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रसराज महोदधि। (१३)
कालज्वरके लक्षण. पेशाव बहुत होय, देह गलिजाय, माथ नाक शीतल होय ये लक्षण कालज्वरके हैं.
कफज्वर, शीतज्वरका लक्षण. अरुचि होय, अग्नि मंद होजाय, मुखमें खराब गंध आवै, ज्वर बहुत होय, देह शीतल होय, निद्रा बहुत होय, येलक्षण कफज्वर और शीतज्वरके हैं.
कामज्वरका लक्षण. शीत लगै, शरीर काँपै, चित्तभ्रम होय, माथामें पीड़ा होय, कंठ सूखा रहै, मुँह कसैला होय, यह लक्षण कामज्वरका है.
रक्तज्वरका लक्षण. शरीरमें पीड़ा होय, मुख नाकसे खून निकले, ये लक्षण रक्तज्वरके हैं.
सर्वज्वरके दूर होनेका चूर्ण. सोंठिधनियां छोटी बड़ी कटाई देवदारु सब बराबरि ले कपडछान करिके छःमासा शामको छ:मासा सबेरे गर्म पानीके साथ खाय तो सब प्रकारका ज्वर दूरहोय.
अथ सर्वज्वरकी उत्पत्ति. श्रीमहादेवजीने अपने तीसरे नेत्रसे वीरभद्रको उपजाया सो यही वीरभद्रसे आठ प्रकारका ज्वर उत्पन्न
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