SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसराज महोदधि। (२७) पुष्य होय आदित्यको, जो लीजै यह मूल ॥ शुक्रवार की रोहिणी, गहन होय अनुकूल ॥ कृष्णपक्षकी अष्टमी, हस्त नक्षत्र जु होय ॥ अर्धरात्रिको जायके, मनकी शंका खोय ॥ धूप दीपदे लायकर, धरै दूधमें धोय ॥ जो काह नर नारिके, विषधर काटे होय ॥ विष उतरे सब तुरतही, जानि पिलावे सोय ॥ जो पिसिकर मुखमें तबै, सभामध्य नर जाय॥ हाँजी हाँजी सबकहै, जोइ कहै सो थाय ॥ चतुरलोग याविधि करै, कबहुँ न आवे आंच॥ एक जड़ीके युक्त सों, सबै नचावै नाच ॥ तांबा माहि मदायकै, कटिमें बांधे कोय ॥ नवें मास वहि नारिके, निश्चय बालक होय ॥ काजलसों घिसि आंजिये, मोहै सब संसार ॥ जो माँगे वह वस्तु कछु, सो लावे तत्कार ॥ जोघिसि पयके योगसों, लेपनकीजै अंग ॥ भूत प्रेत अरु यक्ष गण, लगे फिरें सब संग ॥ घिसिके रुई भिगायकर, बाती करे बनाय ॥ फेर भिगावे तेलसों, दीपक धरे जलाय ॥ होय अचंभो शयन तब, मृत्युकसभा देखाय ॥ मनमें ले स्तुति करे, सवही पूजे पाय ॥ जो घिसिये वह पीवसों, लेप शरीर बनाय॥ कैसाही होवे हठी, लावै प्रीत लगाय ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020866
Book TitleVaidhyak Rasraj Mahodadhi Bhasha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Bhagat
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1820
Total Pages206
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy