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(१८) रसराज महोदधि ।
और काढा. कटैली गिलोय सोठि पुष्करमूल चिरायता इन्होंका काढ़ा सर्वज्वरको हरैहै. ज्वरांकुश रस. कफ पित्त सब ज्वरोंपर.
पारा२५ गंधक २५विष२५ साहागाचौकिया २५ त्रिफला ३७॥लेकर कूटि कपड छानकर अदरखके रसमें घोटि गोली उरद प्रमाण बांधै एक शाम एक सवेरे खाय तो कफ पित्तज्वर सर्वज्वर दूर होय.
अथ सन्निपातका लक्षण. .. अकस्मात् क्षण २ में रोवै हँसै गावै क्षणमें दाह होय क्षणमें सीतलगै क्षणमें स्वभाव फिर जाय इन्द्रियां अपने अपने धर्मको छोड़देंशरीरकी संधियोंमें हाडोंमें माथेमें पीडा होय आँसू आवै नेत्र काले वालाल होय कानमें शब्दहोय अंगमें पीड़ा होय कंठ परि जाय तंद्रा श्वास कास अरुचि भ्रम होय. जीभ काली खरदरी लाठरसी होय लोहसे मिला कफ होय दिनमें सोवै रातिकोजागै पसीना बहुत आवै वा न आवै तृषा बहुत होय छातीमें पीडा होय मल मूत्र उतरे नहीं उतरै तो थोडा उतरै दूबर होय कफ घुरघुराय मौन रहै ओंठ आदि इन्द्रिय पाकि जायँ पेट भारी रहै नाडीकी गति महामन्द होय, सूक्ष्म टूटीसी होय मूत्र
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