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(५६) रसराज महोदधि।
रूपरसखानेका गुण. छंद-रस रूप विधान कहूं नर एक रतीभर पानमें ताहि जो खावै ॥ कफ अरु कास औ खांस हरै सब लागती भूख अरु काम जगावै॥अति गर्म जो शरदकी हानि करै सब अन्नके रोगको तुरत नशावै ॥ ताहिते जानिकरै यह साधन निष्ठ शरीरको पुष्ट करावै.
अथ सोना मारन विधि. कामदेव झमकोइया एक बूटी है उसकी लुगदीमें एक तोला शुद्ध सोना रख कपडमिट कर सुखायके तीन गजपुट आंचदे तो भस्म होय लोकप्रसिद्ध होय. खुराक आधा चावल, अनोपान मुवाफिक सब रोग हरै.
अथ सोना मारन दूसरी विधि. एक सेर कचनारके पत्तोंके बीचमें आधा तोला सोना रखके गोला बनाय कपडमिट करिके सुखाके दोगजपुट आंचदे तो बहुत उत्तम रस बनै.
गुण ॥ छंद॥ सौनेकी खाक बनायके सुंदर चावल एक चिरोंजीमें खावै।पुष्ट शरीर बढे अति वीरज लागति भूखरु काम जगावै ॥ श्वास औ कास सफोदर ओदर आदि जलंधर रोग नशावै ॥ रोग हरै सबही तनुके अनोपान मुवाफिक जो कोइपावै.
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