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रसराज महोदधि। (९)
अथ वायुका लक्षण. दोहा-तनु कांपै सूखै अधर, तृषा जलकी होय । हुचकी शूलरु उदर दुख, मुख फीका कहुसोय ॥
अथ वातका लक्षण. दोहा-सब शरीर नख नेत्रको, विष्ठा मूत्र जु होय । ये लक्षण ज्वरवायुके, मूत्र रुधिररँग होय ॥
अथ कफज्वर लक्षण. मूत्र बहुत जल्दी जल्दी उतरै चित्त भ्रमित रहै बुद्धि नष्ट हो जाय नींद बहुत आवे कफ छाती छेके रहै देहमें दँदोरा ऐसा मालूम होय तो कफज्वरका लक्षण है.
निरोगरहनेका वयान. ___ मनुष्यको चाहियेकि दिनको सोना नहीं. और रातको जागना नहीं बहुत आदमी ऐसे निद्रा करनेसे रोग उत्पन्न करतेहैं. और खराब खाना खाय नहीं. और दिनको स्त्री भोग करैनहीं, जोडा पहननेसे आँखों को गुण करताहै. छतरी धारण कियेसे शरीरको सुख होताहै. और मनुष्यको उचितहैकि सज्जन पुरुषसे प्रीति करै, और सत संगति करै. ब्राह्मण वृद्ध पुरुष वैद्य और राजासे प्रीति करै और गुरुका कहना मानें
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