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रसराज महोदधि। (६५) खल कर सुखावै फिर कपरमिट करके ९ सेर बिनुवा कण्डोंमें फूकिदे तो सफेद भस्म होय और शरीरभरके रोगोंको हरै खुराक आधारत्ती पथ्य घी दूध मिश्री.
__ अथ मूत्रकृच्छ्रका लक्षण. जांघ पेट लिंगमें पीड़ा होय और थोरा २ बार बार मूत्र उतरे तो बात से जानना और यदि पीला लाल औ गरम मूत्र कष्टसे उतरै और बहुत पीड़ा से उतरै तो पित्तका जानना और यदि पेडू और लिंग दोनों भारी हों और दोनों में सूजन होय मूत्रमें झाग आवै मूत्र कष्टसे उतरै तो कफ का जानो कफ में बमन हित है पित्त का होय तौ जुलाब दे और घात का होय तो बस्ति कर्म हितहै.
काढा. गिलोय सुठि आमला असगन्ध गोखुरू इन्होंका काढ़ा बनाय पीने से मूत्रकृच्छ्रको नाशै.
कुश कासादि काढ़ा. कुश कास डाभ शर इष इन्होंका काढ़ा बनाय पीनेसे मूत्रकृच्छ्र को नाशै.
मूत्र कृच्छ्रकी दूसरी दवा. ककडीके बीज मुलहटी दारुहरदीइन्होंके चूर्णको
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