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(२६) रसराज महोदधि ।
बवासीरकी दवाई. दोहा-दुद्धीबडि जो आनिकै, लौंग संगमें खाय ॥ वा घृतसँग जो पीजिये, खून बवेशी जाय ॥
बूटीका गुण. दोहा-पातकसौंजी विष हरै, जडसे सांप डराय ॥ फलसे बाघडरातहै, फूल रतौंधी जाय ॥
बांझिनी स्त्रीका लक्षण. दोहा-मुखडब्बाकुचपुहुप सम, कटिविसाल जो होय॥
कवि कोविद दोऊ कहैं, होय वांझिनी सोय ॥
. दरिदिनी स्त्रीका लक्षण. दोहा-जाकीनाभिगंभीरअति, श्रवणहोइँ जसशूप ॥ सोतिय होय दरिद्रिणी, जो पावैपतिभूप ॥
अथगुंजाप्रकाशविधि. दोहा-गुंजाकी गति कहतहौं, कौतुक चरित अपार ॥ गिरिजासों शिव यों कह्यो, सब कल्पनको सार ॥ भूत रु डाकिनि प्रेत गण, यक्ष बीर वैताल ॥ इक गुंजाके कल्पमें, कोटिन माया जाल ॥ बहुत चरित हैं कहीं कुछ, सकल कल्पकी खानि ॥ जो चाहै सोई करे, साधनके बरदानि ॥ अब याके साधन करै, यथायोग उपदेश। जो साथै सो सिद्धिहै, कसर नहीं लवलेश ॥
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