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(१०६) रसराज महोदधि। कहते हैं इस रोगको यकृत गोला का लक्षण जानो.
अथ छतोदरका लक्षण. जो मनुष्य कच्चा अन्न खाय और बाल कंकड रेत धूलसे मिले हो मलका संचय हो कष्टसे थोरा मले उत्तरै हृदय नाभि बढ़ जावै तिसको बद्ध गुदोदर तथा छतोदर भी कहते हैं
अथ जलोदरका लक्षण घृतको खाय, बस्ति कर्म कराय जुलाब ले, वमन करके शीतल जलंको पीवै, इससे जलकी बहने वाली नसें दूषित हो स्नेह करिके लिपी जलोदरको उत्पन्न करै हैं और उस शीतल जलसे उत्पन्न हुआ जलोदर नाभिके पास गोल और चीकना होय पानी भरी मसक समान बहुत बढ़े तब मनुष्य उससे बहुत दुःखी हो और उसका शरीर कंपै और पेट बारंबार बोलै ये लक्षण जलोदरके हैं असाध्य जलोदररोगीको त्याग करै
और इस रोगवाले रोगीकी सँभारिके दवा करै काहेसे कि इस रोगीका जीना कठिनहै और रोगीको खराब चीजके खानेसे बचाये रहे तीन महीनाके बाद थोरा अन्न दूधके साथ देय तो ६ महीना तथा एक वर्ष में जलोदर दूर होय
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