पाँचों पवनोंसे पीडित मनुष्य ठंढी २ श्वास लेवै अथवा दुःखित हो श्वास नहींले अफाराहो शरीरका व्रण और होजाय तो असाध्य जानों.
अथ खांसी श्वास की दवा. बंग १ टंक पीपरि २ टंक हड़का बोकला ३ टंक बहेडेका बोकला ४ टंक रूस की पाती ५ टंक भारंगी ६ टंक इन सबको कूट कपरछान करि बबूलके क्वाथ में २ पुट दे पीछे शहद में २ पुट दे खल करि झरवेरके बराबर गोली बाँधै १ गोली खाय तो श्वास खांसी क्षयी सब दूर होय.
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(२.) रसराज महोदधि ।
शीतोपलादि चूर्ण मिश्री १६ तोले वंशलोचन ८ तोले पीपर १. तोले इलायची २ तोले दालचीनी १ तोले इन्होंका चूर्ण करके घृत शहद युत खावै तो कास श्वास क्षयी व हस्त पाद अंग की दाह मन्दानि जीभका जकडना पशुली शूलकी पीड़ा अरुचि ज्वर ऊर्द्धगत रक्त विकार पित्त इन सब रोगों को नाशे शरीरकी रक्षाकरै.
अथ खाँसी दमा श्वासकी दवा. अकरकरा १ तोला लटजीरा १ तोला हींग १ सोला पीपर १ तोला चनाकी दाल भुंजी १ तोला अफीम ६ मासे लौंग ६ मासे सब दवा थोरी कूटि ले फिर एक दिन मदारके दूधमें भिगोय रक्खै पीछे सेंहुड़के गोजेका मगज़ निकालके उसमें दवा भरके मुँह बंद कर सात सेर कण्डों में पूँकि देय जरै न पावै फिर निकालि खल करि चना बराबर गोली बाँधि खाय तो सब तरह का दमा खांसी श्वास क्षयी दूर होय.
अथ हुचकी की दवा आँवलकि रसमें पिपली शहद मिलाय खानेसे हुचकी श्वास जावें.
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रसराज महोदधि। (१०१) अथ श्वास रोग नाशक शुंब्यादि चूर्ण. कचूर कमलकंद गिलोय दालचीनी नागरमोथा पुष्करमूल तुलसी भूमिआँवला इलायची पीपल कालाअगर सुंठिं भीमसेनी कपूर ये सब दवा समान ले चूर्ण बनाय दुगुनी खांड मिलाय खानेसे हिचकी श्वासको हरे. - अथ भारंगी गुड़ श्वास पर.
भारंगी १०० तोले दशमूल १०० तोले हड बड़ी १०० तोले ले १२०० तोले पानी में दवा डार चुरावै जब ३०० तोला शेष रहै तो कपडासे छानिके ४०० तोले गुड़ मिलाय फिर चुरावै जब अवलेह होय जाय तब उतारिके ये दवा डारै शहद २४ तोले सोंठि ४ तोले मिर्च ४ तोले पीपल ४ तोले दालचीनी ४ तोले इलायची ४ तोले तमालपत्र ४ तोले यवाद खार २ तोले इन्होंका चूर्ण कार मिलायके २ तोले खानेसे ५ प्रकारके श्वास ५ प्रकारकी खांसी बवासीर अरुचि गुल्म अतीसार क्षयीको हरे और स्वर ब्रण अग्निको बढ़ावै यह भारंगी गुड संसारमें विख्यात है. अथ श्वास खांसी नाशक वसन्तराज रस।
त्रिकुटा त्रिफला लोहारस कुटकी हर अफीम धतूरे के बीज शुद्ध गुजराती इलायची चिरायता कपूर
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१०२)
रसराज महोदधि ।
लौंग जायफल इन सबको ब्रूकि कपरछान करि सहिजनेके रसमें ४ पहर घोटे यह वसन्तराज रस है. पाँच प्रकारके श्वास व पाँच प्रकारकी खांसीको नाश करे और स्वरभंगको दूर करे इसका गुण बहुत है (पुनः) शुद्धपारा ६ मासे गन्धक ६ मासे शुद्ध मैनशिल ६ मासे मिर्च ६ मासे पीपल ६ मासे सब कूटि कपड़छान करिके पानमें गोली बनाय खानेसे सब प्रकारके श्वास खांसी नाश होयँ
अथ दमा व खांसीका इलाज
सैहुँडके पत्तोंका रस धतूर के पत्तोंका रस मदार के पत्तोंका रसले प्रथम सेहुँड व मदार के पत्तोंको अग्निपर गरम करके रस निकालै सबका रस पाव पाव भरि लेवे फिर अरूसके पत्ता डेढपाव एक सेर दूधमें चुरावै, जब तीनभाग जरजाय एक भाग रहै तब छान लेवे फिर सब रस इकट्ठा करके चुरावै जब रस गाढ़ा होजाय तब पीपरि लौंग सोहागा छोटी इलायची अफीम सोंठि ये सबदवा एक तोला ले कूट कपंड छान करके रस में मिलाके चना बराबर गोली बांधे खुराक एक गोली शामको और एक सबेरे खाय तो खोकला खांसी दमा इत्यादि सब रोग दूर होय. ॥
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रसराज महोदधि ।
तथा. मिर्च पीपरि सोंठ इलायची चार २ तोला गुड आठ तोलाले सबका एकमें चूर्ण बनायके सबेरे एक तोला खाय तो सब तरहका दमा खांसी खोकला श्वास फूलना दूर होय.
( १०३ )
"
तथाशंखकी खाक छः मासे पानके बीड़ा खाय तो खांसी दूर होय. मदार व धतूरके पत्ता एक २ सौ काला नमक पावभर लेकर एक इंडीमें रखके फूंक देवै भस्म होने पर अदरखके रसके साथ खाय तो खाँसी दमा और खोकला इत्यादिक रोग दूर होयँ. तथा
शुद्ध शंखिया एक तोले, शुद्ध चौकिया सोहागा एक तोला दोनोको एक में मिलाकर अदरखके रसमें एकदिन खल करे फिर बजरीके समान गोली बांधकर दूधके साथ एक शाम और एक सबेरे खाय तो खाँसी, दमा, इत्यादि रोग दूर होय.
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तथा
शुद्ध कुचिला सवातोले, मन्दार और अरूसेके पत्ता एक २ सौ, साँभर नोन अढाई तोला, पीपरि अढ़ाई तोला. पीपरामूल अढाई तोला सोंठि सवा दो
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१०४) रसराज महोदधि। तोला. अजवाइन दो तोला. काली जीरी सवा दो तोला ये सब दवा एक हंडीमें भरके गजपुट आँचदेजब भस्म होय तो चाररत्ती पानके साथ खाय तो श्वास खाँसी दमा इत्यादिक सब रोग दूर होय.
अथ उदररोगका वर्णन . उदररोग ८ प्रकारका है सो लिखतेहैं मंदामिवालेक निश्चय होय और अजीर्णसे खराब वस्तुके खानेसे वात पित्त कफके कोपसे उदररोग उत्पन्न होताहै सो अलग अलग लिखते हैं वातका १ पित्तका २ कफका ३ सन्निपातका ४ प्लीहाका ५ मलबंधका ६ चोट लगनेका ७ जलोदर ८ ऐसे आठ प्रकारकेहैं अब अलग २ लक्षण सुनो.
. अथ बातोदर लक्षण १. जिस पुरुषके हाथ पैर नाभिमें सूजनहोय कुक्षि पशुली कटि पीठी संधिमें पीड़ा होय और सूखा खांसे शरीर भारी रहै मल उतर नहीं शरीर की खाल नख नेत्र काले पड़ जावै पेटमें पीड़ा और अफरा हो पेट बोलाकरे ये लक्षण वातोदरकेहैं.
अथ पित्तोदर लक्षण २. ज्वर मूर्छा दाह तृषा होवै. मुख कडुवाहो, शिर घूमरे, अतीसार हो, शरीरकी खाल पीली हरी होय
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रसराज महोदधि ।
( १०६)
और पसीना आवै डकार खराब आवैं ये सब रोग होयँ तो पित्तोदरका लक्षण जानो. अथ कफोदरका लक्षण ३
जिसके शरीर में पीड़ा होय और बहुत सोवै शरीर में सूजनहो सब शरीर भारी रहे हिया दूखे भोजन में अरुचि हो देर में पचै शरीर ठंढा रहै पेट बोला करै ये सब लक्षण कफोदरके हैं. सन्निपातोदरलक्षण ४. खराब जिसके खानेसे उदरमें नानाप्रकार के रोग पैदा होते हैं, मूर्छा, मोह, पांडु, शोष, तृषा, हो तो सन्निपातोदरका लक्षण जानो. अथ लीहोदरका लक्षण द
अथ
गरम वस्तु के खाने पीने से दुष्ट रुधिरसे कफके जोरसे लीहाको बढ़ावैहै पीछे बढ़ा प्लीहा बाई पसुली में रोग और तिल्लीको उत्पन्न करे है इस रोग में मनुष्य पीडित होयके बहुत दुःख पाता है || मन्दाग्नि, जीर्णज्वर, कफ, पित्त उपजै बल जाता रहै शरीर पांडु वर्णहोजाय ये लक्षण प्लीहोदरके जानो.
अथ मलबंध से यकृतोदर लक्षण, दहिनी पासुके नीचे और नाभिके ऊपर मांस कापिंड सरीखा विकार उपजै तिसे यकृत रोग
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(१०६) रसराज महोदधि। कहते हैं इस रोगको यकृत गोला का लक्षण जानो.
अथ छतोदरका लक्षण. जो मनुष्य कच्चा अन्न खाय और बाल कंकड रेत धूलसे मिले हो मलका संचय हो कष्टसे थोरा मले उत्तरै हृदय नाभि बढ़ जावै तिसको बद्ध गुदोदर तथा छतोदर भी कहते हैं
अथ जलोदरका लक्षण घृतको खाय, बस्ति कर्म कराय जुलाब ले, वमन करके शीतल जलंको पीवै, इससे जलकी बहने वाली नसें दूषित हो स्नेह करिके लिपी जलोदरको उत्पन्न करै हैं और उस शीतल जलसे उत्पन्न हुआ जलोदर नाभिके पास गोल और चीकना होय पानी भरी मसक समान बहुत बढ़े तब मनुष्य उससे बहुत दुःखी हो और उसका शरीर कंपै और पेट बारंबार बोलै ये लक्षण जलोदरके हैं असाध्य जलोदररोगीको त्याग करै
और इस रोगवाले रोगीकी सँभारिके दवा करै काहेसे कि इस रोगीका जीना कठिनहै और रोगीको खराब चीजके खानेसे बचाये रहे तीन महीनाके बाद थोरा अन्न दूधके साथ देय तो ६ महीना तथा एक वर्ष में जलोदर दूर होय
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रसराज महोदधि। (१०७)
अथ वातोदरकी दवा. पीपल, सेंधानमक पीस एक में मिलाय तक्रके साथ खाय तो वातोदर जाय.
पुनः दूसरी दवा,कुष्ठादि चूर्ण. कूट जयपाल जवाखार सोंठ मिर्च पीपल सेंधानोन मणियारी नमक कालानमक बच जीरा अजवायन हींग साजीखार चीता चाव इन्होंका चूर्ण करके गरम पानीके संग खानेसे वातोदर नाश होय
अथ पित्तोदरकी दवा. इसरोगमें बलवान पहिले दूधमें निसोतका कल्क और अरंडीका तेल मिलायके पियेतो पित्तोदरदूर होय.
. दूसरी दवा. निसोत व त्रिफलाका काढ़ाकर घृत डारि पीनेसे पित्तोदर नाश होय.
__अथ कफोदरकी दवा. सोंठि मिर्च पीपल नागरमोथा इन्होंका काढ़ा बनाय गोमूत्र और अरंडीका तेल मिलायके पीनेसे कफोदर दूर होय.
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(१०८) रसराज महोदधि ।
पुनः दूसरी दवा. लोहचूर्ण, अरंडीका तेल दूधमें कुछ दिन पीनेसे कफोदर नाश होय.
अथ सन्निपातकी दवा. हर्र निर्गुडीका गोमूत्रमें कल्क बनाय खानेसे संपूर्ण उदर रोग तिल्ली बवासीर कृमि गुल्मको नाश करे.
पुनः दूसरी दवा. नागरादि तैल ६४ तोले सोठि ६४ तोले त्रिफला ६४ तोले घृत २५६ तोले सबको एकमें मिलाय २ तोला दहीके संग खानेसे संपूर्ण उदररोग कफ़ोदर कफ गोला वायु गोला नाश होय.
अथ प्लीहोदरकी दवा. स्नेह स्नेह जुलाब तिल्ली में हितहै और बायें हाथकी कोहनीके अभ्यंतरवर्ती जो नाड़ी है तिसमें फस्त खोलानेसे यकृत रोग नाश होय और उस नसको अग्निसे दाग दे तो प्लीहा दूर होय पीपली में शहद तक मिलाय पीनसे भी प्लीहा नाश होय हुर: हुर का पंचाग ८ तोला ले मिर्च ८ तोले मिलाय खल करके ६ मासेकी गोली बनाय शाम सबेरे खाने से प्लीहा नाश होय और शुद्ध बच्छनाग चौकिया
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रसराज महोदधि ।
( १०९)
सोहागामें खलकरके पहिले दिन दो सरसोंसे बीस सरसों तक देइ रोगीका बल देखिके और आधासेर दूध के साथ सेवे तो सब उदर रोग नाश होयँ जैसे सिंह हाथीको मारै तैसे यह दवा उदर रोगको मारती है. अथ जलोदरकी दवा
जलीदर में बारंबार जुलाबदे जिससे मल विकार दूर होय अथवा काबुली हरौं का चूर सेंधानमक गोमूत्रमें पीनेसे जलोदर नाशहोय अथवा पीपलका चूर्ण थूहरके दूधमें भिगोय खानेसे जलोदर नाश होय अथवा आनन्दभैरोंरस दूधके साथ कुछ दिन सेवनेसे जलोदर नाश होय. अथवा नीलाथोथा, गन्धक, पिपली, हर्र सब बराबर ले कूट कपड़छान करि थूहरके दूधमें ५ दिन खल करि फिर अमिलतासके काढ़ामेंद दिन खल करि १ मासे नित्य गरम पानीके संगखाय तो जलोदर तथा सम्पूर्ण उदरके रोग जायँ पथ्य अधिक चावलही खाय इमिलीका शर्बत पिये ऊपरसे पान का बीरा खाय तो बहुत फायदा होय.
जलंधर वाले रोगीकी तस्बीर देखना इसी तरहसे पेट सूजता है इस रोगीको बहुत सँभारना चाहिये खद्या मिट्ठा और तीतासे बचना चाहिये और जल्दी ही दवा करे नहीं तो असाध्य होजाता है सो पीछे बहुत दुःख देताहै सो दवा अच्छी २ लिखी है दो दवा और लिखते
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(११०) रसराज महोदधि । हैं शुद्ध शंखिया १ तोला रेखलचीनी ९ मासे जदावर खटाई ९ मासे अकरकरा ९ मासे सफेद कत्था २ तोले सब दवा कूट कपड़छान करके अदरखके १ सेर भर रसमें खल कर मूंग बरावर गोली बांधे एक गोली खानेको दे तो रोग दूर होय (पुनः दवा) पीपल मिरच सोठि पांचोनोन सोहागा सज्जी सब दवाबराबरले
और दवाके बराबर जमालगोटा ले प्रथम दवाको कूटि कपड़छान करिके दात्वणीके रसमें ३ पुटदे फिर बिजौराके रसमें ३पुटदे खरलकर छायामें सुखायके फिर आधा रत्ती रस खानेको देतौ उदररोग, प्लीहा,गोला, जलंधर इत्यादि सब रोग हरे परन्तु ब्राह्मणको बुलाय प्रायश्चित्त पूजा पाठ जप करावै पीछे भोजन दान देतो रोम शांति हो और सोनेका कलश व कुबेरकी मूर्ति बनाय पूजा करै तौ पूर्व जन्मका पाप नाश होय रोगी जीवे.
अथ उदररोगका इलाज.. वाईका फिसाद और कच्चा भोजन करनेसे उदरमें पीडा होतीहै (दवा) पानी गर्म कर नोन मिलाय पिलावै तथा उलटी करावै और जबतक भूख न लगे तबतक भोजन न देव जवशरीर और पेट हलका होजाय तब खानेको देवै तो सब दुःख दूर होय. पीडा शांति होय.
अथ उदरका दूसरा इलाज. सनायकी पत्ती, हड, बहेडा, आंवला, कालानमक
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रसराज महोदधि । (999)
सब बराबर लेकर कूट कपड़छान करके नींबू के रस में गोली बांध एक गोली शाम और एक सवेरे खाय तो पेटकी पीडा, वात, पित्त, कफ, संग्रहणी, आँवका परना, इत्यादि रोगोंको दूर करे. और आठ दिन सेवन करनेसे मनुष्य निरोग होजाता है भूख बहुत लगती है और मन प्रसन्न होजाता है. तथा.
सोंटिकीकतरी उदर व कलेजेकी पीडा तथाशर्दीको दूर करती है अन्नको पचाती है यदि अदरखके रसमें खिलावै तौ दस्त बन्द होय कब्जियत दूर होय.. दस्त बन्दकरने की दवा.
हींग, जहरमोहरा खताई, मिरची, अफीम ये सब दवा बराबर ले खलमें खल करे फिर चना बराबर गोली बाँधे एक गोली नींबू के रसके साथ खाय तो संग्रहनी वातको शांति करे सब प्रकारके उदररोग दूर होयँ. तथा
अफीम साढ़े तीन मासा, अकरकरा सात मासा झाऊके फूल चौदह मासा सामक चौदह मासा, हुलास चौदह मासा, लेंके बबूरके गोंदके रसमें दो मासाके बराबर गोली बांधै एक गोली खाय तो दस्त एक घंटामें बन्द होय.
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( ११२ )
रसराज महोदधि ।
तथा. पीपर एक तीला, हड एक तोला, पांचोनमक एक एक तोला यह सब दवा जम्हीरी नींबूके रसमें खल कर दो मासाके बराबर गोली बांधै एक गोली खाय तो दस्त बन्द होय, अजीरन दूर होय, वाय, शूर जलंधरादि रोगोंको बहुत गुणदायक है वाईको पचाता है भूखको लगाता है. अथ पाचककी गोली.
मन्दारके मुँह मुँदे फूल चार तोला, काली मिर्च चार तोला, कालानमक चार तोला, ये सब दवा एकमें मिलाके खल कर बेरके बराबर गोली बांधै एक गोली शामको और एक सबेरे खाय तो शूल वायगोला इत्यादिक रोग दूर होयँ. अथ संग्रहणीकी गोली.
शुद्ध सोहागा शुद्ध सिंगरफ ये दोनों दो दो मासे अफीम चार मासे ले खल करके मिर्च बराबर गोली बाँधे जो रातको दस्त बहुत होता होय तो शहदके साथ एक गोली खिलावे और जो दिनको दस्त होता होय तो एक एक गोली नींबू के रसके साथ खिलावै तो सब तरहकी संग्रहणी वायु दूर होय. दस्तको रोंके संग्रहणीकी दूसरी गोली.
कफके दस्तको बन्द करे. पाचक है, कालीमिर्च
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रसराज महोदधि ।
( ११३ )
सोंठ, पीपर, लौंग, अकरकरा सब दवा साढे तीन २ मासे अफीम सात मासे ले अदरखके रसमें चना बराबर गोली बांधै फिर एक गोली सांझ और एक सबेरे खानेको दे तो कफ दस्त से उत्पन्न सब रोगोंको दूर करे. अजीर्णका चूर्ण.
हड, पीपरि, सोंचरनमक, वच, हींग बराबर २ ले कपड छानकरिके दो टंक पानीके साथ खाय तो अजीर्ण जाय. अजीर्णका दूसरा चूर्ण
हींग एक टंक, वच २ टंक, बिडनमक टंक सोंठि ४ टंक, जीरा ५ टंक, इड ६ टंक, पोहकर मूल ७ टंक कूट ८ टंक ये सब दवा कपड़छान करिकै सात मासे गर्म पानीके साथ खाय तो अजीर्ण और मूर्छा वायगोला इत्यादिक दूर होयँ. अजीर्णका चूर्ण (अग्निमुख)
हींग, बच, पीपरि, सोंठि अजवाइन, चित्रक, कूट सब दुवा बराबरि ले कपड़छान करिके छः मासे गर्म पानीके साथ खाय तो चारप्रकारका अजीर्ण, प्लीहा, कोढ, खाज, खांसी गोला शूल मन्दाग्नि जायँ कृमि रोगका चूर्ण.
वायविडंग. सेंधानमक, जवाखार, कसीला, हर्र सब बराबर ले कपड़छान करिकै गायकी छाँछमें दो टंक खाय तो कृमिरोग दूर होय.
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(११४)
रसराज महोदधि।
पांडु रोगका इलाज. त्रिकुटा, तज, बेरकी गुठुली, मिर्च, सोनामाखी ये सब दवा बराबरि ले कूट कपड़छान करिके शहदमें ४ टंककी गोली बांधै एक गोली सबेरे छाँछके साथ खाय तो पांडुरोग तथा उदररोग दूर होय.
वातका तीसरा चूर्ण त्रिफला, नागरमोथा. अतीस, कोरैयाकी छाल, सेंधानमक, हींग ये सब दवा बराबर लेकर कूट कपडछान करके छः मासे गरम पानीके साथ खाय तो वातातीसार और पेटकी पीडा दूर होय.
अथ अतीसारकी दवा.. पीपलामूल, गजपीपर, पीपर, बेलगिरी, सोंठि, सल, शिलाजीत, चित्रक, ये सब दवा बराबरले कूट कपड छानकर दो टंक खाय तो आमातीसर व बातातीसार इत्यादिक दूर होय.
पित्तातीसारकी दवा. इन्द्रयव, वेलगिरी, अतीस और धौंके फूल, रसौत, सोंठि, मुलहठी यह सब द्वा पीसकर छानके चूर्ण बनावै जो यह चूर्ण ४ मासे साठीके चावलके साथ खाय तो उदरके सब रोग दूर होय.
। अथ कफातीसारकी दवा. कालानोन, सेंधानोन, हींग, हरैं, वच, अतीस ये सब
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रसराज महोदधि। (१५) दवा बराबर लेकर कूट कपड़छान करके २टंक गर्म. पानीके साथ खाय तो सब तरहका उदररोग दूर हो.
अथ चौहारम चूर्ण. सिहोरके पत्ता एक पैसा भर, बबूरके पत्ता एक पैसा भर, आंवलाके पत्ता एक पैसा भर, तुलसीके दल दो पैसा भर, सबके पत्ता सुखा लेवे फिर जवाखार एक पैसा भर सज्जीखार एक पैसाभर और पांचोंनोन एक २ पैसा भर पीपर डेढ पैसा भर मिर्च डेढ पैसा भर नागरमोथा डेढ पैसा भर ये सब दवा कूट कपड़छान करके छन्भासे चूर्ण पानीके साथ खाय तो हड़ज्वरी, वाय पेटका फूलना, शूल दूर ह्येय भूख लगै. सब प्रकारका उदररोग दूर होय..
अथ सुनबहरीकी दवा. गुडपुराना एक सेर नींबीके पत्ता एक सेर नींबीके फल एक सेर नींबीकी छाल एक सेर ये सब दवा एक घड़ामें भरके आधामन पानी डालके पन्द्रह दिनके पीछे खानेको देखुराक एकतोला.खुरासानी अजवाइन के साथ और तिरसठदिन खाय तो सुनबहरी दूर होय.
अथ सुनबहरीका लेप. काष्टक एक रत्ती ले पानीमें घोरि लेप करे तो सुन बहरी जाय.
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(११६) रसान महोदधि। अथ नार्मद अर्थात् वाजीकर्णका वर्णन.
बाजीर्ण उसको कहते हैं जो पुरुष देखने में मोटा और पुष्ट होय पर नामर्द होय नामद सात प्रकारके होतेहैं उनकी उत्पत्ति लक्षण लिखते हैं. .
(१) लौंडेबाजी तथा हथरस करना, कडुई वस्तु और अधिक खटाई खाना, गर्म नोन खाना इन सब चीजोंको अधिक खानेसे आदमी नामर्द होजातेहैं शोक और क्रोधके करनेसेभी बीर्यका नाश होताहै स्त्री धन पुत्र आदिके नाश होनेसेभी नपुंसक होतेहैं इन्द्री में नख लगनेसे तथा वात पित्त कफके कोपसे इन्द्रीकी नसें सूख जाती हैं वह पुरुष नपुंसक होजाताहै यदि इसका दिल चला और स्त्रीके पास गया तो काम नहीं होता और बुद्धि नष्ट होजाती है बल जातारहता है तब दशों इन्द्रियोंमें राग पैदा होताहै इसलिये इसके वास्ते बहुत अच्छी अजमाई हुई दवाई लिखते हैं.
अथ नामर्दकी दवा, सेंक. हाथी और मछलीके दांत का चूर्ण,चाररतोले,लवंग ८ मासे, जायफल दो नग, जंगली प्याज एक नग ये सब दवा कूट कपड़ छान करके दो पोटरी बनावे तब भेड़का दूध १० तोले लेकर एक हंडीमें भरै और उसको परईसे ढांक मट्टी से ताय आग पर रक्खै, परईके बीचमें एक छोटा छेद करै
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रसराज महोदधि। (११७) तब जो वाफ परईके छेदसे निकले उस पर वह पोटरी रक्खै जब पोटरी गर्म होय तो घंटा जंघा और पेडूतक चार दिन सेंके ऊपर से बँगला पान गर्म कस्के इन्द्री पर बांध और पानी से नहाना त्याग करै.
सेंकके पीछे लेप. सफेद कनेरकी जड, जायफल, अफीम, इलायची गुजराती, सेमरके छिकला ये सब वा छः२मासेलेकर कूटकर कपड़छान करके तिल्लीके १ तोले तेलमें मिलायं गर्म कर तीन दिन इन्द्रीपर लेप करै तो उसकी इन्द्रीमें जरूर जोर होगा पर परहेज ऐसा करना कि जिस तरह मुर्गी अपने अंडेको ४० दिनप्रमाण सेवतीहै.
लेपके ऊपर खानेकी दवा. नामर्द होनेसे आदमीकी धातु फट जाती है सुजाक होजाता है पीब बहने लगताहै ( दवा )मुसरी स्याह,असगंधनगौरी,गुलधवा, चना मूंजा हुआ, वैदरा सोंठि, उटंगन के बीज, गाजर के बीज, पोस्ताके फल, ताल मखाना ये सब दवा एक एक तोलाले और सब दवाके बराबर मिश्री मिलायके एक तोला सवेरे खाय ऊपरसे आधा सेर दूध पीवे. इसके खानेके पीछे दूसरी दवा खानेकी
चिलगोजाके बीज, खसखस, सफेद स्याह मुसरी, कुलंजन, लवंग फुलवाली, सालममिश्री, जावित्री,
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(११८) रसराज महोदधि ।। मोगली तालमखाना, छोटा बीजबन्ध, ब्रह्मदंडी, दालचीनी ये सब दवा चार चार तोले ले और काकंज ९ मासे ये सब दवा कूट कपडछानकरके आधा सेर मधुमें मिलाय दो मासे शाम और दो मासे सबेरे खाय और परहेजसे रहे तो नामर्दी, नपुंसकी जाती रहे और अतुल बल होवे.
सेक दूसरा. बीरबहूटी, केंचुआ सूखा, असगंध नगौरी, जरव चोप, आंवाहलदी, मूंजा चना ये सब दवा छः२ मासे ले कूट कपडछान करके गुलरोगन डारके खल कर दो पोटरी बनावे फिर चूल्हेपर तवा रख मधुरी आंच से १ घंटा सेके चार दिन तक सेके ऊपरसे बँगला पान गर्म करकै बधैि नहाय नहीं.
सेंकके ऊपर लेप. __ अकरकरा दक्षिणी, वीरबहूटी दो २ मासे और लवंग २० नग बकराका गोइत १० तोले ये सब दवा खल कर के इन्द्री की मोटाई प्रमाने एक लकडी लेवे उसमें दवा लगावै जितनी क्डी इन्द्री होउतनी लकडी तक दवा लगावै और उस लकडीकोआग पर सेंकै जब थोड़ा कड़ी होजाय तो लकड़ी परसे ज्योंका त्यों निकाल कर या आधे आध फारके निकाल करवैसेही दवा इन्द्री पर चिपकादेवै और पानीका परहेज रक्खे
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रसराज महोदधि (११९) घीकुवारि योग लेपके ऊपर. ___घीकुवारि का गौझा, गेंहूका आटा, कपासके बीज, शकर, घी ये सब दवा एक २ सेर लेकर दवाकूटै फिर शकरकी चासनी कर उपरोक्त दवा घी में जुदी २ भूज उसी चासनी में छोडदे पीछे ये दवा और मिलावै गोखुरू ५ तोले, पिस्ता ७ तोले,सफेद खोपड़ा ७ तोले, चिलगोजा ७ तोले,येसब कूटके मिलायके योग तय्यार करै तब पांच तोले सबेरे खाय और पीछे आधा सेर दूध पीवै परहेज खट्टा मीठा बचावै.
अथ नामर्दीके दूर करनेका तेल. शेरकी चरबी, मालकांगनी, अकरकरा, वीरवहूटी, सोंठि, जावित्री, जहर कुचिला, दालचीनी, लोहवान कौडिया, लवंग, वच्छनाग, हरताल तबकी, जायफल, जमालगोटा, पारा, हाथी का दांत; गंधक, अँवरासार, भटकटैया, चूंघची सफेद, केचुआ, सफेद कनैरकी जड़, खुरासानी अजवायन, पियाजका बीज, इसबन्द, शंखिया सफेद, रंडी का बीज, कालीजीरी ये सबदवा चार २ तोले और पांच मुर्गीके अंडा की सफेदी मिलाय के अग्नि कांच सीसी में भरके पाताल
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(१२०) रसराज महोदधि । यंत्र से तेल निकाल लेय और ६ मासे प्रमाण ४० दिन इन्द्री पर लेप करै पानीसे न नहाय तो नामर्दी और नपुंसकी दूर होय और स्त्रीभोग की शक्ति होवै.
यह पाताल यंत्र है.
--
इस यंत्रसे तेल निकाला जाता है
१अथ इन्द्रियका लेप. लोहवान अच्छा १० टंक लेकर करौंदाके रसमें खल करै फिर चार तोले धीमें खलकर गोला बनाकर पातालयंत्रसे तेल निकालकर पहले इन्द्रियको हरदी
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रसराज महोदधि। (१२१) से मलै फिर तेलसे मलै तब गरम गरम पानका पत्ता बांधै तो पन्द्रह दिनमें नामर्द मई होय.
२ लेप. समुद्रफेन देवदारु हरदी मुलहठी शहद सब बराबरले गदहाके पेशाबमें घिसि लेप करे तो इन्द्रिय बड़ी होय सही.
इन्द्रियका सेक. नगौरीअसगंध केचुवा बीरबहूटी आंबाहरदी भूजाचना सब बराबर लेकर गुलाबका तेल मिलायके पोटरी बनाकर सेकै तो सब दुःख दूर होय.
१ दवा नामर्दकी. गोखरू तीन टंक स्याहतिल तीन टंक दूनोको कूट कपडछान करके एकसेर दूधमें मिलाकर चुरावै जब खोवा होजावै तब खाय इसी विधिसे इक्कीस तथा बयालीस दिन खाय तो नामर्द मर्द होय.
२ दवा दूसरी. __ अकरकरा एक टंक केसरि दो टंक जायफल ३ टंक लौंग तीन टंक सिंगरिफ छः टंक अफीम दो टंक ये सब चीजें एकमें मिलाय बराबर खल करके मधुमें गोली बांधै चना बराबर शामको एक गोली खाय और ऊपरसे एकसेर औटाया दूध पीवै तौ बंधेज होय.
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(१२२) रसराज महोदधि ।
बंधेजकी गोली. केसरि लौंग जायपत्री जायफल खपरिया अजमोदा माजूफल समुद्र शोष मोटकी जड मस्तंगी कुलंजन अफीम सिंगरिफ बत्सनाग कस्तूरी कपूर सब बराबर लेकर कूटि छान मधुमें गोली बांधकर मटर सम छोटी गोली बनावै और एक गोली शामको खाय ऊपरसे एकसेर औटा दूध पीवै तो बंधेज होय.
१ नामदेकी दवाई. सफेद धुंधुची खिरनीके बीज लौंग सब पाव २ भर लेकर कूटकर सीसीमें भरके पातालीयंत्रसे इसका तेल निकालके एक सींक निकालके पानमें खाय ऊपर एक छटांक घी खाय और दो सींक खाय तो दो छटांक घी खाय तो नामर्द मर्द होय.
२ तथा. तालमखाना ४ तोले और नगद बावची ४ तोले इसबगोल ४ तोले और इमलीका चीया ४ तोले बीजबंध ४ तोले कौंचवीज ४ तोले नागरमोथा ४ तोले बबूलका गोंदटतोले येसब चीजें एकमें मिलायके कूट कपडछान करिके घी ३६ तोले लेकर गुड पुराना अच्छा ३६ तोले लेकर एकमें मिलायके तीन दिनपीछे खाय औ परहेजसे रहैं तो२१दिनमें पुष्टहोय मर्द होय
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रसराज महोदधि। (१२३)
छोहारा पाककी विधि. छोहारा १० टंक पिस्ता ४ टंक जटामासी २५ टंक केवाँचके बीज २५ टंक तेजपत्र २५ टंक नागकेसरि २५ टंक बदाम ४ टंक जायफल २५ टंक दालचीनी २५ टंक केसरि २५ टंक चब २५ टंक सोंठि २५ टंक कमलगट्टा २५ टंक चिरौंजी २५ टंक. जावित्री२५ टंकये सब दवाले कपडछान करके तब ५ सेर दूधका खोवा करके खोवामें अढाई सेर मिश्री और १६ तोले घी डालके तब सब दवा उसमें डारके अच्छी तरहसे मिलाकर अबरख रस लोहारस बंगरस ये रस एक २ तोले लेकर येभी उसी दवामें मिलावै और लड्डू बाँधिके खाय तो पुष्ट होय सौ स्त्रीसे भोग करै बल न घटै.
सोठि पाक विधि. सोठि पाँच सेर लेकर चूर्ण करके गायका घी ५ सेर डालके भंजिले फिर २५ सेर दूध औटावै जब आधा रहजाय तो चूर्ण डालके मिलावै जायफल ८ टंक जावित्री ८ टंक लौंग ८ टंक त्रिफला २० टंक जीरा दोनों १६ टंक मिर्च ८ टंक इलायची ८ टंक नागरमोथा ८ टंक भीमसेनी कपूर ४ मासे छोहारा २० टंक विदारीकंद ८ टंक सतावरी ८ टंक लसोढ़ा
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(१२४) रसराज महोदधि । ८ टंक केसरि ८ टंक दालचीनी ८ टंक सालम मिश्री ८ टंक मस्तंगी ८ टंक वंशलोचन ८ टंक नारियलकी गरी ८ टंक बदामकी गरी ८ टंक चिलगोजे ८ टंक पाषाणभेद ८ टंक ये सब दवा पीसकर मावामें मिलायके रस डाल अबरख रस बंगरस सोनारस चांदीरस एक २ तोले डालके मिलाकर तीन तोले रोज सवेरे साम खाय तो सुन्दररूप होय शरीर शोभायमान होय और शरीरभरेका रोग दूर होय बल अतुल्य होय वीर्य बढे.
असगंध पाक विधि. असगंध ४०तोले सोंठि २० तोले पीपरि १० तोले मिर्च४ तोले दालचीनी ४ तोले इलायची४ तोले तमालपत्र ४ तोले लौंग ४ तोले. ये सब दवा कूट कपड़छान करके दूध २०० तोले चुरावै जबआधा दूध रहिजाय तो मधु १०० तोले मिश्री १२० तोले गायका घी ५० तोले ले चूर्ण में मिलायके अच्छी तरहसे रक्खै और पीपरी जीरा गिलोय लौंग तगर जायफल बाला काला चन्दन खिनी कमलगट्टा धनियां धौकाफूल वंशलोचन अमला कैथ सोंठि कपूर असगंध चीता सतावरी ये सब दवाछः छ-मासे लेकर कपड़छान करके मावामें मिलावै और पाक तय्यार करे सोनारस चांदरिस अवरख रस. तांबास्स हरताल रस सब
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रसराज महोदधि। (१२५) मिलायके खुराक दो तोले या तीन तोले खाय और एक महीना सेवन करै तो खाँसी श्वास दमा बीस परमा अस्सी शूल चौरासी वायु सब रोग हरै. शरीर फूलके समान होय और बल अतुल्य होय. पुष्ट होय. इसका गुण बयान करने योग्य नहीं है.
पुष्टाईका पाक. बडा गोखरू छोटा गोखरू चिरैया कन्द कामराज मुसरी सफेद मुसरी स्याह सेमरका मुसरा तालमखाना पुलमखाना नागौरीअसगंध बीजबंध गुरुच कासत सफेद तुदरी बडी इलायची मिर्च दालचीनी कवचबीज दो २ तोले ले फिर दवा सफेद बहिमन लाल बहिमन मस्तंगी शकाकुल मिश्री सालममिश्री उटंगन सुरियाली तावा खीर तेजबल इमलीका बीज वंसलोचन गुजराती इलायची बेनउरका बीज विहीदाना सब एक २ तोलेले बबूल गोंद पाव भर गरी १ टंक बदाम एक टंक पिस्ता एक टंक छोहारा एक टंक किसमिस एक टंक पी अढाई पाव मिश्री अढाई सेर कै चासनी कर और सब दवा कपडछान करके दवा घीमें भंजिले तो चासनीमें मिलायके लड्डू बांधै एक एक लड्डू खानेको दे और खट्टा मीठा तीता वर्जित रक्खै परहेजसे रहै तो शरीर पुष्ट होय. शरीरका रोग सब दूर होय. गुण इसका बहुत है,
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( १२६ ) रसराज महोदधि । आंवरा पाककी विधि. अच्छा आंवरा दो सेर सुखायके चूर्ण करे और फिर दो सेर आंवराका रस निकालके चूर्ण में सुखायके तब एक सेर मधु एक सेर घी और एक सेर मिश्री मिलायके खाय दो तोले रोज तो सब रोग हरै. पुष्टाई होय बल अतुल्य होय सुबर्णके सरीखा शरीरहोय. नामर्दकी दवाई.
पाराशुद्ध १० मासे चांदीवरक ११ मासे लेकर भंगराज के रस में दो पहर खल करे तब एक तीतल लियावै एकदिन भूखा रक्खै दूसरे दिन दवामें एकतोले गोहूंकी मैदा डालके तीतलको खिलावै तब दिन दोपीछे तीतलको मारिडाले कलिया बनाइके सिकारका मसाला डालके और घीमें तलै मधुरी आँच से चुरावै जब लाल होय जाय तो एक बरतनमेंरखदे और गेहूँ की रोटी के साथ खाय तो तीनदिनमें नामर्द मर्द होय . और सब रोग हरै. १ बीसपरमे की दवाई .
अच्छी उरदी दस सेर लेकै बीस सेर दूधमें सुखाय के झुरावे तब पीसके मैदा बनायके पावभर मैदा आधा पाव घी में भूजै तब एकसेर दूधमें हलुवा बनाकर मिश्री चारितोले इलायची छः मासे लौंगछः मासे
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रसराज महोदधि ।
( १२७ )
बंगरस एक रत्ती ये सब दवा डालके एक महीना खाय तौ बीसपरमा और सब रोग हरै.
२ तथा
आंबाहरदी ४ तोले आंवरा ४ तोले मिश्री 8 तोले ये सब दवाकूट कपडछान करके छः मासे खाय तो सब परमारोग दूर होय. ३ अथसफेदपरमाकी दवाई फिटकरी रस ६ मासे एक पका केलामें खाय बीस दिन तो असाध्यपरमा दूरहोय. ४ अथलालपरमाकी दवाईजसवंती और ककही दोनोंकी पाती आधासेर पानीमें मलिके तीनतोले मिश्री डालके पीवै तो लाल परमारोग दूर होय.
५ अथपीलापरमाकी दवाई
इसबगोल पाव भर सामको भिगाकर सबेरे एक निंबू निचोंवै एक तोले छः मासे मिश्री डालके पीवै तो ग्यारह दिनमें परमा दूरहोय
६ अथ मूत्रियापरमाकी दवाई - सांठीकी जड सतावरी गोखरू खरेटी तामखाना असगंध सब दस दस टंकले मिश्री और सांठीके
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(१२८) रसराज महोदधि। चावलका चूर्ण दस दस टंक और गायके घीक साथ ६ मासे दवाई खाय तो मूत्रपरमा दूर होय...
७परमाकी दवाई नोनिया क्षारकी. हरै १० टंक बहेडा १० टंक आंवरा १० टंक आँबा हरदी १४ टंक माजूफल १० टंक मंजिष्ठ १० टंक ये सब दवा पीस छानकर४ टंक शहदमें रोज खाय तो नोनियां क्षार परमा दूर होय.
८घृत परमाकी दवाई. ग्वार पीस छानकर सात पुटगोभीके रसका देकर चूर्ण करै जितना ग्वारका चूर्ण होय तितनीमिश्री डालके ५ टंक रोज खाय पानी के साथ २१ दिन खाय तो घृतपरमा दूर होय.
९ बीस परमाकी दवाई. लौंग चित्रकूट सफेद चन्दन नागरमोथा खस छोटी इलायची अगर काला वंशलोचन असगंध सतावरि गोखरू जायफल गिलोय निसोत तगर नागकेसरि कमलगट्टा यह सब दवाके बराबर मिश्री मिलाकर तीन टंक सबेरे खाय तो बीसपरमा दूर होय. १० बीस परमाकी चंद्रप्रभाकी गोली.
लोहासार तीन टंक जायफल लौंग जावित्री छोटी इलायची अकरकरा दालचीनी त्रिकूट केसार चित्ता
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रसराज महोदधि। (१२९) असगंध नागौरी सतावरि गोखरू यह सब दवा दो २ तोले ले और मिश्री ५० तोले लेकर सब दवा एकमें खल करके दो टंककी गोलीबांधकर एक गोली सामको और एक गोली सबेरे खाय तो बीसपरमा दूरहोय.
अथ गंधक योग. शुद्धगंधक १ तोले गुरके साथ खाय ऊपरसे दूध पीवै तो बीस परमा अठारा दिनमें दूर होय.
अथ शिलाजित योग. शिलाजित मिश्री दूधके साथ खाय तो सब परमा २१ दिनमें दूर होय.
। अथ अबरख योग. अबरख रस त्रिफला हरदी एकमें मिलाय शहदके साथ खाय तो १५ दिनमें सब परमा जाय.
सल्यपाक. दूधमें संभलकी छाल सोरह तोले चुरावै मधुरीआंचसे इसके पीछे ६४ तोले गुड मिलाकर तब दालचीनी इलायची तालपत्र नागकेसरि लौंग जायफल नागरमोथा. वंसलोचन धनियां सोठि पीपरि मिर्च असगंध. हरै लोहा भस्म सब दो दो तोले लेकर कूट कपड छान करिके उस दवामें डालके पाक तय्याः करके एक तोला रोजीना खाय तो बीस परमा जाये
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(१३०) रसराज महोदधि । वात दोष. हिन. सिररोग वगैरे रोगको दूर करताहै
अथ बवासीरका लक्षण. वात पित्त कफके कोपसे तीनों के मिलनेसे एक खूनी एक बादी पानी मांसवाली होती है औरएक सहज अर्थात् जन्मके साथही उत्पन्न होती है ये ६प्रकार की बवासीर होती है तीनों दोषोंसे त्वचा मांस वा मेदाको दूषित करके गुदा आदि स्थानोंमें मांसके अंकुर उत्पन्न करते हैं बस उन्हीं मांसके अंकुरोंको बवासीर कहते हैं सो गुदही में नहीं कभीरनाक नेत्रलिंग वा तोंदीमें भी मांसके अंकुर वा मसे होजाते हैं.
अथ बादी बवासीरका लक्षण. हाथ पैर गुदा मुख वृषण इतनी जगह शूल होय पसली में शूल हो खाजु पीड़ा बहुत होय गुदा भारी बहुत हो तो बवासीर रोग असाध्य है.
अथ खूनी बवासीरका लक्षण. तृषा अरुचि गुदामें शूल रुधिर चले देह दुर्बल होय अतीसार होय खाजु बहुत होय गुदाके बीच मस्सा होय ये लक्षण खूनीके हैं
अथ बवासीरका इलाज. कलमी मोरा निसौत दोनों एकमें मिलायके खल
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रसराज महोदधि। (१३१) करके चना बराबर गोली बनावै एक सवेरे एक सामको खाय तो सब बवासीरका रोग जाय जो वादी होय तो फोरापर यह गोली घिसिके लगावै तो खूनी वादी दोनों बवासीर दूरहो.
२बवासीरका इलाज. अच्छी सुर्ती अच्छा चूना अच्छा गुड मिलायके अग्निपरदवा रखके बादी बवासीरको धूवां दे तो दूरहोय.
अथ खूनीबवासीरका इलाज. नागकेसरि मिश्री मिलायके बराबर दोनों मक्खन घीके साथ छ-मासे साम मासे सबेरे खाय तो दूर होय.
दवा दूसरी. माखनके साथ काला तिल सबेरे एकतोले खाय तो बवासीर दूर होय.
अथ बवासीरका इलाजसूरनका भरता बनाकर दहीके साथ रोज खाय तो रक्तववासीर दूर होय.
अथ बवासीरकी गोली. लहसुन सज्जी हींग नीबोलीकी गिरी बराबरले पाँचर टंक गुड २० टंक सब दवा एकमें मिलायके तीन
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(१३२) रसराज महोदधि । टंककी गोली बांधकर एक सबेरे एक सामको खाय तोछःप्रकारके बवासीर दूर होय.
२बवासीरकी गोली संखिया ६ मासे अँवरासार गन्धक एक तोला हरताल १ तोला हरै १ तोला यह सब दवा एकमें मिलायके परईमें रखकर दूसरी परईसे ढांपके कपडमिट करके सुखायके चूल्हापर रखकर पन्द्रह मिनिट आंच दे तब उतारकर दो तोले घी तावा पर रखकर दवा डारके घोटै दो पहर तब बाजरा बराबर गोली बांधकर एक गोली नींबूके रसमें बवासीरके मसापर लगावै तो बवासीरकी जड़ टूटै ६ प्रकारका बवासीर दूर होय इस दवाके माफिक दूसरी दवा नहीं और इस दवासे जड़ टूटती है और भगन्दर दूर होताहै.
अथ भगन्दररोगका बयान. ___ गुदाके दो अंगुलकी दूरपर बगलमें एक छोटा फोडा होताहै वह पीडाबहुत करताहै उसके फूटजानेसे भगन्दर होजाताहै वह भगन्दर पांच प्रकारका होताहै.
__ अथ भगन्दरका लक्षण. कसैली व रूखी वस्तुओंके खानेसे वायु अतिकुपित होकर गुदाके निकट एक छोटीसी फोडिया कर
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मराज महोदधि। (१३३) ताहैउसकी अपेक्षा करनेसे वह पकती है व दारुण पीडा करती है फूटनेपर लाल फेना बहने लगताहै और फिर उसमें बहुत घाव होजातेहैं.
अथ भगन्दररोगनाशक लेप. हरदी, आकका दूध,सेंधानोन, चीता,शरपुंखी, मजीठ, कूडा इन सब दवोंको तेलमें सिद्ध करि भगन्दर पर लगावे तो शीघ्र अच्छा होवे.
पुनःलेप. कूट, निसोत, तिल, जमालगोटाकी जड़, पीपल, सेंधानोन, शहद, हल्दी, त्रिफला, तूतिया, मिलाय लेप करनेसे भगन्दरको नाशताहै.
भगन्दर नाशक खानेकी दवा. हर, बहेड़ा, आँवरा, पीपल, शुद्ध गूगुल ले कूटि कपड़ छानकर २ टंक खानेसे भगन्दर रोग जाय.
पुनःदवा. नागकेसार, पोस्ताकी गिरी दोनों दो दो टंक ले काढा कार पीवे तो भगन्दरको शीघ्र नाशै.
अथ आमवातके लक्षण. अंगटूटै, अरुचि होय, तृषा लगे, शरीर भारी हो
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(१३४) रसराज महोदधि । आलस्य आवै, ज्वरहो, अन्न पकै नहीं, अंगों में सूजन हो तो आमवात जानिये.
अथ मिश्रित आमवातके लक्षण. कोपको प्राप्त हुआ जो आमवात वह सब रोगों में कष्टसाध्य होताहै अब उसका दोष लिखते हैं. हाथ, पैर, शिर,गांठ त्रिकस्थान और जांघोंकी संधियों में प्राप्त होकर बिच्छूके डंकके समान पीड़ा करे औ इन्हीं २ स्थानोंमें सोजा हो अग्नि मंद होजावे उत्साह जातारहै, अरुचिहो, शरीर भारी रहै मुखका स्वाद जाता रहै,मूत्र बहुत उतरै,कुक्षिमें कठिन शूल हो नींद नहीं आवै व वमन हो, तृषा अधिकलगै, भ्रम और मूर्छाहो, मल उतरै नहीं, शरीर जड होजाय, आंतें बोला करें, अफारा हो और वातव्याधिके कहे हुए और भी उपद्रव हों और जिस्में पित्त अधिक हो ऐसे आमवातमें दाह और पीलापन हो और बाताधिक आमवातमें शूल हो कफाधिकमें जडता हो शरीर भारी रहै खरज चलै येलक्षण जानो.
अथ आमवातकी दवा. रास्ना देवदारु अमलतास सोंठि मिर्च पीपल अरंडजड़ सांटी गिलोय इन्हों के काढ़ामें सोंठिका कल्क मिलाय पीनेसे आमवात जावै.
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रसराज महोदधि ।
दूसरा काढ़ा. रास्ना, गिलोय, सुंठ, अरंडजड़, इन्होंका काढ़ा बनाय एरंडका तेल मिलाय पीनेसे आमवात जावे.
दारुहरदी,
अथ अजमोदादि चूर्ण.
( १३५ )
अजमोद, बायविडंग, सेंधानोन, देवदारु, चीता, पीपल, पीपलामूल, सौंफ, मिर्च ये सब दवा दश दश मासे, छोटी हर्र ४ । तोले, सुंठि ८ तोले, भिदारा ८ तो सब दवा एकमें मिलाय कूटि चूर्ण करि गरम पानीके संग लेनेसे सूजा हुआ तथा पीड़ा सहित सब तरहका आमबात दूर होय गुड़में गोली बांधिके खाय तो शरीर भरेकी पीडा और सूजन दूर होय अरंडीका योग
अरंडी के बीजोंका तुष दूर करिके दूधमें खीर बनाय खानेसे आमबात दूर होय.
पुनः हरीतकी योग. हरों के चूर्ण में अरंडीका तेल मिलाय पीने से सब तरहका आमवात नाश होय.
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पुनः आमवातका इलाज. त्रिफला, नागरमोथा, कूट, वायविरंग सब दवा बराबरले कूटके चूर्ण कर गिलोयके रसमें एक २ टंक
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.५६) रसराज महोदधि। की गोली बांधकर एक सबरे एक शामको खाय तो कमलवाय आमवात दूर होय.
अथ प्लीहा रोगका इलाज. शुद्ध सिंगिया, शुद्ध सोहागा दोनों अदरखके रस में खल करके बजरीके एक दानाके बराबर खाय तो प्पीहा, वायुगोलादि उदरके सब रोग दूर होय. .
अथ सर्वउदररोग नाशक चूर्ण. हर, बहेडा, आंवरा, मिर्च, पीपरि सोंठि, दोनों जीरा, पांचो नमक, जवाखार, झाऊके पत्ता, फिटकरी, अजवाइन, चिरेता, लौंग ये सब दवा बराबरले कपडछान करके नींबूके रसकी एक पुट देकर छामासे चूर्ण खाय तो सब उदररोग दूर होय.
तथा. हींग, पीपलामल, धनियां, चीत, वच, बडा कचर अमिलतास, पाँचों नमक, सोंठि, मिर्च, पीपरि, सजीखार, जवाखार, अनारकी छाल, जीरा, तुलसी सब बराबर ले कपड़छान करके ६मासे रोज खाय तो सब प्रकारके उदर रोग दूर होय.
अथ स्त्रीरोगका इलाज. स्त्रीको जो खून परता होय तोजीराशंख शद्धलेकर उसमें मिश्री मिलायके छःमासे खाय तो खून बंद होय
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( १३७ )
रसराज महोदधि । वातके प्रदर रोगकी दवासोंचरनोन, जीरा सफेद, जेठी मधु, कमलगट्टा इनका चूर्ण कर शहदके साथ खाय तो प्रदररोग और पित्तको गुण करता है.
सब प्रकारके प्रदररोगका इलाज. मुलहठी अढाई टंक, चौराईकी जड़ का रस दो टंक दोनोंको शहद में मिलाइके पीवै तो सब प्रकारका प्रदर रोग दूर होय. १ स्त्रीधर्म होने का इलाज.
कालातिल, सोंठ, पीपरि, मिर्च, भारंगी, गुड सब दवा बराबर ले काढा बनाय बीस रोज तक पीवै तो सब रोग दूर होयँ, धर्म होय, पुत्रनिश्चय होय.
२ तथा.
विजौरा नींबू के बीज पीसकर जिस गऊके बछवा पैदा हुआ होय उसके दूधके साथ पीवै तो पुत्र होय सही ३ तथा.
नागकेसरि, बछवावाली गायके दूधके साथ पी तो बाँझिनीके पुत्र होय. वेश्यास्त्रीको गर्भ न रहनेका इलाज
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(१३८) रसराज महोदधि।
पीपरि, वायविरंग, सोहागाबराबर पीसकर ऋतुके समय स्त्री ५ दिन जलसे पीवै तो कभी गर्भ न रहै.
२ गर्भ न रहनेका इलाज. पलाशके बीज जरायके राख और हींग दोनोमिलाय दूधमें पीवै तो गर्भ नरहै.
१ गर्भिनीस्त्रीका यत्न. मुलहठी, रक्तचंदन, खश, गौरीशर, कमलगट्टाकी जड, मिश्री ये दवा बराबर लेकर काढ़ा बनाकर पीवै तौ गर्भिनी स्त्रीका ज्वर दूर होय.
२ तथा. धनियांके कल्कमें मिश्री डालके और पुराने चावलका धोवन मिलायके पीवै तो उलटी दूर होय ज्वर दूर होय.
३ तथा. कुशकी जड, कांसकी जड, दूबकी जड, तीनोंका काढ़ाकर पीवै तौ मूत्र उतरै प्रसूत होय.
गर्भिनीस्त्रीका लक्षण. गर्भिनी स्त्री सात महीनाके बाद दस्तावर वस्तु नहीं खावै और डरकी बातों से, भयंकर शब्दसे बचीरहै पर दो महीनाके व्यतीत होते ही पुरुषको त्याग करना चाहिये और अधिक खाना खाने नहीं खराब चीजसे
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रसराज महोदधि। (१३९) बची रहै अजीर्णसे डरती रहै और गर्भिनी स्त्रीको गाली न देवें न मारै और न कोई बातकी त्रास देव जो देवने दगीना व कपडा घरमें दिया होय उनको देना और जिस देवताका दर्शन चाहै सो कराना मनुष्यको चाहिये कि जिस चीजपर गर्भिनीका दिल चलै वही जहां तक बनपरै देना. जो लडका जल्दी न होवे उसकी दवाई.
गायका दूध आधा पाव और पानी पावभर मिलायके स्त्रीको पिलावै तो तुरंत लडका पैदाहोवे कष्ट न होवै तथा चक्रव्यूह कागजपर बनाकर दिखाना चाहिये और कोई चीज सुगंधित सोवरमें न जाना चाहिये.
बालककी दवाई. बालकको कोई रोग होतो खानेकी दवाई एकमासासे ज्यादा न देवै जब बालक चार बरससे ऊपर हो तब दवाई बढ़ाना चाहिये बालक को पी मिश्री शहद मिलाकर पिलावै तो कोई रोग हो दूर हो जो बालक चूंची न पीवै और बारम्बार रोवै तो यह दवा दे सेंधानमक, घी, मिश्री एकमें मिलाकर बालकको देवै तो रोगशांति होवै अथवा पीपल, अतीस, ककडासिंगी, नागरमोथा सब समभागले कपडछानकर
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(980)
रसराज महोदधि ।
मधुके साथ बालकको खानेको देवै तो शरदी, ज्वर, अतीसार, खाँसी सब दूरहों और वंशलोचन शहद के साथ बालकको दे तो खाँसी दूर होय. अथवा मुलहटी, बंशलोचन, धानकी खील, रसवत एकमें मिलाय कूटके कपडछान करके खिलावै तो सब ज्वर दूर होय, और जो दवाई मर्दके हरएक रोगपर दीजाती हैं, वही बालकको देवै ( बालकके पलईका लेप) नारियलकी जटा, आंबाहरदी, दोनोंजीरा ये सब जिन्स समभागले कूट कपड़छान करके घी और पानीडालके चुरावै फिर पतला लेप करै तुर्त अच्छा होवे.
इति श्री मुन्शी भगवान प्रसाद शिष्य भगत भगवानदास विरचित वैद्यक रसराज महोदाधे मध्ये जवारीस, हिन्दी गोली, आनन्द भैरव रस, अजीर्ण कंटक रस, त्रिफलादि क्रिया, राजमृगांक क्रिया, बारहों महीना हर्र खानेकी विधि, सब तरहका मुरब्बा बनाना, जुलाबकी विधि, शिर और कान, आँख, दांत, नाक व खाँसी, दमा, श्वास, उदर रोग, संग्रहनी, अजीर्ण कृमिरोग, पांडुरोग, कातातीसार, सुनबहरी, नामर्दपना, परमा, बवासीर, भगंदर, आमवात, स्त्रीरोग, बालकरोगादि नाशके अनेक प्रकारकी हिक्मत व इलाज वर्णनं नाम चौथा खंड समाप्त ॥
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रसराज महोदधि । अथ पाण्डुरोगका वर्णन. प्रथम पाण्डुरोग पांच प्रकारका उपजैहै जैसे वातको पित्तको कफको सन्निपातको मिट्टीखानेको और खेद करने से खटाई खानेसे दिनके शयन से तीखी वस्तु खानेसे या ये सब वस्तु वनी खानेसे वात पित्त कफके कोप से मनुष्यका लोहू बिगड़के शरीरकी त्वचाको पीली कर देता है शरीर में पीडा और सूजन होय है.
(989)
वातपाण्डुका लक्षण
जिसकी त्वचा, मूत्र, नेत्र रूखे तथा काले वा लाल होयँ और शरीरमें कम्प हो, अफारा हो भ्रमादिक हो; ये लक्षणहों तो बातका पाण्डुरोग जानो. पित्तके पाण्डुका लक्षण
जाके मल मूत्र नेत्र पीले हों, शरीरमें दाह हो, तृषा ज्वर हो; और मल पतला होय; शरीर पीला होय ये लक्षण पाण्डुरोगके जानो.
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कफपाण्डुका लक्षण.
मुखसे थूक निकले, शरीरमें सूजनहो, तन्द्रा हो, आलस्य आवै, शरीर भारीहो, त्वचा, नेत्र, मूत्र सफेद रंग होय तो कफका पाण्डुरोग जानो. अथ सन्निपातपाण्डुका लक्षण - ज्वरहो, अरुचि हो; हिया दूखै; छर्दि होवै; प्यास
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(१४२) रसराज महोदधि । होवै; इन्द्रियोंका बल जाता रहै ऐसे त्रिदोषके पांडु रोगीको त्यागना वैद्योंको योग्यहै. अथ मिट्टी खानेसे उपजे पाण्डुका लक्षण.
वातादिक अलगरकोप करते हैं जसे कसैली मिट्टीके खानेसे वायुकोप करताहै खारीके खानेसे पित्त सफेद मिट्टी खानेसे कफ कुपित होताहै फिर वह खाई हुई मिट्टी पेटमें जैसीकी तैसी रहतीहै और कोप करके तमाम शरीरकी इन्द्रियोंको केश देती है पेटमें कृमि पड़ जाते हैं वात पित्त कफके कोपसे पाण्डुरोग बढे है यही लक्षण पांडुका जानो.
अथ वातपांडुकी दवा. शुद्ध मंडूर २००तोले; लोहेके टुकड़े तिल सरीखे २००तोले; पुराना गुड़ २९२ तोले; जलवेत ८ तोले चीता ८ तोले, पीपल १६ तोले, बायविडंग १६ तोले हड़ ६४ तोले, बहेड़ा ६४ तोले, आमला ६४ तोले, पानी १०२४तोले,इन्होंको बर्तनमें घालि १५दिन तक अन्नके कोठामें धरै पीछे रोगीका बल देखि विचारिके देय तो पांडुको नाशै और कृमि, बवासीर, कुष्ठ, कास श्वास व कफके रोगोंको नाशै व पाँचो प्रकारके पांडरोगको हरै.
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रसराज महोदधि। (१४३)
अथ पित्त पांडुकी दवा. आँवराका रस १०२४ तोले मन्द मन्द अग्निसे चुरावै फिर ये दवा डारै पिपली ६४ तोले, मुलहठी ८ तोले, मुनका ६४ तोले, सुंठि ८ तोले, वंशलोचन ८ तोले, खाँड़ २०० तोले, शहद ६४ तोले सब मिलाय खानेसे पांडुरोगको नाशै जैसे हाथीको शेर नाशै.
अथ कफपांडुकी दवा. दशमूल, सुंठ इन्होंका काढ़ा करि पीने से पांडुको नाशै ज्वर अतीसार सूजन संग्रहणी कास अरुचि व कंठके रोगोंको किन्तु सब रोगोंको दूरकरै.
पुनः मंडूरलवण. लोहेके कीटको अग्निमें लाल करिके गोमूत्रमें बीसबार बुझावै फिर सेंधानोन मिलाय खल करै तब बहेड़ाके रसमें पांच दिन घोटै तत्पश्चात् रोगीका बल देखिके तक्रके संग खानेकोदे पांडुरोग दूर होय.
अथ सन्निपातपांडुकी दवा. हड़ १ भाग, बहेडा १ भाग, आमला भाग,संठ भाग, मिर्च १ भाग, पीपल १ भाग, चीता १ भाग, वायविडंग १ भाग, शिलाजीत ५ भाग, चांदी का भस्म ५ भाग, मंडूर ५ भाग, लोहा भस्म ८ भाग,
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( १४४ ) रसराज महोदधि ।
सोनामाखी ८ भाग, इन्होंको कूटि चूर्ण करि शहद मिलाय लोहाके बर्त्तनमें घालि धेरै पीछे १तोले रोज खावै अनिका बल देखिकै और परहेजसे रहे तो पांडु रोग, विष, कास, श्वास, क्षयी, राजयक्ष्मा विषमज्वर, पेटके रोग, प्रमेह, सूजन, अरुचि, मृगीरोग इत्यादि शरीर भरेके रोगोंको नाशै. पुनः पांडुकी दवा.
सोंठ, मिर्च, पिपली, हड़, बहेड़ा, आंवला, नागरमोथा, वायविडंग, चीता ये सब दवा समभाग ले और लोहचूर्ण ८ भागले इन्होंको कूटि चूर्ण करि घृत शहमें मिलाय खानेसे असाध्य पांडुरोगको नाशै और सब शरीर भरेके रोग दूर होय. पांडुनाशक अमृतहरीतकी
सतावरि २८ तोले, भृंगराज २८ तोले, सोंठि २८ तोले, कुरंटक २८ तोले, इन्होंको चूर्ण करि ४४८ तोले पानीमें चुरावै जब २८ तोले रहै तब कपड़ामें छानि पीछे हड़ १४४० तोले, दूध१२० तोले मिलाय पकावै पीछे हडौंको चीरिके बीज निकालि दूर करे फिर पारा गन्धकका रस बनाय पीछे गिलोयका चूर्ण २८ तोले शहद में मिलाय गोली १४६० नग बांधै
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रसराज महोदधि। (१४५) पीछे एक एक गोली एक एक हडमें भर सूतसे बांधि शहदमें डारि बर्तनमें घालि धरै फिर एक गोली रोज खाय तो पांडरोग नाश होय और सम्पूर्ण रोगोंकोहरे, शरीरकी रक्षा करै.इस दवाका गुण लिखनेयोग्य नहीं.
१ गजकर्णकी दवाई. फिटकरी, मुर्दाशंख, मैनशिल, माजूफल, पलाशपापडी येसब दवा समभागले कूट कपड़छान करनींबू केरसमें खल करके गजकर्ण पर लगावै तो अच्छा होय.
२ तथा. सफेद चन्दनका चूरण एक तोला, आंवरासार गंधक एक तोला,जराया हुआ नीलाथोथा आधा तोला मैनशिल आधा तोला, कलमी सोरा आधा तोला चौकिया सोहागा एक तोला, बनारसी राई आठ तोला सब कपडछान करके नीबूके रसमें एक दिन खल करै तो दाद, खुजली, गजकर्ण इत्यादि रोग दूर होय.
फोरी फोरा नाशक मलहम. __ संगजराव दो तोले, सिंदूर दो तोले, मुर्दाशंख चार तोले, रक्तबोल चार तोले, गूगल दो तोले सब कूटके तिलका तेल दो तोले, घी चार तोले सबएक में मिलाकर अंगारपर रखके मलहम तय्यार करले सब जखमोंको दूर करै.
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(१४६) रसराज महोदधि ।
२ मलहम. राल दो तोले, कपूर दो तोले, नीलाथोथाकी भस्म एक तोला, मोम दो तोले, सेंदुर एक तोला, केवला एक तोला, सफेदा एकतोला,सब कपडछान करके धीमें मिलाकर मलहम तय्यार करै इससे असाध्य भी जख्म अच्छा होवे और सब तरहका फोरा फोरी अच्छा होवे.
सबददैपर लेप. आंबा हरदी दो तोला, पियाज दो तोला, शहद दो तोला, चूना एक तोला, गुड एक तोला, तीसीकाचूरण दोतोला, सबवा एकमेंमिलाकर गर्मकरके जहांदर्दहोय तहां लगावै और ऊपरसे रुई लिपटावै सब दर्द दूरहोय.
पेटकी पीड़ाका लेप.. दोनों जीरा, बबूना, आंबाहरदी, रेंडीका तेल, ये सब मिलाकर गेंहूकी रोटी बनायके उसपर दवाई लगाके गर्म करके दुर्दपर लगावै तो अच्छा होय.
असाध्य रोगियोंकी छातीपर
। कफ रहनेका लेप. बनारसी राई, आंवाहरदी, महुआके फूल सब बराबर लेकर चुराय छाती पर लेप करे.
खांसीदमा नाशकवटी. बदामका तेल नवमासे, मधु तीन तोला, तीसीकी मैदा आठ तोला ये सब मिलाकर खावेखुराक छ मासे.
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रसराज महोदधि। (१४७)
तेल बनानेकी विधि. मदार, धतर, थहर, सेहंड, मेहँदी, अडसकी पत्ती एरंडकी जड, मेवडीको पत्ती, सहिजन सबका रस पाव पावभर, सोंठि, पीपल, रसवत, अजमोदा, कुलिंजन, कलियारी, सोवा, पीपलामूल, चिरैता, सब दो दो तोला ले मेथी बारह तोला लहसुन बीस तोला इन सब दवाइयोंका तीनसेर पानीमें जोशदे जब आधा पानी रहै उपरोक्त रस डारिके तिलका तेल आधा खेर, कडू तेल एक सेर, रेडीका तेल आधासेर सब अर्क डालके मधुरी आंचसे चुरावै जब पानीजल जाय तब बीस भेलावां छोडै जब भेलावां भीजल जाय तब तेल ठंढाकर सीसीमें रखदे बात, जोडा, साना, गठिया इत्यादि सब तरहका दर्द मालिश करनेसे जाय.
अथ जीवनारायण तेल. दस सेर तिलका तेल, दस सेर कडू तेल, दससेर बकरीका दूध, दुस सेर गायका दूध, शतावरीका रस दससेर, हड, आँवला, गिलोय, बेलका मगज, दोनों गोखरू, भटकटइआ, जीवंती, मुलहठी, दोनों अरंड, महामुंडी, मुंडी, जायफल, निसवत्त,इंद्रायन, चिरायता नीम, बकाइन, मैनफल, सम्भालू, परियारी, रासना, सहिजन, गदापुरैना, मेडुकी गुलसकरी, फफई, गंधपसारन, असगंध, कटसरैया, कुश, करंज, खैर, चन्दन, वच, विजैसार, रेड, वरुना, दोनो अलय, बच बड़ी,
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(१४८) रसराज महोदधि। कुटकी, दोनों सिरसा, चिंचिरी, रूस, हैंस, जामुन, कचनार,कैथा, किरवारा, दूधिया, विधारा, दरिमा, निर्गुडी, जसापुरैया, पुष्करमूल, तज, पीपल गजहर्ण, गूलार, नागफणी, घीकुवारी, चम्बेली, खस, बेरी, कुलथी, केवाँच, मन्दार, गुर्च, सेहुड, केतकी कलियारी, पलास, चितावरि, बड, पाकरि, टेकारि मुसली, हंसपदी, थूहर, धतूर, दात्यून, असगंध ये सब दोदो तोले ले सब चीजमें दो मन पानी छोडकर चुरावै जब एकमन पानी रहजाय तब दूध तेल डारिके सब एकमें चुरावै जब तेल मात्र रहजाय तब सीसीमें उठायके रक्खै इस तेलके मालिश से शरीरके सर्व रोग दूर होय इसका गुण अपारहै वर्णने योग्य नहीं है.
१ अंडकोषसूझेका इलाज. वायविडंग, कुन्दर, पुरानी ईट, तीन तीन तोले लेकर कपड़छान करके चारमासे घीके साथ खाय जो पहले उलटी हो तो अंड अपनी जगहपर चला जाय.
२इलाज. दूध और रेंडीका तेल मिलाके कुछ दिन पियै तो असाध्य अंडकोष दूर होय. अथवा पलाश व जमीकन्दका चूर्ण करके इक्कीसदिन खाय तो अंडकोष दूर होय. अथवा आंबाहरदी, रेंडीकी जड, व फल व तेल मेथी, चारों दवा बराबर लेकर गर्म करके लेप करै तो अंडकोष अच्छा होय.
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रसराज महोदधि । ३. इलाज - लेप. टेसू के फूल, आंबा हरदी, खुरासानी अजवाइन तीनों बराबर ले पीसे फिर गर्मकर लेप करे तो अंडकोष जाय. अथवा असगन्ध, जसवंतीकी पत्ती, रेंडीका मगज तीनों कूट करके गर्मकर लेप करे तो अंडकोष जाय. अब एक तंत्र लिखते हैं जिससे अंडकोष दूर होय. अथ अंडकोषनाशक तंत्रकी बिधि
जिस मनुष्यका अंड बाई ओरका फूला होय दाहिनी ओरकी गुट्टी चार अंगुल नीचे एक रस्सी बांध, इक्कीस रोजके भीतर पैर में गुट्टीके नीचे एक नस निकलेगी उस नसको अग्निमुखीके तेलसे दागे दूसरे दिन वह नस सूज आवेगी तब उसपर थोड़ा धी लगा. यदे फिर वहाँसे पानी निकलना आपही आप शुरू होगा. फिर उस नसपर खोपड़ा जरायके लगावै तो अच्छी होय. असाध्य रोग या बीस वर्षसे ऊपरका हो तोभी अच्छा होय पर प्रथम चार मासे बूकके खानेको देवै. अथ साँपके काटेकी दवाई.
सफेदमिर्च, सफेद मंदार की भस्म, नीलाथोथा ये तीनों बराबर खल करके मासेरभरकी गोलीबांधै फिर पानी के साथ एक गोली खानेको देवे तो जहरदूर होय. सांप काटेका नास. कच्चा नीलाथोथा. आककी जड दोनों बराबर लेकर
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( १४९ )
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(१५०) रसराज महोदधि । चूर्ण करके नाकमें छाछः मासे भरै फिर एक फूकनी लेकर फूंकै तो तुर्त छाँट होय आध घंटेम वह आदमी अच्छा होय.अथवा जमालगोटा शुद्ध मटर बरावर खिलावै तो जहर दूर होय. अथवा कसौंजीकी जड पीसकर पिलावै और कसौंजीके बीज घिसके आँखोंमें लगावै व पियाज खिलावै तो जहर दूर होय. अथवा एक चूहा मारके उसका पेट फाड जहाँ साँपने काटा होय वहां रखदे तो जहर दूर ोय.
बिच्छूके काटनेकी दवाई. अधझडाका रस जहां विच्छ डंक मारे वहां घसिके लगावै फिर उसकी अढाई पत्ती गुरमें मिलायके खाय तो जहर दूर होय. अथवा नौसादर कलीका चूना, सोहागा एकमें मलके सुचै तो जहर दूर होय. अथवा इन्द्रायनकी जड़, जायफल, हरताल दोनों घसके लमावे तो जहर दूर होय..
अथ बाक्ले कुत्तेके काटनेकी दवाई.
दोनों जीरा, कालीमिर्च पीसके एक महीना तक पिलावै तो सब जहर दूर होय. अथवा पियाज कूटके शहदके साथ लेप करे तो जहर दूर होय.जो अंगपर बडे बडे चट्टा, कोढके समान परजावै तो आंवलासार गंधक छ:मासे, जमालगोटा छःमासे, नीलाथोथा छः मासे तीनोंको बूकके लोनी घामें डालके तांबके बर्तन में एकसै एक दफे पानीसे धोवै तब सब शरीरमें लेप
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रसराज महोदधि। (१५१) करके एकप्रहर अनिमें तापै आंखकान यानी गलेकेऊपर न लगावै और तापनेसे शरीरमें बजरीसे दाने सब जगह परजायँ तो दूसरे दिन गोबरसे धोय डालै नीरोग्य होय. अथ नोकरससाना असाध्यरोगकी दवा.
साम्पुरोमी सात मासे, जीरा करमनी सात मासे, सफेद मिर्च सात मासे, छोटी पिपरी सात मासे, बैरका मगज सातमासे, दालचीनी मोटी साडेतीन मासे, सोंठि चौदह मासे,फरफीऊन चौदह मासे,रुमीमस्तंगी पौनेदो तोले,सुरंजन जंगली जिसको सिंघारा भी कहते हैं पांच तोले सबका चूरण करि साम्युके रसमें गोली बांधे सात मासे जीराके अर्कके साथ खाना बहुत गुणकारकहै.
१ महजूमसांदेकी. सुरंजन तीनतोले, सनायकै पत्ती १७ मासे, तगर सात मासे,सोठि७मासे, जीरा करमनीमासे, पीपरी मासे सब दवा कूट कपडछान करके दुवाके बराबरमधु लेके एकमें मिला महजूम तय्यार करै खुराक नौ मासे गर्म पानीके साथ खाय तो सबप्रकारका दर्द दूर होय.
२ महजूम. केसरि, अकरकरा, अजवाइन खुरासानी,फरफिऊन, कुलिंजन, इलायची क्डी,पीपस,सब दवाले कपडछान करिके मधुमें मिलाकरके महजूम तय्यार करै खुराक ६मासे मनीको बढ़ाताहै सुस्ती को दूरकरताहै शरीरको मजबूत करताहै. सब तरह के मरजको दूर करताहै.
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(१५२) रसराज महोदधि ।
बंधेजकी दवा. अफीम, मिश्री, जायफल, लौंग, कस्तूरी, केसरि कालीमिर्च, संठ, तज सब दवा कटि कपडछान करिके मधुमें खल कर पौने दो मासेकी गोली बाँधै खुराक एक गोली शामको एक सबेरे खाय तो पन्द्रह दिनके पीछे शरीर पुष्ट होय बंधेज होवे सही.. गर्मा-उपदंश तीन दिनमें अच्छी
करनेकी दवा. भंगराज छः तोले मिर्ची दो तोले मिलाके खलमें एक दिन खल करै फिर जंगली बैर बराबर गोली बांधे एक गोली सांझ और एक गोली सबेरे खाय तो सब तरहकी फिरंगवायु उपदंश गर्मी दूर होय.
तिजारीकी दवा. नीबीकी अढाई पत्ती गुडके साथ खाय तो ताप नाहरू, तिजारी दाह दूर होय.
सबै रोगनाशक दवा. सोंठि, सोहागा, सिंगरिफ, सेंधानमक, वायविरंग हरदी, मिर्च, हींग, चित्रक जमालगोटा ये सब दवा सम भागले कूट कपड़छान करिके दो रत्तीके बराबर गोली बांध एक शाम और एक सबेरे ठंढे पानीके साथ खाय तौ कफ, खांसी, चौरासी प्रकारकी बायु पन्द्रह दिनमें जाय औ सब रोग दूर होय.
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रसराज महोदधि। (१५३)
हूकका इलाज. चनाका खार एक मटर भरि और चार चना भार गुडले एकमें मिलाके शामको खाय तो सवेरे चंगाहोय.
सब प्रकारका ज्वरनाशक चूर्ण. नीबीकी जड़, फल, फूल, पत्ती तथा छाल बारह टंक, सोंठि नौटंक, मिर्च तीनटंक, पीपरी तीन टंक, त्रिफला नौटंक, सोचर नमक तीनटंक, अजवाइन तीन टंक, जवाखार तीन टंक, ये सब दवा कूट कपडछान करिकै दो टंक गरमपानीके साथ खाय तो शीतज्वर,नित्यज्वर,दाहज्वर,एकान्तरा, बेला,तिजारी, चौथियावर इत्यादि सब प्रकारके ज्वर नाश हों.
तिजारीज्वरनाशक काढ़ा. छड, नागरमोथा, केसरि, कुटकी, पटोलपत्र, ये सब दवा बराबरले काढ़ा बनायकर पीवै तो ज्वर जाय,
चौथिया ज्वरका काढ़ा अरुसकी जड,आंवला,सोंठि,देवदारुये सब दवा सम भागले काढ़ा बनायके पीवै तौ चौथिया ज्वर दूर होय.
२ तथा. लालचंदन, सौंठि, चिरैता, कुटकी, नागरमोथा गिलोय,आंवला सब बराबर लेकर, काढ़ा करके पीवे तौ चौथियावर दूर होय.
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(१५४) रसराज महोदधि।
रोग दोष दूर होनेका उपाय: आक अरंडी फूलमँगावे । पुनितापर सेंदूरलगावे॥ गूगुल धूप देय अति चायन । मंत्रराज यह करिकै गायन ॥ ॐ श्रीं ह्रीं फट्स्वाहा ॥ रोगी के शिरसे उतार करिके बाँयें कोनमें गाडै तो संपूर्ण रोग दोष मिटजा.
घावके झारनेका मंत्र. राम मारे पेढुकी, लछिमन ओढे घाव ।
फूलै औ न पाकै दरै मूखि जाव ॥ अथ मंत्र वा घिनहीं जहरबात थन
इलगोहिया का इलाज. चौ०-लंका के दानव पलंकाके पूत अंजनीके पूत नरक हवा झारै अंजनी के पूत बेरखा झारै अंजनीके प्रत घिनही झारै अंजनीके पूत जहरवात झारै अंजनी केपूत थनइल झारै अंजनीके पूत गोहिया झारै नाचत आवै नाचत जाय खेलत खात पखंडे जाय पिंडकी सामननी हंक डंकनी आलीम सालीम दुख रचाहा हो जाय राम लछिमन तीनो भाय बेरवाके पानमें खाय राम लछिमन तीनो भाय धृक चं नरक हवा झारै.धृक चं जहर बात झारै धृकच थनइल झारै धृकचं गोहिया झारै हमरे झारे लेइ झुरि जाय.
कानका मंत्र आसमीन न गोट वन्ही कर्म हीन न जायते दोहाई
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रसराज महोदधि ।
( १५५ )
महावीरकी जो रहै कान पीरकी अजनी पुत्र कुमारी वायें पुत्र महाबलको मारि ब्रह्मचारि हनुमंताई नमो नमो दोहाई महावीरकी जो रहै पीर मुंडकी. प्रेतका मंत्र
तुममाया मोहिता सर्वे ब्रह्मा त्रिपुरैकसः तुमजानंगतः देवी प्रचंड त्रिशूलधारिणी ।। साकला होम करै भूतदूरहो. सनाय खानेकी विधि. शहदके साथ सनाय जो कोई खावै. बल होय अतुल्य जो नव मासा पावै. सक्करके साथ सनाय जो खावै. छाती को दर्द और सुस्ती मिटावै. गुलकंदके साथ सनाय जो खावै. शर्दी सब दूर हो खाना बहुत खावै. मिश्रीके साथ सनाय जो खावै. तमाम बदनमें ताकत दिखावै. गाय के घीके साथ सनाय जो खावै. कोई दर्द नहीं सदा खुश होवै. asiके साथ सनाय जो खावै. जहर खाया होवे सभी दूर होवै. चोपचीन के साथ सनाय जो चालिस दिन खावै. आंखोंकी रोशनी सदा बढावै. आधा तोला सनाय पानी से जो खावै.
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(३५६) स्सराज महोदधि। हमेशातन्दुरुस्त रहै रोग कभीना पावै. गायके दूधके साथ सनाय नो खावै. नवा खून पैदा करै गलीजको नशावै. बकरीके दूधके साथ सनाय जो खावै. तीसदिनामें अतिसुख पावै. हरिनीके दूधके साथ सनाय जो खावै. नामर्द मर्द होवै बल अतुल्य होवै. अगर ऊंटके दूधके साथ सनाय जो खावै. खुशीरहै हमेशा कलेश ना पावै. छोहाराके साथ सनाय जो खावै. मुँह दाँतकी दुर्गध तुरत हटावै. अनारके शरबतके साथ सनाय जो खावै. छातीके रोग दूर और उदरसाफ होवै. अगर भंगराके रसके साथ सनाय जो खावै. जवानी रहै सदा बाल सफेद न होवै. इमलीके रसके साथ सनाय जो खावै. छातीका कफ और कब्जियत नशावै. अदरखके रसके साथ सनाय जो खावे. जीरनज्वर सन्निपातको मिटावै.. गर्म पानीके साथ सनाय जो खावै. कान शिर और नाकका दर्द तुरत हटावै ककरीके बीजके रसके साथ सनाय जो खावै.
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रसराज महोदधि ।
इन्द्र की पथरीको तुरत हटावे. इसका गुण बहुत कहांतक वरणन कर बतावै. जो से तो रोग कभी नहिं पावै. चला नादान भगवान दास कहावै. फारसीको उल्थाकर हिन्दी बनावे. अथ पारेका सिद्ध गुटका. पारा दोतोले, संग्रासिक चार तोले, नमक दो तोले, जामुनका सिरका तीनसेर यह सब लेकरके पहिले तवापर आधा नमक रक्खै फिर पारा रक्खै फिर पारे को नमकसे ढांप देवै और सवाके नीचे अनि जावै ऊपरसे सिरका छोडै कलछुलीसे चलाता जावै सिरका छोडता जावै जबतक मसका न होवे तब तक अग्नि जराता और सिरका छोडता जावै जब मसका हो जावै तो मोटे कपड़े में रखकर पोटरी बांधिके गारै जो कपड़ेमें पारा रहजाय उसको साफ कर ऐसा धोवै कि सूर्यकीसी ज्योति होवै तब गोली बांधिके धतूरेके तेल में दोदिन रक्खै फिर नींबू के रसमें दोदिन रक्खै फिर पोस्ताके रसमें दोदिन रक्खै फिर निकाल करके जसवंतीके पत्ताके रससे धोकर साफ करले इस गोलीको जो दहिने भुजापर बांधै तो वो मनुष्य देवताओंके सदृश होवै गोली दिवाली या होलीके रोज बनावै अथवा शुद्ध होकर ग्रहण लगनेपर बनावे.
( १५७ )
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(१५८) रसराज महोदधि ।
अथ केशजमनेका इलाज. खरबूजेके बिया; अंडाकी जर्दी ३० जैतून तेजपत्ता; मोरद लोहचूर्ण ये सब दवा बराबरले कूटकरके मलहमकी तरह बनाकर लगावे तो जिस जगह केश न होय उस जगह १५ रोजमें केश जमैं सही.
चित्रकादि चूर्ण. चित्ता; पीपलामूल; पीपरि; गजपीपरि ये सब दवा बरावर ले कूट कपडछान करके शहदके साथ छ:मासे खाय तो खांसी दूर होय. .
हरीतक्यादि चूर्ण. हर्र,बहेडा,लोहारस.सब दवाबराबरले कूट कपड़ छान करके छःमासाखाय तो सब प्रकारके वात रोग दूर होय.
पंचवाटिकादि चूर्ण पाँचो नमक दो तोले, कलमीसोरा दो तोले, नौसादर दोतोले,पीपरि दो तोले, मिर्च दो तोले,ये सब दवा कूट चूर्ण बनाय छःमासा खाय तो उदररोग दूर होय.
हिंगाष्टकादि चूर्ण. सोंठि एक तोला, भुंजा सोहागा एक तोला, बड़ी हर्र एकतोला, सेंधानमक एक तोला, हींग एक तोला, ये सब दवा कूट कपडछान करिके सहिंजनेके पत्तोंके रसमें खल करिके जंगली बेरके बराबर गोली बाँधै एक गोली सबेरे एक शामको खाय तो भूख लगै सब प्रकारके उदर रोग दूर होय.
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रसराज महोदधि। (१५९)
दशमूलासव. दशमूल २० तोला, पुस्करमूल १०० तोला हडै ८० तोला, आंवरा १२८ तोला, चित्र १०० तोला, धमासा५० तोला,गुरुची ४०० तोला, विसाला २० तोला, खरसार ३२ तोला, विजौरा १६ तोला, मंजिष्ट ४ तोला,मुलहटी ४ तोला,वायविडंग ४ तोला, चवक ४ तोला, लोध ४ तोला, जीवक ४ तोला, ऋषभक ४ तोला, मैदा ४ तोला, महामोद ४ तोला, ऋद्धि ४ तोला, वृद्धि ४ तोला, कंकोल ४ तोला, क्षीरकाकोली ४ तोला, पीपरि ४ तोला, जीरा ४ तोला, गजपीपरि ४ तोला, चीकनी ४ तोला पद्माख ४ तोला, कचूर ४ तोला, एला ४ तोला हर्र काबुली ४ तोला, जटामासी ४ तोला, पित्तपापडा ४ तोला, नागकेसरि ४ तोला, निसोत ४ तोला, हरदी ४ तोला, रास्ना ४ तोला, मेढासींगी ४ तोला, सोठि ४ तोला, सतावरि ४ तोला, इन्द्रयव ४तोला, नागरमोथा ४ तोला,सब दवाका चौगुने पानीमें काढ़ा बनावै जब पानी आधा रहै तो पीछे दाख २४० तोला, धौके फूल १२० तोला, गुड १६ तोला, शहद १२८ तोला मिलायके पीके चीकने बरतनमें रखदे पहले जटामासी मिर्ची दोनोंके चूर्णका धूप देवै पीछे पीपरि ८ तोला, चन्दन ८ तोला, बाला ८ तोला, जायफल ८ तोला, लौंग ८ तोला, दालचीनी - तोला, इलायची ८ तोला,
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Acharya
(१६०) रसराज महोदधि । तमालपत्र ८ तोला, नागकेसरि ८ तोला, कस्तूरी १ तोला, धत्तूरबीज ४ तोला, सब दुवा घडामें डारिके मुँह बंद करिके जमीनमें गाड़दे १५ दिनके पीछे रोगीका बल विचार देखिके खानेको देय तो धातु क्षय पाँच प्रकारके साँस छःप्रकारकी बवासीर ८ प्रकारका उदर रोग, बोस प्रकारका परमा, महान्याधि, अरुचि पांडु सब प्रकारके वातरोग, शूल, शर्दी, रक्तप्रदर अठारह प्रकारके कुष्ठ रोग, मूत्र शकरा, मूत्रकृच्छू इन सब रोगोंको दूर करताहै और बाँझको पुत्र देवाहै. शरीरको पुष्ट और निरोग करताहै.
गूगुल योग. गिलोय ५६टंक, गूगुल १२८टंक त्रिफला २००टक, इस औषधको तिगुना पानी डारिके चुरावै जब तीन भागजारजाय एक भाग पानी रहिजाय तब छानिले फिर दात्यून, कूट, त्रिफला,वायविडंग तज गिलोय निसोत ये सब दवा ४ चार टंक लेकर चूर्ण करके आगके काढ़ामें मिलादे खुराक तीन टंक तो वातरक्त, दुष्टवर्ण, परमा, भगंदर, आमवात इत्यादि सब रोगदूर होय.
. अथ गूगलंकिशोर. शुद्ध भैंसागूगुल एक सेर, एक मन पानीमें चुरावै पीछे हर्र एक सेर, बहेड़ा एकसेर, आंवला एक सेर गुरुची १६ तोलाडारिकेचुरावै जब आधारहिजाय तब छान पाराअढाई टंक,गंधक अढाई टंक,वायविरंग अढाई
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रसराज महोदधि। (१६१) टंक,निसोत अढाई टंक,गुरुच अढाई टंक दात्यूनी अढाई टंक, पहले पारा गंधककी कजरी करैतब दवा कूट कपड छान करिके सब दवा एकमें मिलादे खुराक ८मासा सबेरे खाय तो आमवात और वातरोग इत्यादि दूरहोय. १ दवा हैजाकी बीमारीको तुर्त शांत करै. मिर्च एकमासे,अरहरके पत्ता एक तोले लेके खूब घोटै फिर पावभर पानी डालके पिलावै तो तुर्त हैजामिटै.
२ तथाआककी जडको अदरखके रसमें खल करै फिर मिर्च बराबर गोली बांध एक गोली पानीके साथ खिलावै तो हैजा जावै. ३ तथा.
विजौरा नींबूके पंद्रह बीज दोतोला पानीके साथ मिश्री डालके पिलावै तो तुर्त अच्छा होय.
हुचकीकी पहली दवाई.. कलौंजी ३ मासा चूर्ण करके माखनमें खाय तो अच्छा होय. तथा.
काला उर्द चिलमपर रखके तंबाकूके समान पीवै तो अच्छा होवै.
पीपलका चूर्ण. एक सेर पीपल, दो सेर दूधमें चुरावै, जब दूध जल जाय तो पीपलको सुखायके चूर्ण करिके चौदह मासे
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(१६२) रसराज महोदधि । पूर्ण और छः तोला मिश्री डेढ पाव दूध डालके दर रोजपीवै तो नामर्दपन मिटै वीर्य बढे.
पीपलकी गोली. अस्पंद, कपूर, बीजाबोल, अजवाइन सब कूटके अदरखके रसमें चना प्रमाण गोली बनावै एक गोली खाकर दूध पीवै तो बहुत जोर होय.
हडौंकी जवारिस. ' ह. बारह तोले, सनाय बारहतोले, हडै धीमें चुराय कूटकपडछानकारक मधुमामलायक जवारिस तय्यार करै फिर नव मासे खानेको देवे आंखोंकी गर्मीको दूर करता अन्नको पचाता और सवरोगोंको फायदा देताहै.
मिचोदि चूर्ण. मिर्च सोठि पांचो नमक मिलाकर कपड़छान करके सवेरे फंकी मारै तो कब्जियत दूर होय. यह बात रोगको बहुत फायदा करती है.
सुंठ्यादि चूर्ण. सोंठि.मिर्च, पीपल, तज, तेजपात, इलायची,लवंग, जायफल, वंशलोचन,कचूर, बावची, अनारदाना, सब बराबर लेकर कूट कपड़छान करके सब चूर्णके बराबर लोहरस लेवे और लोहारसके बराबर मिश्री मिलायके छः मासे रोज सबेरे खाय ऊपरसे बकरीका दूध पीवै तो राजरोग, मन्दाग्नि, बीसों परमा दूरहोय अत्यंत पुष्टहोय
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रसराज महोदधि। (१६३) इति श्रीमुन्शी भगवान प्रसाद शिष्य भगत भगवानदास विरचित वैद्यक रसराज महोदधि मध्ये गजकर्णकी दवा, मलहम, लेप, तेल बनानेकी विधि. खाँसी, दमा और अंडकोष सूजनेका इलाज, साँप काटेकी दवा, बिच्छूकी दवा, बावले कुत्ता काटनेकी दवा, सांदेकी दवा, महजूम, बन्धेजकी दवा, गर्मी तिजारीकी दवा, सब रोगोंकी दवा, हूककी दवा, सर्व ज्वरका चूर्ण और चौथिया तिजारीकी दवा, अति उपयोगी मंत्र यंत्र प्रयोगादि और वावका मंत्र,कानका मंत्र, प्रेतकामंत्र, और नर्कहवा वेरवा पिनहीं जहरवात थनइलका एकमंत्र सनाय खानेकी उनइस विधि पारेका शिद्ध गुटिका, चूर्ण, गोली, दशमूल गूगुलयोग, गूगुल किशोर सब रोगोंकी दवाई व सबके बनानेका सहल २ उपाय वर्णनं नामपंचमो खंड सम्पूर्णम् ॥५॥
अथ कुष्ठ रोग वर्णन. गुरूकी स्त्रीके संग तथा गौके संग तथा गोत्र की स्त्रीके संग मैथुन करनेसे कुष्ठ होवै अथवा विरुद्ध भोजन करनेसे, अजीर्णमें भोजन करनेसे, पतली चीकनी भारी वस्तुके खानेसे, मल मूत्र रोकनेसे, मछली और दूध के एकही संग खानेसे, शीतल गरम एकही संग खाने से ब्राह्मण गुरू माता पिता इन्होंका आदर न करनेसे कुष्ठ होवै तथा पापकर्म करनेसे
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(६४) रसराज महोदधि । व वात पित्त कफके कोप करके त्वचा रक्त मांस लोहूको बिगाड़ कर १८ प्रकार का कुष्ठ उत्पन्न होता है सो इसमें ७ महाकुष्ठ हैं और छोटे छोटे ११ कुष्ठ हैं सब मिलके १८कुष्ठहैं. ..
अथ सात महाकुष्ठके लक्षण. जिस कुष्टका रंग काला लाल मिला हआ ताम्रके रंगका हो वा मिट्टीके खपरेके समान रूखा हो, कड़ा पतला चर्म होजाय और गूलरके फलके रंग खाल होय और अंगमें पीड़ा सूजन हो रुधिर काला हो हाथ पैरमें कांख में फुन्सियहों इनसबउपद्रवोंके शांतिभोजन वास्ते ३ चांद्रायण ब्रत करैऔर ब्राह्मणोंको करावे
और दान दे तो पापशांति होय और वैद्यकशास्त्र में कही औषधोंका दान करे तो कुष्ठ शांति होय.
अथ कुष्ठकी दवा.. वायविडंग, त्रिकुटा, नागरमोथा,चीता, मीठा तेलिया, बच,गुड़ये समभागले तीनबार लेप करैतो कुष्ठदूरहोय.
पुनःदूसरा लेप. कलमी सोरा इमलीकी लकडीके कोइलापर धेरै फिर कोइलामें आग्न जराय रात्रिभरि अग्निमें रहने दे सवेरे निकालिके कलीका चूना १ भाग सोराका खार २ भाग मिलाय जहां कुष्ठकी फुन्सियां हो वहां सँभारिकै थोरा लेप करै तो कुष्ट अच्छा होय.
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रसराज महोदधि। (१६५) . कुष्ठके खानेकी दवा. सेहुँडका दूध आधासेर, भूजाचना पांच तोला एकमें मिलाय खल करै फिर चनाबराबर गोली बांधै कुष्ठवाले रोगीका बल देखि दे तो गलितकुष्ठ दूर होय इसपर खटाई और सब परहेज रक्खै कुछदिन सेवै तो आराम होय. कुष्ठकी दूसरी दवा.
निव, कडू परवर, कटैली, गिलोय, बांसा सब चालीस चालीस तोले ले कूटिके एक द्रोण पानी में चुरावै जब चतुर्थाश काढ़ा रहिजाय तो घृत ६४ तोले त्रिफलाका काढ़ा ६४ तोले मिलायुकै पकावै घृतको सिद्धकर खानेसे कुष्ठ दूर होय और ८० प्रकारका वात रोग ४० प्रकारका पित्तरोग २० प्रकारका कफरोग दुष्टत्रण कृमि बवासीर पाँचोंखांसी इन्होंको नाशै.
अथ त्रिफलादि मोदक. त्रिफलाका चूर्ण ६० तोले, वायविडंग २८ तोले, लोहभस्म ८ तोले, वावची ४० तोले, शिलाजीत २ तोले, गूगुल ८ तोले पुस्करमूल ४ तोले, निसोत १ तोला, मिर्च, पीपल, सुंठी, दालचीनी, तमालपत्र केसर, नागरमोथा ये सब दवा दो दो तोले लेय सब औषधोंके समान मिश्री मिलाय ४ तोलेके लड्डू बनाय प्रभातसमय १ लड्डू रोज खाय तो मनोवांछित भोजन करै १८ प्रकारके कुष्ठ,तिल्ली, गुल्म, भगंदर ८० प्रका
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(१६६) रसराज महोदधि। रके वायुरोग, ४० प्रकारके पित्तरोग, २० प्रकारके कफरोग द्वंद्वज सन्निपात, शालक्यरोग, नेत्ररोग, भृकुटीरोग, कंठरोग, तालुरोग, जीभरोग, उपजीभरोग, कांधा कंठके बीचके रोग, भोजनके ऊपर देनेसे औ पेटके रोगोंमें भोजनके मध्यमें खानेसे सम्पूर्ण रोगोंको नाशै और यह रसायन है.
अथ सफेदकुष्ठको लेप असगन्ध, वायबिडंग, चीता, भिलावाँ, जमालगोटाकी जड, अमलतास, निंबोली इन्होंको कांजीमें पीसि लेप करनेसे सफेद कुष्ठ नाश होवै.
पुनःलेप. हरताल ४ मासे, बावची १६मासे, इन्होंका गोमूत्र में पीसि लेप करनेसे श्वित्र नाश होवै.
अथ घोड़ाचोली लिख्यते. रस विस गंधक औ हरताल । त्रिकुटा त्रिफला औ गराज ॥ जमाल मिलायके बांधै गोली। कह गोरख यह घोडाचोली ॥ औषध.
पारा, हरताल, गंधक, बच्छनाग, पीपलामूल, मधु पीपरी, सोहागा, हड़, बहेड़ा, आँवरा, सोंठि सफेद निवरसी सब ओषधि सम भाग ले कपड़छान कर भुंगराजके रसमें छः दिन खल करै फिर मिर्च बराबर
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रसराज महोदधि। (१६७) गोली बधि और रोगी का बल विचार के एक गोली शाम एक सवेरे एक महीनाभर खावै तो भूख बहुत लगै जिस स्त्रीके बालक नहीं होता हो तो इस गोली को रजस्वलाके पीछे तीन दिन स्त्री पुरुष दोनों आदमी पानके साथ खावैं तो जरूर बालक होय यह गोली गायके धोके साथ खाय तो अजीर्णज्वर जाय, दही और अनारके दानेके साथ खाय तो संग्रहनी रोग जाय, जिसका पेट पत्थरके सरीखा कठोर होय तो इस गोलीको पानीमें पीस पेट पर लेप करै तो पीड़ा औ कठोरता दूर होय. और जो कोई यह गोली अदरखके रसके साथ खाय तो सब तरहका वात रोग जाय और जिस आदमीको बीछीने डंकमारा होय तो यह गोली सोंठिके साथ घिसि घावपर लेपकरे तोतुर्त बीछीका जहर दूर होय और अरसीके चूर्णकेसाथखाय तो तापज्वरजाय, जीरा और शकरके साथ खाय तो पुराना ज्वर जाय.
सेंदुर एक टंक, घी छटंकके साथ एक गोली घिसिके लगावै तो मुखकी झाई दूर होय.
और यह गोली मिर्च में पीस नास लेवै तो मृगी रोग, नाक रोग दूर होय. और खीराके बीजके साथ गोली खाय तो मूत्र रोग जावै पेशाब होवे, अकरकराके साथ यह गोली खाय तो इन्द्रियकी पथरीको तुर्त निकालै और पानके रसके साथ पंद्रहदिन खाय तो भूख
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(१६८) रसराज महोदधि । लागै, मधु पीपरिके साथ खाय तो हडफूटन रोग जाय खसखसके रसके साथ खाय तो वायशूल रोग जाय. कडुआ गुंजा औ अनारके रसके साथ गोली घिस बालपर लगावै तो बाल झरिजायँ और फिर जमिआबैं, पानीके साथ विसि आँखों में लगावै तो जो आँखें लाल हो तो अच्छी होय.
मोचरस बदामके साथ उपरोक्त गोली खाय तो खून गिरता बन्द होय, सोंठि औ स्त्रीके दूधके साथ गोलीको घिसि कानमें डारै तो कानकारोग दूर होय और तुलसीके रसके साथ गोली खाय तो तिजारी ज्वर जाय. __कोहरीया धतूरके बीजके साथ यह गोली खाय तो सफेद कुष्ठ दूर होय और भंगराके रसके साथ खाय तो शरीरकी सुस्ती जाय, संभारू के रस के साथ खाय तो प्रमेह रोग जाय.
पीपरि और गुर बेलके साथ यह गोली लेप करे तो सन्निपात दूर होय पुराने गुरके साथ यह गोली खाय तो मुँहका दुर्गंध दूर होय, पावर रसके साथ यह गोली खाय तो मुँहकी जरदी और सूजन दूर होय अवराके चूरणके साथ गोली खाय तो सब तरहको गरमी जाय, अँवराके चूरणके साथ वर्षदिन खाय तो निरोग होय रोग कभी न पावै, मधुके साथ खाय तो शरीर पुष्ट होय बल अतुल्य होय.
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रसराज महोदधि । (१६९) मधुके साथ इन्द्रियपर लेप करे तो औरत बहुत प्यार करै शंखाहोलीके साथ खाय तो पिंड रोग जाय
छोहाराके बीजके चूरणके साथ गोली खाय तो बाँझिनीके गर्भ रहै ब्राह्मीरस दमयंती रसके साथ गोली खाय तो जलंधर रोग जाय.
नकछींकनी और निवोरा के रसके साथ गोली खाय तो पेटका वाय तुर्त दूर होइजाय,
पीपल व हींगके साथ गोली खाय तो बवेशी रोग जाय गंगेरूके रसके साथ गोली खाय तो बिन्दुकुशादि जाय,छांछके साथ गोली खाय तो शरीरका सूजन जाय सोंठिके चूरणके साथ गोली खाय तो हथरस रोग जाय जावित्रीके साथ गोली खाय तो बाँझिनीके पुत्र होय.
ऊँटकटेरीके साथ गोली खाय तो पेटकी अग्निको तुर्त बुझावै निबोरीके साथ गोली खाय तो दांतका चबाब बन्द होय, सफेद गुंजामें घिसिके आंखोंमें लगावै तो आंखोंका रोग दूर होय, निवोरेके साथ गोलीको घिसिके शरीर पर लगावै तो भूत प्रेत भागि जाय. नीबीके फूलके साथ यह गोली खाय तो सांपका विष दूर होय, नीबीके पत्रके साथ गोली खाय तो सब ज्वर जाय पीपरके साथ गोली खाय तो अवलेह रोग जाय, काला नमकके साथ गोली खाय तो पेटका मल दूर होय भंगराके रसके साथ यह गोली खाय तो सन्निपात जाय. जीरा मिश्रीके साथ गोली खाय तो शरीरको पुष्ट
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( १७० ) रसराज महोदधि ।
करे शहदके साथ गोली खाय तो बायगोला रोग जाय इमलीके रसके साथ गोली खाय तो पित्तज्वर जाय, तुलसी और अनारके दनाके रसके साथ गोली स्वाय तो शूल रोग जाय तुलसीके रसके साथ घिसि आंखों में लगावै तो रतौंधी जाय.
सफेद गुंजामें घिसि आंखीमें डारै तो फूली रोग जाय. अथ दूसरा घोड़ाचोली.
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पारा त्रिफला सोंठि जमालगोटा निसोत कुटकी वच्छनाग हरताल हरदी मिर्च सोहागा अफीम लवंग जायफल जावित्री मधु पीपरि वायविडंग ये सब दवा सम भागले कूट कपडछान करिके भंगराके रसमें छः दिन खल कर मिर्च बराबर गोली बांधे और ऊपर कीघोड़ाचोलीके अनोपान मुबाफिक रोगीको देवै ॥ चौ० ॥ भगवानदास धन्वन्तरिको शीशनवावै ॥ घोडा चोली गोली बनावै ॥ जो गुरुका ध्यान लगावै । अरुसंतनको शीशनवावै ॥ यहि औषधको करै विचारी इसका गुण है सबसे न्यारी || संतन वचन ध्यान में लावे । सोई वैद्यक सुख उपजावै ॥ जो परहेज से गोली खावै । सोनर कभी रोग नहिं पावै ॥
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इति घोडाचोली समाप्तम् । अथ गोरखमुंडी कल्प प्रारंभः । अमावसके रोज जड़समेत मुंडी उपारके छायामें
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रसराज महोदधि। (१७१) सुखायके एक तोले गायके दूधके साथ ४० दिन खाय तो शरीर निरोग होय. और इस विधिसे वर्षदिन खाय तो महाबली होय आचारसे रहै. फिर वही चूर्ण शामको पानीमें भिगावै और सबेरे बालोंमें मलै तो बाल काले होयँ फिर वही चूरण इकइसदिन खाय
और ब्रह्मचर्यसे रहै तो अग्निमें मुख न जरै और पानी में डूबे नहीं और जिस मुंडीमें फल फूल नहीं लगा होय तो उसको उपारि लावै और छायामें सुखाय चूरण कर दूधमें पीवै तो ब्रह्मज्ञानी होय आगमजानै महासिद्ध होय फिर उसी चूरणको पानीमें भिगोय आंखमें डारै तो आंख रोग दूर हों और फिर वही चूरण जौके आटामें मिलाय गायकी छाँछ लेकर सानै और रोटी बनाकर गायके घीके साथ खाय तो कायाकल्प होय सुवर्ण जैसा शरीर होय कुछ दिन सेवै तो पूज्यमान होय ब्रह्मचर्य्यसे रहे फिर मुंडी उखाडके रस निकाल शरीरमें मले तो पीड़ा दूर होय फिर मुंडीका बीज एक तोला रोज खाय वर्षदिन सेवै तो बूढा नहीं होय जो आचारसे रहै.
फिर मुंडीपंचांगले चूरण करके शहदके साथ कुछदिन खाय तो कवि होय और वल बहुत होय.
इति गोरखमुंडी समाप्तम् ।
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(१७२) रखरान महोदधि ।
अथ शुक्लपाका एरंडीका बीज एकसेर, दूध आठसेर, मिश्री चारसेर पहिले एरंडीका छिलका दूर करके पीस दूधमें मिलार्य मिश्री डाल मधुरी आंचसे खोवा करै तब सोंठि पीपरि लवंग इलायची दालचीनी साठी हड़ बाला जावित्री जायफल तमालपत्र नागकेसर असगंध रासना खडगंधा पित्तपापड़ा दोदो तोला लेकर कूट कपड़ छान करके खोवामें डालै पीछ अदरखरस एक तोला लोहा भस्म एक तोला सब एकमें मिलाय पाक तैय्यार करै रोगीका बल देखकर सबेरे खानेको देवै कुछ दिन सेवै तो अस्सी प्रकारका वातरोग दूर करै चालिस प्रकारके पित्तरोगको दूर करे आठ प्रकारके उदररोगको हरै बीस प्रकारके प्रमेह रोगको हरै साठि प्रकारके नाड़ीव्रण रोग हरै अठारह प्रकारका कुष्ठरोग हरै सात प्रकारका क्षयरोगहरै पांच प्रकारका पांडुरोग हरै पांचप्रकार काश्वास रोग हरै चार प्रकार संग्रहनी रोग हरै और नेत्र रोग इत्यादिक सब रोग दूर करै पथ्यसे ब्रह्मचर्यसे रहै
अथ मेथीपाक प्रारम्भः । मेथी बत्तीस तोला सोंठि बत्तीस तोला इन्होंक। चूरण करके कपड़छानकर दूध दोसौ छप्पन तोला घृत बत्तीस तोले सब एकमें मिलाय चुरावै जब कड़ा होजाय तब अग्निपरसे उतार लेवै पीछे मिर्च पीपरि सोंठि पीपलामूल चित्ता अजवाइन धनियाँ जीरा
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रसराज महोदधि। (१७३) कलौंजी सोंफ जायफल कचूर दालचीनी तमालपत्र नागरमोथा ये सब दवा पर चार तोला और सोंठि छ-तोला मिर्च छातोले इन्होंका चूरणकर मिलाय पाक तैयार करे ये मेथीपाक चार तोले अग्नि बलको विचार खाय तो आमवात और सब वातरोगोंको शांति करै और विषमज्वरको पांडु रोगको कामलाको उन्मादको अपस्मारको प्रमेहको वा रक्तापित्तको वा अम्लपित्तको शिरपीडाको नासिका रोगको नेत्ररोगको प्रदररोगको सूतिका रोगको यह सब रोगको हरै संशय नहीं यह शरीरको पुष्ट करै और बलबीर्यको बढ़ावै सम्पूर्ण रोगोंको हरै पथ्यसे रहै;
जुलाब अमीरोंका॥ चावल ९ टंक शकर ९ टंक गुलाबके फूल ९ टंक दूध आधासेर ये सब एकमें मिलाय खीर बनावै तब ९ टंक घी डालके खाय तो जितना, ठंढा पानी पीने तितना जुलाव होवै और गर्म पानी पीनेसे बन्द होइजाय इसके बराबर दूसरा जुलाब नहीं॥ इति श्रीभगतभगवानदास विरचित घोडाचोली गोरखमुंडीकल्पशुक्लपाक मेथीपाक जुलाबादिवर्णनं नाम उत्तर भाग समाप्तम् ॥
अथ लकवाकी दवा. सवा ३। तोले सनके बीज शहदमें मिलाय सबेरे खायतो लकवा १५ दिनमें नाश होय.
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(१७४) रसराज महोदधि।
पुनः यह तेल लकवाको गुण करताहै. सफेद कनेरकी जड़ का छिलका सफेद चिमिटीकी दाल काले धत्तूरका पत्ता सब दवा दो दो तोला चारि चारि मासे लेना फिर कूटिके टिकिया बनाकर पावभर तेलमें टिकिया डालि खूब घोटै तब अग्निपर चुरावै जब दवा जल जाय तौ उतारि ठंढा करि अर्धाङ्गवायवालेके और पक्षापात वालेके तेल मलनेसे शरीरका रोग दूर होय.
पुनःमिचादि लेप. कालीमिर्च महीन पीसि कर तेलमें मिलाय गर मकर पतला लेप करै तो पक्षाघातको तुरंत नाश करै इसके बरावर दूसरी दवा नहीं.
पुनःवचका पाक. लकवाकी दवा अजमाई हुई वच ५ तोले सोंठि कालाजीरा प्रत्येक दो दो तोले एकमें मिलाय कूटि कपडछान करि शहदमें मिलाके साढे ३ मासे नित्य खाय तो अच्छा होय.
पुनःलकवाकी दवा. बच ३ तोले कालीमिर्च पोदीना स्याहजीरा कलौंजी प्रत्येक दश२ मासे सब कूटि कपडछान करि पावसेर शहदमें मिलाय सात मासे खावे तो पक्षाघात लकवाको दूरकरै.
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रसराज महोदधि। (१७५)
लवंगादि चूर्ण. लवंग १ तोले जायफल १ तोले पीपली १ तोले बहेडा ३ तोले मिर्च २ तोले सूठि १६ तोले इन्हीं सब द्वाओंके बराबर खांड़ मिलाय खानेसे खांसीको व श्वासको व ज्वरको व गुल्मको व अग्निमंदको व संग्रहणीको इन सबरोगोंको हरै.
अथव्रण फोडनेका लेप. मालकांगनी सज्जीखार एरंडीबीज तीनो दवा बराबर ले कूटि कपडछान करि पानी डारि गरमकर लेप करै तो फोड़ा तुरत फूटै.
तथा हाथीके दांतका चूर्ण पीसि व्रणपर लेप करै तो फूटै पुराना व्रण नाश होय.
पुनःलेप. भंगरा हरदी सेंधानोन धतूरके पत्ता सब बराबर लेकर पीसि गरम करके लेप करै तो व्रण फूटै,
अंडाकालेप. महुवाका फूल एरंडीका बीज मुलतानी मिट्टी काले तिल सब मिलाय पीसि भेंडीके दूधमें चुराय अंडपर लेप करे तो बहुत दिनका सूजन दूर होय.
तथा अंडकोशवाले रोगीको जुलाब देय तब ये लेप
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(१७६) रसराज महोदधि । करै मालकांगनी एरंडीके बीज असगन्ध आमाहरदी सब पीसि भेडीके दूधमें मिलाय गरमकर लेप करे तो अच्छा होय मूजन हदै, . अथ अजीर्णका बयान.
पेट भारी रहे शिर भारी रहे आलस रहे देह टूटे मुँहसे पानी छूटे तो जानो कि अजीर्ण हुआ और पेटमें पीडा, जंभाई बहुत आवे, अजीर्ण में गरम पानी पीना हित है स्नेह जुलाब देना उलटी करना हित है जलदी से इसकी दवा करै नहीं तो नाना प्रकारका रोग पैदा करता है.
अथ आहारका बयान. हलकी रोटी तुरत पचजाती है मावेदार रोटी देरमें पचतीहै गरम गरम रोटी भोजन करनेसे उदर की तरीको सोख लेती है ठंढी रोटी उदरको तर करती है और सूखी रोटी भोजन करनेसे रोग पैदा करती है और दालि तरकारी कच्ची नरहै अच्छी तरह से चुराइ लेइ रोटी भी अच्छी तरहसे सिझाइ लेय भोजन से मनुष्य का जीवन आधार है सो मनुष्य को चाहिये कि सँभारि के भोजन करै कच्ची पक्की देखि लेय और गरम शरद देखि लेय और जब तक अच्छी क्षुधा न लगै तब तक भोजन न करै.
अथ मलका बयान. मनुष्य को चाहिये कि मल को दो दफे
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रसराज महोदधि। (१७७ ) त्याग करै रोके नहीं जो रोके तो मलकी गरमी से वात पित्त मिल कर तमाम शरीर में नाना प्रकार के रोग पैदा करतेहैं मनुष्य मलको बराबर त्याग करे और पेशाब इसी तरहसे करे रोक नहीं पेशाव रोकनेसे सुजाक परमा पैदा होता है सोइसे बचाये रहना.
अथ पानीका बयान. पानी भोजनमें कमती पीवे भोजन के दो घरी पीछे पीवे गरम शरद की प्रकृति समझ कर पीवे दरियाव का पानी सबसे अच्छा पीछे कूए का पानी अच्छा है और तालपोखरी का पानी रोग पैदा करता है मैथुनमें पानी विकार है कुस्ती मेहनति में विकार है ठंढे पानी से गरम पानी का स्नान करना हित है
अथ शीतपित्तका बयानशीतपित्त महारोगहै क्षणमें निकलता है क्षणमें समाता है दवासे दूर होता है लेकिन उसकी जड़ नहीं जाती मरने तक रहतीहै कभी शीतमें निकलता है कभी गरमीमें निकलता है शरीरका खून सब बिगाड़ देता है इसके दूर करनेकी दवा लिखते हैं परमेश्वरकी कृपासे रोगी निरोग होगा निश्चयसे यही दवा करना भूलना नहीं.
अथ शीतपित्तकी मालिश. सजीखार सेंधानमक करुवातुल मिलायके शरीर
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(१७८) रसराज महोदधि। पर एक घंटा मालिश करना फिर गरम पानीका सेंक करना. पानीका भाफ देना जितना पानीके भाफसे सेंक करैगा उतना रोग दूर होगा इसी विधि प्रमाण से पन्द्रह दिन सांझ सबेरे जो करेगा तो शीतपित्तकी जो गाँठि रहती है सो दूर होजायगी रोगी नीरोग हो जायगा सही यह कुछ कड़ी दवा नहीं है.
अथ शीतपित्तके खानेकी दवाउसबा मगरबी सात तोले सनाय पत्ती अढ़ाई तोले सौंफ अढ़ाई तोले विसपैज दो तोले सहदरा दो तोले लालचन्दनका चूर्ण एक तोले मिश्री सात तोले सब दवा मिलायके कूटि कपडछान करिके सात तोले शहद मिलायके रोगीका बल देखिके इकइस दिन तकखानेको देय तो शरीर भरेके खूनको साफ करि देगा खराब खूनको दूर करैगा नवाखून पैदा करेगा शीत पित्तकी जड़ दूर होगी रोगी निरोग हो जायगा.
अथ शीतपित्तमें पथ्य_ चावल मूंग कुलथी करेला पोईशाक गरम पानी पित्त कफ नाशक औषध ये सब शीतमें पथ्य हैं.
अपथ्य. स्नान करना घाम खटाई भारी अन्न ये रोगमें अपथ्यहैं शीत में पहिले उलटी जुलाब देना पीछे आगलका दवा करना सेकना.
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रसराज महोदधि। (१७९) अथ अच्छीरीति सिखनेका बयान. मनुष्योंको चाहियेकि अपने लड़केको बाल अवस्थामें अच्छी रीतिसे रखना औ सिखाना पढाना और बालकको चाहिये कि माता पिताकी आज्ञा माने और पढ़नेमें दिल लगावै और सफाईसे रहै और अपनी जिन्दगी गुजर करनेके वास्ते वह पेशा करै जो बाप दादा करते आये हैं फिर उपरांत इसके सादी करै
और बालपनका सादी होना पीछे तकलीफ देता है क्योंकर कि कुछ विद्या नहीं सीखा काम धंधा नहीं सीखा इससे उनको शोच फिक्र करके बहुत तकलीफ होती है और उसी सोच फिकरसे नाना प्रकारके रोग पैदा होते हैं सो इस रोगको हमने अनेक तरहका इलाज अजमाया पर इसको कोई दवा काम नहीं किया सिवाय परमेश्वरकी कृपासे दूसरी दुवा काम नहीं आती
और आदमियोंको चाहिये कि छोटेपनहीसे भगवानका ध्यान करें और दान पुण्य यथाशक्ति करें और बुरे कामको त्याग करें अच्छा काम करें और अच्छे आदमीकी संगति करें बुरेसे दूर रहैं-अच्छा आदमी वह जो अपनी नीतिस रहै और दूसरेका उपकार करे और बुरा आदमीचोर ज्वारी लवार बात छुटक उचक्का इनकी संगति करनेसे अनेक तरहकी तकलीफ उठानी पड़तीहै हमने इसको अच्छी तरहसे अजमायाहै
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(१८०) रसराज महोदधि । और अनेक तरहका दुःख उठायाहै हे सजन पुरुष ऐसे सब लोगोंको त्याग करौ यह वेदकी रीति है.
नाडीभेद-चौपाई. वात पित्त कफ ये सुनि लेहू ।केश होत इनहींसेदेहू ॥ जोतिहुँते एको बढ़ि जावै ॥ तौ जानैमृत्युनिकटैआवै जो त्रिदोष येवढहिंसमाना॥ तो नर पहुँचे यमके धामा रहि रहिधुनि हलकेही हालै॥ नाड़ीप्राण नाशनीचालै
दोहा. रहिरहि नाड़ी जो चले, जो वह प्राण हराय॥ पुःन क्षीण शीतल चलै, सो यम घर लै जाय ॥
चौपाई॥ समझ इलाज करै जो कोई।ताको अपयश कबहुँनहोई भगवान दास है बहुतनदाना।सज्जनपुरुषसुनहु सुजाना कठिन पारसी भाषाकीन । रोगचिकित्सा और निदान तनिकलोभ ना कीजे भाई । दयाधर्म करिदेहु दवाई॥
इति श्री मुन्शी भगवान प्रसादका शिष्य भगत भगवानदास विरचित वैद्यक रसराज महोदधि भाषाग्रंथसमाप्तः ॥ पुस्तक मिलनेका ठिकाना
खेमराज श्रीकृष्णदास. " श्रीवेंकटेश्वर" छापाखाना-मुंबई.
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