SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसंराज महोदधि। (१९.) पीला वा लाल वा काला वा सेंदुर समान होय मल काला या सफेद वा सुवरके मांसके समान होय ये लक्षण होयँ तो जानो कि सन्निपात रोग है. अथ सन्निपातकी दवा, बीरभद्र रस. (त्रिकुटा ) तिरकूठ ३। नोन ६। सौंफ १। दोनों जीरा ३। पारा १॥ गंधक १। अभ्रक रस १। सबकी कजरी करै फिर अदरख रसमें सब दवा छोड़िके घोटै फिर अनोपान आदिके रसमें औरसेंधौ और चितावरिमें देइ तो तेरहौं प्रकारका सन्निपात दूर होय जैसे सिंह हाथीको मारै तैसे ज्वरको वीरभद्र रस मारै. पुनःदूसरा रस. पारा शुद्ध,गंधक शुद्ध, विष शुद्ध, २५ टंक जायफल ६२ टंक पीपरी १० टंक पारा गंधककी कजली करे तब दवा डारिके अदरखके रसमें एकदिन खरल करे फिर १ रत्ती प्रमाण रोगीको दीजे तौ सन्निपातज्वर शीतज्वर जीर्णज्वरविषूचिका विषमज्वर मन्दाग्नि माथेके रोग सब दूर होय. अथ रोगीकी परीक्षा. रोगीकी उमरबाकी होतबभी औषध बिनारोगीकी पीडा दूर नहीं होती दृष्टांत जैसे हस्ती कीचडमें खड़ा हुआ उपाय बिना निकल नहीं सक्ता उमर बाकी हो For Private and Personal Use Only
SR No.020866
Book TitleVaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Bhagat
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1820
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy