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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसराज महोदधि । अथ गर्मीका भेद. गर्मीवाले मनुष्यको चाहिये कि छिपावै नहीं इलाज बहुत जल्दी करे बहुत मनुष्य शर्म के सबबसे किसी से कहते नहीं मूर्ख लोगोंकी दवा करते हैं दवा लगे तो अच्छा है नहींतो कोपकरके तमाम शरीरपर फैल जाती है पीली पीली फुन्सी पैदा होती हैं और ज्यों ज्यों दिन बीतता है त्योंत्यों अधिक दुःख होता है इन्द्रीपर घाव शरीरपर कोढके समान चट्टा फैल जातेहैं और पेडू में बद निकलती है कुछदिनमें शाना पकड लेता है चलने फिरने की शक्ति नहीं रहती असाध्य होजाता है जीव नाश होजाता है इससे गर्मीवाले मनुष्यको चाहिये कि शर्म नहीं करै अच्छे उस्ताद या हकीमके पास जाके इलाज करै जो हकीम बोलै वही खावे पथ्यसे रहै और कोई बुरी चीज न खाय न जीभ की चालाकी करे तो दश दिनमें अच्छा होय और गर्मीकी निशानी तो तीन पुश्त तक रहती है. For Private and Personal Use Only (६९) अथ उपदंशका लक्षण. ज्वर होय भूख नहीं लगै मुख काला पड़जाय शरीरकी द्युति बदल जाय झाडा पेशाबमें कड़क होय ये लक्षण उपदंशके हैं.
SR No.020866
Book TitleVaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Bhagat
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1820
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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