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(११०) रसराज महोदधि । हैं शुद्ध शंखिया १ तोला रेखलचीनी ९ मासे जदावर खटाई ९ मासे अकरकरा ९ मासे सफेद कत्था २ तोले सब दवा कूट कपड़छान करके अदरखके १ सेर भर रसमें खल कर मूंग बरावर गोली बांधे एक गोली खानेको दे तो रोग दूर होय (पुनः दवा) पीपल मिरच सोठि पांचोनोन सोहागा सज्जी सब दवाबराबरले
और दवाके बराबर जमालगोटा ले प्रथम दवाको कूटि कपड़छान करिके दात्वणीके रसमें ३ पुटदे फिर बिजौराके रसमें ३पुटदे खरलकर छायामें सुखायके फिर आधा रत्ती रस खानेको देतौ उदररोग, प्लीहा,गोला, जलंधर इत्यादि सब रोग हरे परन्तु ब्राह्मणको बुलाय प्रायश्चित्त पूजा पाठ जप करावै पीछे भोजन दान देतो रोम शांति हो और सोनेका कलश व कुबेरकी मूर्ति बनाय पूजा करै तौ पूर्व जन्मका पाप नाश होय रोगी जीवे.
अथ उदररोगका इलाज.. वाईका फिसाद और कच्चा भोजन करनेसे उदरमें पीडा होतीहै (दवा) पानी गर्म कर नोन मिलाय पिलावै तथा उलटी करावै और जबतक भूख न लगे तबतक भोजन न देव जवशरीर और पेट हलका होजाय तब खानेको देवै तो सब दुःख दूर होय. पीडा शांति होय.
अथ उदरका दूसरा इलाज. सनायकी पत्ती, हड, बहेडा, आंवला, कालानमक
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