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(१६६) रसराज महोदधि। रके वायुरोग, ४० प्रकारके पित्तरोग, २० प्रकारके कफरोग द्वंद्वज सन्निपात, शालक्यरोग, नेत्ररोग, भृकुटीरोग, कंठरोग, तालुरोग, जीभरोग, उपजीभरोग, कांधा कंठके बीचके रोग, भोजनके ऊपर देनेसे औ पेटके रोगोंमें भोजनके मध्यमें खानेसे सम्पूर्ण रोगोंको नाशै और यह रसायन है.
अथ सफेदकुष्ठको लेप असगन्ध, वायबिडंग, चीता, भिलावाँ, जमालगोटाकी जड, अमलतास, निंबोली इन्होंको कांजीमें पीसि लेप करनेसे सफेद कुष्ठ नाश होवै.
पुनःलेप. हरताल ४ मासे, बावची १६मासे, इन्होंका गोमूत्र में पीसि लेप करनेसे श्वित्र नाश होवै.
अथ घोड़ाचोली लिख्यते. रस विस गंधक औ हरताल । त्रिकुटा त्रिफला औ गराज ॥ जमाल मिलायके बांधै गोली। कह गोरख यह घोडाचोली ॥ औषध.
पारा, हरताल, गंधक, बच्छनाग, पीपलामूल, मधु पीपरी, सोहागा, हड़, बहेड़ा, आँवरा, सोंठि सफेद निवरसी सब ओषधि सम भाग ले कपड़छान कर भुंगराजके रसमें छः दिन खल करै फिर मिर्च बराबर
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