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रसराज महोदधि। (५) देव और चतुर वैद्यजन नाडी ऐसे देखे कि रोगीका हाथ लंबा करावे और कछुक टेढ़ा हाथकी अंगुली सब पसारके हाथको न हिलावे और कडा करै ऐसी विधि करायके अंगुष्ठमूलसे नाडी देखै प्रभात समयमें तीनवार नाडीपरीक्षा धारण करै फिर छोडदे. ऐसे तीनवार परीक्षा करै और फिर बुद्धिसे विचारकर रोगको नाडीद्वारा प्रगटकरै वैद्य गुरुका ध्यान करिकै नाडी देखै कौवाकी चाल नाडी चलै तौ उसके ज्वर जाने और बहुत सुस्त बारीक नाडी चलै तो कफज्वर जानो और मोर या मुर्गा या बतक इसके मिसाल चलै तौ कफ पित्तका ज्वर जानो और अँगुलीमें दबि दबि जाय तो बातकै फिसाद ज्वर जानो. और सांपकीचाल नाडी चलै तो वात कफका ज्वर समुझना और काठफोरा जो काठको ठाक ठंक काटतेहैं जो नाडी ऐसी चाल चलै तो सन्निपातज्वर जानो यही सब नाडीपरीक्षा है और इसीसे सब रोग जाना जाता है.
अथ मूत्रपरीक्षा. लाल रंग मूत्र होय तो उसके खूनका जोर समझना चाहिये. और पीला हो तो ज्वर समुझना और सफेद रंग होय तौ बलगमकै व्याधि जानो और
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