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रसराज महोदधि। (१६३) इति श्रीमुन्शी भगवान प्रसाद शिष्य भगत भगवानदास विरचित वैद्यक रसराज महोदधि मध्ये गजकर्णकी दवा, मलहम, लेप, तेल बनानेकी विधि. खाँसी, दमा और अंडकोष सूजनेका इलाज, साँप काटेकी दवा, बिच्छूकी दवा, बावले कुत्ता काटनेकी दवा, सांदेकी दवा, महजूम, बन्धेजकी दवा, गर्मी तिजारीकी दवा, सब रोगोंकी दवा, हूककी दवा, सर्व ज्वरका चूर्ण और चौथिया तिजारीकी दवा, अति उपयोगी मंत्र यंत्र प्रयोगादि और वावका मंत्र,कानका मंत्र, प्रेतकामंत्र, और नर्कहवा वेरवा पिनहीं जहरवात थनइलका एकमंत्र सनाय खानेकी उनइस विधि पारेका शिद्ध गुटिका, चूर्ण, गोली, दशमूल गूगुलयोग, गूगुल किशोर सब रोगोंकी दवाई व सबके बनानेका सहल २ उपाय वर्णनं नामपंचमो खंड सम्पूर्णम् ॥५॥
अथ कुष्ठ रोग वर्णन. गुरूकी स्त्रीके संग तथा गौके संग तथा गोत्र की स्त्रीके संग मैथुन करनेसे कुष्ठ होवै अथवा विरुद्ध भोजन करनेसे, अजीर्णमें भोजन करनेसे, पतली चीकनी भारी वस्तुके खानेसे, मल मूत्र रोकनेसे, मछली और दूध के एकही संग खानेसे, शीतल गरम एकही संग खाने से ब्राह्मण गुरू माता पिता इन्होंका आदर न करनेसे कुष्ठ होवै तथा पापकर्म करनेसे
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