Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 248 6B 104 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर- गाथा राहुलसङ्किच्चानेन आनन्दको सल्लानेन जगदीसकस्सपेन च सम्पादितो उत्तमभिक्खुना पकासितो २४८१ बुद्धवच्छरे (1937 A. C.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 393 १ www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRINTED BY M. PANDEY AT THE A. L. J. PRESS, ALLAHABAD AND PUBLISHED BY UTTAM BHIKSHU, RANGOON Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राङिनवेदनम् पालिवाङमयस्य नागराक्षरे मुद्रणं अत्यपेक्षितमिति नाविदितचरं भारतीयेतिहासविविदिषूणाम् । संस्कृतपालिभाषयोरतिसामीप्यादपि यत् परस्सहसेभ्यः जिज्ञासुभ्यः संस्कृतज्ञेभ्यः पालिग्रन्थराश्यवगाहनं दुष्करमिव प्रतिभाति तत् लिपिभेदादेव । एतदर्थमयमस्माकमभिनवः प्रयासः । अत्र नूतना अपि पाठभेदा: निधेया इत्यासीदस्माकं मनीषा परं कालात्ययभीत्याऽत्र प्रथमभागे धम्मपदादन्यत्र न तत् कृतमभूत् । अधोटिप्पणीषु सन्निवेशिताः पाठभेदाः । प्राय: Pali Text Society मुद्रितेभ्यो ग्रन्थेभ्य उद्धृताः । अर्थसाहाय्यं विना अस्मत्समीहितं हृदि निगूहितमेव स्यात् । तत्र भदन्तेन उत्तमस्थविरेण साहाय्यं प्रदाय महदुपकृतमिति निवेदयंति-- कात्तिकशुक्लैकादश्यां २४८० बुद्धाब्दे राहुलः सांकृत्यायनः आनन्दः कौसल्यायनः जगदीशः काश्यपश्च Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ - एकनिपातो १- वग्गो पठमो पुणो मन्तानिपुत्त थेरो दब्बो थेरो सीतवनियो थेरो भल्लियो थेरो वीरो थेरो पिलिन्दवच्छो थेरो २- वग्गो दुतियो पुण्णमासो रो चूलवच्छो थेरो महागवच्छो थेरो वनवच्छत्थेरो वनवच्छस्स थेरस्त सामणेरो कुण्डधनो थेरो वेलट्ठसीसो थेरो दासको थेरो सिगालपिता थेरो कुळो थेरो ३ - वग्गो ततीयो अजितो थेरो निग्रोधत्थेरो चित्तको थेरो विषय-सूची Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पृष्ठ r ४ ४ ४ ४ ५ ५ ५ गोसाळो थेरो सुगन्धो थेरो नन्दियो थेरो अभयो थेरो कोमसकङ्गियो थेरो जम्बुगामिकपुत्त थेरो हारितो थेरो उत्तियो थेरो ४- वग्गो चतुत्थो गह्वरतोरिया भिक्खु सुप्पियो थेरो सोपाको थेरो पोसियो थेरो सामञ्ञकानि थेरो कुमीपुत्त थेरो पृष्ठ ७ ७ ८ ८ ८ ८ IS ८ IS IS ८ ८ कुमापुत्तस्सथेरस्स सहायको थेरो & गवम्पति थेरो तिस्सो थेरो वड्ढमानो थेरो ५- वग्गो पञ्चमो सिरिवड्ढो थेरो खदिरवनियो थेरो सुमङ्गळो थेरो साहु थेरो w w १० १० १० १० १० www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ) ( २ पृष्ठ Do w ~ w ~ ०० ० ० ० w ~ w ~ w 9 9 له ~ 9 له ~ 2 ~ له ال U ~ له ~ ~ الله ~ is iS is is is ~ ~ الله ~ रमणीयविहारी थेरो समिद्धि थेरो उज्जयो थेरो सञ्जयो थेरो रामणेय्यको थेरो ६-वग्गो बट्ठो विमलो थेरो गोधिको थेरो सुबाहु थेरो वल्लिया थेरो उत्तियो थेरो अञ्जनावनियो थेरो कुटिविहारी थेरो कुटिविहारो थेरो रमणीयकुटिको थेरो कोसलविहारी थेरो 9-वग्गो सत्तमो वप्पो थेरो वज्जिपुत्तो थेरो पक्खो थेरो विमलकोण्डो थेरो उक्खेपकतवच्छो थेरो मेघियो थेरो एकधम्मसवनीयो थेरो एकुद्दानियो थेरो छन्नो थेरो पुण्णो येरो ८-वग्गो अहमो वच्छपालो थेरो الله ~ आतुमो थेरो माणवो थेरो सुयामनो थेरो सूसारदो थेरो पियञ्जहो थेरो हत्यारोहपुत्तो थेरो मेण्डसिरो थेरो रक्खितो थेरो उग्गो थेरो ह-वग्गो नवमो समितिगुत्तो थेरो कस्सपो थेरो सोहो थेरो नीतो थेरो सुनागो थेरो नागितो थेरो पविठ्ठो थेरो अज्जुनो थेरो देवसभो थेरो सामिदत्तो थेरो १०-वग्गो दसमो परिपुण्णको थेरो विजयो थेरो एरको थेरो मेत्तजि थेरो चक्खुपालो थेरो खण्डसुमनो थेरो तिस्सो थेरो अभयो थेरो उत्तियो थेरो الله ~ is w १४ १४ w w w १४ o ooo o १५ o १५ १५ o or on an Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ २१ २७ ل २४ ل ل ل ل ...mmm ل س س س mr m ००~~ س देवसभी थेरो १९-वग्गो एकादसयो वेलठ्ठकानि थेरो सेतुच्छत्थेरो बन्धुरो थेरो खितको थेरो मलितवम्बो थेरो सुहेमन्तो थेरो धम्मसवो थेरो धम्मसवपित्त थेरो सङ्घरक्खितो थेरो उसभो थेरो १२-वग्गो द्वादसयो जेन्तो थेरो वच्छगोत्तो थेरो वनवच्छो थेरो अधिमुत्तो थेरो महानामो थेरो पारापरियो थेरो यसो थेरो किम्बिलो थेरो वज्जिपुत्तो थेरो इसिदत्तो थेरो २-दुकनिपातो वल्लियो थेरो गङ्गातीरियो भिक्खु अजिनो थेरो मेळजिनो थेरो राधो थेरो सुराधो थेरो गोतमो थेरो वसभो थेरो २-वग्गो दुतियो महाचुन्दो थेरो जोतिदासो थेरो हेरञकानि थेरो सोभमित्तो थेरो सब्बमित्तो थेरो महाकालो थेरो तिस्सो थेरो किम्बिलो थेरो नन्दो थेरो सिरिमा थेरो ३-वग्गो ततियो उत्तरो थेरो भद्दजि थेरो सोभितो थेरो वल्लियो थेरो वोतसोको थेरो पुण्णमासो थेरो नन्दको थेरो भरतो थेरो भारद्वाजो थेरो कण्हदिन्नो थेरो ४-वग्गो चतुत्थो मिगसिरो थेरो सिवको थेरो उपवानो थेरो २४ س ہ س ہ س ہ س ہ ل س X س س X س سه X س سه X س سه २ س و ३५ २७ ३५ २७ ३५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ୨8 ४४ ४४ ४४ ४४ m m m mmmm ४५ 6 AM ४७ ४७ m पृष्ठ इसिदिन्नो थेरो सम्बुलकच्चानो थेरो । खितको थेरो सोणोपोटिरियपुत्तो थेरो निसभो थेरो उसभो थेरो कप्पटकुटो थेरो ५-वग्गो पञ्चमी कुमारकस्सपो थेरो ३८ धम्मपालो थेरो , ब्रह्मालि थेरो मोघराजा थेरो ३६ विसाखोपञ्चालिपुत्तो थेरो ३९ चूलको थेरो ___ अनूपमो थेरो '- वज्जितो थेरो सन्धितो थेरो ३-तिकनिपातो अङ्गणिक भारद्वाजथेरो पञ्चमो थेरो वाकुल थेरो धनियो थेरो मातङ्गपुत्तो थेरो खुज्जसोभितो थेरो वारणो थेरो पस्सिकत्थेरो यसोजत्थेरो साटिमत्तियत्थेरो उपालि थेरो ३६ उत्तरपालो थेरो अभिभूत त्थेरो गोतमो थेरो हारितो थरो विमलो थेरो ४-चतुकनिपातो नागसमाल थेरो भगु थेरो सभियो थेरो नन्दको थेरो जम्बुको थेरो सेनको थेरो सम्भूतो थेरो राहुलो थेरो चन्दनो थेरो धम्मिको थेरो सप्पको थेरो मुदितो थेरो ५-पञ्चनिपातो राजदत्तो थेरो सुभूतो थेरो गिरिमानन्दो थेरो सुमनो थेरो वड्ढो थेरो • नदिकस्सपो थेरो . गयाकस्सपो थेरो.. वक्कली थेरो . विजितसेनो थेरो यसदत्तो थेरो सोणो कुटिकण्णो थेरो ४६ ४६ ४६ ५० ५० ५१ مہ لہ لہ لہ ل مم x مم x له x س . x له ل الله x سه الله x الله x ४४ x و Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ६८ ૬૨ ७० ७४ ७५ ७७ ७७ . ७८ कोसियो थेरो ६-छनिपातो उरुवेळकस्सपो थेरो तेकिच्छकानि थेरो महानागो थेरो कुल्लो थेरो मालयपुत्तो थेरो सप्पदासत्थेरो कातियानो थेरो मिगजालो थेरो जेन्तो पुरोहितपुत्तो थेरो सुमनो थेरो न्हातकमुनि थेरो ब्रह्मदत्तो थेरो सिरिमण्डो थेरो सब्बकामो थेरो ७-सत्तनिपातो सुन्दरसमुद्दो थेरो लकुण्टको थेरो भद्दो थेरो सोपाको थेरो सरभङ्गो थेरो ८-अहनिपातो महाकच्चायनो थेरो सिरिमित्तो थेरो महापन्थको थेरो ४-नवनिपातो भूतो थेरो १०-दसनिपातो ५४ काकुदायी थेरो एकविहारियो थेरो महाकम्पिनो थेरो चूलपन्थको थेरो कप्पो थेरो उपसेनो वगन्तपुत्तो थेरो गोतमो थेरो ११-एकादसनिपातो संकिच्च थेरो १२-द्वादसनिपातो सीलवत्थेरो सुणीतो थेरो ६० १३-तेरसनिपातो सोणो कोळिविसो थेरो १४-चुदसनिपातो रेवतो थेरो गोदत्तो थेरो १६-सोळसनिपातो अज्ञाकोण्डो थेरो उदायी थेरो २०-वीसतिनिपातो अधिमुत्तो थेरो पारापरियो थेरो तेलकानि थेरो रट्ठपालो थेरो मालुक्यपुत्तो थेरो सेलो थेरो ६८ अङ्गलिमालो थेरो X-xxxxxxxxxx rururir ururururur irrown ७६ ८० MMM WW ०० ० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ १ पृष्ठ अनिरुद्धो थेरो ___६८ महाकस्सपो थेरो ११० पारापरियो थेरो १०० ३०-तिंसनिपातो ५०-पासनिपातो १११ फुस्सत्थरो १०३ तालपुटो थेरो सारिपुत्तो थेरो १०५ आनन्दो थेरो १०७ ६०-सठिकनिपातो ११५ ४०-चत्तालीसनिपातो १०८ महानिपातो १२० ___ ११४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मा सम्बुद्धस्स सीहानं व नदन्तानं दाठीनं गिरिगब्भरे । सुणाथ भावितत्तानं गाथा अत्तुपनायिका ॥१॥ यथा नामा यथा गोत्ता यथा धम्म विहारिनो यथाधिमुत्ता सप्पा विहरिसु अतन्दिता ॥२॥ तत्थ तत्थ विपस्सित्वा फुसित्वा अच्चुतं पदं कतन्तं पच्चवेक्खन्ता. इमं अत्थं अभासिसु ॥३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकनिपातो वग्गो पठमो छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, वस्स देव यथा सुखं; चित्तं मे सुसमाहितं विमुत्तं, आतापी विहरामि, वस्सदेवा 'ति ॥ १॥ इत्थं सुदं आयस्मा सुभूति थेरो गाथमभासित्था'ति । उपसन्तो उपरतो मन्तभाणी अनुद्धतो धुनाति पापके धम्मे दुमपत्तं व मालुतो 'ति ॥२॥ इत्थं सुदं आयस्मा महाकोट्ठिकथेरो गाथमभासित्थ । पञ्ञ इमं पस्स तथागतानं, अग्गि यथा पज्जलितो निसीथे । आलोकदा चक्खुददा भवन्ति ये आगतानं विनयन्ति कखन्ति ॥३॥ इत्थं सुदं आयस्मा कखारेवतो थेरो गाथं अभासित्थ । सब्भिरेव समासेय पण्डितेहत्थदस्सिभिः २ ] अत्थं महन्तं गम्भीरं दुद्दसं निपुणं अणुं धीरा समधिगच्छन्ति अप्पमत्ता विचक्खणा 'ति ।।४।। यस्मा पुण्णो मन्तानिपुत्तो रो यो दुद्दमयो दमेन दन्तो दब्बो सन्तुसितो वितिण्णकखो विजितावि अपेतभेरवो हि दब्बो सो परिनिब्बुतो ठितत्तो 'ति ॥५॥ यस्माद थे यो सीतवनं उपागा भिक्खु एको सन्तुसितो समाहितत्तो विजितावि अपेतलोमहंसो रक्खं कायगतासति धितीमा 'ति ॥ ६॥ यस्मा सीतवनियो थेरो यो पानुदि मच्चुराजस्स सेनं नळसेतुं व सुदुब्बलं महोघो विजितावि अपेतभेरवो हि दन्तो सो परिनिब्बुतो ठितत्तो 'ति ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिलिन्दवच्छो थेरो यस्मा भल्लियो थेरो यो दुद्दमयो दमेन दन्तो वीरो सन्तुसितो वितिष्णकखो विजितावि अपेतलोमहंसो वीरो सो परिनिब्बुतो ठितत्तो 'ति ॥८॥ वीरो थेरो स्वागतं नापगतं न यिदं दुम्मन्तितं मम । संविभत्सु धम्मेसु यं सेट्टं तदुपागमिन्ति ॥ ९ ॥ पिलिन्दवच्छो थेरो विहरि अपेक्खं इध वा हुरं वा यो वेदगू समितो यतत्तो । सब्दसु धम्मेसु अनुपलित्तो लोकस्स जना उदयब्बयञ्चा 'ति ॥ १० ॥ वग्गो पठमो उद्दानं सुभुति को ट्ठिको घेरो कखाखेत सुब्बतो मन्तानिपुत्त। दब्बो च सीतवनियो च भल्लियो वीरो पिनिन्दवच्छो च पुण्णमासो तमोनुदो' ति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ३ www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ ] वग्गो दुतियो पुराणमासो थेरो पामुज्जबहुलो भिक्खु धम्मे बुद्धपवेदिते । अधिगच्छे पदं सन्तं संखारूपसमं सुखन्ति ॥ ११ ॥ चूलगक्च्छो थेरो पञ्ञाबली सीलवतूपपन्नो समाहितो झानरतो सतीमा । यदत्थियं भोजनं भुञ्जमानो कझखेत कालं इध वीतरागो 'ति ॥१२॥ महागच्छो रो नीलब्भवण्णा रुचिरा सीतवारी सुचिन्धरा । गोपइन्दकसञ्छन्ना ते सेला रमयन्ति मन्ति ॥ १३ ॥ वनवच्छत्थेरो उपज्झायो मं अवचासि इतो गच्छामि सीवक गामे मे वसति कायो अर मे गतो मनो से मानको पि गच्छामि ; नत्थि संगो विजानतन्ति ॥ १४ ॥ वनवच्छस्स थेरस्स सामणेरो पञ्च छिन्दे पञ्च जहे पञ्च चुत्तरि भावये ; पञ्चसंघातिगो भिक्खु ओघतिष्णो 'ति वुच्चतीति ॥ १५ ॥ कुण्डधानो थेरो यथापि भद्दो आजञ्ञो नङ्गला वत्तनी सिखी गच्छति अप्पकसिरेन, एवं रत्तिन्दिवा मम गच्छन्ति अप्पकसिरेन सुखे लद्धे निरामिसे 'ति ॥ १६ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुळो थेरो बेलट्ठसीसो थेरो मिद्धी यदा होति महग्घसो च निदायिता सम्परिवत्तसायी महावराहो व निवापपुट्ठो पुनप्पुनं गन्भमुपेति मन्दो 'ति ॥१७॥ दासको थेरो अहू बुद्धस्स दायादो भिक्खु भेसकळावने केवलं अट्ठिसज्ञाय अफरि पटुर्वि इमं मझे 'हं कामरागं सो खिप्पमेव पहीयतीति ।।१८।। सिगालपिता थेरो उदकं हि नयन्ति नेत्तिका उसुकारा नमयन्ति तेजनं, दारुं नमन्ति तच्छका, अत्तानं दमयन्ति सुब्बताती 'ति ।।१९।। कुळो थेरो मरणे मे भयं नत्थि, निकन्ती नत्थि जीविते, सन्देहं निक्खिपिस्सामि सम्पजानो पतिस्सतो "ति ॥२०॥ वग्गो दुतियो उद्दानं चूलवच्छो महावच्छो वनवच्छो च सीवको कुण्डधानो च वेलट्ठि दासको च ततो परं सिङ्गालपितिको थेरो कुनो च अजितो दसा ति ॥२०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो ततियो अजितो थेरो नाहं भयस्स भायामि, सत्था नो अमतस्स कोविदो ॥ यत्थ भयं नावतिट्ठति तेन मग्गेन वजन्ति भिक्खवो 'ति ॥२१॥ निग्रोधत्थेरो नीला सुगीवा सिखिनो मोरा कारंवियं अभिनदन्ति, ते सीतवात कलिता सुत्तं झायं निबोधेन्तीति ॥२२॥ चित्तको थेरो अहं खो वेलुगुम्बस्मि भुत्वान मधुपायासं पदक्खिणं सम्मसन्तो खन्धानं उदयब्बयं सानुं पटिगमिस्सामि विवेकमनुब्रूहयन्ति ॥२३॥ गोसाळो थेरो अनुवस्सिको पब्बजितो, पस्स धम्मसुधम्मतं, तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥२४॥ सुगन्धो थेरो ओभासजातं फलगं चित्तं यस्स अभिण्हसो, तादिसं भिक्खं आसज्ज कण्ह दुक्खं निगच्छसीति ॥२५॥ नन्दियो थेरो सुत्वा सुब्भासितं वाचं बुद्धस्सादिच्वबन्धुनो पच्च व्याधिं हि निपुणं वालग्गं उसुना यथा 'ति ॥२६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तियो थेरो अभया थेरो दब्बं कुसं पोटकिलं उसीरं मुञ्ञ्ञपब्बजं उरसा पनुदहिस्सामि विवेकमनुब्रूहयन्ति ॥२७॥ कोमसकङ्गियो थेरो कच्चि नो वत्थपसुतो, कच्चि नो भूसनारतो, कच्चि सीलमयं गन्धं त्वं वासि नेतरा पजा 'ति ||२८|| जम्बुगामिपुत्त थेरो समुन्नमयमत्तानं उसुकारो व तेजनं चित्तं उजुं करित्वान अविज्जं छिन्द हारिता 'ति ॥ २९ ॥ हारितो थेरो आबाधे मे समुप्पन्ने सति मे उपपज्जथ अबाधो मे समुप्पन्नो कालो मे न प्पमज्जितुन्ति ॥ ३०॥ उत्तियो थेरो वग्गो ततियो उद्दानं निग्रोधो चित्तको थेरो घोसालत्थेरो सुगन्धो नन्दियो अभयो थेरो थेरो लोमसकंगियो जम्बुगामिक पुत्तो च हारितो उत्तियो इसीति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ७ www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो चतुत्थो फुट्ठी डंसेहि मकसेहि अरञस्मिं ब्रहावने नागो संगामसीसे व सतो तत्राधिवासये 'ति ॥३१॥ गह्वरतीरियो भिक्खु अजरं जीरमानेन तप्पमानेन निब्बुतिं निम्मिसं परमं सन्तिं योगक्षेमं अनुत्तरन्ति ॥३२॥ सुप्पियो थेरो यथापि एकपुत्तस्मिं पियस्मिं कुसली सिया एवं सब्बेसु पाणेमु सब्बत्थ कुसलो सिया 'ति ॥३३॥ सोपाको थेरो अनासन्नवरा एता निच्चमेव विजानता गामा अरञमागम्म ततो गेहं उपाविसि ततो उट्ठाय पक्कामि अनामन्तेत्वा पोसियो 'ति ॥३४॥ पोसियो थेरो सुखं सुखत्यो लभते तदाचरं, कित्तिञ्च पप्पोति, यसस्स वड्डति यो अरियमट्ठगिकमञ्जसं उजु भावेति मग्गं अमतस्स पत्तिया 'ति ॥३५॥ सामञकानि थेरो साधु सुतं साधु चरितकं साधु सदा अनिकेतविहारो अत्थपुच्छनं पदक्खिणकम्मं एतं सामञमकिञ्चनस्सा 'ति ॥३६॥ कुमीपुत्तो थेरो नाना जनपदं यन्ति विचरन्ता असञता समाधिञ्च विराधेन्ति, किं सु रटेंचरिया करिस्सति तस्मा विनेय्य सारम्भं झापेय्य अपुरक्खतो 'ति ॥३७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ बड्ढमानो थेरो [ कुमापुत्तम्सथेरस्स सहायको थेरो यो इद्धिया सरभुं अट्ठपेसि सो गवम्पति असितो अनेजो, तं सब्बसङगातिगतं महामुनि देवा नमस्सन्ति भवस्सपारगुन्ति ॥३८॥ गवम्पति थेरो सत्तिया विय ओमट्ठो डयहमाने व मत्थके कामरागपहानाय सतो भिक्खु परिबब्जे ति' ॥३६॥ तिस्सो थेरो सत्तिया विय ओमट्ठो डय्हमाने व मत्थके भवरागपहानाय सतो भिक्खु परिब्बजे 'ति ।।४०॥ बड्ढमानो थेरो वग्गो चतुत्थो उद्दानं गह वरतीरियो सुप्पियो सो पाको च पोसियो च सामञकानि कुमापुत्तो कुमापुत्त सहायको गवम्पति तिस्सत्थेरो वड्ढमानो महायसो 'ति । विवरमनुपतन्ति विज्जुता वेभारस्स च पण्डवस्स च, नगविवरगतो च झायति पुत्तो अप्पटिमस्स तादिनो 'ति ॥४१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो पञ्चमो सिरिवड्ढो थेरो चाले उपचाले सीसूपचाले पतिस्सतिका नु खो विहरथ, आगतो वो वालं विय वेधीति ॥४२॥ खदिरवनियो थेरो सुमुत्तिको सुमेत्तिको साहु सुमुत्तिकोम्हि तीहि खुज्जकेहि, असितासु मया नगलासु मया खुद्दकुद्दालासु मया। यदि पि इधमेव इधमेव अथवापि अलमेव अलमेव, झाय सुमङ्गल झाय सुमङ्गल, अप्पमत्तो विहर सुमङ्गला 'ति ॥४३॥ सुमङ्गको थेरो मतं वा अम्म रोदन्ति वो वा जीवं न दिस्सति । जीवन्तं मं अम्म दिस्सन्ती कस्मा मं अम्म रोदसीति ॥४४॥ ___ साहु थेरो यथापि भद्दो आजझो खलित्वा पतितिट्ठति एवं दस्सनसम्पन्नं सम्मासम्बुद्धसावकन्ति ॥४५॥ रमणीयविहारी थेरो सद्धायाहं पब्बजितो अगारस्मा अनगारियं, सति पञा च मे वुड्ढा चित्तञ्च सुसमाहितं कामं करस्सु रूपानि, नेवमं ब्याघयिस्ससीति ॥४६॥ समिद्धि थेरो नमो ते बुद्धवीरत्यु, विप्पमुत्तो सि सब्बधि तुय्हापदाने विहरं विहरामि अनासवो 'ति ॥४७॥ १०] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रामणेय्यको थेरो उज्जयो थेरो यथो अहं पब्बजितो, अगारस्मा अनगारियं नाभिजानामि संकष्पं अनरियं दोससंहितन्ति ॥ ४८ ॥ सञ्जय विहविहामिनदिते सिप्पिकाभिरुतेहि च न मे तं फन्दति चित्तं, एकत्तनिरतं हि मे ॥४९॥ रामको थेरो धरणी च सिच्चति वाति मालुंतो विज्जुता चरति नभे उपसम्मन्ति वितक्का चित्तं सुसमाहितं ममा 'ति ॥ ५० ॥ वग्गो पञ्चमो उद्दानं सिरिवड्ढो रेवतो थेरो सुमङगलो सानुसव्हयो रमणीयविहारी च समिद्धुज्ञ्जय - सञ्जयो • रामणेय्यो च सो थेरो विमलो चरणञ्जयो 'ति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ११ www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो को विमलो थेरो वस्सति देवो यथा सुगीतं छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, चित्तं सुसमाहितञ्च मय्हं, अथ चे पत्थयसि पवस्स देवा' ति ॥ ५१ ॥ गोधिको थेरो वस्सति देवो यथा सुगीतं, छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, चित्तं सुसमाहितञ्च काये अथ चे पत्थयसि पवस्स देवा 'ति ॥ ५२॥ सुबाहु थेरो वस्सति देवो यथा सुगीतं, छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, तस्सं विहरामि अप्पमत्तो, अथ चे पत्थयसि पवस्सदेवा 'ति ॥५३॥ वलिया थेरो वसति देवो यथा सुगीतं, छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, तस्सं विहरामि अदुतियो, अथ चे पत्थयसि पवस्स देवा 'ति ॥५४॥ उत्तियो थेरो आसन्दि कुटिकं कत्वा ओगय्ह अञ्जनं वनं तिस्सो विज्जा अनुपत्ता कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥ ५५ ॥ अञ्जनावनिया थेरो को कुटिकायं, भिक्खु कुटिकायं वीतरागो सुसमाहितचित्तो एवं जानाहि आवुसो अमोघा ते कुटिका कता 'ति ॥५६॥ कुटिविहारी थेरो अयमाहु पुराणिया कुटि, अञ्ञ पत्थयसे नवं कुटि आसं कुटिया विराजय दुक्खा भिक्खु पुन नवा कुटीति ॥५७॥ १२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोसलविहारी थेरो कुटिविहारी थेरो रमणीया मे कुटिका सद्धा देय्या मनोरमा न मे अत्यो कुमारीहि, येसं अत्थो तह गच्छथ नारियो 'ति ॥ ५८ ॥ रमणोयकुटिको थेरो सद्धायाहं पब्बजितो, अरने मे कुटिका कता, अप्पमत्तो च आतापी सम्पजानो पतिस्सतो 'ति ॥ ५९ ॥ कोसलविहारी थेरो ते मे इज्झिंसु संकप्पा यदत्थो पविसि कुटि, विज्जा विमुत्ति पच्चेस्सं मानानुसयमुज्जहन्ति ॥ ६० ॥ वग्गो छट्ठो उद्दानं गोधिको च सुबाहु च वल्लियो उत्तियो इसि अञ्जनावनियो थेरो दुबे कुटिविहारिनो रमणीयं कुटिको च कोसल्लव्य सीवलीतिः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ १३ www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घग्गो सत्तमो वप्पो थेरो पस्सति पस्सो पस्सन्तं अपस्सन्तञ्च परसति; अपस्सन्तो अपस्सन्तं पस्सन्तं च न पस्सतीति ॥ ६१ ॥ वज्जिपुतो थेरो एकका मयं अरञ्जे विहराम अपविद्धं व वनस्मिदारुकं; तस्स मे बहुका पिहयन्ति नेरयिका विय सग्गगामिनन्ति ॥६२॥ चुता पतन्ति पतिता गिद्धा च पुनरागता कतं किच्वं रतं रम्मं सुखेन 'अन्वागतं सुखन्ति ॥ ६३ ॥ पक्खो थेरो दुमव्हयाय उप्पन्नो जातो पण्डरकेतुना केतुहा केतुना येव महाकेतुं पधंसयीति ॥६४॥ विमलकोज्ञो थेरो उक्खेपकतवच्छस्स संकलितं बहूहि वस्सेहि । तं भासति गहट्टानं सुनिसिन्नो उळारपामुज्जो 'ति ॥ ६५॥ उक्खेपक्तच्छो थेरो अनुसासि महावीरो सब्बधम्मान पारगु; तस्साहं धम्मं सुत्वान विहासि सन्तिके रतो; तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥ ६६ ॥ मेघियो थेरो किलेसा झापिता मय्हं भवा सब्बे समूहता विक्खीणो जातिसंसारो नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥६७॥ १४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छन्नो थेरो [ १५ एकधम्मसवनीयो थेरो अधिचेतसो अप्पमज्जतो मुनिनो मोनपथेसु सिक्खतो सोका न भवन्ति तादिनो उपसन्तस्स सदा सतीमतो 'ति ॥६८।। एकुद्दानियो थेरो सुत्वान धम्मं महतो महारसं सब्बञ्जताणवरेन देसितं मग्गं पपज्जि अमतस्स पत्तिया, सो योगक्खेमस्स पथस्स कोविदो'ति ॥६९॥ छन्नो थेरो सीलमेव इध अग्गं, पञवा पन उत्तमो; मनुस्सेसु च देवेसु सीलपाणतो जयन्ति ॥७०॥ वग्गो सप्तमो उद्दानं वप्पो च वज्जिपुत्तो च पक्खो विमलकोण्डो उक्खेपकतवच्छो च मेधियो एक धम्मिको एकुद्दानिय-छन्नो च पुण्णथेरो महब्बलो 'ति. पुण्णो थेरो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो अट्ठमो सुसुखमनिपुणत्थदस्सिना मति कुसलेन निवातवुत्तिना संसेवितबुद्धसीलिना निब्बानं नहि तेन दुल्लभन्ति ॥७१॥ वच्छपालो थेरो यथा कलीरो सुसु वढितग्गो दुन्निक्खमो होति पसाखजातो एवं अहं भरियायाजीताय; अनुमञ मं पब्बञितो 'म्हि दानीति ॥७२॥ आतुमो थेरो जिण्णञ्च दिस्वा दुक्खितञ्च ब्याधितं मतञ्चदिस्वा गतमायुसंखयं । ततो अहं निक्खमितून पबजि पहाय कामानि मनोरमानीति ॥७३॥ माणवो थेरो कामच्छन्दो च ब्यापादो थीनमिद्धञ्च भिक्खुनो उद्धच्चं विचिकिच्छा च सब्बसो 'व न विज्जतीति ॥७४॥ सुयामनो थेरो साधु सुविहितान दस्सनं, कङखा छिज्जति, बुद्धि वड्ढति, बालम्पि करोन्ति पण्डितं, तस्मा साधु सतं समागमो 'ति ॥७५॥ सुसारदो थेरो उप्पतन्तेसु निपते, निपतन्तेसु उप्पते, वसे अवसमानेसु रममानेसु नो रमे 'ति ॥७६॥ पियनहो थेरो इदं पुरे चित्तमचारि चारिकं येनिच्छकं यत्यकामं यथासुखं तदज्जहं निग्गहिस्सामि योनिसो हत्थिप्पभिन्नं विय अङकुसग्गहो "ति ॥७७।। १६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उग्गो थेरो हत्थारोहत्तो रो अनेकजातिसंसारं सन्धाविस्सं अनिब्बिसं, तस्स मे दुक्खजातस्स दुक्खक्खन्धो अपरद्धो 'ति ॥ ७८ ॥ मेडसिरो थेरो सब्बो रागो पहीनो मे, सब्बो दोसो समूहतो, सब्बो मे विगतो मोहो, सीतिभूतो 'स्मि निब्बुतो 'ति ॥ ७९ ॥ रक्खतो थेरो यं मया पकतं कम्मं अप्पं वा यदि वा बहु सब्बमेतं परिक्खीणं नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥ ८० ॥ उग्गो थेरो वग्गो अट्टमो उद्दानं वच्छपालो च यो थेरो आतुमो माणवो इसि सुयामनो सुसारदो थेरो यो च पियञ्जहो आरोहपुत्तो मेण्डसिरो रक्खितो उग्गसव्हयो 'ति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ १७ www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो नवमो यं मया पकतं पापं पुब्बे अज्ञासु जातिसु, इधे व तं वेदनियं; वत्थु अशं न विजती 'ति ।।८।। समितिगुत्तो थेरो येन येन सुभिक्खानि सिवानि अभयानि च तेन पुत्तक गच्छस्सु, मा सोका पहतो भवा 'ति ॥८२।। __ कस्सपो थेरो सीहप्पमत्तो विहर रत्तिन्दिवमतन्दितो भावेहि कुसलं धम्मं, जाह सीघं समुस्सयन्ति ।।८।। सीहो थेरो सब्बरत्ति सुपित्वान दिवा संगणिके रतो कुदास्सु नाम दुम्मेधो दुक्खस्सन्तं करिस्सतीति ॥८४॥ नीतो थेरो चित्तनिमित्तस्स कोविदो पविवेकरसं विजानिय झायं निपको पतिस्सतो अधिगच्छेय्य सुखं निरामिसन्ति ।।८५।। ___ सुनागो थेरो इतो बहिद्धा पुथु अझवादिनं मग्गो न निब्बानगमो यथा अयं इतिस्सु संघं भगवानुसासति सत्था सयं पाणितले व दस्सयन्ति ॥८६॥ नागितो थेरो खन्धा दिट्ठा यथाभूतं, भवा सब्बे पदालिता विक्खीणो जातिसंसारो, नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ।।८७॥ १८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामिदत्त थेरो पविटो थेरो असक्खिं वत अत्तानं उद्घातुं उदका थलं वुयहमानो महोघे व सच्चानि पटिविज्झहन्ति ॥ ८८ ॥ अज्जुनो थेरो उत्तिणा पका पलिपा, पाताला परिवज्जिता, मुत्तो ओघा च गन्था च सब्बे माना विसंहता 'ति ॥ ८९ ॥ देवभो थेरा पञ्चक्खन्धा परिञ्ञाता तिट्ठन्ति छिन्नमूलका विक्खीणो जातिसंसारो नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥ ९० ॥ सामिदत्तोथेरो वग्गो नवमो उद्दानं थेरो समितिगुत्तो कस्सपो सीहसव्हयो नीतो सुनाग नागितो पविट्ठो अज्जुनो इसि देवसभो च यो थेरो सामिदत्तो महब्बलो । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ १६ www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो दसमो न तथामतं सतरसं सुधनं यं मयज्ज परिभतं अपरिमितदस्सिना गोतमेन बुद्धेन देसितो धम्मो 'ति ।।९।। परिपुगणको थेरो यस्सासवा परिक्खीणा आहारे च अनिस्सितो सुज्ञतो अनिमित्तो च विमोक्खो यस्स गोचरो, आकासे व सकुन्तानं पदन्तस्स दुरन्नयन्ति ॥९२।। विजयो थेरो दुक्खा कामा एरक, न सुखा कामा एरक, यो कामे कामयति दुक्खं सो कामयति एरक, यो कामेन कामयति दुक्खं सो न कामयति एरका 'ति ।।९३।। एरको थेरो नमो हि तस्स भगवतो सक्यपुत्तस्स सिरीमतो तेनायं अग्गपत्तेन अग्गधम्मो सुदेसितो 'ति ॥९४॥ मेत्तजि थेरो अन्धो 'हं हतनेत्तो 'स्मि, कन्तारद्धान पक्खन्नो, सयमानो पि गच्छिस्सं न सहायेन पापेना 'ति ॥९५।। चक्खुपालो थेरो एकपुप्फ चजित्वान असीति वस्सकोटियो सग्गेसु परिचारेत्वा सेसकेनम्हि निब्बुतो 'ति ॥९६॥ खण्डसुमनो थेरो हित्वा सतपलं कसं सोवण्णं सतराजिक अग्गहिं मत्तिकापत्तं इदं दुतियाभिसेचनन्ति ॥९७॥ २० ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवसभो थेरो [ २१ तिस्सो थेरो रूपं दिस्वा सति मुट्ठा पियनिमित्तं मनसिकरोतो, सारत्त चित्तो वेदेति तञ्च अज्झोस तिट्ठति, तस्स वड्ढन्ति आसवा भवमूलोपगामिनो 'ति ॥९८॥ अभयो थेरो सद्दसुत्वा सति मुट्ठा पियनिमित्तं मनसिकरोतो, सारत्तचित्तो वेदेति तञ्च अज्झोस तिट्ठति, तस्स वड्ढन्ति आसवा संसारमुपगामिनो 'ति ।।९९॥ उत्तियो थेरो सम्मप्पधानसम्पन्नो सतिपट्टानगोचरो विमुत्तिकुसुमसञ्छन्नो परि निब्बिस्सत्यनासवो 'ति ॥१०॥ देवसभो थेरो वग्गो दसमो उद्दानं परिपुण्णको च विजयो एरको मेत्तजी मुनि चक्खुपालो खण्डसुमनो तिस्सो अभयो च उत्तियो महापञो थेरो देवसभो पि चा 'ति । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो एकादसयो हित्वा गिहित्वं अनवोसितत्तो मुखनगली ओदरिको कुसीतो महावराहो व निवापपुट्ठो पुनप्पुनं गब्भमुपेति मन्दो 'ति ॥१०१।। वेलठ्ठकानि थेरो मानेन वञ्चितासे संखारेसु संकिलिस्समानासे लाभालाभेन मथिता समाधिं नाधिगच्छन्तीति ॥१०२॥ सेतुच्छत्थेरो नाहं एतेन अत्थिको सुखितो धम्मरसेन तप्पितो, पीत्वान रसग्गमुत्तमं न च काहामि विसेन सन्थवन्ति ॥१०३।। बन्धुरो थेरो लहुको वत मे कायो फुट्ठो च पीतिसुखेन विपुलेन तूलामिव एरितं मालुतेन पिलवति व मे कायो 'ति ॥१०४॥ खितको थेरो उक्कण्ठितो पि न वसे रममानो पि पक्कमे न त्वेवानत्थसहितं वसे वासं विचक्खणो "ति ॥१०५॥ मलितवम्बो थेरो सतलिङगस्स अत्थस्स सतलक्खणधारिनो एकङ्गदस्सी दुम्मेधो सतदस्सी च पण्डितो 'ति ॥१०६॥ सुहेमन्तो थेरो पब्बजिं तुलयित्वान अगारस्मा अनगारियं; तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥१०७॥ २२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसभो थेरो [ २३ धम्मसवो थेरो सवीसंवस्ससतिको पब्बजि अनगारियं; तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥१०८॥ धम्मसवपित्तु थेरो न नूनायं परमहितानुकम्पिनो रहोगतो अनुविगणेति सासनं ; तथा हयं विहरति पाकतिन्द्रियो मिगी यथा तरुणजातिका व नेति ॥१०९।। ___ सङ्घरक्खितो थेरो नगा नगग्गेसु सुसंविरूळहा उदग्गमेघेन नवेन सित्ता विवेककामस्स अरञसञिनो जनेति भिय्यो उसभस्स कल्यतन्ति ॥११०।। उसमो थेरो वग्गो एकादसमो उद्दानं बेल?कानि सेतुवच्छो बन्धुरो खितको इसि मलितवम्भो सुहेमन्तो धम्मसवो धम्मसवपिता संघरविखतथेरो च उसभो च महामुनि । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो द्वादसयो दुप्पब्बज्जं वे, दुरधिवासा गेहा, धम्मो गम्भीरो, दुरधिगमा भोगा; किच्छावुत्तिनो इतरीतरेनेव, युत्तं चिन्तेतुं सततमनिच्चतन्ति ॥ १११॥ जेन्तो थेरो तेविज्जो 'हं महाझायी चेतो समथकोविदो, सदत्थो मे अनुप्पत्तो, कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥ ११२ ॥ वच्छगोतो थेरो अच्छोदिका पुथुसिला गोनङ्गुलमिगायुता अम्बुसेवालसञ्छन्ना ते सेला रमयन्ति मन्ति ॥ ११३ ॥ नवच्छो रो कायदुट्टुल्लगरुनो हिय्यमानम्हि जीविते सरीरसुखगिद्धस्स कुतो समणसाधुता 'ति ॥ ११४ ॥ अधिमुत्तो रो एसावहिय्यसे पब्बतेन बहुकुटजसल्लकिकेन नेसादकेन गिरिना यसस्सिना परिच्छदेना 'ति ॥ ११५ ॥ महानामो थेरो छ फस्सायतने हित्वा गुत्तद्वारो सुसंवृतो अघमूलं वमित्वान पत्तो मे असवक्खयो ॥ ११६॥ पारापरियो थेरो सुविलित्तो सुवसनो सब्बाभरणभूसितो तिस्सो विज्जा अज्झर्गामं कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥ ११७ ॥ २४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २५ इसिदत्तो थेरो यसो थेरो अभिसत्थो व निपतति वयो, रूपमञ्जमिव तथैव सन्तं; तस्सेव सतो अविप्पवसतो अञस्सेव सरामि अत्तानन्ति ॥११८॥ किम्बिलो थेरो रुक्खमूलगहनं पसक्किय निब्बानं हदयस्मि ओसिय झाय गोतम मा च पमादो, किन्ते बिळिबिळिका करिस्सतीति ॥११९॥ वन्जिपुत्तो थेरो पञ्चक्खन्धा परिझाता तिट्ठन्ति छिन्नमूलका; दुक्खक्खयो अनुप्पत्तो, पत्तो मे आसवक्खयो 'ति ॥१२०॥ इसिदत्तो थेरो वग्गो द्वादसमो, तत्रुद्दानं भवतिः जेन्तो च वच्छगोत्तो च वच्छो च वनपव्हयो अधिमुत्तो महानामो पारापरियो यसो पि च किम्बिलो वज्जिपुत्तो च इसिदत्तो महायसो 'ति ॥ वीसुत्तरसत थेरा कतकिच्चा अनासवा एकके 'व निपातम्हि सुसंगीता महेसिभीति । निहितो एकनिपातो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुकनिपातो नत्थि कोचि भवो निच्चो संखारा वापि सस्सता, उप्पज्जन्ति च ते खन्धा चवन्ति अपरापरं ॥१२॥ एतं आदीनवं ञत्वा भवे न 'अम्हि अनत्थिको, निस्सटो सब्बकामेहि, पत्तो मे आसवक्खयो 'ति ।।१२२॥ इत्थं सुदं आयस्मा उत्तरो थेरो गाथायो अभासित्था'ति न इदं अनयेन जीवितं, नाहारो हदयस्स सन्तिका, आहारट्रितिको समस्सयो, इति दिस्वान चरामि एसनं ॥१२३।। पङको'ति हि नं अवेदयुं यायं वन्दनपूजना कुलेसु, सुखुमं सल्ळं दुरुब्बहं सक्कारो कापुरिसेन दुज्जहोति ॥१२४॥ इत्थं सुदं आयस्मा पिण्डोळभारद्वाजो थेरो गाथायो अभासित्था'ति । मक्कटो पञ्चद्वारायं कुटिकायं पसक्किय द्वारेन अनुपरियेति घट्टयन्तो मुहं मुहं ॥१२५॥ ति? मक्कट मा धावि, न हि ते तं यथा पुरे; निग्गहीतो 'सि पाय, नेतो दूरं गमिस्ससीति ॥१२६॥ वल्लियो थेरो तिण्णं मे ताळपत्तानं गङगातीरे कुटी कता, छवसित्तो व मे पत्तो , पंसुकूलञ्च चीवरं ॥१२७।। द्विन्नं अन्तरवस्सानं एका वाचा मे भासिता, ततिये अन्तरवस्सम्हि तमोखन्धो पदालितो'ति ॥१२८।। गङ्गातीरियो भिक्खु अपि चे होति तेविज्जो मच्चुहायी अनासवो अप्पज्ञातोति नं वाला अवजानन्ति अजानता ॥१२९॥ यो च खो अन्नपानस्स लाभी होति'ध पुग्गलो, पाप धम्मो पि चे होति, सो नेसं होति सक्कतो'ति ॥१३०॥ २६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसभी थेरो [ २७ अजिनो थेरो यदाहं धम्ममस्सोसिं भासमानस्स सत्थुनो, न कडखमभिजानामि सब्बा अपराजिते ।।१३१॥ सत्थ वाहे महावीरे सारथीनं वरुत्तमः मागे पटिप्पदायं वा कडल्खा महं न विज्जतीति ॥१३२।। मेळजिनो थेरो यथा अगार दुच्छन्नं वट्टि समतिविज्झति, एवं अभावितं चित्तं रागो समतिविज्झति ॥१३३।। यथा अगारं सुच्छन्नं वुट्ठि न समतिविज्झति एवं सुभासितं चित्तं रागो न समतिविज्झति ॥१३४।। राधो थेरो खीणा हि मय्हं जाति, वुसितं जिनसासनं पहीनो जालसंखातो, भवनेत्ति समूहता ।।१३५।। यस्सत्थाय पब्बजितो अगारस्मा अनगारियं, सो मे अत्थो अनुप्पतो सब्बसंयोजनक्खयो ॥१३६।। सुराधो थेरो सुखं सुपन्ति मुनयो ये इत्थीसु न बज्झरे सदा वे रक्खितब्बासु यासु सच्चं सुदुल्लभं ॥१३७॥ वधं चारिम्ह ते काम, अनणा दानि ते मयं, गच्छाम दानि निब्बानं यत्थ गन्त्वा न सोचतीति ।।१३८॥ ___ गोतमो थेरो पुब्बे हनति अत्तानं पच्छा हनति सो परे; सुहतं हन्ति अत्तानं वीतं सेनेव पक्खिमा ॥१३९॥ न ब्राह्मणो बहिवण्णो, अन्तो वण्णोहि ब्राह्मणो; यस्मि पापानि कम्मानि सवे कण्हो सुजम्पतीति ॥१४०।। वसभो थेरो वग्गो पठमो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] थेर-गाथा उद्दानं उत्तरो चे व पिण्डोलो वल्लियो तीरियो इसि अजिनो च मेळजिनो राधो सुराधो गोतमो वसभेन इमे होन्ति दस थेरा महिद्धिका'ति. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो दुतियो सुस्सूसा सुतवड्ढनी सुतं पञ्ञाय वड्ढनं, अञ्ञाय अत्थं जानाति, जातो अत्थो सुखावहो ।। १४१|| सेनासनानि, चरेय्य सेवेथ पन्तानि संयोजनविप्पमोक्खं : सचे रतिं नाधिगच्छेय्य तत्थ संघ वसे रक्खितत्तो सतीमा ति ॥ १४२॥ - महाचुन्दो थेरो ये खो ते वेघमिस्सेन नानत्थेन च कम्मुना मनुस्मे उपरुन्धन्ति फरुसुपक्कमा जना, तेपि तथेव कीरन्ति, न हि कम्मं पनस्सति ॥ १४३ ॥ यं करोति नरो कम्मं कल्याणं यदि पापकं, तस्स तस्सेव दायादो यं यं कम्मं पकुब्बतीति ।। १४४ । । जोतिदासो थेरो अच्चयन्ति अहोरत्ता, जीवितं उपरुज्झति, आयु खीयति मच्चानं कुन्नदीनं व वोदकं ।। १४५ ।। अथ पापानि कम्मानि करं बालो न बुज्झति पच्छास्स कटुकं होति, विपाको हिस्स पापको 'ति ॥१४६॥ कानि थे परितं दारुमारुह्य यथा सीदे महण्णवे एवं कुसीतमागम्म साधुजीवी पि सीदति ; तस्मा तं परिवज्जेय्य कुसीतं हीनवीरियं ॥ १४७ ॥ पविवित्तहि अरियेहि पहितत्तेहि झाहि निच्चं आरद्धविरियेहि पण्डितेहि सहावसेति ॥ १४८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ २६ www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] थेर-गाथा सोभमित्तो थेरो जनो जनम्हि सम्बद्धो, जनमेवस्सितो जनो, जनो जनेन हेठियति, हेठेति च जनो जनं ॥१४९॥ कोहि तस्स जनेनत्थो जनेन जनितेन वा जनं ओहाय गच्छन्तं हेटयित्वा वहुं जनन्ति ॥१५०॥ सब्बमित्तो थेरो काली इत्थि ब्रहती धड़करूपा सत्थिञ्च भेत्वा अपरञ्च सत्थिन बाहञ्च भेत्वा अपरञ्च बाहुं सीसञ्च भेत्वा दधिथालकं व एसा निसिन्ना अभिसद्दहित्वा ॥१५१॥ यो वे अविद्वा उपधिं करोति पुनप्पुनं दुक्खमुपेति मन्दो तस्मा पजानं उपधिं न कयिरा माहं पुन भिन्नसिरो सयिस्सन्ति ॥१५२॥ महाकालो थेरो बाहू सपत्ते लभति मुण्डो संघाटिपारुतो लाभी अन्नस्स पानस्स वत्थस्स सयनस्स च ॥१५३।। एतमादीनवं ञत्वा सक्कारेसु महन्भयं अप्पलाभो अनवस्सुतो सतो भिक्खु परिब्बजेति ॥१५४॥ तिस्सो थेरो पाचीनवंसदायम्हि सक्यपुत्ता सहायका पहायनप्पके भोगे उञ्छापत्तागते रता ॥१५५।। आरद्धविरिया पहितत्ता निच्चं दळ्हपरक्कमा रमन्ति धम्मरतिया हित्वान लोकिकं रतिन्ति ॥१५६।। किम्बिलो थेरो अयोनिसोमनसीकारा मण्डनं अनुयुञ्जिसं उद्धत्तो चपलो चासिं कामरागेन अट्टितो ॥१५७॥ उपायकुसलेनाहं बुद्धनादिच्चबन्धुना योनिसो पटिपज्जित्वा भवे चित्तं उदब्बहिन्ति ॥१५८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३१ सिरिमा थेरो नन्दो थेरो परे च नं पसंसन्ति अत्ता चे असमाहितो : मोघं परे पसंसन्ति, अत्ता हि असमाहितो ॥१५९॥ परे च नं गरहन्ति अत्ता चे सुसमाहितो मोघं परे गरहन्ति, अत्ता हि सुसमाहितो ॥१६०॥ सिरिमा थेरो वग्गो दुतियो उद्दानं चुन्दो च जातिदासो च थेरो हेरझकानि यो सोममित्तो सब्बमित्तो काळो तिस्सो च किम्बिलो नन्दो च सिरिमा चे व दस थेरा महिद्धिका'ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो ततियो खन्धा मया परिझाता, तण्हा मे सुसमूहता, भाविता मम बोज्झगा, पत्तो मे आसवक्खयो ॥१६१॥ सोहं खन्धे परिज्ञाय अब्बहित्वान जालिनि भावयित्वान बोज्झङ्गे निब्वायिस्सं अनासवो'ति ॥१६२।। उत्तरो थेरो पनादो नाम सो राजा यस्स यूपो सुवण्णयो तिरियं सोळसपब्बेधो उब्भमाह सहस्सधा ॥१६३॥ सहस्सकण्डु सतभेण्डु धजालु हरितामयो, अनच्चुं तत्थ गन्धब्बा छ सहस्सानि सत्तधा'ति ॥१६४॥ भद्दजि थेरो सतिमा पञवा भिक्खु आरद्धबलवीरियो पञ्चकप्पसतानाहं एकरत्ति अनुस्सरि ॥१६५॥ चत्तारो सतिपट्ठाने सत्त अट्ठ च भावयं पञ्च कप्पसता नाहं एकरत्ति अनुस्सरिन्ति ॥१६६।। सोभितो थेरो यं किच्चं दळ्हविरियेन यं किच्चं बोधुमिच्छता करिस्सं नावरज्झिस्सं, पस्स विरियपरक्कम ॥१६७।। त्वञ्च मे मग्गमक्खाहि अञ्जसं अमतोगधं; अहं मोनेन मोनिस्सं गगासोतो व सागरन्ति ॥१६८॥ वल्लियो थेरो केसे मे ओलिखिस्सन्ति कप्पको उपसंकमि, ततो आदासं आदाय सरीरं पच्चवेक्खिसं ॥१६९॥ ३२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारद्वाजो थेरो [ ३३ तुच्छो कायो अदिसित्थ, अन्धकारे तमो ब्यगा; सब्बे चोळा समुच्छिन्ना नत्थि दानि पुनब्बभवो'ति ।।१७०।। वीतसोको थेरो पञ्चनीवरणे हित्वा योगक्खेमस्स पत्तिया धम्मादासं गहेत्वान जाणदस्सजमत्तनो ॥१७१॥ पच्चवेक्खिं इमं कायं सब्बं सन्तरबाहिर अज्झत्तञ्च बहिद्धा च तुच्छो कायो अदिस्सथा'ति ॥१७२।। पुण्णमासो थेरो यथापि भद्दो आजञो खलित्वा पतितिट्ठति, भिय्यो लद्वान संवेगं अदीनो वहते धुरं ॥१७३॥ एवं दस्सनसम्पन्नं सम्मासम्बुद्धसावकं आजानियं मं धारेथ पुत्तं बुद्धस्स ओरसन्ति ॥१७४।। नन्दको थेरो एहि नन्दक गच्छाम उपज्झायस्स सन्तिकं, सीहनादं नदिस्साम बुद्धसेट्ठस्स सम्मुखा ॥१७५।। याय नो अनुकम्पाय अम्हे पब्बाजयि मुनि, सो नो अत्थो अनुप्पत्तो सब्बसंयोजनक्खयो'ति ॥१७६॥ भरतो थेरो नदन्ति एवं सप्पञ्जा सीहा व गिरिगब्भरे वीरा विजितसंगामा जेत्वा मारं सवाहनं ॥१७७।। सत्था च परिचिण्णो मे, धम्मो संघो च पूजितो, अहञ्च वित्तो सुमनो पुत्तं दिस्वा अनासवन्ति ॥१७८॥ भारद्वाजो थेरो उपासिता सप्पुरिसा, सुता धम्मा अभिण्हसो, सुत्वान पटिपज्जिस्सं अञ्जसं अमतोगधं ॥१७९।। भवरागहतस्स मे सतो भवरागो पुन मे न विञ्जति न चाहु न च मे भविस्सति न च मे एतरहि पि विज्जतीति ॥१८०॥ ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] थेर-गाथा कराहदिन्नो थेरो वग्गो ततियो उद्दानं उत्तरो भइजि थेरो सोभितो वल्लियो इसि वीतसोको च सो थेरो पुण्णमासो च नन्दको भरतो भारद्वाजो च कण्हदिन्नो महामुनीति. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो चतुत्थो यतो अहं पब्बजितो सम्मासम्बुद्धसासने, विमुच्चमानो उग्गच्छि, कामधातुं उपच्चगं ॥१८१॥ ब्रह्मनो पेक्खमानस्स ततो चित्तं विमुच्चि मे, अकुप्पा मे विमुत्तीति सब्बसंयोजनक्खया 'ति ॥१८२॥ मिगसिरो थेरो अनिच्चानि गहकानि तत्थ तत्थ पुनप्पुनं, गहकारं गवेसन्तो दुक्खा जाति पुनप्पुनं ॥१८३।। गहकारक दिट्ठो'सि पुन गेहं न काहसि; सब्बा ते फासुका भग्गा थूणीरा च विदालिता; विपरियादिकतं चित्तं इधैव विधमिस्सतीति ॥१८४॥ सिवको थेरो अरहं सुगतो लोके वातेहाबाधितो मुनिः सचे उण्होदकं अत्थि मुनिनो देहि ब्राह्मण ॥१८५॥ पूजितो पूजनेय्यानं सक्करेय्यान सक्कतो अपचितो अपचिनेय्यानं तस्स इच्छामि हातवे'ति ॥१८६।। उपवानो थरो दिट्ठा मया धम्मधरा उपासका कामा अनिच्चा इति भासमाना सारत्तरता मणिकुण्डलेसु पुत्तेसु दारेसु च ते अपेक्खा ॥१८७॥ अद्धा न जानन्ति यथा व धम्मं, कामा अनिच्चा इति चापि आहु, रागञ्च तेसं न बलत्थि छेत्तुं तस्मा सिता पुत्तदारं धनञ्चा'ति ॥१८८॥ [ ३५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा इसिदिन्नो थेरो देवो च वस्सति देवो च गळगळायति एकको चाहं भेरवे बिले विहरामिः ३६ ] तस्स मय्हं एककस्स भेरवे बिले विहरतो नत्थि भयं वा छम्भितत्तं वा लोमहंसो वा ॥१८९॥ धम्मता ममेसा यस्स मे एककस्स भेरवे बिले विहरतो नत्थि भयं वा छम्भितत्तं वा लोमहंसोवा'ति ॥ १९०॥ सम्बुलकच्चानो थेरो कस्स सेळूपमं चित्तं ठितं नानुपकम्पति विरत्तं रजनीयेसु कुप्पनीये न कुप्पति यस्सेवं भावितं त्रितं कुतो तं दुक्खमेस्सति ॥१९१॥ मम सेलूपमं चित्तं ठितं नानुपकम्पति विरत्तं रजनीयेसु कुप्पनीये न कुप्पति ममेवं भावितं चित्तं, कुतो मं दुक्ख मेस्सतीति ॥१९२॥ खितको थेरो न ताव सुपितुं होति रत्ति नक्खत्तमालिनी, पटिजग्गितुमेवेसा रत्ति होति विजानता ॥१९३॥ हत्थिक्खन्धावपतितं कुञ्जरो चे अनुक्क संगामे मे मतं सेय्यो यञ्चे जीवे पराजितो 'ति ॥ १९४॥ सोणो पोटिरियपुत्तो ॥ १९५॥ पञ्च कामगुणे हित्वा पियरूपे मनोरमे सद्धाय अभिनिक्खम्म दुक्खस्सन्तकरो भवे नाभि नन्दामि मरणं नाभि नन्दामि जीवितं कालञ्च पटिकखामि सम्पजानो पतिस्सतो 'ति ॥ १९६॥ सिभ अम्बपल्लवसंकासं अंसे कत्वान चीवरं निसिन्नो हत्थिगीवायं गामं पिण्डाय पाविसि ॥१९७॥ हत्यिक्खन्घतो ओग्य्ह संवेगं अलभिन्तदा सोहं दित्तो तदा सन्तो, पत्तो मे आसवक्खयो'ति ॥ १९८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३७ कप्पट कुटो थेरो उसभो थेरो अयं इति कप्पये कप्पटकुरो, अच्छाय अतिभरिताय अमतघटिकायं चम्मकतमत्तो, कतपदं झानानि ओचेतुं ॥१९९।। मा खो त्वं कप्पट पचालेसि मातं उपकण्णकम्हि तालेस्सं; न ह त्वं कप्पट मत्तमञ्जासि संघमज्झम्हि पचलायमानो'ति ॥२००॥ कप्पट कुटो थेरो वग्गो चतुत्थो, उद्दानं मिगसिरो सिवको व उपवानो च पण्डितो इसि दिन्नो च कच्चानो खितको च महावसी पोटिरियपुत्तो निसभो उसभो कप्पट कुरो'ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वग्गो पञ्चमो अहो बुद्धा अहो धम्मा अहो नो सत्थुसम्पदा यत्थ एतादिसं धम्मं सावको सच्छिकाहिति ॥ २०१ ॥ असंखेय्येसु कप्पेसु सक्कायाधिगता अहं, तेसं अयं पच्छिमको, चरिमो, यं समुस्सयो जातिमरणसंसारो, नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥२०२॥ कुमारकस्सपो थं यो हवे दहदो भिक्खु युञ्जति बुद्धसासने, जागरो पति सुत्तेसु, अमोघन्तस्स जीवितं ॥ २०३ ॥ तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च पसादं धम्मदस्सनं अनुयुञ्जेथ मेधावी सरं बुद्धान सासनन्ति ॥ २०४॥ धम्मपालो थेरो कस्सिन्द्रियानि समयं गतानि अस्सा यथा सारथिना सुदन्ता देवापि पहनमानस अनासवस्स तस्स पियन्ति तादिनो ॥२०५॥ महिन्द्रियानि समथं गतानि अस्सा यथा सारथिना सुदन्ता पहीतमानस्स अनासवस्स देवापि मय्हं पियहन्ति तादिनोति ॥ २०६॥ ब्रह्मालि थेरो छविपापक चित्तभद्दक मोघराज ससतं समाहितो, हेमन्तिकसीतकालरत्तियो, भिक्खु त्वं 'सि कथं करिस्ससि ||२०७|| सम्पन्नसस्ता मगघा केवला इति मे सुतं; पलालच्छन्नको सेय्यं यथ सुखजीविनो 'ति ॥ २०८॥ ३८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धितो थेरो मोघराजा थेरो न उक्खिपे नो च परिक्खिपे परे, न ओक्खिने पारगतं न एरए, न चत्तवण्णं परिसासु व्याहरे अनुद्धतो सम्भितभाणि सुब्बतो ॥ २०९ ॥ सुसुखुमनिपुणत्थदस्सिना मति कुसलेन निवात वुत्तिना संसेवितबुद्धसीलिना निब्बानं नहि तेन दुल्लभन्ति ।। २१०॥ विसाखो पञ्चालिपुत्त थेरो नदन्ति मोरा सुसिग्वा सुपेखुणा सुनीलगीवा सुमुखा सुगज्जिनो, सुद्दला चापि महा मही अयं सुव्यापितम्बु, सुवलाहकं नभं ॥२११ ॥ सुकल्लरूपो सुमनस्स झायितं सुनिक्खमो साधु सुबुद्धसासने ; सुसुक्क सुक्कं निपुणं सुदुद्दसं फुसाहितं उत्तममन्चुतं पदन्ति ॥ २१२ ॥ चूलको थेरो नन्दमानागतं चित्तं सूलमारोपमानकं, तेन तेनेव वजसि येन सूलं कलिङ्गरं ॥२१३॥ ताहं चित्तकलिं ब्रूमि तं ब्रूमि चित्तदुब्भकं ; सत्था ते दुल्लभो लद्धो; मानत्थे मं नियोजयीति ॥ २१४॥ अनुपमो थेरो संसरं दीघमद्धानं गतीसु परिवत्तिसं अपस्सं अरियसच्चानि अन्धभूतो पुथुज्जनो ॥२१५॥ तस्स मे अप्पमत्तस्त संसारा विनलीकता, सब्वा गती समुच्छिन्ना, नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥२१६॥ वज्जो अस्सत्थे हरितोभासे संविरूळह म्हि पादपे एकं बुद्धगतं स अलभित्थं पतिस्तो ।।२१७॥ एकतिसे इतो कप्पे यं सत्र्यं अलभिन्तदा, तस्सा सञ्ञाय वाहसा पत्तो मे आसवक्खयो 'ति ॥२१८॥ सन्धितो थेरो पञ्चमो वग्गो [ ३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] थेर-गाथा उद्दानं कुमारकस्सपो थेरो धम्मपालो च ब्रह्मालि मोघराजा विसाखो च चूळको च अनूपमो वज्जितो संधितो थेरो किलेसरजवाहनो 'ति गाथा दुकनिपातम्हि नवुति चेव अट्ठ च थेरा एकूनपञ्जासं भासिता नयकोविदा । दुकनिपातो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिकनिपातो अयोनिसुद्धि अन्वेसं अग्गि परिचरिं वने, सुद्धिमग्गमजानन्तो अकासि अमरं तपं ॥२१९॥ तं सुखेन सुखं लद्धं, पस्स धम्मसुधम्मतं; तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनं ॥२२०॥ ब्रह्मबन्धु पुरे आसिं, इदानि खो'म्हि ब्राह्मणो, तेविज्जो न्हातको चम्हि सोत्तियो चम्हि वेदगु 'ति ।।२२१॥ अङ्गणिक भारद्वाज थेरो पञ्चाहाहं पब्बजितो सेखो अप्पत्तमानसो विहारं मे पविट्ठस्स चेतसो पणिधी अहु ॥२२२॥ नासिस्सं न पविस्सामि विहारतो न निक्खमे न पि पस्सं निपातेस्सं तण्हासल्ले अनूहते ॥२२३॥ तस्स मेवं विहरतो पस्स विरियपरक्कम, तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥२२४॥ पच्चमो थेरो यो पुब्बे करणीयानि पच्छा सो कातुमिच्छति, सुखा सो धंसते ठाना पच्छा च मनुतप्पति ॥२२५।। यहि कयिरा तहि वदे, यं न कयिरा न तं वदे, अकरोन्तं भासमानं परिजानन्ति पण्डिता ॥२२६॥ सुसुखं वत निब्बानं सम्मासम्बुद्धदेसितं असोकं विरजं खेमं यत्ध दुक्खं निरुज्झतीति ॥२२७॥ [ ४१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] थेर-गाथा वाकुल थेरो सुखञ्चे जीवितुं इच्छे सामास्मि अपेक्खवा, संधिकं नातिमओय्य चीवरं पानभोजनं ॥२२८।। सुखच्चे जीवितुं इच्छे सामञ्जस्मि अपेक्खवा, अहिमुसिकसोभं व सेवेथ सयनासनं ॥२२९॥ सुखञ्चे जीवितुं इच्छे सामास्मि अपेक्खवा इतरीतरेन तुस्सेय्य एकधम्मञ्च भावये 'ति ।।२३०॥ धनियो थेरो अतिसीतं अत्युण्हं अतिसायं इदं अहू, इति विस्सट्ठकम्मन्ते खणा अच्चेन्ति माणवे ॥२३१॥ यो च सीतञ्च उण्हञ्च तिणा भिय्यो न मञ्जति करं पुरिसकिच्चानि, सो सुखा न विहायति ॥२३२।। दब्बं कुसं पोटकिलं उसीरं मुजपब्बजं उरसा पनुदहिस्सामि विवेकमनुब्रूहयन्ति ॥२३३।। मातङ्गपुत्तो थेरो ये चित्तकथी बहुस्सुता समणा पाटलिपुत्तवासिनो तेसज्ञतरो यमायुवा द्वारे तिट्ठति खुज्जसोलुभितो ॥२३४॥ ये चित्तकथी बहुस्सुता समणा पाटलिपुत्तवासिनो तेसज्जतरो यमायुवा द्वारे निट्ठति मालुतेरितो ॥२३५।। सुयुद्धेन सुयिठेन संगामविजयेन च ब्रह्मचरियानुचिण्णेन एवायं सुखमेधति ॥२३६॥ खुन्जसोभितो थेरो यो 'ध कोचि मनुस्सेसु परपाणातिहिंसति अस्मा लोका परम्हा च उभया धंसते नरो ॥२३७।। यो च मेत्तेन चित्तेन सब्बपाणानुकप्पति, बहुं हि सो पसवति पुञ्ज तादिसको नरो ॥२३८॥ सुभासितस्स सिक्खेथ समणुपासजस्स च, एकासनस्स च रहो चित्तवूपसमस्स चा 'ति ॥२३९।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४३ साटिमत्तियत्थेरो वारणो थेरो एको पि सद्धो मेधावी अस्सद्धानिध ञातिनं धम्मट्ठो सीलसम्पन्नो होति अत्थाय बन्धुनं ॥२४०॥ निग्गयह अनुकम्पाय चोदिता जातयो मया आतिबन्धवपेमेन कारं कत्वान भिक्खुसु ॥२४१।। ते अब्भतीता कालकता पत्ता ते तिदिवं सुखं, भातरो मय्हं माता च मोदन्ति कामकामिनो 'ति ॥२४२।। पस्सिकत्थरो काला पब्बडगसंकासो किसो धमनिसंततो मत्ता अन्नपानम्हि अदीनमनसो नरो ॥२४३॥ फुट्ठो डंसेहि मकसेहि अरास्मि ब्रहावने नागो संगामसीसे व सतो तत्राधिवासये ॥२४४।। यथा ब्रह्मा तथा एको, यथा देवो तथा दुवे, यथा गामो तथा तयो, कोलाहलं ततुत्तरिन्ति ।।२४५।। यसोजत्थेरो अहु तुय्ह पुरे सद्धा, सा ते अज्ज न विज्जति । यं तुय्हं तुय्हं एवेतं; नत्थि दुच्चरितं मम ॥२४६।। अनिच्चा हि चला सद्धा एवं दिट्ठा हि सा भया; रज्जन्ति पि विरज्जन्ति तत्थ किं जिय्यते मुनि ॥२४७।। पच्चति मुनिनो भत्तं थोकं थोकं कुले कुले; पिण्डिकाय चरिस्सामि, अत्थि जङघबलं ममा'ति ॥२४८॥ साटिमत्तियत्थरों सद्धाय अभिनिक्खम्म नव पब्बजितो नवो मित्ते भजेय्य कल्याणे सुद्धाजीवे अतन्दिते ॥२४९।। सद्धाय अभिनिक्खम्म नवपब्बजितो नवो संघस्मि विहरं भिक्खु सिक्खेथ विनयं बुधो ॥२५०॥ सद्धाय अभिनिक्खम्म नवपब्बजितो नवो कप्पा कप्पेसु कुसलो चरेय्य अपुरक्खतो ॥२५१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] थेर-गाथा उपालि पण्डितं वत मं सन्तं अलमत्थ विचिन्तकं पञ्चकामगुणा लोके सम्मोहा पातयिंसु मं ॥ २५२ ॥ पक्खन्नो मारविसये दळह, सल्लसमप्पितो असत्रिंख मच्चुराजस्स अहं पासा पमुच्चितुं ॥२५३॥ सब्बे कामा पहीना मे, भवा सब्बे पदालिता विक्खीणो जाति संसारो नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥ २५४ ॥ उत्तरपालो थेरो सुणाथ जातयो सब्बे यावन्तेत्य समागता, धम्मं वो देसयिस्सामि; दुक्खा जाति पुनपुनं ॥ २५५ ॥ आरभथ निक्खमथ युञ्ज्ञथ बुद्धसासने धुनाथ मच्चुनो सेनं नळागारं व कुञ्जरो ॥२५६॥ यो इमस्मि धम्मविनये अप्पमत्तो विहेस्सति, पहाय जातिससारं दुक्खस्सन्तं करिस्सतीति ॥ २५७॥ अभिभूतत्येरो संसरं हि निरयं अगच्छिसं, पेतलोकमगमं पुनप्पुनं, दुक्ख ममम्हि पि तिरच्छानयोनिया नेकधा हि वुसितं चिरं मया ॥ २५८ ॥ मानुसो पिच भवो 'भिराधितो, सग्गकायमगमं सर्फि सकि, रूपधातुसु अरूपधातुसु नेवसञ्ञिसु असञ्ञिसुट्ठितं ॥ २५९ ॥ सम्भवा सुविदिता असारका संखता पचलिता सदेरिता, तं विदित्वा महमत्तसम्भवं सन्तिमेव, सतिमा समज्झन्ति ॥२६०॥ गोतमो थेरो यो पुब्बे करणीयानि ... (२६१-२६३=२२५-२२७ ) ॥२६१-२६३॥ हारितो थेरो पापमित्ते विवज्जेत्वा भजेय्युत्तमपुग्गले ओवादे चस्स तिट्ठेय्य पत्येन्तो अचलं सुखं ॥२६४॥ (२६५,२६६=१४७, १४८) ॥२६५-२६६॥ परित्तं दारुम..... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमलो थेरो [ ४५ विमलो थेरो उद्दानं अङगणिको भारद्वाजो पच्चयो बाकुलो इसि धनियो मातडल्गपुत्तो सोभितो वारणो इसि पस्सिको च यसोजो च साटिमत्तियुपालि च उत्तरपालो अभिभूतो गोतमो हारितो पि च थेरो निकपातम्हि निब्बाने विमलो कतो; अट्ठतालीस गाथायो थेरा सोळस कित्तिता 'ति ॥ तिकनिपातो निठितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुकनिपातो अलंकता सुवसना मालिनी चन्दनुस्सदा मज्झे महापथे नारी तुरिये नच्चति नट्टकी ॥२६७॥ पिण्डिकाय पविट्ठो 'हं गच्छन्तो नं उदिक्खिसं अलंकतं सुवसनं मच्चपासं व ओड्डितं ॥२६८॥ ततो मे मनसीकारो योनिसो उदपज्जथा आदीनवो पातुरहू, निब्बिदा समतिट्ठत, ॥२६९।। ततो चित्तं विमुच्चि मे, पस्स धम्मसुधम्मतं । तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥२७॥ नागसमाल थेरो अहं मिद्धेन पकतो विहारा उतनिमि; चङकमं अभिरुहन्तो तथेव पपतिं छमा ॥२७॥ गत्तानि परिमज्जित्वा पुन पारुयह चकमं चङकमे चकर्मि सो 'हं अज्झत्तं सुसमाहितो ॥२७२॥ ततो मे......(२७३,२७४ =२६९,२७०) ॥२७३-२७४।। भगुथेरो परे च न विजानन्ति मयमेत्थ यमामसे; ये च तत्थ विजानन्ति ततो सम्मन्ति मेधगा ॥२७५॥ यदा च अविजानन्ता इरियन्त्यमरा विया, विजानन्ति च ये धम्म आतुरेस अनातुरा ॥२७६।। यं किञ्चि सिथिलं कम्मं संकिलिट्ठञ्च यं वतं संकस्सरं ब्रह्मचरियं, न तं होति महप्फलं ॥२७७॥ यस्स सब्रह्मचारीसु गारवो नूपलब्भति, आरका होति सद्धम्मा नभं पुथविया यथा 'ति ॥२७८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेनको थेरो समियो थेरो धिरत्थु पूरे दुग्गन्धे मारपक्खे अवस्सुते ; नव सोतानि ते कार्य यानि सन्दन्ति सब्बदा ॥ २७९ ॥ मा पुराणममञ्जित्थो मासादेसि तथागते; सग्गे पिते न रज्जन्ति किमङ्ग पन भानुसे ||२८० ॥ ये च खो बाला दुम्मेधा दुम्मन्ती मोहपारुता तादिसा तत्थ रज्जन्ति मारखित्तस्मि बन्धने ॥२८१॥ येसं रागो च दोसो च अविज्जा च विराजिता तादी तत्थ न रज्जन्ति छिन्नसुत्ता अबन्धना 'ति ॥ २८२ ॥ नन्दको पञ्चपञ्ञ्ञस वस्सानि रजोजलमधारयि, भुञ्जन्तो मासिकं भत्तं केसमस्सुं अलोचयि ॥२८३॥ एकपादेन अट्ठासं आसनं परिवज्जथि, सुक्खगूथानि च खादिं उद्देसञ्च न सादियिं ॥ २८४ ॥ एतादिसं करित्वान बहुं दुग्गतिगामिनं वुय्हमानो महोघेन बुद्धं सरणमागमं ॥ २८५ ॥ सरण गमनं पस्स, पस्स धम्मसुधम्मतं तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥ २८६॥ जम्बुको थेरो स्वागतं वत मे आसि गयायं गयफग्गुया यं असासि सम्बुद्धं देसेन्तं धम्ममुत्तमं ॥२८७॥ महप्पभं गणाचरियं अग्गपत्तं विनायकं सदेवकस्स लोकस्स जिनं अतुलदस्सनं ॥२८८॥ महानागं महावीरं महाजुतिमनासवं सब्वासवपरिक्खीणं सत्थारमकुतोभयं ॥ २८९ ॥ चिरसकिलिट्टं वत दिट्ठिसन्दानसन्दितं विमोचयी सो भगवा सब्बगन्थेहि सेनकन्ति ॥ २९०॥ सेनको थेरो यो दन्धकाले तरति तरणीये च दन्धये, अयोनिसो संविधानेन बालो दुक्खं निगच्छति ॥ २९१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ४७ www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] थेर-गाथा तस्सत्था परिहायन्ति कालपक्खे व चन्दिमा, आयसक्यञ्च पप्पोति मित्ते हि च विरुज्झतीति ॥२९२॥ यो दन्धकाले दन्धेति तरणीये च तारये, योनिसो संविधानेन सुखं पप्पोति पण्डितो ॥२९३।। तस्सत्था परिपूरन्ति सुक्कपक्खे व चन्दिमा, यसो कितिञ्च पप्पोति, मित्तेहि न विरुज्झतीति ॥२९४॥ सम्भूतो थेरो उभयेनेव सम्पन्नो राहुलभद्दो 'ति मं विदु, यञ्चम्हि पुत्तो बुद्धस्स, यञ्च धम्मेसु चक्खुमा ।।२९५।। यञ्च मे आसवा खीणा, यञ्च नत्थि पुनब्भवो। अरहा दक्खिणेय्यो 'म्हि तेविज्जो अमतद्दसो ॥२९६॥ कामन्धा जालसञ्छन्ना तण्हाछदनच्छादिता पमत्तबन्धुना बद्धा मच्छा व कुमिना मुखे ॥२९७॥ तं काममहमुज्झित्वा छेत्वा मारस्स बन्धनं समूलं तहमब्बूयह सीतिभूतो 'स्मि निभुतो 'ति ॥२९८॥ राहुलो थेरो जातरूपेन पच्छन्ना दासी गणपुरक्खता अङकेन पुत्तमादाय भरिया में उपागमि ॥२९९।। तञ्च दिस्वान आयन्ति सकपुत्तस्स मातरं, अलङकतं सवुसनं मच्चुपासं व ओड्डितं ॥३०॥ ततो मे-... (३०१,३०२=२६९,२७०) ॥३०१-३०२।। चन्दनो थेरो धम्मो हवे रक्खति धम्मचारि, धम्मो सुचिण्णो सुखमावहाति एसा निसंसो धम्मे सुचिण्णे, न दुग्गति गच्छति धम्मचारी ॥३०३॥ न हि धम्मो अधम्मो च उभो समविपाकिनो; अधम्मो निरयं नेति, धम्मो पापेति सुग्गति ॥३०४॥ तस्मा हि धम्मेसु करेय्य छन्दं इति मोदमानो सुगतेन तादिना; धम्मे ठिता सुगतवरस्स सावका निय्यन्ति धीरा सरणवरग्गगामिनो॥३०५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुदितोथेरो विष्फोटितो गण्डमूलो, तण्हाजालो समूहतो; सो खीणसंसारो न चत्थि किञ्चनं चन्दो यथा दोसिना पुण्णमासिया 'ति ॥३०६॥ धम्मिको थेरो यदा बलाका सुचिपण्डरच्छदा काळस्स मेघस्स भयेन तज्जिता पलेहिति आलयमालयेसिनी, तदा नदी अजकरणी रमेति मं ॥३०७॥ यदा वलाका सुविसुद्धपण्डरा काळस्स मेघस्स भयेन तज्जिता परियेसतिलेन मलेन, दस्सिनी, तदा नदी अजकरणी रमेति मं ॥ ३०८ ॥ कन्नु तत्थ न रमेन्ति जम्बुयो उभतो तहि, सोभेन्ति आपगा कूलं महालेनस्स पच्छतो ॥३०९॥ तामतमदसं घसुप्पहीना भेका मन्दवती पनादयन्ति, नाज्ज गिरि नदीहि विप्पवाससमयो, खेमा अजकरणी सिवा सुरम्मा 'ति ॥ ३१०॥ सप्पको थेरो पब्बजि जीविकत्थो 'हं, लद्धान उपसम्पदं ततो सद्धं पटिलभि, दळहविरियो परक्कमिं ।।३११। कामं भिज्जतु 'यं कायो मंसपेसी विसीयरुं, उभोजन्नुकसंधीहि जङघायो पपतन्तु मे ॥ ३१२ ॥ नासिस्सं न पविस्साभि विहारा च न निक्खमे न पि पस्सं निपातेस्सं तण्हासल्ले अनूहते ॥ ३१३॥ तस्स मेवं (=२२४) ॥३१४॥ मुदितोथेरो उद्दानं नागसमालो भगु च सभियो नन्दको पिच जम्बुको सेनको थेरो सम्भूतो राहुलो पिच भवति चन्दनो थेरो दसेते बुद्ध सावका । धम्मिको सप्पको थेरो मुदितो चापि ते तयो गाथायो द्वे च पञ्ञास थेरा सब्बे पि तेरसा 'ति । चतुक्कनिपातो निट्ठितो [ ४६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० पञ्चनिपातो भिक्खु सीवथिकं गत्वा अद्दमं इत्थमुज्झितं अपविद्धं सुसानस्मि खज्जन्तिं किमिही फुटं ।। ३१५ ।। यं हि एके जिगुच्छन्ति मतं दिस्वान पापकं, कामरागो पातुरहू अन्धो व सवती अहं ॥ ३१६ ॥ ओरं ओदनपाकम्हा तम्हा ठाना अपक्कमिं; सतिमा सम्पजानो 'हं एकमन्तं उपाविसि ॥ ३१७ ॥ ततो मे ....(३१८,३१९ - २६९,२७०) ।।३१८-३१९।। राजदत्तो थेरो अयोगे युञ्जमत्तानं पुरिसो किच्चमिच्छतो चरं चे नाधिगच्छेय्य, तं मे दुब्भगलक्खणं ॥ ३२०॥ अब्बूळहं अगतं विजितं एकञ्चे ओस्सजेय्य कली व सिया; सब्बानि पि चे ओस्सज्जेय्य अन्धो व सिया यहि कयिरा . (= २२६ ) ॥३२२॥ ... यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं अगन्धकं, एवं सुभासिता वाचा अपूला होति अकुब्बतो ॥३२३॥ यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं सगन्धकं एवं सुभासिता वाचा स- फला होति सकुब्बतो 'ति ॥ ३२४ ॥ सुभूतो थेरो वस्सति देवो यथा सुगीतं, छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता तस्सं विहरामि वूपसन्तो, अथ चे पत्थयसि पवस्स देव ।। ३२५ ॥ वसति देवो यथा सुगीतं छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, तस्सं विहरामि सन्तचित्तो-प- - तस्सं विहरामि - समविसमस्स अदस्सनतो ।। ३२१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीतरागो. वीत दोसो वड्ढो थेरो वीत मोहो अथ पत्थयसि पवस्स देवा 'ति ॥ ३२६-३२९॥ गिरिमानन्दो थेरो यं पत्थयानो धम्मेसु उपज्झायो अनुग्गहि अमतं अभिकखन्तं कतं कत्तब्बकं मया ॥ ३३० ॥ अनुप्पत्तो सच्छिकतो सयं धम्मो अनीतिहो; विसुद्धञ्ञाणो निक्कङखो व्याकरोमि तवन्तिके ।।३३१।। पुब्बेनिवासं जानामि दिब्बचक्खु विसोधितं, सदत्थो मे अनुप्पत्तो कतं बुद्धस्स सासनं ।।३३२।। अप्पमत्तस्स में मिक्वा सुसुता तव सासने, सब्बे मे आसवा खीणा नत्थि दानि पुनब्भवो ॥३३३॥ अनुसासि मं अरियवता अनुकम्पी अनुग्गहि; अमोघो तुय्हं ओवादो, अन्ते वासि 'म्हि सिक्खितो 'ति ॥ ३३४॥ म साधु हि किर मे माता पतोदं उपदंसयि यस्साहं वचनं सुत्वा अनुसिट्ठी जनेत्तिया आरद्धविरियो पहितत्तो पत्तो सम्बोधिमुत्तमं ॥ ३३५ ॥ अरहा दक्खिणेय्यो 'म्हि तेविज्जो अमतद्दसो जित्वा नमुचिनो सेनं विहरामि अनासवो ॥३३६॥ अज्झत्तञ्च वहिद्धा च ये मे विज्जिसु आसवा सब्बे असेसा उच्छिन्ना न च उप्पज्जरे पुन ।।३३७॥ विसारदा खो भगिनी एतं अत्थं अभासयिः अपि हा नून मयि पि वनथो ते न विज्जति ॥ ३३८ ॥ परियन्तकतं दुक्खं, अन्तिमो यं समुस्सयो जातिमरणसंसारो नत्थि दानि पुनव्भवो 'ति ॥ ३३९॥ वड्ढो थेरो अत्थाय वत मे बुद्धो नदिं नेरञ्जनं अगा, यस्साहं धम्मं सुत्वान मिच्छादिट्ठि विवज्जयि ॥ ३४० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ५१ www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] थेर-गाथा यजि उच्चावचे य , अग्गिहुत्तं जुहिं अहं एसा सुद्धीति मचान्तो अन्धभूतो पुथुज्जनो ।।३४१।। दिट्ठि गहणपक्खनो परामामेन मोहितो अमुद्धि मजिसं सुद्धि अन्धभूतो अविद्दसु ॥३४२॥ मिच्छादिट्टि पहीना मे, भवा सब्बे विदालिता जुहामि दक्खिणेय्यग्गिं नमस्सामि तथागतं ।।३४३।। मोहा सब्बे पहीना मे भवतण्हा पदालिता विक्खीणो जातिसंसारो नत्थि दाणि पुनब्भवो 'ति ॥३४४।। नदिकस्सपो थेरो पातो मज्झन्तिकं सायं तिक्खत्तुं दिवसस्सहं ओतरि उदकं सोतं गयाय गयफग्गुया ॥३४५।। यं मया पकतं पापं पुब्बे अज्ञासु जातिसु तन्दानीध पवाहेमि एवंदिट्टि पुरे अहं ॥३४६॥ सुत्वा सुभासितं वाचं धम्मत्थसहितं पदं तथं यथावकं अत्थं योनिसो पच्चवेक्खिसं ॥३४७॥ निन्हातसब्बपापो 'म्हि निम्मलो पयतो सुचि सुद्धो सुद्धस्स दायादो पुत्तो बुद्धस्स ओरसो ॥३४८॥ ओगय्हट्टङगिकं सोतं सब्बपापं पवाहयिं, तिस्सो विज्जा अज्झगमि, कतं बुद्धस्स सासननि ।।३४९।। गयाकस्सपो थेरो वातरोगाभिनीतो त्वं विहरं कानने वने पविद्धगोचरे लूखे कथं भिक्खु करिस्ससि ॥३५०॥ पीतिसुखेन विपुलेन फरमानो समुस्सयं लूखम्पि अभिसम्भोन्तो विहरिस्सामि कानने ॥३५॥ भावेन्तो सतिपट्ठाने इन्दियानि बलानि च बोज्झङ्गानि च भावेन्तो विहरिस्सामि कानने ॥३५२॥ आरद्धविरिये पहितत्ते निच्चं दळहपरक्कमे समग्गे सहिते दिस्वा विहरिस्सामि कानने ॥३५३॥ अनुस्सरन्तो सम्बुद्धं अग्गदन्तं समाहितं अतन्दितो रत्तिदिवं विहरिस्सामि कानने "ति ॥३५४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५३ यसदत्तो थेरो वक्कली थेरो ओलग्गेसामि ते चित्त आणिद्वारे व हत्थिनं, न तं पापे नियोजिस्सं कामजाल सरीरज ॥३५५॥ त्वं ओलग्गो न गच्छिसि द्वारविवरं गजो व अलभन्तो, न च चित्तकलि पुनप्पुनं पसहम्पापरतो चरिस्ससि ॥३५६॥ यथा कुञ्जरं अदन्तं नवग्गहमडकुसग्गहो बलवा आवत्तेति अकामं, एवं आवत्तयिस्सन्तं ॥३५७।। यथा वरहयदमकुसलो सारथि पवरो दमेति आजञ्ज़, एवं दमयिस्सन्तं पतिट्टितो पञ्चसु बलेसु ॥३५८।। सतिया तं निबन्धिस्सं, पयतत्तो वो दमेस्सामि; विरियधुरनिग्गहीतो न यितो दूरं गमिस्ससे चित्ता "ति ॥३५९।। विजितसेनो थेरो उपारम्भचित्तो दुम्मेधो सुणाति जिनसासनं; आरका होति सद्धम्मा नभसो पथवी यथा ॥३६०॥ उपारम्भ चित्तो दुम्मेधो सुणाति जिनसासनं । परिहायति सद्धमा काळपक्खे व चन्दिमा ॥३६॥ उपारम्भ चित्तो दुम्मेधो सुणाति जिनसासनं परिसुस्सति सद्धमे मच्छो अप्पोदके यथा ॥३६२॥ उपारम्भचित्तो दुम्मेधो सुणाति जिनसासनं न विरूति सद्धा मे खेत्ते बीजं व पूतिकं ॥३६३।। यो च तुट्ठन चित्तेन सुणाति जिनसासनं खेपेत्वा आसवे सब्बे सच्छिकत्वा अकुप्पतं, पप्पुय्य पदमं सन्ति परिनिब्बाति अनासवो 'ति ॥३६४।। यसदत्तो थेरो उपसम्पदा च मे लद्धा, विमुत्तो चम्हि अनासवो सो च मे भगवा दिट्ठो, विहारे च सहावसि ॥३६५॥ बहुदेव रत्ति भगवा अब्भोकासे 'तिनामयि विहारकुसलो सत्था विहारं पाविसी तदा ॥३६६॥ सन्थरित्वान संघाटि सेय्यं कप्पेसि गोतमो सीहो सेलगुहायं व पहीनभयभेरवो ॥३६७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा ततो कल्याणवाक्करणो सम्मासम्बुद्धसावको सोणो अभासि सद्धम्मं बुद्धसेट्ठस्स सम्मुखा ॥ ३६८ ॥ पञ्चक्खन्धे परिञ्ञाय भावयित्वान अञ्जसं पप्पुय्य परमं सन्ति परिनिब्बस्सत्यनासवो 'ति ॥ ३६९ ॥ सोणो कुटिको थेरो ५४ ] यो वे गरूनं वचनञ्ञ धीरो वसे च तम्हि जनयेय पेमं, सो भत्तिमा नाम च होति पण्डितो 'त्वा च धम्मेसु विसेसि अस्स ॥३७०॥ यं आपदा अप्पतिता उळारा नक्खम्भयन्ते पटिसंखयन्तं सो यामवा नाम च होति पण्डितो ञत्वा च धम्मेसु विसेसि अस्स ।। ३७१।। यो वे समुद्दों व ठितो अनेजो गम्भीरपञ्ञो निपुणत्थदस्सी, ॥३७२॥ असंहारियो नाम च होति.. बहुस्सुतो धम्मधरो च होति, धम्मस्स होति अनुधम्मचारी, सो तादिसो नाम च होति. ॥ ३७३ ॥ अत्थञ्च यो जानाति भासितस्स अत्थञ्च चत्वा न तथा करोति, अत्थन्तरो नाम स होति पण्डितो गत्वा च धम्मेसु विसेसि अस्सा 'ति ॥ ३७४ ॥ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कोसियो थेरो उद्दानं राजदत्तो सुभूतो च गिरिमानन्द - सुमनो वड्ढो च कस्सपो थेरो गयाकस्सप वक्कलि विजितो यसदत्तो च सोणो कोसि यस व्हयोः सट्ठि च पञ्च गाथायो थेरा च एत्थ द्वादसा 'ति पञ्च निपातो www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छनिपातो दिस्वान पाटिहीरानि गोतमस्स यसस्सिनो न तावाहं पणिपति इस्सामानेन वञ्चितो ।। ३७५ ।। मम संकप्पमञ्ञाय चोदेसि नरसारथि, ततो मे आसि संवेगो अब्भुतो लोमहंसनो ॥३७६॥ पुब्त्रे जटिल भूतस्स या मे इद्धि परित्तिका, ताहं तदा निरंकत्वा पब्बजि जिनसासने ॥ ३७७॥ पुब्बे यञ्न सन्तुट्टो कामधातु पुरक्खतो, पच्छा रागञ्च दोसञ्च मोहञ्चापि समूहनि ॥ ३७८ ॥ पुब्बंनिवास जानामि दिव्यचक्खु विसोधितं, इद्धिमा परचित्त दिब्बसोतञ्च पापुणि ॥ ३७९॥ स यस्स चत्थाय पव्बजितो अगारस्मा अनगारियं, सो मे अत्थो अनुप्पत्तो सब्बसंयोजनक्खयो 'ति ॥ ३८० ॥ उवेकस्सपो थेरो अतिहिता वीहि, खलगता सालि, न च लभे पिण्डं कथमहं कस्सं ।। ३८१|| बुद्धमप्पमेय्यं अनुस्सर, पसन्नो पीतिया फुटसरीरो होसि सततमुदग्गो || ३८२ ॥ धम्ममप्पमेयं -प-संघमप्पमेय्यं—प -- ॥ ३८३-३८४॥ अब्भोकासे विहरसि, सीता हेमन्तिका इमा रत्तियो । मा सीतेन परेतो विहञ्जित्थो, पविस त्वं विहारं फुसितग्गळं ।। ३८५ ।। फुसिस्सं चतस्सो अप्पमञ्ञयो ताहि च सुखितो विहरिस्सं; नाहं सीतेन विहस्सिं अनिञ्जितो विहरन्तो 'ति ॥ ३८६॥ तेच्छिकानि थेरो यस्स सब्रह्मचारीसु गारवो नूपलब्भति परिहायति सद्धम्मा मच्छो अप्पोदके यथा ॥ ३८७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ५५ www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेरगाथा यस्स सब्रह्मचारीसु....... न विरूहति सद्धम्मे खेत्ते बीजं व पूतिकं ॥३८८।। यस्स सब्रह्मचारीसु......... . . . . . . आरका होति निब्बाना धम्मराजस्स सासने ॥३८९॥ यस्स सब्रह्मचारीसु गारवो उपलब्भति, न विहायति सद्धमा मच्छो बन्होदके यथा ॥३९०॥ यस्स ......... सो बिरूहति सद्धम्मे खेत्ते बीजं व भद्दकं ॥३९१।। यस्स ........... . . . . . . . . . . . . . . . सन्तिके होति निब्बानं धम्मराजस्स सासने 'ति ॥३९२॥ महानागो थेरो कुल्लो सीवथिकं गन्त्वा असं इत्थिमुज्झितं अपविद्धं सुसानस्मि खज्जन्ति किमिही फुटं ॥३९३।। आतुरं असुचि पूर्ति पस्स कुल्ल समुस्सयं उग्घरन्तं पग्घरन्तं बालानं अभिनन्दितं ॥३९४॥ धम्मादासं गहेत्वान जाणदस्सनपत्तिया पच्चवेक्खिं इमं कायं तुच्छं सन्तरबाहिरं ॥३९५॥ यथा इदं तथा एतं यथा एतं तथा इदं यथा अधो तथा उद्धं, यथा उद्धं तथा अघो ॥३९६॥ यथा दिवा तथा रत्ति यथा रत्ति तथा दिवा यथा पुरे तथा पच्छा यथा पच्छा तथा पुरे ॥३९७।। पञ्चङगिकेन तुरियन न रति होति तादिसी यथा एकग्गचित्तस्स सम्मा धम्मं विपस्स तोति ॥३९८॥ __ कुल्लो थेरो मनुजस्स पमत्तचारिनो तण्हा वड्ढति माळुवा विया, सो पलवती हुराहुरं फलमिच्छं व वनस्मि वानरो ॥३९९॥ यं एसा सहती जम्मी तण्हा लोके विसत्तिका, सोका तस्स पवड्ढन्ति अभिवड्ढं व भीरणं ॥४००॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्पदासत्थेरो [ ५७ यो वे तं सहती जम्मि तण्हं लोके दुरच्चयं, सोका तम्हा पपतन्ति उदविन्दु व पोक्खरा ॥४०१॥ तं वो वदामि भदं वो यावन्तेत्थ समागता तण्हाय मूलं खणथ उसीरत्थो व बीरणं, मा वो नळं व सोतो व मारो भजि पुनप्पुनं ॥४०२।। करोथ बुद्धवचनं खणो वे मा उपच्चगा, खणातीता हि सोचन्ति निरयम्हि समप्पिता ॥४०३।। पमादो रजो, पमादानुपतितो रजो, अप्पमादेन विज्जाय अब्बहे सल्लमत्तनोति ॥४०४॥ मालङ्क्यपुत्तो थेरो पण्णवीसतिवस्सानि यतो पब्बजितो अहं अच्छरासंघातमत्तम्पि चेतो सन्ति मनज्झगं ॥४०५॥ अलद्धा चित्तस्सेकग्गं कामरागेन अद्दितो बाहा पग्गयह कन्दन्तो विहारानुपनिक्खमि ॥४०६॥ सायं वा आहरिस्सामि को अत्था जीवितेन मे, कथं हि सिक्खं पच्चक्खं कालं कुब्बेथ मादिसो ॥४०७॥ तदाहं खुरमादाय मञ्चकम्हि उपाविसिं, परिनीतो खुरो आसि धमनि छेत्तुमत्तनो ॥४०८॥ ततो मे. . . . (४०९,४१०=२६९,२७०) ॥४०९॥-४१०॥ सप्पदासत्थेरो उहाहि निसीद कातियान मा निद्दाबहुलो अहु जागरस्सु, मा तं अलसं पमत्तबन्धु कूटेनेव जिनातु मच्चुराजा ॥४११॥ सयथापि महासमुद्दवेगो एवं जातिजरातिवत्तते तं, सो करोहि सुदीपमत्तनो त्वं, न हि ताणं तव विज्जतेव अनं ॥४१२॥ सत्था हि विजेसि मग्गमेतं सङगा जातिजराभया अतीतं, पुब्बापररत्तमप्पमत्तो. अनुयुञ्जसु दळहं करोहि योगं ॥४१३॥ पुरिमानि पमुञ्च बन्धनानि संघाटीखुर, मुण्डभिक्खभोजी मा खिड्डारतिञ्च मा निइं अनुयुजित्थ झियाय कातियान ॥४१४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ] थेर-गाथा झायाहि जिनाहि कातियान, योगक्खेमपदे सुकोविदो'सि; पप्पुय्य अनुत्तरं विसुद्धि परिनिब्बाहिसि वारिनाव जोति ॥४१५।। पज्जोतकरो परित्तरंसो वातेन विनम्यते लता व; एवम्पि तुवं आनादियानो मारं इन्दसगोत्त निद्धनाहि सो वेदयितासु वीतरागो कालं कङख इधेव सीतिभूतो'ति ॥४१६।। __ कातियानो थेरो सुदेसितो चक्खुमता बुद्धेनादिच्चबन्धुना सब्बसंयोजनातीतो सब्बवट्टविनासनो ॥४१७॥ निय्यानिको उत्तरणो तण्हामूलविसोसनो विसमूलं आधातनं छेत्वा पापेति निब्बुर्ति ॥४१८।। अचाणमूलभेदाय कम्मयन्तविघाटनो विज्ञाणानं परिग्गहे जाणवजिरनिपातनो ॥४१९॥ वेदनानं विज्ञापनो उपादानप्पमोचनो भवं अङगारकासुं व जाणेन अनुपस्सको ॥४२०॥ महारसो सुगम्भीरो जरामच्चुनिवारणो अयोडिकोगअरि?।।४२१॥ कम्म कम्मन्ति मत्वान विपाकञ्च विपाकतो पटिच्चुप्पन्नधम्मानं यथावालोकदस्सनो महाखेमंगमो सन्तो परियोसानभद्दको'ति ॥४२२।। मिगजालो थेरो जातिमदेन मत्तो'हं भोगैस्सरिपेन च सण्ठान वण्णरूपेन मदमत्तो अचारि'हं ॥४२३।। नात्तनो समकं कञ्चि अतिरेकञ्च मञ्जिसं अतिमानहतो वालो पत्थद्धो उस्सितद्धजो ॥४२४।। मातरं पितरञ्चापि अगे पि गरुसम्मते न कञ्चि अभिवादेसिं मानत्थद्धो अनादरो ॥४२५॥ दिस्वा विनायकं अग्गं सारथीनं वरुत्तमं तपन्तमिव आदिच्चं म्भिक्खुसंघपुरक्खतं ॥४२६॥ मानं मदञ्च छड्डत्वा विप्पसन्नेन चेतसा सिरसा अभिवादेसिं सब्बसत्तानमुत्तमं ॥४२७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुमनो थेरो अतिमानो च ओमानो पहीना सुसमूहता अस्मिमानो समुच्छिन्नो, सब्बे मानविधा हता'ति ॥४२८॥ जेन्तो पुरोहितपुत्त थेरो यदा न वो पब्बजितो जातिया सत्तवस्सिको, इद्धिया अभिभोत्वान पन्नगिन्दं महिद्धिकं ॥४२९ ॥ उपज्झायस्स उदकं अनोतत्ता महासरा आहरामि ततो दिस्वा मं सत्था एतदब्रवी ॥४३०॥ सारिपुत्त इमं पस्स आगच्छन्तं कुमारकं उदकुम्भकमादाय अज्झत्तं सुसमाहितं ॥ ४३१ ॥ पासादिकेन वत्तेन कल्याणइरियापथो सामणेरो नुरुद्धस्स इद्धिया च विसारदो ॥४३२।। आजानियेन आजञ्जो साधुना साधु कारितो विनीतो अनुरुद्धेन कतकिच्चेन सिक्खितो ॥४३३॥ सो पत्वा परमं सन्ति सच्छिकत्वा अकुप्पतं सामणेरो स सुमनो मा मं जञाति इच्छतीति ॥४३४॥ सुमनो थेरो कानने ॥४३६॥ वातरोगाभिनीतो त्वं विहरं कानने वने पविद्धगोचरे लूखे कथं भिक्खु करिस्ससि ।।४३५ ।। पीति सुखेन विपुलेन फरित्वान समुस्सयं लूखम्पि अभिसम्भोन्तो विहरिस्सामि भावेन्तो सत्त बोज्झडगे इन्द्रियानि बलानि च झानसोखुम्मसम्पन्नो विहरिस्सं अनासवो ॥४३७॥ विप्पमुत्तं किलेसेहि सुद्धचित्तं अनाविलं अभिण्हं पञ्चवेक्खन्तो विहरिस्सं अनासवो ॥४३८।। अज्झत्तीञ्च बहिद्धा च ये मे विज्जिंसु आसवा सब्बे असेसा उच्छिन्ना न च उप्पज्जरे पुन ॥ ४३९॥ पञ्चक्खन्धा परिता तिट्ठन्ति छिन्नमूलका, दुक्खक्खयो अनुप्पत्तो, नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥४४०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ५६ www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] थेर-गाथा न्हातकमुनि थेरो अक्कोधस्स कुतो कोधो दन्तस्स समजीविनो सम्मदज्ञाविमुत्तस्स उपसन्तस्स तादिनो ॥४४१।। तस्सेव तेन पापियो यो कुद्धं पटिकुज्झति; कुद्धं अप्पटिकुज्झन्तो संगामं जेति दुज्जयं ॥४४२।। उभिन्नमत्थं चरति अत्तनो च परस्स च, परं संकुपितं जत्वा यो सतो उपसम्मति ॥४४३॥ उभिन्नं तिकिच्छन्तंतं अत्तनो च परस्स च जना मञ्जन्ति बालो'ति ये धम्मस्स अकोविदा ॥४॥४॥ उप्पज्जते स चे कोधो, आवज्ज ककचूपमं; उप्पज्जे चे रसे तण्हा, पुत्तमंसुपमं सर ॥४४५॥ सचे धावति ते चित्तं कामेसुच भवेसु च, खिप्पं निग्गण्ह सतिया किट्ठादं विय दुप्पसुन्ति ॥४४६॥ ___ ब्रह्मदत्तो थेरो छन्नमतिवस्सति, विवटं नातिवस्सतिः तस्मा छन्नं विवरेथ, एवन्तं नातिवस्सति ।।४४७।। मच्चुनब्भाहतो लोको, जराय परिवारितो, तण्हासल्लेन ओतिण्णो, इच्छाधूपायितो सदा ॥४४८।। मच्चुनब्भाहतो लोको परिक्खित्तो जराय च हाति निच्चमत्ताणो पत्तदण्डो व तक्करो ॥४९॥ आगच्छन्तग्गिखन्धा व मच्चुव्याधि जराय तयो । पच्चुग्गन्तुं बलं नत्थि, जवो नत्थि पलायितुं ॥४५०॥ अमोघं दिवसं कयिरा अप्पेन बहुकेन वा; यं यं विजहते रत्ति तदूनन्तस्स जीवितं ॥४५१॥ चरतो तिट्ठतो वापि आसीनं सयनस्स वा उपेति चरिमा रत्ति, न ते कालो पमज्जितु न्ति ॥४५२॥ सिरिमण्डो थेरो दिपादको यमसुचि दुग्गन्धो परिहीरति नानाकुणपपरिपूरो विस्सवन्तो ततो ततो ॥४५३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सब्बकामो थेरो मिगं निलीनं कूटेन बलिसेनेव अम्बुजं वानरं विय लेपेन बाधयन्ति पुथुज्जनं ॥४५४॥ रूपा सद्दा रसा गन्धा फोटुब्बा च मनोरमा पञ्चकामगुणा एते इत्थि रूपस्मि दिस्सरे ॥ ४५५ ॥ ये एता उपसेवन्ति रत्तचित्ता पुथुज्जना, वड्ढेन्ति कटसिं घोरं आचिनन्ति पुनब्भवं ॥ ४५६ ॥ यो वेता परिवज्जेति सप्पस्सेव पदा सिरो सो मं विसत्तिकं लोके सतो समतिवत्तति ॥४५७॥ कामेस्वादीनवं दिस्वा नेक्खम्मं दट्टु खेमतो निस्सटो सब्बकामेहिं, पत्तो मे आसवक्खयो 'ति ॥ ४५८ ॥ सकामो थेरो उद्दानं उरुवेळकस्सपो च थेरो तेकिच्छकानि च महानागो च कुल्लो च मालुतो सप्पदासको । कातियानो च मिगजालो जेन्तो सुमनसव्हयो न्हातमुनि ब्रह्मदत्तो सिरिमण्डो सब्बकामको गाथायो चतुरासीति, थेरा चेत्थ चतुद्दसा ति छनिपातो निट्ठितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ६१ www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तनिपातो अलंकता सुवसना मालधारी विभूसिता अलत्तककतापादा पादुकारुय्ह वेसिका ॥ ४५९॥ पादुका ओरुहित्वान पुरतो पञ्जलिकता सा मं सहेन मुदुना म्हितपुब्बं अभासथ ॥४६०॥ युवासि त्वं पब्बजितो तिट्ठाहि मम सासने, भुज्ज मानुसके कामे, अहं वित्तं ददामि ते. सच्चन्ते पटिजानामि, अग्गिं वा ते हरामहं ॥४६१॥ यदा जिण्णा भविस्साम उभो दण्डपरायना, उभो पि पब्बजिस्साम, उभयत्थ कटग्गहो ॥४६२॥ तञ्च दिस्वान याचन्ति वेसिकं पञ्जलीकतं अलंकतं सुवसनं मच्चुपासं व ओड्डितं ॥४६३॥ ततो मे. (= २६९, २७० ) ।।४६४–४६५।। सुन्दरसमुद्दो थेरो ... परे अम्बाटकारामे वनसण्डम्हि भद्दियो समूलं तण्हमब्बूय्ह तत्थ भद्दो झियायति ॥४६६॥ रमन्तेके मुतिङ्गेहि वीणाहि पणवेहि च अहञ्च स्क्खमूलस्मि रतो बुद्धस्स सासने ||४६७॥ बुद्धो च मे वरं दज्जा सो च लब्भेथ मे वरो गण्हे'हं सब्बलोकस्स निच्चं कायगतासति ॥४६८ ॥ ये मं रूपेन पामिंसु ये च घोसेन अन्वगृ । छन्दरागवसूपेता न मं जानन्ति ते जना ॥४६९॥ अज्झत्तञ्च न जानाति बहिद्धा च न पस्सति समन्ता वरणो बालो, स वे घोसेन वुय्हति ॥४७०॥ ६२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भद्दो थेरो अज्झत्तञ्च न जानाति बहिद्धा च विपस्सति बहिद्धा फलदस्सावी सो पि घोसेन वुय्हति ॥४७१॥ अज्झत्तञ्च पजानाति वहिद्धा च विपस्सति अनावरणदस्सावी, न सो घोसेन वुय्हतीति ॥४७२।। लकुण्टको थेरो एकपुत्तो अहं आसि पियो मातु पियो पितु बहूहि वतचरियाहि लद्धो आयाचनाहि च ॥४७३।। ते च मं अनुकम्पाय अत्थकामा हितेसिनो उभो पिता च माता च बुद्धस्स उपनामम ॥४७४।। किच्छा लद्धो अयं पुत्तो सुखुमालो सुखेधितो इमं ददाम ते नाथ जिनस्स परिचारकं ॥४७५।। सत्था च मं पटिग्गय्ह आनन्दं एतदब्रवि पब्बाजेहि इमं खिप्पं, हेस्सत्याजानियो अयं ॥४७६।। पब्बाजेत्वान मं सत्था विहारं पाविसी जिनो; अनोग्गतस्मि सुरियस्मि ततो चित्तं विमुच्चि मे ॥४७७।। ततो सत्था निरंकत्वा पटिसल्लानवुट्टि तो। एहि भद्दा 'ति मं आह; सा मे आसूपसम्पदा ॥४७८॥ जातिया सत्तवस्सेन लद्धा मे उपसम्पदा; तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता अहो धम्मसुधम्मता'ति ॥४७९।। भद्दो थेरो दिस्वा पासादछायायं चडकमन्तं नरुत्तमं तत्थ नं उपसंकम्म वन्दिस्सं पुरिसुत्तमं ॥४८०॥ एकसं चीवरं कत्वा संहरित्वान पाणियो अनुचडकमिस्सं विरजं सब्बसत्तानमुत्तमं ॥४८१॥ ततो पञ्हे अपुच्छि मं पञ्हानं कोविदो विदू, अच्छम्भी च अभीतो च ब्याकासि सत्थुनो अहं ॥४८२॥ विस्सज्जितेसु पञ्हेसु अनुमोदि तथागतो, भिक्खुसंघं विलोकेत्वा इम मत्थं अभासथः ॥४८३॥ लाभा अङगान मगधानं येसायं परिभुञ्जति चीवरं पिण्डपातञ्च पच्चयं सयनासनं पच्चुट्ठानं च सामीचि, तेसं लाभा'ति च ब्रवी ॥४८४।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] थेर-गाथा अज्जदग्गे मं सोपाक दस्सनायोपसंकम, एसा चेव ते सोपाक भवतु उपसम्पदा ॥४८५॥ जातिया सत्त वस्सो'हं लद्धान उपसम्पदं धारेमि अन्तिमं देहं अहो धम्मसुधम्मता'ति ॥४८६॥ ___ सोपाको थेरो सरे हत्थेहि भञ्जित्वा कत्वान कुटिमच्छिसं, तेन मे सरभङ्गो'ति नामं सम्मुतिया अहू ॥४८७॥ न मय्हं कप्पते अज्ज सरे हत्थेहि भजितुं सिक्खापदा नो पञ्जत्ता गोतमेन यसस्सिना ॥४८८॥ सकलं समत्तं रोगं सरभङगो नासं पुब्बे, सो'यं रोगो दिट्ठो वचनकरेनाति देवस्स ॥४८९॥ येनेव मग्गेन गतो विपस्सी येनेव मग्गेन सिखी च वेस्सभू ककुसन्धकोणागमनो च कस्सपो तेनजसेन अगमासि गोतमो ॥४९०॥ वीततण्हा अनाधाना सत्त बुद्धा खयोगधा, ये हयं देसितो धम्मो धम्मभूतेहि तादिहि ॥४९॥ चत्तारि अरियसच्चानि अनुकम्पाय पाणिनं दुक्खं समुदयो मग्गो निरोधो दुक्ख संखयो ॥४९२॥ यस्मि निब्बत्तते दुक्खं संसारस्मि अनन्तकं भेदा इमस्स कायस्स जीवितस्स च संखया अञो पुनब्भवो नत्थि सुविमुत्तो'म्हि सब्बधीति ॥४९३॥ सरभङ्गो थेरो उद्दानं सुन्दर समुद्दो थेरो थेरो लकुण्टभदियो भद्दो थेरो च सोपाको सरभङगो महाइसिः सत्तके पञ्चका थेरा, गाथायो पञ्चतिसतीति. निट्टितो च सत्तनिपातो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनिपातो कम्मं बहुकं न कारये, परिवज्जेय्य जनं न उय्यमे; सो उस्सुको रसानुगिद्धो अत्थं रिञ्चति यो सुखाधिवाहो ॥४९४॥ पङकोति हि नं अवेदयुं यायं वन्दनपूजना कुलेसु, सुखुमं सल्लं दुरुब्बहं सक्कारो कापुरिसेन दुज्जहो ॥४९५।। न परस्सु पनिद्धाय कम्मं मच्चस्स पापकं । अत्तना तं न सेवेय्य, कम्मबन्धू हि मातिया ॥४९६।। न परे वचना चोरो, न परे वचना मुनि ; अत्तानञ्च यथा वेति देवापि नं तथा विदु ॥४९७।। परे च न विजानन्ति मयमेत्थ यमामसे : ये च तत्थ विजानन्ति ततो सम्मन्ति मेधगा ॥४९८॥ जीवतेवापि सप्पो अपि वित्तपरिक्खया पञ्जाय च अलाभेन वित्तवापि न जीवति ॥४९९।। सब्बं सुणाति सोतेन सब्बं पस्सति चक्खुना न च दिढ सुतं धीरो सब्बमुज्झितुमरहति ॥५००॥ चक्खुमस्स यथा अन्धो, सोतवा बधिरो यथा, पञ्जावऽस्स यथा मूगो, बलवा दुब्बलोरिव, अथ अत्थे समुप्पन्ने सयेथ मतसायिकन्ति ॥५०१॥ महाकच्चायनो थेरो अक्कोधनो अनुपनाही अमायो रित्तपेसुणो स वे तादिसको भिक्खु एवं पेच्च न सोचति ॥५०२।। अक्कोधनो अनुपनाही अमायो रित्तपेसुणो गुत्तद्वारो सदा भिक्खु एवं पेच्च न सोचति ॥५०३॥ अक्कोधनो....... कल्याणसीलो यो भिक्खु एवं पेच्च न सोचति ॥५०४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा अपनाचना . . . . . . . . . . . . . . . . . अक्कोधनो... कल्याणमित्तो यो भिक्ख एवं पेच्च न सोचति ।।५०५।। अक्कोधनो . . . . . . . . कल्याणपनो यो भिक्खु एवं पेच्च न सोचति ।।५०६।। यस्स सद्धा तथागते अचला सुपतिट्ठिता, सोलञ्च यस्स कल्याणं अरियकन्नं पसंसितं ॥५०७।। संघे पसादो यस्सत्थि उजुभूतञ्च दस्सनं अदळिद्दो 'ति तं आहु अमोघन्तस्स जीवितं ॥५०८।। तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च पसादं धम्मदस्सनं अनुयुञ्जेथ मेधावी सरं बुद्धान सासनन्ति ।।५०९।। सिरिमित्तोथेरो यदा पटममद्दक्खिं सत्थारमकुतोभयं ततो मे अहु संवेगो पस्सित्वा पुरिसुत्तमं ।।५१०॥ सिरि हत्थेहि पादेहि यो पणामेय्य आगतं, एतादिसं सो सत्थारं आराधेत्वा विराधये ॥५११॥ तदाहं पुत्तदारञ्च धनधळञ्च छड्डर्यि, केसमस्सूनि छेदेत्वा पब्बजि अनगारियं ॥५१२।। सिक्खासाजीवसम्पन्नो इन्द्रियेसु सुसंवुतो । नमस्समानो सम्बुद्ध विहासिं अपराजितो ॥५१३॥ ततो मे पणिधी आसि चेतसो अभिपत्थितो न निसीदे मुहृत्तम्पि तण्हासल्ले अनूहते ॥५१४।। तस्स मेवं विहरतो पस्स विरियपरक्कम तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता कतं बुद्धस्स सासनं ॥५१५।। पुब्बेनिवासं जानामि, दिब्बचक्खं विसोधितं, अरहा दक्खिणेय्यो 'म्हि विप्पमुत्तो निस्पधि ॥५१६॥ ततो रत्या विवसने सुरियस्सुग्गमनं पति सब्बं तण्हं विसोसेत्वा पल्लङकेन उपाविसिन्ति ॥५१७॥ महापन्थको थेरो उद्दानं महाकच्चायनो थेरो सिरिमित्तो महापन्थको एते अट्ठनिपातम्हि, गाथायो चतुवीसतीति अट्ठनिपातो निट्टितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवनिपातो यदा दुक्खं जरामरणन्ति पण्डितो अविसु यत्थ सिता पुथुज्जना दुक्खं परिञ्ञाय सतो 'व झायति, ततो रतिं परमतरं न विन्दति ॥ ५१८ || यदा दुक्खस्सावर्हानं विसत्तिकं पपञ्चसंघाटदुखाधिवाहन तण्हंं पहत्वान सतो 'व झायति, ततो रतिं परमतरं न विन्दति ॥ ५१९ ।। यदा सिवं द्वे चतुरगामिनं मग्गुत्तमं सब्बकिलेससोधनं पञ्ञाय पस्सित्वा सतो 'व झायति ततो ... ।। ५२० ।। यदा असोकं विरजं असंखतं सन्तं पदं सब्बकिलेससोधनं भावेति सञ्ञ्ञोजनबन्धनच्छिदं, ततो .. ॥५२१॥ .... ॥५२३॥ यदा नभे गज्जति मेघदुन्दुभि धाराकुला विहङ्गपथे समन्ततो भिक्खु च पब्भारगतो व झायति, ततो . . ।।५२२॥ यदा नदीनं कुसुमाकुलानं विचित्तवानेय्यवटंसकानं तीरे निसिन्ने सुमनो 'व झायति, ततो... यदा निसीथे रहितम्हि कानने देवे गळन्तम्हि नदन्ति दाठिनो भिक्खु च पब्भारगतो 'व झायति, ततो . . ।।५२४॥ यदा वितक्के उपरुन्धियत्तनो नगन्तरे नगविवरं समस्सितो वीतद्दरो विगतखिलो 'व झायति, ततो...।।५२५।। यदा सुखी मलखिलसोकनासनो निरग्गलो निब्बनथो विसल्लो सब्बासवे व्यन्तिकतो 'व झायति, ततो रतिं परमतरं न विन्दतीति ॥ ५२६॥ भूतो थेरो उद्दानं भूतो तथद्दसो थेरो एको खग्गविसाणवा नवकम्हि निपातम्हि गाथायो पि इमा नवा 'ति । नवनिपातो निट्ठितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ६७ www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसनिपातो गारिनो दानि दुमा भदन्ते फलेसिनो छदनं विप्पहाय, ते अच्चिभन्तो व पभासयन्ति, समयो महावीर भगीरसानं ॥ ५२७॥ दुमानि फुल्लानि मनोरमानि समन्ततो सब्बदिसा पवन्ति पत्तं पहाय फलमाससाना कालो इतो पक्कमनाय वीर ॥ ५२८ ॥ नेवातिसीतं न पनातिउन्हं सुखा उतु अद्धनिया भदन्ते; परन्तु तं साकिया कोळिया च पच्छामुखं रोहिणियं तरन्तं ॥ ५२९ ।। आसाय कस्सते खेत्तं, बीजं आसाय वुप्पति आसाय वाणिया यन्ति समुद्दं धनहारका याय आसाय तिट्ठामि सा मे आसा समिज्झतु || ५३०|| पुनप्पुनं चेव वपन्ति बीजं, पुनप्पुनं वस्सति देवराजा पुनप्पुनं खेत्तं कसन्ति कस्सका, पुनप्पुनं धञ्ञमुपेति रट्ठ || ५३१ ॥ पुनप्पुनं याचनका चरन्ति, पुनप्पुनं दानपती ददन्ति, पुनपुनं दानपती ददित्वा पुनप्पुनं सग्गमुपैन्ति ठानं ॥ ५३२॥ वीरो हवे सत्तयुगं पुनेति यस्मि कुले जायति भूरिपञ्ञो; मञ्ञामहं सक्कतिदेवदेवो, तया हि जातो मुनि सच्चनामो || ५३३॥ सुद्धोदनो नाम पिता महेसिनो, बुद्धस्स माता पन मायनामा या बोधिसत्तं परिहरिय कुच्छिना कायस्स भेदा ति दिवस्मि मोदति ॥ ५३४ ॥ सा गोतमी कालकता इतो चुता दिब्बेहि कामेहि समगिभूता सा मोदति कामगुणेहि पञ्चहि परिवारिता देवगणेहि तेहि ॥ ५३५ ।। बुद्धस्स पुत्तो 'म्हि असय्हसाहिनो अङगीरसस्सप्पटिमस्स तादिनेो पितु पिता मय्हं तुवं 'सि सक्क, धम्मेन मे गोतम अय्यको 'सीति ॥५३६॥ काकुदायीथेरो पुरतो पच्छतो वापि अपरो चे न विज्जति, अतीव फासु भवति एकस्स वसतो वने ॥५३७॥ ६८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकविहारियो थेरो हन्द एको गमिस्सामि अरञ्ञ बुद्धवणितं फासुं एकविहारिस्स पहितत्तस्स भिक्खुनो ॥५३८॥ योगिपीतिकरं रम्मं मत्तकुञ्जरसेवितं एको अत्थवसी खिप्पं पविसिस्सामि काननं ॥ ५३९॥ सुपुष्पिते सीतवने सीतले गिरिकन्दरे गत्तानि परिसिञ्चित्वा चङ्कमिस्सामि एकको ॥ ५४० ॥ एकाकियो अदुतियो रमणीये महावने कदाहं विहरिस्सामि कतकिच्चो अनासवो ।।५४१।। एवं मे कत्तुकामस्स अधिप्पायो समिज्झतु; साधयिस्सामहं येव, नाञ्ञो अञ्ञ्ञस्स कारको ||५४२॥ एस बन्धामि सन्नाहं, पविसिस्सामि काननं, न ततो नेक्खमिस्सामि अप्पत्तो आसवक्खयं ॥ ५४३ ॥ मालुते अपवायन्ते सीते सुरभिगन्धके अविज्जं दालयिस्सामि निसिन्नो नगमुद्धनि || ५४४ ॥ विने कुसुमसञ्छन्ने पब्भारे नून सीतले विमुत्तिसुखेन सुखितो रमिस्सामि गिरिब्बजे ।। ५४५ ।। सो 'हं परिपुण्णसंकष्पो चन्दो पन्नरसो यथा सब्बासवपरिक्खीणो नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥५४६ ॥ एकविहारियो थेरो अनागतं यो पटिगच्च पस्सति हितञ्च अत्थं अहितञ्च तं द्वयं विसिनो तस्स हितेसिनो वा रन्धं न पस्सन्ति समेक्खमाना ।।५४७।। आजापानसती यस्स परिपुण्णा सुभाविता अनुपुब्बं परिचिता यथा बुद्धेन देसिता, सो 'मं लोकं पभासेति अब्भा मुत्तो व चन्दिमा || ५४८।। ओदातं वत मे चित्तं अप्पमाणं सुभावितं निब्बिद्धं पग्गहीतञ्च सब्बा ओभासते दिसा ।। ५४९॥ जीवतेवापि सप्पञ्ञ अपि वित्तपरिक्खया, पञ्ञाय च अलाभेन वित्तवापि न जीवति ॥ ५५०॥ पञ्ञा सुतविनिच्छिनी, पञ्ञा कित्तिसि लोकवद्धनी पञ्ञसहितो नरो इध अपि दुक्खेसु सुखानि विन्दन्ति ।। ५५१ ॥ [ ६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० थेर-गाथा नायं अज्जतनो धम्मो न च्छेरो न पि अब्भुतो यत्थ जायेथ, मायेथ तत्थ किं विय अब्भुतं ॥५५२।। अनन्तरं हि जातस्स जीविता मरणं धुवं ; जाता जाता मरन्तीध, एवंधम्मा हि पाणिनो ॥ ५५३ ॥ न तदत्थाय मतस्स होति यं जीवितत्थं परपोरिसानं मतम्हि रुण्णं, न यसो न लोक्यं न वण्णितं समणव्राह्मणेहि ॥ ५५४॥ चक्खं सरीरं उपहन्ति रुण्णं, निहीयती वण्णबलं मर्ती च ] आनन्दिनो तस्स दिसा भवन्ति, हितेसिनो नास्स सुखी भवन्ति ॥ ५५५ ॥ तस्मा हि इच्छेय्य कुले वसन्ते मेधाविनो चेव बहुस्सुते च, येसं हि पञ्च विभवेन किच्चं तरन्ति नावाय नदि व पुण्णन्ति ॥ ५५६ ॥ महाकम्पिनो थेरो दन्धा मह गती आसि, परिभूतो पुरे अहं भाता च मं पणामेसि, गच्छ दानि तुवं घरं ॥ ५५७ ॥ सोहं पणामितो सन्तो संघारामस्स को के दुम्मनो तत्थ अट्ठासि सासनस्मि अपेक्खवा ।। ५५८। भगवा तत्थ आगच्छि, सीसं मय्हं परामसि, बाहाय मं गत्वान, संघारामं पवेसयि ॥५५९॥ अनुकम्पाय मे सत्या पादासि पादपुञ्छनि : एवं सुद्ध अधिट्ठे हि एकमन्तं स्वधिट्ठितं ॥५६०॥ तस्साहं वचनं सुत्वा विहासि सासने रतो समाधिं पटिपादेसिं उत्तमत्थस्स पत्तिया ॥ ५६१॥ पुब्बे निवासं जानामि, दिब्बचक्खु विसोधितं तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनं ॥५६२॥ सहस्सक्खत्तुमत्तानं निम्मिनित्वान पन्थको निसीदि अम्बवने रम्मे याव कालप्पवेदनं ॥ ५६३॥ ततो मे सत्था पाहेसि, दूतं कालप्पवेदकं पवेदितम्हि कालम्हि वेहासानुपसंकमि ॥५६४ ॥ वन्दित्वा सत्थुनो पादे एकमन्तं निसीदहं निसिन्नं मं विदित्वान अथ सत्था पटिग्गहि || ५६५॥ आयागो सब्बलोकस्स आहुतीनं पटिग्गहो पुञ्ञ्ञखेत्तं मनुस्सानं पटिगण्हित्थ दक्खिणन्ति ॥५६६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कप्पो थेरो चूल पन्थको थेरो नानाकुलमलसम्पुण्णो महाउक्कारसम्भवो चन्दनिक्कं व परिपक्कं महागण्डो महावणो ॥५६७।। पुब्बरुहिरसम्पुण्णो गूथकूपे निगाहिको आपोपग्घरणी कायो सदा सन्दति पूतिघं ॥५६८।। सट्टि कण्डरसम्बन्धो मंसलेपनलेपितो चम्मकञ्चुकसन्नद्धो पूतिकायो निरत्थको ।।५६९।। अट्टि संघाटघटितो न्हारसुत्तनिवन्धनो नेकेसं संगतिभावा कप्पेति इरियापथं ॥५७०।। धुवष्पयातो मरणस्स मच्चुराजस्स सन्तिके, इधेव छड्डयित्वान येनकामंगमो नरो ॥५७१॥ अविज्जाय निवुतो कायो, चतुगन्थेन गन्थितो । ओघसंसीदनो कायो, अनुसयजालमोत्थतो ॥५७२।। पञ्च नीवरणे युत्तो, वितक्केन समप्पितो, तण्हामूले नानुगतो, मोहच्छदनछादितो ॥५७३॥ एवायं वत्तती कायो कम्मयन्तेन यन्तितो, सम्पत्ति च विपत्यन्ता, नानाभवो विपज्जति ॥५७४।। ये' मं कायं ममायन्ति अन्धबाला पुथुज्जना वड्ढेन्तिं कटसिं घोरं आदियन्ति पुनब्भवं ॥५७५।। ये मं कायं विवज्जेन्ति गूथलित्तं व पन्नगं, भवमूलं वमित्वान परिनिब्बिस्सन्त्यनासवा'ति ।।५७६॥ कप्पो थेरो विवित्तं अप्पनिग्घोसं वाळमिगनिसेवितं सेवे सेनासनं भिक्ख पटिसल्लानकारणा ।।५७७।। संकारपुञ्जा आहत्वा सुसाना रथियाहि च ततो संघाटिकं कत्वा लूखं धारेय्य चीवरं ॥५७८।। नीचं मनं करित्वान सपदानं कुला कुलं पिण्डिकाय चरे भिक्खु गुत्तहारो सुसंवुतो ॥५७९॥ लूखेन पि च सन्तुस्से, ना पत्थे रसं बहुं; रसेसु अनुगिद्धस्स झानेन रमती मनो ॥५८०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] थेर-गाथा अप्पिच्छो चेव सन्तुट्ठो पविवित्तो वसे मुनि, असंसट्ठो गहठेहि अनागारेहि चूभयं ॥५८१।। यथा जळो च मूगो च अत्तानं दस्सये तथा, नातिवेलं पभासेय्य संघमज्झम्हि पण्डितो ॥५८२।। न सो उपचदे कञ्चि उपघातं विवज्जये : संवुतो पातिमोक्खस्मि मत्ता चस्स भोजने ।।५८३॥ सुग्गहीतनिमित्तस्स चित्तस्सुपादकोविदो, समथं अनुयुञ्जय्य कालेन च विपस्सनं ॥५८४।। विरियसातच्चसम्पन्नो युत्तयोगो सदा सिया, न च अगत्वा दुक्खस्सन्तं विस्सासमेय्य पण्डितो ॥५८५॥ एवं विहरमानस्स सुद्धिकामस्स भिक्खुनो खीयन्ति आसवा सब्बे निब्बुतिञ्चाधिगच्छतीति ।।५८६।। उपसेनो वङ्गन्तपुत्तो थेरो विजानेय्य सकं अत्थं, अवलोकेय्याथ पावचनं, यञ्चेन्थ अस्सपटिरूपं सामञ्ज अज्झुपगतस्स ॥५८७।। मित्तं इध कल्याणं सिक्खाविपुलं समादानं सुस्सूसा च गरूनं एतं समणस्स पटिरूपं ॥५८८॥ बुद्धेसु सगारवता धम्मे अपचिति यथाभूतं संघे च चित्तिकारेः एतं समणस्स पटिरूपं ॥५८९।। आचारगोचरे यत्तो आजीवो सोधितो अगारयहो चित्तस्स सण्ठपनं एतं समणस्स पटिरूपं ॥५९०॥ चारित्तं अथ वारित्तं इरियापथियं पसादनियं अधिचित्ते च अयोगो एतं . . . . . . . ।।५९१।। आरझकानि सेनासनानि पन्तानि अप्पसद्दानि भजतब्बानि मुनिना एतं. . . . . . ।।५९२।। सीलञ्च वाहुसच्वञ्च धम्मानं पविचयो यथाभयं सच्चानं अभिसमयो एतं . . . . . . ॥५९३।। भावेय्य अनिच्चन्ति अनत्तसगं असुभसञञ्च लोकम्हि च अनभिरति एतं . . . . ॥५९४।। भावेय्य च बोज्झङ्गे इद्धिपादानि इन्द्रियबलानि अट्ठङ्गमग्गमरियं : एतं . . . . . . ॥५९५।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७३ गोतमो थेरो तण्हं पजहेय्य मुनी, समूलके आसवे पदालेय्य, विहरेय्य विमुत्तो एतं समणस्स पटिरूपन्ति ॥५९६॥ गोतमो थेरो उद्दानं काळुदायी च सो थेरो एकविहारी च कप्पिनो चूळपन्थको कप्पो च उपसेनो च गोतमो सत्तिमे दसके थेरा, गाथायो चेत्थ सत्ततीति दसनिपातो निद्वितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकादसनिपातो किन्तवत्थो वने तात उज्जुहानो व पावुसे वेरम्बा रमणीया ते, पवित्रेको हि झायिनं ॥ ५९७ ॥ यथा अब्भानि वेरम्बो वातो नुदति पावसे सआ मे अभिकीरन्ति विवेकपटिसञ्जुता ॥५९८॥ अपण्डरो अण्डसम्भवो सीवथिकाय निकेतचारिको उप्पादयतेव मे सति सन्देहस्मि विरागनिस्सितं ॥ ५९९॥ यञ्च अञ्ञ्ञेन रक्खन्ति यो च अन रक्खति, स वे भिक्खु सुखं सेति कामेसु अनपेक्खवा ॥ ६०० ॥ अच्छोदिका पुथुसिला गोनङ्गुलमिगायुता अम्बुसेवालसञ्छन्ना ते सेला रमयन्ति मं ॥६०१॥ विसितम्मे अरञ्ज्ञ्जेसु कन्दरासु गुहासु च सेनासनेसु पन्तेसु वाळमिगनिसेविते ॥६०२॥ इमे हञ्ञ्ञन्तु वञ्झन्तु दुक्खं पप्पोन्तु पाणिनो संकप्पं नाभिजानामि अनरियं दोस संहितं ॥ ६०३ ॥ परिचिण्णो मया सत्था, कतं बुद्धस्स सासनं, ओहितो गरुको भारो, भवनेत्ति समूहता ॥ ६०४ ॥ यस्स चत्थाय पव्बजितो अगारस्मा अनगारियं, सो मे अत्थो अनुप्पत्तो सब्बसंयोजनक्खयो ।६०५॥ नाभिनन्दामि मरणं नाभिनन्दामि जीवितं कालञ्च पटिकखामि निब्बिसं भतको यथा ॥६०६॥ नाभिनन्दामि मरणं नाभिनन्दामि जीवितं कालञ्च पटिकखामि सम्पजानो पतिस्सतो 'ति ॥ ६०७ ॥ ७४ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकिच्च थेरो संकिच्च थेरो उद्दानं संकिच्च थेरो एको व कतकिच्चो अनासवो एकादस निपातम्हि, गाथा एकादसेव ता'ति एकादस निपातो निट्टतो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ७५ www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादसनिपातो सीलमेविध सिक्खेथ अस्मि लोके सुसिक्खितं सीलं हि सब्बसम्पत्ति उपनामेति सेवितं ॥ ६०८॥ सीलं रक्खेय्य मेधावी पत्थयानो तयो सुखे पसंसं वित्तिलाभञ्च पेच्च सग्गे च मोदनं ॥ ६०९॥ सीलवा हि बहू मित्ते सञ्ञमेनाधिगच्छति, दुस्सीलो पन मित्तेहि धंसते पापमाचरं ।।६१०।। अवण्णञ्च अकित्तिञ्च दुस्सीलो लभते नरो वण्णं कित्ति पसंसञ्च सदा लभति सीलवा आदिसलं पतिट्ठा च कल्याणानञ्च मातुकं पमुखं सब्बधम्मानं तस्मा सीलं विसोधये ।।६१२॥ वेला च संवरं सीलं चित्तस्स अभिभासनं, तित्थञ्च सब्बबुद्धानं, तस्मा सीलं विसोधये ॥६१३॥ सीलं बलं अप्पटिमं सीलं आबुधमुत्तमं, सीलमाभरणं सेट्ठ, सीलं कवचमब्भुतं ॥६१४॥ सीलं सेतु महेसक्खो, सीलं गन्धो अनुत्तरो सीलं विलेपनं सेट्ठ येन वाति दिसो दसं ।।६१५।। सीलं सम्बलमेवग्गं, सीलं पाथेय्यमुत्तमं, सील सेट्ठो अतिवाही येन याति दिसो दिसं ।। ६१६ । इधेव निन्दं लभति पेच्चापाये च दुम्मनो सब्बत्थ दुम्मनो बालो सीलेसु असमाहितो ।। ६१७।। इधेव कित्ति लभति पेन्च सग्गे च सुम्मनो, सब्बत्य सुमनो धीरो सीलेसु सुसमाहितो ॥५१८॥ सीलमेव इध अग्गं, पञ्ञ्ञवा पन उत्तमो, मनुस्सेसु च देवेसु सीलपञ्ञाणतो जयन्ति ॥ ६१९ ॥ ७६ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ॥ ६११॥ www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुणीनां थेरो सीलवत्थेरो नीचे कुलम्हि जातो हं दट्टिो अप्पभोजनो; हीनं कम्मं ममं आणि अहोमि पुष्कछड्डु को ||६२०॥ जिगुच्छितो मनुम्सानं परिभूतो च वम्भितो नीवं मनं करित्वान वन्दिस्मं बहुकं जनं ।। ६२१ ॥ अथ अहसामि सम्बुद्ध भिक्खुसंघपुरखत पविसन्तं महावीरं मगधानं पुरुत्तमं ॥६२२॥ निक्खिपित्वान व्याभगि वन्दितुं अपकमि ममेव अनुकम्पाय अट्ठासि पुरिमुत्तमो ॥६२३॥ वन्दित्वा मत्थुनो पादे एकमन्तं ठितो नदा पब्वजं अहमायाचि सब्बसत्तानमुत्तमं ॥६२४॥ ततो कारुणिको सत्था सव्वलोकानुकम्पको एहि भिक्खुति मं आह, सा मे आसुपसम्पदा ।।६२५।। सोहं एको अरास्मि विहरन्तो अतन्दितो अकासि सत्थुवचनं यथा मं ओवदी जिनो ।। ६२६॥ रतिया पठमं यामं पुब्वजातिमनुस्सरि, रत्तिया मज्झिमं यामं दिव्वचक्खूं विसोधितं, रतिया पच्छिमे यामे तमोखन्धं पदालयिं ॥६२७॥ ततो त्याविवसने सुरियस्सुग्गमनं पति इन्द्रो ब्रह्मा च आगन्त्वा मं नमस्सिंसु पञ्जलि || ६२८॥ नमो ते पुरिमाजञ्ञ, नमो ते पुरिमुत्तम, यस्स ते आसवा खीणा, दक्खिणेय्यो 'मि मारिस ॥६२९॥ ततो दिस्वान मं सत्था देवसंघपुरखतं सितं पातुकरित्वान इमं अत्थं अभासथ ।।६३०। तपेन ब्रह्मचरियेन संयमेन दमेन च एतेन ब्राह्मणो होति, एतं ब्राह्मणमुत्तमन्ति ॥ ६३१॥ सुणीतो थेरो उद्दानं सीलवा च सुणीतो च थेरा द्वेते महिद्धिका द्वादसम्हि निपातम्हि, गाथायो चतुवीसतीति द्वादसनिपातो नितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ७७ www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेरसनिपातो याहु र? समुक्कट्ठो रञो अगस्स पद्धगु स्वाज्ज धम्मेसु उन्कंट्ठो सोणो दुक्खस्स पारगु ॥६३२।। पञ्च छिन्दे पञ्च जहे पञ्च चुत्तरि भावये; पञ्च संङगातिगो भिक्खु ओघतिण्णो 'ति वुच्चति ॥६३३।। उन्नळस्स पमत्तस्स वाहिरासस्स भिक्खुनो सील समाधि पञ्जा च पारिपूरिं न गच्छति ॥६३४॥ यं हि किच्चं तदपविद्धं, अकिच्चं पन कयिरति; उन्नळानं पमत्तानं तेसं वड्ढन्ति आसवा ॥६३५॥ येसञ्च सुसमारद्धा निच्चं कायगता सति, अकिच्चन्ते न सेवन्ति किच्चे सातच्चकारिनो सतानं सम्पजानानं अत्थं गच्छन्ति आसवा ।।६३६।। उजुमग्गम्हि अक्खाते गच्छथ मा निवत्तथ अत्तना चोदयत्तानं, निब्बानं अभिहारये ॥६३७।। अच्चारद्धम्हि विरियम्हि सत्था लोके अनुत्तरो वीणोपमं करित्वा मे धम्म देसेसि चक्खुमा ॥६३८॥ तस्साहं वचनं सुत्वा विहासिं सासने रतो समतं पटिपादेसिं उत्तमत्थस्स पत्तिया, तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनं ।।६३९॥ नेक्खम्मे अधिमुत्तस्स पविवेकञ्च चेतसो अब्यापज्झाधिमुत्तस्स उपादानक्खयस्स च ॥६४०।। तण्हक्खयाधिमुत्तस्स असम्मोहञ्च चेतसो दिस्वा आयतनुप्पादं सम्मा चित्तं विमुच्चति ॥६४१॥ तस्सा सम्मा विमुत्तस्स सन्तचित्तस्स भिक्खुनो कतस्स पटिचयो नत्थि, करणीयं च विज्जति ॥६४२।। ७८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोणो कोळिविसो थेरो सेलो यथा एक घनो वातेन न समीरति, एवं रूपा रसा सद्दा गन्धा फस्सा च केवला ||६४३॥ इट्ठा धम्मा अनिट्ठा च न प्पवेधेन्ति तादिनो; ठितं चित्तं विसञ्ञत्तं वयञ्चस्सानुपस्सतीति ॥६४४॥ सोणो कोळिविसो थेरो उद्दानं महिद्धिको सोणो कोळिविसोथेरो एको एव तेरसम्हि निपातम्हि गाथायो चेत्थ तेरसा'ति तेरसनिपातो निट्ठितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ७६ www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुद्दसनिपातो यदा अहं पब्वजितो अगारस्मा अनगारियं नाभिजानामि संकप्पं अनरियं दोससंहितं ॥६४५।। इमे हान्तु वज्झन्तु दुक्खं पप्पोन्तु पाणिनो संकप्पं नाभिजानामि इमस्मि दीघमन्तरे ॥६४६।। मेत्तञ्च अभिजानामि अप्पमाणं सुभावितं अनुपुब्बं परिचितं यथा बद्धेन देसितं ॥६४७।। सब्बमित्तो सब्बसखो सब्बभूतानुकम्पको मेत्तं चिञ्च भावेमि अब्यापज्झरतो सदा ।।६४८।। असंहीरससंकुप्पं चित्तं आमोदयामहं ब्रह्मविहारं भावेमि अकापुरिससेवितं ॥६४९।। अवितक्क समापन्नो सम्मासम्बुद्धसावको यरियेन तुण्हिभावेन उपेतो होति तावदे ॥६५०॥ यथापि पब्बतो सेलो अचलो सुप्पतिट्टि तो, एवं मोहक्खया भिक्खु पब्बतोव न वेधति ।।६५१॥ अनङ्गणस्स पोसस्स निच्चं सुचिगवेसिनो वालग्गमत्तं पापस्स अब्भामत्तं व खायति ॥६५२।। नगरं यथा पच्चन्तं गत्तं सन्तरबाहिरं एवं गोपेथ अत्तानं खणे वे मा उपच्चगा ।।६५३॥ नाभिनन्दामि. . . . . . ।--६०६,६०७) ।।६५४-६५५।। परिचिण्णो. . . (=६०४,६०५) ॥६५६-६५७।। सम्पादेत्थ पमादेन, एसा मे अनुसासनी; हन्दाहं परिनिब्बिस्सं, विप्पमुत्तो'म्हि सब्बधीति ॥६५८।। रेवतो थेरो यथापि भद्दो आजञो धुरे युत्तो धुरस्सहो मथितो अतिभारेन संयुगं नातिवत्तति ॥६५९॥ ८० ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोदत्तो थेरो एवं पञ्ञाय ये तित्ता समुद्दो वारिना यथा न परे अतिमञ्जन्ति, यरियधम्मो व पाणिनं काले कालवसम्पत्ता भवाभववसं गता नरा दुक्खं निगच्छन्ति ते'ध सोचन्ति माणवा ।। ६६१॥ उन्नता सुखधम्मेन दुक्खधम्मेन ओनता द्वयेन बाला हय्यन्ति यथाभूतं अदस्सिनो ॥ ६६२॥ ये च दुक्खे सुखस्मिञ्च मज्झे सिब्बनिमज्झगू ठिता ते इन्दखीलो व, न ते उन्नतओनता ।।६६३॥ न हेव लाभ नालाभे न यसे न च कित्तिया न निन्दाय पसंसाय न ते दुक्खं सुखम्हि च ।। ६६४।। सब्वत्थ ते न लिप्पन्ति उदविन्दु व पोक्खरे, सब्बत्थ सुखिता वीरा सब्बत्थ अपराजिता ॥६६५॥ धम्मेन च अलाभो यो यो च लाभो अधम्मिको अलाभो धम्मिको सेय्यो यञ्चे लाभो अधम्मिको ॥६६६ ॥ यसो च अप्पबुद्धीनं विञ्जूनं अयसो च यो अयसो च सेय्यो विञ्जूनं न यसो अप्पबुद्धिनं ।।६६७।। दुम्मेधेहि पसंसा च विञ्जुहि गरहा च या गरहा'व सेय्यो विनूहि यञ्चे बालप्पसंसना ॥६६८॥ सुखञ्च काममयिकं दुक्खञ्च पविवेकियं पविवेकियं दुक्खं सेय्यो यञ्च काममयं सुखं ॥ ६६९॥ जीवितञ्च अधम्मेन धम्मेन मरणञ्च यं मरणं धम्मिकं सेय्यो यञ्च जीवे अधम्मिकं ॥ ६७०॥ कामकोपपहीना ये सन्तचित्ता भवाभवे चरन्ति लोके असिता, नत्थि तेसं पियापियं ॥६७१॥ भावयित्वान बोज्झडगे इन्द्रियानि बलानि च पप्पुय्य परमं सन्ति परिनिब्बन्ति अनासवा' ति ६७२॥ गोदत्तो थेरो उद्दानं रेवतो चेव गोदत्तो थेरा ते महिद्धिका चुद्दसम्हि निपातम्हि, गाथायो अट्ठवीसतीति चुद्दसनिपातो निट्ठितो ६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ।।६६०॥ [ ८१ www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोळसनिपातो एस भिय्यो पसीदामि सुत्वा धम्मं महारसं; विरागो देसितो धम्मो अनुपादाय सब्बसो ||६७३ ।। बहूनि लोके चित्रानि अस्मि पुथु विमण्डले मथेन्ति मञ्ञे सङ्ककप्पं सुभं रागूपसंहितं ॥ ६७४ | रजमुपातं वातेन यथा मेघो पसामये । एवं सम्मन्ति संकप्पा यदा पञ्चाय पसति ।।६७५ ।। सब्बे संखारा अनिच्चा' ति यदा पाय पस्सति । अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया ||६७६ || सब्बे संखारा दुक्खा 'ति- सब्बे धम्मा अनत्ता'ति यदा पञ्चाय पस्सति । अथ निब्बिन्दती दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया ।। ६७७ - ६७८॥ बुद्धानुबुद्धो यो थेरो कोण्डञ्ञो तिब्बनिक्खो । पहीनजातिमरणो ब्रह्मचरियस्स केवली ॥६७९॥ ओघपासो दऴ्हो खीलो पब्बतो दुप्पदालियो; । छेत्वा खीलञ्च पासञ्च सेलं छेत्वान दुब्भिदं तिण्णो पारंगतो झायी मुत्तो सो मारबन्धना ॥ ६८०॥ उद्धतो चपलो भिक्खु मित्ते आगम्म पापके । संसीदति महोर्घास्मि उम्मिया पटिकुज्जितो ॥६८१ ॥ अनुद्धतो अचपलो निपको संबुतिन्द्रियो । कल्याणमित्तो मेधावी दुक्खस्सन्तकरो सिया ॥ ६८२ ॥ कालापब्बङग संकासो. नाभिनन्दामि . (= ६०६, ६०७ ) ।।६८५-६८६ ।। परिचिण्णो. (=६०४) ॥६८७॥ यस्स चत्थाय पब्बजितो अगारस्मा अनगारियं, सो मे अत्यो अनुप्पत्तो, किं मे सन्दविहारेना'ति ॥ ६८८ ॥ ८२ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat (=२४३,२४४) ।।६८३–६८४।। - www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८३ अज्ञाकोण्डञो थेरो अज्ञाकोएडओ थेरो मनुस्सभूतं सम्बुद्ध अत्तदन्तं समाहितं इरियमान ब्रह्मपथे चित्तस्सुपसमे रतं ॥६८९।। य मनुस्सा नमस्सन्ति सब्बधम्मान पारगुं देवापि तं नमस्सन्ति, इति मे अरहतो सुतं ॥६९०॥ सब्बसंयोजनातीतं वना निब्बनमागतं कामेहि निक्खम्मरतं मुत्तसेला व कञ्चनं ॥६९१॥ स वे अच्चन्त रुची नागो हिमवावो सिलुच्चय, सब्बेसं नागनामानं सच्चनामो अनुत्तरोः ॥६९२॥ नागं वो कित्तयिस्सामि, नहि आगुं करोति सो, सोरच्चं अविहिंसा च पादा नागस्स ते दुवे ॥६९३॥ सति च सम्पजज्ञञ्च चरणा नागस्स ते परे सद्धाहत्थो महानागो, उपेक्खा सेतदन्तवा ॥६९४॥ सति गीवा, सिरो पञ्जा, वीमंसा धम्मचिन्तना, धम्मकुच्छि समावासो, विवेको तस्स वालधि ॥६९५॥ सो झायी अस्सासरतो अज्झत्तं सुसमाहितो, गच्छ समाहितो नागो, ठितो नागो समाहितो ॥६९६॥ सयं समाहितो नागो, निसिन्नो पि समाहितो सब्बत्थ संवुतो नागो, एसा नागस्स सम्पदा ॥६९७॥ भुञ्जति अनवज्जानि, सावज्जानि न भुञ्जति. घासं अच्छादनं लद्धा सन्निधिं परिवज्जयं, ॥६९८॥ संयोजनं अणु थूल सब्बं छेत्वान बन्धनं, येन येनेव. गच्छति अनपेक्खोव गच्छति ॥६९९॥ यथापि उदके जातं पुण्डरीकं पवड्ढति, नोपलिप्पति तोयेन सुचिगन्धं मनोरमं ॥७००॥ तथैव च लोके जातो बुद्धो लोके विहरति, नोपलिप्पति लोकेन तोयेन पदुमं यथा ॥७०१।। महागिनि पज्जलितो अनाहारो पसम्मति अङ्गारेसु च सन्तेसु निब्बुतो'ति पवुच्चति ॥७०२॥ अत्थस्सायं विज्ञापनी उपमा विबेहि देसिता, विञिसन्ति महानागा नागं नागेन देसितं ॥७०३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ ] थेर-गाथा वीतरागो वीतदोसो वीतमोहो अनासवो स रीरं विजंह नागो परिनिब्बिस्सत्यनासवो'ति ॥७०४।। उदायी थेरो तत्रुद्दानं भवति कोण्डनो च उदायी च थेरा देते महिद्धिका सोळसम्हि निपातम्हि, गाथायो द्वे च तिस चा'ति सोळसनिपातो निट्ठितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वीसतिनिपातो यञत्थं वा धनत्थं वा ये हनाम मयं पुरे अवसेस भयं होति, वेधन्ति विलपन्ति च ॥७०५॥ तस्स ते नत्थि भीत्ततं, भिय्यो वण्णो पसीदति; कस्मा न परिदेवेसि एवरूपे महब्भये ॥७०६।। नत्थि चेतसिकं दुक्खं अनपेक्खस्स गामणि, अतिक्कन्ता भया सब्बे खीणं संयोजनस्स वे ॥७०७॥ खीणाय भवनेत्तिया दि? धम्मे यथातथे न भयं मरणे होति भारनिक्खेपने यथा ॥७०८॥ सुचिण्णं ब्रह्मचरियं मे, मग्गो चापि सुभावितो, मरणे मे भयं नत्थि रोगानमिव संखये ॥७०९।। सुचिण्णं ब्रह्मचरियं मे मग्गो चापि सुभावितो, निरस्सादा भवा दिट्ठा, विसं पित्वान छड्डितं ॥७१०॥ पारगू अनुपादानो कतकिच्चो अनासवो तुट्ठो आयुक्खया होति मुतो आघातना यथा ॥७११॥ उत्तमं धम्मतो पत्तो सब्बलोके अनत्थिको आदित्ता व घरा मुत्तो मरणस्मि न सोचति ॥७१२॥ यदत्थि संगतं कञ्चि भवो च यत्थ लब्भति, सब्बं अनिस्सरं एतं, इति उत्तं महेसिना ॥७१३॥ यो तं तथा पजानाति यथा बुद्धेन देसितं, न गण्हति भवं किञ्चि सुतत्तं व अयोगुळं ॥७१४॥ न मे होति अहोसिन्ति, भविस्सन्ति न होति मे, संखारा विभविस्सन्ति : तत्थ का परिदेवना ॥७१५॥ सुद्ध धम्मसमुप्पादं सुद्धं संखारसन्ततिं पस्सन्तस्स यथाभूतं न भयं होति गामणि ॥७१६॥ [ ८५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा तिणकट्ठसम लोकं यदा पञ्जाय पस्सति ममत्तं सो असंविन्दं नत्थि मेति न सोचति ॥७१७॥ उक्कण्ठामि सरीरेन, भवेनम्हि अत्थिको, सो'यं भिज्जिस्सति कायो अझो च न भविस्सति ॥७१८।। यं वो किच्च सरीरेन त करोथ यदिच्छथ, न मे तप्पच्चया तत्थ दोसो पेमं च हेहिति ॥७१९।। तस्स तं वचन सुत्वा अब्भुतं लोमहंसनं सत्थानि बिक्खिपित्वान माणवा एतदबवू ॥७२०॥ किं भद्दन्ते करित्वान, को वा आचारियो तव, किस्स सासनमागम्म लभते तं असोकता ॥७२१॥ सब्बञ्ज़ सब्बदस्सावी जिनो आचरियो मम महाकारुणिको सत्था सब्बलोकतिकिच्छको ॥७२२॥ तेनायं देसितो धम्मो खयगामी अनुत्तरो तस्स सासनमागम्म लभते तं असोकता ॥७२३॥ सुत्वान चोरा इसिनो सुभासितं निक्खिप्प, सत्थानि च आवुधानि च तम्हा च कम्मा विरमंसु एके, एके च पब्बज्जमरोचयिसु ॥७२४॥ ते पब्बजित्वा सुगतस्स सासने भावेत्वा बोज्झगवलानि पण्डिता उदग्गचित्ता सुमना कतिन्द्रिया फुसिंसु, निब्बानपदं असंखतन्ति ॥७२५।। अधिमुत्तो थेरो समणस्स अहू चित्ता पारापरियस्स भिक्खुनो एककस्स निसिन्नस्स पविवित्तस्स झायिनो ॥७२६॥ किमानुपुब्बं पुरिसो किं वतं किं समाचार अत्तनो किच्चकारि 'स्स न च किञ्चि विहेठये ॥७२७॥ इन्द्रियानि मनुस्सानं हिताय अहिताय च अरक्खितानि अहिताय रक्खितानि हिताय च ॥२८॥ इन्द्रियानेव सारक्खं इन्द्रियानि च गोपयं अत्तनो किच्चकारि'स्स न च किञ्चि विहेठये ॥७२९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिमुत्तो थेरो चक्खुन्द्रियञ्चे रूपेसु गच्छन्तं अनिवारयं अनादीनवदस्सावी, सो दुक्खा न हि मुच्चति ॥७३०|| सोतिन्द्रियञ्च सद्देसु गच्छन्तं अनिवारयं अनादीनवदस्सावी, सो दुक्खा न हि मुच्चति ॥७३१।। अनिस्सरणदस्सावी गन्धे चे पटिसेवति, न सो मुच्चति दुक्खम्हा गन्धेसु अधिमुच्छितो ॥७३२॥ अम्बिलमधुरग्गञ्च तित्तकग्गमनुस्सरं रसतण्हाय गधितो हृदयं नाव बुज्झति ॥७३३॥ सुभान्यप्पटिकूलानि फोटुब्बानि अनुस्सरं रत्तो रागाधिकरणं विविधं विन्दते दुखं ||७३४।। मनञ्चेतेहि धम्मेहि यो न सक्कोति रक्खितुं ततो नं दुक्खमन्वेति सब्बेहेतेहि पञ्चहि ॥७३५॥ पुब्बलोहितसम्पुण्णं बहुस्स कुणपस्स च नरवींर कतं वग्गुं समुग्गमिव चित्तितं ॥७३६॥ कटुकं मधुरस्सादं पिय निबन्धनं दुखं खुरं व मधुना लित्तं उल्लित्तं नाव बुज्झति ॥७३७|| इत्थिरूपे इत्थिरसे फोट्टब्बे पिच इत्थिया इत्थिगन्धेसु सारतो विविधं विन्दते दुखं ||७३८ ॥ इत्थिसोतानि सब्बानि सन्दन्ति पञ्च पञ्चसु, तेसं आवरणं कातुं यो सक्कोति विरियवा ॥७३९॥ सो अत्थवा'सो धम्मट्ठो, सो दक्खो, सो विचक्खणो करेय्य रममानो हि किच्चं धम्मत्थसंहित ॥७४०॥ अथो सीदति सञ्ञत्तं वज्जे किच्चं निरत्थकं, न तं किच्चन्ति मञ्जित्वा अप्पमत्तो विचक्खणो ।।७४१।। यञ्च अत्थेन सञ्ञत्तं या च धम्मगता रति तं समादाय वत्तेथ, स हि वे उत्तमा रति ।।७४२।। उच्चावचे हुपाये हि परेसमभिजिगी साति हत्वा वधित्वा अथ सोचयित्वा आलोपति साहसा यो परेसं ॥७४३॥ तच्छन्तो आणिया आणि निहन्ति बलवा यथा इन्द्रियानि, न्द्रियेहेव निहन्ति कुसला तथा ॥७४४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ८७ www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ ] थेर-गाथा सद्धं विरियं समाधिञ्च सतिपञञ्च भावयं पञ्च पञ्चहि हन्वान अनीघो याति ब्राह्मणो ॥७४५।। सो अत्थवा सो धम्मट्ठो कत्वा वाक्यानुसासनिं सब्बेन सब्बं बुद्धस्स, सो नरो सुखमेधतीति ॥७४६।। पारापरियो थेरो चिररत्तं वतातापी धम्म अनुविचिन्तयं समं चित्तस्स नालत्थं पुच्छं समणब्राह्मणे ॥७४७॥ को सो परंगतो लोके, को पत्तो अमतोगधं, कस्स धम्म पटिच्छामि परमत्थ विजाननं ॥७४८।। अन्तोवङकगतो आसिं मच्छो व घसमामिसं, बद्धो महिन्दपासेन वेपचित्यासुरो यथा ॥७४९।। अञ्चामि न न मुञ्चामि अस्मा सोकपरिद्दवा को मे बन्धं मुञ्चं लोके सम्बोधिं वेदयिस्सति ॥७५०॥ समणं ब्राह्मणं वा कं आदिसन्तं पभङगुनं, कस्स धम्म पटिच्छामि जरामच्चुपवाहनं ॥७५१।। विचिकिच्छाकडखागथितं सारम्भबलसञ्जतं कोधप्पत्तमनत्थद्धं अभिजप्पपदारणं ।।७५२।। तण्हाधनुसमुट्ठानं द्वे च पन्नरसायुतं पस्स ओरसिकं बालं भेत्वान यदि ठति ॥७५३।। अनुदिट्टिनं अप्पहानं संकप्प सरतेजितं तेन विद्धो पवेधामि पत्तं व मालुतेरितं ॥७५४।। अज्झत्तं मे समुट्ठाय खिप्पं पच्चति मामकं, छकस्सायतनी कायो यत्थ सरति सब्बदा ॥७५५।। तं न पस्सामि तेकिच्छं यो मे तं सल्लमुद्धरे नाना रज्जेन सत्थेन नागेन विचिकिच्छितं ॥७५६।। को मे असत्थो अवणो सल्लमब्भन्तरा पस्सयं अहिंसं सब्जगत्तानि सल्लं मे उद्धरिस्सति ॥७५७॥ धम्मप्पति हि सो सेट्ठो विसदोसपवाहको गम्भीरे पतितस्स मे थलं पाणिव दस्सये ।।७५८।। रहदे'हं अस्मि ओगाळ्हो अहारियरजमन्तिके माया उस्सुय्यसारम्भं थीनमिद्धमपत्थटे ॥७५९।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८६ तेलकानि थेरो उद्धच्चमेघथनितं संयोजनवलाहकं वाहा वहन्ति कुद्दिट्ठ संकप्पा रागनिस्सिता ॥७६०॥ सवन्ति सब्बधी सोता, लता उब्भिज्ज तिट्ठति; ते सोते को निवारेय्य'तं ळतं को हि छेच्छति ॥७६१॥ वेलं करोथ भद्दन्ते सोतानं सन्निवारणं, मा ते मनोमयो सोतो रुक्खं व सहसा लुवे ॥७६२।। एवं मे भयजातस्स अपारापारमेसतो ताणो पञवुधो सत्था इसिसंघनिसेवितो ॥७६३।। सोपानं सुकतं सुद्ध धम्मसारमयं दळ्हं पादासि वुय्हमानस्स माभायीति च मब्रवि ॥७६४।। सतिपट्ठानपासादं आरुय्ह पच्चवेक्खिसं यन्तं पुब्ब अमाञिस्सं सक्कायाभिरतं पजं ॥७६५।। यदा च मग्गमद्दक्खिं नावाय अभिरुहनं अनधिट्ठाय अत्तानं तित्थमद्दक्खिमुत्तमं ॥७६६।। सल्लं अत्तसमुट्ठानं भवनेत्ति पभावितं एतेसं अप्पवत्ताय देसेसि मग्गमुत्तमं ॥७६७।। दीघरत्तानुसयितं चिररत्तपतिट्टितं बुद्धो मे पानुदी गन्धं विसदोसपवाहनो'ति ॥७६८।। ___ तेलकानि थेरो पस्स चित्तकतं बिम्बं अरुकायं समुस्सितं आतुरं बहुसंकप्पं, यस्स नत्थि धुवं ठिति ॥७६९।। पस्स चित्तकतं रूपं मणिना कुण्डलेन च अद्वितचेन ओनद्धं सह वत्थेहि सोभति ॥७७०॥ अलत्तककता पापा मुखं चुण्णकमक्खितं अलं बालस्स मोहाय नो च पारगवेसिनो ॥७७१॥ अट्ठापदकता केसा, नेत्ता अञ्जन मक्खिता अलं बालस्स मोहाय नो च पारगवेसिनो ॥७७२।। अञ्जनी'व नवा चित्ता पूतिकायो अलंकतो अलं बालस्स मोहाय नो च पारगवेसिनो ॥७७३॥ ओदहि मिगवो पासं, नासादा वाकुरं मिगो; भुत्वा निवापं गच्छाम कन्दन्ते मिगबन्धके ॥७७४।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा ε० ] छिन्ना पासा मिगवस्स, नासादा वाकुरं मिगो, भुत्वा निवापं गच्छाम सोचन्ते मिगलुद्धके ।।७७५॥ पस्सामि लोके सधने मनुस्से, लद्धान वित्तं न ददन्ति मोहा ; लुद्धा धनं सन्निचयं करोन्ति भिय्यो च कामे अभिपत्थयन्ति ॥ ७७६॥ राजा पसय्ह प्पथवं विजेत्वा अतित्तरूपो पारं ससागरन्तं महिमावसन्तो ओरं समुद्दस्स समुद्दस्स पि पत्थयेथ ।।७७७।। राजा च अञ्ञे च बहू मनुस्सा अवीततण्हा मरणं उपेन्ति; ऊना व हुत्वान जहन्ति देहं, कामेहि लोकम्हि न हत्थि तित्ति ॥७७८॥ कन्दन्ति नं जाति पकिरिय केसे अहो वता नो अमरा'ति चाहु; वत्थेन नं पारुतं नीहरित्वा चितं समोधाय ततो दहन्ति ॥ ७७९ ।। सो डय्हति सूलेहि तुज्जमानो एकेन वत्थेन पहाय भोगे; न मिय्यमानस्स भवन्ति ताणा जाती च मित्ता अथवा सहाया ॥७८०॥ दायादका तस्स धनं हरन्ति, सत्तो पन गच्छति येन कम्मं ; न मिय्यमानं धनमन्वेति किञ्चि पुत्ता च दारा च धनञ्च रट्ठ ॥७८१ ॥ न दीघमायुं लभते धनेन न चापि वित्तेन जरं विहन्ति' अप्प हि नं जीवितमाहु धीरा असस्सतं विप्परिणामधम्मं ॥७८२ ॥ अद्धा दलिद्दाच फुसन्ति फस्सं, बालो च धीरो च तथेव फुट्ठो; बालो हि बाल्या वधितो व सेति, धीरो च न वेधति फस्सफुट्ठो ॥७८३॥ तस्मा हि पञ्चांव धनेन सेय्यो याय वोसानं इधाधि गच्छति, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६१ रट्ठपालो थेरो अब्योसितत्था हि भवाभवेसु पापानि कम्मानि करोन्ति मोहा ॥७८४।। उपेति गम्भञ्च पदञ्च लोकं संसारमापज्ज परम्पराय, तस्सप्पपञो अभिसद्दहन्तो उपेति गब्भञ्च परञ्च लोकं ॥७८५।। चोरो यथा सन्धिमुखे गहीतो सकम्मुना हाति पापधम्मो, एवं पजा पेच्च परम्हि लोके सकम्मुना हञ्जति पापधम्मो ॥७८६।। कामा हि चित्रा मधुरा मनोरमा विरूपरूपेन मथेन्ति चित्तं; आदीनवं कामगुणेसु दिस्वा तस्मा अहं पब्बजितो'म्हि राजा ॥७८७।। दुमप्फलानीव पतन्ति माणवा दहरा च वुड्ढा च सरीरभेदा; एतम्पि दिस्वा पब्बजितो'म्हि राजा अप्पण्णकं सामञ्जमेव सेय्यो ॥७८८।। सद्धायाहं पब्बजितो उपेतो जिनसासने, अवज्जा मय्ह पब्बजा, अनणो भुञ्जामि भोजनं ॥७८९।। कामे आदित्ततो दिस्वा जातरूपानि सत्थतो गब्भे ओक्कन्तितो दुक्खं निरपेसु महब्भयंः ॥७९०॥ एतमाद्दीनवं दिस्वा संवेगं अलभि तदा; सो'हं विद्धो तदा सन्तो सम्पत्तो आवसक्खयं ॥७९१।। परिचिण्णो. . . . (=६०४) ॥७९२॥ यस्सत्थाय पब्बजितो. . . . . (यस्स ६०५) सब्बसं योजनक्खयो'ति ॥७९३॥ रट्ठपालो थेरो रूपं दिस्वा सति मुट्ठा पियनिमित्तं मनसि करोतो; सीरत्तचित्तो वेदेति तञ्च अज्झोस तिट्ठति ॥७९४॥ तस्स वड्ढन्ति वेदना अनेका रूपसम्भवा, अभिज्झा च विहेसा च चित्तमस्सूपहचति; एवमाचितो दुक्खं आरा निब्बान वुच्चति ॥७९५॥ सदं सुत्वा सति मुट्ठा. . . . . (७९४,७९५;) ॥७९६-७९७॥ गन्धं घत्वा. . . . . (गन्ध सम्भवा ॥७९८-७९९।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] थेर-गाथा रसं भोत्वा. . . . . . (रससम्भवा) ॥८००-८०१॥ फस्सं फुस्स. . . . . (फस्ससम्भवा) ॥८०२-८०३॥ धम्म ञत्वा. . . . (धम्मसम्भवा ) ॥८०४-८०५।। न सो रज्ज्जति रूपेसु; रूपं दिस्वा पतिस्सतो विरत्तचित्तो वेदेति तञ्च नज्झोस तिट्ठति ॥८०६॥ यथास्स पस्सतो रूपं सेवतो वापि वेदनं खिय्यति नोपचिय्यति एवं सो चरती सतो; एवं अपचिनतो दुक्खं सन्तिके निब्बान वुच्चति ॥८०७॥ न सो रज्जति सद्देसु, सद्दे सुत्वा पतिस्सतो (.. . . . . गन्धे.) सुगन्धं घत्वा. . . . रसेसु रसं भोत्वा. . . . . फस्सेसु फस्सं फुस्स. . . . धम्मेसु धम्मं जत्वा पतिस्सतो) विरत्त चित्तो वेदेति तञ्च नञ्झोस तिट्ठति ॥८०८-८१०॥ ८१२-८१४-८१६ ॥ यथास्स सुणतो सई (घायतो गन्धं, सायतो रसं, । फुस्सतो फस्सं, विजानतो धम्म )सेवतो वापि वेदनं खिय्यति नोपचिय्यति एवं सो चरती सतो; एवं अपचिनतो दुक्खं सन्तिके निब्बान वुच्चति ॥८०९,८११,८१३,८१५,८१७॥ मालुक्यपुत्तो थेरो परिपुण्णकायो सुरूचि सुजातो चारुदस्सनो सुवण्णवण्णो'सि भगवा, सुसुक्कदाटो'सि विरियवा ॥८१८॥ नरस्स हि सुजातस्स ये भवन्ति वियञ्जना सब्बे ते तव कास्मि महापुरिसलक्खणा ॥८१९।। पसन्ननेत्तो सुमुखो ब्रहा उजु पतापवा मज्झे समणसंघस्स आदिच्चो व विरोचसि ॥८२०।। कल्याणदस्सनो भिक्खु कञ्चनसन्निभत्तचो किन्ते समणभावेन एवं उत्तमवण्णिनो ।।८२१॥ राजा अरहसि भवितुं चक्कवत्ति रथेसभो चातुरन्तो विजितावी जम्बुसण्डस्स इस्सरो ॥८२२।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालुक्यपुत्तो थेरो खत्तिया भोजराजानो अनुयन्ता भवन्ति ते, राजाभिराजा मनुजिन्दो रज्जं कारेहि गोतम ॥८२३॥ राजाहमस्मि सेला'ति भगवा धम्मराजा अनुत्तरो, धम्मेन चक्कं वत्तेमि चक्कं अप्पटिवत्तियं ॥८२४॥ सम्बुद्धो पटिजानासि इति सेलो ब्रह्मणो धम्मराजा अनुत्तरो धम्मेन चक्कं वत्तेमि इति भाससि गोतम ॥८२५॥ कोनु सेनापति भोतो सावको सत्थुरन्वयो, को इमं अनुवत्तेति धम्मचक्कं पवत्तितं ॥८२६॥ मया पवत्तितं चक्कं सेला 'ति भगवा धम्मचक्कमनुत्तरं सारिपुत्तो' नुवत्तेत अनुजातो तथागतं ॥८२७॥ अभियं अभिञ्ञातं भावेतब्बञ्च भावितं, पहातब्बं पहीनं मे, तस्मा बुद्धो' स्मि ब्राह्मणं ॥८२८॥ विनयस्सु मयी कङखं, अधिमुच्चस्सु ब्राह्मण दुल्लभं दस्सनं होति सम्बुद्धानं अभिहसो ॥८२९|| येसं वे दुल्लभो लोके पातुभावो अभिण्हसो, सोहं ब्राह्मण बुद्धो' स्मि सल्लकत्तो अनुत्तरो ॥८३०॥ ब्रह्मभूतो अतितुलो मारसेनप्पमद्दनो सब्बामित्ते वसीकत्वा मोदामि अकुतोभयो |८३१॥ इदं भोन्तो निसामेथ यथा भासति चक्खुमा सल्लकत्तो महावीरो, सीहो व नदी वने ||८३२॥ ब्रह्मभूतं अतितुलं मारसेनप्पमद्दनं को दिस्वा न प्पसीदेय्य अपि कण्हाभिजातिको ॥ ८३३॥ ये मं इच्छति अन्वेतु, यो वा निच्छति गच्छतुः इधाहं पब्बजिस्सामि वरपञ्ञस्स सन्तिके ॥८३४॥ एतञ्चे रुच्चति भोतो सम्मासम्बुद्धसासनं मयम्पि पब्बजिस्साम वरपञ्ञस्स सन्तिके ॥८३५॥ ब्राह्मणा तिसता इमे याचन्ति पञ्जलीकता ब्रह्मचरियं चरिस्साम भगवा तव सन्तिके ॥ ८३६॥ स्वाखातं ब्रह्मचरियं सेला'ति भगवा सन्दिट्ठिकमकालिकं यथा अमोघा पब्बज्जा अप्पमत्तस्स सिक्खतो ॥८३७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ६३ www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] थेर-गाथा यन्तं सरणमागम्म इतो अट्ठमि चक्खुमा सत्तरत्तेन भगवा दन्तम्हा तव सासने ॥८३८॥ तुवं बुद्धो, तुवं सत्था, तुवं माराभिभू मुनि, तुवं अनुसये छेत्वा तिष्णो तारेसि मं पजं ॥८३९॥ उपधी ते समतिक्कन्ता, आसवा ते पदालिता, सीहो व अनुपदानो पहीनभयभेरवो ।।८४०।। भिक्खवो तिसता इमे तिट्ठन्ति पञ्जलीकता ! पादे वीर पसारेहि, नागा वन्धन्तु सत्थुनोति ॥८४१॥ सेलो थेरो या तं मे हत्थिगीवाय सुखुमा वत्था पधारिता, सीलीनं ओदनो भुत्तो सुचिममूपसेचनो ॥८४२॥ सो'ज्ज भद्दो साततिको उञ्छापत्ता गतेरतो झायति अनुपादानो पुत्तो गोधाय भद्दियो ॥८४३॥ पंसुकूली साततिको उञ्छापत्तागते रतो झीयति अनुपादानो पुत्तो गोधाय भद्दियो ||८४४॥ पिण्डपाती साततिको- -प- तेचीवरी साततिको- - प सपदानचारी—प - एकासनी ———पत्तपिण्डी आरञ्ञिको -प —खलुपच्छाभत्ती- -प- प— रुक्खमूलिको- -प— अब्भोकासी -प- सोसानिको- -प· —यथासन्थतिको - प— ने सज्जिको- अप्पिच्छो---- सन्तुट्टो ——पविवित्तो प—असंसट्ठो -- आरद्धविरियो साततिको - प -प-॥८४५-८६१ ॥ हित्वा सतपस्तं कंसं सोवण्णं सतराजिक अग्गहिं मत्तिकापत्तं, इदं दुतियाभिसेचनं ॥८६२॥ उच्चे मण्डलिपाकारे दळ्हमट्टालकोट्ठ के रक्खितो खग्गहत्थेहि उत्तसं विहरि पुरे ॥८६३॥ सो'ज्ज भद्दो अनुत्रासी पहीनभयभेरवो झायति वनमोगय्ह पुत्तो गोधाय भद्दियो ||८६४॥ सीलक्खन्धे पतिट्ठाय सति पञ्ञ्ञञ्च भावय पापुणि अनुपुब्बेन सब्बसंयोजनक्खयन्ति ॥ ८६५ ॥ भद्दियो काळिगोधाय पुत्तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेलो थेरो [ ६५ गच्छ वदेसि समण ठितो 'म्हि ममञ्च ब्रूसि ठितमट्टि तो'ति पुच्छामि तं समण एतमत्थं: कस्मा ठितो त्वं अहमट्टि तो म्हि ।।८६६।। ठितो अहं अङगुलिमाल सब्बदा सब्बसु भूतेसु निधाय दण्डं त्वञ्च पाणेसु असञ्जतो'सि तस्मा ठितो'हं तुवमट्टितो'सि ॥८६७।। चिरस्सं वत मे महितो महेसि महावनं समणो पच्चुपादि; सो'मं चजिस्सामि सहस्सपापं सुत्वान गाथं तव धम्मयुत्तं ॥८६८।। इत्वेव चोरो असिमावुधञ्च सोन्भे पपाते नरके अन्वकासि, अवन्दि चोरो सुगतस्स पादे तत्थेव पब्बज्जिमयाचि बुद्धं ॥८६९।। बुद्धो च खो कारुणिको महेसिओ सत्था लोकस्स सदेवकस्स तमेहि भिक्खूति तदा अवोच, एसेव तस्स अहु भिक्खुभावो ॥८७०।। यो पुब्बे पमज्जित्वान पच्छा सो न प्पमज्जति, सो'हं लोकं पभासेति अब्भा मुत्तो व चन्दिमा ।।८७१।। यस्स पापं कतं कम्मं कुसलेन पिथीयति, सो'हं लोकं पभासेति अब्भा मुत्तो व चन्दिमा ।।८७२।। यो हवे दहरो भिक्खु युञ्जती बुद्धसासने, सो'हं लोकं पभासेति अब्भा मुत्तो व चन्दिमा ॥८७३।। दिसा हि मे धम्मकथं सुणन्तु, दिसा हि मे युञ्जन्तु बुद्धसासने दिसा हि मे ते मनुस्से भजन्तु ये धम्ममेवादपयन्ति सन्तो ॥८७४।। दिसा हि मे खन्तिवादानं अविरोधप्पसंसनं सुणन्तु धम्मं कालेन तञ्च अनुविधीयन्तु ॥८७५।। न हि जातु सो ममं हिंसे अनं वा पन कञ्चिनं, पप्पुय्य परमं सन्ति रक्खेय्य तसथावरे ॥८७६॥ उदकं हि नयन्ति नेत्तिका, उसुकारा नमयन्ति तेजनं, दारूं नमयन्ति तच्छका, अत्तानं दमयन्ति पण्डिता ।।८७७।। दण्डेनेके दमयन्ति अङकुसेहि कसाहि च; अदण्डेन असत्थेन अहं दन्तो'म्हि तादिना ।।८७८।। अहिंसको'ति मे नामं हिंसकस्स पुरे सतो अज्जाहं सच्चनामो'म्हि न नं हिंसामि कञ्चिनं ॥८७९।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] थेर-गाथा चोरो अहं पुरे आसिं अङ्गुलिमालो 'ति विस्सुतो; उगृहमानो महोघेन बुद्धं सरणमागम ॥८८०॥ लोहितपाणि पुरे आसि अडगुलिमालो'ति विस्सुतो; सरणागमनं पस्स; भवनेत्ति समूहता ॥८८१।। तादिसं कम्मं कत्वान बहुं दुग्गतिगामिनं फुट्ठो कम्मविपाकेन अनणो भुञ्जामि भोजनं ॥८८२।। पमादमनुयुञ्जन्ति बाला दुम्मेधिनो जना, अप्पमादञ्च मेधावी धनं सेट्ठ व रक्खति ॥८८३॥ मा पमादमनुयुजेथ मा कामरतिसन्थवं, अप्पमत्तो हि झायन्तो पप्पोति परमं सुखं ॥८८४।। स्वागतं नापगतं नेतं दुम्मन्तितं मम; सम्विभत्तेसु धम्मेसु यं सेट्ठ तदुपागमं ॥८८५।। स्वागतं नापगतं नेतं दुम्मन्तितं मम; तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता कतं बुद्धस्स सासनं ॥८८६।। अरने रुक्खमूले वा पब्बतेसु गुहासु वा तत्थ तत्थेव अट्ठासि उब्बिग्गमनसो तदा ।।८८७॥ सुखं सयामि ठायामि सुख कप्पेमि जीवितं अहत्थपासो मारस्स; अहो सत्थानुकम्पितो ॥८८८।। ब्रह्मजच्चो पुरे आसिं, उदिच्चो उभतो अहं, सो'ज्ज पुत्तो सुगतस्स धम्मराजस्स सत्थुनो ॥८८९॥ वीततण्हो अनादानो गुत्तद्वारो सुसंवुतो; अघमूलं वमित्वान पत्तो मे आसवक्खयो ॥८९०॥ परिचिण्णो मया सत्था, कतं बुद्धस्स सासनं, ओहितो गरुको भारो, भवनेत्ति समूहता'ति ।।८९१।। अङ्गुलिमालो थेरो पहाय माता पितरो भगिनीजातिभातरो पञ्च कामगुणे हित्वा अनुरुद्धो'व झायति ॥८९२।। समेतो नच्चगीतेहि सम्मताळप्पबोधनो न तेन सुद्धिमज्झगमा मारस्स विसये रतो ॥८९३।। एतञ्च समतिक्कम्म रतो बुद्धस्स सासने सब्बोघं समतिकम्म अनुरुद्धो'व झायति ॥८६४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अङ्गुलिमालो थेरो रूपा सद्दा रसा गन्धा फोटुब्बा च मनोरमा एते च समतिक्कम्म अनुरुद्धो व झायति ॥८९५॥ पिण्डपातपटिक्कन्तो एको अदुतियो मुनि एसति पंसुकूलानि अनुरुद्धो अनासवो ॥८९६।। विचिनि अग्गही धोवि रजयी धारयी मुनि पंसुकूलानि मतिमा अनुरुद्धो अनासवो ।।८९७।। महिच्छो च असन्तुट्ठो संसट्ठो यो च उद्धतो, तस्स धम्मा इमे होन्ति पापका संकिलेसिका ॥८९८ ॥ सतो च होति अप्पिच्छो सन्तुट्ठो अविघातवा पविवेकरतो वित्तो निच्चमारद्ववीरियो ॥८९९॥ तस्स धम्मा इमे होन्ति कुसला बोधियपक्खिका अनासवो च सो होति, इति वृत्तं महेसिना ॥९००॥ मम संकप्पमञ्ञाय सत्था लोके अनुत्तरे मनोमयेन कायेन इद्धिया उपसंकमि ॥९०१ ॥ यदा मे अहु संकप्पो ततो उत्तर देसयि, निप्पपञ्चरतो बुद्धो निप्पपञ्चमदेसयि ॥९०२॥ तस्साहं धम्ममय विहासिं सासने रतो; तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता कतं बुद्धस्स सासनं ॥९०३॥ पञ्चपञ्ञासवस्सानि यतो नेसज्जिको अहं, पञ्च वीसति वस्सानि यतो मिद्धं समूहतं ॥९०४॥ नाहु अस्सासपस्सासो ठितचित्तस्स तादिनो; अनेजो सन्तिमारब्भ चक्खुमा परिनिब्बुतो ॥ ९०५ ॥ असल्लीनेन चित्तेन वेदनं अज्झवासयि; पज्जोतस्सेव निब्बानं विमोक्खो चेतसो अहू ॥९०६॥ एते पच्छिमका दानि मुनिनो फस्सपञ्चमा नाञ्ञे धम्मा भविस्सन्ति सम्बुद्धे परिनिब्बुते ॥९०७॥ नत्थि दानि पुनावासो देवकायस्मि जालिनि; विक्खीणो जातिसंसारो, नत्थि दानि पुनब्भवो ॥९०८॥ यस्स मुहुत्ते सहस्सदा लोको संविदितो, स ब्रह्मकप्पो वसि इद्विगुणं चुतूपपाते काले पस्सति देवता स भिक्खु ॥९०९॥ अन्नभारो पुरे आसिं दळिड़ो घासहारको, समणं पटिपादेसि उपरिट्ठ यसस्सिनं ॥९१०॥ '3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ९७ www.umaragyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] थेर-गाथा सो'म्हि सक्यकुले जातो अनुरुद्धोति मं विद्, अपेतो नच्चगीतेहि सम्मताळप्पबोधनो ॥९११।। अथद्दसासिं सम्बुद्धं सत्थारं अकुतोभयं, तस्मि चित्तं पसादेत्वा पब्बजि अनगारियं ॥९१२।। पुब्बेनिवासं जानामि यत्थ मे उसितं पुरे, तावर्तिसेसु देवेसु अट्ठासि सक्कजातिया ॥९१३॥ सत्तक्खत्त मनुस्सिन्दो अहं रज्जमकारयि चातुरन्तो विजितावी जम्बुसण्डस्स इस्सरो, अदण्डेन असत्येन धम्मेन अनुसासयि ॥९१४।। इतो सत्त इतो सत्त संसारानि चतुद्दस निवासमभिजानिस्सं देवलोके ठितो तदा ॥९१५॥ पञ्चङ्गिके समाधिम्हि सन्ते एकोदिभाविते पटिप्पस्सद्विलद्धम्हि, दिब्बचक्खू विसुज्झि मे ॥९१६।। चुत्तूपपातं जानामि सत्तानं आगतिं गति इत्थभाव था भावं झाने पञ्चङिगके ठितो ॥९१७॥ परिचिण्णो मया सत्था-प--समूहता ॥९१८॥ वज्जीनं वेळुवगामे अहं जीवितसंखया हे?तो वेळुगुम्बस्मि निब्बायिस्सं अनासवो'ति ॥९२०।। अनिरुद्धो थेरो समणस्स अहु चिन्ता पुप्फितम्हि महावने एकग्गस्स निसिन्नस्स पविवित्तस्स झायिनो: अञ्जथा लोकनाथम्हि तिट्ठन्ते पुरिसुत्तमे इरियं आसि भिक्खूनं, अञथा दानि दिस्सते ॥९२१॥ सीतवातपरित्तानं हिरिकोपीनछादनं, मत्तट्ठियं अभुजिंसु सन्तुट्ठा इतरीतरे ॥९२२।। पणीतं यदि वा लूखं अप्पं वा यदि वा बहुं यापनत्थं अभुजिंसु अगिद्धा नाधिमुच्छिता ॥९२३॥ जीवितानं परिक्खारे भेसज्जे अथ पच्चये । न वाळ्हं उस्सुका आसुं यथा ते आसवक्खये ॥९२४॥ अरजे रुक्खमूलेसु कन्दरासु गुहासु च विवेकमनुब्रूहन्ता विहिस्सु तप्परायना ॥९२५।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६६ अनिरुद्धो थेरो नीचनिविट्ठा सुभरा मुद् अत्थद्धमानसा अव्यासेका अमुखरा अत्थचिन्तावसानुगा ।।९२६।। ततो पासादिकं आसि गतं भुत्तं निसेवितं सिनिद्धा तेलधारा व अहोसि इरियापथो ॥९२७॥ सब्बासवपरिक्खीणा महाझायी महाहिता निब्बुता दानि ते थेरा, परित्ता दानि तादिसा ।।९२८।। कुसलानञ्च धम्मानं पञ्चाय च परिक्खया सब्बाकारवरूपेतं लुज्जते जिनसासनं ॥९२९।। पापकानञ्च धम्मानं किलेसानञ्चयो उतु उपट्टि ताविवेकाय ये च सद्धम्मसेसका ॥९३०।। ते किलेसा पवड्ढन्ता आविसन्ति बहुं जनं, कीळन्ति मधे बालेहि उम्मत्तेहि व रक्खसा ।।९३१।। किलेसेहाभिभूता ते तेन तेन विधाविता नरा किलेसवत्थुसु सयंगाहे व घोसिते ॥९३२॥ परिच्चजित्वा सद्धम्मं अञ्जमओहि भण्डरे, दिट्ठि गतानि अन्वेन्ता इदं सेय्यो'ति मञरे ।।९३३।। घनञ्च पुत्तं भरियञ्च छड्ड यित्वान निग्गता कटच्छभिक्खहेतु पि अकिच्चानि निसेवरे ॥९३४॥ उदरावदेहकं भुत्वा सयन्ततुत्तानसेय्यका, कथा वदन्ति पटिबुद्धा या कथा सत्थु गरहिता ।।९३५॥ सब्बकारुक सिप्पानि चित्ति कत्वान सिक्खरे, अवूपसन्ता अज्झत्तं सामञ्जत्थो'ति अच्छति ॥९३६।। मत्तिकं तेलं चुण्णञ्च उदकासनभोजनं गिहीनं उपनामन्ति आकडखन्ता बहुत्तरं ॥९३७।। दन्तपोणं कपिट्ठ ञ्च पुप्फखादनियानि च पिण्डपाते च सम्पन्ने अम्बे आमलकानि च ॥९३८।। वेसज्जेसु यथा वेज्जा, किच्चाकिच्चे यथा गिही, गणिका व विभूसायं, इस्सरे खत्तिया यथा ॥९३९।। नेकतिका वञ्चनिका कूटसक्खी अवाटुका बहूहि परिकप्पेहि आमिसं परिभुञ्जरे ॥९४०॥ लेस कप्पे परियाये परिकप्पे'नुधाविता जीविकत्था उपायेन संकड्ढन्ति बहुं धनं ॥९४१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा उपट्टपेन्ति परिसं कम्मतो नो च धम्मतो, धम्मं परेसं देसेन्ति लाभतो नो च अत्थतो ।। ९४२ ।। संघलाभस्स भण्डन्ति संघतो परिवाहिरा, परलाभोपजोवन्ता अहिरिका व न लञ्जरे ।।९४३।। नानुयुत्ता तथा एके मुण्डा संघाटिपास्ता सम्भावनं ये विच्छन्ति लाभसक्कारमुच्छिता ॥९४४।। एवं नानप्पयातम्हि नि दानि सुकरं तथा अफुसितं वा फुसितुं फुसितं वानुरविखतुं ॥९४५॥ यथा कण्टकट्ठानम्हि चरेय्य अनुपाहनो सति उपट्टपेत्वान, एवं गामे मुनी चरे ।।९४६।। सरित्वा पुब्बके योगी तेसं वत्तमनुस्सरं किञ्चापि पच्छिमो कालो फुसेय्य अमतं पदं ।। ९४७॥ इदं वत्वा सालवने समणो भावितिन्द्रियो ।। ९४८ ॥ ब्राह्मणो परिनिब्बायि इसि खीणपुनब्भवो 'ति पारापरियो थेरो १०० ] उद्दानं अधिमुत्तो पारापरियो तेलकानि रट्ठ पालो मालुङक्य सेलो भद्दियो अगुलि दिब्बचक्खुको पारापरियो दसेते विसम्हि सुपरिकित्तिता, गाथायो सता होन्ति पञ्चतालीस उत्तरिन्ति वोसति निपातो निट्ठितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिंसनिपातो पासादिके बहू दिस्वा भावितत्ते सुसंबुते इसि पण्डरसोगोतो अपुच्छि फुस्ससव्हयंः ॥९४९॥ किंछन्दा किमधिप्पाय किमाकप्पा भविस्मरे अनागतम्हि कालम्हि तं मे अक्खाहि पुच्छितो ॥९५०॥ सुणोहि वचनं मय्हं इसि पण्डरसव्हय, सक्कच्चं उपधारेहि, आचिक्खिस्साम्यनागतं ॥९५१।। कोधना उपनाही च मक्खी थम्भी सठा बह इस्सुकी नानावादा च भविस्सन्ति अनागते ॥९५२।। अज्ञातमानिनो धम्मे गम्भीरे तीरगोचरा लहुका अगरु धम्मे अझमझमगारवा ॥९५३॥ बाहू आदीनवा लोके उप्पज्जिसन्ति' नागते; सुदेसितं इमं धम्मकिलिसिस्सन्ति दुम्मती ॥९५४।। गुणहीनापि संघम्हि वोहरन्ति विसारदा वलवन्तो भविस्सन्ति मुखरा अस्सुताविनो ॥९५५।। गुणवन्तो पि संघम्हि ओरहरन्ता यथत्थतो दुब्बला ते भविस्सन्ति हिरिमना अनत्थिका ॥९५६।। रजतं जातरूपञ्च खेत्तं वयं अजेळकं । दासीदासञ्च दुम्मेधा सादियिस्सन्ति'नागते ।।९५७।। उज्झानसजिनो बाला सीलेसु असमाहिता उन्नळा विचरिस्सन्ति कलहाभिरता मगा ॥९५८॥ उद्धता च भविस्सन्ति नीलचीवरपास्ता; कुहा थद्धा लपा सिङगी चरिस्सन्त्यरिया विय ॥९५९।। तेलसंहेहि केसेहि चपला अझनक्खिका रथियाय गम्मिस्सन्ति दन्तवण्णकपारुता ॥९६०। [ १०१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] थेर-गाथा अजेगुच्छं विमुत्तेहि सुरत्तं अरहद्धजं जिगुच्छिस्सन्ति कासावं ओदातेमु समुच्छिता ॥९६१॥ लाभकामा भविस्सन्ति कुसीता हीनवीरिया, किच्छन्ता वनपत्तानि गामन्तेसु वसिस्सरे ॥९६२।। ये ये लाभं लभिस्सन्ति मिच्छाजीवरता सदा. ते ते च अनुसिक्खन्ता भजिस्सन्ति असंयता ॥९६३॥ ये ये अलाभिनो लाभ, न ते पुज्जा भविस्सरे, सुपेसले पि ते धीरे सेविस्सन्ति न ते तदा ॥९६४।। मिलक्खुरजनं रत्तं गरहन्ता सकं धजं तित्थियानं धजं केचि धारेसन्त्यवदातकं ॥९६५॥ अगारवो च कासावे तदा तेसं भविस्सति पटिसंखा च कासावे भिक्खूनं न भविस्सति ॥९६६॥ अभिभूतस्स दुक्खेन सल्लविद्धस्स रुप्पतो पटिसंखा महाघोरा नागस्सासि अचिन्तिया ॥९६७।। छद्दन्तो हि तदा दिस्वा सुरत्तं अरहद्धजं तावदेव भणी गाथा गजो अत्थोपसंहिता ॥९६८।। अनिक्कसावो कासावं यो वत्थं परिदहिस्सति अपेतो दमसच्चेन, न सो कासावमरहति ॥९६९॥ यो च वन्तकसावस्स सीलेसु सुसमाहितो उपेतो दमसच्चेन, स वे कासावमरहति ॥९७०॥ विपन्नसीलो दुम्मेघो पाकटो कामकारियो विब्भन्तचित्तो निस्सुको, न सो कासावमरहति ॥९७१।। यो च सीलेन सम्पन्नो वीतरागो समाहितो ओदातमनसंकप्पो स वे कासावमरहति ॥९७२॥ उद्धतो उन्नळो बालो सीलं यस्स न विज्जति, ओदातकं अरहति, कासावं किं करिस्सति ॥९७३॥ भिक्खू च भिक्खुनियो च दुट्ठचित्ता अनादरा तादीनं मेत्तचित्तानं निग्गण्हिस्सन्ति'नागते ॥९७४॥ सिक्खापेन्तापि थेरेहि वाला चीवरधारणं न सुणिस्सन्ति दुम्मेधा पाकटा कामकारिया ॥९७५॥ ते तथा सिक्खिता बाला अज्ञमञ्ज अगारवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १०३ फुस्सत्थेरो एवं अनागतद्धानं पटिपत्ति भविस्सति भिक्खूनं भिक्खुनीनञ्च पत्ते कालम्हि पच्छिमे ।।९७७।। पुरा आगच्छते एतं अनागतं महब्भयं सुब्बचा होथ सखिला अञमनं सगारवा ॥९७८।। मेचित्ता कारुणिका होथ सीले सुसंवुता आरद्धविरिया पहितत्ता निच्चं दाळ्हपरक्कमा ।।९७९।। पमादं भयतो दिस्वा अप्पमादञ्च खेमतो भावेथट्ठ डिल्गक मग्गं फुस्सन्ति अमतं पद'न्ति ॥९८०।। फुस्सत्थेरो यथाचारी यथासतो सतिमा यथा संकप्प चरियाय अप्पमत्तो अज्झत्तरतो सुसमाहितत्तो एको सन्तुसितो, तमाहु भिक्वं ॥९८१॥ अल्लं सुक्खंञ्च भुञ्जन्तो न वाळह सुहितो सिया, उनूदरो मिताहारो सतो भिक्खु परिब्बजे ॥९८२।। चत्तारो पञ्च आलोपे अभुत्वा उदकं पिवे, अलं फासुविहाराय पहितत्तस्स भिक्खुनो ॥९८३।। कप्पियतञ्च आदेति चीवरं इदमत्थिक, अलं फासुविहाराय पहितत्तस्स भिक्खुनो ॥९८४।। पल्लडकेन निसिन्नस्स जण्णुके नाभिवस्सति, अलं. . . . . . . . . . . . . . . ॥९८५।। यो सुखं दुक्खतो अ६, दुक्खं अदृक्खि सल्लतो. उभयन्तरेन नाहोसि, केन लोकस्मि कि सिया ।।९८६।। मा मे कदाचि पापिच्छो कुसीतो हीनवीरियो अप्पस्सुतो अनादरो, केन लोकस्मि कि सिया ॥९८७।। बहुस्सुतो च मेधावी सीलेसु मुसमाहितो चेतो समथमनुयुत्तो अपि मुद्धनि तिट्ठतु ॥९८८॥ यो पपञ्चमनुयुत्तो पपञ्चाभिरतो मगो, विराधयी च सो निब्बानं योगक्खेमं अनुत्तरं ॥९८९।। यो च पपञ्च हित्वान निप्पपञ्चपथे रतो, आराधयी सो निब्बानं योगक्वेमं अनुत्तरं ॥९९०।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा १०४ ] गामे वा यदि वारजे निन्ने वा यदि वा थले, यत्थ अरहन्तो विहरन्ति तं भूमिं रामणेय्यकं ॥९९१॥ रमणीया अरञ्जानि, यत्थ न रमती जनो, वीतरागा रमिस्सन्ति न ते कामगवेसिनो ।। ९९२ ।। निधीनं व पवत्तारं यं पस्से वज्जदस्सिनं निग्गय्हवादिं मेधावि, तादिसं पण्डितं भजे; तादिसं भजमानस्स सेय्यो होति न पापियो ॥९९३॥ ओवदेय्यानुसासेय्य असब्भा च निवारये, सतं हि सो पियो होति असतं होति अप्पियो ॥ ९९४॥ अञ्ञ्ञस्स भगवा बुद्धो धम्मं देसेसि चक्खुमा ; धम्मे देसियमानम्हि सोतमोधेतिमत्थिको ॥९९५॥ तम्मे अमोघं सवनं, विमुत्तो' म्हि अनासवो नेव पुब्बेनिवासाय न पि दिब्बस्स चक्खुनो ॥९९६॥ चेतोपरियायइद्धिया चुतिया उपपत्तिया सोतघात्तुविसुद्धिया पणिधि मे न विज्जति ॥९९७॥ रुक्खमूलं व निस्साय मुण्डो संघाटिपारुतो पञ्ञाय उत्तमो थेरो उपतिस्सो' व झायति ॥९९८॥ अवितक्कं समापन्नो सम्मासम्बुद्धसावको अरियेन तुण्हिभावेन उपेतो होति तावदे ॥९९९॥ यथापि पब्बतो सेलो अचलो सुपतिट्ठितो, एवं मोहक्खया भिक्खु पब्बतोव न वेधति ॥१०००॥ अनङ्गणस्स पोसस्स निच्वं सुचिगवेसिनो वालग्गमत्तं पापस्स अब्भामत्तं व खायति ॥ १०१ ॥ नाभिनन्दामि मरणं नाभिनन्दामि जीवितं, निक्खिपिस्सं इमं कायं सम्पजानो पतिस्सतो ॥१००२।। भतको यथा ।।१००३॥ ---निब्बिसं उभयेन मिदं मरणं एव नामरणं पच्छा वा पुरे वा; पटिपज्जथ मा विनस्सथ, खणो वे मा उपच्चगा ॥१००४ ।। नगरं यथा पच्चन्तं गुत्तं सन्तरबहिरं एवं गोपेथ अत्तानं, खणो वे मा उपच्चगा, खणातीता हि सोचन्ति नरयम्हि समप्पिता ।। १००५।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १०५ सारिपुत्तो थेरो उपसन्तो उपरतो मन्तभाणी अनुद्धतो धुनाति पापके धम्मे दुमपत्तं व मालुतो ॥१००६॥ उपसन्तो -पअब्बहि पापके धम्मे दुमपत्तं व मालुतो ।।१००७॥ उपसन्तो अनायासो विप्पसन्नमनाविलो कल्याणसीलो मेधावी दुवस्सन्तकरो सिया ॥१००८॥ न विस्ससे एकतियेसु एवं अगारिसु पब्बजितेसु चापि; साधु पि हुत्वान असाधु होन्ति, असाधु हुत्वा पुन साधु होन्ति ॥१००९।। कामच्छन्दो च व्यापादो थीनमिद्धञ्च भिक्खुनो उच्च विचिकिच्छा च पञ्च ते चित्तकेलिसा ।।१०१०॥ यस्स सक्करियमानस्स असक्कारेन चूभयं समाधि न विकम्पति अप्पमादविहारिनो ॥१० ११॥ तं झायिनं साततिकं सुखुमदिट्ठिविपस्सकं उपादानक्खयारामं आहू सप्पुरिसो इति ॥१०१२॥ महासमुद्दो पथवी पब्बतो अनिलो पि च उपमाय न युज्जन्ति सत्थु वरविमुत्तिया ॥१०१३॥ चक्कानुवत्तको थेरो महाञाणी समाहितो पथवापग्गि समानो न रज्जति न दुस्सति ॥१०१४॥ पञ्ञापारमितं पत्तो महाबुद्धि महामुनि अजळो जळसमानो सदा चरति निब्बुतो ॥१०१५।। परिचिण्णो मया सत्था -प- ॥१०१६।। सम्पादेथप्पमादेन, एसा मे अनुसासनी; हन्दाहं परिनिब्बिस्म, विप्पमुत्तों म्हि सब्बधीति ॥१०१७॥ सारिपुत्तो थेरो पिसुनेन च कोधनेन मच्छरिना च विभूतिनन्दिना सखितं न करेय्य पण्डितो; पापो कापुरिसेन संगमो ॥१०१८॥ सद्धेन च पेसलेन च पञ्जवता बहुस्सुतेन च । सखितं हि करेय्य पण्डितो; भद्दो सप्पुरिसेन संगमो ॥१०१९॥ पस्स चित्तकतं बिम्बं–प-॥१०२०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] थेर-गाथा बहुस्सुतो चित्तकथी बुद्धस्स परिचारको पन्नभारो विझुत्तो सेय्यं कप्पेति गोतमो ॥१०२१।। खीणासवो विसञ्जत्तो सङगातीतो सुनिब्बुतो धारेति अन्तिमं देहं जातिमरणपारगु ॥१०२२॥ यस्मि पतिट्ठिता धम्मा बुद्धस्सादिच्चबन्धुनो निब्बानगमने मग्गे सो'यं तिट्ठति गोतमो ॥१०२३॥ द्वासीतिं बुद्धतो गहि द्वे सहस्सानि भिक्खुतो चतुरासीति सहस्सानि ये'मे धम्मा पवत्तिनो ॥१०२४।। अप्पसुत्तो'यं पुरिसो बलिबद्दो व जीरति ', मंसानि तस्स बन्ति , पञ्जा तस्स न वड्ढति ।।१०२५।। बहुस्सुतो अप्पसुतं यो सुतेनाति माति, अन्धो पदीपधारो व तथैव पटिभाति मं ॥१०२६।। बहुस्सुतं उपासेय्य सुतञ्चन विनासये; तं मूलं ब्रह्मचरियस्स; तस्मा धम्मधरो सिया ॥१०२७॥ पुब्बापरले अत्थञ्जू निरूत्तिपदकोविदो सुग्गहीतञ्च गण्हाति अत्यञ्चोपपरिक्खति ।।१०२८।। खन्त्या छन्दिकतो होति, उस्सहित्वा तुलेति तं, समये सो पदहति अज्झत्तं सुसमाहितो ॥१०२९।। बहुस्सुतं धम्मधरं सप्पञ्ज बुद्धसावकं धम्मविज्ञाणमाकङ्खं तं भजथ तथाविधं ॥१०३०॥ बहुस्सुतो धम्मधरो कोसारक्खो महेमिनो चक्खु सब्बस्स लोकस्स पूजनेय्यो बहुस्सुतो ।।१०३१॥ धम्मारामो धम्मरतो धम्मं अनुविचिन्तयं धम्म अनुस्सरं भिक्खु सद्धम्मा न परिहायति ॥१०३२।। कायमच्छेरगरनो हिय्यमाने अनुट्ठहे सरीरसुख गिद्धस्स कुतो समणफासुता ॥१०३३॥ न पक्खन्ति दिसा सब्बा, धम्मा न पटिभन्ति मं गते कल्याणमित्तम्हि अन्धकारं व खायति ॥१०३४।। अब्भतीतसहायस्स अतीतगतसत्थुनो नत्थि एतादिसं मित्तं यथा कायगता सति ॥१०३५।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १०७ आनन्दो थेरो ये पुराणा अतीता ते, नवेहि न समेति मे, स्वज्ज एको'व झायामि वस्सुपेतोव पक्खिमा ।।१०३६।। दस्सनाय अतिक्कन्ते नानावेरज्जके बहू मा वारयित्थ सोतारो, पस्सन्तु समयो ममं ।।१०३७।। दस्सनाय अतिक्कन्ते नाना वेरज्जके पुथू करोति सत्था ओकासं न निवारेति चक्खुमा ॥१०३८।। पण्णवीसति वस्सानि सेखभूतस्स मे सतो न कामसजा उप्पज्जि, पस्स धम्मसुधम्मतं ॥१०३९।। पण्णवीसति वस्सानि सेखभूतस्स से सतो न दोससझा उपज्जि, पस्स धम्मसुधम्मतं ॥१०४०।। पण्णवीसति वस्सानि भगवन्तं उप?हिं मेत्तेन कायकम्मेन—मेत्तेन वचिकम्मेन-मेतेन मनोकम्मेन छाया व अनपायिनी ॥१०४१॥ बुद्धस्स चडकमन्तस्स पिट्ठि तो अनुचङकमि, १०४३॥ धम्मे देसियमानम्हि जाणं मे उदपज्जथ ।।१०४४॥ अहं सकरणीयो'म्हि सेखो अप्पत्तमानसो, सत्थु च परिनिब्बानं यो अम्हं अनुकम्पको ॥१०४५।। तदासियं भिसनकं, तदासि लोमहंसनं सब्बाकारवरूपेते सम्बद्ध परिनिब्बुते ॥१०४६।। बहुस्सुतो धम्मधरो कोसारक्वो महेसिनो चक्खु सब्बस्स लोकस्स आनन्दो परिनिब्बतो ॥१०४७॥ बहुस्सुतो धम्मधरो-प-अन्धकारे तमोनुदो, गतिमन्तो सतीमन्तो धितिमन्तो च यो इसि ॥१०४८।। सद्धम्माधारको थेरो आनन्दो रतनाकरो ॥१०४९।। परिचिण्णो मया सत्था-प-॥१०५०॥ आनन्दो थेरो उद्दानं फुस्सो उपतिस्सो आनन्दो तयो'ति मे पकित्तिता; गाथायो तत्थ संखाता सतं पञ्च च उत्तरीति. तिसनिपातो निहितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्तालीसनिपातो न गणेन पुरक्खतो चरे, विमनो होति, समाधि दुल्लभो; नानाजनसंगहो दुक्खो इति दिस्वान गणं न रोचये ॥१०५१।। न कुलानि उपब्बजे मुनि, विमनो होति, समाधि दुल्लभो; सो उस्सुको रसानुगिद्धो अत्थं रिञ्चति यो सुखावहो ।।१०५२।। पङको 'ति हि जं अवेदयं यायं वन्दनपूजना कुलेसु, सुखुमं सल्लं दुरुब्बहं, सक्कारो कापुरिसेन दुज्जहो ॥१०५३।। सेनासनम्हा ओरुय्ह नगरं पिण्डाय पाविसि, भुज्जन्तं पुरिसं कुट्ठिं सक्कच्चं तं उपट्टहिं ॥१०५४॥ सो तं पक्केन हत्थेन आलोपं उपनामयि; आलोपं पक्खिपन्तस्स अङ्गुली पेत्थ छिज्जथ ॥१०५५।। कुड्डमूलञ्च निस्साय आलोपन्तं अभुञ्जिसं, भुञ्जमाने च भत्ते वा जेगुच्छं मे न विज्जति ॥१०५६।। उत्तिट्ठपिण्डो आहारो पूतिमत्तञ्च ओसधं सेनासनं रक्खमूलं पंसकूलञ्च चीवरं : यस्सेते अभिसम्भुत्वा स वे चातुदिस्सो नरो ॥१०५७॥ यत्थ एके विहन्ति अरुहन्तो सिलुच्चयं तस्स बुद्धस्स दायादो सम्पजानो पतिस्सतो इद्धिबलेनुपत्थद्धो कस्सपो अभिरूहति ॥१०५८॥ पिण्डपातपटिक्कन्तो सेलमारुयह कस्सपो झायति अनपादानो पहीनभयभेरवो ॥१०५९।। पिण्डपातपटिक्कन्तो सेलमारुयह कस्सपो झायति अनपादानो डयूहमानेसु निब्बुतो ॥१०६०।। पिण्डपातपटिक्कन्तो सेलमारुय्ह कस्सपो झायति अनपादानो कतकिच्चो अनासवो ।।१०६१।। १०८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चत्तालीसनिपातो करेरिमालावितता भूमिभागा मनोरमा कुञ्जराभिरुद्धा रम्मा ते सेला रमयन्ति मं ॥१०६२।। नीलब्भवण्णा रुचिरा वारिसीता सुचिन्धरा इन्दगोपकसञ्छन्ना ते सेला रमयन्ति मं ।।१०६३।। नीलब्भकूटसदिसा कूटागारवरूपमा वारणाभिरुदा रम्मा ते सेला रमयन्ति मं ॥१०६४।। अभिवुट्ठा रम्मतला नगा इसिभि सेविता अब्भुन्नदिता सिखीहि ते सेला रमयन्ति मं ॥१०६५।। अलं झायितुकामस्स पहितत्तस्स मे सतो; अलं मे अत्थकामस्स पहितत्तस्स भिक्खुनो; ॥१०६६।। अलं मे फासुकामस्स पहितत्तस्स भिक्खुनो; अलं मे योगकामस्स पहितत्तस्स तादिनो ॥१०६७।। उम्मापुप्फवसमाना गगना वब्भछादिता नाना दिजगणाकिण्णा ते सेला रमयन्ति मं ॥१०६८॥ अनाकिण्णा गहठेहि मिगसंघनिसेविता नानादिजगणाकिण्णा ते सेला रमयन्ति मं ॥१०६९।। अच्छोदिका ...... (-११३, ६०१) ॥१०७०॥ न पञ्चडगिकेन तुरियेन रति मे होति तादिसी यथा एकग्गचित्तस्स सम्मा धम्मं विपस्सतो ।।१०७१॥ कम्मं बहुकं . . . . . . (=४९४) ॥१०७२।। कम्मं बहुकं न कारये, परिवज्जेय्य अनत्थनेय्यमेतं किच्छति कायो किलमति, दुक्खितो सो समथं न विन्दति ॥१०७३॥ ओट्ठपहतमत्तेन अत्तानं पि न पस्सति, पत्थद्धगीवो चरति, अहं सेय्यो 'ति मञति ॥१०७४॥ असेय्यो सेय्यसमानं बालो मञ्जति अत्तानं, न तं विज्ञ पसंसन्ति पत्थद्धमनसं नरं ॥१०७५॥ यो च सेय्यो 'हं अस्मीति, नाहं सेय्यो 'ति वा पुन, हीनो 'हं सदिसो वा 'ति विधासु न विकम्पति ॥१०७६॥ पञ्जवन्तं तथावादिं सीलेसु सुसमाहितं । चेतो समर्थसंयुत्तं तञ्च विज्ञ पसंसरे ॥१०७७॥ यस्स सब्रह्मचारीसु गारवो नुपलब्भति, आरका होति सद्धम्मा नभसो पुथवी यथा ॥१०७८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] थेर-गाथा येसञ्च हिरिओत्तप्पं सदा सम्मा उपट्टितं, विरुळ्हब्रह्मचरिया, तेसं खीणा पुनब्भवा ॥१०७९।। उद्धतो चपलो भिक्खु पंसुकूलेन पारुतो कपि व सोहचम्मेन न सो तेनुपसोभति ॥१०८०।। अनुद्धतो अचपलो निपको संवुतिन्द्रियो सोभति पंसुकूलेन सीहो व गिरिगब्भरे ॥१०८१।। एते सम्बहुला देवा इद्धिमन्तो यसस्सिनो दस देवसहस्सानि सब्बे ते ब्रह्मकायिका ॥१०८२।। धम्मसेनापतिं धीरं महाझायिं समाहितं सारिपुत्तं नमस्सन्ता तिट्ठन्ती पञ्जलीकता ॥१०८३।। नमो ते पुरिस्साजञ्ज, नमो ते पुरिसुत्तम, यस्स ते नाभिजानाम यं पि निस्साय झायति ॥१०८४॥ अच्छेरं वत बुद्धानं गम्भीरो गोचरो सको, ये मयं नाभिजानाम वालवेधी समागता ।।१०८५।। तं तथा देवकायेहि पूजितं पूजनारहं सारिपुत्तं तदा दिस्वा कप्पिनस्स सितं अहू ॥१०८६॥ यावता बुद्धखेत्तम्हि ठापयित्वा महामुनि धुतगणे विसिट्ठो 'हं सदिसो मे न विज्जति ॥१०८७॥ परिचिण्णो मया सत्था-प-॥१०८८॥ न चीवरे न सयने भोजने नुपलिप्पति गोतमो अनप्पमेय्यो मुळालिपुप्फ विमलं व अम्बुना निक्खम्मनिन्नो तिभवाभिनिस्सटो ॥१०८९।। सतिपट्ठानगीवो सो सद्धाहत्थो महामुनि पचासीसो महाज्ञाणी सदा चरति निब्बुतो "ति ॥१०९०॥ महाकस्सपो थेरो उद्दानं चत्तालीस निपातम्हि महाकस्सपसव्हयो एको 'व थेरो, गाथायो चत्तालीस दुवे "पि चा 'ति चत्तालीसनिपातो निद्वितो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्ञासनिपातो कदा नु 'हूंं पब्बतकन्दरासु एकाकियो अद्भुतियो विहस्सं अनिच्चतो सब्बभवं विपस्सं, तं मे इदं तं नु कदा भविस्सति ॥। १०९१ ।। कदा नु 'हं भिन्नपटन्धरो मुनि कासाववत्थो अममो निरासयो रागञ्च दोसञ्च तथेव मोहं हन्त्वा सुखी पवनगतो विहस्सं ॥१०९२॥ कदा अनिच्वं वधरोगनीळं कायं इमं मन्चुजरायुपद्द्रुतं विपस्समानो वीतभयो विहस्सं एको वने तं नु कदा भविस्सति ॥ १०९३ ॥ कदा नु 'हं भयजननिं दुक्खावहं तण्हालतं बहुविधानुवर्त्तानि पञ्ञ्ञमयं तिखिणमसिं गहेत्वा छेत्वा वसे, तम्पि कदा भविस्सति ॥ १०९४ ।। कदा नु पञ्ञामयमुग्गतेजं सत्तं इसीनं सहसादियित्वा मारं ससेनं सहसा भञ्जिस्सं सीहासने, तं नु कदा भविस्सति ॥ १०९५ ।। कदा नु 'हं सब्भि समागमेसु दिट्ठो भवे धम्मगरूहि तादिहि यथा वदस्सीहि जितिन्द्रियेहि पधानियो तं नु कदा भविस्सति ।।१०९६॥ कदा न मं तन्द्रिखुदापिपासा वातातपा कीटसिरिंसपा वा निबाधस्सिन्ति न तं गिरिब्बजे अत्तत्थियं तं नु कदा भविस्सति ॥ १०९७ ॥ कदा नु खोयं विदितं महेसिना चत्तारि सच्चानि सुदुद्दस्सानि समाहितत्तो सतिमा अगच्छं पञ्ञाय तं तं नु कदा भविस्सति ॥ १०९८ ॥ कदा नु रूपे अमिते च सद्दे गन्धे रसे फुसितब्बे च धम्मे आदित्ततो 'हं समथेहि युत्तो पञ्चाय दुक्खं तदिदं कदा मे ॥ १०९९॥ कदा नु 'हं दुब्बचनेन वुत्तो ततो निमित्तं विमनो न हेस्सं, अथो पसट्ठो पि ततो निमित्तं तुट्ठो न हेस्सं, तदिदं कदा मे ॥ ११००॥ कदा नु कट्ठे च तिणे लता च खन्धे इमे 'हं अभिते च धम्मे अज्झत्तिकानेव च बाहिरानि च समं तुलेय्यं तदिदं कदा मे ।। ११०१॥ कदा नु मं पावुसकालमेघो नवेन तोयेन सचीवरं वने इसिप्पयातम्हि पथे वजन्तं ओवस्सते, तं नु कदा भविस्सति ॥११०२॥ [ १११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ ] थेर-गाथा कदा भयूरस्स सिखण्डिनो वने दिजस्स सुत्वा गिरिगब्भरे रुतं पच्चुट्ठहित्वा अमतस्स पट्टिया संचिन्तये, तं नु कदा भविस्सति ॥११०३।। कदा नु गगं यमुनं सरस्सति पातालखित्तं बळवामुखञ्च असज्जमानो पतरेय्यमिडिया विभिसनं, तं नु कदा भविस्सति ॥११०४॥ कदा नु नागो व संगामचारी पदालये कामगुणेसु छन्दं निब्बज्जयं सब्बसुभं निमित्तं झाने युतो, तं नु कदा भविस्सति ॥११०५॥ कदा इणट्टो व दळिद्दको निभि आराधयित्वा धनिकेहि पीळितो तुट्ठो भविस्सं अधिगम्म सासनं महेसिनो, तं नु कदा भविस्सति ।।११०६॥ बहूनि वस्सानि तयाम्हि याचितो अगारवासेन अलं नु ते इदं; । तं दानि मं पब्बजितं समानं किं कारणं चित्तं तुवं न युञ्जसि ॥११०७।। ननु अहं चित्त तयाम्हि याचितो गिरिब्बजे चित्रछदा विहङगमा महिन्दघोसत्थनिताभिगज्जिनो ते तं रमिस्सन्ति वनम्हि झायिनं ॥११०८।। कुलम्हि मित्ते च पिये च जातके खिड्डारति कामगुणञ्च लोके सब्बं पहाय इदमज्झुपागतो, अथो पि त्वं चित्त न मय्ह तुस्ससि ॥११०९।। ममेव एतं नहि तं परेसं, सन्नाहकाले परिदेवितेन कि सब्बमिदं चलं इति पेक्खमानो अभिनिक्खमि अमतं पदं जिगीसं ॥१११०॥ सुवुत्तवादी द्विपदानमुत्तमो महाभिसक्को नरदम्मसारथि चित्तं चलं मक्कटसन्निभं इति अवीतरागेन सुदुन्निवारियं ॥११११॥ कामाहि चित्रा मधुरा मनोरमा अविद्दसू यत्थ सिता पुथुज्जना ते दुक्खमिच्छन्ति पुनब्भवेसिनो चित्तेन नीता निरये निरंकता ॥१११२।। मयूरकोञ्चाभिरुदम्हि कानने दीपीहि ब्यग्घेहि पुरक्खतो वसं कार्य अपेक्खं जह मा विराये इतिस्सु मं चित्तपुरे नियुञ्जसि ॥१११३।। भावेहि झानानि च इन्द्रियानि च बालानि बोज्झङगसमाधिभावना तिस्सो च विज्जा फुस बुद्धसासने इतिस्सु मं चित्त पुरे नियुञ्जसि ॥१११४॥ भावेहि मग्गं अमतस्स पत्तिया निय्यानिकं सब्बदुक्खखयोगधं अत्थङगिकं सब्बकिलेससोधनं इति स्सु ...॥१११५॥ दुक्खन्ति खन्धे पटिपस्स योनिसो, यतो च दुक्खं समुदेति तं जह, इधेव दुक्खस्स करोहि अन्तं इति स्सु ...॥१११६॥ अनिच्चं दुक्खन्ति विपस्स योनिसो सुझं अनत्ता 'ति अधं वधन्ति च, मनोविचारे उपरुन्धि चेतसो, इति स्सु ...॥१११७॥ मुण्डो विरूपो अभिसापमागतो कपालहत्थो 'व कुलेसु भिक्खसु, युञ्जस्सु सत्थु वचने महेसिनो, इति स्सु ... ॥१११८।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्जासनिपातो । ११३ सुसंवुतत्तो विसिखन्तरं चरं कुलेसु कामेसु असङगमानसो चन्दो यथा दोसिनपुण्णमासिया इति स्सु . . . ॥१११९।। आरञ्जिको होति च पिण्डपातिको, सोसानिको होति च पंसुकूलिको, नेसज्जिको होति सदा धुते रतो इति स्सु . . . ॥११२०।। रोपेत्वा रुक्खानि यथा फलेसी मूले तर छेत्तु तमेव इच्छसि, तथूपमं चित्त इदं करोसि यं मं अनिच्चम्हि चले नियुञ्जसि ।।११२१।। अरूपदूरंगम एकचारि न ते करिस्सं वचनं इदानि 'हं, दुक्खा हि कामा कटुका महब्भया, निब्बानमेवाभिमनो चरिस्सं ।।११२२।। नाहं अलक्ख्या अहिराकताय वा न चित्त हेतू न च दूरकन्तना आजीवहेतू च अहं न निक्खमि, कतो च ते चित्त पटिस्सवो मया ॥११२३।। अप्पिच्छता सप्पुरिसेहि वण्णिता मक्खप्पहानं वूपसमो दुक्खस्स इति स्सु मं चित्त तदा नियुञ्जसि, इदानि त्वं गच्छसि पुब्बचिण्णं ॥११२४॥ तण्हं अविज्जञ्च पियापियञ्च सुभानि रूपानि सुखा च वेदना मनापिया कामगुणा च वन्ता, वन्ते अहं आगमितुं न उस्सहे ।।११२५।। सब्बत्थ ते चित्त वचो कतं मया, बहूसु जातिसु न मे 'सि कोपितो अज्झत्तसम्भवो कता ताय ते, दुक्खे चिरं संसरितं तया कते ॥११२६।। त्व व नो चित्त करोसि ब्राह्मणो त्वं खत्तिया राजदिसी करोसि, वेस्सा च सुद्दा च भवाम एकदा, देवत्तनं वापि तवेव वाहसा ॥११२७।। तवेव हेतू असुरा भवामसे, त्वंमूलकं ने रयिका भवामसे, अथो तिरच्छानगतापि एकदा, पेतत्तनं वापि तवेव वाहसा ॥११२८॥ न नून दुब्भिस्ससि मं पुनप्पुनं मुहं मुहं वारणिकं व दस्सहं; उम्मत्तकेनेव मया पलोभसि; किञ्चापि ते चित्त विराधितं मया ।।११२९।। इदं पुरे........ (=७७) ॥११३०॥ सत्था च मे लोकमिमं अधि?हि अनिच्चतो अद्भुचतो असारतो; पक्खन्द मं चित्त जिनस्स सासने, तारेहि ओघा महतो सुदुत्तरा ॥११३१।। न ते इदं चित्त यथा पुराणकं, नाहं अलं तुय्ह वसे निवत्तितुं; महेसितो पब्बजितो 'म्हि सासने, न मादिसा होन्ति विनासधारिनो ।।११३२।। नगा समुद्दा सरिता वसुन्धरा दिसा चतस्सा विदिसा अधोदिसा सब्बे अनिच्चा तिभवा उपदुता, कुहिं गतो चित्त सुखं रमिस्ससि ।।११३३।। धी धी परं किं मम चित्त काहसि, न ते अलं चित्त वसानुवत्तको न जातु भस्तं दुभतो मुखं छुपे, धिरत्थु पूरं नवसोतसन्दनि ।।११३४।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा वराहणेय्यविगाळ्हसेविते पब्भारकूटे पकटे 'व सुन्दरे नवम्बुना पावुससित्तकानने तहिं गुहा गेहगतो रमिस्ससि ॥ ११३५।। सुनीलगीवा सुसिखा सुपेखुणा सुचित्तपत्तच्छदना विहंगमा ११४ ] सुमञ्जु घोसत्थ निताभिगज्जिनो ते तं रमिस्सन्ति वनम्हि झायिनं ।। ११३६ ॥ उट्ठम्हि देवे चतुरङ्गुले तिणे सम्पुष्पिते मेघनिभम्हि कानने नगन्तरे विटपिसमो सयिस्सं, तं मे मुदु होहिति तुलसन्निभं ।। ११३७ ।। तथा तु कस्सामि यथापि इस्सरो; यं लब्भती तेन पि होतु मे अलं; तं तं करिस्सामि यथा अतन्दितो बिळारभस्तं व यथा सुमद्दितं ॥। ११३८ ।। तथा तु कस्सामि यथापि इस्सरो, यं लब्भती तेन पि होतु मे अलं विरियेन तं मय्ह वसानयिस्सं गजं व मत्तं कुसलंङकुसग्गहो ।। ११३९।। तया सुदन्तेन अवट्ठितेन हि हयेन योग्गाचरियो व उज्जुना पहोमि मग्गं पटिपज्जितुं सिवं चित्तानुरक्खीहि सदानुसेवितं ॥ ११४०॥ आरम्मणे तं बलसा निबन्धिसं नागं व थम्भम्हि दव्हाय रज्जुया, तं मे सु गुत्तं सतिया सुभावितं अनिस्सितं सब्बभवेसु हिसि ॥११४१ ॥ पञ्ञाय छेत्वा विपथानुसारिनं योगेन निगय्ह पथे निवेसिय दिस्वा समुदयं विभवञ्च सम्भवं दायादको हेहिसि अग्गवादिनो ॥११४२॥ चतुब्बिपल्लासवसं अधिट्ठितं गामण्डलं व परिनेसि चित्त मं ननु सञ्ञोजनवन्धनच्छिदं संसेवसे कारुणिकं महामुनिं ॥ ११४३॥ मिगो यथा सेरि सुचित्तकानेन रम्मं गिरिं पाविसि अब्भमालिनं, अनाकुले तत्थ नगे रमिस्ससि, असंसयं चित्तपराभविस्ससि ।। ११४४।। ये तुम्ह छन्देन वसेन वत्तिनो नरा च नारी च अनुभोन्ति यं सुखं, अविद्दसू मारवसानुवत्तिनो भवाभिनन्दी तव चित्त सेवका 'ति ।। ११४५।। तालपुटो थेरो उद्दानं पञ्चसम्हि निपातम्हि एको तालपुटो सुचि, गाथायो तत्थ पञ्ञास पुन पञ्च च उत्तरी 'ति । पञ्चासनिपातो समत्तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सठिकनिपातो आरञका पिण्डपातिका उञ्छापत्तागतेरता दालेम मच्चुनो सेनं अज्झत्तं सुसमाहिता ।।११४६।। आरञका पिण्डपातिका उञ्छापत्तागतेरता धनाम मच्चुनो सेनं नळागारं व कुञ्जरो ॥११४७।। रुक्खमूलिका साततिका उज्छापत्तागते रता दालेमु.......... सुसमाहिता ।।११४८॥ रुक्खमूलिका . . . . सात. उञ्छ. र. धुनाम. . . . . . .कुञ्जरो ॥११४९।। अट्ठिकङ्कलकुटिके मंसन्हारुप्पसिब्बिते धिरत्थु पूरे दुग्गन्धे परगत्ते ममायसे ॥११५०॥ गथभस्ते तचोनद्धे उरगण् डपिसाचिनि नन सोतानि ते काये यानि सन्दति सब्बदा ॥११५१॥ तव सरीरं नवसोतं दुग्गन्धं करिपरिबन्ध, भिक्खुपरिवज्जयेते तं मीळ्ह व यथा सुचिकामो ॥११५२।। एवञ्चे तं जनो आज्ञा यथा जानामि तं अहं, आरका परिवज्जेय्य गूथट्ठानं व पावुसो ॥११५३।। एवमेतं महावीर यथा समण भाससि, एत्धचेके विसीदन्ति पडकम्हि व जरग्गवो ॥११५४॥ आकासम्हि हलिद्दाय यो मनेथ रजेतवे अनेन वापि रङ्गेन, विघातुदयमेव तं ॥११५५॥ तदा काससमं चित्तं अज्झत्तं सुसमाहितं; मा पापचित्ते आहरि अग्गिक्खन्धं व पविखमा ॥११५६॥ पस्स चित्तकतं बिम्बम्-प---॥११५७॥ तदासियं भिसनकं, तदासि लोमहसनं अनेकाकारसम्पन्ने सारिपुत्तम्हि निब्बुते ॥११५८।। [ ११५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थेर-गाथा अनिच्चा वत संखारा - - - ।। ११५९ ॥ सुखमं पटिविज्झन्ति वालग्गमुसुना यथा, ये पञ्च खन्धे पस्सन्ति परतो न च अत्तनो ।।११६०।। ये च परसन्ति संखारे परतो न च अत्तनो, ११६ ] पच्चब्याधिसु निपुणं वालग्गं उसुना यथा ।। ११६१॥ सत्तिया विय ओमट्ठो .. (—३९, ४०,) ।।११६२-११६३॥ चोदितो भावितत्तेन सरीरन्तिमधारिना मिगारमातु पासादं पादङ्गुट्ठेन कम्पथि ।।११६४।। न यिदं सिथिलमारब्भ न इदं अप्पेन थामसा निब्बानमधिगन्तब्यं सब्न्रगन्थ पमोचनं ।।११६५। अयञ्च दहरो भिक्खु, अयमुत्तमपोरिसो । धारेति अन्तिमं देहं जेत्वा मारं सवाहनं ।। ११६६॥ विवरमनुपतन्ति विज्जुता वेभारस्स च पण्डवस्स च । नग विवरगतो च झायति पुत्तो अप्पटिमस्स तादिनो ।। ११६७।। उपसन्तो उपरतो पन्तसेनासनो मुनि । दायादो बुद्धसेट्ठस्स ब्रह्मना अभिवन्दितो ।।११६८।। उपसन्तं उपरतं पन्तसेनासनं मुनिं । दायादं बुद्धसेट्ठस्स वन्द ब्राह्मण कस्सपं ।।११६९।। यो च जातिसतं गच्छे सव्त्रा ब्राह्मणजातियो । सोत्तियो वेदसम्पन्नो मनुस्सेसु पुनप्पुनं ।। ११७० ।। अज्झायको पि चे अस्स तिष्णं वेदान पारगू । एतस्स वन्दानायेकं कलं नग्घति सोळसि ।। ११७१ ॥ । यो सो अट्ठ विमोक्खानि पूरे भत्तं अपस्सयि । अनुलोमं पटिलोमं, ततो पिण्डाय गच्छति ।।११७२। तादिसं भिक्खु माहरि, मात्तानं खणि ब्राह्मण । अभिप्पसादेहि मनं अरहन्तम्हि तादिने । खिप्पं पञ्जलिको वन्द मा ते विजटि मत्थकं ।। ११७३ ।। न सो पस्सति सद्धमं मंसारेन पुरखतो । अचङ्कनं जिम्हपथं कुमग्गमनुधावति ।। ११७४।। कामी व माळ्हसलित्तो संखारे अधिमुच्छितो । पगाळ्हो लाभसक्कारे तुच्छो गच्छति पोट्ठिल ।। ११७५।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सट्ठिकनिपातो [ ११७ इमञ्च पस्स आयन्तं सारिपुत्तं सुदस्सं । विमुत उभतोभागे अज्झत्तं सुसमाहितं ।।११७६।। विसल्लं खीणसंयोगं ते विज्जं मच्चुहायिनं । दक्खिणेय्यं मनुस्सानं पुजाखेत्तमनुत्तरं ।।११७७।। एते सम्बहुला देवा इद्धिमन्तो यसस्सिनो । दस देवसहस्सानि सब्बे ब्रह्मपुरोहिता ।। मोग्गल्लानं नमस्सन्ता तिट्ठन्ती पञ्जलीकताः ॥११७८।। नमो ते पुरिसाजञ्ज, नमो ते पुरिमुत्तम । यस्स ते आसवा खीण, दक्खिणेय्यो 'सि मारिस ॥११७९॥ पूजितो नरदेवेन उप्पन्नो मरणाभिभू । पुण्डरीकं व तोयेन संखारे नोपलिप्पति ॥११८०।। यस्से मुहत्ते सहस्सधा लोको संविदितो, स ब्रह्मकप्पो । वसी इद्धिगुणे चुतूपपाते काले पस्सति देवता स भिक्खु ॥११८१॥ सारिपुत्तो व पञ्जाय सीलेन उपसमेन च । यो पि पारंगतो भिक्खु एतावपरमो सिया ॥११८२।। कोटिसतसहस्सस्स अत्तभावं लणेन निम्मिने । अहं विकुब्बनासु कुसलो वसीधूतो 'म्हि इद्धिया ।।११८३॥ समाधिविज्जावसि पारमीगतो मोग्गल्लानगोत्तो असितस्स सासने । धीरो समुच्छिन्दि समाहितिन्द्रियो नागो। यथा पूतिलतं व बन्धनं ॥११८४॥ परिचिण्णो . . . (--६०४, ६०५)॥११८५-११८६॥ कीदिसो निरयो आमि यत्थ दुस्सी अपच्चथ । विधुरं सावकमासज्ज ककुसन्धञ्च ब्राह्मणं, ११८७।। सतमासि अयोसडक़ सब्बे पच्चत्तवेदना ईदिसो निरयो आसि यत्थ दुस्सी अपच्चथ विधुरं सावकमासज्ज ककुसन्धञ्च ब्राह्मणं ।।११८८॥ यो एतमभिजानाति भिक्ख बुद्धस्स सावको, तादिसं भिक्खुमासज्ज कण्ह दुक्ख निगच्छसि ॥११८९।। मज्झ सागरस्मि तिट्ठन्ति विमाना कप्पट्ठायिनो वेळुरियवण्णा रुचिरा अच्चिमन्तो पभस्सरा अच्छरा तत्थ नचन्ति पुथू नानत्तवणियो, ॥११९०।। यो एतमभि--प--कण्ह दुक्खं निगच्छसि ।।११९१।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] थेर-गाथा यो वे बुद्धेन चोदितो भिक्षु संघस्स पेक्खतो मिगारमातु पासादं पादङ्गुळेंन कम्पयि ।।११९२।। यो एतमभि० . . . ॥११९३।। यो वेजयन्तपासादं पादङगुट्टेन कम्पयि इद्धिवलेनुपत्थद्धो संवेोसि च देवता ।।११९४।। यो एतमभि० . . . . . ।।११९५॥ यो वेजयन्त पासादे सुखं सो परिपुच्छतिः अपि आवुसो जानासि तण्हक्खयविमुत्तियो;तस्स सक्को वियाकासि पन्हं पुट्ठो यथातथं ॥११९६।। यो एतमभि० . . . . . . . . ।।११९७॥ यो ब्रह्मानं परिपुच्छति सुधम्मायं अभितोसभं: अज्जापि ते आवुसो सा दिट्टि या ते दिट्ठि पुरे अहू; पस्ससि वीति वत्तन्तं ब्रह्मलोके पभस्सरं; ॥११९८।। तस्स ब्रह्मा वियाकासि पन्हं पुट्ठो यथातथं: न मे मारिस सदिड्डि या मे दिट्टि पुरे अहू; ॥११९९।। पस्सामि वीतिवत्तन्तं ब्रह्मलोके पभस्सरं; सो'हमज्ज कथं वज्जंः अहं निच्चो 'म्हि सासतो; -१२००। यो एतमभि० . . . . . . . . . . ।।१२०१।। यो महानेरुनो कूटं विमोक्खेन उपस्सयि, वनं पुब्बविदाहानं ये च भूमिसयारना,-१२०२।। यो एतमभि० . . . . . . . . . . ॥१२०३।। न वे अग्गि चेतयति अहं बालं दहामीति, बालो च जलितमग्गि आसज्ज नं पडय्हति; ॥१२०४॥ एवमेव तुवं मार आसज्ज नं तथागतं सयं दहिस्समत्तानं बालो अग्गि व सम्फुसं ।।१२०५।। अपुञ्ज फसवी मारो आसज्ज नं तथागं; किं नु मासि पापि म न मे पापं विपच्चति ॥१२०६।। करतो ते मिय्यते पापं चिररत्ताय अन्तक; मार निबिन्द बुद्धम्हा, आसं मा कासि भिक्खुसु ।।१२०७।। इति मारं अतज्जेसि भिक्खु भेसकळावने, ततो सो दुम्मनो यक्खो तथैव अन्तरधायतीति ।।१२०८।। इत्थं सुदं आयस्मा महामोग्गल्लानो थेरो गाथायो अभासित्थीति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सट्ठिकनिपात उद्दानं भवतिः सहि निपातम्हि मोग्गलानो बहिद्धिको एको 'व थेरो, गाथायो अट्ठसट्ठि भवन्ति ता 'ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat [ ११६ www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महानिपातो निक्खन्तं वत मं सन्तं अगारस्मा अनगारियं वितक्का उपधावन्ति पगन्भा कण्हतो इमेः ॥१२०९।। उग्गपुत्ता महिस्सासा सिक्खिता दहयम्मिनो समन्ता परिकिरेय्य सपस्सं अपलायिनं ॥१२१०।। सचे पि एत्तका भिय्यो आगमिस्सन्ति इथियो, नेव मं व्याधयिम्सन्ति धम्मे स्वम्हि पतिट्टि तो ॥१२११।। स किंहि मे सुतं एतं बुद्धस्सादिच्च बन्धनो निब्बानगमनं मग्गं, तत्थ मे निरतो मनो ॥१२१२॥ एवमेवं विहरन्त पापिम उपगच्छसि, । तथा मच्चु करिस्सामिः न मे मग्गं उदिक्खासि ॥१२१३।। अरति रतिं च पहाय सब्बसो गेहसितञ्च वितकं वनथं न करेय्य कुहिञ्चि, निब्बनथा अवनथो स हि भिक्खु ॥१२१४।। यमिध पथविञ्च विहासं रूपगतं जगतोगधं किञ्चि, परिजिय्यति सब्बमनिच्चंः एवं समेच्च चरन्ति मुत्तन्ता ॥१२१५।। उपधीसु जना गधितासे दिट्ठ सुते पटिघे च मुते च, एत्थ विनोदय छन्दमनेजो; यो हेत्थ न लिप्पति मुनि तमाहु ॥१२१६।। अट्ट सट्टि सिका सवितक्का पुथुज्जनताय अधम्मनिविट्ठा; न च वग्गगतिस्स कुहिञ्चि, न पन पदुस्लगाही स भिक्खु ॥१२१७।। दब्बो चिररत्तं समाहितो अकुहको निपको अपिहालु। सन्तं पदमञहगमा मुनि, पटिच्च परिनिबुतो कङ्घति कालं ॥१२१८॥ मानं पजहस्सु गोतम मानपथञ्च जहस्सु असेरां; मानपथं हि समुच्छितो विप्पटिसारी हुत्वा चिररत्तं ॥१२१९।। मक्खन मक्खिता पजा मानहता निरयं पतन्ति, सोचन्ति जना चिररत्तं मानहता निरयं उपपन्ना ॥१२२०॥ १२० ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महानिपातो [ १२१ न हि सोचति भिक्खु कदाचि मग्गजिनो सम्मा पटिपन्नो, कित्तिञ्च सुखञ्चानुभोति, धम्मदसो'ति तमाहु तथत्तं ॥१२२१।। तस्मा अखिलो इधममानवा निवरणानि पहाय विसुद्धो मानञ्च पहाय असेसं विज्जायन्तकरो समितावी ॥१२२२।। कमरागेन डय्हामि. चित्तं मे परिडय्हति, साधु निब्बापनं ब्रूहि अनुकम्पाय गोतम ॥१२२३।। सजाय विपरियेसा चित्तन्ते परिडव्हति; । निमित्तं परिवज्जेहि सुभं रागूप संहितं ॥१२२४॥ असुभाय चित्तं भावेहि एकग्गं सुसमाहितं, सतिकायगता त्यत्थ निब्बिदा बहुलो भव ॥१२२५।। अनिमित्तञ्च भावेहि, मानानुसयमुज्जह, ततो मानाभिसमया उपसन्तो चरिस्ससि ॥१२२६।। तमेव वाचं भासेय्य ; यायत्थानं न तापये परे चन विहिंसेय्य, सावे वाचा सुभासिता ॥१२२७।। पियवाचमेव भासेय्य या वाचा पटिनन्दिता यं अनादाय पापानि परेसं भासते पियं ॥१२२८॥ सच्चं वे अमता वाचा एसन धम्मो सनन्तनो; सच्चे अत्थे च धम्मे च आहु सन्तो पतिट्टिता ॥१२२९॥ यं बुद्धो भासती वाचं खेमं निब्बानपत्तिया दुक्खस्सन्तकिरियाय, स वे वाचानमुत्तमा ॥१२३०॥ गम्भीरपञो मेधावी मग्गामग्गस्स कोविदो सारिपुत्तो महापञ्जो धर्म देसेति भिक्खुनं ॥१२३१॥ संखित्तेन पि देसेति वित्थारेन पि भासति, सीलिकायेव निग्घोसो पटिभानं उदीय्यति ॥१२३२॥ तस्स तं देसयन्तस्स सुणन्ता मधुरं गिरं सरेन राजनीयेन सवनीयेन वग्गुना उदग्गचित्ता मुदिता सोतं ओधेन्ति भिक्खवो ॥१२३३॥ अज्ज पन्नरसे विसुद्धिया भिक्खू पञ्चसता समागता संयोजन बन्ध नच्छिदा अनीघा खीणपुनब्भवा इसी ॥१२३४॥ चक्कवत्ती यथा राजा अमच्च परिवारितो समन्ता अनुपरियेति सागरन्तं महिं इमं ॥१२३५।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] थेर-गाथा एवं विजितसंगाम सत्थवाहं अनुत्तरं सावका पयिरुपासन्ति ते विज्जा मच्चु हायिनो ॥१२३६।। सब्बे भगवतो पुत्तो, पलापो एत्थ न विज्जति; तण्हा सल्लस्स हन्तारं वन्दे आदिच्चबन्धुनं ॥१२३७॥ परोसहस्सं भिक्खूनं सुगतं पयिरुपासति देसेन्तं विरजं धम्म निब्बानं अकुतोभयं ॥१२३८।। सुणन्ति धम्मं विपुलं सम्मासम्बुद्धदेसितं; सोभति वत सम्बुद्धो भिक्खु संघपुरक्खतो ॥१२३९।। नागनामो'सि भगवा, इसीनं इसि सत्तमो, महामेघो व हुत्वान सावके अभिवस्ससि ॥१२४०।। दिवा विहारा निक्खमा सत्थुदस्सनकम्यता सावको ते महावीर पादे वन्दति वङि गसो ॥१२४१॥ उम्मग्गपथं मारस्स अभिभुय्य चरति पभिज्ज खिलानि; तं पस्सथ बन्धन पमुञ्चकरं असितं व भागसो पविभज्ज ॥१२४२।। ओघस्सहि नित्थरणत्थं अनेक विहितं मग्गं अक्खासि, तस्मिञ्च अमते अक्खाते धम्मदसाठिता असंहीरा ॥१२४३॥ पुज्जोतकरो अतिविज्झ सब्बढि तान मतिक्कममद्दा, जात्वा च सच्छिकत्वा च अग्गं सो देसयि दसद्धानं ॥१२४४॥ एवं सुदेसिते धम्मे को पमादो विजानतं धम्म, तस्माहि तस्स भगवतो सासने अप्पमत्तो सदा नमस्स मनुसिक्खे ॥१२४५॥ बुद्धानुबुद्धो यो थेरो कोण्डो तिब्बनिक्खमो, लाभी सुख विहारानं विवेकानं अभिण्हसो ॥१२४६।। यं सावकेन पत्तब्वं सत्थुसासनकारिना, सब्बस्स तं अनुप्पत्तं अप्पमत्तस्स सिक्खतो ॥१२४७॥ महानुभावो ते विज्जो चेतो परियकोविदो कोण्डो बुद्धदायादो पादे वन्दति सत्थुनो ॥१२४८॥ नागस्स पस्से आसीनं मुनि दुक्खस्स पारगुं सावका परियुपासन्ति ते विज्जा मच्चुहायिनो ॥१२४९।। चेतसा अनुपरियेति मोग्गलानो महिद्धिको चित्तं नेसं समन्वेसं विप्पमुत्तं निरूपधिं ॥१२५०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२३ महानिपातो एवं सब्बडल्गसम्पन्नं मुनि दुक्खस्स पारगुं अनेकारसम्पन्नं पयिरूपासन्ति गोतमं ॥१२५१॥ चन्दो यथा विगतवलाहके नभे विरोचति, वीतमलो व भानुमा, एवम्पि अडगीरसत्वं महामुनि, अतिरोचसि यससा सब्बलोकं ॥१२५२॥ कावेय्यमत्ता विचरिम्ह पुब्बे गामा गाम पुरा पुरं, अथद्द सामि सम्बुद्धं सब्ब धम्मान पारगुं ॥१२५३॥ सो मे धम्म मदेदेसि मुनि दुक्खस्स पारगु; धम्म सुत्वा पसीदिम्ह, सद्धा नो उदपजथ ॥१२५४॥ तस्साहं वचनं सुत्वा खन्धे आयतनानि च धारुयो च विदित्वा न पवजि अनगारियं ॥१२५५॥ बहुनं वत अत्थाय उप्पज्जन्ति तथागता । इत्थीनं पुरिसानञ्च ये ते सासनकारका ॥१२५६।। तेसं खो वत अत्थाय बोधि अज्झगमा मुनि . भिक्खूनं भिक्खुनीनञ्च ये नियामगतंदसा ॥१२५७॥ सुदेसिता चक्खुमता वुद्धनादिच्चबन्धुना चत्तारि अरियसच्चानि अनुकम्पाय पाणिनं ॥१२५८॥ दुक्खं दुक्खसमुप्पादं दुक्खस्स च अतिवकमं अरियट्ठ डिल्गकं मग्गं दुक्खूपसम गामिनं ॥१२५९॥ एवमेते तथा वुत्ता, दिट्ठा मेते यथा तथा; सदत्थो मे अनुप्पत्तो, कतं बुद्धस्स सासनं ॥१२६०॥ स्वागतं वत मे आसि मम वुद्धस्स सन्तिके; सम्बिभत्तेसु धम्मेसु यं सेट्ठ तदुपामि ॥१२६१॥ अभिज्ञापार मिप्पत्तो सोतधारू. विसोधितो ते विज्जो इद्धिप्पत्तो'म्हि चेतो परियकोविदो ॥१२६२॥ पुच्छामि सत्थारमनो मपञ्ज दिद्रुव धम्मे यो विचिकिच्छानं छत्वाः अग्गाळवे कालमकासि भिक्खु जातो यसस्सी अभिनिब्बुतत्तो ॥१२६३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] थेर-गाथा निग्रोधअप्पो इति तस्स नामं तया कतं भगवा ब्रह्मणस्स, सोतं नमस्सं अचरि मुत्य पेक्खो आरद्धविरियो दळ्हधम्मदस्सी ॥१२६४।। तं सावकं सक्कमयम्पि सब्बे अज्ञातुनिच्छाम समन्त चक्खुं: समवट्ठिता नो सवनाय सोतं, तुवं नु सत्था त्वमनुत्तरो'सि ।।१२६५।। छिन्देव नो विचिकिच्छं, ब्रूहि मे तं, परिनिब्बुतं वेदय भूरिपञ मज्झेव नो भास समन्तचक्खु सक्को व देवान सहस्सनुत्तो ॥१२६६।। ये केचि गन्धा इध मोहमग्गा अझणपक्खा विचिकिच्छट्ठाना, तथागतं पत्वा न ते भवन्ति, चक्खुम्हि एतं परमं नरानं ॥१२६७॥ न चेहि जातु पुरिसो किलेसे वातो यथा अभघनं विहाने, तमो वस्स निब्बुतो सब्बलोके, जोतिमन्तो पि न पभासेय्युं ॥१२६८॥ धीरा च पञोतकरा भवन्ति, तं तं अहं धीर तथैव बने, विपस्सिनं जानमुपापगमिम्ह, परिसाय नो अविरोहि कप्पं ॥१२६९।। खिप्पं किरं एरय वग्गु वग्गुं हंसो व पग्गह सनिक निक्रूज विन्दुस्सेरेन सुविकप्पितेन, सब्बेव ते उज्जुगता सुणोम ॥१२७०॥ पहीनजातिमरणं असेसं निग्गयह धोनं वदेस्सामि न कामकारो हि पुथुज्जनानं, संखेय्यकारो'वव तथागतानं ॥१२७१॥ सम्पन्न वेय्याकरणं तवेदं समुज्ञपञस्स . समुग्गहीतं; अयमञ्जलि पच्छिमो सुप्पणामितो, मा मोहयि जानमनोमपञ॥१२७२।। परोवरं अरियधम्म विदित्वा मा मोहयि जानमनोमविरिय, वारिं यथा घम्मनिघम्मतत्तो वाचाभिकखामि, सुतं पवस्स ॥१२७३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महानिपातो [ १२५ यदत्थियं ब्रह्मचरियं अचारि कप्पायनो किच्चि स्स तं अमोघं ; निब्बाय सो आहु सोपादिसेसो; यथा विमुक्तो अहु तं सुणोम ।। १२७४।। अच्छेच्छि तण्हं इध माम रूपेति भगवा, तण्हाय सोतं दीघरत्तानुसयितं अतारि जाति मरणं असेसं इच्चब्रवि भगवा पञ्चसेट्ठो ।। १२७५।। एस सुत्वा पसीदामि वचो ते इसिसत्तम, अमोघं किर मे पुट्ठ ं न मं वञ्चेसि ब्राह्मणो ॥ १२७६ ॥ यथावादी तथाकारी अहू बुद्धस्स सावको, अच्छेच्छि मच्चुनो जालं तथं मायाविनो-दळ्हं ।। १२७७ ।। अद्दस भगवा आदि उपादानस्स कप्पियो, अच्चगा वत कप्पायनो मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं ॥१२७८॥ तं देवदेवं वन्दामिपुत्तं ते द्विपदुत्तम अनुजातं महागेरं नागं नागस्स ओरसन्ति ॥ १२७९ ॥ इत्थं सुदं आयस्मा वङ्गीसोथेरो गाथायो अभासित्था 'ति, महानिपातो निट्टतो सत्ततिहि निपताम्हि वङ्गीसो पटिभाणवा एको' वत्थरो' नत्थञ्जो, गाथायो एकसन्तति । सहस्सं होन्ति ता गाथा तीणि सट्टि सतानि च थेरा च द्वे सता सट्ट चत्तारो न पकासिता । सीहनादं नदित्वान बुद्धपुत्ता अनासवा खेमन्तं पापुणित्वान अग्गिक्खन्धा व निबेता'ति । निट्टिता थेरगाथायो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com