Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ वा इतिहास भाग १ खण्ड १ लेखक डॉ. शिवप्रसाद वाराणी पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर २००० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक-परिचय श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय में तपागच्छ का स्थान सर्वोपरि है। वि0सं0 1285 में आचार्य जगच्चन्द्रसूरि को आघाटपुर के शासक जैत्रसिंह से 'तपा' विरुद् प्राप्त हुआ। इस आधार पर उनकी शिष्य संतति तपागच्छीय कहलायी। जगच्चन्द्रसरि से लेकर आज तक इस गच्छ की अविच्छिन्न परम्परा चली आ रही है। इस गच्छ में सुप्रसिद्ध विद्वान् सोमसुन्दरसूरि, अकबर प्रतिबोधक आचार्य हीरविजयसूरि, महान् विद्वान् उपाध्याय यशोविजय जी आदि हो चके हैं। आज भी इस परम्परा में बड़ी संख्या में प्रभावक आचार्य एवं विद्वान् मुनिजन विद्यमान हैं। अन्यान्य गच्छों की भांति इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न शाखायें अस्तित्व में आयीं। इन सभी का शोधपूर्ण विवरण प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहीत है। Private Personal use only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वना य विद्यापीठ ग्रन्थमाला : १३४ प्राकृत भारती पुष्प : १३८ प्रधान सम्पादक प्रो. सागरमल जैन प्रो. भागचन्द्र जैन भास्कर तपागच्छ का इतिहास भाग १ खण्ड १ MERASTRATE 5000 लेखक डॉ. शिवप्रसाद पावन वाराणस पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर २००० Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ ग्रन्थमाला- ग्रन्थांक - १३४ प्राकृत भारती पुष्प-१३८ लेखक डॉ. शिव प्रसाद पुस्तक तपागच्छ का इतिहास, भाग-१, खण्ड-१. प्रकाशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ, आई०टी० आई० रोड, करौंदी, वाराणसी-२२१००५ प्राकृत भारती अकादमी, १३-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-३०२०१७ दूरभाष संख्या ३१६५२१, ३१८०४६ फैक्स ०५४२-३१८०४६ प्रथम संस्करण २००० ई० मूल्य रू० ५००.०० अक्षर-सज्जा वीज बिजनेस सेन्टर, लहूराबीर, वाराणसी (फोन नं० ३१२३७५) मुद्रक वर्द्धमान मुद्रणालय, भेलूपुर, वाराणसी ISBN 81-86715-60-6 पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी Parswanatha Vidyapitha Series No. 134 Prakrit Bharti Pushpa-138 Title Tapāgaccha Kā Itihās, Vol.-1, Part-1. Publisher : PārŚwanātha Vidyāpitha I.T.I., Road, Karaundi, Varanasi-221005 Prakrit Bharti Academy, 13-A, Main Malviya Nagar, Jaipur-302017 Telephone No. 316521, 318046 Fax 0542-318046 First Edition 2000 Price Rs. 500.00 Type Setting Vee's Business Centre, Lahurabir, Varanasi. Phone-312375 Printed at Vardhaman Mudranalaya, Bhelupur, Varanasi Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय पूर्व मध्यकाल से ही विभिन्न गच्छों में विभाजित होता रहा। इसमें समय के साथ-साथ विभिन्न नये-नये गच्छ अस्तित्व में आये और नामशेष भी हो गये किन्तु कुछ गच्छ अपने जन्म से लेकर आज भी अविच्छिन्न रूप से चले आ रहे हैं। ऐसे गच्छों में तपागच्छ का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। आचार्य जगच्चन्द्रसूरि को वि०सं० १२८५ में आघाटपुर के शासक जैत्रसिंह से 'तपा' विरुद् प्राप्त हुआ जिसके आधार पर उनकी शिष्यसंतति तपागच्छीय कहलायी। इस गच्छ में देवेन्द्रसूरि, सोमसुन्दरसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, अकबर प्रतिबोधक आचार्य हीरविजयसूरि, उनके शिष्य विजयसेनसूरि, प्रशिष्य विजयदेवसूरि, महान् वादी उपा० यशोविजय जी आदि अनेक प्रभावक और विद्वान् आचार्य एवं मुनिजन हो चुके हैं और आज भी बड़ी संख्या में ऐसे मुनिजन विद्यमान हैं। अन्य गच्छों की भांति इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न शाखायें निकलीं, जिनमें संविग्नपक्षीय शाखायें आज भी विद्यमान हैं। ये संविग्नपक्षीय शाखायें भी आज विभिन्न समुदायों में विभक्त हैं और यही तपागच्छ का वर्तमान स्वरूप है। गच्छों के इतिहास पर अभी तक कोई भी शोध कार्य नहीं हुआ था। संस्थान के प्रवक्ता डॉ० .शिवप्रसाद ने इस कमी को पूर्ण करते हुए अनेक वर्षों के सतत् अध्यवसाय के बाद प्रामाणिक ढंग से तपागच्छ सहित विभिन्न गच्छों का इतिहास लिखा है। प्रस्तुत पुस्तक तपागच्छ के इतिहास के प्रथम भाग का प्रथम खंड है। इसके अन्तर्गत लेखक ने तपागच्छ का प्रारम्भ से लेकर २०वीं शताब्दी तक के इतिहास को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया है। इसके प्रकाशन सम्बन्धी कार्यों की जिम्मेदारी विद्यापीठ के ही प्रवक्ता डॉ० विजय कुमार जैन ने वहन की है अतः हम उनके भी आभारी हैं। अन्त में हम सुन्दर अक्षर सज्जा के लिये बीज़ विजनेस सेन्टर, महामण्डल नगर, लहुराबीर, वाराणसी और मुद्रण के लिये वर्धमान मुद्रणालय, भेलूपुर, वाराणसी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। देवेन्द्र राज मेहता मंत्री प्राकृत भारती अकादमी जयपुर दिनाङ्क: २३.१२.२००० भूपेन्द्र नाथ जैन मंत्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनी बात श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय का इतिहास वस्तुत: समय-समय पर उद्भूत विभिन्न गच्छों का ही इतिहास है। ई० सन् की ११वीं शताब्दी से गच्छों का अभ्युदय माना जाता है। बृहद्गच्छ प्राचीनतम गच्छों में एक है। इस गच्छ से समय-समय पर विभिन्न गच्छों का उदय हुआ, वे विकसित हुए और समय के साथ-साथ नामशेष भी हो गये। बृहद्गच्छ का समकालीन चैत्रगच्छ भी है। यह चैत्रपुर (चित्तौड़?) नामक स्थान से अस्तित्त्व में आया प्रतीत होता है। बृहद्गच्छीय आचार्य जगच्चन्द्रसूरि ने अपने गच्छ में व्याप्त शिथिलाचार को देखकर चैत्रगच्छीय आचार्य भुवनचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रगणि से उपसम्पदा ग्रहण कर ली और उग्र तपश्चर्या में संलग्न हो गये जिससे प्रभावित होकर आघाटपुर के शासक जैत्रसिंह ने वि०सं० १२८५ में उन्हें 'तपा' विरुद् प्रदान किया। जगच्चन्द्रसूरि की शिष्य-संतति उक्त आधार पर तपागच्छीय कहलायी। इस गच्छ में समय-समय पर न केवल अनेक प्रभावक और विद्वान् गच्छपति, आचार्य एवं मुनिजन हुए बल्कि यह कहते हुए गौरव का अनुभव होता है कि आज भी इसमें बड़ी संख्या में शासनप्रभावक, और विद्वान् आचार्य एवं मुनिजन विद्यमान हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह गच्छ न केवल जीवन्त रूप में आज दिखाई देता है बल्कि इसके प्रभाव में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। इसी गौरवशाली तपागच्छ का सम्यक्, प्रामाणिक एवं सुव्यवस्थित विवरण प्रस्तुत ग्रन्थ में सन्निहित है। तपागच्छ के इतिहास के प्रथम भाग के प्रथम खण्ड में प्रारम्भ से लेकर २०वीं शताब्दी तक तपागच्छीय आचार्य परम्परा और उसकी विभिन्न शाखाओं का इतिहास दिया गया है। इसके दूसरे खण्ड - तपागच्छीय मुनिजनों की साहित्य सेवा के अन्तर्गत इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों द्वारा प्रणीत रचनाओं को रचनाकारों के अकारादिक्रम से प्रस्तुत किया गया है। यह खण्ड भी अतिशीघ्र विद्वानों के सम्मुख प्रस्तुत होगा। इस अवसर पर संक्षेप में इस ग्रन्थ के प्रारूप और इसमें विवेचित सामग्री पर प्रकाश डालना उपयुक्त होगा। किसी भी गच्छ के इतिहास के अध्ययन के मूल स्रोत के रूप में उससे सम्बद्ध रचनाकारों के कृतियों में दी गयी प्रशस्तियाँ, उनकी प्रेरणा से या स्वयं उनके द्वारा प्रतिलिपि किये गये ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ, विवेच्य गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित की गयी जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों और सम्बद्ध गच्छ की पट्टावलियों का उपयोग अपरिहार्य है। तपागच्छ के इतिहास के अध्ययन के सम्बन्ध में भी ठीक यही बात कही जा सकती है। हमारे पास इस गच्छ के उक्त तीनों प्रकार के साक्ष्य अत्यधिक संख्या में उपलब्ध हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में उन सब का सम्यक् उपयोग किया गया है। - - - -- - - - Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ का वर्तमान इतिहास वस्तुत: तपागच्छीय संविग्न परम्परा का ही इतिहास है। इस गच्छ में ये तीन संविग्न परम्परायें अस्तित्व में आयी - १. विजयसंविग्न परम्परा, २. सागरसंविग्न परम्परा और ३. विमलसंविग्न परम्परा। उक्त तीनों संविग्न परम्परायें प्रारम्भ में मूल तपागच्छीय परम्परा की अनुगामी थी। धीरे-धीरे जब मूल परम्परा में क्रियाशील मुनिजनों की संख्या घटने लगी तब संविग्न परम्पराके मुनिजनो ने उनसे सम्बन्ध विच्छेद कर लिया और उनकी स्वतंत्र आचार्य परम्परा चलने लगी। तपागच्छीय संविग्न परम्परा आज निम्नलिखित समुदायों में विभक्त है: १. पंन्यास श्री धर्मविजयजी महाराज - (डहेलावाला) का समुदाय २. शासनसम्राट श्री विजयनेमिसूरि का समुदाय ३. बुद्धिसागरसूरि का समुदाय ४. आनन्दसागरसूरि का समुदाय ५. विजयसिद्धिसूरि (बापजी महाराज) का समुदाय ६. विजयनीतिसूरि का समुदाय ७. विजयमोहनसूरि का समुदाय ८. विजयलब्धिसूरि का समुदाय ९. विजयवल्लभसूरि का समुदाय १०. विजयकेशरसूरि का समुदाय ११. विजयकनकसूरि (बागड़) का समुदाय १२. विजयप्रेमसूरि का समुदाय १३. विजयभक्तिसूरि का समुदाय १४. विजयशांतिचन्द्रसूरि का समुदाय १५. हालारदेशोद्धारक विजयअमृतसूरि का समुदाय १६. मोहनलालजी महाराज का समुदाय १७. श्रीसौधर्मबृहद्तपागच्छ अपरनाम त्रिस्तुतिक समुदाय त्रिस्तुतिक समुदाय को छोड़कर उक्त सभी समुदाय का नामकरण समुदायप्रवर्तक आचार्यों के नाम पर ही हुआ है। इन सभी समुदायों में हो चुके पट्टधरों एवं सभी आचार्यों के जन्म , दीक्षा, आचार्यपद प्राप्ति, स्वर्गारोहण, स्वदीक्षित शिष्य, साहित्यनिर्माण, साहित्य सेवा एवं जीवन की विशिष्ट कार्यकलापों आदि की पूर्ण जानकारी जब तक प्राप्त नहीं हो पाती तब तक इन सभी के विषय में प्रामाणिक रूप से कुछ भी लिख पाना कठिन है। अभी हाल के वर्षों में श्री नन्दलाल देवलुक द्वारा सम्पादित शासनप्रभावक श्रमण भगवंतो नामक पुस्तक दो भागों में प्रकाशित हुई है। इसके द्वितीय भाग में उपरोक्त - Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ III समुदायों के कुछ प्रमुख आचार्यों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देने का प्रयास किया गया है, परन्तु इससे वे सभी बातें ज्ञात नहीं हो पाती जिनकी प्रामाणिक इतिहास लेखन के सम्बन्ध में आवश्यकता होती है। एक पट्टधर आचार्य के कितने शिष्य हुए, उन्होंने कितने आचार्य बनाये और कहाँ-कहाँ प्रतिष्ठा आदि करवायी,उनके द्वारा की गयी साहित्य सेवा आदि उपयोगी सूचनाओं का उसमें अत्यन्त संक्षिप्त और अपूर्ण विवरण है। ऐसी स्थिति में उसे आधार बना कर लिखा गया इतिहास भी अपूर्ण ही होगा। संविग्न परम्परा के इतिहास के अध्ययन के सम्बन्ध में यह भी अनुभव हुआ कि देश के विभिन्न भागों में चातुर्मास या उसके पश्चात् मुनिजनों से वहाँ जाकर सम्पर्क कर पाना कठिन, समयसाध्य एवं व्ययसाध्य होने से अव्यावहारिक है, साथ ही उनसे आवश्यक सामग्री का प्रामाणिक एवं परिपूर्ण रूप में मिल पाना भी सरल नहीं है। संविग्न परम्परा के इतिहास के अध्ययन का एक ही सुगम उपाय हो सकता है और वह यह कि प्रत्येक समुदाय के गच्छाधिपति आचार्य अपने-अपने अधीनस्थ किन्हीं विद्वान् मुनिजनों को अपने-अपने समुदाय की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक के प्रत्येक पट्टधर आचार्यों के परिचय एवं उपलब्धियाँ, उनके शिष्य परिवार आदि का विवरण इतिहास के रूप में प्रस्तुत करने का कार्य सौंपें। यह कार्य उनके लिये उसी प्रकार सरल होगा जिस प्रकार किसी शिक्षित व्यक्ति द्वारा अपने परिवार की कतिपय पीढ़ियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करना। प्रस्तुत शोध योजना के अन्तर्गत तपागच्छ के संविग्न-परम्परा के इतिहास लेखन में मैंने आवश्यक सामग्री के संकलन हेतु विभिन्न समुदायों के आचार्यों से सम्पर्क करने का प्रयास किया, किन्तु दो-तीन समुदायों को छोड़कर अन्य समुदायों के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी। ऐसी स्थिति में संविग्न परम्परा के मात्र कुछ समुदायों के पट्टधरों का संक्षिप्त विवरण देना उचित नहीं लगा। सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो० एम०ए० ढांकी और महोपाध्याय विनयसागरजी भी हमारे इस विचार से सहमत दिखे। संविग्न परम्परा की प्रत्येक शाखाओं में विगत १००-१५० वर्षों में अनेक विद्वान् और प्रभावशाली आचार्य एवं मुनिजन हो चुके हैं और आज भी हैं। इन सभी के द्वारा की गयी साहित्यसेवा, ग्रन्थलेखन आदि का कीर्तिमान स्थापित हो चुका है। आचार्य आत्माराम जी अपरनाम विजयानन्दसूरिजी महाराज, शासनसम्राट विजयनेमिसूरि, विजयधर्मसूरि, विजयराजेन्द्रसूरि, बुद्धिसागरसूरि, सागरानन्दसूरि, विजयसिद्धिसूरि, विजयलब्धिसूरि, विजययतीन्द्रसूरि, विजयवल्लभसूरि, मुनि विद्याविजयजी, विजयेन्द्रसूरि, मुनि पुण्यविजयजी आदि अनेक विद्वान् मुनिजन इस काल में हो चुके हैं और आज भी विभिन्न विद्वान् आचार्य एवं मुनिजन विद्यमान हैं जिनकी साहित्यिक एवं अन्य उपलब्धियों Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तथा उनकी शिष्य-संतति आदि का विस्तृत विवरण इतिहास की दृष्टि से समाज के समक्ष रखा जाना अपरिहार्य है। प्रो० एम०ए० ढ़ांकी, शोध निदेशक, अमेरिकन इस्ट्टियूट ऑफ इन्डियन स्टडीज, वाराणसी (वर्तमान में गुड़गांव-हरियाणा) की प्रेरणा एवं सहयोग तथा प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ की सेवा में रहते हुए मैंने श्वेताम्बर गच्छों के इतिहास लेखन का कार्य प्रारम्भ किया और निर्बाध रूप से पिछले १० वर्षों में इस कार्य को एक सीमा तक पूर्ण करने का प्रयास किया, जिसका एक बड़ा भाग देश की प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं - निर्ग्रन्थ (अहमदाबाद), सामीप्य (अहमदाबाद), तुलसीप्रज्ञा (लाडनूं), तित्थयर (कलकत्ता), शोधादर्श (लखनऊ), संस्कृतिसंधान (वाराणसी), श्रमण (वाराणसी) के अलावा विभिन्न अभिनन्दन ग्रन्थों एवं स्मारिकाओं आदि में प्रकाशित हो चुका है तथापि अभी आधे से भी अधिक सामग्री अप्रकाशित ही पड़ी हुई है। पूर्व में गच्छों के इतिहास का प्रकाशन प्रो०एम०ए० ढ़ांकी और प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी और शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद के संयुक्त तत्त्वावधान में होना निश्चित् हुआ था, परन्तु अब यह इतिहास अलग-अलग खण्डों में पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी और प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर द्वारा संयुक्त रूप में प्रकाशित होने जा रहा है। इस क्रम में सर्वप्रथम तपागच्छ का इतिहास, भाग-१, खण्ड-१ विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत है। तपागच्छ के इतिहास के लेखन एवं संशोधन में मुझे प्रो० एम०ए० ढांकी, प्रो० सागरमल जैन, साहित्य महारथी श्री भंवरलालजी नाहटा, महोपाध्याय विनयसागर जी आदि से जो सहयोग मिला उसके लिये आभार व्यक्त करने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं। विनयसागर जी ने इस पुस्तक की पाण्डुलिपि के एक-एक शब्द को पढ़ा और उसमें यथावश्यक संशोधन किये, एतदर्थ हम उनके विशेष कृतज्ञ हैं। ___ प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन का पूर्ण श्रेय प०पू० आचार्य राजयशसूरीश्वर जी मसा०; प्रो० भागचन्द्र जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी और महो० विनयसागर जी, जयपुर को है, अत: मैं इन सभी का हृदय से आभारी हूँ। शिवप्रसाद Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ का इतिहास भाग १ : खंड १ विषय-सूची प्रकाशकीय अपनी बात अध्याय १ I-IV अध्याय २ अध्याय ३ अध्याय ४ गच्छों के मूल स्त्रोत तपागच्छ का इतिहास : जगच्चन्द्रसूरि से मुनिसुन्दरसूरि तक रत्नशेखरसूरि से २०वीं शती तक तपागच्छ की शाखायें-- बृहद्पौशालिकशाखा कमलकलशशाखा कुतुबपुराशाखा (४) लघुपौशालिकशाखा (५) सागरशाखा विजयाणंदसूरिशाखा २५९ २६६ २७० २७९ २८९ अपरनाम रत्नशाखा ३०२ ३१६ (८) विमलशाखा सहायक ग्रन्थ सूची ३२२ आवरण चित्र - आचार्य हीरविजयसूरि और सम्राट अकबर जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास से साभार Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय गच्छों के इतिहास के मूलस्रोत किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय के इतिहास के अध्ययन के स्रोत के रूप में साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों का अध्ययन अपरिहार्य है। प्राक् मध्य युग में निग्रर्थ दर्शन के श्वेताम्बर आम्नाय में समय-समय पर उद्भूत विभिन्न गच्छों और उनसे निःशृत ( उत्पन्न ) शाखाओं-उपशाखाओं के इतिहास के अध्ययन के सम्बन्ध में भी ठीक यही बात कही जा सकती है। गच्छों के इतिहास से सम्बद्ध साहित्यिक साक्ष्यों को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, प्रथम ग्रन्थ या पुस्तक प्रशस्तियाँ और द्वितीय विभिन्न गच्छों के मुनिजनों द्वारा रची गयी अपने- अपने गच्छों की पट्टावलियाँ | प्रशस्तियाँ पुस्तकों के साथ सम्बन्ध रखने वाली प्रशस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं। इनमें से एक तो वे हैं जो ग्रन्थों के अन्त में उनके रचयिताओं द्वारा बनायी गयी होती हैं। इनमें मुख्य रूप से रचनाकार द्वारा गण-गच्छ तथा अपने गुरु- प्रगुरु आदि का उल्लेख होता है । किन्हीं प्रशस्तियों में रचनाकाल और रचनास्थान का भी निर्देश होता है। किसी-किसी प्रशस्ति में तत्कालीन शासक या किसी बड़े राज्याधिकारी का नाम और अन्यान्य ऐतिहासिक सूचनायें भी मिल जाती हैं। कुछ प्रशस्तियाँ छोटी दो-चार पंक्तियों की और कुछ बड़ी होती हैं। इन प्रशस्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न गण-गच्छों के जैनाचार्यों की गुरु-परम्परा उनका समय, उनका कार्यक्षेत्र और उनके द्वारा की गयी समाजोत्थान एवं साहित्य सेवा का संकलन कर उनकी परम्पराओं का अत्यन्त प्रामाणिक इतिहास तैयार किया जा सकता है। , दूसरे प्रकार की प्रशस्तियाँ वे हैं जो प्रतिलिपि किये गये ग्रन्थों के अन्त में लिखी होती हैं। ये भी दो प्रकार की होती हैं। प्रथम वे जो किन्हीं मुनिजनों या श्रावक द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ लिखी गयी होती हैं और दूसरी वे जो श्रावकों द्वारा स्वयं के अध्ययनार्थ या किन्हीं मुनिजनों के भेंट देने हेतु दूसरों से (लोहिया से) द्रव्य देकर लिखवाई जाती हैं। गच्छों के इतिहास की सामग्री की दृष्टि से ये प्रशस्तियाँ राजाओं के दान पत्रों और मन्दिरों के शिलालेखों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं। तथ्य की दृष्टि से इनमें कोई अन्तर नहीं होता, अन्तर यही है कि केवल एक पाषाण या ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण होता है तो दूसरा ताड़पत्र या कागजों पर । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ गुजरात के पाटण, खम्भात, अहमदाबाद, बड़ौदा और लिम्बडी; राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, कोटा आदि तथा भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट, पूणे के ग्रन्थ भण्डारों में जैन ग्रन्थों का विशाल संग्रह विद्यमान है। पीटरसन, मुनि जिनविजय जी, मुनि पुण्यविजय जी, श्री चिमनलाल डाह्याभाई दलाल, पण्डित लालचन्द भगवानदास गांधी, प्रो० हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, पण्डित अम्बालाल प्रेमचन्द्र शाह, डॉ० विधात्री वोरा, श्री जौहरीमल पारेख आदि विद्वानों के अथक परिश्रम से उक्त भण्डारों के विस्तृत सूची पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: 1. P. Peterson, Operation in Search of Sanskrit Mss in the Bombay Circle, Vol.I-VI, Bombay 1882 1898 A.D. 2. C. D. Dalal, A Descriptivie Catalogue of Manuscripts in the Jain Bhandaras at Pattan, Vol. I, G.O.S. No. LXXVI, Baroda, 1937. 3. H.R.Kapadia, Descriptive Catalogue of the Government Collections of Manuscripts deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. XVII-XIX, Poona 1935-1977. 4. Muni Punya Vijaya, Catalogue of Palm Leaf Mss. in the Shanti Natha Jaina Bhandar, Cambay, Vol. I, II, G.O.S., No. 139, 149, Baroda 19611966 A.D. 5. A.P.Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muni Shree Punya Vijayajis collection, Vol, I, II, III, L.D. Series No. 2, 6, 15, Ahmedabad, 1962, 1965, 1968 A.D. 6. A. P. Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Ac. Vijayadevasuris and Ac. Ksantisuris collection, Part IV., L.D. Series, No. 20, Ahmedabad, 1968 A.D. 7. Muni Punya Vijaya, New Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss: Lesalmer collection, L.D. Series no. 36, Ahmedabad, 1972 A.D. 8. Vidhatri Vora, Catalogue of Gujarati Mss in the Muniraj Shree Punya Vijayaji's collection, L.D. Series No. 71, Ahmedavad, 1978 A.D. ९. अमृतलाल मगनलाल शाह, सम्पा०- - श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री जैन साहित्य प्रदर्शन, श्रीदेशविरति धर्माराजक समाज, अहमदाबाद वि० सं० १९९३. १०. मुनि जिनविजय, सम्पा० - जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १८, भारतीय विद्याभवन, मुम्बई १९४३ ई०. Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट्टावलियाँ इतिहास लेखन में अन्यान्य साधनों की भाँति पट्टावलियों का महत्वपूर्ण स्थान है। श्वेताम्बर जैन मुनिजनों ने इनके माध्यम से इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की है। शिलालेख, प्रतिमा लेख और प्रशस्तियों से केवल हम इतना ही ज्ञात कर पाते हैं कि किस काल में किस मुनि ने क्या कार्य किया। अधिक से अधिक उस समय के शासक एवं मुनि के गुरु-परम्परा का ही परिचय मिल जाता है। किन्तु पट्टावली में अपनी परम्परा से सम्बन्धित पट्ट परम्परा का पूर्ण परिचय होता है। इनमें किसी घटना विशेष के सम्बन्ध में अथवा किसी आचार विशेष के सम्बन्ध में प्राय: अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण ही मिलते हैं। अत: ऐतिहासिक महत्व की दृष्टि से इनकी उपयोगिता पर पूर्णरूपेण विश्वास नहीं किया जा सकता। चूंकि इनके संकलन या रचना में किम्बदन्तियों एवं अनुश्रुतियों के साथ-साथ कदाचित् तत्कालीन रास-गीत-सज्झाय आदि का भी उपयोग किया जाता है इसीलिए इनके विवरणों पर पूर्णत: अविश्वास भी नहीं किया जा सकता है और इनके उपयोग में अत्यधिक सावधानी बरतनी पड़ती है। पट्टावलियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं। प्रथम शास्त्रीय पट्टावली और दूसरी विशिष्ट पट्टावली। प्रथम प्रकार में सुधर्मा स्वामी से लेकर देवर्धिगणि क्षमा श्रवण तक का विवरण मिलता है। कल्पसूत्र और नन्दीसूत्र की पट्टावलियाँ इसी कोटि में आती हैं। गच्छ भेद के बाद विविध पट्टावलियाँ विशिष्ट पट्टावली की कोटि में रखी जा सकती हैं। इनकी अपनीअपनी विशिष्टताएँ होती है। पट्टावलियों में मुख्य रूप से पट्टधर आचार्यों का ही विवरण मिलता है। अन्य आचार्यों का नहीं। कहीं-कहीं प्रसंगवश उनके गुरुभ्राताओं का भी नामोल्लेख मिल जाता है। इनके द्वारा ही आचार्य परम्परा अथवा गच्छ का क्रमबद्ध पूर्ण विवरण प्राप्त होता है, जो इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। श्वेताम्बर परम्परा में विभिन्न गच्छों की जो पट्टपरम्परा मिलती है, उसका श्रेय पट्टावलियों को ही है। अन्यान्य गच्छों की भाँति तपागच्छ के इतिहास के अध्ययन हेतु इस गच्छ के विभिन्न मुनिजनों द्वारा समय-समय पर रचित विभिन्न पट्टावलियाँ मिलती हैं। मुनि दर्शनविजय ने इस गच्छ की कुछ पट्टावलियों को पट्टावलीसमुच्चय में प्रकाशित किया है। इसी प्रकार श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई द्वारा प्रणीत जैनगूर्जरकविओं और मुनि जिनविजय द्वारा सम्पादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह तथा मुनि कल्याणविजय द्वारा सम्पादित पट्टावलीपरागसंग्रह में इस इस गच्छ की पट्टावलियां दी गयी हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इन सभी का यथास्थान उपयोग किया गया है। अभिलेखीयसाक्ष्य श्वेताम्बर सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों से सम्बद्ध अभिलेखिय साक्ष्य मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं-१. प्रतिमालेख, २. शिलालेख। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातु या पाषाण की अनेक जिनप्रतिमाओं के पृष्ठ भाग या आसनों पर लेख उत्किर्ण होते हैं। इसी प्रकार विभिन्न तीर्थ स्थलों पर निर्मित जिनालयों से अनेक शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। इन लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक या प्रतिमा के प्रतिष्ठा हेतु प्रेरणा देने वाले मुनि का नाम होता है तो किन्हीं-किन्हीं लेखों में उनके पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों के भी नाम मिल जाते हैं। किन्हीं-किन्हीं लेखों में तत्कालीन शासक का भी नाम मिल जाता है। इतिहास लेखन में उक्त साक्ष्यों का बड़ा महत्व है। __ शिलालेखों में सामान्य रूप से जिनालयों के निर्माण, पुर्ननिर्माण, जीर्णोद्धार आदि कराने वाले श्रावक का नाम, उसके कुटुम्ब एवं जाति आदि का परिचय, प्रेरणा देने वाले मुनिराज का नाम, उनके गच्छ का नाम, उनकी गुरु-परम्परा में हुए पूर्ववर्ती दो-चार मुनिजनों का नाम, शासक का नाम, तिथि आदि का सविस्तार परिचय दिया हुआ होता है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध अभिलेखों के विभिन्न संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनका विवरण इस प्रकार है जैनलेखसंग्रह, भाग १-३; सम्पा०-पूरनचंद नाहर, कलकत्ता १९१८, १९२७, १९२९ ई० । प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग १-२; सम्पा०-मुनि जिनविजय, जैन आत्मानन्द सभा, भाव नगर १९२१ ई०। जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १-२, सम्पा० -आचार्य बुद्धिसागरसूरि, श्री अध्यात्म ज्ञानप्रसारक मण्डल, पादरा १९२४ ई०। प्राचीनलेखसंग्रह, संग्रा०-आचार्य विजयधर्मसूरि, सम्पा०-मुनि विद्याविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९२९ ई०। अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग २) सम्पा०-मुनि जयन्तविजय, विजयधर्मसूरी ज्ञानमन्दिर, उज्जैन वि०सं० १९९४। अर्बुदचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग ५), सम्पा०-मुनि जयन्तविजय, यशोविजय जैनग्रन्थमाला, भावनगर वि०सं०२००५। जैनधातुप्रतिमालेख, सम्पा०-मुनिकांतिसागर, श्रीजिनदत्तसूरी ज्ञानभण्डार, सूरत १९५० ई०। प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सम्पा०-महोपाध्याय विनयसागर, सुमतिसदन, कोटा १९५३ ई०। बीकानेरजैनलेखसंग्रह, सम्पा-अगरचंद नाहटा एवं श्री भंवरलाल नाहटा, नाहटा ब्रदर्स, ४ जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता १९५५ई०। श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०-श्रीदौलतसिंह लोढा “अरविन्द'' धामणिया, मेवाड़ १९५५ ई०। राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह, सम्पा०-मुनि विशालविजय, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९६० ई०। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शजयगिरिराजदर्शन, सम्पा०-मुनि कंचनसागर, कपडवज १९८३ ई०। शत्रुजयवैभव, सम्पा०-मुनि कान्तिसागर, कुशलसंस्थान, पुष्प ४, जयपुर १९९० ई०। नाकोड़पार्श्वनाथतीर्थ-सम्पा० विनय सागर जी। बाड़मेरजिलेकेप्राचीनजनशिलालेख, संग्रा०-सम्पा०-चम्पालाल सालेचा, प्रकाशकजैन श्वे० नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, पो० मेवानगर, जिला-बाड़मेर, राजस्थान। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - २) तपागच्छ का इतिहास भाग-१, खंड - १ (आचार्य जगच्चन्द्रसूरि से आचार्य मुनिसुन्दरसूरि तक) निम्रन्थ परम्परा के श्वेताम्बर आम्नाय के गच्छों में तपागच्छ का स्थान आज तो सर्वोपरि जैसा है। इस गच्छ की परम्परानुसार बृहद्गच्छीय आचार्य मणिरलसूरि के शिष्य जगच्चन्द्रसूरि हुए, जिन्होंने अपने गच्छ में व्याप्त शिथिलाचार के कारण चैत्रगच्छीय आचार्य धनेश्वरसूरि के प्रशिष्य और भुवनचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रगणि के पास उपसम्पदा ग्रहण की एवं १२ वर्षों तक निरंतर आयंबिल तप किया जिससे प्रभावित होकर आघाटपुर के शासक जैत्रसिंह ने उन्हें वि०सं० १२८५/ई०स० १२२९ में 'तपा' विरुद् प्रदान किया। आगे चलकर उनकी शिष्य संतति तपागच्छीय कहलायी।' तपागच्छ में आचार्य देवेन्द्रसूरि, विजयचन्द्रसूरि, धर्मघोषसूरि, सोमप्रभसूरि, सोमतिलकसूरि, देवसुन्दरसूरि, सोमसुन्दरसुरि, मुनिसुन्दरसूरि, हेमविमलसूरि, आनन्दविमलसूरि, विजयदानसूरि, हीरविजयसूरि, विजयसेनसूरि, विजयदेवसूरि, उपा० यशोविजय जी तथा वर्तमानयुग में आचार्य विजयानन्दसूरि, आचार्य विजयधर्मसूरि, शासनसम्राट आचार्य विजयनेमिसूरि, आचार्य नेमिसूरि, आचार्य सागरानन्दसूरि, आचार्य बुद्धिसागरसूरि, आचार्य विजयसिद्धिसूरि, आचार्य लब्धिसूरि, आचार्य विजयवल्लभसूरि आदि अनेक विद्वान् और प्रभावक मुनिजन हो चुके हैं तथा आज भी अनेक प्रभावशाली और साहित्यरसिक मुनिजन विद्यमान हैं। इन्होंने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं, ज्ञानभंडारों की स्थापना, तीर्थयात्रा, तीर्थक्षेत्रों के जीर्णोद्धार एवं जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा आदि कार्यों द्वारा पश्चिमीभारत विशेषकर महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान एवं दिल्ली और पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज को जीवन्त एवं समुन्नत बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है जो आज भी जारी है। अन्य गच्छों की भाँति तपागच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न उपशाखाओं का प्रादुर्भाव हुआ, जिनमें बृहद्पौशालिकशाखा, कमलकलशशाखा, कुतुबपुराशाखा, लघुपौशालिक अपरनाम सोमशाखा, राजविजयसूरिशाखा अपरनाम रत्नशाखा, सागरशाखा, विमलशाखा, विजयशाखा आदि प्रमुख हैं। तपागच्छ के इतिहास के अध्ययन में स्त्रोत के रूप में इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ, उनकी प्रेरणा से या स्वयं उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकों की प्रतिलिपि या दाता प्रशस्तियाँ तथा बड़ी संख्या में पट्टावलियां मिलती हैं। इसी प्रकार इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा प्रतिष्ठापित बहुत बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं, जो Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि०सं० १४४७ से लेकर वर्तमान युग तक की हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इनमें से महत्त्वपूर्ण और आवश्यक साक्ष्यों का उपयोग करते हुए इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। तपागच्छ का उल्लेख करने वाले प्रारम्भिक साक्ष्यों में इस गच्छ के आदिपुरुष जगच्चन्द्रसूरि के (शिष्य एवं) पट्टधर देवेन्द्रसूरि द्वारा रचित कृतियों की प्रशस्तियां द्रष्टव्य हैं। नव्यपंचकर्मग्रन्थसटीक' की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है: जगच्चन्द्रसूरि (तपा विरुद्धारक) देवेन्द्रसूरि (नव्यपंचकर्मग्रन्थसटीक के कर्ता) सुदर्शनाचरित की प्रशस्ति में उनके द्वारा दी गयी गुरु-परम्परा निम्नानुसार है: चैत्रगच्छीय भुवनचन्द्रसूरि देवभद्र (गणि) सूरि जगच्चन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि (सुदर्शनाचरित के रचनाकार) विजयचन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि के गुरुभ्राता विजयचन्द्रसूरि के शिष्य क्षेमकीर्ति द्वारा रचित बृहत्कल्पवृत्ति की प्रशस्ति में रचनाकार ने जगच्चन्द्रसूरि को देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरि के गुरुभाई के रूप में उल्लिखित करते हुए इन्हें देवभद्रसूरि का शिष्य कहा है: धनेश्वरसूरि भुवनचन्द्रसूरि देवभद्रसूरि जगच्चन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि वज्रसेन पद्मचन्द्र क्षेमकीर्ति (वि०सं० १३३२ में बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति के रचनाकार) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छीय आचार्य देवसुन्दरसूरि के एक शिष्य गुणरतसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं। वि०सं० १४६६ में रचित गुरुपर्वक्रमविवरण स में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा इस प्रकार बतलायी है: ८ अजितदेवसूरि 1 विजयसिंहसूर सोमप्रभसूरि बृहदगच्छीय मुनिचन्द्रसूरि वादिदेवसूरि आदि गुरुपर्वक्रमविवरण के अनुसार जगच्चन्द्रसूरि ने शिथिलाचार को देखते हुए चैत्रगच्छीय देवभद्रगणि से उपसम्पदा ग्रहण कर ली। देवभद्रसूरि के गुरु कौन थे ? इस बारे में गुणरत्नसूरि कोई चर्चा नहीं की है, किन्तु जैसा कि ऊपर देवेन्द्रसूरि कृत सुदर्शनाचरित और क्षेमकीर्तिकृत बृहदकल्पवृत्ति की प्रशस्तियों में हम देख चुके हैं देवभद्रसूरि के प्रगुरु और गुरु का नाम भी उन्होंने दिया है। मणिरत्नसूर 1 जगच्चन्द्रसूरि शान्तिनाथ जैनभंडार, खंभात में संरक्षित पाक्षिकप्रतिक्रमणसूत्र की चूर्णि और वृत्ति की वि०सं०१२९६ में लिखी गयी प्रति की प्रशस्ति के अनुसार देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरि ने उपा० देवभद्रगणि के व्याख्यान के प्रभाव से उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि करायी । ३६ उक्त प्रशस्ति से क्षेमकीर्ति का यह मत पुष्ट होता दिखाई देता है कि देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरि देवभद्रगणि के शिष्य थे न कि जगच्चन्द्रसूरि के। इस प्रकार जगच्चन्द्रसूरि, देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरि को परस्पर गुरु भ्राता और इन्हें देवभद्रगणि का शिष्य मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती । कनिष्ठ गुरुभ्राता भी अपने ज्येष्ठ गुरुभ्राता का पट्टधर हो सकता है, यह बात गुरुपर्वक्रम से भलीभाँति स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि जगच्चन्द्रसूरि मूलतः बृहद्गच्छीय थे। बाद में अपने गच्छ व्याप्त शिथिलाचार से क्षुब्ध होकर उन्होंने चैत्रगच्छीय देवभद्रगणि से उपसम्पदा ग्रहण की और साधना में लीन हो गये। बाद में उन्हें जब तपा विरुद् मिला, तो उनके पट्टधरों की परम्परा तपागच्छ के नाम से विख्यात् हुई, अन्यथा ये चैत्रगच्छ के होते और स्वाभाविक रूप से चैत्रगच्छीय ही कहे जाते । देवभद्रसूरि के अन्य शिष्यों से चैत्रगच्छ की परम्परा आगे बढ़ी। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगच्चन्द्रसूरि : 44 जैसा कि प्रारम्भ में हम देख चुके हैं. आचार्य जगच्चन्द्रसूरि इस गच्छ के आदि पुरुष माने जाते हैं। इनके द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है । जगच्चन्द्रसूरि के दो प्रमुख शिष्य थे - देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरि । गुरु के निधनोपरान्त देवेन्द्रसूरि उनके पट्टधर बने। ये अपने समय के प्रमुख विद्वानों में से एक थे। इन्होंने अपनी कृतियों में अपनी गुरु- परम्परा तथा कुछ में अपने साहित्यिक सहयोगी के रूप में अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता विजयचन्द्रसूरि का उल्लेख किया है। देवेन्द्रसूरि ने विशेष रूप से गुजरात और मालवा में विहार किया। वि० सं० १३०२ में उज्जैन में इन्होंने वीरधवल नामक एक श्रेष्ठीपुत्र को दीक्षित कर उसका नाम विद्यानन्द रखा। कुछ समय पश्चात् वीरधवल का लघुभ्राता भी देवेन्द्रसूरि के पास दीक्षित हुआ और उसका नाम धर्मकीर्ति रखा गया'। २२ वर्ष तक मालवा में विहार करने के पश्चात् आचार्य देवेन्द्रसूरि स्तम्भतीर्थ (खंभात) पधारे। उनके कनिष्ठ गुरुभ्राता विजयसिंहसूरि ने इस अवधि में स्तम्भतीर्थ की उसी पौषधशाला में निवास किया जहाँ ठहरना आचार्य जगच्चन्द्रसूरि ने निषिद्ध कर दिया था। इस दरम्यान उन्होंने मुनिआचार के कठोर नियमों को भी शिथिल कर दिया। देवेन्द्रसूरि को ये सभी बातें ज्ञात हुईं और वे वहां न जाकर दूसरी पौषधशाला, जो अपेक्षाकृत कुछ छोटी थी, ठहरे। इस प्रकार जगच्चन्द्रसूरि के दो शिष्य एक ही नगर में एक ही समय दो अलग-अलग स्थानों पर रहे। बड़ी पौषधशाला में ठहरने के कारण विजयचन्द्रसूरि का शिष्य समुदाय बृहदपौशालिक तथा देवेन्द्रसूरि का शिष्यपरिवार लघुपौशालिक कहलाया। ९ गुर्जरदेश में विहार करने के पश्चात् देवेन्द्रसूरि पुनः मालवा पधारे। वि० सं० १३२७/ ई० स० १२६१ में वहीं उनका देहान्त हो गया । " उन्होंने विद्यानन्दसूरि को अपना पट्टधर घोषित किया था किन्तु उनके निधन के मात्र १३ दिन पश्चात् विद्यानन्दसूरि का भी निधन हो गया। इन घटनाओं के ५ माह पश्चात् विद्यानन्द के छोटे भाई धर्मकीर्ति को धर्मघोषसूरि के नाम से देवेन्द्रसूरि का पट्टधर बनाया गया । ' देवेन्द्रसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं : १. श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति २. नव्यपंचकर्मग्रन्थ सटीक ३. सिद्धपंचाशिका सटीक ४. धर्मरत्नप्रकरण बृहद्वृत्ति ६. चैत्यवन्दनादि ३ भाष्य ५. सुदर्शनाचरित्र ७. वन्दारुवृत्ति अपरनाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति ८. दानादि चार कुलक, जिसपर वि०सं० की १७वीं शती में विजयदानसूरि के प्रशिष्य एवं राजविजयसूरि के शिष्य देवविजय ने धर्मरत्नमंजूषा के नाम से वृत्ति की रचना की। इसके अलावा उनके द्वारा रचित कुछ स्तुति स्तोत्र भी मिलते हैं। देवेन्द्रसूरि के पट्टधर धर्मघोषसूरि द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं : संघाचार भाष्य २. भवस्थितिस्तव ४. १. ३. कायस्थितिस्तवन स्तुतिचतुर्विंशति Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. देहस्थितिप्रकरण दुषमाकालसंघस्तवन ऋषिमंडलस्तोत्र ९. ११. चतुर्विंशतिजिनस्तुति ८१३. गिरनारकल्प ६. ८. १०. १२. अष्टापदकल्प १४. श्राद्धजीतकल्प मुनि चतुरविजयजी ने इनके अनेक स्तवनों को जैनस्तोत्रसंदोह, प्रथम भाग प्रकाशित किया है। " १. २. ३. धर्मघोषसूरि के पट्टधर सोमप्रभसूरि हुए। इनका जन्म वि०सं० १३१० में हुआ था। वि०सं० १३२१ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १३३२ में सूरि पद प्राप्त हुआ और वि०सं० १३५७ में गुरु के निधन के पश्चात् ये उनके पट्टधर बने। इन्होंने कोंकण आदि प्रदेशों में जल की अधिकता और मारवाड़ आदि में जल की दुर्लभता के कारण तपागच्छीय मुनिजनों का विहार निषिद्ध कर दिया। इनके द्वारा रचित कृतियों में यतिजीतकल्पसूत्र, अट्ठाइस यमकस्तुतिओ श्रीमच्छर्यस्तोत्र आदि उल्लेखनीय हैं। इनके शिष्यों के रूप में विमलप्रभ, परमानंद, पद्मतिलक और सोमतिलक का नाम मिलता है। वि० सं० १३७३ / ई०स० १३१७ में इनके निधन के पश्चात् सोमतिलकसूरि ने तपागच्छ का नायकत्त्व ग्रहण किया। सोमतिलकसूरि का जन्म वि०सं० १३३५ में हुआ था, वि०सं० १३६९ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १४२४ में इनका देहान्त हुआ । इनके द्वारा रचित कृतियाँ इस हैं ३ प्रकार 1:5 ५. सज्मक चतुर्विंशतिजिनस्तुतिवृत्ति तीर्थराजस्तुति अट्ठाइस यमकस्तुतिओ पर वृत्ति १० बृहन्नव्यक्षेत्रसमास सप्ततिशतस्थानप्रकरण (रचनाकाल वि०सं० १३८७ / ई०स० १३२१) ४. चतुर्विंशति जिनस्तवनवृत्ति ६. विचारसूत्र ७. ९. कमलबन्धस्तवन ११. शत्रुंजययात्रावर्णन चतुर्विंशतिजिनस्तवसंग्रह युग प्रधानस्तोत्र परिग्रहप्रमाणस्तवन ७ इनके शिष्यों में पद्मतिलक, चन्द्रशेखर, जयानन्दसूरि, देवसुन्दरसूरि आदि का नाम मिलता है । पद्मतिलक द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु चन्द्रशेखर और जयानन्द द्वारा रचित कृतियां प्राप्त होती हैं। चन्द्रशेखर द्वारा रचित कृतियों में उषित भोजनकथा, यवराजर्षिक था, श्रीमद्स्तम्भनकहारबंधस्तवन आदि का नाम मिलता है। १४ जयानन्दसूरि द्वारा रचित कृतियों में स्थूलभद्रचरित्र", देवप्रभस्तोत्र ६, साधारण जिनस्तोत्र आदि उल्लेखनीय हैं। जयानन्दसूरि को वि०सं० १४२० में आचार्यपद प्राप्त हुआ और वि०सं० १४४१ में देहान्त हुआ। सोमतिलकसूरि के वि०सं० १४२० / ई०स० १३६४ में निधन के पश्चात् देवसुन्दरसूरि उनके पट्टधर बने। १८ वि०सं० १३९६ में इनका जन्म हुआ था, वि०सं० १४०४ में इन्होंने ८. वीरस्तव १०. साधारणजिनस्तुति Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १४२० में सूरि पद प्राप्त किया। इनके उपदेश से बड़ी संख्या में प्राचीन ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ करायी गयीं, जिनमें से अनेक आज भी उपलब्ध हैं। इनके द्वारा प्रातिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं, जो वि० सं० १४४७ से १४६८ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : क्रमांक वि० सं० तिथि 2. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. १०. १४४७ फाल्गुन सुदि ८ सोमवार १४५८ फाल्गुन सुदि २ बुधवार १४६१ श्रावण सुदि ११ गुरुवार १४६५ ज्येष्ठ वदि ११ १४६६ श्रावण सुदि १० १४६६ तिथिविहीन १४६७ वैशाख सुदि ७ १४६८ तिथिविहीन १४६९ फाल्गुन सुदि ३ १४६९ तिथिविहीन ११. १४६. ? तिथिविहीन प्राप्तिस्थान दादा पार्श्वनाथ देरासर नरसिंहजीकी पोल, बड़ोदरा अनुपूर्ति लेख, आबू बड़ा मंदिर, नागौर आदिनाथ जिनालय, मालपुरा आदिनाथ जिनालय, खेरालु चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, बीकानेर वही و जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, नीशापोल, अहमदाबाद दादापार्श्वनाथ देरासर, नरसिंह जी की पोल, बड़ोदरा माधवलालबाबू का देरासर, पालीताना संदर्भग्रन्थ आचार्य बुद्धिसागर, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४६. मुनि जयन्तविजय, संपाल, अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक ६०७. विनयसागर, संपा०, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १८४ वही, लेखांक १९१. आचार्य बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, लेखांक ७६१. भाग १, अगरचंद भँवरलाल नाहटा, संपा० बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ६३२. वही, लेखांक ६३४. वही, लेखांक ६३५. आचार्य बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १२०१ . वही, भाग २, लेखांक १२०. विजयधर्मसूरि, संपा०, प्राचीन लेखसंग्रह, लेखांक १०८. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ देवसुन्दरसूरि के शिष्यों में ज्ञानसागरसूरि, कुलमण्डनसूरि, गुणरत्न, साधुरत्न, सोमसुन्दरसूरि, साधुराजगणि, क्षेमंकरसूरि आदि का नाम मिलता है। १ ज्ञानसागरसूरि द्वारा रचित कई कृतियाँ मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं : १. उत्तराध्ययनअवचूरि वि०सं०१४४१ २. आवश्यकसूत्र पर अवचूरि वि० सं० १४४० ३. ओघनियुक्ति पर अवचूरि ५. धनौधनवखंडपार्श्वनाथस्तवन ४. मुनिसुव्रतस्तवन ६. शास्वतचैत्यवन्दन आदि इस प्रकार हैं : कुलमंडनसूरि द्वारा राचत कृतियाँ १. विचारामृतसंग्रह वि०सं० १४४३ २. प्रवचनपाक्षिक रूप अधिकार वाला सिद्धान्तालापकोद्धार ३. प्रज्ञापना अवचूरि ५. कल्पसूत्र अवचूरि ७. अष्टादशचक्रबन्धस्तवन ९. काकबंधचौपाई आदि देवसुन्दरसूरि के तीसरे शिष्य गुणरत्न भी अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे। उनके द्वारा रचित कृतियाँ २२अ निम्नानुसार हैं : १. २. ३. ४. ५. ४. प्रतिक्रमणसूत्र अवचूरि ६. कायस्थितिस्तोत्र पर अवचूरि ८. हारबंधस्तवन कल्पान्तर्वाच्य वि०सं० १४५७ सप्ततिका पर देवेन्द्रसूरि की टीका के आधार पर अवचूर्णि वि०सं० १४५९ देवेन्द्रसूरिकृत कर्मग्रन्थों पर अवचूरि प्रकीर्णकों पर अवचूरि सोमतिलकसूरिविरचित क्षेत्रसमास पर अवचूरि नवतत्त्व अवचूरि अंचलमतनिराकरण ६. ७. ८. ओघनियुक्तिउद्धार क्रियारलसमुच्चय ९. १०. षट्दर्शनसमुच्चय पर तत्त्वरहस्यदीपिका नामक टीका कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका ११. १२. सप्ततिका अवचूरि वि०सं० १४५९ के लगभग १३. आतुरप्रत्याख्यान अवचूरि १४. चतुःशरणअवचूरि १५. संस्तारक अवचूरि १६. भक्तपरिज्ञा अवचूरि १७. गुरुपर्वक्रमवर्णनम् वि०सं० १४६६ वि०सं० १४६९ के दो प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में भी इनका नाम मिलता है। २३ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ देवसुन्दरसूरि के चौथे शिष्य साधुरत्न ने वि०सं० १४५६ में यतिजीतकल्प पर वृत्ति की रचना की। इसी काल के आस-पास इनके द्वारा रचित नवतत्त्वअवचूरि' नामक कृति भी प्राप्त होती है। उन्हीं के ही पांचवें शिष्य सोमसुन्दरसूरि अपने समय के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार थे। इनके सम्बन्ध में आगे विस्तार से विवरण दिया गया है। छठे शिष्य साधुराजगणि द्वारा वि०सं० १४७० के लगभग साधारणजिनस्तुति की वृत्ति के साथ रचना की गयी। प्रो० हरि दामोदर वेलणकर ने उक्त वृत्ति के रचनाकार का नाम श्रुतसागर बताया है२५, जो भ्रांति है।२८ ।। सातवें शिष्य क्षेमंकर गणि द्वारा रचित सिंहासनबत्तीसी२९ (रचनाकाल वि० सं० १४५० के आसपास) नामक कृति मिलती है। उक्त विवरणों को एक तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है... Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - -... देवसुन्दरसूरि के शिष्य परिवार की तालिका देवसुन्दरसूरि ज्ञानसागरसूरि (रचनाकार) कुलमण्डनसूरि (रचनाकार) गुणरत्न (सुप्रसिद्धरचनाकार) साधुरत्न सोमसुन्दरसूरि (रचनाकार) (पट्टधर एवं सुप्रसिद्ध रचानाकार) साधुराजगणि (साधारणजिनस्तुति- वृत्ति के कर्ता) क्षे मंकरसूरि (वि०सं० १४५० के आस-पास सिंहासनबत्तीसी के कर्ता) Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोमसुन्दरसूरि-तपागच्छ के प्रमुख नायकों में सोमसुन्दरसूरि का विशिष्ट स्थान है। इनका जन्म वि० सं० १४३० में प्रल्हादनपुर (वर्तमान पालनपुर) में हुआ था। इनके पिता का नाम सज्जन और माता का नाम माल्हण देवी था। वि०सं० १४३७ मे सात वर्ष की आयु में इन्होंने जयानन्दसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की और सोमसुन्दर नाम प्राप्त किया। वि०सं० १४५० में पाटण में इन्हें वाचक पद प्राप्त हुआ और वि० सं० १४५७ में पाटण में ही देवसुन्दरसूरि द्वारा आचार्य पद प्राप्त हुआ। मुनिसुन्दरसूरि कृत गुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १४६६); चारित्ररलगणिकृत चित्रकूटमहावीरप्रासादप्रशस्ति' (रचनाकाल वि० सं० १४९५); प्रतिष्ठासोमकृत सोमसौभाग्यकाव्य २ (रचनाकाल वि० सं० १,२४, सोमचरित्रगणिकृत गुरुगुणरत्नाकर (रचनाकाल वि०सं० १५४१) आदि ग्रन्थों से इनके जीवन के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। आचार्य सोमसुन्दरसूरि द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं : १. आराधनारास उपदेशमालाबालावबोध (रचनाकाल वि० सं० १४८५) षष्ठिशतकबालावबोध (रचनाकाल वि० सं० १४९६) योगशास्त्रबालावबोध भक्तामरस्तोत्रबालावबोध आराधनापताकाबालावबोध षड़ावश्यकबालावनोध नवतत्त्वबालावबोध (रचनाकाल वि०सं० १५०२) अष्टादशस्तवी (रचनाकाल वि०सं० १४९० के आसपास) १०. आतुरप्रत्याख्यानटीका आवश्यकनियुक्तिअवचूरि १२. इलादुर्गऋषभजिनस्तवन १३. चैत्रवन्दनसूत्रभाष्यटीका १४. जिनकल्याणकादिस्तवन १५. जिनभवस्तोत्र १६. पार्श्वस्तोत्र १७. श्राद्धजीतकल्पवृत्ति १८. षट्भाषामयस्तव १९. सप्ततिकासूत्रचूर्णि २०. साधुसामाचारीकुलक सोमसुन्दरसूरि द्वारा वि० सं० १४७० से वि० सं० १४९९ के मध्य तक प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : imusi Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेख सम्वत् तिथि/मिति/वार लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान संदर्भ ग्रन्थ १- १४७० वैशाख सुदि २ शुक्रवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४७० ज्येष्ठ सुदि ५ मुनिसुव्रत की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २- जैन देरासर, त्रापज, काठियावाड़ विद्याविजयजी, संपा० प्राचीन लेखसंग्रह, लेखांक १०९ मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा विनयसागर, संपा०, प्रतिष्ठालेखसंग्रह लेखांक २०२ सुमतिनाथ मुख्यबावन जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग २, लेखांक ५००. ३- १४७१ माघ सुदि ७ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्किर्ण लेख मातर ४- श्रेयांसनाथ जिनालय, फताशाह की पोल, अहमदाबाद आदिनाथ जिनालय, सिरोही १४७२ तिथिविहीन सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्किर्ण लेख १४७३ वैशाख वदि ८ पार्श्वनाथ की पंचयतीर्थी प्रतिमा । पर उत्किर्ण लेख १४७३ मार्गशीर्ष सुदि ६ शुक्रवार मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, भाग १, लेखांक १३६०. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक २०९. अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ६११. ६- अनुपूर्ति लेख, आबू Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंभात १४७४ ज्येष्ठ वदि ११ रविवार विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर कुन्थुनाथ जिनालय, मांडवीपोल, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ६४४ ८- १४७४ मार्गशीर्ष सुदि ८ सोमवार शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण चिन्तामणि जी का मंदिर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेख बीकानेर संपा०, लेखांक ६७३. ९- १४७४ फाल्गुन सुदि ८ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही वही, लेखांक ६७४. १०- १४७४ फाल्गुन ......... सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर नेमिनाथ जिनालय, वीसनगर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १ लेखांक ५२१. ११- १४७५ ज्येष्ठ वदि ११ रविवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर खरतगच्छीय बड़ा मंदिर, मुनि कांतिसागर, संपा०, उत्कीर्ण लेख तूलपट्टी, कलकत्ता जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ७३ १२- १४७५ ज्येष्ठ वदि ११ रविवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जीवनदास जी का घर देरासर, पूरनचन्द नाहर, संपा०, हरीसन रोड, कलकत्ता जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३१ १३- १४७६ वैशाख वदि १ शनिवार चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेख बीकानेर लेखांक ६८० १४. १४७७ चैत्र सुदि ५ सोमवार आदिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, वही, लेखांक ६८६ उत्कीर्ण लेख बीकानेर Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५. १४७७ मार्गशीर्ष वदि ३ वही वही, लंखांक ६८८ १६. १४७७ मार्गशीर्ष वदि ४ अनुपूर्ति लेख, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ६१५ वही, लेखांक ६१७ १७. १४७८ माघ सुदि ९ वही १८ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अभिनन्दनस्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८. १४७९ माघ वदि ४ कुन्थुनाथ देरासर, वडनगर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग १, लेखांक ७५२ वही, भाग २, लेखांक २८६ १९. १४७९ माघ सुदि ७ शुक्रवार संभवनाथ देरासर, मीयागाम २०. १४८० ज्येष्ठ सुदि ५ २१. १४८० तिथि-वार विहीन कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ जिनालय, मेहता जी की वही, भाग २, लेखांक १७९ पोल, बड़ोदरा चिन्तामणि जी का मन्दिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक ७०२ वही वही, लेखांक ७०६ २२. १४८० " मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्श्वनाथ जिनालय, ईडर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग १, लेखांक १४८२ जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५४६ गौडी पार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर शांतिनाथ जिनालय, वीरमगाम २३. १४८१ माघ सुदि १० श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २४. १४८१ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २५. १४८१ सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २६. १४८१ फाल्गुन सुदि ३ पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २७. १४८१ तिथि/मिति/वारविहीन आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २८. १४८२ फाल्गुन सुदि २ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २९. १४८२ फाल्गुन सुदि ३ शनिवार महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३०. १४८२. फाल्गुन सुदि १५ सुमतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैन देरासर, सौदागर पोल, अहमदाबाद अनुपूर्ति लेख, आबू प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १२५ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७८९ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ६१९ जैनलेखसंग्रह भाग २, लेखांक १४२१ बीकानेरजैनलेखसंग्रह लेखांक ७२० शांतिनाथ जिनालय, दादावाडी, लश्कर, ग्वालियर चिन्तामणिजी का मन्दिर, ग्वालियर प कसागर जी व कोटा प्रतिष्ठालेखसंग्रह लेखांक २३७ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेयांसनाथ जिनालय, फताशाह की पोल, अहमदाबाद पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर चौमुख जी देरासर, ईडर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३७६ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १८७२ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४२६ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २२३५ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२९८ वही, भाग १, लेखांक ५६४ शांतिनाथ जिनालय, देशनोंक ३१. १४८२ तिथि/मिति/वारविहीन विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८३ मार्गशीर्ष वदि ७ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८३ माघ सुदि १० बुधवार चन्द्रप्रभ की धातु-प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३४. १४८३ तिथि/ मिति/वारविहीन वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३५. १४८४ वैशाख सुदि ३ पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३६. १४८४ " विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३७. १४८४ " धर्मनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३८. १४८४ मितिविहीन शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद चौमुखजी देरासर, वडनगर वही, भाग १, लेखांक ५३३ कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, वीसनगर वीरचैत्य के अन्तर्गत आदिनाथ चैत्य, थराद दौलतसिंह लोढ़ा, संपा०, श्रीजैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १६९ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९. १४८४ शिलालेख बावन जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९८० ४०. १४८५ वैशाख सुदि ३ बुधवार सुविधिनाथ की प्रतिमा पर . उत्कीर्ण लेख भूगर्भगृह में संरक्षित नंदीश्वर पट्ट पर उत्कीर्ण लेख ४१. १४८५ " ४२. १४८५ वैशाख सुदि ३ बुधवार सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, वही, भाग १, नाडोल लेखांक ८३६ बावन जिनालय, उदयपुर वहीं, भाग २, लेखांक १९७२ एवं प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५३३ पद्मप्रभ जिनालय, नाडोल मुनि जिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३६८ आदिनाथ जिनालय, सांडेसर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४७७ पार्श्वनाथ जिनालय, करेडा प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १३४ विमलनाथ जिनालय, संघवीपाडा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ७८६ ४३. १४८५ ज्येष्ठ सुदि १३ मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ४४. १४८५ ४५. १४८५ माघ सुदि १० शनिवार Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६. १४८५ तिथिविहीन ४७. १४८५ ४८. १४८५ " ४९. १४८५ तिथिविहीन २२ सुपार्श्वनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुंथुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वर्धमान स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, जैनलेखसंग्रह, भाग २, दिलवाडा लेखांक २०१७ वीर जिनालय, रीजरोड, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ९८२ विमलवसही, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक १६ कुंथुनाथ जिनालय, रांगडीचौक, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक १६९६ चिंतामणि जी का मंदिर, वही, लेखांक ७३० बीकानेर शांतिनाथ जिनालय, छाणी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, बड़ोदरा भाग २, लेखांक २६३ चन्द्रप्रभ जिनालय, सुल्तानपुरा, वही, भाग २, लेखांक १९२ बड़ोदरा जैन मंदिर, ऊंझा वही, भाग १, लेखांक २०२ ५०. १४८६ वैशाख सुदि १० ५१. १४८६ " बुधवार ५२. १४८६ " ५३. १४८६ माघ सुदि ४ शनिवार ५४. १४८६ तिथिविहीन वही वही, भाग १, लेखांक १५० Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५. १४८६ ५६. ५७. ५८. ५९. ६१. ६२. 77 १४८७ मार्गशीर्ष सुदि ५ १४८७ मार्गशीर्ष सुदि ...? १४८७ पौष सुदि ५ १४८७ माघ सुदि ७ १४८७ माघ .....? १४८८ वैशाख सुदि ६ संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २३ शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजीतनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, उत्कीर्ण लेख मालपुरा सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, चौकसी पोल, खंभात वीर जिनालय, झवेरीबाड़, अहमदाबाद मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, पटोलिआ पोल, बडोदरा १४८८ वैशाख सुदि ७ शनिवार मल्लिनाथ की प्रतिमा पंचतीर्थी पर उत्कीर्ण लेख चौमुखजी का देरासर, अहमदाबाद जैनमंदिर, साहूकार पेठ, मद्रास शांतिनाथ जिनालय, कनासानो पाडो, पाटण आदिनाथ जिनालय, गागरडू वही, भाग २, लेखांक ८४८ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८४८ वहीं, भाग २, लेखांक ८८ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक २६८ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४४ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०७५ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३१३ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक २७० Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३. ६४. ६५. ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. १४८८ वैशाख ....? १४८८ १४८८ ज्येष्ठ सुदि ५ रविवार १४८८ ज्येष्ठ वदि ४ शनिवार सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८८ मार्गशीर्ष वदि २ १४८८ २४ मल्लिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८८ १४८८ कार्तिक सुदि २ सोमवार अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मार्गशीर्ष वदि ५ गुरुवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन सुदी ८ जिनालय के द्वार पर उत्कीर्ण लेख मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, पटोलिया पोल, बडोदरा शांतिनाथ जिनालय, माणेकचौक, खंभात संभवनाथ जिनालय, मीयागाम मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच महावीर जिनालय, रीजरोड, अहमदाबाद आदिनाथ जिनालय, वासा जैन मंदिर, भीलड़िया तीर्थ बावन जिनालय, उदयपुर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८६ वही, भाग २, लेखांक ९९३ वही, भाग २, लेखांक २८५ वही, भाग २, लेखांक ३२८ वही, भाग १, लेखांक ९५२ मुनि जयन्त विजय जी, संपा० अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५३१ श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३७३ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९८३ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७. १४८८ १४८८ तिथि/मिति / वारविहीन १४८९ १४८९ १४८९ १४८९ १४८९ ज्येष्ठ वदि ११ ज्येष्ठ वदि १० शुक्रवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आषाढ़ वदि १० आषाढ़ सुदि ५ शांतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आषाढ़ सुदि ८ पार्श्वनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, माणेक चौक, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०२० खंभात मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा अजितनाथ देरासर, सुतार की खड़की, अहमदाबाद शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर आदिनाथ जिनालय, हद्राणा अजितनाथ जिनालय, तारंगा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक २७३ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३३७ प्राचीन लेखसंग्रह, लेखांक १४७ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०२९ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक १९९ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७३१ अजितनाथ जिनालय, वेजलपुरा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भरुच भाग २, लेखांक ३६१ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८. १४८९ तिथिविहीन कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०६७. एवं प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १४८ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३५. ७९. १४८९ ” महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८०. १४९० वैशाख वदि ७ वही, भाग २, लेखांक ६५९. विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख दादा पार्श्वनाथ देरासर, नरसिंहजी की पोल, बड़ोदरा सुविधिनाथ जिनालय, शेरडीवाला की पोल, खंभात शांतिनाथ जिनालय, राधनपुर संभवनाथ देरासर, ८१. १४९० वैशाख सुदि ३ पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८२. १४९० मार्गशीर्ष वदि ५ सोमवार चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८३. १४९० फाल्गुन सुदि. ११ वर्धमानस्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १४९ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२. पादरा पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाडो, अहमदाबाद वही, भाग १, लेखांक १०५५ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ ८४. १४९१ वैशाख सुदि ६ गुरुवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८५. १४९१ वैशाख सुदि ६ गुरुवार सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८६. १४९१ आषाढ़ वदि ७ सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वही । प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १५५. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०७४. वही, भाग २, लेखांक ११८१ एवं प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक २८३. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २५२. ८७. १४९१ आषाढ़ सुदि २ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही, लेखांक २५३. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, लेखांक २५४. ९०. १४९१ आषाढ़...१३...? चौमुख जी देरासर, अभिनन्दनस्वामी की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४१९. ईडर Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ९१. १४९१ माघ सुदि ५ पद्मप्रभ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९२. १४९१ फाल्गुन वदि ५ मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, चौकसीपोल, खंभात वीरजिनालय, रीजरोड, अहमदाबाद मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वर्धमानस्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक २८४. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८१३. वही, भाग १, लेखांक ९६४. ९३. १४९२ वैशाख सुदि २ ९४. १४९२ ज्येष्ठ वदि ११ शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १५९ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०७६. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२१८. वही, लेखांक १३१६. वीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर ९५. १४९२ आषाढ़ सुदि ११ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९६. १४९३ वैशाख सुदि ३ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९७. १४९३ ज्येष्ठ वदि १२ रविवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर अनन्तनाथ जिनालय, काथाबाजार जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ६९. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८. १४९३ तिथिविहीन कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, खेरालु महावीर स्वामी का मंदिर, बीकानेर ९९. १४९३(?) तिथि नष्ट शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७४९. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १३२५. श्रीजैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १६३. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३०२. १००. १४९३ तिथिविहीन आदिनाथ जिनालय, थराद १०१. १४९४ माघ सुदि ५ १०२. १४९४ तिथिविहीन वही. लेखांक ३०७. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर स्वामी की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पाषाण की जिन पट्टिका पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भौयरे में रखी आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ जिनालय, सिरोही पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़ता रोड बावनजिनालय, उदयपुर कुन्थुनाथ जिनालय, बडनगर १०३. १४९४ । १०४. १४९४ तिथिविहीन जैनलेखसंगह, भाग २, लेखांक १६९८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५६९. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९७१. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १६६. १४९४ तिथिविहीन बावन जिनालय, उदयपुर १०६. १४९४ । जैनमंदिर, पाटडी Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० १०७. १४९४ आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, देलवाड़ा प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १६७. १०८. १४९४ " शिलालेख पित्तलहर, आबू १०९. १४९४ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४३०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ७७२. वही, लेखांक ७७३. ११०. १४९५ १११. १४९५. ज्येष्ठ वदि ६ जैनमंदिर, ग्राम चवेली सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वर्धमान स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ११२. १४९५ ज्येष्ठ सुदि १४ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८३. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १४०२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३१०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ७८३. ११३. १४९५ पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों की गवाड़, बीकानेर उपकेशगच्छीय शांतिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर सुदि १३ ११४. १४९५ ज्येष्ठ सुदि १४ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५. १४९५ तिथिनष्ट ११६. १४९६ ११७. १४९६ ११८. १४९६ तिथिविहीन ११९. १४९६ १२०. १४९६ १२१. १४९६ वैशाख सुदि १३ माघ सुदि ५ १२२. १४९६ " 77 " "" विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३१ सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रशस्ति लेख संभवनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, शांतिनाथदेरासर, उपला गभारा, अहमदाबाद आदिनाथ जिनालय, खेरालु वीरजिनालय, रीजरोड, अहमदाबाद चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर त्रैलोक्यदीपक प्रासाद, राणकपुर शांतिनाथ जिनालय, रतलाम अनुपूर्तिलेख, आबू वही, लेखांक ७८५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११३२. वही, भाग १, लेखांक ७६२ वही, भाग १, लेखांक ९६७. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ७८६. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३०७ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७००. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३१६. अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक ६२९. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३. १४९७ चैत्र सुदि........? प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३१७. १२४. १४९७ माघ सुदि ४ सोमवार वहीं, लेखांक ३२३. पंचायतीमंदिर, जयपुर केशरियानाथ मंदिर, भैंसरोडगढ़ वीरजिनालय, रीजरोड, अहमदाबाद १२५. १४९७ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २७०. १२६. १४९७ तिथिविहीन मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मूलनायक आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ जिनालय, सिरोही १२७. १४९८ " चौमुखजी देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद अनुपूर्तिलेख, आबू १२८. १४९९ मार्गशीर्ष सुदि २ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३२४. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८९४. अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ६३०. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५५३. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३२९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १६५. १२९. १४९९ माघ सुदि ५ १३०. १४९९ गौडीपार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर संभवनाथ जिनालय, अजमेर जैनमंदिर, ऊंझा १३१. १४९९ माघ सुदि ६ सोमवार कुन्थुनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ सोमसुन्दरसूरि के विशाल शिष्य परिवार में कई प्रसिद्ध विद्वान् और प्रभावक आचार्य हुए हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : १. मुनिसुन्दरसूरि - सोमसुन्दरसूरि के प्रथम शिष्य और पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि अपने युग के प्रख्यात् आचार्यों में एक थे। वि०सं० १४२६ अथवा वि०सं० १४३६ में इनका जन्म हुआ। वि० सं० १४४३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, वि०सं० १४६६ में इन्हें वाचक पद प्राप्त हुआ। वि०सं० १४७८. में सोमसुन्दरसूरि ने इन्हें सूरि पद प्रदान किया और वि० सं० १५०३ में इनकी मृत्यु हुई। इनके सम्बन्ध में आगे विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। २. भावसुन्दर - इन्होंने उज्जैन में 'पानविहारमंडन महावीरस्तवन' २६ की रचना की। इनके बारे में विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है। ३. भुवनसुन्दरसूरि - इनके द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं -- १. परब्रह्मोत्थापन स्थलवाद २. महाविद्याविडंबनवृत्ति ३. महाविद्याविडंबनटिप्पणविवरण ४. लघुमहाविद्याविडंबन ५. व्याख्यान ४. जयचन्द्रसूरि - इनके द्वारा रचित प्रत्याख्यानस्थानविवरण, सम्यकत्त्वकौमुदी और प्रतिक्रमणविधि नामक कृतियां३८ प्राप्त हुई हैं। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें भी पर्याप्त संख्या में प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १४९६ से वि० सं० १५०६ तक की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-- वि०सं० १४९६ १ प्रतिमालेख वि०सं० १५०० १ प्रतिमालेख वि०सं० १५०२ ५ प्रतिमालेख वि०सं० १५०३ १७ प्रतिमालेख वि० सं० १५०४ ९ प्रतिमालेख वि०सं० १५०५ १७ प्रतिमालेख वि०सं० १५०६ १ प्रतिमालेख जयचन्द्रसूरि के शिष्ध जिनहर्षगणि हुए जिनके द्वारा रचित वस्तुपालचरित (वि०सं० १४९७), रमणसेहरीकहा, विंशतिस्थानप्रकरण (विचारामृतसंग्रह), प्रतिक्रमणविधि (वि०सं० १५२५), आरामशोभाचरित्र, अनघराघववृत्ति, अष्टभाषामय सीमंधरजिनस्तवन आदि कृतियां मिलती हैं।३० जिनहर्षगणि की शिष्यसंतति में साधुविजय, शुभवर्धन आदि मुनि हुए। दीपमालिकाकल्प (रचनाकाल वि०सं० १४८३) के रचनाकार जिनसुन्दरसूरि भी सोमसुन्दरसूरि के ही शिष्य थे। सोमसुन्दरसूरि के एक शिष्य अमरसुन्दर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ मिलती किन्तु अमरसुन्दर के शिष्य धीरसुन्दर ने वि०सं० १५०० के लगभग आवश्यक नियुक्ति पर अवचूरि ? की रचना की । सोमसुन्दरसूरि के एक अन्य शिष्य जिनकीर्तिसूरि हुए जिनके द्वारा रची गयी विभिन्न कृतियाँ २ मिलती हैं जो इस प्रकार हैं। -- नमस्कारस्तवन पर स्वोपज्ञवृत्ति (रचनाकाल-1 उत्तमकुमारचरित्र शीलगोपालकथा चम्पक श्रेष्ठिकथा १. २. ४. ५. ६. ७. ८. पंचजिनस्तवन धन्यकुमारचरित्र (रचनाकाल-वि०सं० १४९७) दानकल्पद्रुप श्राद्धगुणसंग्रह तपागच्छ के ५२वें पट्टधर रत्नशेखरसूरि भी सोमसुन्दरसूरि के ही शिष्य थे। सोमसुन्दरसूरि के अन्य शिष्यों में सोमदेवसूरि ४३, सुधानन्दनसूरि, जिनमंडनगणि, रत्नहंसगणि, साधुराजगणि, विवेकसमुद्र, प्रतिष्ठासोम आदि का नाम मिलता है। सोमसुन्दरसूरि के शिष्य परिवार को एक तालिका के रुप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है ... सोमसुन्दरसूरि · मुनिसुन्दरसूरि भावसुन्दर भुवनसुन्दरसूरि ल - वि० सं० १४९४) जिनसुन्दर जयचन्द्रसूरि अमरसुन्दर जिनकीर्ति सोमदेवसूरि सुधानंदन जिनमंडनगणि रत्नहंसगणि साधुजगणि विवेकसमुद्र प्रतिष्ठासोम जिनहर्षगणि साधुविजय धीरसुन्दर शुभवर्धन Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ मुनिसुन्दरसूरि-तपागच्छीय आचार्य सोमसुन्दरसूरि के प्रतिभासम्पन्न पट्टधर और शिष्य मुनिसुन्दरसूरि के प्रारम्भिक जीवन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है पट्टावलियों के अनुसार वि०सं० १४२६ या १४३६ में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १४४३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १४६६ में वाचक पद प्राप्त किया। वि० सं० १४७८ में वड़नगर में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ और वि०सं० १५०३ में इनका निधन हुआ। ४४ इनके द्वारा रचित कृतियाँ" इस प्रकार हैं। : १. त्रैविद्यगोष्ठी (वि० सं० १४५५ / ई०स० १३९८-९९) २. अध्यात्मकल्पद्रुम अपरनाम शांतसुधारस (वि०सं०१४५५ / ई०स० १३९८-९९) ३. त्रिदशतरंगिणी (वि० सं० १४६६ / ई०स० १४१०) यह महाविज्ञप्तिपत्र मुनिसुन्दरसूरि देवसुन्दरसूरि के पास भेजा था। १०८ हाथ लम्बे इस विज्ञप्तिपत्र का केवल वालाअंश ही आज प्राप्त हो सका है। ने गुर्वावली ४. चतुर्विंशतिस्तोत्ररत्नकोश १४२७) ५. जयानन्दचरित (वि०सं० १४८३ / ई०स० ६. मित्रचतुष्ककथा ( वि० सं० १४८४ / ई०स० १४२८) ७. उपदेशरत्नाकर स्वोपज्ञवृत्ति के साथ (वि०सं० १४९३ / ई०स० १४३७) ८. संतिकरथोत्त (शंतिकरस्तोत्र) (वि०सं० १४९३ अथवा १५०३) ९. सीमंधरस्तुति १०. पाक्षिकसत्तरी ११. योगशास्त्र के चतुर्थ प्रकाश पर बालावबोध इसके अलवा इनके द्वारा रचित कुछ स्तवन भी मिलते हैं जो इस प्रकार हैं: १. चतुर्विंशतिजिनकल्याणकस्तवन २. जीरापल्लीपार्श्वनाथस्तवन (रचनाकाल वि०सं० १४७३ / ई०स०१४१७) ३. शत्रुंजयश्री आदिनाथस्तोत्र ( वि०सं० १४७६ / ई० स० १४२० ) ४. गिरनारमौलिमण्डन श्रीनेमिनाथस्तवनम् (वि०सं० १४७६ / ई०स० १४२०) ५. शत्रुंजय आदिनाथस्तवन (वि०सं० १४७६ / ई० स० १४२०) ६. वृद्धनगरस्थ आदिनाथस्तवनम् ७. सारणदुर्ग अजितनाथस्तोत्रम् ८. इलादुर्गालंकार श्रीऋषभदेवस्तवनम् ९. सीमंधरस्वामिस्तवनम् (वि० सं० १४८२ / ई०स० १४२६ ) १०. वर्धमानजिनस्तवनम् ११. श्रीजिनपतिद्वात्रिंशिका (वि०सं० १४८३ / ई०स० १४२७) शांतिनाथ जिनालय, जावर (उदयपुर) के वि० सं० १४७८ पौष सुदि ५ के प्रशस्तिलेख ४७ में सोमसुन्दरसूरि, जयचन्द्र, भुवनसुन्दर, जिनसुन्दर, जिनकीर्ति, विशालराज, रत्नशेखर, उदयनंदि, लक्ष्मीसागर, सत्यशेखरगणि, सुरसुन्दरगणि आदि मुनिजनों के साथ मुनिसुन्दरसूरि का भी नाम मिलता है। ठीक यही बात जीरावला स्थित विभिन्न जिनालयों के देवकुलिकाओं पर Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्कीर्ण वि०सं० १४८३ वैशाख सुदि८७ और भाद्रपद वदि ७ के कई लेखों के बारे में कही जा सकती है। यहाँ भी सोमसुन्दरसूरि, जयचन्द्र, भुवनसुन्दर और जिनसुन्दर के साथ मुनिसुन्दरसूरि का उल्लेख है। यही बात उक्त तीर्थ पर निर्मित महावीर जिनालय के देहरी क्रमांक ७ पर उत्कीर्ण वि०सं० १४८७ पौष सुदि २ रविवार के शिलालेख " में भी दिखाई देती है। आचार्य मुनिसुन्दरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि० सं० १४८९ से लेकर वि०सं० १५०१ तक की है। इनका विवरण निम्नानुसार है: Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७ लेख सम्वत् तिथि/मिति/वार प्रतिमा लेख/शिलालेख प्रतिष्ठास्थान संदर्भ ग्रन्थ क्रमांक १. १४८९ वैशाख सुदि ३ मनमोहनपार्श्वनाथ जिनालय, जीरारवाडो, खंभात पार्श्वनाथ देरासर, लाडोल जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ७५९. वहीं, भाग १, लेखांक ४६५. शाख वाद ४ २. १४९७ वैशाख वदि ४ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३. १४९९ आश्विन सुदि १० ४. १४९९ तिथिविहीन महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ५. १५०० वैशाख सुदि५ गुरुवार अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ मुख्य बावनजिनालय, वही, भाग २, लेखांक ४६४. मातर पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाडो, वही, भाग १,लेखांक १०७५. अहमदाबाद शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग १, लेखांक ३१४. कनासानो पाडो, पाटण श्री स्वामीजी का मंदिर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, रोशनमुहल्ला, आगरा लेखांक १४६१. शांतिनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंह, शेखनो पाडो, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १०४२. शांतिनाथ जिनालय, देशनोंक बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २२३६. ६. १५०० " चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ७. १५०० तिथिविहीन वर्धमान स्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८. १५०१ वैशाख वदि५ सोमवार Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ बालावसही, शत्रुजय शजयवैभव, लेखांक ९०. ९. १५०१ वैशाख सुदि २ शनिवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०. १५०१ ” शीतलनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भीड़भंजनपार्श्वनाथ जिनालय, खेड़ा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५०. ११. १५०१ वैशाख सुदि ३ संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, पूना प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १८६. वहीं, लेखांक १९०. १२. १५०१ ज्येष्ठ वदि ९ रविवार गौड़ीजी भंडार, उदयपुर १३. १५०१ ज्येष्ठ सुदि १० वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अभिनंदन स्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, इतवारीबाजार, नागपुर घर देरासर, ऊंझा १४. १५०१ जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ९६. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २१०. जैनलेखसंग्रह, भाग १. लेखांक ७०४. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५३३. १५. १५०१ " त्रैलोक्यदीपक प्रासाद, राणकपुर १६. १५०१ ज्येष्ठ सुदि...? आदिनाथ जिनालय, वासा अभिनन्दनस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९ १७. १५०१ आषाढ़ सुदि २ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८. १५०१ " १९. १५०१ मार्गशीर्ष सुदि १० शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २०. १५०१ माघ वदि ५ गुरुवार संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ८१७. चंद्रप्रभ जिनालय, सेंडहर्स्ट रोड, जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ९४. सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २१८२. गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उदयपुर लेखांक ११२६. एवं प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १८० चिंतामणिजी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक ८४९. वही. वही, लेखांक ८५०. २१. १५०१ माघ वदि ६ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २२. १५०१ " २३. १५०१ माघ वदि ६ विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही. वही, लेखांक ८५२. २४. १५०१ फाल्गुन वदि ३ बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, लेखांक ९२. Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० २५. १५०१ फाल्गुन वदि ५ पार्श्वनाथ जिनालय, नौहर शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २४७६. २६. १५०१ तिथिविहीन वही, लेखांक ८३७. नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही. २७. १५०१ वही, लेखांक ८३८. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ शिष्यपरिवार - सोमसुन्दरसूरि के शिष्य रत्नशेखरसूरि और जयचन्द्रसूरि जिनका पूर्व में परिचय दिया जा चुका है, मुनिसुन्दरसूरि के आज्ञानुवर्ती थे। मुनिसुन्दरसूरि के निधन के पश्चात् रत्नशेखरसूरि उनके पट्टधर बने । मुनिसुन्दरसूरि के एक शिष्य संघविमल हुए, जिन्होंने वि०सं० १५०२ / ई०स० १४४५ में सुदर्शन श्रेष्ठीरास की रचना की। उनके दूसरे शिष्य हर्षसेन द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती किन्तु हर्षसेन के शिष्य हर्षभूषण द्वारा रचित श्राद्धविधिविनिश्चय (रचनाकाल वि०सं० १४८० / ई०स० १४२४), अंचलमतदलन, पर्युषणाविचार (रचनाकाल वि०सं० १४८६ / ई०स० १४२९) तथा वाक्यप्रकाश औक्तिकटीका नामक कृति प्राप्त होती है ।" " मुनिसुन्दरसूरि के तीसरे शिष्य विशालराज द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्यों-प्रशिष्यों का विभिन्न रचनाओं के कर्ता एवं प्रतिलिपिकार के रूप में नाम मिलता है । ३ इनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है : १. विवेकसागर - इनके द्वारा रचित हरिशब्दगर्भित वीतरागस्तवन नामक कृति प्राप्त होती है। २. मेरुरनगणि- इनके शिष्य संयममूर्ति का प्रतिलिपिकार के रूप में उल्लेख मिलता है। ३. कुशलचारित्र - इनके शिष्य रंगचारित्र द्वारा वि०सं० १५२९ में प्रतिलिपि की गयी क्रियाकलाप की प्रति प्राप्त हुई है। ४. सुधाभूषण इनके एक शिष्य जिनसूरि द्वारा रचित गौतमपृच्छाबालावबोध (रचनाकाल वि०सं० १५०५ के आसपास), प्रियंकरनृपकथा, रूपसेनचरित्र आदि कृतियाँ प्राप्त होती हैं। सुधाभूषण के दूसरे शिष्य कमलभूषण द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती किन्तु इनके शिष्य विशालसौभाग्यगणि द्वारा वि०सं० १५९५ में लिखी गयी कल्पसूत्र की प्रति सिनोर के जैनज्ञान भंडार में संरक्षित है । ५४ मुनिसुन्दरसूरि के चौथे शिष्य शिवसमुद्रगणि हुए। इनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है किन्तु इनके शिष्य विमलगण द्वारा वि०सं० १५१७ में लिखित नेमिनाथचरित्र की एक प्रति पाटण के ग्रन्थभंडार से प्राप्त हुई है ऐसा मुनि चतुरविजयजी ने उल्लेख किया है। "" Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. संदर्भ मुनिसुन्दरसूरिकृत गुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १४६६ / ई०स० १४१०) श्लोक ८०-९६. यशोविजय जैनग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४, वाराणसी वीरसम्वत् २४३७, पृष्ठ ८-१०. मुनि प्रतिष्ठासोम, सोमसौभाग्यपट्टावली (रचनाकाल वि० सं० १५२४ / ई०स० १४६८) मुनिदर्शनविजय, संपा०-पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, श्रीचारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २२, वीरमगाम १९३३ ई०, पृष्ठ ३५-४०. धर्मसागर उपाध्याय, “श्रीतपागच्छपट्टावली - स्वोपज्ञ वृत्ति सहित " ( रचनाकाल वि०सं० १६४६ / ई०स० १५९० ) पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृष्ठ ५७. कल्याण विजयगणि, संपा०पट्टावलीपरागसंग्रह, जालोर १९६६ ई० स०, पृष्ठ १४५-४६. मुनि जिनविजय जी द्वारा संपादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह - (सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१ ई० ) में भी तपागच्छ और उसकी कुछ शाखाओं की पट्टावलियां प्रकाशित हैं। तपागच्छ पट्टावली, वृद्धपौशालिक पट्टावली, लघुपौशालिक अपरनाम हर्षकुलशाखा या सोमशाखा की पट्टावली, विजयानंदसूरिशाखा अपरनाम आनंदसूरिशाखा की पट्टावली, तपागच्छ विमलशाखा की पट्टावली, तपागच्छ सागरशाखा की पट्टावली, तपागच्छ-रत्नशाखा अपरनाम राजविजयशाखा की पट्टावली, कमलकलशशाखा की पट्टावली, कुतुबपुराशाखा की पट्टावली, तपागच्छ - विमलसंविग्न, सागरसंविग्न और विजयसंविग्न शाखा की पट्टावलियां । उक्त सभी पट्टावलियों के लिये द्रष्टव्य मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगुर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग ९, संपा० - जयन्त कोठारी, मुम्बई १९९७ ई०, पृष्ठ ४४-११४. क्रमात् प्राप्त तपाचार्येत्यभिख्या भिक्षुनायकाः । समभूवन् कुले चान्द्रे, श्रीजगच्चन्द्रसूरयः ।। जगज्जनितबोधानां तेषां शुद्धचरित्रिणाम् । विनेयाः समजायन्त, श्रीमद्देवेन्द्रसूरयः ॥ स्वान्ययोरुपकाराय, श्रीमद्देवेन्द्रसूरिणा । स्वोपज्ञशतकटीका, सुबोधेयं विनिर्ममे ।। विबुधवरधर्मकीर्ति श्रीविद्यानन्दसूरिमुख्यबुधैः । स्वपरसमयैककुशलैस्तदैव संशोधिता चेयम् ।। यद् गदितमल्पमतिना, सिद्धान्तविरुद्धमिह किमपि शास्त्रे । विद्वद्भिस्तत्त्वज्ञैः प्रसादमाधाय तच्छोध्यम् ।। स्वोपज्ञशकटीकां कृत्वेमां यन्मयाऽर्जितं सुकृतम् । " Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ अ. ३ ब. ४३ ध्रुवबन्धादिविमुक्तः, समस्तु सर्वोऽपि तेन जनः || 11 देवेन्द्रसूरिकृत नव्यपंचकर्मग्रन्थ की प्रशस्ति- संपा० - विजयानंदसूरि के शिष्य कांतिविजय के शिष्य प्रवर्तक चतुरविजय, श्रीआत्मानन्द जैन रत्नग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ८९. भावनगर वि०सं० १९९६ / ई० सन् १९४०, पृ० १३७ चित्तावालगच्छिक्कमंडणं जयइ भुवणचंदगुरू तस्स विणेओ जाओ गुणभवणं देवभद्दमुणी तप्पयभत्ता जगचंदसूरिणो सिंदुन्नि वरसीसा । सिरिदेविंदमणींदो तहा विजयचंदसूरिवरो इय सुदरिसणाइ कहा नाण- तवच्चरणकारणं परमं मूलकहाउ फुडत्थाभिहिया देविंदसूरीहिं परमत्था बहुरयणा दोगच्चहरा सुन्नका सुनिहि व्व कहा एसा नंदउ विबुहस्सिया सुइरं सुदर्शनाचरित्र की प्रशस्ति ॥४०५०॥ C.D. Dalal, Ed. A Descriptive Catalogue of Manuscripts in the Jaina Bhandras at Pattan, Vol. I, G.O.S. No. LXXVI, Baroda 1937 A.D. P. 208-209. श्रीमच्चैत्रपुरैकमंडनमहावीर प्रतिष्ठाकृतस्तस्मच्चित्रपुरप्रबोधतरणे: श्रीचैत्यगच्छोऽजनि । तत्र श्रीभुवनेंद्रसूरिसुगुरुर्भूभूषणं भासुरज्योतिः सद्गुण-रत्न रोहणगिरिः कालक्रमेणाभवत् ॥ ८ ॥ तत्पादांबुज-मंडनं समभवत् पक्षद्वयीशुद्धिमान् नीर-क्षीरसदृशदूषण-गुण- त्याग-ग्रहैकव्रतः । कालुष्यं च जडोद्भवं परिहरन् दूरेण सन्मानसस्थायी राजमरालवद् गणिवर : श्रीदेवभद्रप्रभु || ९ || शस्याः शिष्यास्त्रयस्तत्पद-सरसिरुहोत्संगशृंगार-भृंगा विध्वस्तानंगभंगा सुविहितविहितोत्तुंगरंगा बभूवुः । तत्राद्यः सच्चरित्रानुमतिकृतमतिः श्रीजगच्चंद्रसूरि : श्रीमद्देवेन्द्रसूरिः सरलतरलसच्चित्तवृत्तिर्द्वितीयः ॥ १०॥ तृतीयशिष्याः श्रुत वारि- वार्द्धयः परीषहाक्षोभ्यमन: - समाधयः । जयंति पूज्या विजयेन्दुसूरयः परोपकारादिगुणौधभूरयः ।। ११ ॥ 1 1 धर्मरत्नवृत्ति की प्रशस्ति Muni Punya Vijaya: Catalogue of Palm Leaf Mss in the Shanti Natha Jaina Bhandar, Cambay, Vol. II. G.O.S. No. 149, Baroda 1966 A.D. Pp. 271-273. ॥४०५१॥ श्रीजैनशासन- नभस्तल - तिग्मरश्मिः श्रीसद्म चांद्रकुल- पद्मविकाशकारी । स्वज्योतिरावृतदिगंबरडंबरोऽभूत् श्रीमान् धनेश्वरगुरुः प्रथितः पृथिव्यां || ७ || 1 ॥४०५२॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ बृहत्कल्पवृत्ति की प्रशस्ति, वही, पृष्ठ ३५४-३५५ 'गुरुपर्वक्रम' श्लोक २६-३०. पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पु०२७ 3D. Muni Punya Vijaya, Ed. Catalogue of Palm-Leaf Mss. in the Shanti Natha Jaina Bhandar. Cambay, Vol. I. G.O.S. No. 136, Baroda, 1962. Pp. 91-92. देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ३९१, कण्डिका ५६०, श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण-स्वोपज्ञवृत्तिसहित की प्रशस्ति Muni Punya Vijaya, Ibid, P.263-265. मुनिसुन्दरकृतगुर्वावली, श्लोक १५१-१६४; १३५- १३६. तपागच्छपट्टावली (धर्मसागर उपाध्याय), पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृष्ठ ५७-५८. ७-८. वही मुनि चतुरविजय जी, संपा० जैनस्तोत्रसंदोह, भाग १, अहमदाबाद १९३२ ई०स०, प्रस्तावना, पृष्ठ ५५-५६. त्रिपुटी महाराज, जैनपरम्परानो इतिहास, भाग ३, श्री चारित्रस्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५६, अहमदाबाद वि०सं० २०२०, पृष्ठ २८३. १०-११. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ ५६-६१. 12. P. Peterson: Third Report of Operation in search of Sanskrit Mss in the Bombay circle, Bombay 1893 A.D. No. 312. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, मुम्बई १९३३ ई०स०, पृष्ठ ४१७, कंडिका ५९७. १३. त्रिपुटी महाराज, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ ४२७. १४. वही, पृष्ठ ४२८. 15. P.Peterson, Fifth Report of Operation in search of Sanskrit Mss in the Bombay circle, Bombay 1896 A.D., No. 216. १६-१७. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग २, खंड १, श्री मुक्तिकमल जैन मोहनमाला, ग्रन्थांक ६४, बड़ोदरा ई०स० १९६८, पृष्ठ ७०-७१.. १८-१९. उपा० धर्मसागरकृत “तपागच्छपट्टावली", पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृष्ठ ६४. 20. Muni Punya Vijaya, Ed. Catalogue of Palm Leaf Mss in the ShantiNatha Jaina Bhandar, Cambay, Vol.I, II, G.O.S. No. 136, 149, Baroda, 1962 and 1966 A.D. मुनि जिनविजय, संपा०-जैनपुस्तकप्रशस्तिसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १८, मुम्बई १९४३ ई० २१-२२. जैनसाहित्यनो.......पृष्ट ४४३, कंडिका ६५२-५३. २२अ. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ४. २३. बुद्धिसागरमूरि, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२०१, भाग Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८. २, लेखांक १२०. २४-२५. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ८४. २६. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग २, खंड १, पृष्ठ ३७९. 27. H.D. Velankar, Jinaratnakosha, Poona 1944. P.299 जैनसंस्कृत साहित्यनो........., पृष्ठ ७९. २९. श्रीअगरचन्द नाहटा ने इसका रचना काल वि०सं० १४७१ के आस-पास बतलाया है। द्रष्टव्य “विक्रमादित्यविषयक जैन साहित्य', जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ९, अंक ४-६, विक्रम विशेषांक, पृष्ठ १८०-१८८. ३०. द्रष्टव्य - संदर्भ क्रमांक १. ३१. जैनसाहित्यनो........, पृष्ठ ४७०, कंडिका ६८९. ३२-३३. वही, पृष्ठ ४५३, पादटिप्पणी क्रमांक ४४०. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ८४-९३. पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृष्ठ ६६. ३६. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ८८. ३७. जैनसाहित्यनो........., पृष्ठ ४६५, कंडिका ६७७. वही, पृष्ठ ४६५, कंडिका ६७६. ३९. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ९०. 40. Jinaratnakosha, P-175. ४१-४२. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ९०. वही, पृष्ठ ९१-९३. ४४. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ३५. __ मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ९३-९५. जैनसाहित्यनो.........., पृष्ठ ४६४-४६५, कंडिका ६७४-६७५. मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, कुशल पुष्प ४, जयपुर १९९० ई०, पृष्ठ १७३-१७४. मुनि विद्याविजय, संपा०-प्राचीनलेखसंग्रह. भावनगर १९२९ ई० लेखांक ११८. दौलतसिंह लोढ़ा, संपा०-श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३०३ बी, ३०४ बी, ३५०, ३६०. वही, लेखांक २८०-२८६, २८९, २९६, ३०८बी, ३१२ एवं अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसन्दोह, लेखांक १३०-१३७, १३९, १४३, १५४ १५८. तथा पूरनचंद नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २७८. ५०. श्रीप्रतिमा.......,लेखांक २७८, तथा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैन........, लेखांक १६१. ५१-५२. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, भाग २, प्रस्तावना पृष्ठ ९५. ५३-५५. वही, पृष्ठ ९५-९६. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - ३ तपागच्छ का इतिहास 1. mix 3 भाग १, खंड १ (रत्नशेखरसूरि से २० वीं शती तक) रत्नशेखरसूरि - आचार्य सोमसुन्दरसूरि के शिष्य, मनिसन्दरसूरि के आज्ञानुवर्ती तपागच्छ के ५५ वें पट्टधर आचार्य रत्नशेखरसूरि का जन्म वि०सं० १४५७ (अन्य मतानुसार १४५२) में हुआ था, वि०सं० १४६३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, वि० सं० १४८३ में पंडित पद प्राप्त किया। वि० सं० १४८३ में वाचक पद और वि०सं० १५०२ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये। मुनिसुन्दरसूरि के वि०सं० १५०३ में निधन होने के पश्चात् इन्होंने तपागच्छ का नायकत्त्व ग्रहण किया। वि०सं० १५१७ में इनकी मृत्यु हुई।' इनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं, जो इस प्रकार हैं: १. षडावश्यकवृत्ति २. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र पर अर्थदीपिका नामक वृत्ति (इसका संशोधन लक्ष्मीभद्रगणि ने किया) श्राद्धविधिवृत्ति - विधिकौमुदी (वि० सं० १५०६) रत्नचूड़रास (वि०सं० १५१० के आसपास) आचारप्रदीप (वि०सं० १५१६) (जिनहंसगणि ने इसके प्रणयन और संशोधन में सहायता की) लघुक्षेत्रसमास - अवचूरि हेमव्याकरण पर अवचूरि प्रबोधचन्द्रोदयवृत्ति मेहसाणामंडनपार्श्वनाथस्तवन १०. नवखंडपार्श्वनाथजिनस्तवन ११. अर्बुदाद्रिमंडनपावनमिस्तवन १२. चतुर्विंशतिजिनस्तवन पार्श्वस्तवन दशवैकालिकसूत्र की वि०सं० १५११ में लिखी गयी प्रति की पुष्पिका से ज्ञात होता है कि इनके उपदेश से हाथादि परिवार ने एक लाख श्लोक परिमाण ग्रन्थों का प्रतिलेखन कराया था। इन्हीं के उपदेश से वि०सं० १५१५ में श्रावक जइता और उसकी भार्या जयतलदेवी द्वारा विद्वद्जनों के पठनार्थ पुष्पमालाप्रकरण की प्रतिलिपि करायी गयी। रत्नशेखरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०स० १५०२ से १५१७ तक की है। इनका विवरण तालिका के रुप में प्रस्तुत है ... w gv Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रत्नशेखरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध सलेख जिनप्रतिमाओं की विस्तृत तालिका Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३५८. ४८ क्रमांक वि० सं० तिथि/मिति/वार लेख का स्वरूप वर्तमान प्राप्ति प्रतिमालेख/शिलालेख स्थान १५०२ वैशाख वदि ५ कुन्थुनाथ की पंचतीर्थी चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २. १५०२ सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर १५०३ माघ सुदि १३ विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ चैत्य, थराद उत्कीर्ण लेख ४. १५०४ मितिविहीन सुपार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, नागौर उत्कीर्ण लेख जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११४६. श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक २१.. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ३८५ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२४९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३९६. वहीं, भाग १, लेखांक ९९२. ५. १५०६ वैशाख सुदि ६ शांतिनाथ जिनालय, नदियाड ६. १५०६ अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वीर जिनालय, रीजरोड, अहमदाबाद. ७. १५०६ वैशाख सुदि...? कुन्थुनाथ जिनालय, मांडवीपोल, वही, भाग २, खंभात लेखांक ६४०. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. १५०६ ९. १५०६ १०. १५०६ ११. १५०६ १२. १५०६ वैशाख.....? सुवधिनाथ की प्रतिमा पर अनुपूर्ति लेख, आबू, अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ६३९. वैशाख वदि ५ गुरुवार नेमिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक ८९८. फाल्गुन सुदि ९ अजीतनाथ की धातु की पंचतीर्थी चन्द्रप्रभ जिनालय, कोटा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ४११. फाल्गुन सुदि ९. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा शांतिनाथ जिनालय, पादरा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, शुक्रवार पर उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक १७. फाल्गुन सुदि ९ शत्रुजय-गिरनारवतारपट्टिका बावन जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १९७० एवं प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २२१. तिथिविहीन आदिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनउत्कीर्ण लेख लाज लेखसंदोह, लेखांक ४७८. कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक ८९७. चैत्र वदि ५ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर अनुपूर्ति लेख, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ६४०. १३. १५...६ १४. १५०६ १५. १५०७ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० १६. १५०७ १७. १५०७ सविधिमा १८. १५(०)७ १९. १५०७ ज्येष्ठ वदि ७ गुरुवार नमिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, हनुमानगढ़ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक २५२९. ज्येष्ठ सुदि ९ सुविधिनाथ की प्रतिमा पर जैनमंदिर, मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख शबूंजय लेखांक ११२. आषाढ़ वदि ८ रिक्त जैनमंदिर में दरवाजे के रिक्त जैन मंदिर, मानपुर अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखऊपर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसमें संदोह, लेखांक ४२. आदिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठापित कराने की बात कही गयी है। माघ सुदि ५ सुमतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी विमलनाथ जिनालय, बेंतेड प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ४२१. माघ सुदि ५ शुक्रवार कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर स्तम्भन पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खारवाड़ो, खंभात भाग २, लेखांक १०४७. माघ सुदि ११ बुधवार शांतिनाथ की खंडित प्रतिमा पर जैनमंदिर, किले के अन्दर, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखउत्कीर्ण लेख बसन्तगढ़, सिरोही-राजस्थान संदोह, लेखांक ४४६ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९५४. माघ............? जैनमंदिर, भीलड़िया तीर्थ दौलतसिंह लोढा, संपा०, जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३३८. २०. १५०७ २१. १५०७ २२. १५०७ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३. २४. २५. १५०७ २८. २६. १५०७ २७. १५०७ .२९. १५०७ ३०. १५०७ ३१. १५०७ १५०७ १५०७ १५०८ फाल्गुन सुदि.. तिथिविहीन "" "" "" "" चैत्र सुदि ७ ५१ ..? सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सम्भवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली आदिनाथ जिनालय, सांडेसर बड़ा मंदिर, पालीताना मोतीशाह की ट्रंक, शत्रुंजय विमलनाथ जिनालय, सवाईमाधोपुर पार्श्वनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद श्वेताम्बर जैनमंदिर, मधुवन, सम्मेतशिखर अजितनाथ जिनालय, नानरवाड़ा स्तम्भन पार्श्वनाथ जिनालय, खारवाड़ो, खंभात जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४७७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४७६. शत्रुंजयवैभव, लेखांक ११४. वही, लेखांक ११६. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४२९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९१०. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १६९५. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५२५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०५२. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२. ३३. ३४. ३५ ३६. ३७. ३८. ३९. ४०. १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ ५२ वैशाख वदि १० रविवार कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख वदि १३ वैशाख सुदि ३ वैशाख सुदि ३ वैशाख सुदि ३ "" " वैशाख सुदि ५ शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लख अभिनन्दनस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, माणेक चौक, वही, भाग २, खंभात लेखांक ९८९. अस्पष्ट पार्श्वनाथ जिनालय, शिववाड़ी, बीकानेर संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद स्तम्भनपार्श्वनाथ जिनालय, खारवाडो, खंभात बड़ा जैन मंदिर, लीम्बडी आदिनाथ जिनालय, वासा मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच शांतिनाथ जिनालय, नदियाड प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३७२. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २१६९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १. लेखांक ८०९. वही, भाग २, लेखांक १०४८. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २३६. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५३७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३२६. वही, भाग २, लेखांक ४०४. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१. ४२. ४३. ४४. ४५. ४६. ४७. ४८. १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०८ १५०९ वैशाख सुद५ सोमवार वैशाख सुदि. वैशाख. माघ वदि २ मितिविहीन ५३ अभिनन्दनस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चैत्र सुदि ३ श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ सुदि १३ बुधवार वर्धमान की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वर्धमान स्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनुपूर्ति लेख, आबू प्राचीन जिनालय, लीम्बडी बालावसही, शत्रुंजय बड़ा जैनमंदिर, सीहोर शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर अनुपूर्ति लेख, आबू सीमंधरस्वामी का देरासर, उपलो गभारो, अहमदाबाद चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वेरावल. अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक ६४२. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २३८. शत्रुंजयवैभव, लेखांक ११७. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २४०. वही, लेखांक २४२. एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०८४. अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक ६४९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११७२. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २५०. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ४९. १५०९ वैशाख सुदि ३ ५०. १५०९ ज्येष्ठ वदि ५ ५१. १५०९ मार्गशीर्ष सुदि....? ५२. १५०९ माघ वदि ४ आदिनाथ की प्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, साणंद उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा महावीर जिनालय, रीज़रोड, पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद शांतिनाथ की चौबीसी प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, बीबणोद पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर बड़ा जैनमंदिर, कतारग्राम उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा वीरजिनालय, झवेरीवाड़. पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख माणेक चौक, खंभात जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०८५ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६३७. वही, भाग १, लेखांक ९९४. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४४२. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २४७. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ११८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८५३. वही, भाग २, लेखांक १०१३. ५३. १५०९ माघ वदि ५ ५४. १५०९ माघ सुदि ५ मुम्बई ५५. १५०९ माघ सुदि ५ ५६. १५०९ माघ सुदि५ गुरुवार Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७. ५८. ५९. ६१. ६२. ६३. ६४.. ६५. १५०९ १५०९ १५१० १५१० १५१० १५१० १५१.० १५१० १५१० माथ. माघ. चैत्र वदि ४ शनिवार वैशाख वदि ५ वैशाख सुदि २ वैशाख सुदि ३ ज्येष्ठ सुदि ३ द्वितीय ज्येष्ठ सुदि ३ ५५ मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, जीरारवाडो, खंभात मुनिसुव्रत जिनालय, खारवाड़ो, खंभात आदिनाथ जिनालय, भैंसरोडगढ़ नेमिनाथ जिनालय, मेहताजी की वहीं, भाग २, पोल, बड़ोदरा. लेखांक १८०. पद्मप्रभ जिनालय, चूड़ीवाली गली, लखनऊ बालावसही, शत्रुंजय आदिनाथ चैत्य, थराद चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़ता वही, भाग २, लेखांक ७४१. महावीर जिनालय, मामा की पाल, बड़ादरा वही, भाग २, लेखांक १०२७. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४५७. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १५४९. शत्रुंजयवैभव, लेखांक १२४. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १४७. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७७५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३७. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६. १५१० ६७. १५१० ६९. १५१० ज्येष्ठ सुदि ३ गुरुवार धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मार्गशीर्ष सुदि ६ आदिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मार्गशीर्ष सुदि १० विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पौष सुदि१५ शुक्रवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि५ शुक्रवार सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ.............? वर्धमान की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ देरासर, साणंद वही, भाग १, लेखांक ६३२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, मेड़ता सिटी लेखांक ४६१. गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, बीजापुर भाग १, लेखांक ४४९. गौड़ी जी भंडार की मूर्ति, प्राचीनलेखसंग्रह, उदयपुर लेखांक २५७. शांतिनाथ जिनालय, मुर्शिदाबाद जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २८. आदिनाथ-पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, पायधुनी, मुम्बई लेखांक १२२. आदिनाथ जिनालय, बोहारनटोला, जैनलेखसंग्रह, भाग २. लेखांक १५३९. जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, नीशापोल, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १२१३. ७०. १५१० ७१. १५१० १५१० लखनऊ ७३. १५१० Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४. ७५. ७७. ७६. १५१० ७८. ७९. ८०. ८१. १५१० ८२. १५१० १५१० १५१० १५११ १५११ १५११ १५११ माघ. फाल्गुन सुदि ३ शुक्रवार फाल्गुन सुदि १२ तिथिविहीन ज्येष्ठ वदि १३ ज्येष्ठ सुदि ५ ज्येष्ठ सुदि ८ आषाढ़ वदि९ रविवार ५७ धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनदेरासर, सौदागरपोल, अहमदाबाद पार्श्वनाथ देरासर, लाडोल जैनदेरासर, महुआ संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद पार्श्वनाथ देरासर, लाडोल संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर वही, भाग १, लेखांक ७९८. चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर वही, भाग १, लेखांक ४७०. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २५९. आदिनाथ जिनालय, जानीशेरी, वही, भाग २, बड़ादरा. लेखांक १५५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १. लेखांक ८३५. वही, भाग १, लेखांक ४५४. जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २३३०. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४७२. बीकानेर जैनसंग्रहलेख, लेखांक ९४७. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३. १५११ आषाढ़ सुदि ५ ८४. १५११ माघ वदि १ घरदेरासर, चुडगर, बड़ोदरा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २२५. शांतिलाल जिनालय, कोठीपोल, वही, भाग २, बड़ोदरा लेखांक ५४. शांतिनाथ जिनालय, चौकसीपोल, वही, भाग २, खंभात लेखांक ८४४. ८५. १५११ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि ४ आदिनाथ जिनालय, बड़नगर चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर वही, भाग १, लेखांक ५४४. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९५०. ८७. १५११ माघ सुदि १३ फाल्गुन सुदि ९ रविवार संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, लस्कर, ग्वालियर ८९. १५११ तिथिविहीन श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर बट्ट जी का मंदिर, वाराणसी जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४०२. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९४३. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४०५ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११६७. ९०. १५१२ वैशाख सुदि ५ ९१. १५१२ ज्येष्ठ वदि १ सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सीमंधरस्वामी का देरासर, उपलो गभारो, अहमदाबाद Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९ ९२. १५१२ मार्गशीर्ष सुदि १५ ९३. १५१२ ९४. १५१२ माघ सुदि ५ वहीं, भाग १, लेखांक ११९४. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४८६. शत्रुजयवैभव, लेखांक १३५. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९५३. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४९४. ९५. १५१२ माघ सुदि५ सोमवार वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा वही पर उत्कीर्ण लेख अभिनन्दन स्वामी की धातु की बड़ा जैन मंदिर, नागौर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर खरतरवसही, शत्रुजय उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख बीकानेर सुमतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी बड़ा जैन मंदिर, नागौर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख बीकानेर सुमतिनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, नागौर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की पंचतीर्थी शांतिनाथ जिनालय, विलाव प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९६. १५१२ फाल्गुन सुदि ८ शनिवार ९७. १५१२ ९८. १५१२ फाल्गुन सुदि ९ शनिवार बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९५९. जैनलेखसंग्रह. भाग २ . लेखांक १२६२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४९५. ९९. १५१२ फाल्गुन सुदि १२ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १००. १५१२ मितिविहीन ६० सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०१. १५१२ तिथिविहीन महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०२. १५१२ १०३. १५१२ १०४. १५१३ माधवलाल बाबू का देरासर, प्राचीनलेखसंग्रह, पालिताना लेखांक २८० एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७५४. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पटोलीया पोल, बड़ोदरा भाग २, लेखांक ६६. महावीर जिनालय, भरुच वही, भाग २, लेखांक ३४३. वही, भाग २,लेखांक ३८९. मुनिसुव्रत जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, सैलाना लेखांक ५०१. संभवनाथ जिनालय, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, देशनोक, बीकानेर लेखांक २२१९. शांतिनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, शेखनो पाडो, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १०३३. सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, वही, भाग २, मातर लेखांक ४९१. चैत्र........? १०५. १५१३ सोमवार मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०६. १५१३ १०७. १५१३ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८. १५१३ वैशाख वदि ८ ६१ कुन्थुनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २१५२ एवं बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २७४६. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५०३ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९६७. १०९. १५१३ वैशाख वदि १२ विमलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माणिकसागर जी का मंदिर, कोटा चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर ११०. १५१३ वैशाख सुदि ३ १११. १५१३ वैशाख सुदि ७ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५०६. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १६२. ११२. १५१३ संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख खरतरगच्छीय आदिनाथ जिनालय, कोटा चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, पीपलाशेरी, बड़ोदरा जैन मंदिर, ऊंझा ११३. १५१३ वैशाख सुदि......? ११४. १५१३ ज्येष्ठ सुदि ३ वही, भाग १, लेखांक १७६. शत्रुजयवैभव, लेखांक १४०. वही, लेखांक १४७. जैनमंदिर, मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजय बालावसही, शत्रुजय ११५. १५१३ ज्येष्ठ सुदि ९ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६. ११७. ११८. ११९. १२०. १२१. १२२. १२३. १५१३ १५१३ १५१३ १५१३ १५१३ १५१३ १४१३ १५१३ ज्येष्ठ सुदि ९ बुधवार सुमतिनाथ की पर उत्कीर्ण लेख आषाढ़ सुदि ३ माघ वदि २ शुक्रवार माघ वदि ५ धातु आषाढ़ सुदि ५ सोमवार कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर लेख उत्कीर्ण पौष सुदि १० बुधवार मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि ३ ६२ की प्रतिमा सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, वीरमगाम वीर जिनालय, रोज़ रोड, अहमदाबाद जैनमंदिर, हरखजी का मुवाड़ा आदिनाथ जिनालय, पूना संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात पार्श्वनाथ जिनालय, लस्कर, ग्वालियर नवलखा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २९३. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९३८. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २९४. वही, लेखांक २८२. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८३०. वही, भाग २, लेखांक ५३८. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४०३. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८१८ एवं प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३८७. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ १२४. १५१३ माघ........? १२५. १५१३ १२६. १५१३ माघ सुदि.......? फाल्गुन वदि ११ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अस्पष्ट । सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटो में, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक १५०६. बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, लेखांक १४१. संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ८१३. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५२९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक ९६१. वही वही, लेखांक ९६४. १२७. १५१३ मितिविहीन १२८. १५१३ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १२९. १५१३ १३०. १५१३ धर्मनाथ की धात् की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १३१. १५१४ माघ सुदि......? पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, खंभात यति इन्द्रचन्द्रजी का उपाश्रय, बाड़मेर जैनमंदिर, ब्रह्मचर्याश्रम, चांदवड़, नासिक सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २. लेखांक ९३३. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७४२. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक १४९. १३२. १५१४ तिथिविहीन Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३३. १३४. १३६. १३५. १५१५ १३७. १३८. १३९. १४०. १५१४ १४१. १५१५ १५१५ १५१५ १५१५ १५१५ १५१५ १५१५ "} वैशाख वदि ५ वैशाख सुदि १३ ज्येष्ठ सुदि ५ ज्येष्ठ सुदि १५ " 77 ६४ सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, पटना विमलनाथ जिनालय, बालूचर, मुर्शिदाबाद पद्मप्रभ जिनालय, नाल, बीकानेर मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, पटोलीया पोल, बड़ोदरा नेमिनाथ जिनालय, मेहता पोल, बड़ोदरा आदिनाथ जिनालय, बरखेड़ा शांतिनाथ जिनालय, कनासाना पाड़ा, पाटण कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, मामा की पोल, बड़ोदरा वीर जिनालय, माणेक चौक, खंभात जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २७९. वही, भाग १, लेखांक ४०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २२७७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ६९. वही, भाग २, लेखांक १६८. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५३५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३७०. वही, भाग २, लेखांक ३३. वही, भाग २, लेखांक ९७८. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२. १४३. १४४. १४५. १४६. १४८. १५१५ १४९. १५१५ १५१५ १५१५ १४७. १५१५ १५१५ १५१५ १५१५ आषाढ़ सुदि २ माघ सुदि ७ माघ सुदि ७ माघ सुदि १५ "" फाल्गुन सुदि ४ शुक्रवार फाल्गुन सुदि १२ विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ६ अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, भद्रावती, मध्यप्रदेश आदिनाथ जिनालय, पूना धर्मनाथ देरासर, डभोई वीरजिनालय, माणेक चौक, खंभात वीर जिनालय, नाणा जूनावेड़ा, मारवाड़ यति श्यामलालजी का उपाश्रय, जयपुर आदिनाथ जिनालय, वडनगर जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक १५१. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३०१. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५२. वही, भाग २, लेखांक ९६६. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ३५५ एवं प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४१३. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९२६. वही, भाग १, लेखांक ५७३. जैनधातुप्रतिमाले खसंग्रह, भाग १, लेखांक ५५१. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५०. १५१. १५२. १५३. १५४. १५५. १५७. १५१५ १५८. १५१५ १५१५ १५१६ १५१६ १५६. १५१६ १५१६ १५१६ १५१६ तिथिविहीन तिथिविहीन तिथिनष्ट वैशाख वदि १ वैशाख वदि ४ वैशाख वदि १२ शुक्रवार वैशाख सुदि ३ संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ६६ धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अभिनन्दन स्वामी की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख की भाभापार्श्वनाथ देरासर, पाटण चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर दादा पार्श्वनाथ देरासर, नरसिंहजी की पोल, बड़ोदरा चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर पार्श्वनाथजिनालय, कोचरों का चौक, बीकानेर संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, किशनगढ़ सीमंधरस्वामी का देरासर, उपलो गभारो, अहमदाबाद शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद वही, भाग १, लेखांक २२९. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९८२. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ९९५. वही, लेखांक १६०५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८४१. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५५४. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११६९. वही, भाग १, लेखांक १३२४. Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५९. १६०. १६१. १६२. १६३. १६४. १६५. १६६. १५१६ १५१६ १५१६ १५१६ १५१६ १५१६ १५१६ १५१६ १६७. १५१६ वैशाख सुदि ५ वैशाख.. ज्येष्ठ सुदि ज्येष्ठ सुदि ५ ज्येष्ठ सुदि ९ कार्तिक सुदि १४ सोमवार मार्गशीर्ष वदि १ रविवार ६७ कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, धवली शांतिनाथ जिनालय, कनासाना पाड़ा, पाटण राजवैद्य उदयचन्द जी का घरदेरासर, जोधपुर सीमंधरस्वामी का देरासर, उपलोगभारो, अहमदाबाद पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाड़ो, अहमदाबाद खरतरगच्छीय आदिनाथ जिनालय, कोटा पार्श्वनाथ जिनालय, दाहाद बालावसही, शत्रुंजय शांतिनाथ जिनालय, नाहटो की गवाड़, बीकानेर अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ४. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३४९. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १८८०. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १०५७. वही, भाग १, लेखांक १०६९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५५७. वही, लेखांक ५५८. शत्रुंजयवैभव, लेखांक १४८. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १८३८. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ १६८. १५१६ मार्गशीर्ष सुदि १ संभवनाथ देरासर, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २३३९. संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६९. १५१६ फाल्गुन सुदि ८ १७०. १५१६ तिथिविहीन नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १७१. १५१६ यति पन्नालाल मोहनलाल का वही, भाग १, घर देरासर, बड़ा बाजार, लेखांक ३९२. कलकत्ता आदिनाथ जिनालय, वही, भाग २, सेठों की हवेली के पास, उदयपुर लेखांक १९१२. बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, लेखांक १४९. संभवनाथ देरासर, कड़ी जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७३५. चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक ९९२ वही, लेखांक ९९१. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १७२. १५१६ १७३. १५१६ १७४. १५१६ वहीं १७५. १५१६ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर । उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, नाहटों की वही, लेखांक १८१९. गवाड़, बीकानेर Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६. १७७. १७८. १५१७ १८०. १५१६ १७९. १५१७ १८१. १५१७ १८२. १५१७ १५१७ नष्ट चैत्र वदि १२ गुरुवार वैशाख वदि ५ शुक्रवार वैशाख सुदि. ६९ वासुपूज्य की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ जिनालय, अजमेर बड़ा मंदिर, नागौर वीर जिनालय, सांगानेर सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर नेमिनाथ जिनालय, मेहतापोल बड़ोदरा वीरजिनालय, माणेक चौक, खंभात शांतिनाथ जिनालय, बीकानेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ५६५. वही, लेखांक ५६३. वही, लेखांक ५६४. जैनलेखसंग्रह, भाग २. लेखांक ११८५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १७६. वही, भाग २, लेखांक ९७५. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११४९. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, नीशापोल, अहमदाबाद में संरक्षित भगवान् पार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि० सं० १५१३ पौष सुदि १० बुधवार के लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में रत्नशेखरसूरि के शिष्य गुणदेव का नाम मिलता है। लूणवसही के गूढमंडप में उत्कीर्ण वि०सं० १५१५ माघ वदि ८ के एक शिलालेख में आचार्य रत्नशेखरसूरि तथा उनके आज्ञानुवर्ती उदयनंदि, लक्ष्मीसागरसूरि, हेमदेव आदि मुनिजनों का उल्लेख है। आदिनाथ जिनालय, मालपुरा में संरक्षित वासुपूज्य पंचतीर्थी पर वि०सं० १५१७ का एक लेख" उत्कीर्ण है। इस लेख में रत्नशेखरसूरि के साथ धर्मसागरसूरि का भी नाम मिलता है। ये धर्मसागरसूरि कौन थे? रत्नशेखरसूरि के साथ उनका क्या सम्बन्ध था, इस बारे में न तो उक्त प्रतिमालेख से और न ही किन्हीं अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी प्राप्त होती है। विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से रत्नशेखरसूरि की शिष्य सन्तति के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वि०सं० १५१३ में पिण्डविशुद्धिबालावबोध और वि०सं० १५१४ में आवश्यकपीठिका पर बालावबोध के रचनाकार संवेगदेवगणि ने अपनी कृतियों में इन्हें गुरु के रूप में स्मरण किया है। वि० सं० १५०७ में रची गयी सम्यकत्त्वरास की प्रशस्ति में रचनाकार संघकलशगणि ने स्वयं को उदयनंदि का शिष्य और रत्नशेखरसूरि का प्रशिष्य कहा है: रत्नशेखरसूरि उदयनंदि संघकलशगणि (वि०सं० १५०७/ई० स० १४५१ में सम्यकत्त्वरास के रचनाकार) वि०सं० १५०४ में कथामहोदधि के रचनाकार एवं सोमसुन्दरसूरि के शिष्य सोमदेवसूरि भी रत्नशेखरसूरि के आज्ञानुवर्ती थे। राणकपुर में संघपति धरणशाह द्वारा आयोजित उत्सव में रत्नशेखरसूरि ने इन्हें आचार्य पद प्रदान किया। समतिसाधू द्वारा रचित सोमसौभाग्यकाव्य'२ और सोमदेवसूरि के प्रशिष्य एवं चारित्रहंसगणि के शिष्य सोमचारित्रगणि द्वारा वि०सं० १५४१/ई०स० १४८५ में रचित गुरुगुणरत्नाकरकाव्य से यह जानकारी प्राप्त होती है। सोमदेवसूरि की शिष्य-संतति से आगे चलकर तपागच्छ की कमलकलशशाखा और कुतुबपुराशाखा अस्तित्त्व में आयी।। रत्नशेखरसूरि के एक शिष्य नंदिरत्न हुए, जिनके शिष्य रत्नमंदिरगणि ने वि०सं० १५१७ में भोजप्रबन्ध की रचना की। इनके द्वारा रचित उपदेशतरंगिणी, नेमिनाथफाग, नारीनिराशफाग आदि कृतियाँ भी मिलती हैं। श्री देसाई१६ ने नंदिरत्नगणि के शिष्य रत्नमंदिरगणि और सोमदेवसूरि के शिष्य रत्नमंडनगणि को एक ही व्यक्ति माना है जो भ्रामक है। वस्तुत: दोनों अलग-अलग व्यक्ति हैं। श्री कापडिया ने भी दोनों को अलग-अलग व्यक्ति और परस्पर गुरुभ्राता बताया है। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और भोजप्रबन्ध की प्रशस्तियों में रत्नमंदिर ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, उपदेशतरंगिणी जो इस प्रकार है : रत्नशेखरसूरि नंदिरत्न रत्नमंदिरगणि | उपदेशतरंगिणी और भोजप्रबन्ध (वि० सं० १५१७) आदि कृतियों के कर्ता। रत्नमंदिरगणि की शिष्यपरम्परा आगे नहीं चली जबकि रत्नमंडन के एक शिष्य आगममंडन हुए जिनके प्रशिध्य और हर्षकल्लोल के शिष्य लक्ष्मीकल्लोल द्वारा रचित कई कृतियाँ मिलती है। रत्नमंडन के दूसरे शिष्य सोमजय हुए जिनके शिष्य जिनसोम और प्रशिष्य इन्द्रनंदि से आगे चलकर तपागच्छ की कुतुबपुराशाखा अस्तित्व में आयी। सोमदेवसूरि रत्नमंडन (सुकृतसागर के कर्ता) आगममंडम सोमजय हर्षकल्लोल जिनसोम लक्ष्मीकल्लोल इंद्रनंदि (तपागच्छ-कुतुबपुरा शाखा के आदिपुरुष) (प्रसिद्ध रचनाकार) रत्नशेखरसूरि के पश्चात् लक्ष्मीसागरसूरि उनके पट्टधर बने। इनके बारे में सोमदेवसूरि के प्रशिष्य और चारित्रहंसगणि शिष्य सोमचारित्रगणि द्वारा वि०स० १५४६/ई०स० १४८५ में रचित गुरुगुणरत्नाकरकाव्य१ से विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इसके अनुसार वि०सं० १४६४ में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १४७० में मुनिसुन्दरसूरि से दीक्षा ली, वि०सं० १५०१ में उन्हीं से मुण्डस्थल में वाचक पद प्राप्त हुआ। वि०सं० १५०८ में इन्हें सूरि पद मिला और १५१७ वि०सं० में गच्छनायक बने। इन्होंने स्तम्भतीर्थ में सोमदेवसूरि और उनके शिष्य रत्नमंडन के मध्य मतभेद दूर कराया। शिष्यपरिवार विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से लक्ष्मीसागरसूरि के शिष्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। मुनि चतुरविजयजी ने इनके विभिन्न शिष्यों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ १. सोमदेवसूरि - ये वही सोमदेवसूरि हैं, जिन्हें सोमसुन्दरसूरि ने दीक्षित किया था। ये मुनिसुन्दरसूरि, रत्नशेखरसूरि और उनके शिष्य एवं पट्टधर लक्ष्मीसागरसूरि के आज्ञानुवर्ती थे। सोमदेवसूरि के विभिन्न शिष्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। क - रत्नहंसगणि- इनके उपदेश से वि०सं० १५०९ में मालव देश के खाचरोद नगर में श्रावक कर्मसिंह ने शांतिनाथचरित की एक प्रतिलिपि करायी, जो छाणी, बड़ोदरा के एक ग्रन्थभंडार में संरक्षित है। २२ ख- रत्नमंडन- इनके द्वारा रचित सुकृतसागर नामक एक कृति प्राप्त होती है। रत्नमंडन के एक शिष्य आगममंडन हुए। इनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती किन्तु इनके प्रशिष्य और हर्षकल्लोल के शिष्य लक्ष्मीकल्लोल द्वारा रचित कुछ कृतियाँ मिलती हैं। इन्होंने वि०सं० १५६६ में आचारांगसूत्र पर तत्त्वावगमा नामक अवचूरि" की रचना की। ज्ञाताधर्मकथा पर रची गयी मुग्धावबोध भी इन्हीं की कृति मानी जाती है। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है रत्नमंडन के दूसरे शिष्य सोमजय हुए। सोमजय के शिष्य जिनसोम हुए, जिन्हें लक्ष्मीसागरसूरि द्वारा पाटण में उपाध्याय पद प्राप्त हुआ। जिनसो के शिष्य इन्द्रनंदि हुए जिनसे आगे चलकर तपागच्छ की कुतुबपुरा शाखा अस्तित्त्व में आयी। २. श्रुतमूर्ति - इनके द्वारा वि०सं० १५१७ कार्तिक वदि १० को स्तम्भतीर्थ लिखी गयी द्वात्रिंशिका की एक प्रति पाटण भंडार में संरक्षित है ऐसा मुनि चतुरविजय जी ने उल्लेख किया है। ३. जिनमाणिक्य - इनके शिष्य अनंतकीर्ति हुए जिनके द्वारा वि० सं० १५२९ में एक श्राविका के पठनार्थ शीलोपदेशमाला की प्रतिलिपि की गयी। मुनिश्री के अनुसार यह प्रति भी पाटण भंडार में संरक्षित है ! 16 ४. सुमतिसाधु- ये लक्ष्मीसागरसूरि के पट्टधर बने । १९ ५. शुभसुन्दर - इनके द्वारा रचित देउलवाडामंडनऋषभजिनस्तवन सटीक नामक कृति मिलती है। ६. जयवीर - इनके शिष्य शुभलाभ ने वि०सं० १५३६ में उपदेशमालाअवचूरि की प्रतिलिपि की, जो आज पाटण के भंडार में संरक्षित है। 30 ७. शुभशीलगणि- इन्होंने वि० सं० १५२१ / ई० स० १४६५ में रचित पंचशतीप्रबन्ध नामक कृति प्राप्त होती है। इनके द्वारा रचित अन्य कृतियाँ भी मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं: विक्रमादित्यचरित्र - रचनाकाल वि०सं० १४९९ ( अथवा १४९०) प्रकाशित वि०सं० १४९६ पुण्यधननृपकथा प्रभावककथा १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ - वि०सं० १५०४ भरतेश्वर बाहुबलिवृत्ति (कथाकोश) वि०सं० १५०९ शत्रुंजयकल्पवृत्ति - वि० सं० १५१८ भोजप्रबन्ध - " " शालिवाहनचरित्र - वि०सं० १५४० पुण्यसारकथा Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १० १ १२ जावड़कथा भक्तामरस्तोत्रमाहात्म्य पंचवर्गसंग्रहनाममाला उणादिनाममाला १३- अष्टकर्मविपाक वि० सं० १४९९ में रचित विक्रमादित्यचरित्र २ और वि० सं० १५०९ में रचित भरतेश्वरबाहुबलिवृत्ति में रचनाकार स्वयं को मुनिसुन्दरसूरि का शिष्य बताते हैं मुनिसुन्दरसूरीशविनेयः शुभशीलभाक् । चकार विक्रमादित्य-चरित्रं मन्दधीरपि ।। (विक्रमादित्यचरित्र-प्रशस्ति-१२) प्रबन्धपंचशती के द्वितीय अधिकार के अन्त में इन्होंने स्वयं को लक्ष्मीसागरसूरि का शिष्य कहा है. जबकि ग्रन्थ की समाप्ति की प्रशस्ति में रत्नमंडन का शिष्य बतलाया है : इति श्रीसोमसुन्दरसूरि पट्टालङ्करण श्रीमुनिसुन्दरसूरिः श्रीजयचन्द्रसूरि पट्टालङ्करण श्री रत्नशेखरसूरि पट्टालङ्करण श्रीलक्ष्मीसागरसूरि श्री सोमदेवसूरि श्रीरत्नमंडनसूरिशिष्य पं० शुभशीलगणि विरचित (प्रबन्ध) पंचशतीसम्बन्धे चतुर्थोऽधिकारः समाप्तः।।। शुभशीलगणि सोमसुन्दरसूरि के विशाल शिष्य-प्रशिष्य परिवार के एक सदस्य थे। अपने लम्बे जीवनकाल में ये मुनिसुन्दरसूरि, रत्नशेखरसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि आदि के आज्ञानुवर्ती थे। इसीलिये इन्होंने अपनी विभिन्न रचनाओं में, जो विभिन्न गच्छनायकों के समय में रची गयीं, स्वयं को कहीं मुनिसुन्दरसूरि का, कहीं रत्नशेखरसूरि का और कहीं लक्ष्मीसागरसूरि का शिष्य बतलाया गया है। वस्तुत: ये उनके शिष्य नही वरन् आज्ञानुवर्ती थे और सोमसुन्दरसूरि के शिष्य सोमदेवसूरि के प्रशिष्य और रत्नमंडन के शिष्य थे, जैसा कि प्रबन्धपंचशती की प्रशस्ति में ऊपर हम देख चुके हैं। सुधानन्दन, रत्नमंडनगणि, शुभरत्नगणि, सोमजय, जिनसोम, जिनहंस, सुमतिसुन्दर, सुमतिसाधुसूरि, इन्द्रनंदि आदि को लक्ष्मीसागरसूरि ने ही आचार्य पद तथा अनेक मुनिजनों को उपाध्याय और वाचक पद प्रदान किया था। आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि ने गुर्जर, मरु और मालव प्रदेशों के तपागच्छीय श्रावकों द्वारा हजारों की संख्या में निर्मित जिनबिम्बों की प्रतिष्ठायें की, जिनमें से बड़ी संख्या में आज भी सलेख जिन प्रतिमायें प्राप्त होती हैं। ये वि० सं० १५१३ से लेकर वि० सं० १५३६ तक की हैं। इनका विस्तृत विवरण तालिका के रुप में प्रस्तुत है .... Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध सलेख जिन प्रतिमाओं की तालिका Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक वि० सं० तिथि/मिति/वार वर्तमान प्राप्ति संदर्भ ग्रन्थ स्थान १. १५१३ वैशाख सुदि १३ १५१३ तिथिविहीन अजितनाथ जिनालय, शेखनो जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पाड़ो, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १०२०. पार्श्वनाथ देरासर, देवसानोपाड़ो, वही, भाग १. अहमदाबाद लेखांक १०९७. वासुपूज्य जिनालय, थराद जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३०. ३. १५१७ वैशाख सुदि ३ १५१७ वैशाख सुदि ८ लेख का स्वरूप प्रतिमालेख/शिलालेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ५. १५१७ ज्येष्ठ वदि ५ नवघरे का मंदिर, दिल्ली जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४८३. शांतिनाथ जिनालय, कनासानो- जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पाड़ा, पाटण भाग १, लेखांक ३०४. पार्श्वनाथ जिनालय, खेरालु वही, भाग १, लेखांक ७६४. ६. १५१७ ज्येष्ठ सुदि ३ ७. १५१७ ज्येष्ठ सुदि १४ चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १००१. ८. १५१७ मार्गशीर्ष सुदि २ शनिवार चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, किशनगढ़ लेखांक ५६९. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ - १५१७ ९. शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर पौष वदि ८ रविवार शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०. १५१७ फाल्गुन सुदि ३ अजितनाथ जिनालय, शेखनो पाड़ो, अहमदाबाद शांतिनाथ जिनालय, बीजापुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०३०. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९९९. वहीं, भाग १, लेखांक ४३७. ११. १५१७ माघ सुदि......... सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १२. १५१७ फाल्गुन सुदि ११ जैनमंदिर, पटना १३. १५१७ फाल्गुन सुदि ११ शनिवार शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २८०. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३१० एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०९१. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १००९. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २६७. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३१९ एवं १४. १५१८ वैशाख वदि १ गुरुवार वैशाख वदि ४ चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर चतुर्मुख विहार, अचलगढ़ १५. १५१८ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६. १५१८ वैशाख सुदि १३ माधवलाल बाबू का घर देरासर, पालिताना Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७ १५१८ १८. १५१८ १९. १५१८ १५१८ शत्रुजयवैभव,लेखांक १६० मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर सुमतिनाथ जिनालय, माधवलाल जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख बाबू की धर्मशाला, पालीताना लेखांक १७५६... ज्येष्ठ वदि १ संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर सीमंधर स्वामी का देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख उपलो गभारो, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ११९१. ज्येष्ठ वदि ६ बुधवार सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, परा, खेड़ा वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४१५. वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर पर देरासर. चुडगर, बड़ोदरा वही. भाग २ उत्कीर्ण लेख लेखांक २२४. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख मामा की पोल, बड़ोदरा लेखांक ३१. आषाढ़ सुदि ३ विमलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर खरतरगच्छीय आदिनाथ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख जिनालय, कोटा लेखांक ५७९. आषाढ़........? वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, भद्रावर्ती, जैनधातुप्रतिमालेख, उत्कीर्ण लेख मध्यप्रदेश लेखांक १६६. माघ सुदि ५ बुधवार कुन्थुनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर चन्द्रप्रभ जिनालय, कोटा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ५८४. २१. १५१८ २२. १५१८ गुरुवार १५१८ २४. १५१८ Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. १५१८ फाल्गुन वदि ५ २६. १५१८ फाल्गुन सुदि २ २७. १५१८ फाल्गुन सुदि ११ गुरुवार २८. १५१८ मितिविहीन ७८ नमिनाथ की धातु की पंचतीर्थी आदिनाथ जिनालय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सेलवाड़ा ग्राम संदोह,भाग५,लेखांक १८६. शांतिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक १००७. कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, कनासानो- जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख पाड़ो, पाटण भाग १, लेखांक ३५०. शीतलनाथ की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, उत्कीर्ण लेख लेखांक २१२८. सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा संभवनाथ देरासर, कड़ी जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ७३१. वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर, ऊंझा वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक १८१. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, पाटडी प्राचीनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ३२७. शांतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर बड़ा जैनमंदिर, नागौर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ५८९. कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर पाटडी प्राचीनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ३३६. २९. . १५१८ ३०. १५१८ ३१. १५१८ ३२. १५१९ चैत्र वदि ११ ३३. १५१९ वैशाख वदि ११ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९ ३४. १५१९ वैशाख वदि ११ शुक्रवार ३५. १५१९ ३६. १५१९ ३७. १५१९ वैशाख सुदि ३ ३८. १५१९ ज्येष्ठ वदि ९ शनिवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर चन्द्रप्रभ जिनालय, सुल्तानपुरा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बड़ोदरा भाग २, लेखांक १९४. आदिनाथ जिनालय, नागौर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२६८. संभवनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक १०१४. शांतिनाथ की प्रतिमा पर पद्मप्रभ जिनालय, अजीमगंज, जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख मुर्शिदाबाद लेखांक ९. मुनिसुव्रत की धातु की पंचतीर्थी चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख किशनगढ़ लेखांक ५९२. धर्मनाथ की धात् की पंचतीर्थी शांतिनाथ जिनालय, रतलाम वही, लेखांक ५९८. प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, गांभू जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ७५. संभवनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख लेखांक १६२. मनिसुव्रत की धात् की प्रतिमा पर जैनमंदिर, ग्राम चवेली जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ८७. ३९. १५१९ ४०. १५१९ ज्येष्ठ सुदि ३ शनिवार कार्तिक वदि ४ गुरुवार ४१. १५१९ ४२. १५१९ माघ सुदि ५ शनिवार Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३. १५१९ माघ सुदि १३ सोमवार ८० संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ४४. १५१९ संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, वहीं, भाग १, अहमदाबाद लेखांक ८१४. आदिनाथ जिनालय, वासा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, लेखांक ५३८. दादाजी के बंगले में स्थित जैनलेखसंग्रह, भाग २, जिनालय, साहूकार पेट, मद्रास लेखांक २०७४. आदिनाथ जिनालय, वडनगर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५३९. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ४७. १५१९ जैनमंदिर, जसोल, मारवाड़ माघ सुदि.....शुक्रवार जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १८८४. ४८. १५१९ फाल्गुन सुदि ९.... ४९. १५१९ तिथिविहीन शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, राजलदेसर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक २३५०. देहरी पर उत्कीर्ण शिलालेख देहरी नं० १०, वीर जिनालय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखब्राह्मणवाड़ा संदोह, लेखांक २८८. संभवनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर पद्मप्रभ जिनालय, कडाकोटी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ५९५. सविधिनाथ की प्रतिमा पर अनुपूर्ति लेख, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह. रत्कीर्ण लेख लेखांक ६४४. ५०. १५२० वैशाख सुदि ३ ५१. १५२० ज्येष्ठ सुदि १३ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२. १५२० आषाढ़ सुदि २ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, अचलगढ़ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०२४ एवं अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५०३. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४०८. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३४२. ५३. १५२० मार्गशीर्ष वदि ५ गुरुवार आदिनाथ जिनालय, परा, खेड़ा जैनमंदिर, कोलीयाक ५४. १५२० ५५. १५२० जैन मंदिर, जूनीआ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६०५. ५६. १५२० मार्गशीर्ष सुदि ११ सोमवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ५७. १५२० मितिविहीन अजितनाथ जिनालय, वही, लेखांक ६०६. सिरोही मुनिसुव्रत जिनालय, जामनगर प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३५३. संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ८३४. सीमंधर स्वामी का देरासर, वही, भाग १, उपलो गभारो, अहमदाबाद लेखांक ११६६. ५८. १५२० ५९. १५२० Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ६०. १५२० विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद वही, भाग १, लेखांक १२५८. ६१. १५२० ६२. १५२० ६३. १५२० ६४. १५२१ वैशाख सुदि ३ शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख माणेक चौक, खंभात वीरजिनालय, गीपटी श्रेयांसनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा चन्द्रप्रभ जिनालय, नागौर पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख बीकानेर सुमतिनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, वासा उत्कीर्ण लेख कन्थनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर विमलनाथ जिनालय, चौकसी- उत्कीर्ण लेख पोल, खंभात वही, भाग २, लेखांक १०१५. वहीं, भाग २, लेखांक ७०८. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६०९. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०२१. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५४०. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रहभाग २, लेखांक ७८८. ६५. १५२१ ६६. १५२१ ६७. १५२१ संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर नवपल्लव पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख बोलपीपलो, खंभात लेखांक १०९७. पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख जीरारपाड़ो, खंभात लेखांक ७२४. ६८. १५२१ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९. ७०. ७१. ७२. ७३. ७४. - ७५. ७६. १५२१ १५२१ १५२१ १५२१ १५२१ १५२१ १५२१ १५२१ "" वैशाख सुदि १० रविवार ज्येष्ठ सुद्धि ४ ज्येष्ठ सुदि ४ गुरुवार " ८३ वासुपूज्य की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, चालीस गांव, महाराष्ट्र केशरियानाथ मंदिर, भिनाय आदिनाथ जिनालय, पुणे आदिनाथ जिनालय, जानीशेरी, बड़ोदरा जैन मंदिर, अमरावती पंचायती मंदिर, जयपुर जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक १८०. गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६१०. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३५८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४९. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक १८२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६१५. आदिनाथ जिनालय, हीरावाड़ी, वही, लेखांक ६१४ एवं नागौर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३१४. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५३५. Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७. ७८. ७९. ८०. ८१. ८२. ८४. १५२१ ८५. १५२१ १५२१ १५२१ १५२१ ८३. १५२१ १५२१ १५२१ १५२१ ज्येष्ठ सुदि.. ज्येष्ठ. आषाढ़ सुदि ३ गुरुवार आषाढ़ सुदि ९ ? ८४ पद्मप्रभ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ वदि ५ शुक्रवार सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि १३ गुरुवार आदिनाथ के परिकर के नीचे उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य स्वामी की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देहरी नं. २३ के दरवाजे पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, साहूकार पेठ, मद्रास जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, नीशापोल, अहमदाबाद बड़ा जैनमंदिर, नागौर जैनमंदिर, लींच जैन मंदिर, तेलपुर ग्राम अजितनाथ जिनालय, नानरवाड़ा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५२६. शांतिनाथ जिनालय, नांदिया वही, भाग २, लेखांक २०७६. वीर जिनालय, ब्राह्मणवाड़ा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२२९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६१८. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३५६. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक २७६. वही, लेखांक ४५९. वही, भाग ५, लेखांक २९५. शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, लांबीशेरी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ४२८. खड़ा Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६. १५२१ ८७. १५२१ ८८. १५२१ ८९. १५२१ नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, रायपर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन देरासर, बड़ोदरा उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, नागौर उत्कीर्ण लेख अभिनन्दन स्वामी की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत देरासर, डभोई उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर वीर जिनालय, जोधपुर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, नदियाड उत्कीर्ण लेख वही, भाग १, लेखांक ६२०. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३५५. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२७२. शत्रुजयवैभव, लेखांक १६९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६१. शत्रुजयवैभव, लेखांक १७१. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५८९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३८२. ९०. १५२१ फाल्गुन सुदि ९ ९१. १५२१ फाल्गुन सुदि १२ ९२. १५२२ वैशाख सुदि ३ ९३. १५२२ आषाढ़ वदि ७ शनिवार Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४. १५२२ कार्तिक वदि १ ८६ शीतलनाथ की प्रतिमा पर पद्मप्रभ जिनालय, पन्नीबाई उत्कीर्ण लेख का उपाश्रय, बीकानेर संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर गौड़ीजी का मंदिर, उदयपुर उत्कीर्ण लेख जैन देरासर, डभोई ९५. १५२२ पौष वदि १ गुरुवार बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १८८०. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३६१. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १६. ९६. १५२२ ९७. १५२२ वही, भाग १, लेखांक १४७३. ९८. १५२२ ९९. १५२२ माघ वदि ९, शनिवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, ईडर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख कटाकोटडी, खंभात माघ सुदि १३ शीतलनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा ऋषभदेव जिनालय, डग पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन वदि ५ बुधवार विमलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर चन्द्रप्रभ जिनालय, कोटा उत्कीर्ण लेख फाल्गुन सुदि ८ सुमतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर पद्मप्रभ जिनालय, घाट उत्कीर्ण लेख वही, भाग २, लेखांक ६०२. शत्रुजयवैभव, लेखांक १७२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६२०. वही, लेखांक ६२१. १००. १५२२ पातमा १०१. १५२२ १०२. १५२२ वही, लेखांक ६२४. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३. १५२२ १०४. १५२२ १०५. १५२३ १०६. १५२३ १०७. १५२३ तिथिविहीन आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, ईडर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक १४८०. मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, नदियाड वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख . लेखांक ३९४. वैशाख वदि ४ गुरुवार धर्मनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, श@जय शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख लेखांक १७५. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर नेमिनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख अजीमगंज लेखांक १४. वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, छाणी जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक २६५. वैशाख वदि ७ रविवार सुमतिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर सुमतिनाथ जिनालय, माधवलाल जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख बाबू की धर्मशाला, पालीताना लेखांक १७५१ एवं प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३७९. विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, परा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ४२०. वैशाख वदि १३ सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर छोटा जिनालय, माणसा वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४०७. १०८. १५२३ १०९. १५२३ खेड़ा ११०. १५२३ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११. ११२. ११३. ११४. ११६. ११७. ११८. १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ मुनिसुव्रत जिनालय, नाल वैशाख सुदि ३ वैशाख सुदि ३ सोमवार विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर वीर जिनालय, झवेरीवाड़ उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद बालावसही, शत्रुंजय वैशाख सुदि ३ "" " ८८ वैशाख सुदि ६ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, भीलड़िया तीर्थ चन्द्रप्रभ जिनालय, जानीशेरी, बड़ोदरा जैनमंदिर, सादड़ी बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २२८०. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, नितोडा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८७१. शत्रुंजयवैभव, लेखांक १७६. आदिनाथ जिनालय, बेजलपुरा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भरुच भाग २, लेखांक ३५७. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३५८. वही, भाग २, लेखांक १४५. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३७४. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५१९. Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११९. १२०. १२१. १२२. १२३. १२४. १२५. १२६. १२७. १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ वैशाख सुदि १३ माघ वदि ३ शुक्रवार माघ वदि ७ माघ सुदि ५ ८९ विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि ६ रविवार वासुपूज्य की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अभिनन्दन स्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ वदि ७ शनिवार श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, जामनगर आदिनाथ चैत्य, थराद वहा पंचायती जैनमंदिर, जयपुर पार्श्वनाथ देरासर, सांणद प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३७२. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक २४२. वही, लेखांक १२८. वीर जिनालय, सुंधीटोला, लखनऊ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६३२. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६३९. नेमिनाथ जिनालय, भोंयरापाड़ो, वही, भाग २, खंभात लेखांक ८८५. बालावसही, शत्रुंजय शत्रुंजयवैभव, लेखांक १७८. धर्मनाथ जिनालय, माणेकचौक, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ९५३. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १५६९. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८. १२९. १३०. १३१. १३२. १३३. १३४. १३५. १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ १५२३ "" "" " "" आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, सैलाना उत्कीर्ण लेख अभिनन्दन स्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर आदिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर धर्मनाथ जिनालय, मडार शांतिनाथ जिनालय, सहादतगंज, जैनलेखसंग्रह, लखनऊ आदिनाथ जिनालय, वासा प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३६७, एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०९२. विजयगच्छीय मंदिर, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६३४. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०३२. भाग २, लेखांक १६३३. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०३३. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ८५. वही, लेखांक ५४१. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६३३. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६. १५२३ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४८. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर धर्मनाथ देरासर, दभोई उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर, ऊंझा उत्कीर्ण लेख १३७. १५२३ वही, भाग १, लेखांक १९७. १३८. १५२३ १३९. १५२३ माघ सुदि ११ १४०. १५२३ माघ सुदि १३ १४१. १५२४ चैत्र वदि १ शुक्रवार श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर नेमिनाथ जिनालय, वीसनगर वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ५२५. पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर अजितनाथ देरासर, सुतारकी वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख खड़की, अहमदाबाद लेखांक १३४५. शांतिनाथ की धातु की चौबीसी चन्द्रप्रभ जिनालय, कोटा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ६३५. वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर वीर जिनालय, रीज़रोड, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक ९४४. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर सीमंधर स्वामी का देरासर, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख उपलो गभारो, अहमदाबाद लेखांक ११६८. पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, चौकसीपोल, वहीं, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ८४३. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाड़ो, वहीं, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक १०५७. १४२. १५२४ वैशाख वदि ७ शुक्रवार १४३. १५२४ १४४. १५२४ __ वैशाख सुदि २ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५. १४६. १४७. १४८. १४९. १५०. १५१. १५२. १५२४ १५२४ १५२४ १५२४ १५२४ १५२४ १५२४ १५२४ ९२ वैशाख सुदि ३ सोमवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" 77 वैशाख ३ वैशाख सुदि १० वैशाख सुदि १३ विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, झवेरीवाड़, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ५ शनिवार आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चौमुखजी देरासर, झवेरीवाड़, अहमदाबाद वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, वीसनगर कल्याण पार्श्वनाथ जिनालय, वीसनगर शांतिनाथ देरासर, वीसनगर वही, भाग १, लेखांक ८८०. खरतरगच्छीय आदिनाथ जिनालय, कोटा जैनमंदिर, पटना वही, भाग १, लेखांक ९१४. वही, भाग १, लेखांक ५३२. वही, भाग १, लेखांक ५२९. वही, भाग १, लेखांक ५१७. शांतिनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, वही, भाग २, खंभात लेखांक ७३०. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६४३. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २८३. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३. १५२४ वैशाख सुदि.....? शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ देरासर, बड़ा बाजार, वही, भाग १, लेखांक १०५. कलकत्ता १५४. १५२४ वही वही, भाग १,लेखांक १०६. १५५. १५२४ ज्येष्ठ सुदि ५ सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर बांठियों का मंदिर, उत्कीर्ण लेख जयपुर १५६. १५२४ आषाढ़ सुदि १० संभवनाथ जिनालय, अजमेर नमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शुक्रवार वही, भाग २, लेखांक १२०८ एवं प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३८४ तथा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६४४. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ६४६ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५६०. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ९२. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १५६०. १५७. १५२४ मार्गशीर्ष वदि २ सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ चैत्य, थराद उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, चूड़ीवाली उत्कीर्ण लेख गली, लखनऊ १५८. १५२४ मार्गशीर्ष सुदि....? Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५९. १६०. १६२. १६१. १५२४ १६३. १६४. १५२४ १५२४ १६६. १५२५ १५२५ १५२५ १६५. १५२५ १५२५ मार्गशीर्ष वदि ५ सोमवार माघ वदि ५ रविवार तिथिविहीन वैशाख वदि १० शनिवार वैशाख सुदि ३ वैशाख सुदि ३ सामवार वैशाख सुदि.. ९४ संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पाषाण की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपुज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, रामनिवास, गंगाशहर बीकानेर भाभा पार्श्वनाथ देरासर, पाटण श्रेयांसनाथ जिनालय, फताशाह की पोल, अहमदाबाद अनन्तनाथ जिनालय, भरुच नवपल्लव पार्श्वनाथ देरासर, बोलपीपलो, खंभात चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर शांतिनाथ जिनालय, मीयागाम सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर बावन जिनालय, पेथापुर उत्कीर्ण लेख बीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक २१८२. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २३९. वही, भाग १, लेखांक १३८१. वही, भाग २, लेखांक ३०३. वही, भाग २, लेखांक ११०२. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०३९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २९०. वही, भाग १, लेखांक ६८४. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७. १५२५ १६८. १५२५ १६९. १५२५ वैशाख सुदि ६ १७०. १५२५ आषाढ़ वदि ७ १७१. १५२५ आषाढ़ सुदि ९५ अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, डभोई वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ७०. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर, ऊंझा वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक १७७ शांतिनाथ की प्रतिमा पर वासुपूज्य जिनालय, खारवाड़ो, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक १०८५. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर श्रेयांसनाथ देरासर, फताशाह की वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख पोल, अहमदाबाद लेखांक १३६४. पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ५४२. शांतिनाथ की प्रतिमा पर बावन जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १९३. चन्द्रप्रभ स्वामी की धातु की प्रतिमा सीमंधर स्वामी का देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख उपलोगभारो, अहमदाबाद लेखांक ११८८. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाड़ो, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक ११००. विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथ- वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख पोल, अहमदाबाद लेखांक १२८९. १७२. १५२५ मार्गशीर्ष सुदि ९ १७३. १५२५ मार्गशीर्ष सुदि १० शुक्रवार १७४. १५२५ १७५. १५२५ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६. १५२५ मार्गशीर्ष सुदि १० १७७. १५२५ १७८. १५२५ १७९. १५२५ वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक १२७४. शीतलनाथ की प्रतिमा पर सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख मातर लेखांक ४७८. आदिनाथ की धात की चौबीसी जैन देरासर, सौदागर पोल, वही, भाग १, जिन प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक ८१०. अजितनाथ की प्रतिमा पर घर देरासर, बड़ोदरा वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक २५२. वासुपूज्य की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक १०४१-१०४२. नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ चैत्य,थराद जैनप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक २१४. अजितनाथ की धातु की पंचतीर्थी मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ६७०. १८०. १५२(५) पौष वदि....? १८१. १५२५ माघ वदि ६ १८२. १५२५ १८३. १५२५ अनन्तनाथ की घातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय,माणेक चौक, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ९१८. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४. १५२५ माघ सुदि ९ १८५. १५२५ फाल्गुन सुदि ७ १८६. १५२५ १८७. १५२५ १८८. १५२५ फाल्गुन सुदि ७ शनिवार पद्मप्रभ की प्रतिमा पर नवघरे का मंदिर, दिल्ली जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४८४. विमलनाथ की प्रतिमा पर धर्मनाथ जिनालय, मडार अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनउत्कीर्ण लेख लेखसंदोह, लेखांक ८६. धर्मनाथ की प्रतिमा पर अनुपूर्ति लेख, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ६४७. संभवनाथ की प्रतिमा पर वही वही, लेखांक ६४८. उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर, ऊंझा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक १५९. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथ- वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख पोल, अहमदाबाद लेखांक १२८०. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक १२२८. वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, परा, खेड़ा वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४१८. श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर धर्मनाथ जिनालय, उपलो गभारो, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक १११७. " १८९. १५२५ १९०. १५२५ १९१. १५२५ फाल्गुन सुदि ७ १९२. १५२५ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९३. १५२५ तिथिविहीन १९४. १५२५ १९५. १५२५ १९६. १५२५ संभवनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख किशनगढ़ लेखांक ६७९. मुनिसुव्रत की पंचतीर्थी प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, मुंडावा वही, लेखांक ६७८. उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, छाणी जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख --- भाग २, लेखांक २६०. शांतिनाथ की प्रतिमा पर धर्मनाथ जिनालय, जोधपुर जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ६२४. सुपार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर नेमिनाथ जिनालय, हींगमण्डी, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख आगरा लेखांक १४८५. संभवनाथ देरासर, पादरा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १८. नेमिनाथ की प्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, माणिक जैनलेखसंग्रह, भाग १. उत्कीर्ण लेख तल्ला, कलकत्ता लेखांक १२५. १९७. १५२५ १९८. १५२५ १९९. १५२६ वैशाख सुदि १२ रविवार २००. १५२६ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, लेखांक १८९. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ २०६. १५२६ २०२. १५२६ २०३. १५२६ २०४. १५२६ २०५. १५२७ वैशाख सुदि ६ शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, भिण्डीबाजार, जैनधातुप्रतिमालेख, सोमवार उत्कीर्ण लेख मुम्बई लेखांक १९९. आषाढ़ सुदि ९ कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर नवखण्डा पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, रविवार उत्कीर्ण लेख भोयरापाड़ो, खंभात भाग २,लेखांक ८७२. पौष वदि १ सोमवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ देरासर, मांडल प्राचीनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४०४. तिथिविहीन विमलनाथ की प्रतिमा शांतिनाथ देरासर, छांणी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक २६४. वैशाख सुदि ८ कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर कुन्थुनाथ प्रासाद, अचलगढ़ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैन..... उत्कीर्ण लेख लेखांक ४९१. ज्येष्ठ वदि.....? नमिनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, परा, खेड़ा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग२, लेखांक ४२५. ज्येष्ठ वदि १० कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनलय, मालपुरा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ६८६. सुमतिनाथ की प्रतिमा पर __ चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक १०५०. पौष वदि १ सोमवार शीतलनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पार्श्वनाथ जिनालय, दाहोद प्रतिष्ठालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ६९०. २०६. १५२७ .२०७. १५२७ २०८. १५२७ २०९. १५२७ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१०. १५२७ २११. १५२७ १०० संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पौष वदि ५ शुक्रवार विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुदि १२ पौष सुदि १२ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २१२. १५२७ २१३. १५२७ २१४. १५२७ माघ वदि १ शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १३१७. वही, भाग १, लेखांक १२९६. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३९८. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक १०५२. आदिनाथ जिनालय, वासा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, लेखांक ५४२. आदिनाथ चैत्य, थराद जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १५१. आदिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक १४४१. आदिनाथ जिनालय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखचामुडेरी संदोह, लेखांक ३३८. पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों का बीकानेरजैनलेखसंग्रह, चौक, बीकानेर लेखांक १६००. २१५. १५२७ शीतलनाथ की प्रतिमा पर | उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ वदि ५ गुरुवार २१६. १५२७ माघ वदि ५ २१७. १५२७ माघ वदि ७ २१८. १५२७ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ २१९. १५२७ माघ सुदि १३ २२०. १५२७ तिथिविहीन २२१. १५२७ २२२. १५२८ वैशाख सुदि ३ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर गोपों का उपाश्रय, बाड़मेर जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ७३९. श्रेयांसनाथ की. धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, सांडेसर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ४७५. आदिनाथ जिनालय, नागौर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२७९. नमिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर आदीश्वर जिनालय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ७०४. शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर अजितनाथ जिनालय, गीपटी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ७१८. विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर मनमोहन पार्श्वनाथ देरासर, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख पाटण लेखांक २५०. मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक १५०७. संभवनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख लेखांक १९३. २२३. १५२८ वैशाख सुदि ३ रविवार २२४. १५२८ २२५. १५२८ वैशाख सुदि ३ २२६. १५२८ शनिवार Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७. १५२८ ज्येष्ठ वदि ११ १०२ विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनुपूर्ति लेख, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ६४९. २२८. १५२८ ज्येष्ठ सुदि ८ २२९. १५२८ माघ वदि ४ २३०. १५२८ माघ वदि ५ २३१. १५२८ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर मूर्तियों का पुराना कोठा, शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख श@जय लेखांक १९७. सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा शांतिनाथ देरासर, उपलो गभारो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग २, लेखांक ११४२. मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, नांदिया अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखउत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक ४६१. संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ७४७. संभवनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख लेखांक १९५. शांतिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, बगीची, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख मेड़तासिटी लेखांक ७११. अम्बिका की धातु की प्रतिमा पर अमीझरा पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख जीरारवाड़ो, खंभात भाग २, लेखांक ७५६. पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, अलिंग, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ८५२. २३२. १५२८ माघ सुदि १३ २३३. १५२८ फाल्गुन वदि १३ २३४. १५२८ २३५. १५२८ फाल्गुन सुदि ७ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ २३६. १५२८ फाल्गुन सुदि १० बुधवार वैशाख वदि ४ शुक्रवार २३७. १५२९ २३८. १५२९ तिमा पर २३९. १५२९ धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर वही वही, लेखांक ८५३. उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर संभवनाथ देरासर, पादरा वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १९. कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, सेठों की जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख हवेली के पास, उदयपुर लेखांक १९०२. नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, ऊंझा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक १८४. पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, कोठीपोल, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख बड़ोदरा लेखांक ५९. मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, भरुच वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ३०९. धातु की जिनप्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, नौहर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक २४७७. सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख मामा की पोल, बड़ोदरा भाग २, लेखांक ३६. वैशाख सुदि ३ शुक्रवार ज्येष्ठ वदि ७ गुरुवार आषाढ़ सुदि २ २४०. १५२९ २४१. १५२९ सोमवार २४२. १५२९ माघ सुदि ६ २४३. १५२९ फाल्गुन वदि ३ सोमवार Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४. २४५. २४७. २४६. १५२९ २४८. २४९. २५०. १५२९ २५१. १५२९ १५२९ १५३० १५३० १५३० १५३० 77 वैशाख सुदि ३ श्रावण वदि ६ माघ वदि १ माघ वदि २ १०४ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सेठ नरसीनाथा का मंदिर, पालीताना गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पालीताना शांतिनाथ जिनालय, नांदिया नवखंडा पार्श्वनाथ देरासर, घोघा प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४२२. बड़ा जैनमंदिर, नागौर जूनावेड़ा, मारवाड़ बालावसही, शत्रुंजय जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ६६३. सुपार्श्वनाथ जिनालय, जयपुर शत्रुंजयवैभव, लेखांक १९८. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ४६२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७१८. एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२८२. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९२४. शत्रुंजयवैभव, लेखांक २०२. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११६०. Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२. १५३० " श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २५३. १५३० माघ वदि ६ २५४. १५३० माघ वदि १० बुधवार मुनिसुव्रत की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि ४ शुक्रवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २५५. १५३० आदिनाथ जिनालय, परा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खेड़ा भाग २, लेखांक ४१६. महावीर जिनालय, नाणा प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४११ एवं अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह. लेखांक ३५६. चन्द्रप्रभ जिनालय, आमेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७२७ शांतिनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ७४५. आदिनाथ जिनालय, कठगोला, जैनलेखसंग्रह, भाग १, मुर्शिदाबाद लेखांक ७०. बड़ा मंदिर, नागौर वही, भाग २, लेखांक १२८३ एवं प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७२८. नवघरे का मंदिर, दिल्ली जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४८५. २५६. १५३० संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २५७. १५३० २५८. १५३० फाल्गुन सुदि २ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५९. २६०. २६१. २६२. २६३. २६४. २६५. २६६. १५३० १५३१ १५३१ १५३१ १५३१ १५३१ १५३१ १५३१ फाल्गुन सुदि ७ ज्येष्ठ सुदि २ रविवार ज्येष्ठ सुदि ३ मार्गशीर्ष सुदि ५ सोमवार माघ वदि ८ सोमवार १०६ माघ सुदि.. महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की देवकुलिका पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लख धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि ५ शुक्रवार मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर शांतिनाथ जिनालय, चौकसी पाल, खंभात पित्तलहर, आबू शीतलनाथ जिनालय, रिणी, चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर शांतिनाथ जिनालय, बीजापुर वीर जिनालय, खारवाड़ा, खंभात गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पालीताना बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०६७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८३६. अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक ४२८. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २४४९. वही, लेखांक १०६८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४३८. वही, भाग २, लेखांक १०३५. शत्रुंजयवैभव, लेखांक २१०. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७. १५३१ तिथिविहीन २६८. १५३२ वैशाख सुदि ३ २६९. १५३२ १०७ धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर संभवनाथ देरासर, झवेरीवाड़, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग २, लेखांक ८३८. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, जानीशेरी, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख बड़ोदरा लेखांक १५१. नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख भोयरापाड़ो, खंभात लेखांक ८७३. अभिनन्दन स्वामी की धातु की शांतिनाथ जिनालय, ऊंडीपोल, वही, भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ६७७. शांतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी सुमतिनाथ जिनालय, मेड़ा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक २२५. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक १०५९. विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ चैत्य, थराद जैनप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक २३६. २७०. १५३२ २७१. १५३२ वैशाख सुदि १२ गुरुवार २७२. १५३२ वैशाख सुदि १५ २७३. १५३२ ज्येष्ठ वदि ३ रविवार २७४. १५३२ ज्येष्ठ वदि १३ स्वधिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७५० एवं जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७७७. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७५. १५३२ ज्येष्ठ सुदि २ रविवार २७६. १५३२ कार्तिक सुदि ९ अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, भाग २, लेखांक ६५१. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५४३. वही, लेखांक ५४४. २७७. १५३२ वही २७८. १५३२ वही वही, लेखांक ५४५. संभवनाथ की प्रतिमा पर अनुपूर्ति लेख, आबू उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, वासा उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की प्रतिमा पर अनुपूर्ति लेख, आबू उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की पंचतीर्थी विमलनाथ जिनालय, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सवाईमाधोपुर वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर घरदेरासर, चावलगोला, उत्कीर्ण लेख मुर्शिदाबाद सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, जामनगर उत्कीर्ण लेख २७९. १५३२ तिथिविहीन वही, लेखांक ६५२. २८०. १५३२ २८१. १५३२ वैशाख वदि ४ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७५२. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५८. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४५४. २८२. १५३२ वैशाख वदि ११ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८३. १५३३ वैशाख सुदि ३ वीर जिनालय, माणेकचौक, खंभात २८४. १५३३ अस्पष्ट वैशाख सुदि १२ गुरुवार नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २८५. १५३३ माणिकसागर जी का मंदिर, कोटा धर्मनाथ जिनालय, मडार २८६. १५३३ २८७. १५३३ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९६५. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३९९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७५५. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ८८. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०७७. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४५५. जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २१९४. वही, भाग ३, लेखांक २१७३ एवं बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २७२७. २८८. १५३३ विमलनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख बीकानेर शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, जामनगर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की प्रतिमा पर अष्टापद जी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख जैसलमेर वैशाख सुदि१५ सोमवार २८९. १५३३ पौष वदि१०गुरुवार २९०. १५३३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९१. १५३३ ११० मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ देरासर, सुतारकी खड़की, अहमदाबाद मुनिसुव्रत जिनालय, सांडेसर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३५१. वही, भाग १, लेखांक ४८०. २९२. १५३३ पौष सुदि २ २९३. १५३३ पौष पूर्णिमा सोमवार पाटण २९४. १५३३ माघ वदि १० २९५. १५३३ २९६. १५३३ माघ वदि १० गुरुवार आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, लींबड़ीपाड़ा, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक २८२. पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाड़ो, वही, भाग १, अहमदाबाद लेखांक ११०५. अभिनन्दन स्वामी की धातु की कुन्थुनाथ देरासर, वडनगर वही, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ५७१. नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, ऊंझा वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक २०६. मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, ईडर वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक १४७८. सुमतिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर सोमपार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख संघवीपाड़ा, खंभात लेखांक ७७७. वासुपूज्य की प्रतिमा पर अनुपूर्ति लेख, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ६५४. २९७. १५३३ २९८. १५३३ माघ सुदि६सोमवार २९९. १५३३ फाल्गुन...९....? Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३००. १५३३ फाल्गुन वदि९...? १११ पद्मप्रभ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३०१. १५३३ तिथिनष्ट शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७६६. आदिनाथ जिनालय, वासा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, लेखांक ५४६. खरतरगच्छीय आदिनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७६८. चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०७८. ३०२. १५३४ चैत्र वदिर गुरुवार कोटा ३०३. १५३४ चैत्र वदि९शनिवार शांतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३०४. १५३४ वही वही, लेखांक १०७९. ३०५. १५३४ वैशाख वदि १० संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर ३०६. १५३४ जैनमंदिर, ऊंझा जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २३५३. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १९६. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३८. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ५४८. ३०७. १५३४ ज्येष्ठ सुदि १० आदिनाथ चैत्य, थराद शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३०८. १५३४ आषाढ़ वदिर सोमवार आदिनाथ जिनालय, वासा Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०९. १५३४ आषाढ़ वदि ९ ११२ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर ३१०. १५३४ पौष वदि १० आदिनाथ चैत्य, थराद ३११. १५३४ माघ सुदि १० आदिनाथ जिनालय, नागौर ३१२. १५३४ ३१३. १५३४ माघ सुदि१० सोमवार शीतलनाथ की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, चौकसी उत्कीर्ण लेख पोल, खंभात फाल्गुन सुदि २ सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, जयपुर मितिविहीन संभवनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर सुमतिनाथ जिनालय, नागौर उत्कीर्ण लेख बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १०८२. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १३५. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२९१. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८४५. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११६४. वही, भाग २, लेखांक १३१९ एवं प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ७८४. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५३. वही, भाग १, लेखांक ३६. ३१४. १५३४ ३१५. १५३४ धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ जिनालय, बालूचर, मुर्शिदाबाद आदिनाथ जिनालय, बालूचर मुर्शिदाबाद ३१६. १५३४ ......सुदि ३ धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१७. ३१८. ३१९. ३२०. ३२१. - ३२२. १५३४ ३२४. १५३५ १५३५ १५३५ १५३५ १५३५ ३२३. १५३५ १५३५ आषाढ़ सुदि ६ शुक्रवार पौष वदि ९ पौष सुदि ९ बुधवार माघ वदि ५ गुरुवार ११३ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, वजाणा उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, ऊंझा उत्कीर्ण लेख माघ वदि ९ शनिवार शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर अभिनंदन स्वामी की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख की बालावसही, शत्रुंजय चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, सुधीटोला, लखनऊ संभवनाथ देरासर, जैसलमेर वही, भाग १, लेखांक ५७०. जैनमंदिर, ग्राम गांभू प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४५९. शत्रुंजयवैभव, लेखांक २१७. पार्श्वनाथ देरासर, देवासानो पाड़ो वही, भाग १, अहमदाबाद लेखांक १०९५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १५३. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १५८९. वहीं, भाग ३, लेखांक २३९५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७३. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ३२५. १५३५ ३२६. १५३५ माघ सुदि ५ गुरुवार ३२७. १५३५ ३२८. १५३५ ११४ शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, भीलड़िया तीर्थ जैनप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ३३५. संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर कुन्थुनाथ देरासर, वडनगर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ५७९. शांतिनाथ की प्रतिमा पर धर्मनाथ जिनालय, मडार अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखउत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक ९०. अनन्तनाथ की प्रतिमा पर संभवनाथ देरासर, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, उत्कीर्ण लेख लेखांक २३५६. श्रेयांसनाथ की धातु की पंचतीर्थी पार्श्वनाथ जिनालय, हरसूली प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ७९०. संभवनाथ की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक १८२६. अरनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणिजी का मंदिर, वही, लेखांक १०९२. उत्कीर्ण लेख बीकानेर नमिनाथ की प्रतिमा पर संभवनाथ जिनालय, देशनोंक वही, लेखांक २२२०. उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, वही, लेखांक १०९४. उत्कीर्ण लेख बीकानेर ३२९. १५३५ ३३०. १५३५ ३३१. १५३५ ३३२. १५३५ ३३३. १५३५ माघ सुदि १० Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४. १५३५ ३३५. १५३५ फाल्गुन सुदि ८ ३३६. १५३६ ज्येष्ठ सुदि ५ ३३७. १५३६ ३३८. १५३६ ज्येष्ठ सुदि ११ चन्द्रप्रभ जिनालय, वेगाणियों वही, लेखांक १६४९. का चौक, बीकानेर संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर प्राचीन जैन मंदिर, लींबड़ी प्राचीनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४६१. कुन्थुनाथ की धातु की पंचतीर्थी चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख रतलाम लेखांक ७९५. आदिनाथ की धातु की चौबीसी श्रीस्वामीजी का मंदिर, रोशन- जैनलेखसंग्रह, भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुहल्ला, आगरा लेखांक १४६५. चन्द्रप्रभ जिनालय, सुल्तानपुरा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, बड़ोदरा लेखांक २०६. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, हद्राणा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखउत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक २०२. वासुपूज्य की धातु की पंचतीर्थी विमलनाथ जिनालय, सवाई प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माधोपुर लेखांक ८०२. चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर जैनमंदिर, चेलपुरी, दिल्ली जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४४६. पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, ऊंझा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक २०४. ३३९. १५३६ कार्तिक सुदि २ ३४०. १५३६ ३४१. १५३६ ३४२. १५३६ माघ सुदि ८ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४३. १५३६ फाल्गुन सुदि १२ ३४४. १४३६ तिथिविहीन ३४५. १५३७ वैशाख वदि२ सोमवार वैशाख वदि ९ ३४६. १५३७ ११६ नमिनाथ की प्रतिमा पर जगतसेठ का मंदिर, महिमापुर जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ७३. आदिनाथ की प्रतिमा पर अनुपूर्तिलेख, आबू अर्बुदाचलप्राचीनजैनलेखउत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक ६५६. शीतलनाथ की धातु की चौबीसी अजितनाथ देरासर, सुगनजी का बीकानेरजैनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख उपाश्रय, बीकानेर लेखांक १६६५. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर श्रेयांसनाथ जिनालय, हिंडोन प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ८०८. शांतिनाथ देरासर, शेखनो पाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, अहमदाबाद भाग१, लेखांक १०२३. कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उपकेशगच्छीय शांतिनाथ जिनालय,प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख मेड़ता सिटी लेखांक ८११. सुमतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी सेठ चांदमल का देरासर, जैनलेखसंग्रह, भाग ३, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैसलमेर लेखांक २४६६. वासुपूज्य की प्रतिमा पर नवघरे का मंदिर, दिल्ली वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४८९. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पोरवालों का मंदिर, पूना जैनधातुप्रतिमालेख, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४७४. ३४७. १५३७ ३४८. १५३७ वैशाख सुदि५ बुधवार ३४९. १५३७ ३५०. १५३७ वैशाख सुदि १० सोमवार ३५१. १५३७ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ ३५२. १५३७ ३५३. १५३७ ३५४. १५३७ ३५५. १५३७ ३५६. १५३७ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन देरासर, डभोई उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की चौबीसी शांतिनाथ जिनालय, मियागाम प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ वदि ७ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर महावीर स्वामी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख डागों में, बीकानेर ज्येष्ठ वदि ८शनिवार सुविधिनाथ की धातु की पंचतीर्थी सुमतिनाथ जिनालय, मेड़ा प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ वदि ११ शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, कड़ा- उत्कीर्ण लेख कोटड़ी, खंभात जैन देरासर, कोलवड़ा ज्येष्ठ सुदि २ सोमवार अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ चैत्य, थराद उत्कीर्ण लेख पौष वदि१०गुरुवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख चौकसीपोल, खंभात माध सुदि २सोमवार शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, जामनगर उत्कीर्ण लेख जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३४. वही, भाग २, लेखांक २९१. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १५३८. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक २२७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ६१२. वही, भाग१,लेखांक ६६१. जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १६७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८१४. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४७३. ३५७. १५३७ ३५८. १५३७ ३५९. १५३७ भात ... १५३७ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६१. १५३८ वैशाख सुदि३ ३६२. १५३९ वैशाख सुदि३ गुरुवार वैशाख सुदि ३ ३६३. १५४० ३६४. १५४० वैशाख....३....? ३६५. १५४० ११८ सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, शेखनो पाड़ो,जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक १०२१. शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, उपलोगभारो, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक ११३३. शांतिनाथ की धातु की पंचतीर्थी आदिनाथ जिनालय, हद्राणा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक २०३. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, ऊंझा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक १७९. बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, लेखांक २२५. शिलालेख सुविधिनाथ जिनालय, पित्तलहर, अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, आबू लेखांक ४३२. कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर नेमिनाथ जिनालय, भोयरापाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ८८८. धर्मनाथ की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, रेजीडेंसी जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख बाजार, हैदराबाद लेखांक २०५४. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़तारोड प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ८२७. ३६६. १५४० सोमवार माघ सुदि १३ रविवार ३६७. १५४० ३६८. १५४१ माघ सुदि१२ ३६९. १५४१ फाल्गुन सुदि३ गुरुवार Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७०. १५४१ मितिविहीन ३७१. १५४१ तिथिविहीन ३७२. १५४२ वैशाख सुदि १० गुरुवार वैशाख सुदि १३ ३७३. १५४२ ३७४. १५४२ माघ सुदि १० रविवार संभवनाथ की धातु की चौबीसी शांतिनाथ जिनालय, मांडल प्राचीनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ४८०. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पद्मावती का मंदिर, बीजापुर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ४२७. नमिनाथ की प्रतिमा पर शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक १३२८. पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, दंताल पोल, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ६६४. आदिनाथ की धातु की चौबीसी आदिनाथ जिनालय, नागपुर जैनधातुप्रतिमालेख, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक २४१. धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर प्राचीनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४८१ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११००. विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, सीनोर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ३६९. नेमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख किशनगढ़ लेखांक ८३४. ३७५. १५४२ फाल्गुन वदि २ ३७६. १५४२ फाल्गुन वदि ८ शनिवार ३७७. १५४२ ___ मितिविहीन Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८. १५४३ वैशाख सुदि१गुरुवार ३७९. १५४३ फाल्गुन वदि८ शनिवार १२० शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, सूरत उत्कीर्ण लेख धातु की चौबीसी प्रतिमा पर जैनमंदिर, शाहपुर, मुंबई उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर महावीर जिनालय, खेड़ा उत्कीर्ण लेख प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ४८८. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक २४६. जैनथातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४३९. ३८०. १५४३ इसके अतिरिक्त मुनि विशालविजय द्वारा संपादित राधनपुरप्रतिमालेखसंग्रह में वि०सं० १५१९ से १५३६ तक; जैनसत्यप्रकाश, वर्ष २ में वि०सं० १५२१-१५४१ तक, वर्ष ३ में वि०सं० १५१७ से १५३१ तक और वर्ष ११ में वि० सं० १५२० से १५२३ तक के इनके विभिन्न प्रतिमा लेख प्रकाशित हैं। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२१ सुमतिसाधुसूरि - लक्ष्मीसागरसूरि के निधन के पश्चात् सुमतिसाधुसूरि तपागच्छ के ५४वें पट्टधर बने। एक पट्टावली के अनुसार वि०सं० १४९४ में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १५११ में इन्होंने आचार्य रत्नशेखरसूरि से दीक्षा ग्रहण की। वि०सं० १५१८ में आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि ने इन्हें आचार्य पद प्रदान किया और वि० सं० १५५१ में इनका निधन हुआ।३६ इनके द्वारा रचित सोमसौभाग्यकाव्य और दशवैकालिक लघुटीका नामक कृतियाँ प्राप्त होती हैं। सोमसौभाग्यकाव्य में आचार्य सोमसुन्दरसूरि का जीवनचरित्र वर्णित है। लावण्यसमय गणि द्वारा रचित सुमतिसाधुविवाहलो" (रचनाकाल वि०सं० की १६वीं शताब्दी का मध्य) से इनके बारे में जानकारी प्राप्त होती है। सुमतिसाधुसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि० सं० १५३७ से वि० सं० १५४८ तक की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक वि० सं० ४. ७. १५३७ १५४३ १५४४ १५४४ १५४४ १५४५ १५४५ तिथि/मिति/वार वैशाख सुदि १० वैशाख सुदि .... ? वैशाख सुदि ३ वैशाख सुदि १५ रविवार वैशाख सुदि ९ ज्येष्ठ वदि११ रविवार १२२ लेख का स्वरूप प्रतिमालेख / शिलालेख सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, परा, उत्कीर्ण लेख खेड़ा धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वर्तमान प्राप्ति स्थान अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर छोटा जिनालय, माणसा उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर पंचायती मंदिर, जयपुर पार्श्वनाथ जिनालय, सांभर नवघरे का मंदिर, दिल्ली आदिनाथ जिनालय, हद्राणा संदर्भ ग्रन्थ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४२३. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२२५. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ८३७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग १, लेखांक ४१५. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ८३८. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४९०. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक २०४. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. १५४६ माघ सुदि ३शनिवार १५४६ १०. १५४६ माघ सुदि१३रविवार ११. १५४६ फाल्गुन वदि१० रविवार वैशाख वदि ५ १२३ संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख मातर भाग २, लेखांक ४८१. कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ पोल, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक १३२६. अरनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ देरासर, करवटीया वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४९४. आदिनाथ की प्रतिमा पर वासुपूज्य जिनालय, बीकानेर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक १३९६. नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, जामनगर प्राचीनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ५००. संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर, नेमुभाई का बाड़ा, वही, लेखांक ४९९ उत्कीर्ण लेख सूरत अम्बिका की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ५५३. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पद्मावती का मंदिर, बीजापुर वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४२८. १२. १५४७ १३. १५४७ वैशाख सुदि३ सोमवार १५४७ १५. १५४७ माघ वदि १३ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६. १५४७ माघ सुदि१३ रविवार १७. १५४७ १८. १५४८ १९. १५४७ २०. १५४७ १२४ पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उपकेशगच्छीय शांतिनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख मेड़ता सिटी लेखांक ८४७. धातु की जिन प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक १०७४. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर अजितनाथ जिनालय, गीपटी, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ७१५. विहरमान तीर्थंकर विशालनाथ की शांतिनाथ जिनालय, कड़ाकोटडी, वही, भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ६१४. कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर संभवनाथ जिनालय, बोलपीपलो, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ११४९. धातु की जिन प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, भरुच वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ३१६. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लखांक ३५२. नेमिनाथ की प्रतिमा पर भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खेड़ा लेखांक ४५४. शीतलनाथ की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाडो, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक १०८८. २१. १५६(४)७ २२. १५४७ २३. १५४७ २४. १५४७ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. १५४७ २६. १५४७ माघ सुदि....रविवार २७. १५४७ तिथिविहीन अभिनंदन स्वामी की धातु की नया आदिनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नागपुर लेखांक २५१. विहरमान जिनप्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, रिणी, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख तारानगर लेखांक २४४५. शिलालेख सुविधिनाथ जिनालय, पित्तलहर, अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४३९. शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, झवेरीवाड़, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक ९०३ सीमंधरस्वामी का देरासर, वही, भाग १, उपलो गभारो, अहमदाबाद लेखांक ११५५. आबू २८. १५४७ २९. १५४८ वैशाख सुदि...गुरुवार Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ आचार्य सुमतिसाधुसूरि के वि०सं० १५५१/ई०स० १४९५ में निधन के पश्चात् हेमविमलसरि तपागच्छ के ५५वें पट्टधर बने। इनके जीवन के बारे में विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से जानकारी प्राप्त होती है। इनका विवरण इस प्रकार है : १. वीरवंशावली २. लघुपौशालिकपट्टावली' ३. हेमविमलफागु२ रचनाकार-दानवर्धन के शिष्य मुनि हंसधीर; रचनाकाल - वि०सं० १५५४/ई०स० १४९८ ४. हेमविमलसूरिसज्झाय ३ रचनाकार - अज्ञात रचनाकाल - वि० सं० १५८३ से पूर्व हेमविमलसूरिसज्झाय रचनाकार - सुन्दरहंस गच्छनायकपट्टावलीसञ्झाय५ रचनाकार-सोमविमल रचनाकाल - वि०सं० १६०२/ई०स० १५४६ ७. तपागच्छपट्टावलीसूत्र ६ रचनाकार- धर्मसागर उपाध्याय रचनाकाल - वि०सं० १६४६/ई०स० १५९० ८. महावीरपट्टपरम्परा रचनाकार-देवविमल गणि रचनाकाल-वि० सं० १६३९-१६५६ के मध्य ९. सूरिपरम्परा रचनाकार-विनयविजय ___ रचनाकाल-वि०सं० १७०८/ई०स० १६५२ १०. पट्टावलीसारोद्धार ९ रचनाकार-रविवर्धन । रचनाकाल-वि०सं० १७३९/ई०स० १६८३ ११. गुरुपट्टावली रचनाकार-अज्ञात आचार्य हेमविमलसूरि के जन्म और दीक्षा के समय के बारे में उक्त साक्ष्यों में प्रायः मतभेद है। लघुपौशालिकपट्टावली आदि के अनुसार इनका जन्म वि०सं० १५२० में हुआ था और वि०सं०१५२८ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, जबकि वीरवंशावली आदि में जन्म वि०सं० १५२२ और दीक्षा वि०सं० १५३८ में बतलाया गया है। अन्य प्रमुख बातों में उक्त साक्ष्यों में प्राय: समान विवरण मिलता है। लक्ष्मीसागरसूरि से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १५४८ में सुमतिसाधुसूरि ने इन्हें आचार्य पद प्रदान किया। गुरु के निधन के पश्चात् इन्हें तपागच्छ का नायकत्त्व प्राप्त हुआ। हेमविमलसूरि द्वारा रची गयी कुछ कृतियाँ मिलती हैं, जो इस प्रकार हैं : पार्श्वजिनस्तवन १ २. वरकाणापार्श्वनाथस्तवन २ तेरकाठियानीसज्झाय३ मृगापुत्रसज्झाय या मृगापुत्रचौपाई॥४ आचार्य हेमविमलसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिन प्रातिमायें बड़ी संख्या में मिलती हैं। ये वि०सं० १५४६ से वि०सं० १५८३ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य हेमविमलसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध सलेख जिनप्रतिमाओं की तालिका Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ क्रमांक वि० सं० तिथि/मिति/वार लेख का स्वरूप वर्तमान प्राप्ति संदर्भ ग्रन्थ प्रतिमालेख/शिलालेख स्थान १. १५४६ तिथिविहीन वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर अजितनाथ देरासर, सुतार की जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खड़की, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १३४७. १५४८ वैशाख सुदि२ शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर सीमंधर स्वामी का देरासर, वहीं, भाग १, शनिवार उत्कीर्ण लेख उपलो गभारो, अहमदाबाद लेखांक ११६४. ३. १५५१ वैशाख.....? संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर धर्मनाथ देरासर, उपलो गभारो, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक ११०९. १५५१ वैशाख सुदि१३ आदिनाथ की प्रतिमा पर बालावसह शत्रुजयवैभव, गुरुवार उत्कीर्ण लेख लेखांक २४८. १५५१ धर्मनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, माणेक चौक, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक १००८. १५५१ आषाढ़ वदि ८ विमलनाथ की पाषाण की प्रतिमा वीर जिनालय, चोथ का बरवाड़ा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ८६२. ७. १५५२ वैशाख सुदि ५ आदिनाथ की प्रतिमा पर सुमतिनाथ जिनालय, मेड़ा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसोमवार उत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक २२८. ८. १५५२ वैशाख सुदि १४ नमिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणिजी का मंदिर, बीकानेर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ८. Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. ११. १२. १३. १४. १६. १५५२ १५५२ १५५२ १५५२ १५५२ १५५३ १५५३ १५५३ ज्येष्ठ सुदि १३ माघ वदि ८ आषाढ़ सुदि२ रविवार सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन सुदि ६ फाल्गुन सुदि६ शनिवार माघ वदि१० गुरुवार माघ सुदि ५ रविवार १२९ " शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ जिनालय, फूलवाली जैनलेखसंग्रह, भाग २, गली, लखनऊ लेखांक १६०४. मनमोहन पार्श्वनाथ देरासर, पाटण मोती सुखिया का मंदिर, जैन धर्मशाला, पालीताना शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, आसानियों का चौक, बीकानेर " शीतलनाथ जिनालय, कुंभारवाड़ो, खंभात जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २५१. पार्श्वनाथ देरासर, देवासनो पाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १०६६. अहमदाबाद सीमंधर स्वामी का देरासर, उपलो गभारो, अहमदाबाद शत्रुंजयवैभव, लेखांक २५१. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १९१७ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३४४. वही, भाग १, लेखांक १४७५. वही, भाग २, लेखांक ६५४. वही, भाग १, लेखांक ११६२. Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० १७. आषाढ़ सुदि २ १५५४ बालावसही, शत्रुजय सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पौष वदि २ वही १८. १९. १५५४ १५५४ माघ वदि२ बुधवार २०. १५५४ २१. १५५४ आदिनाथ की पाषाण की प्रतिमा केशरियानाथ मंदिर, भिनाथ पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, वडनगर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा पर गौडी पार्श्वनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख मोती कटरा, आगरा सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर, चाणस्मा उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की चौबीसी शीतलनाथ जिनालय, रिणी, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख तारानगर नया जैन मंदिर, अमरावती शत्रुजयवैभव, लेखांक २५५. वही, लेखांक २५३. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ८७७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५५०. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४७७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २४४६. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक २६७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३२७. २२. १५५४ २३. १५५४ तिथिविहीन २४. १५५५ वैशाख सुदि३ शनिवार २५. १५५५ मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६. १५५५ २७. १५५५ २८. १५५६ २९. १५५६ ३०. १५५६ शांतिनाथ की प्रतिमा पर सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों की बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख गुवाड़, बीकानेर लेखांक १७५७. फाल्गुन सुदि२ समतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, वडनगर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सोमवार उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ५५४. वैशाख सुदि६ गुरुवार अस्पष्ट चौमुखजी देरासर, ईडर वही, भाग १, लेखांक १४५२. वैशाख सुदि ३ सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन देरासर, डभोई वही, भाग १, लेखांक ८. उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर नेमिनाथ जिनालय, मांडवीपोल, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ६३४. सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ३३४. वैशाख सुदि ४ कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, भरुच वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ३०६. द्वितीय ज्येष्ठ सुदि १ शिलालेख जैन मंदिर, हमीरगढ़ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखशुक्रवार संदोह, लेखांक २३७. ज्येष्ठ सुदि २ पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर विमलनाथ जिनालय, सवाई- प्रतिष्ठालेखसंग्रह, ऊत्कीर्ण लेख माधोपुर लेखांक ९९२. ३१. १५५६ ३२. १५५६ ३४. १५५६ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ३५. १५५६ ३६. १५५७ ३७. १५५७ ३८. १५५७ मितिविहीन वासुपूज्य स्वामी की धातु की मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मीयागाम भाग २, लेखांक २८४. ज्येष्ठ सुदि३ गुरुवार मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर जैनदेरासर, डभोई वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक १७. पौष सुदि १५ कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर पंचायती मंदिर, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ८९६. पौष सुदि १५ वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा पर चन्द्रप्रभ जिनालय, रंगपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १०२६. कार्तिक वदि १३ अस्पष्ट आदिनाथ जिनालय, अचलगढ़ अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४८८ माघ सुदि १३ गुरुवार मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, रतलाम प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ८९८. श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर खरतरगच्छीय आदिनाथ जिनालय, वही, लेखांक ८९९. उत्कीर्ण लेख कोटा माघ वदि २ गुरुवार सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, खेरालु जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ७५४. ३९. १५५८ ४०. १५५८ १५५८ ४२. १५५९ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३. १५५९ सुमतिनाथ जिनालय, मालगाम अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक २१५. ४४. १५५९ १३३ माघ सुदि १४ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि१५ गुरुवार सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ३ वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ४५. १५६० ४६. १५६० यति श्याम लाल जी का उपाश्रय, जैनलेखसंग्रह, भाग १, जयपुर लेखांक ५८०. बडा मंदिर, नागौर वही, भाग २, लेखांक १३२० एवं प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९०८. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९११. शांतिनाथ जिनालय, नदियाड जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४०२. शांतिनाथ जिनालय, बीकानेर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११३०. शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, वही, लेखांक १९०१ एवं आसनियों का मुहल्ला, बीकानेर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३४५. ४७. ज्येष्ठ वदि८ रविवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि५ शुक्रवार वासुपूज्य की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ३ कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि५ शुक्रवार विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५६१ ४८. १५६१ ४९. १५६१ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ५०. १५६१ ५१. १५६३ " ५२. १५६३ ५२अ. १५६३ ५३. १५६३ १३४ तिथिविहीन संभवनाथ देरासर, कड़ी जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७४६. वैशाख सुदि३ शनिवार पद्मप्रभ की प्रतिमा पर जैन मंदिर, भामरा ग्राम अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखउत्कीर्ण लेख संदोह, लेखांक १८१. पद्मप्रभ जिनालय, कडाकोटडी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ५९२. वासुपूज्य की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख चौकसी पोल, खंभात लेखांक ८४१. वैशाख सुदि११ आदिनाथ की धातु की चौबीसी पार्श्वनाथ देरासर, ईडर वही, भाग १, गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १४७०. ज्येष्ठ सुदि १२ शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर वीर जिनालय, रीज रोड, वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद लेखांक ९४५. ज्येष्ठ सुदि ११ आदिनाथ की प्रतिमा पर गौडी पार्श्वनाथ जिनालय, शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख . पालीताना लेखांक २६०. तिथिविहीन जिन प्रतिमा पर पद्मप्रभ जिनालय, अजीमगंज जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ११. वैशाख सुदि ३ संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, आरीपाड़ो, जैनधातप्रतिमालेखसंग्रह, रविवार उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ५७१. ५४. १५६४ ५५. १५६४ ५६. १५६४ ५७. १५६५ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ ५८. १५६५ ५९. १५६६ ६०. १५६६ ६१. १५६६ ६२. १५६६ वैशाख सुदि ८ अनन्तनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर बावन जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, शनिवार उत्कीर्ण लेख लेखांक १९४६. वैशाख वदि १३ धर्मनाथ की प्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वही, भाग २, रविवार उत्कीर्ण लेख लेखांक ११०२. वैशाख सुदि १० सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर फतेहभाई अमीचंदभाई झवेरी का जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, गुरुवार उत्कीर्ण लेख घर देरासर, बडोदरा लेखांक २३९. पौष वदि ५ सोमवार मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर अरनाथ जिनालय, जीरारवाड़ो, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ७६१. माघ वदि ५ गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, जैनधातुप्रतिमालेख, मुम्बई लेखांक २८२. जैन मंदिर, पटना जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २९१. माघ वदि ८ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख किशनगढ़ लेखांक ९२९. फाल्गुन सुदि ३ सुपार्श्वनाथ का बडा पंचायती जैनलेखसंग्रह, भाग २, सोमवार मंदिर, जयपुर लेखांक ११७०. ज्येष्ठ वदि ४ शुक्रवार धर्मनाथ की प्रतिमा पर घर देरासर, बड़ोदरा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक २३३. १५६६ ६४. १५६६ ६६. १५६७ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७. १५६७ ६८. १५६८ ६९. १५६८ ७०. १५६८ १३६ ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर धर्मनाथ देरासर, डभोई वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक ५४. वैशाख सुदि ३ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, वही, भाग २, शुक्रवार उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ९३६. वैशाख सुदि ७ नोट- (इस लेख में हेमविमलसूरि के । प्राचीनजैनलेखसंग्रह, शिष्य चरित्रसाधुगणि का प्रतिमा भाग २, लेखांक ४१८. प्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है) शांतिनाथ की प्रतिमा पर मल्लिनाथ जिनालय, भोयरापाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ९०२. माघ सुदि ४ शुक्रवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक ११३३. माघ सुदि १३ आदिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४३२ एवं प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९४५. माघ वदि १३ बुधवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, लूणकरणसर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक २५०५. ७१. १५६८ ७२. १५६९ ७३. १५७० Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ ७४. १५७१ पौष वदि १ सोमवार कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर महावीर देरासर, अहमदनगर उत्कीर्ण लेख माघ वदि १ सोमवार संभवनाथ की धातु की चौबीसी सीमंधरस्वामी का देरासर, उत्कीर्ण लेख उपलो गभरो, अहमदाबाद नमिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर मोती खिया जी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख - पालीताना फाल्गुन वदि ४ वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर वीर जिनालय, रीज रोड, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद अश्विन वदि ७ रविवार पद्मप्रभ की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, बीकानेर उत्कीर्ण लेख जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५८४. वही, भाग १, लेखांक ११९२. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६४९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९२६. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११३८. वही, लेखाांक ११३९. ७७. १५७२ ७८. १५७५ ७९. १५७५ वही १५७६ फाल्गुन वदि ४ वासुपूज्य की प्रातिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ६ अभिनन्दन स्वामी की धातु की कुन्थुनाथ जिनालय, वडनगर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ सुदि५ शनिवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर संभवनाथ देरासर, कड़ी उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय उत्कीर्ण लेख ८१. १५७७ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५७०. वही, भाग १, लेखांक ७२५. शत्रुजयवैभव, लेखांक २७४. १५७७ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३. १५७७ ८४. १५७७ ८५. १५७८ ८६. १५७८ ८७. १५७८ १३८ आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ वदि ८ रविवार वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि १३ बुधवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चैत्र सुदि१३ गुरुवार बीस विहरमान चित्रपट्ट पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि १२ धर्मनाथ की प्रतिमा पर शुक्रवार उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवार धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पटोलीआ पोल, बड़ोदरा भाग २, लेखांक ९०. अजितनाथ देरासर, सुतार की वही, भाग १, खड़की, अहमदाबाद लेखांक १३३८. बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, लेखांक २७६. अरनाथ देरासर, बीजापुर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४४५. वीर जिनालय, वलडा ग्राम अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, लेखांक २६९. आदिनाथ जिनालय, मेड़ता जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७६९. चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक ११. अजितनाथ जिनालय, तारंगा जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७३०. शांतिनाथ जिनालय, शेठ वाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खेड़ा भाग २, लेखांक ४३१. ८८. १५७९ ८९. १५८० ९०. १५८० ९१. १५८० Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२. १५८१ ज्येष्ठ वदि ९ ९३. १५८१ शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर श्रेयांसनाथ जिनालय, फताशाह वही, भाग १, उत्कीर्ण लेख की पोल, अहमदाबाद लेखांक १३७२. धातु के शगुंजय तीर्थपट्ट पर जिनाल प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ९६८. शांतिनाथ की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों में, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक १६२९. ९४. १५८३ माघ सुदि ४ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० आचार्य हेमविमलसूरि के समय ही तपागच्छ की दो उपशाखायें-कमलकलशशाखा और कुतुबपुराशाखा अस्तित्त्व में आयीं।“ मुनिश्री चतुरविजयजी ने विभिन्न ग्रन्थप्रशस्तियों, पुस्तकप्रशस्तिओं आदि के आधार पर इनके आनन्दविमलसूरि, दयावर्धनगणि, कुलचरणगणि, साधुविजय, अनन्तहंस, हर्षकुल, सौभाग्यहर्ष आदि २० शिष्यों का उल्लेख किया है।५६ लघुपौशालिकपट्टावली के अनुसार हेमविमलसूरि ने पहले आनन्दविमलसूरि को अपना पट्टधर नियुक्त किया था, परन्तु बाद में उन्होंने सौभाग्यहर्ष को अपना पट्टधर नियुक्त किया। वि० सं० १५८३ में इनका देहान्त हुआ।५८ इनके प्रथम पट्टधर आनन्दविमल से तपागच्छ की मूलपरम्परा आगे चली और द्वितीय पट्टधर सौभाग्यहर्ष की शिष्य-परम्परा लघुपौशालिक या सोमशाखा के नाम से विख्यात हुई। आनन्दविमलसूरि का जन्म वि०सं० १५४७ में हुआ था। वि० सं० १५५२ (?) में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १५७० में आचार्य पद प्राप्त किया। इस समय तक मुनिजनों में शिथिलाचार व्याप्त हो चुका था, अत: इन्होंने वि०सं० १५८२ में क्रियोद्धार किया। तपागच्छीय आचार्य सोमप्रभसूरि ने मरुभूमि में जलदौर्लभ्य के कारण अपने गच्छ के मुनिजनों का विहार निषिद्ध किया था, उसे आनन्दविमलसूरि ने पुन: चालू किया और अपने शिष्यों का वहाँ विहार कराया ताकि तपागच्छ का प्रभाव वहाँ बना रहे। वि०सं० १५९६ में इनका देहान्त हुआ।६० इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है : Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ आनन्दविमलसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध सलेख जिनप्रतिमाओं की तालिका क्रमांक वि० सं० तिथि/मिति/वार वर्तमान प्राप्ति संदर्भ ग्रन्थ लेख का स्वरूप प्रतिमालेख/शिलालेख स्थान १. १५८५ माघ वदि २ बुधवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ जिनालय, नदियाड जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३८०. वही, भाग २, लेखांक ४५३. २. १५८५ १५८५ वही, भाग १, लेखांक ६१९. भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय, खेड़ा अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैन मंदिर, घडकण उत्कीर्ण लेख माघ सुदि १२ आदिनाथ की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, छांणी, उत्कीर्ण लेख माघ सुदि १२ शुक्रवार जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, नीशापोल, अहमदाबाद ४. १५८५ वही, भाग २, लेखांक २७०. वही, भाग १, लेखांक १२०९. ५. १५८५ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ - आनन्दविमलसूरि के पट्टधर विजयदानसूरि हुए। पट्टावलियों के अनुसार वि० सं० १५५३ में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १५६२ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, वि०सं० १५८७ में सूरि पद प्राप्त किया और वि०सं० १६२२ में इनकी मृत्यु हुई।६९ इन्होंने अनेक स्थानों पर विहार लिया। विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों में उपलब्ध सूचना के अनुसार इन्होंने गुजरात के सुल्तान मुहम्मद के मंत्री से शत्रुजयतीर्थ पर लगने वाले कर को छह मास के लिये माफ कराया।६२ इन्होंने संघ के साथ शत्रुजय, गिरनार आदि तीर्थों की यात्रायें की और वहाँ के प्राचीन जिनालयों का जीर्णोद्धार कराया। इन्हीं के समय उपाध्याय धर्मसागर जी ने सभी गच्छों की अशिष्टोचित आलोचना करके असन्तोष का वातावरण उत्पन्न कर दिया जिससे श्वेताम्बर समाज में परस्पर तीव्र वैमनस्य होने लगा, अत: विजयदानसूरि ने उपाध्याय जी को गच्छ से निष्कासित कर दिया और उनके तथाकथितग्रन्थ कुमतिकुद्दाल को जलशरण कराया। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी मिली हैं जो वि०सं० १५९२ से लेकर वि०सं० १६२० तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ वर्तमान प्राप्ति स्थान मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३५४. १४३ क्रमांक वि० सं० तिथि/मिति/वार लेख का स्वरूप प्रतिमालेख/शिलालेख १५९२ माघ सुदि १२ शुक्रवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५९५ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३. १५९५ सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ४. १५९५ जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, मांडवीपोल, वही, भाग २, खंभात लेखांक ६२१. शांतिनाथ जिनालय, माणेक वही, भाग २, चौक, खंभात लेखांक ९९२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, बोलपीपलो, खंभात लेखांक १११६. शांतिनाथ जिनालय, बोहरन- जैनलेखसंग्रह, भाग २, टोला, लखनऊ लेखांक १५०७. चिन्तामणि पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, कड़ी भाग १, लेखांक ७२१. सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, वही, भाग २, मातर लेखांक ४९०. १५९५ वैशाख सुदि ६ सोमवार ६. १५९५ १५९५ सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८. १५९६ वैशाख सुदि.....? भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, लेखांक ४५६. खेड़ा Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९. १५९६ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११०४. १०. १५९८ ११. १५९८ १४४ ज्येष्ठ सुदि २ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ५ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उपकेशगच्छीय शांतिनाथ गुरुवार उत्कीर्ण लेख जिनालय, मेड़ता सिटी वैशाख सुदि १३ आदिनाथ जिनालय, खंभात गुरुवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर वही उत्कीर्ण लेख तिथिविहीन धर्मनाथ की प्रतिमा पर सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा उत्कीर्ण लेख मंदिर, जयपुर माघ वदि ८ शुक्रवार देहरी पर उत्कीर्ण शिलालेख वीर जिनालय, पीडवाड़ा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९९८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १० १९. वही, भाग २, लेखांक १००९. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११७६. १२. १५९८ १३. १६०१ १४. १६०३ वही, भाग १, लेखांक ९४६. वही, भाग १, लेखांक ९४७. १६०३ महावीर जिनालय, पीडवाड़ा महावीर प्रासाद की देहरी पर उत्कीर्ण शिलालेख १६०३ वही, भाग १, लेखांक ९४८ एवं अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह,लेखांक ३७९-३८१. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. १६०४ १६०४ १६०४ २०. १६०५ २१. १६०५ वैशाख वदि ७ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर शीतलनाथ जिनालय, कुभारवाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सोमवार उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ६५१. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर सोमपार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख संघवी पाड़ा, खंभात लेखांक ७७३. धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर महावीर जिनालय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक १००५. वैशाख सुदि ७ पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, पटोलीआ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख पोल, बड़ोदरा भाग २, लेखांक ११५. माघ वदि ११ शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा सेठ जी का घर देरासर, कोटा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १००७. फाल्गुन वदि ३ गुरुवार शांतिनाथ जिनालय, नाहटों में, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, बीकानेर लेखांक १८४०. फाल्गुन वदि २ सोमवार सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों में, वही, लेखांक १७७७. बीकानेर आदिनाथ की प्रतिमा पर थीरूशाह का देरासर, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, उत्कीर्ण लेख लेखांक २४४८. वैशाख सुदि २ चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ५४४. २२. १६०५ असपष्ट २३. १६१० २५. १६१२ खंभात Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ बुधवार २७. १६१२ २८. १६१२ २९. १६१२ आदिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख बोलपीपलो, खंभात लेखांक ११२७. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर वही वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १११८. शीतलनाथ की प्रतिमा पर नवपल्लव पार्श्वनाथ देरासर, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख बोलपीपलो, खंभात लेखांक ११०७. धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर अजितनाथ जिनालय, गीपटी, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ७१४. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, मांडवीपोल, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ६३०. शिलालेख, वीर जिनालय, पीडवाड़ा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह,लेखांक ३८३-३८४. मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर स्टेशन का जैन मंदिर, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख जयपुर लेखांक १०१२. संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, भरुच जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ३१०. ३०. १६१२ ३१. १६१२ ३२. १६१३ फाल्गुन वदि ११ शुक्रवार वैशाख सुदि ६ बुधवार पौष वदि ६ शुक्रवार ३३. १६१५ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४. १६१५ ३५. १६१५ वही भाग २. लेखांक ३५१. वही, भाग २, लेखांक ३२०. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३०९. वही, लेखांक ३१०. ३६. १६१५ ३७. १६१६ वैशाख सुदि १० रविवार १४७ विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर वही उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, उत्कीर्ण लेख पायधुनी, मुम्बई आदिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, कोट, उत्कीर्ण लेख मुम्बई वासुपूज्य की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, बोहरन- उत्कीर्ण लेख टोला, लखनऊ संभवनाथ की प्रतिमा पर वही, उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर विमलनाथ जिनालय, संघवी- उत्कीर्ण लेख पाड़ा, खंभात अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर विमलनाथ जिनालय, चौकसी- उत्कीर्ण लेख पोल, खंभात ३८. १६१६ ३९. १६१६ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १५०८. वही, भाग २. लेखांक १५०८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ७८३. वही, भाग २, लेखांक ७९४. ४१. १६१७ ज्येष्ठ सुदिप सोमवार Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२. १६१७ ४३. १६१७ ४४. १६१७ ४५. १६१७ १४८ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर धर्मनाथ जिनालय, रत्नपुरी, जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख अयोध्या लेखांक १६६०. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर सीमंधर स्वामी का जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खारवाड़ो, खंभात भाग २, लेखांक १०६३. शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, सुतार की जैनधातुप्रतिमालेख, उत्कीर्ण लेख शेरी, थराद लेखांक २७१. नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पाडो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक ११०२. चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर वही, वही, लेखांक १०७३. उत्कीर्ण लेख वदि १ गुरुवार सुविधिनाथ की प्रतिमा पर सुमतिनाथ मुख्य बावन जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख मातर लेखांक ४९७. माघ सुदि १३ रविवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, उत्कीर्ण लेख लेखांक २३७०. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ चैत्य, थराद जैनप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४७. वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, ४६. १५१५ ४८. १६१८ ४९. १६१८ ५०. १६१८ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखांक २३७१. ५१. १६१९ माघ सुदि ६ १४९ उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देवकुलिका का लेख आदिनाथ जिनालय, सेठों की हवेली के पास, उदयपुर आदिनाथ जिनालय, शबंजय ५२. १६२० वैशाख सुदि २ वही, भाग २, लेखांक १९०७. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८. वही, भाग २, लेखांक १०. ५३. १६२० देहरी का लेख वहीं, वैशाख सुदि ५ गुरुवार Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० विजयदानसूरि के एक शिष्य राजविजयसूरि से तपागच्छ की रत्नशाखा का प्रादुर्भाव हुआ, जबकि दूसरे शिष्य हीरविजयसूरि से तपागच्छ की मूल परम्परा आगे चली । जिस प्रकार चौलुक्यनरेश जयसिंह सिद्धराज और कुमारपाल पर आचार्य हेमचन्द्रसूरि का और मुहम्मद तुगलक पर आचार्य जिनप्रभसूरि का प्रभाव था ठीक उसी प्रकार १७वीं शताब्दी में सम्राट अकबर पर हीरविजयसूरि का था। इन्होंने सम्राट को प्रभावित कर धर्म की प्रभावना में महान् योगदान दिया। हीरविजयसूरि तपागच्छ के सर्वाधिक महान् पुरुष थे। इनके जीवन के बारे में अनेक रचनायें प्राप्त होती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं : १. वि०सं० १६४६ २. जगद्गुरुकाव्य" तपागच्छपट्टावली कृपारसकोश हीरसौभाग्यकाव्य ६८ दयाकुशल लाभोदयरास हीरविजयसूरिनिर्वाणसज्झाय विवेकहर्ष हीरविजयसूरिशलोको ? कुंवरविजय हीरविजयसूरिशलोको २ विद्यानन्द हीरविजयसूरिपुण्यखानि ३ जयविजय हीरविजयसूरिरास ४ ऋषभदास वि०सं० १६८५ विजय द्वारा रचित विजयप्रशस्तिकाव्य (वि०सं० १६८१) एवं इस पर गुणविजय द्वारा वि०सं० १६८८ में रचित टीका हीरविजयसूरि के बारे में विवरण प्राप्त होता है। तथा अन्य कई ग्रन्थों में प्रसंगवश हीरविजयसूरि का जन्म वि०सं० १५८३ में हुआ था। वि० सं० १५९६ में पाटण में इन्होंने विजयदानसूरि से दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १६१० में इन्हें सूरि पद प्राप्त हुआ और वि०सं० १६२२ में विजयदानसूरि के निधन के पश्चात् उनके पट्टधर बने। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं, जो वि०सं० १६११ से वि०सं० १६५९ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ० ६६ पद्मसागर उपाध्याय धर्मसागरगणि वि०सं० १६४६-४८ उपाध्याय शांतिचन्द्र देवविमल ان वि०सं० १६४६ से पूर्व वि०सं० १६४९ वि०सं० १६५२ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य हीरविजयसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध जिनप्रतिमाओं की तालिका Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ क्रमांक वि०सं० तिथि - वार लेख का स्वरूप प्राप्ति स्थान संदर्भ ग्रन्थ १. १६११ वैशाख सुदि १३ सभामंडप के खंभे पर त्रैलोक्य दीपक प्रासाद, जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण शिलालेख रणकपुर लेखांक ७१३. एवं प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३०८. २. १६१३ वैशाख....१० शुक्रवार शांतिनाथ की प्रतिमा महावीर जिनालय, नाणा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखपर उत्कीर्ण लेख संदोह, (आबू, भाग ५), लेखांक ३६०. ३. १६१७ ज्येष्ठ सुदि ३ तीर्थंकर प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, सणवाड़ा वही, लेखांक २२३. उत्कीर्ण लेख ४. १६१७ पौष वदि १ गुरुवार पद्मप्रभ की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, ऊंडीपोल, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ६७९. १६१७ सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ९३५. ६. १६१७ पौष वदि १ शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा नवखंडा पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख भोयरापाड़ा, खंभात भाग २, लेखांक ८६९. ७. १६१७ माघ वदि १ गुरुवार कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर पद्मप्रभ जिनालय, चूड़ीवाली जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख गली, लखनऊ लेखांक १५५३. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२० ९. १६२० १०. १६२० ११. १६२० १६२० १३. १६२१ १५३ वैशाख सुदि ५ प्राचीनजैनलेखसंग्रह, गुरुवार भाग २, लेखांक ६. वही, लेखांक ७, ९. शिलालेख वही, लेखांक ४. वही, लेखांक ५. फाल्गुन वदि १२ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, बुधवार उत्कीर्ण लेख भैंसररोडगढ़ लेखांक १०१८. पौष नदि१३ शुक्रवार शिलालेख विमलवसही, आबू अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग २), लेखांक २२५. वैशाख सुदि१२ शीतलनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, सेठों की जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख हवेली के पास, उदयपुर लेखांक १९०८. पौष वदि१ रविवार आदिनाथ की धातु की प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, परा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख खेड़ा भाग २, लेखांक ४२६. धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर ___शांतिनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ७४६. पौष वदि........ नमिनाथ की प्रतिमा मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक २९०. १४. १६२२ १५. १६२२ १६. १६२२ १७. १६२२ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८. १६२२ माघ वदि २ बुधवार मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच अनन्तनाथ की धात् की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३३३. १९. १६२२ सिद्धचक्रपट्ट पर उत्कीर्ण लेख २०. १६२२ धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २१. १६२२ पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २२. १६२२ वैशाख सुदि१० शुक्रवार शांतिनाथ जिनालय, आरीपाडो, वही, भाग २, खंभात लेखांक ५८५. अमीझरा पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, जीरारपाड़ो, खंभात लेखांक ७५२. सोमपार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, संघवी पाड़ा, खंभात लेखांक ७८०. जैनमंदिर, जूनावेड़ा जैनलेखसंग्रह, भाग १, मारवाड़ लेखांक ९२७ एवं प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४१४. श्रीमालों का मंदिर, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०२२. सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर वही, लेखांक १०२३एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २,लेखांक ११९५. १६२४ वैशाख सुदि१० शुक्रवार माघ सुदि६ सोमवार पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २४. १६२४ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. १६२४ १६२४ २७. १६२४ १६२४ २९. १६२४ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा शांतिनाथ जिनालय, कोठीपोल, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख बड़ोदरा भाग २, लेखांक ६३. वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, शेठवाड़ो, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खेड़ा लेखांक ४३३. आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, ऊंझा वहीं, भाग १, उत्कीर्ण लेख लेखांक १९९. फाल्गुन सुदि३रविवार " धर्मनाथ जिनालय, मडार आबू, भाग ५, लेखांक ९१. सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, लींबड़ी- जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख पाड़ा, पाटण भाग २, लेखांक २६५. नमिनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शजयवैभव, उत्कीर्ण लेख लेखांक २९१. माघ सुदि६सोमवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनमंदिर, सौदागरपोल, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १. लेखांक ७९१. तिथिविहीन संभवनाथ की प्रतिमा पार्श्वनाथ जिनालय, नौहर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक २४७९. वैशाख सुदि११ शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर चंद्रप्रभ जिनालय, सुल्तानपुरा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, बुधवार उत्कीर्ण लेख बड़ोदरा भाग २, लेखांक २०९. ३०. १६२४ ३१. १६२४ ३२. १६२४ ३३. १६२६ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४. १६२६ ३५. १६२६ ३६. १६२६ फाल्गुन सुदि८ सोमवार संभवनाथ की प्रतिमा संभवनाथ देरासर, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक २३७२. पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक २८०४. अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर विमलनाथ जिनालय, संघवीपाड़ा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ७८२.. शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर सुमतिनाथ चौमुख जिनालय, वही. भाग २, उत्कीर्ण लेख चोलापोल, खंभात लेखांक ६९४. विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर स्तम्भन पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खारवाड़ो, खंभात लेखांक १०५०. अस्पष्ट शांतिनाथ जिनालय, आरीपाड़ो, वही, भाग २, खंभात लेखांक ५७९. ३७. १६२६ ३८. १६२६ ३९. १६२६ ४०. १६२६ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर सुमतिनाथ जिनालय, माधोलाल जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख बाबू की धर्मशाला, पालीताना लेखांक १७४०. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, भद्रावती, जैनधातुप्रतिमालेख, उत्कीर्ण लेख मध्यप्रदेश लेखांक ३१३. ४१. १६२६ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२. १६२७ ४३. १६२७ ४४. १६२७ ४५. १६२७ १५७ पौष वदि ३ वासुपूज्य की प्रतिमा पर शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय, जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख आसानियों का चौक, बीकानेर लेखांक १३४८ एवं बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १९०४. पौष सुदि ३ शुक्रवार आदिनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा बीकानेरजैन...., पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १४५२. पौष पूर्णिमा गुरुवार नेमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, भायखाला, जैनधातुप्रतिमालेख, उत्कीर्ण लेख __ मुम्बई लेखांक ३१४. पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख बोलपीपलो, खंभात भाग २, लेखांक ११२८. पौष सुदि १५ गुरुवार संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर महावीर जिनालय, चौकसीपोल, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ८२८. वैशाख सुदि ११बुधवार धर्मनाथ की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १८९१. पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा शांतिनाथ देरासर, शांतिनाथ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख पोल, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १३१८. तीर्थंकर प्रतिमा पर भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय, वहीं, भाग २, उत्कीर्ण लेख खेड़ा लेखांक ४५२. ४६. १६२७ ४७. १६२८ ४८. १६२८ ४९. १६२८ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०. १६२८ ५१. १६२८ १५८ अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, परा, खेड़ा वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक ४२१. धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर घर देरासर, बड़ोदरा वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक २४३. नयामंदिर, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०२५ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२१४. " ५२. १६२८ फाल्गुन सुदिखबुधवार ५३. १६२८ तिथिविहीन बालावसही, शत्रुजय वासुपूज्य की प्रतिमा पर | उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ५४. १६३० वैशाख वदि ८ जैनदेरासर, जूनाबेड़ा, मारवाड़ शत्रुजयवैभव, लेखांक २९३. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९२५ एवं प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४१२. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९२३. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, (आबू भाग ५), लेखांक ३६१. १६३० वही कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ५६. १६३० वैशाख वदि ८ महावीर जिनालय, नाणा Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७. ५८. ६०. ६१. ६३. ६४. १६३० १६३० १६३० १६३० १६३० १६३१ १६३२ १६३२ पौष वद४ सोमवार माघ सुदि १३ पौष वदि६ रविवार १५९ पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि १३ शुक्रवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि७ रविवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख " घर देरासर, पाटण बालावसही, शत्रुंजय चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, अजीमगंज, पश्चिमबंगाल सेठ जी का मंदिर, रतलाम विमलनाथ जिनालय, चौकसी - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पोल, खंभात भाग २, लेखांक ७८९. विमलनाथ जिनालय, संघवीपाड़ा, खंभात जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३८६. सीमंधरस्वामी का जिनालय, खरवाड़ो, खंभात चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, खंभात शत्रुंजयवैभव, लेखांक २९४. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २१. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०२७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ७८५. वही. भाग २ लेखांक १०७८. वहीं, भाग २, लेखांक ५६२. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५. १६३२ माघ वदि५ शुक्रवार १६३२ माघ सुदि१०बुधवार ६७. १६३२ ६८. १६३२ ६९. १६० धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर शांतिनाथ जिनालय, माणेकचौक, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ९८४. शांतिनाथ की धातु की चौबीसी कुन्थुनाथ जिनालय, दंतालपोल, वही, भाग २, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख खंभात लेखांक ६६८. श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर घर देरासर, बड़ोदरा वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक २५०. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख देरापोल, बाबाजीपुरा, बड़ोदरा लेखांक २१५. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर बड़ामंदिर, नागौर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख लेखांक १०३०. चरण चौकी पर उत्कीर्ण लेख चौमुख जी जिनालय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसिरोही संदोह, (आबू, भाग ५) लेखांक २५०. मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर सुपार्श्वनाथ जिनालय, नाहटों बीकानेरजैनलेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख की गुवाड़, बीकानेर लेखांक १७७३. श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर चन्द्रप्रभ जिनालय, माणिकतल्ला, जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख कलकत्ता लेखांक १२४. १६३३ तिथिविहीन ७०. १६३४ मार्गशीर्ष सुदि ५ ७१. १६३४ फाल्गुन सुदि ८ सोमवार ७२. १६३४ फाल्गुन सुदि....... Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३. १६३६ फाल्गुन सुदि १० शांतिनाथ की प्रतिमा पर गुरुवार उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६३७शक- वैशाख सुदि ३ गुरुवार संवत (१५०२) १६३७ वैशाख सुदि १३ आदिनाथ की धातु की पंचतीर्थी रविवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ७५. ७६. शांतिनाथ जिनालय, देशनोंक बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २२३८. अमरनाथ जिनालय, बीजापुर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४४७. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४२१. शांतिनाथ जिनालय, आरीपाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ५७३. बावन जिनालय, उदयपुर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९४२. शांतिनाथ जिनालय, कड़ाकोटड़ी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ६०४. सुमतिनाथ जिनालय, माधोलाल जैनलेखसंग्रह, भाग २, बाबू की धर्मशाला, पालीताना लेखांक १७६२. पार्श्वनाथ देरासर, ईडर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४७२. ७७. १६३७ ७८. १६३७ माघ वदि३शनिवार ७९. १६३७ माघ वदि...शनिवार शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ८०. १६३७ तिथिविहीन Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१. ८२. ८३. ८४. ८५. ८६. ८७. ८८. १६३८ १६३८ १६३८ १६३८ १६३८ १६३८ १६३८ १६४० १६२ माघ सुदि १३ सोमवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" पौष वदि २ सोमवार संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा का लेख नयामंदिर, जयपुर आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, बोलपीपलो, खंभात अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर महावीर जिनालय, जोधपुर उत्कीर्ण लेख नवपल्लवपार्श्वनाथ जिनालय, बोलपीपलो, खंभात कुन्थुनाथ जिनालय, छाणी, बड़ोदरा आदिनाथ का नया मंदिर, जयपुर शांतिनाथ जिनालय, रामपुरा शांतिनाथ जिनालय, भिंडीबाजार, मुम्बई प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०३५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११२३. वही, भाग २, लेखांक ११००. वही, भाग २, लेखांक २५५. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६०५. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १२१५. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०३६. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३१५. Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९. १६४० चन्द्रप्रभ जिनालय, सांगानेर ९०. १६४१ पार्श्वनाथ जिनालय, कोचरों का मुहल्ला, बीकानेर श्रीस्वामीजी का मंदिर, बीकानेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०४०. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १६११. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १४५९. ९१. १६३ माघ सुदि७गुरुवार सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मार्गशीर्ष सुदि ३ बुधवार वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख तिथिविहीन सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पौष सुदि१२सोमवार अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन वदि १३ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन वदि१३बुधवार अनन्तनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६४१ ९२. १६४२ आदिनाथ जिनालय, वही, भाग २, लेखांक १००२. कलकत्ता ९३. १६४४ ९४. १६४४ जैनमंदिर, जूना बेड़ा, मारवाड़ श्रीमालों की दादावाड़ी, पार्श्वनाथ जिनालय, जयपुर जैनमंदिर, छुड़वाल, वही, भाग १, लेखांक ९२०. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०४३. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०९४. वही, भाग २, लेखांक १७१२. १६४४ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सिरोही ९६. १६४४ फाल्गुन वदि १५ शिलालेख जैनमंदिर की प्रशस्ति, उसतरां, नागौर Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९७. ९८. ९९. १००. १०१. १०२. १०३. १०४. १६४४ १६४४ १६४४ १६४६ १६४७ १६४७ १६४७ १६५० "" फाल्गुन सुदि २ "" ज्येष्ठ सुदि ९ सोमवार वैशाख सुदि ७ फाल्गुन सुदि ५ गुरुवार चैत्र पूर्णिमा संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६४ श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख आंगन के खम्भे पर उत्कीर्ण शिलालेख शिलालेख जैनमंदिर, जूना वेड़ा, मारवाड़ धर्मनाथ जिनालय, रत्नपुरी, अयोध्या महावीर जिनालय, सांगानेर वासुपूज्य जिनालय, माणेकचौक, खंभात बड़ा जैन मंदिर, नागौर चतुर्मुखप्रासाद, राणकपुर वही वही, भाग १, लेखांक ९३०. वही, भाग २, लेखांक १६६१. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०४४. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ९९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०४६. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३०९. जैनलेखसंग्रह, लेखांक ७२४. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३३. Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५. १०६. १६५१ १६५१ मार्गशीर्ष वदि ४ गुरुवार पौष सुदि १० शनिवार १६५ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ जिनालय, माधोलाल की धर्मशाला, पालीताना बाबू विमलनाथ जिनालय, बेंतेड जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७६३ एवं शत्रुंजयवैभव, लेखांक २९६. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०४८. Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्राविका चम्पा के छहमासी व्रत के प्रसंगवश बादशाह अकबर को आचार्य हीरविजयसूरि के बारे में जानकारी प्राप्त हुई तो वह उनके दर्शन एवं उनसे धार्मिक चर्चा हेतु अत्यन्त उत्सुक हुआ। उसी समय बादशाह ने आचार्यश्री के पास, जो उस समय गुजरात में गंधार नामक स्थान पर थे, बुलाने के लिये निमंत्रण भेजा। बादशाह का आमंत्रण और वहाँ धर्मप्रभावना का अपूर्व अवसर देखकर आचार्य हीरविजयसूरि ने वि०सं० १६३८ मार्गशीर्ष वदि ७ को तेरह मुनिजनों के साथ गंधार से प्रस्थान किया और वि० सं० १६३९ ज्येष्ठ दि १३ को फतेहपुर सीकरी पहँचे। दूसरे दिन बादशाह की उनसे भेंट हुई। आचार्यश्री से हुई धार्मिक चर्चा से अत्यन्त प्रभावित होकर बादशाह ने उन्हें जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की। सूरिजी ने तीन वर्ष तक आगरा, फतेहपुर सीकरी, शौरीपुर आदि स्थानों पर विचरण किया और इस अवधि में विभिन्न अवसरों पर अकबर को धर्मोपदेश दिया। उनके आग्रह से बादशाह ने पर्युषण के दिनों में जीवहिंसा पर पूर्णरूपेण प्रतिबन्ध लगा दिया और इसके लिये अपने साम्राज्य के विभिन्न सूबों में फरमान भेजा। वि० सं० १६४२में सूरिजी गुजरात लौट गये किन्तु बादशाह के आग्रह से शांतिचन्द्र गणि को वहीं दरबार में छोड़ दिया। अकबर पर हीरविजयसूरि का प्रभाव चिरस्थायी रहा और सूरिजी के गजरात लौट आने के पश्चात् भानुचन्द्र, सिद्धिचन्द्र, विवेकहर्ष आदि मुनि राजदरबार में जाने-आने लगे। बादशाह ने हीरविजयसूरि के शिष्य एवं पट्टधर विजयसेनसूरि को वि०सं० १६४९ में जब वह लाहौर में प्रवास में था, आमंत्रित किया और उनकी प्रखर प्रतिभा तथा पाण्डित्य से प्रभावित होकर उन्हें सवाईहीर की उपाधि दी। जैन मुनिजनों का यह प्रभाव जहाँगीर और शाहजहां के समय में भी पर्याप्त अंशों में बना रहा। ___ आचार्य हीरविजयसूरि द्वारा रचित द्वादशजल्पविचार, अन्तरिक्षपार्श्वनाथस्तवन, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति आदि कुछ कृतियां मिलती हैं। इनका शिष्य परिवार बहुत विशाल था। जिनमें विजयसेनसूरि, शान्तिचन्द्र उपाध्याय, भानुचन्द्र उपाध्याय पद्मसागर, वाचक कल्याणविजय, सिद्धिचन्द्र, नंदिविजय, सोमविजय, धर्मसागर उपाध्याय, प्रीतिविजय, तेजविजय, आनन्दविजय, विनीतविजय, धर्मविजय, हेमविजय, शुभविजयगणि आदि उल्लेखनीय हैं।८१अ वाचक कल्याणविजय के एक शिष्य नयविजय हुए। उपाध्याय यशोविजय इन्हीं के शिष्य थे। १८वीं शताब्दी के महान् विद्वानों में उनकी गणना होती है। इन्होंने विशाल संख्या में ग्रंथों की। इनकी कृतियां संस्कृत, प्राकृत, गुजराती और हिन्दी भाषा में हैं। गद्य और पद्य दोनों में समान रूप से ही इनकी प्रतिभा प्रकट हुई है। वि०सं० १६५२/ई०स० १५९६ में काठियावाड़ के ऊना नामक ग्राम में आचार्य श्री का निधन हुआ। आचार्य हीरविजयसूरि के निधन के पश्चात् उनके शिष्य विजयसेनसूरि ने तपागच्छ का नायकत्त्व ग्रहण किया। इनके बारे में पट्टावलियों के अतिरिक्त हेमविजय द्वारा रचित Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ ४ विजयप्रशस्तिकाव्य ? और इस पर गुणविजय द्वारा वि०सं० १६८९ में रची गयी टीका, जिसका पूर्व में हीरविजयसूरि के सम्बन्ध में उल्लेख आ चुका है, तथा इसके अतिरिक्त गुणविजय द्वारा ही रचित विजयसेनसूरिनिर्वाणरास एवं कवि वीपा के शिष्य विद्याचन्द्र द्वारा रचित विजयसेनसूरिनिर्वाणरास" नामक कृतियों से जानकारी प्राप्त होती है। उक्त साक्ष्यों के अनुसार वि० सं० १६०४ में इनका जन्म हुआ था। वि० सं० १६१३ में ९ वर्ष की आयु में विजयदानसूर के पास इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १६२८ में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ। हीरविजयसूरि के गुजरात लौट जाने के पश्चात् पीछे से बादशाह ने उनके पट्टधर विजयसेनसूरि को वि० सं० १६४९ में अपने दरबार में, जब वह लाहौर में था, बुलवाया ओर इनका यथेष्ठ सम्मान कर सवाईहीर की पदवी से अलंकृत किया। ६ वि० सं० १६७२ में इनका देहान्त हुआ। کار विजयसेनसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुईं हैं, जो वि० सं० १६४२ से वि०सं०१६७० तक की हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है: Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ विजयसेनसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध सलेख जिनप्रतिमाओं की तालिका Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६९ क्रमांक वि० सं० तिथि - वार लेख का स्वरूप १. १६४२ ज्येष्ठ सुदि २ सोमवार विमलनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २. १६४२ माघ वदि १ रविवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६४३ द्वितीय वैशाख वदि ३ अभिनन्दन नाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६४३ सुदि २ सोमवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान संदर्भ ग्रन्थ चनद्रप्रभ जिनालय, जानीशेरी, जैनधातुप्रातिमालेखसंग्रह, बड़ोदरा भाग २, लेखांक १४२. चौमुखजी देरासर, ईडर वही, भाग १, लेखांक १४४६. शांतिनाथ जिनालय, झाडोली अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, (आबू, भाग ५), लेखांक ३१४. पद्मप्रभ जिनालय, कडा कोटड़ी, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ५९६. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, खंभात लेखांक ५४६. चौमुखजी देरासर, झवेरीवाड़, वही, भाग १, अहमदाबाद लेखांक ८८२. नवघरे का मंदिर, दिल्ली जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५०४. जैनमंदिर, लालबाग वही, भाग १, लेखांक २२३. १६४३ ६. १६४३ फाल्गुन सुदि ११ ७. १६४३ फाल्गुन सुदि ११ गुरुवार धर्मनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६४३ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४३ अस्पष्ट १७० सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०. १६४३ १६४३ बड़ा जैनमंदिर, नागौर जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३१७. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०४२ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३०८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २४२. वहीं, भाग २, लेखांक ७. ११. १६४४(?) ज्येष्ठ सुदि१२ सोमवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख हिन्दविजयप्रेस वाले का घरदेरासर, बड़ोदरा शांतिनाथ जिनालय, पादरा १२. १६४४ १३. १६४४ १४. १६४४ हिन्दविजय प्रेस वाले का घर वही, भाग २, देरासर, बड़ोदरा लेखांक २४२. घर देरासर, बड़ोदरा वही, भाग २, लेखांक २५१. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, खंभात लेखांक ५३९. शांतिनाथ जिनालय, आरीपाडो, वही, भाग २, खंभात लेखांक ५८१. १५. मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा का लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६४४ १६. १६४४ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७. १८. २०. १९. १६४४ २१. २२. २३. १६४४ २४. १६४४ १६४४ १६४४ १६४४ १६४४ १६४४ >> "" तिथिविहीन तिथिविहीन १७१ पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय की प्रशस्ति सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात शांतिनाथ जिनालय, जीरारपाडा, वही, भाग २, खंभात लेखांक ७३६. संभवनाथ देरासर, बोलपीपलो, खंभात वही वही, भाग २, लेखांक ११३७. नेमिनाथ जिनालय, भोंयरापाडो, वही, भाग २, लेखांक ८९०. खंभात चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात घर देरासर, जयपुर वही, भाग २, लेखांक ११३२. शांतिनाथ जिनालय, लोरल ग्राम अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, (आबू, भाग ५ ), लेखांक १९२. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, खंभात जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५२९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०४५. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५०. Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. २६. २७. २९. २८. १६४९ ३०. ३१. ३२. माघ सुदि ६ १६४९(इलाही- वैशाख वदि ६ - सम्वत् ४८ ) गुरुवार १६४९ ३३. १६४८ १६५३ १६५३ १६५३ १६५३ १६५३ मार्गशीर्ष सुदि १३ सोमवार तिथिविहीन वैशाखसुदि ४ बुधवार संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जिनप्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख प्रशस्ति लेख १७२ प्रशस्ति लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अरनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बालावसही, शत्रुंजय महावीर की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैन मंदिर, गंधार आदिनाथ जिनालय, कावीतीर्थ वही महावीर जिनालय, मेड़ता वही शत्रुंजयवैभव, लेखांक २९५. हीरविजयसूरि की पाषाण की प्रतिमा कुन्थुनाथ जिनालय, तपागच्छीय पर उत्कीर्ण लेख उपाश्रय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०५४. पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक १०५६. वही प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५६. वही, भाग २, लेखांक ४५२. वही, भाग २, लेखांक ४५१. वही, भाग २, लेखांक ४४१. वही, लेखांक १०५७. वही, लेखांक १०५८. Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७३ ३४. १६५३ ३५. १६५३ ३६. १६५३ ३७. १६५४ मूलनायक कुन्थुनाथ की पाषाण की कुन्थुनाथ जिनालय, .तपागच्छीय वही, लेखांक १०५५. प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख उपाश्रय, मेड़ता सिटी कार्तिक सुदि ८ वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा अरनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख खंभात भाग २, लेखांक ७६२. माघ सुदि १४ संभवनाथ की प्रतिमा महावीर जिनालय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखपर उत्कीर्ण लेख पीडवाड़ा संदोह, (आबू-भाग ५), लेखांक ३८५. माघ सुदि१२ बुधवार सुमतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा अजमेर संग्रहालय, अजमेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक १०६७. मुनिसुव्रत की प्रतिमा वही, लेखांक १०६८. पर उत्कीर्ण लेख तिथिविहीन पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा चौमुखजी का देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक १४२. सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा संभवनाथ जिनालय, बोलपीपलो, वही, भाग २, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ११३६. अजितनाथ की धातु की प्रतिमा वही वही, भाग २, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ११३७. ३८. १६५४ वही ३९. १६५४ ४०. १६५४ खंभात ४१. १६५४ Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ४२. १६५४ वही वही, भाग २, लेखांक ११३८. ४३. १६५५ माघ वदि ४ संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धात् की प्रतिमा । पर उत्कीर्ण लेख ४४. ४६. १६५६ वैशाख सुदि ७ बुधवार १६५६(अला- वैशाख सुदि ७ ई सम्वत्४५) बुधवार १६५६ फाल्गुन वदि २ गुरुवार १६५८ माघ सुदि५ सोमवार १६५९ वैशाख सुदि ७ गुरुवार १६५९ वैशाख वदि १३ बुधवार धनवसही, तलहटी, शत्रुजयवैभव, पालीताना लेखांक २९७. ___ कल्याण पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, मामा की पोल, बड़ोदरा भाग २, लेखांक ३५. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५४. सुमतिनाथ जिनालय, माघवलाल जैनलेखसंग्रह, भाग २, बाबू की धर्मशाला, पालीताना लेखांक १७६४. पार्श्वनाथ जिनालय, भद्रावती, जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३१९. पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ९१३. महावीर जिनालय, रीज रोड़, वही, भाग १, अहमदाबाद लेखांक ९७१. ४७. संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कच्छ ४८. ४९. Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०. ५१. १६५९(इला- वैशाख वदि १३ ही सम्वत्४८) बुधवार १६६० वैशाख सुदि १३ सोमवार १६६० ज्येष्ठ सुदि १४ १७५ विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पीतल के तीर्थपट्ट पर उत्कीर्ण लेख ५२. ५३. १६६१ वैशाख सदि ७ सोमवार सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २२०९. शांतिनाथ जिनालय, किशनगढ़ प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०७५. अजितनाथ जिनालय, सिरोही अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, (आबू- भाग ५), लेखांक २५२. पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ९१४. वही वही, भाग २, लेखांक ९१५. बावन जिनालय, प्रभास पाटन, जैनलेखसंग्रह, भाग २, गुजरात लेखांक १७९४. मुनिसुव्रत जिनालय, अलिंग, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, खंभात भाग २, लेखांक ८५४. आदिनाथ जिनालय, मामा की वही, भाग २, पोल, बड़ोदरा लेखांक ११३. ५४. १६६१ कन्थनाथ की धात की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भोयरे के द्वार पर उत्कीर्ण शिलालेख चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख " ५६. १६६२ द्वितीय चैत्र वदि ६ गुरुवार वैशाख सुदि ३ बुधवार ५७. १६६२ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८. ५९. ६०. ६१. ६३. ६४. ६६. १६६३ १६६४ १६६५ १६६६ १६६७ १६६७ १६६७ १६६७ १६६८ १७६ वैशाख सुदि ६ बुधवार मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ७ तिथिविहीन पौष वदि ६ भृगुवार (शुक्रवार) माघ वदि ६ माघ सुदि ६ तिथिविहीन आषाढ़ सुदि २ शनिवार हीरविजयसूरि की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रशस्ति लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मूलनायक विमलनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि पार्श्वनाथ के परिकर पर उत्कीर्ण लेख महावीर जिनालय, रीज रोड़, अहमदाबाद अजितनाथ जिनालय, कोचरों का बीकानेरजैनलेखसंग्रह, चौक, बीकानेर लेखांक १५५२. पार्श्वनाथ जिनालय, केकिन्द विमलनाथ जिनालय, जैसलमेर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, किशनगढ़ वही विमलनाथ जिनालय, सवाई माधोपुर वही, भाग १, लेखांक ९६१. धर्मनाथ जिनालय, बड़ा बाजार, कलकत्ता जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८७४. वही, भाग ३, लेखांक २४३९. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०८६. वही, लेखांक १०८७. वही, लेखांक १०८८. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२०. पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९८०. खभात Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७७ ६७. १६७० वैशाख सुदि ५ सोमवार वैशाख सुदि ८ ६८. १६७० सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा के परिकर पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख घर देरासर, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०९७. चौमुखजी का देरासर, ईडर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४३४. संभवनाथ जिनालय, अजमेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखाक १०९८. सुमतिनाथ जिनालय, माघवलाल जैनलेखसंग्रह, भाग २, बाबू की धर्मशाला, पालीताना लेखांक १७४१. ६९. १६७० श्रावण सुदि ...... ७०. १६७० माघ सुदि २ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ आचार्य विजयसेनसूरि के समय में ही हीरविजयसूरि की विशाल शिष्य सन्तति में परस्पर विचार भेद बढ़ते-बढ़ते उग्र हो गया और वि०सं० १६७२ में उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके दो पट्टधर हो गये- विजयदेवसूरि और विजयतिलकसूरि। विजयदेवसूरि से तपागच्छ की मूल परम्परा आगे बढ़ी तथा विजयतिलकसूरि से तपागच्छ की एक नूतनशाखा-विजयाणंदसूरिशाखा अपरनाम आनन्दसूरिशाखा अस्तित्व में आयी। तपागच्छ के प्रभावक महापुरुषों में आचार्य हीरविजयसूरि और विजयसेनसूरि के पश्चात् विजयदेवसूरि का नाम आता है। खरतरगच्छीय विद्वान्मुनि श्रीवल्लभ उपाध्याय द्वारा रचित विजयदेवमहात्म्य (रचनाकाल वि०सं० १७०९ से पूर्व); महोपाध्याय मेघविजय द्वारा इस पर रचित विवरण (रचनाकाल वि०सं० १७०९ से पूर्व) और मेघविजय द्वारा ही वि०सं० १७२७ में रचित देवानन्दमहाकाव्य में विजयदेवसूरि का विस्तृत जीवनचरित्र वर्णित है। इसके अतिरिक्त मेघविजयगणि द्वारा ही रचित श्रीतपगच्छपट्टावलीसूत्रवृत्यनुसंधान तथा तपागच्छ की उत्तरकालीन अन्य पट्टावलियों से भी इनके बारे में जानकारी प्राप्त होती है। प्राप्त विवरणानुसार वि०सं० १६३४ में ईडर नामक स्थान में इनका जन्म हुआ था। वि०सं० १६४३ में विजयसेनसूरि से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १६५६ में आचार्य पद प्राप्त किया। गुरु के निधन के पश्चात् ये उनके पट्टधर बने। इनके समय में हीरविजयसूरि के विशाल शिष्य-प्रशिष्य परिवार में परस्पर जो वैमनस्य उत्पन्न हो गया था, उसकी चर्चा जहाँगीर के दरबार में भी पहुँच गयी। उसने विजयदेवसूरि को उत्सुकतावश, जब वह मांडू में था, बुलवाया। सूरिजी उस समय खंभात में थे। बादशाह का आमंत्रण पाकर उन्होंने विहार किया और मांडू पहुँचकर आश्विन सुदि १३ को बादशाह से मिले।९३ वहाँ इनका समुचित सम्मान हुआ। सूरिजी की विद्वत्ता, तेजस्विता और क्रियानिष्ठा से वह बहुत प्रभावित हुआ और इन्हें जहांगीरी महातपा की उपाधि प्रदान की।'' तपागच्छीय मुनिजनों द्वारा इस काल में लोकभाषाओं में रचित विशालसाहित्य अपने आप में एक स्वतंत्र अध्ययन का विषय है। विज्ञप्तिपत्रों का इस युग में विशेष विकास हुआ। विजयदेवसूरि और उनके प्रथम पट्टधर विजयसिंहसूरि (जिनका वि०सं० १७०९ में गुरु की विद्यमानता में ही निधन हो गया था।) को विद्वान् शिष्यों द्वारा अनेक विज्ञप्तिपत्र प्रेषित किये गये।९५ इन विज्ञप्तिपत्रों में प्रवास यात्राओं में आगत स्थान, गिरि, नगर, ग्राम आदि का सुन्दर और प्रामाणिक वर्णन पाया जाता है। भौगोलिक और ऐतिहासिक दृष्टि से इन विज्ञप्तिपत्रों का महत्त्व निर्विवाद है। आचार्य विजयदेवसूरि का वि०सं० १७१३ में ऊना नामक स्थान पर, जहां हीरविजयसूरि का निधन हुआ था, देहान्त हुआ।१६ विजयदेवसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित सलेख जिन प्रतिमाओं पर वि०सं० १६५७ से १७१३ तक उत्कीर्ण लेख मिलते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७९ आचार्य विजयदेवसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध सलेख जिनप्रतिमाओं की तालिका Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक वि० सं० ३. ४. ६. ७. ८. १६५७ १६५८ १६६४ १६६४ १६६४ १६६४ १६६६ १६६६ तिथि पौष सुदि ४ बुधवार वार माघ सुदि ५ सोमवार संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भाद्रपद वदि १ पौष वदि १ बुधवार फाल्गुन सुदि ८ शनिवार " पौष वदि ८ शनिवार फाल्गुन सुदि१० शुक्रवार १८० लेख का स्वरूप तीर्थंकर की पाषाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की पाषाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख वही परिकर पर उत्कीर्ण लेख हीरविजयसूरि की चरणपादुका पर उत्कीर्ण लेख प्राप्ति स्थान संदर्भ ग्रन्थ धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०७१. धर्मनाथ जिनालय, बड़ा बाजार, कलकत्ता आदिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक १०८३. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६५४. जैन मंदिर, गवाड़ा पंचासरा पार्श्वनाथ जिनालय, पाटण वही नया जैन मंदिर, सलखणपुर जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११३. जैन मंदिर, खेड़ा प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५१२. वही, लेखांक ५१३. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४९७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४०६. Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १६६७ १६६७ शक- तिथिविहीन सं० १५३२ १६६८ १६७० १६७२ १६७२ १६७२ १६७२ फाल्गुन सुदि६ सोमवार शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६७३ द्वितीयआषाढ़ सुदि ६ शुक्रवार माघ सुदि ५ १८१ मुनिसुव्रत की धातु- प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ सुदि५ शुक्रवार सुविधिनाथ की धातु कर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख तिथिविहीन माघ सुदि १३ शुक्रवार पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख पौष वदि ५ शुक्रवार स्फटिक की प्रतिमा पर पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, रेजीडेन्सी बाजार, उदयपुर नाकोड़ा तीर्थ जैन देरासर, सौदागर पोल, अहमदाबाद आदिनाथ जिनालय, मालपुरा शांतिनाथ जिनालय, लींबडी, पाटण वही मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा घर देरासर, पाटण जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०५७. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४२०. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७२५. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७८१. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११०३. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २७४. वही, भाग १, लेखांक २७२. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११०७. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५३२. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ १८. १६७४ वैशाख वदि १ १९. १६७४ माघ वदि १ गुरुवार २०. १६७४ माघ वदि १ २१. १६७४ माघ वदि १ गुरुवार २२. १६७४ आदिनाथ जिनालय, हीराबाड़ी, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, नागौर लेखांक ११२४. आदिनाथ की प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, नाडलाई जैनलेखसंग्रह, भाग १, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ८५३. अजितनाथ की प्रतिमा अजितनाथ जिनालय, कोचरों बीकानेरजैनलेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख का चौक, बीकानेर लेखांक १५४७. वासुपूज्य की पाषाण की प्रतिमा वासुपूज्य जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख मेड़ता सिटी लेखांक ११११. महावीर की पाषाण की प्रतिमा कुन्थुनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक ११०८. पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की पाषाण की प्रतिमा वही वही, लेखांक ११०९. पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा वही वही, लेखांक १११०. पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा उपकेशगच्छीय शांतिनाथ वहीं, लेखक १११३. पर उत्कीर्ण लेख जिनालय, मेड़ता सिटी सुविधिनाथ की पाषाण की प्रतिमा चौसठिया जी का मंदिर, वही, लेखांक १११५. पर उत्कीर्ण लेख नागौर १६७४ २४. १६७४ २५. १६७४ २६. १६७४ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७. १६७४ २८. १६७४ १६७४ २९. ३०. १६७४ ३१. १६७४ धर्मनाथ की पाषाण की प्रतिमा धर्मनाथ जिनालय, खजवाना वही, लेखांक १११६. पर उत्कीर्ण लेख सविधिनाथ की पाषाण की प्रतिमा बड़ा मंदिर, नागौर वही, लेखांक १११८. पर उत्कीर्ण लेख महावीर जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक १११२. मुनिसुव्रत की प्रतिमा बड़ा मंदिर, नागौर वही, लेखांक १११९. पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा वही वही, लेखांक ११२०. पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा वही, लेखांक ११२१. पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की पाषाण की प्रतिमा वही, वही, लेखांक ११२२. पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की पाषाण की प्रतिमा वही वही, लेखांक ११२३. पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा प्राचीनजैनलेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ३३७. ३२. १६७४ १६७४ ३४. १६७४ ३५. १६७४ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ३६. १६७४ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३७. १६७४ माघ वदि २ गुरुवार ३८. १६७४ माघ वदि ९ गुरुवार ३९. १६७४ श्रीस्वामी जी का मंदिर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, रौशन मुहल्ला, आगरा लेखांक १४६०. यति श्यामलालजी का उपाश्रय, वही, भाग १, जौहरी बाजार, जयपुर लेखांक ५८१. पार्श्वचन्द्रगच्छीय उपाश्रय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, जयपुर लेखांक १११७. चौसठिया जी का मंदिर, वही, लेखांक १११४. नागौर शत्रुजय प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २५. आरासणा तीर्थ, आरासण प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २९३. जैनमंदिर, नवापुरा, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, सूरत भाग १, लेखांक ६०१. नेमिनाथ जिनालय, आरासणा अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, लेखांक ३९. ४०. आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ६ अस्पष्ट शुक्रवार माघ सुदि ४ शनिवार महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६७५ ४१. . १६७५ ४२. १६७५ " ४३. १६७५ अस्पष्ट Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४. ४५. ४६. ४७. ४८. ४९. ५०. ५१. ५२. ५३. ५४. १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ वैशाख सुदि ३ शनिवार वैशाख सुदि ३ शनिवार मुनिसुव्रत की प्रतिमा (अक्षय तृतीया) पर उत्कीर्ण लेख "" "" "" "" आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" महावीर की पाषाण प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८५ "" "" धर्मनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख तीर्थंकर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ जिनालय, मेड़ता नया मंदिर, मेड़ता प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४३८. वही, लेखांक ४४०. आदिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११२७. "" "" "" 22 23 " " जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७५०. " वही, लेखांक ११२८. वही, लेखांक ११३०. वही, लेखांक ११३१. वही, लेखांक ११३३. वही, लेखांक ११३४. वही, लेखांक ११३७. वही, लेखांक ११३८. Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५. १६७७ कुन्थुनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक ११३९. १८६ वासुपूज्य की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अष्टदलकमल पर उत्कीर्ण लेख ५६. १६७७ पंचायती मंदिर, जयपुर वही, लेखांक ११४०. ५७. १६७७ धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता वही, लेखांक ११४१. वही, लेखांक ११४२. ५८. १६७७ ५९. १६७७ पंचायती मंदिर, जयपुर वहीं, लेखांक ११३५. मुनिसुव्रत की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ६०. १६७७ वैशाख सुदि३ (अक्षयतृतीया) महावीर जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक ११३६ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७८४. पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी वही, भाग १, लेखांक ७५४. जैनमंदिर, चेलपुरी, दिल्ली वही, भाग १, लेखांक ४५२. ६१. १६७७ ६२. १६७७ मार्गशीर्ष सुदि...रविवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३. ६४. 33 ६६. ६७. ६८. ६९. ७०. १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ ज्येष्ठ सुदि १३ ..वदि ३ कार्तिक वदि २ बुधवार "" "" "" कार्तिक सुदि६ रविवार चन्द्र ( प्रभ) की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८७ कुन्थुनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, किशनगढ़ उपकेशगच्छीय शांतिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी सीमंधर स्वामी का मंदिर, खारवाड़ा, खंभात चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, जीरारपाड़ो, खंभात अनन्तनाथ जिनालय, खारवाड़ो, खंभात नवखंडापार्श्वनाथ जिनालय, भोंयरापाड़ो, खंभात मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, मीयागाम अभिनन्दननाथ जिनालय, लालवाड़ो, खंभात प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११५६. वही, लेखांक ११५७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०५८. वही, भाग २, लेखांक ७२६. वही, भाग २, लेखांक १०४३. वही, भाग २, लेखांक ८६४. वही, भाग २, लेखांक २७८. वही, भाग २, लेखांक ८५९. Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१. ७२. ७३. ७४. ७५. ७६. ७७. ७८. १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ १६७७ "" मार्गशीर्ष सुदि५ रविवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख तिथिविहीन मार्गशीर्ष (सुदि) ५ रविवार " १८८ विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख " मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अस्पष्ट शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कंसारी पार्श्वनाथ जिनालय, खारवाड़ो, खंभात जैन मंदिर, गंधार वही वही अमीरा पार्श्वनाथ जिनालय, जीरारवाड़ो, खंभात वही, भाग २, लेखांक १०३७. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५७. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, कोपुरा, बड़ोदरा वही, भाग २, लेखांक ४५८. वही, लेखांक ४५९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ७५८. पार्श्वनाथ जिनालय, माणेक चौक, वही, भाग २, खंभात लेखांक ७९३. आदिनाथ जिनालय, माणेक चौक, वही, भाग २, खंभात लेखांक १०२२. वही, भाग २, लेखांक ९१०. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९. ८०. ८२. ८१. १६७७ ८३. १६७७ ८५. १६७७ ८६. १६७८ ८४. १६७८ १६७८ १६७८ १६७८ फाल्गुन सुदि ८ सोमवार तिथिविहीन मार्गशीर्ष सुदि १४ १८९ कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ सुदि ६ सोमवार नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि ५ पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रवार महावीर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख -- अस्पष्ट फाल्गुन सुदि ९ शनिवार मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख तीर्थंकर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, नीशापोल, अहमदाबाद चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, बोल पीपलो, खंभात शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा आदिनाथ जिनालय, माणेक चौक, वही, भाग २, खंभात लेखांक १०२२. चौमुखजी का देरासर, ईडर घर देरासर, जयपुर वही, भाग १, लेखांक १२०८. खरतरगच्छीय बड़ा जैन मंदिर, तुलापट्टी, कलकत्ता वही, भाग २, लेखांक ११२९. वही, भाग १, लेखांक १४४५. वही, भाग १, लेखांक १२८५. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११५८. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११५९. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३२२. Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७. १६७८ वही, लेखांक ३२३. ८८. १६७८ तिथिविहीन १९० विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६७९ वैशाख सुदि २ शनिवार ९०. १६८१ प्रथम चैत्र वदि ५ गुरुवार आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९१. १६८१ आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिनालय, ईडर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४८५. पार्श्वनाथ जिनालय, मसूदा प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११६०. जैनमंदिर, जालौर दुर्ग प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३५८. चौमुख जी का मंदिर, जालौर जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९११. भाभा पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २२४. वीर जिनालय, रीजरोड, वही, भाग १, लेखांक ९८९. चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, वही, भाग २, खंभात लेखांक ५७८. सपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २२१४. ९२. १६८१ ज्येष्ठ सुदि १३ बुधवार " पाटण ९३. १६८२ अहमदाबाद १६८३ ज्येष्ठ वदि २ गुरुवार संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि १ वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ सुदि ६ गुरुवार यंत्र पर उत्कीर्ण लेख ९५. १६८३ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६. १६८३ आषाढ़ वदि ४ गुरुवार अस्पष्ट जैनमंदिर, जालौर दुर्ग प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३५६ वही, लेखांक ३५५. ९७. १६८३ ९८. १६८३ आषाढ़ वदि ४ गुरुवार धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ९९. १६८३ १००. १६८३ गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५४२. गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, कोलर अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेख संदोह, (आबू, भाग ५), लेखांक २४२. संभवनाथ जिनालय, जैसलमेर जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २३७४. सुपार्श्वनाथ जिनालय, जैसलमेर वही, भाग ३, लेखांक २२०७. वही, भाग ३, लेखांक २२०८. महावीर जिनालय, तोपखाना, वही, भाग १, जालोर लेखांक ९०५. धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०१. १६८३ १०२. १६८३ १०३. १६८३ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४. १६८३ वही, भाग१, लेखांक ९०६. वही, भाग १, लेखांक ९०७. १०५. १६८३ १०६. १६८३ सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य स्वामी की धातु प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १०७. १६८३ वही, भाग १, लेखांक ९०८. आदिनाथ जिनालय, अजमेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११६५. आदिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक ११६७. १०८. १६८३ तिथिविहीन १०९. १६८३ अस्पष्ट आश्विन वदि ... गुरुवार माघ वदि १० सोमवार ११०. १६८४ महावीर जिनालय, तोपखाना, जैनलेखसंग्रह, भाग १, जालौर लेखांक ९१०. वासुपूज्य जिनालय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११६९. वही, लेखांक ११७०. " कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की पाषाण की प्रतिमा । पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख १११. १६८४ ११२. १६८४ जैन मंदिर, मेड़ता प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४३७. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११३. ११४. ११५. ११६. ११७. ११८. ११९. १२०. १२१. १६८४ १६८४ १६८४ १६८४ १६८४ १६८४ १६८४ १६८५ १६८५ " " "" "" वैशाख सुदि ७ गुरुवार वैशाख सुदि १५ शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १९३ कुन्थुनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वासुपूज्य की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ की प्रतिमा का लेख आदिनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत ( ? ) की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर अजितनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११७२. महावीर जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक ११७३. वही वही बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२३७. बावन जिनालय, उदयपुर पंचायती जैन मंदिर, सराफा बाजार, ग्वालियर वही, लेखांक ११७४. धर्मनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक ११७७. वही, लेखांक ११७५. वही, लेखांक ११७६. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १९४३. वही, भाग २, लेखांक १३९१. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२. १६८५ १२३. १६८६ १२४. १६८६ १२५. १६८६ १९४ नमिनाथ की धातु की प्रतिमा प्रेमाभाई हेमाभाई की टोंक, वही, भाग १, पर उत्कीर्ण लेख शत्रुजय लेखांक ६९४. वैशाख सुदि ८ कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख किशनगढ़ लेखांक ११७९. सुमतिनाथ की पाषाण की प्रतिमा वासुपूज्य जिनालय, मेड़ता सिटी वही, लेखांक ११८०. पर उत्कीर्ण लेख प्रथम आषाढ़ वदि ५ शांतिनाथ की प्रतिमा पद्मप्रभ जिनालय, नाडोल प्राचीनजैनलेखसंग्रह, शुक्रवार पर उत्कीर्ण लेख भाग २, लेखांक ३९९. पद्मप्रभ की प्रतिमा __ वही वही, भाग २, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ३६७. ज्येष्ठ सुदि १३गुरुवार चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा जैनमंदिर सांड़ की पोल, वही, भाग २, पर उत्कीर्ण लेख मेड़ता लेखांक ४३६. ज्येष्ठ सुदि१३ गुरुवार वासुपूज्य जिनालय, मेड़ता जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७५५. ज्येष्ठ सुदि १ सुविधिनाथ की प्रतिमा सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा वही, भाग २, पर उत्कीर्ण लेख मंदिर, जयपुर लेखांक ११७३. १२६. १८६८ १२७. १६८६ १२८. १६८६ १२९. १६८७ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०. १६८७ गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर वही, भाग १, लेखांक ५४३. १३१. १६८७ युगादीश्वर जिनालय, मेड़ता सिटी प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११८३. वही, लेखांक ११८४. अजित १३२. १६८७ अजितनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी पार्श्वनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी १३३. १६८७ वही, लेखांक ११८५. १३४. १६९० वही, लेखांक ११८६. पार्श्वनाथ की प्रतिमा गुरुवार पर उत्कीर्ण लेख जगवल्लभ पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मनमोहन पार्श्वनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि पार्श्वनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ वदि ११गुरुवार हीरविजयसूरि की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि १० मुनिसुव्रत की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख सुदि ६गुरुवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन सुदि१२ शनिवार तिथिविहीन आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत जिनालय, मालपुरा १३५. १६९१ वही, लेखांक ११८७. गुरुवार १३६. १६९३ " १३७. १६९३ चन्द्रप्रभ जिनालय, सैडहर्स्ट रोड, मुम्बई वीरजिनालय, मामापोल, बड़ोदरा प्रतापचन्द जी ढड्डा का घर देरासर,जयपुर जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३२७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ६५. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११८८. १३८. १६९३ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६ धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही वही, लेखांक ११८९. १४०. १६९४ . माघ सुदि ६गुरुवार वही, लेखांक ११९०. १४१. १६ बालावसही, शत्रुजय ६गुरुवार १४ माधवलाल बाबू का घरदेरासर, मुर्गीहाटा, कलकत्ता पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शत्रुजयवैभव, लेखांक ३०२. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३०. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३२८. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६७०. जैनलेखसंग्रह, भाग १. लेखांक ६६९. शत्रुजयवैभव, लेखांक ३०३. सेठ नरसीनाथा का मंदिर, पालीताना माघ सुदि ६गुरुवार वही १४६. १६९५ तिथिविहीन बालावसही, श@जय Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७. १४८. १४९. १५१. १५२. १५०. १६९७ १५३. १५४. १६९६ १५५. १६९६ १६९७ १७०० १७०० १७०० १७०१ ज्येष्ठ वदि ७ सोमवार शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन सुदि २ माघ सुदि ६ गुरुवार फाल्गुन सुदि ५ द्वितीय चैत्र सुदि ८ द्वितीय चैत्र सुदि ८ गुरुवार चैत्र सुदि ८बुधवार १७०१ (?) मार्गशीर्ष सुदि ५ अंतरिक्ष पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १९७ आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि १२ बुधवार कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीण लेख सुमतिनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ देरासर, बलाद पार्श्वनाथ जिनालय, भद्रावतीमध्यप्रदेश घर देरासर, जयपुर पार्श्वनाथ देरासर, रेजीडेन्सी बाजार, हैदराबाद भीड़भंजन पार्श्वनाथ जिनालय, खेड़ा आदिनाथ जिनालय, मेड़ता सिटी आदिनाथ जिनालय, लक्ष्मणगढ़ शांतिनाथ जिनालय, भिंडीबाजार, मुम्बई पार्श्वनाथ जिनालय, रेजीडेन्सी बाजार, हैदराबाद जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७६३. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३३०. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११९३. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०५९. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५८. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११९९. वही, लेखांक १२००. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३३२. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०६०. Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ १५६. १७०१ माघ सुदि ६ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११९८. वही, लेखांक १३०९. १५७. १७०१ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५८. १७०१ वीर जिनालय, वैदों का चौक, बीकानेर श्रेयांसनाथ देरासर, फताशाह की पोल, ईडर गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुम्बई चीरेखाने का मंदिर, दिल्ली १५९. १७०२ १६०. १७०३ १६१. १७०५ फाल्गुन वदि ५ संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन सुदि २ मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ज्येष्ठ वदि ७शुक्रवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख वदि २ विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वैशाख वदि ७बुधवार शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फाल्गुन सुदि ३रविवार विजयसिंहसूरि की चरणपादुका पर उत्कीर्ण लेख आषाढ़ सुदि ११ २५ पंक्तियों का शिलालेख जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३६७. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३३३. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५१४. वही, भाग २, लेखांक १६१३. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२८६. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५१४. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लखांक १७९७. लाला हीरालाल चुन्नीलाल का घर देरासर, लखनऊ शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद पंचासरा पार्श्वनाथ जिनालय, पाटण १६२. १७०५ जैनधातुप्रातमा १६३. १७०९ १६४. १७१३ ॐना. Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९९ आचार्य विजयदेवसूरि ने विजयसिंहसूरि को अपना पट्टधर नियुक्त किया था। ऐतिहासिकसज्झायमाला से इनके बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। पट्टावलियों में इनके जन्म, दीक्षा, आचार्य पद और मृत्यु के बारे में सूचनायें प्राप्त होती हैं जिन्हें एक तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है : पट्टावली का नाम संदर्भग्रन्थ रचनाकार का नाम जन्मतिथि दीक्षा काल वाचक पद आचार्य पद प्राप्ति मृत्यु का का काल काल १६५४ १६७२ १६८१ १७०८ पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृष्ठ ९६. १६५४ १६७३ १६८२ १. तपागच्छपट्टावलीसूत्र उपाध्याय मेघविजय १६४४ वृत्तिनुसंधानम् (रचनाकाल वि० सं० १७३२ २. पट्टावलीसारोद्धार रविवर्धन १६४४ (रचनाकाल वि०सं० १७३९ के आसपास ३. श्रीगुरु पट्टावली अज्ञात १६४४ १७०९ वही, भाग १, आषाढ़ सुदि पृष्ठ १६१ २शनिवार १६८१ १७०८ वही, भाग १, पृष्ठ १७५. Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० उक्त तालिका से ज्ञात होता है कि इनके जन्म और दीक्षा की तिथियों के बारे में पट्टावलियों में जो तिथियाँ दी गयी हैं, वे तो समान हैं किन्तु इनके आचार्य पदारोहण और मृत्यु के सम्बन्ध में दी गयी तिथियों में एक-एक वर्ष का अन्तर है। गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर में संरक्षित भगवान् पार्श्वनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर वि०सं० १६७९ का एक लेख उत्कीर्ण है। महोपाध्याय विनयसागर ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : संवत् १६७९ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ गुरौ मेड़तानगर वास्तव्य ...... भं० उ० । सदे पुत्र को० दीपनेकेन श्री पार्श्व बिं० का०प्र० तपागच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरिभिः स्वपदस्थापितश्रीविजयसिंहसूरिपरिवृतैः । प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११६२. उक्त प्रतिमा लेख के पाठ को यदि हम सही मानें तो यह स्वीकार करना होगा कि वि०सं० १६७९ में विजयसिंहसूरि अपने गुरु द्वारा आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित हो चुके थे और ऐसी स्थिति में पट्टावलियों में इनके आचार्य पदारोहण की दी गयी तिथियों (वि० सं० १६८१ - १६८२) की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में शंका उत्पन्न हो जाती है। चूंकि वि०सं० १७०९ में इनका आकस्मिक रूप से निधन हो गया था और तपागच्छनायक विजयदेवसूरि ने वि०सं० १७१० में विजयप्रभसूरि को आचार्य पद देकर अपना पट्टधर बनाया जिन्होंने वि०सं० १७१३ में गुरु की मृत्यु के बाद तपागच्छ का नायकत्व ग्रहण किया और जिनसे गच्छ की परम्परा आगे बढ़ी। इस प्रकार स्वाभाविक रूप से विजयसिंह सूरि के बारे में लोगों की स्मृति शनैः शनैः क्षीण होने लगी और संभवतः यही कारण है उनकी मृत्यु के २५-३० वर्ष पश्चात् ही रची गयी पट्टावलियों में उनके आचार्य पदारोहण और मृत्यु के सम्बन्ध में अलग-अलग तिथियाँ प्राप्त होती हैं। १८ विजयसिंहसूरि द्वारा अपने गुरु विजयदेवसूरि को वि०सं० १६९९ में प्रेषित एक विज्ञप्तिपत्र भी प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार विजयसिंहसूरि के शिष्यों - विजयवर्धन ९ द्वारा वि०सं० १७०३ और वि०सं० १७०४ में; उदयविजय ० द्वारा वि०सं० १६९९ तथा अमरचन्द्र१०१ कमलविजय १०२ और लावण्यविजय १०३ द्वारा वि० सं० १७०९ में प्रेषित विज्ञप्तिपत्र भी प्राप्त हुए हैं। विजयसिंहसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १६७९ से वि०सं० १७०५ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०१ विजयसिंहसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित और अद्यावधि उपलब्ध सलेख जिन प्रतिमाओं की तालिका Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ लेख सम्वत् तिथि/मिति/वार लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान संदर्भ ग्रन्थ क्रमांक १. १६७९ आषाढ़ सुदि१३ गुरुवार गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११६२. २. पार्श्वनाथ की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कमलबंध पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १६८४ माघ सुदि८ सोमवार १६८४ माघ सुदि १० संभवनाथ जिनालय, अजमेर ३. वही, लेखांक ११७१. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३५९. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९०९. ४. १६८४ महावीर जिनालय, तोपखाना, जालौर महावीर जिनालय, मेड़ता ५. १६८६ वैशाख सुदि ८ वही, भाग १, लेखांक ७८३. ६. १६८६ वैशाख सुदि ८ शनिवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नवलखा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली वही, वही, भाग १, लेखांक ८२५. १६८६ वही, भाग १, लेखांक ८२६. ८. १६८६ वही, भाग १, लेखांक ८२७. Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०. १३. १४. १५. ११. १६८६ १२. १६८६ वैशाख सुदि ८ १६. १६८६ १७. १६८६ १६८६ १६८६ ܙܐ १६८६ "" १६८६ १६८६ वैशाख सुदि ८ शनिवार "" "" वैशाख सुदि ८ २०३ मूलनायक आदिनाथ की प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, सेवाड़ी पर उत्कीर्ण लेख महावीर की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अस्पष्ट आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नवलखा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली पंचतीर्थी मंदिर, मेड़ता नवलखा पार्श्वनाथ जिनालय, पाली वही शांतिनाथ जिनालय, लोढारोवास आदिनाथ जिनालय, नाडलाई शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर वासुपूज्य जिनालय, मेड़ता सिटी प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३४१. वही, भाग २, लेखांक ३९५. वही, भाग २, लेखांक ४४२. वही, भाग २, लेखांक ३९४. वही, भाग २, लेखांक ३९३. वही, भाग २, लेखांक ३९९. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८५६. वही, भाग २, लेखांक ११०६. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ११८१. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ १८. १६८६ वैशाख सुदि ९ जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८२९. गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पाली आदिनाथ जिनालय, नाडोल १९. १६८६ प्रथम आषाढ़ वदि ५ शुक्रवार १६८६ " वही, भाग १, लेखांक ८३७. २०. वही २१. १६८७ ज्येष्ठ सुदि४ गुरुवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मूलनाथ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख २२. १६८७ ज्येष्ठ सुदि १३ गुरुवार वही, भाग १, लेखांक ८३८. प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ४५५. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४५५. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २४०१. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५८२. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४४८. २३. वासुपूज्य जिनालय, मेड़ता सिटी नवघरे का मंदिर, चेलपुरी, दिल्ली शांतिनाथ जिनालय, चुरू (राजस्थान) यतिश्यामलालजी का उपाश्रय, जयपुर चौमुखजी देरासर, ईडर १६८७ वैशाख सुदि ३ २४. १६८८ माघ वदि १गुरुवार २५. १६९३ चैत्र वदि.....गुरुवार Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६. १६९३ वैशाख सुदि ६गुरुवार २०५ कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर जैनदेरासर, ईडर उत्कीर्ण लेख वही, भाग १, लेखांक १३८६. शत्रुजयवैभव, लेखांक ३०१. २७. १६९३ वैशाख.....गुरुवार पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बालावसही, शत्रुजय २८. १६९३ वैशाख सुदि ६ गुरुवार जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६५६. २९. १६९३ कार्तिक वदि११ सोमवार ३० १६९३ फाल्गुन सुदि ३ जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सेठ नरसीनाथा का मंदिर, पालीताना शीतलनाथ की पीतल की प्रतिमा शीतलनाथ जिनालय, उदयपुर पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर श्री माणिकचन्द्र जी का मंदिर, उत्कीर्ण लेख भद्रावती-मध्यप्रदेश पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर शgजय उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ की प्रतिमा के रजत जैनमंदिर, नासिक परिकर पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर खरतरगच्छीय बड़ा जैन मंदिर, उत्कीर्ण लेख तुलापट्टी, कलकत्ता ३१. १६९६ वैशाख सुदि ५ वही, भाग १, लेखांक १०२८. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३२६. प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३०. जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ३३०. वही, लेखांक ३३१. ३२. १६९७ वैशाख वदि २ ३३. १६९७ फाल्गुन वदि ५ शुक्रवार Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. २०६ १६९७ शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर श्रेयांसनाथ देरासर, फताशाह जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख की पोल, अहमदाबाद भाग १, लेखांक १३८२. १६९७ फाल्गुन सुदि ५ गुरुवार नमिनाथ की प्रतिमा पर धर्मनाथ जिनालय, बड़ा बाजार जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख कलकत्ता लेखांक ११४. १६९७ आदिनाथ की प्रतिमा पर शांतिनाथ देरासर, उपलो गभारो, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक ११३८. १६९७ अजितनाथ की धातु की प्रतिमा वही, वही, भाग १, पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ११३४. १६९८ भाद्रपद सुदि ५ मूलनायक चिन्तामणि पार्श्वनाथ चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, के सिंहासन पर उत्कीर्ण लेख किशनगढ़ लेखांक ११९५. १६९९ वैशाख सुदि ९ शांतिनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, नागौर जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १३१०. १६९९ माघ वदि १ गुरुवार सुविधिनाथ की धातु की पंचतीर्थी पार्श्वचन्द्रगच्छ उपाश्रय, जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ११९७. १६९९ फाल्गुन वदि २ शीतलनाथ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय, नागौर जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १३११. १६९९ फाल्गुन वदि १२ सोमवार पार्श्वनाथ की चरणचौकी पर बावन जिनालय, प्रभासपाटन, वही, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १७९०. ३९. ४०. ४१. ४२. गुजरात Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३. ४४. ४५. ४६. १७०१ मार्गशीर्ष वदि १० १७०१ मार्गशीर्ष वदि ११ १७०३ मार्गशीर्ष सुदि १ १७०५ वैशाख वदि २ २०७ नमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संभवनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख महावीर जिनालय, सुंधीटोला, लखनऊ नवघरे का मंदिर, दिल्ली सुमतिनाथ जिनालय, उदयपुर महावीर जिनालय, झवेरीवाड़, अहमदाबाद वही, भाग २, लेखांक १५७५. वही, भाग १, लेखांक ५०६. वही, भाग २, लेखांक ११९७. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ८४८. Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ चूंकि वि० सं० १७०९ में विजयसिंहसूरि का निधन हो गया अतः विजयदेवसूरि के पश्चात् वि०सं० १७१३ में विजयप्रभसूरि ने तपागच्छ का नायकत्व ग्रहण किया। विजयप्रभसूरि का जन्म वि०सं० १६७७ में कच्छ प्रान्त में हुआ था । वि०सं० १६८६ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि० सं० १७१० में इन्हें अपने गुरु विजयदेवसूरि से आचार्य पद प्राप्त हुआ।१०४ उपाध्याय मेघविजय ने इनकी प्रशस्ति के रूप में दिग्विजयमहाकाव्य १०५ की (वि०सं० १७१० के पश्चात् ) रचना की । इन्होंने देश के बड़े भूभाग में विहार किया और श्रावकों को उपदेश देकर अनेक तीर्थों पर जीर्णोद्धार, नवनिर्माण- प्रतिमाप्रतिष्ठापना आदि का कार्य सम्पन्न कराया। अपने गुरुभ्राता स्व० विजयसिंहसूरि की स्मृति में इन्होंने वि० सं० १७१३ कार्तिक वदि २ को खंभात १०६ में तथा अपने गुरु विजयदेवसूरि की स्मृति में वि० सं० १७१३ माघ सुदि ५ को ऊना १०७ में (जहाँ उनका निधन हुआ था) उनकी चरणपादुका स्थापित करायी। आदिनाथ जिनालय, नाडलाई में संरक्षित मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि०सं० १७२१ ज्येष्ठ सुदि ३ रविवार के लेख से ज्ञात होता है कि उसकी प्रतिष्ठापना विजयप्रभसूरि के करकमलों से हुई थी । १०८ सुपार्श्वनाथ पंचायती मंदिर, जयपुर में संरक्षित पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि०सं० १७४४ फाल्गुन सुदि १ बुधवार के लेख से ज्ञात होता है कि उक्त प्रतिमा आचार्य विजयप्रभसूरि के निर्देश पर मुक्तिचन्द्रगणि द्वारा स्थापित की गयी । १०९ दिग्विजयमहाकाव्य के दसवें सर्ग १० से ज्ञात होता है कि इन्होंने आगरा में बादशाह जहाँगीर से भेंट की थी। वि० सं० १७४९ में ऊना नामक स्थान पर इनका देहान्त हो गया । १११ विजयप्रभसूरि के पश्चात् विजयरत्नसूरि उनके पट्टधर बने। प्राप्त विवरणानुसार वि०सं०१७१३ में इनका जन्म हुआ। गुरु के निधन के पश्चात् वि०सं० १७४९ में ये उनके पट्ट पर विराजमान हुये और वि०सं. १७७३ में इनका देहान्त हुआ। श्रीपूज्य विजयरत्नसूरि के पश्चात् विजयक्षमासूरि श्रीपूज्य बने । वि० सं० १७३२ में इनका जन्म हुआ । इनके मृत्यु की तिथि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। श्रीपूज्य विजयक्षमासूरि के पक्षधर श्रीपूज्य विजयधर्मसूरि हुए। वि० सं० १८२५, १८२८ और १८३९ के लेखों में इनका नाम मिलता है। इन लेखों का विवरण इस प्रकार है: १८२५ वैशाख सुदि २ विजयप्रभसूरि की पादुका पर उत्कीर्ण लेख १८२८ फाल्गुन सुदि ३ धातुयंत्र पर भृगुवार उत्कीर्ण लेख १८३९ वैशाख सुदि ९ विजयप्रभसूरि की बुधवार पादुका पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, भोई जैनमंदिर, चाणस्मा जैनमंदिर, डभोई जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११ वही, भाग १, लेखांक १३२ वही भाग १, लेखांक १२ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८३९ १९४३ माघ सुदि ११ सोमवार श्रीपूज्य विजयधर्मसूरि के पट्टधर श्रीपूज्य विजयजिनेन्द्रसूरि हुए। वि० सं० १८४३, १८४५, १८५४, १८७३, १८८० और १८८३ के विभिन्न प्रतिमालेखों में इनका नाम मिलता है। इनका विवरण इस प्रकार है: १८४५ फाल्गुन सुदि ३ भृगुवार (शुक्रवार) डभोई १८५४ १८५४ ज्येष्ठ सुदि १० पार्श्वनाथ गुरुवार पद्मप्रभस्वामी की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८८० आदिनाथ की धातुप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" १८८३ माघ सुदि ५ " १८७३ ज्येष्ठ सुदि १४ केशरिया जी की गुरुवार पादुका पर उत्कीर्ण लेख की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८८० मार्गशीर्ष सुदि ५ पद्मप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख गुरुवार २०९ सहस्रफणा पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख "" मल्लिनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैन मंदिर, जैनमंदिर, ईडर नाकोड़ा तीर्थ " पद्मप्रभ का मंदिर, पन्नीबाई का उपाश्रय, बीकानेर वही, भाग, लेखांक २१ जैनधातुप्रतिमालेख परिशिष्ट, पृष्ठ १२ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २२ वही, भाग १, लेखांक १३९९ वही, भाग १, लेखांक १४०० वही, भाग १, लेखांक १४५९ नाकोड़ापार्श्वनाथतीर्थ लेखांक १०८ वही, लेखांक १०९ एवं चम्पालाल सालेचा, संपा० बाड़मेर जिले के प्राचीन जैन शिलालेख, लेखांक ४७४ बीकानेरजैनलेखसंग्रह लेखांक १८५७ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८३ " २१० आदिनाथ की वही, लेखांक १८६९ पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रीपूज्य विजयजिनेन्द्रसूरि के पश्चात् उनके शिष्य विजयदेवेन्द्रसूरि श्रीपूज्य बने। वि०सं० १८८८, १८९२, १८९३, १९०२ और १९०४ के कुछ लेखों में इनका नाम मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है: १८८८ माघ सुदि ५ सोमवार पार्श्वनाथ जिनालय पार्श्वनाथ जिनालय जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, की देहरी पर पोसीना भाग १, लेखांक १४६४ उत्कीर्ण लेख १८८८ " १८८८ वही, भाग १, लेखांक १४६५ वही, भाग १, लेखांक १४६६ वही, भाग १, लेखांक १४६७ वही, भाग, १, लेखांक १३८८ १८८८ " " जैन मंदिर, ईडर " वही, भाग१. लेखांक १३९४ वही, भाग१. लेखांक १३९६ १८८८ " मूलनायक की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८९२ वैशाख सुदि १३ धातु की जिनप्रतिमा शुक्रवार पर उत्कीर्ण लेख १८९२ " आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८९२ चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८९३ माघ सुदि १० आदिनाथ की बुधवार धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १८९३ वही, भाग१. लेखांक १३९७ जैनधातुप्रतिमालेख परिशिष्ट, पृ.१३ १८ पार्श्वनाथ की पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वही, परिशिष्ट पृ.१३-१४ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२७६ सीमंधर स्वामी का मंदिर, भांडासर Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९३ " लेख १९०४ " आदिनाथ की वही, लेखांक १२७९ पाषाण की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १९०२ कार्तिक सुदि २ जिन प्रतिमा पर .. जैनधातुप्रतिमालेख, उत्कीर्ण लेख परिशिष्ट, पृष्ठ ८ १९०४ वैशाख सुदि १५ मल्लिनाथ की शांतिनाथ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनगुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण जिनालय, लेखसंदोह, लेखांक २७३ साड़वाड़ा संभवनाथ की वही, लेखांक २७४ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रीपूज्य विजयदेवेन्द्रसूरि के निधन के पश्चात् उनके दो पट्टधर हुए, प्रथम विजयधरणेन्द्रसूरि और द्वितीय विजयकल्याणसूरि। इनसे अलग-अलग शिष्य परम्परायें चलीं। श्रीपूज्य विजयधरणेन्द्र के पश्चात् क्रमश: विजयराजसूरि, विजयमुनिचन्द्रसूरि, विजयकल्याणसूरि और विजयमहेन्द्रसूरि श्रीपूज्य बने। इन सभी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। इनके पश्चात् यह परम्परा समाप्त हो गयी। १२ । श्रीपूज्य विजयदेवेन्द्रसूरि के दूसरे पट्टधर श्रीपूज्य विजयकल्याणसूरि के पट्टधर श्रीपूज्य विजयप्रमोदसूरि हुए। श्रीपूज्य विजयप्रमोदसूरि के शिष्य श्रीपूज्य विजयराजेन्द्रसूरि जी हुए जिन्होंने यति परम्परा में व्याप्त शिथिलाचार का त्याग कर वि० सं० १९२५ में क्रियोद्धार कर जैनधर्म में नई स्फूर्ति पैदा की।११३ आचार्य विजयराजेन्द्रसूरि जी की परम्परा स्वतंत्र रूप से चली। आचार्य विजयप्रभसूरि की शिष्य संतति को तालिका के रूप में निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है: विजयप्रभसूरि (वि०सं० १७४९ में स्वर्गस्थ) श्रीपूज्य विजयरत्नसूरि (वि०सं० १७७३ में स्वर्गस्थ) श्रीपूज्य विजयक्षमासूरि श्रीपूज्य विजयधर्मसूरि (वि०सं० १८२५-१८३९) यंत्रलेख एवं चरणपादुकालेख श्रीपूज्य विजयजिनेन्द्रसूरि (वि०सं० १८४३-१८८३) प्रतिमालेख Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीपूज्य विजयदेवेन्द्रसूरि (वि० सं० १८८८-१९०४)" श्रीपूज्य विजयधरणेन्द्रसूरि श्रीपूज्य विजयकल्याणसूरि श्रीपूज्य विजयराजसूरि श्रीपूज्य विजयप्रमोदसूरि श्रीपूज्य विजयमुनिचन्द्रसूरि श्रीपूज्य विजयकल्याणसूरि श्रीपूज्य विजयराजेन्द्रसूरि (महान् क्रियोद्धारक एवं बृहद्सौधर्म तपागच्छ के प्रवर्तक) श्रीपूज्य विजयमहेन्द्रसूरि तपागच्छीय श्रीपूज्यों का अनुयायी यति समुदाय बहुत विशाल संख्या में था। उत्तर भारत के प्राय: सभी भागों में इनका प्रभाव था। ये यति ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, वैद्यक आदि सभी विद्याओं में निपुण थे। यह यति समुदाय विजय, कुशल, माणिक्य आदि विभिन्न शाखाओं में विभक्त था। धार्मिक संस्कारों एवं कर्मकाण्डों को बनाये रखने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इस समुदाय में शिथिलाचार के अत्यधिक बढ़ जाने के कारण संविग्नपक्षीय साधुपरम्परा का उदय हुआ। संविग्नपक्षीय मुनिजनों के आचार के प्रभाव के कारण इन यतिजनों का प्रभाव तेजी से घटने लगा और ये गोरजी (गुरांसा या गुरुजी) के नाम से जाने गये। धीरे-धीरे यतिजन उपाश्रयों के स्वामी होते हुए भी प्रभावशून्य हो गृहस्थ वेश में आ गये। आज तो यह स्थिति है कि कोई भी वेशधारी यति दिखलाई नहीं देता और यह परम्परा अंब नाममात्र की ही बची है। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ २. 3. धर्मसागरीय "तपागच्छ पट्टावली'', पट्टावली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ६६-६७. मुनि चतुरविजय, जैनस्तोत्रसंदोह, भाग २, प्रास्तावना, पृष्ठ A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss: Muni Shree Punya Vijaya Jis Collection, Part I, L.D. Seris No. 2,Ahmedabad. 1962 A.D., P. 88. मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, पृष्ठ १८९. अमृतलाल मगनलालशाह, संपा०- श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, पृष्ठ २०, प्रशस्ति क्रमांक ८५. ५. बुद्धिसागरसूरि, संपा० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग१,लेखांक १२१५. ६. मुनि जयन्तविजय, संपा०- अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक २५५. ___ विनयसागर, संपा०- प्रतिष्ठालेखसंग्रह, जिनमणिमाला, पुष्प ४, कोटा १९५३ ई०, लेखांक ५६८. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग १, नवीनसंस्करण, संपा० - जयन्त कोठारी, अहमदाबाद १९८६ ई०, पृष्ठ १०४-१०५. वही, भाग १, पृष्ठ ९१-९३. मुनि चतुरविजयजी ने संघकलश के गुरु उदयनंदि को संवेगदेवगणि का शिष्य और रत्नशेखरसूरि का प्रशिष्य कहा है। उनके इस कथन का आधार क्या है, यह ज्ञात नहीं होता। जैनस्तोत्रसंदोह, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ९८. १०-११. वही, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ९९-१००. १२. सोमसौभाग्यकाव्य, सर्ग १०, श्लोक ३२-४३. १३. गुरुगुणरत्नाकरकाव्य, पृष्ठ १९-२०, मूलग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह उद्धरण जैनस्तोत्रसंदोह, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ ९९ के आधार पर दिया गया है। १४-१५. वही, पृष्ठ १००. देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, मुम्बई १९३२ ई०, पृष्ठ ५१५, कंडिका ७५२. १७. रसिकलाल हीरालाल कापड़िया, जैनसंस्कृतसाहित्यनो इतिहास, भाग २, खंड १, बड़ोदरा १९६८ ई०, पृष्ठ १७२, २२७, २३१ आदि. १८. उपदेशतरंगिणी की प्रशस्ति १९. आचारांगसूत्र पर तत्त्वावगमा नामक अवचूर्णि; ज्ञाताधर्मकथा पर मुग्धावबोध नामक लघुवृत्ति आदि, जैनसाहित्यनो.........., पृष्ठ ५२०, कंडिक .. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०. २१. २२. २३. २४. साधारणजिनस्तवन भी इन्हीं की कृति है जो अनेकार्थ रत्नमंजूषा, पृष्ठ ८७९० में प्रकाशित है। हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग २, खंड १, बड़ोदरा १९६३ ई० स०, पृष्ठ ४७४. २५-२६. वही, पृष्ठ ४००, ४७४. २७-२८. मुनि चतुरविजय, जैनस्तोत्रसंदोह, प्रस्तावना, पृष्ठ १०४. २९. वही, पृष्ठ १०४. ३०. ३१. ३२. ३३- ३४. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. २१४ इस शाखा का स्वतंत्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो इसी ग्रंथ में यथास्थान प्रकाशित है। पूज्याराध्यध्येयतम श्रीगच्छाधिराज भट्टारकपुरन्द श्रीसोमसुन्दरसूरि शिष्य शिरोऽवतंसकसकलसकर्णपुरुषश्रेणीप्रणीतपदपद्मसेवभट्टारक प्रभु श्रीसोमदेवसूरि शिष्यशिरोमणिपूज्याराध्य पं० चारित्रहंसगणिपादविनेयपरमाणुनासोमचारित्रगणिना विरचितो ग्रन्थः सम्पूर्णः ॥ गुरुगुणरत्नाकरकाव्य की प्रशस्ति गुरुगुणारत्नाकरकाव्य, संपा०- मुनि इन्द्रविजय, वाराणसी वीर सम्वत् २४३७. अमृतलाल मगनलालशाह, संपा०- श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्रीदेशविरति धर्माराजकसंघ, अहमदाबाद, वि०सं० १९९३, भाग २, पृष्ठ १६, प्रशस्ति क्रमांक ६३. यह कृति पेथड़ (पृथ्वीघर) और उसके पुत्र झांझड़ की प्रशस्ति के रूप में रची गयी है और आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित हो चुकी है। H.D. Velankar, Jinaratnakosha, Poona, 1944 A.D. P-443. ४०. वही, पृष्ठ १०४. मुनिमृगेन्द्र, संपा० प्रबन्धपंचशती, सूरत १९६८ ई० स०. वही, प्रस्तावना, पृष्ठ १, पादटिप्पणी. वही, पृष्ठ २५८, ३५२. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनोसंक्षिप्तइतिहास, पृष्ठ ४९६-५०० कंडिका ७२१-७२६. विजयधर्मसूरि, संपा० ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग १, भावनगर वि० सं० १९७२, पृष्ठ २७-२९. मुनिकांतिसागर, शत्रुंजयवैभव, पृष्ठ १९३-१९७. ऐतिहासिक राससंग्रह, भाग १, पृष्ठ ३०. Jinaratnamakosha, P-452-53. धर्मसागरीय “तपागच्छ पट्टावली", मुनि कल्याणविजय गणि, पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १५२. लावण्यसमय गणि, सुमतिसाधुविवाहलो ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग १, पृष्ठ ४१-४८. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, संशोधक- संपा०, जयन्तकोठारी, अहमदाबाद १९९७ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२. २१५ ई०, पृष्ठ ६५-६६ एवं जैनस्तोत्रसंदोह, भाग २, पृष्ठ १०८ टिप्पणी में उद्धृत. मुनि जिनविजय, संपा०- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघीजैनग्रन्थमाला, ग्रन्थंक ५३, मुम्बई १९६१ ई०, पृष्ठ २१९-२२०. ४१. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ८५-८९. पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १८२ १८६. मुनि जिनविजय, संपा० - जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, जैनऐतिहासिक ग्रन्थमाला, पुष्प ७, भावनगर १९२६ ई०, परिशिष्ट, राससार, पृष्ठ ९५-१००. जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १८६-१९०. ४३. वही, पृष्ठ १९०-१९२. 44. Charlotte Krause, Ed. Ancient Jaina Hymms, Scindia Oriental Series, No. 2, Ujjain 1952, P-34. जैनऐतिहासिक गूर्जर.............,परिशिष्ट, पृष्ठ ९६. पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृष्ठ ६८ और आगे. वही, भाग १, पृष्ठ १३४. वही, भाग १, पृष्ठ १४६. ४९. वही, भाग १, पृष्ठ १५७. ५०. वही, भाग १, पृष्ठ १७२. ५१. जैनस्तोत्रसंदोह, भाग २, पृष्ठ २१७-२२६. Ancient Jaina Hymms, P-38-42; 105-114. ५३. शालोटे क्राउझे, “श्रीहेमविमलसूरिकृत तेर काठीयानी सज्झाय" जैनसत्यप्रकाश, वर्ष १२, अंक ३, पृष्ठ ७३ और आगे. 54. Ancient Jaina Hymms, P-38. इन शाखाओं का इतिहास स्वतंत्र रूप से लिखा गया है जो इसी पुस्तक में यथास्थान प्रकाशित है। ५६. जैनस्तोत्रसंदोह, भाग २, पृष्ठ १०८-१२२. वही, पृष्ठ १११. Ancient Jaina Hymms, P-37. ५८. "लघुपौशालिक पट्टावली" जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ८६; पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १८३. ५९-६०. “वीरवंशावली', विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ २२०-२२१. धर्मसागर उपाध्यायकृत “तपागच्छपट्टावलीसूत्र" पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृष्ठ ६९-७०; पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १५३५४. “गुरुपट्टावली", पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृष्ठ १७२-१७३. “पट्टावलीसारोद्धार", वही, भाग १, पृष्ठ १५७-१५८. "सूरिपरम्परा", वही, भाग १, पृष्ठ १४६. ६१-६३. “पट्टावलीसारोद्धार' पट्टावलीसमुच्चय, भाग १, पृष्ठ १५८. ५५. Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५. २१६ "गुरुपट्टावली', वही, भाग १, पृष्ठ १७३-७४. “वीरवंशावली'', विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ २२२. विजयधर्मसूरि, संपा० - ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग ४, भूमिका, पृष्ठ ५-१०. ६४. इस शाखा का स्वतंत्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो इसी पुस्तक में यथास्थान रखता है। यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर से प्रकाशित. ६६. पट्टावली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ७१-७७. ६७. श्रीकांतिविजय इतिहासमाला, भावनगर से वि० सं० १९७३ में प्रकाशित • ६८. काव्यमालासिरीज, निर्णयसागरप्रेस, मुम्बई से वि० सं० १९०० में प्रकाशित ६९. जैनगूर्जरकविओ, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २५७. ७०-७१. मुनि जिनविजय, संपा०- जैनऐतिहासिक गूर्जरकाव्यसंचय, श्रीकांतिविजयजी जैनऐतिहासिक ग्रन्थमाला, पुष्प ७, भावनगर १९२६ ई०, पृष्ठ १९६-२०५. ७२. जैनसाहित्यनोसंक्षिप्तइतिहास, पृष्ठ ५४०, कंडिका ७९२. ७३. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ २०६-२०९. ७४. आनन्दकाव्यमहोदधि. ७५-७६. संपा०- पं० हरगोविन्ददास बेचरदास, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी वीर सम्वत् २४३७. ७७. मुनि विद्याविजयजी, सूरीश्वर अने सम्राट, हिन्दीअनुवाद, आगरा वि०सं० १९८०, पृष्ठ १०७ और आगे. ७८. वही, पृष्ठ १३५, कु० नीना जैन, मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति, शिवपुरी १९९१ ई०, पृष्ठ ६६. वही, पृष्ठ १२६. 80. Mohan Lal Dalichand Desui, Ed. Bhanuchandra Gani Charitra, S.J.S. No. 15, Ahmedabad - Calcutta 1941 A.D., Introduction, P-9-10. ८० अ. जैनसाहित्यनोसंक्षिप्तइतिहास, पृष्ठ ८१-८२. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ७६-७७. ८३. जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १६६-१७०. ८४. वही, पृष्ठ १५९-१६५. 85. Bhanuchandra Gani Charitra, Introduction, P-10. ८६. वरसिं सोल बहुतरि, खंभनयर चउमास; Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१७ ८६. वरसिं सोल बहुतरि, खंभनयर चउमास; करवा श्री अकबर पुरि, आव्या महिम निवासो रे।।४४।। जेठ बहुल एकादशी, प्रह उगमतइ भाण; चउसरणादि समाधिस्युं, हूइ गुरु निरवाणो रे॥४५॥ गुणविजयकृत - “विजयसेनसूरिनिर्वाणभास' मुनि जिनविजय, संपा०- जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १७०. ८७. इस शाखा का स्वतंत्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो इसी पुस्तक में यथास्थान रखता है। ८८-८९. पं० बेचरदास दोशी, संपा० - देवानन्दमहाकाव्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ७, अहमदाबाद-कलकत्ता १९३७ ई०स०, प्रस्तावना, पृष्ठ ८. ९०. वही, प्रस्तावना, पृष्ठ २-३. ९१. पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, संपा०- दिग्विजयमहाकाव्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १४, मुम्बई १९४५ ई०स०, परिशिष्ट, पृष्ठ १३४-१४१. ९२. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ६९-७०. 93-94. Bhanuchandra Gani Charitra, Introduction, P-21. ९५. मुनि जिनविजय, संपा०- विज्ञप्तिलेखसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक, मुम्बई १९६० ई०स०. संवत् सत्तर तेर आसाढ़ मास नी, सुदि आठमि दिन सुभ परईं ओ, ॥३४।। "श्रीविजयदेवसूरिनिर्वाण", रचनाकार-सौभाग्यविजय जैनऐतिहासिकगुर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १७४. एवं "राससार", वही, पृष्ठ ९०-९२. ९७. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ७०. ९८. मुनि जिनविजय, संपा० - विज्ञप्तिलेखसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५१, मुम्बई १९६० ई०सं०, पृष्ठ १३७-१५०. वही, पृष्ठ २०५-२१३; १००. वही, पृष्ठ १६२-१६५. १०१. वही, पृष्ठ १५९-१६१. १०२. वही, पृष्ठ १७९-१८४. १०३. वही, पृष्ठ १९५-१९८. १०४. श्रीतपागच्छ पट्टावलीसूत्र वृत्यनुसंधानं, रचनाकार-मेघविजय उपाध्याय, (रचनाकाल वि० सं० १७३२/ई० सन् १६६६), पट्टाल्ली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ९८-१०१. १०५. दिग्विजयमहाकाव्य, संपा-पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, सिंघी जैनग्रन्थमाला, Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६. १०७. १०८. १०९. ११०. १११. ११२. ११३. ११४. ११५. २१८ ग्रन्थांक १४, मुम्बई १९४५. इस ग्रन्थ की परिशिष्ट पृष्ठ १३४- १४१ पर भी उक्त पट्टावली प्रकाशित है। बुद्धिसागर, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९४८. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७९७. नाहर, मुनि जिनविजय, संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३४०. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११७७. दिग्विजयमहाकाव्य, सर्ग १०, पृष्ठ ९४ - १०३. “तपागच्छपट्टावली”, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ७१. वही, पृष्ठ ७२-७३. श्री देवेन्द्रमुनि, “श्रीसौधर्म बृहत्तपागच्छगुर्वावली” अगरचन्द नाहटा तथा अन्य, संपा० श्रीमद्राजेन्द्रसूरिस्मारकग्रन्थ, बागरा वि० सं० २०१३, पृष्ठ १४८. भगवानसहाय वशिष्ठ, श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी - जीवनयात्रा, राजगढ़ ई०स० १९९०, पृष्ठ १११ और आगे. श्री भंवरलाल नाहटा, श्रीस्वर्णगिरिजालौर, कलकत्ता १९९५ई०, प्रस्तावना, पृष्ठ ३. श्री बाबूलालजैन ‘उज्जवल’, संपा०, समग्र जैन चातुर्मास सूची १९९७ ई०, पृष्ठ १३५-१३९. Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्याय - ४ तपागच्छ - बृहद्पौशालिक शाखा तपागच्छ के प्रवतर्क आचार्य जगच्चन्द्रसूरि के कनिष्ठ गुरुभ्राता व शिष्य विजयचन्द्रसूरि से तपागच्छ की बृहदपोशालिक शाखा अस्तित्त्व में आयी। प्राप्त विवरणानुसार आचार्य जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य विजयचन्द्रसूरि १२ वर्षों तक स्तम्भतीर्थ (खंभात) की उस पौषधशाला में रहे, जहां उनके गुरु ने ठहरना निषिद्ध किया था। इस अवधि में उनके ज्येष्ठ गुरुभ्राता देवेन्द्रसूरि ने मालवा प्रान्त में विचरण किया, वहां से जब वे स्तम्भतीर्थ लौटे तो उन्हें ज्ञात हुआ कि विजयचन्द्रसूरि अभी तक उसी पौषधशाला में हैं तथा उन्होंने साधु जीवन में पालन करने वाले कई कठोर नियमों को पर्याप्त शिथिल भी कर दिया है। इसी कारण वे स्तम्भतीर्थ की दूसरी पौषधशाला में, जो अपेक्षाकृत कुछ छोटी थी, ठहरे। इस प्रकार जगच्चन्द्रसूरि के दो शिष्य एक ही नगर में एक ही समय में दो अलग-अलग स्थानों पर रहे। बड़ी पौषधशाला में ठहरने के कारण विजयचन्द्रसूरि का शिष्यपरिवार बृहद्पौशालिक एवं देवेन्द्रसूरि का शिष्यसमुदाय लघुपौशालिक कहलाया। साहित्यिक और अभिलेखीय दोनों ही साक्ष्यों में कई नाम मिलते हैं जैसे-बृहद्तपागच्छ, वृद्धतपागच्छ, बृहद्पौशालिक, वृद्धपौशालिक, बृहद्पौशधशालिक आदि। तपागच्छ की इस शाखा में आचार्य क्षेमकीर्ति, आचार्य रत्नाकरसूरि, जयतिलकसूरि, रत्नसिंहसूरि, जिनरत्नसूरि, उदयवल्लभसूरि, ज्ञानसागरसूरि, उदयसागरसूरि, धनरत्नसूरि, देवरत्नसूरि, देवसुन्दरसूरि, नयसुन्दरगणि आदि कई विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं। तपागच्छ की इस शाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत इससे सम्बद्ध मुनिजनों द्वारा रचित कृतियों की प्रशस्तियां, उनके द्वारा प्रतिलिपि किये गगये ग्रन्थों की प्रशस्तियाँ एवं वि० सं० की १७वीं शताब्दी में नयसुन्दरगणि द्वारा रचित एक पट्टावली भी है। इसके अलावा इस शाखा के मुनिजनों द्वारा समय-समय पर प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १४५९ से लेकर वि०सं० १७८१ तक की हैं। यहाँ उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर तपागच्छ की इस शाखा के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। इस शाखा के आद्यपुरुष विजयचन्द्रसूरि द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है, तथापि अपने ज्येष्ठ गुरुभ्राता देवेन्द्रसूरि द्वारा रचित कुछ कृतियों की रचना में उन्होंने सहयोग अवश्य प्रदान किया था। इनके शिष्यों के रूप में वज्रसेन, पद्मचन्द्र और क्षेमकीर्ति का नाम मिलता है। क्षेमकीर्ति द्वारा रचित ४२०० ० श्लोक परिमाण बृहद्कल्पसूत्रवृत्ति प्राप्त होती है जो वि०सं० १३३२/ई०स० १२७६ में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति नामक कृति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : धनेश्वरसूरि भुवनचन्द्रसूरि देवभद्रगणि Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जच्चन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि वज्रसेन क्षेमकीर्ति (वि० सं० १३३२ / ई०स० १२७६ में बृहदकल्पसूत्रवृत्ति के रचनाकार) जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, बृहद्बौशालिक शाखा की एक पट्टावली" प्राप्त होती है। इसमें रचनाकार द्वारा विजयचन्द्रसूरि से लेकर धनरत्नसूरि एवं उनके शिष्यों तक की दी गयी गुरु-परम्परा इस प्रकार है : विजयचन्द्रसूरि रत्नसागर २२० वज्रसेन पद्मचन्द्र विजयचन्द्रसूरि पद्मचन्द्र क्षेमकीर्तिसूरि हेमकलशसूरि I रत्नाकरसूरि I रत्नप्रभसूर मुनिशेखरसूरि धर्मदेवसूरि ज्ञानचन्द्रसूरि | अभयचन्द्रसूरि जयतिलकसूरि रत्नसिंहसूर धर्मशेखरसूरि माणिक्यसूरि संघति सूरि T नयप्रभ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हेमसुन्दर उदयवल्लभसूरि 1 ज्ञानसागरसूरि 1 उदयसागरसूरि धनरत्नसूर २२१ उदयधर्मगणि लब्धिसागरसूरि शीलसागरसूरि चारित्रसागरसूरि धनसागरसूरि धनरत्नसूरि (पट्टधर) (शिष्य) (शिष्य) (शिष्य (शिष्य) (लब्धिसागरसूरि के पट्टधर) अमररत्नसूरि तेजरत्नसृरि देवरत्नसृरि कल्याणरत्न सौभाग्यरत्न भानुमेरुगणि T जयरत्न नयसुन्दर า शिवसुन्दरगणि सौभाग्यसागर उदयसौभाग्य (हैमप्राकृत क्षेमकीर्ति के एक शिष्य हेमकलशसूरि हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती। आचार्य देवेन्द्रसूरि द्वारा रचित धर्मरत्नप्रकरणटीका (रचनाकार वि०सं० १३०४(२३) के संशोधक के रूप में धर्मकीर्ति के साथ हेमकलश का भी नाम मिलता है, जिन्हें समसामयिकता, नामसाम्य आदि के आधार पर बृहद्तपागच्छीय उक्त हेमकलशसूरि से समीकृत किया जा सकता है। क्षेमकीर्ति के दूसरे शिष्य नयप्रभ का उक्त पट्टावली को छोड़कर अन्यत्र कोई उल्लेख नहीं मिलता। पर ढुंढिका के रचनाकार) इस कसूर के शिष्य रत्नाकरसूरि एक प्रभावक आचार्य थे। इन्हीं के समय से शाखा का एक अन्य नाम रत्नाकरगच्छ भी पड़ गया। श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने रत्नाकरपंचविंशतिका के कर्ता रत्नाकरसूरि और बृहद्तपागच्छीय रत्नाकरसूरि को एक ही व्यक्ति होने की संभावना प्रकट की है, किन्तु श्री हीरालाल रसिकलाल कापड़िया' ने अभिधानराजेन्द्रकोश का उद्धरण देते हुए रत्नाकरपंचविंशतिका के रचनाकार रत्नाकरसूरि को देवप्रभसूरि का शिष्य बतलाते हुए उक्त कृति को वि०सं० १३०७ में रचित बतलाते हैं। यदि श्री कापड़िया के उक्त मत को स्वीकार करें तो रत्नाकरपंचविंशतिका के कर्ता बृहद्पौशालिक रत्नाकरसूरि नहीं हो सकते क्योंकि उनका समय विक्रम सम्वत् की चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध सुनिश्चित है। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ रत्नाकरसूरि के पट्टधर रत्नप्रभसूरि और रत्नप्रभसूरि के पट्टधर मुनिशेखरसूरि का उक्त पट्टावली को छोड़कर अन्यत्र कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता, प्राय: यही बात धर्मदेवसूरि, ज्ञानचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर अभयसिंहसूरि के बारे में कही जा सकती है। अभयसिंहसूरि के पट्टधर जयतिलकसूरि हुए। इनके द्वारा रचित आबूचैत्यप्रवाडी (रचनाकाल वि०सं० १४५६ के आसपास) नामक कृति पायी जाती है। इनके उपदेश से अनुयोगद्वारचूर्णी १ और कुमारपालप्रतिबोध१२ की प्रतिलिपि तैयार की गयी। जयतिलकसूरि के शिष्यों में रत्नसागरसूरि, धर्मशेखरसूरि, रत्नसिंहसूरि, जयशेखरसूरि और माणिक्यसूरि का नाम मिलता है। रत्नसागरसूरि से बृहद्पौशालिकशाखा/रत्नाकरगच्छ की भृगुकच्छशाखा अस्तित्त्व में आयी। रत्नसिंहसूरि की शिष्य परम्परा बृहद्तपागच्छ की मुख्य शाखा के रूप में आगे बढ़ी, जबकि जयशेखरसूरि के शिष्य जिनरत्नसूरि की शिष्यसन्तति का स्वतंत्र रूप से विकास हुआ। जयतिलकसूरि के दो अन्य शिष्यों-धर्मशेखरसूरि और माणिक्यसूरि की शिष्य-परम्परा आगे नहीं चली। रत्नसिंहसूरि तपागच्छ की बृहद्पौशालिकशाखा के प्रभावक आचार्य थे। वि०सं० १४५९ से लेकर वि० सं० १५१८ तक के पचास से अधिक प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है। इनका संक्षिप्त विवरण. इस प्रकार है : रत्नसिंहसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित लेखों का विवरण इस प्रकार है : Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रमांक सम्वत् १४५९ १. २. ३. ४. ६. ७. ८. १४७८ १४८१ वैशाख सुदि ३ १४८१ १४८१ १४८१ १४८१ १४८१ तिथि-वार ज्येष्ठ सुदि ९ शुक्रवार "" माघ सुदि ५ गुरुवार २२३ रत्नसिंहसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित लेखों की सूची "" प्रतिमालेख / शिलालेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देहरी नं० २ पर उत्कीर्ण लेख देहरी नं० ३ पर उत्कीर्ण लेख देहरी नं० ४ पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख माघ सुदि ९ शनिवार ( ? ) पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासार, नीशापोल, अहमदाबाद जिनदत्तसूरि दादावाड़ी, पालीताना वीरजिनालय, जीरावाला चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर शांतिनाथ जिनालय, चौकसीपोल, खंभात संदर्भ ग्रन्थ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२२७ शत्रुंजयवैभव, लेखांक २४ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक १२६ वही, लेखांक १२७ वही, लेखांक १२८ बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १५७८ वही, लेखांक ७०८ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८३५ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ९. आदिनाथ जिनालय, माणेक चौक, खंभात जैनदेरासर, डरभोई चही, भाग २, लेखांक १००३ वही, भाग १, लेखांक २६ १०. ११. १२. १४८१ " शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८४ तिथिविहीन आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८५ वैशाख सुदि ७ सोमवार पासुपूज्य की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८६ वैशाख सुदि १५ सोमवार अजितनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८७ माघ वदि २ शनिवार श्रेयांसनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८७ माघ वदि ८ धर्मनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८८ वैशाख सुदि अभिनन्दन स्वामी की धातु की १० गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १४८९ पौष वदि अजितनाथ की प्रतिमा १० गुरुवर पर उत्कीर्ण लेख १३. शांतिनाथजिनालय, शेखनोपाडो, वही, भाग १, लेखांक १०३६ वासुपूज्यजिनायल, नागरवाड़ो, वही, भाग २, खंभत लेखांक १०८२ जेनदेरासर, पाटड़ी प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १४० शांतिनाथ जिनालय, जैनधरतुप्रतिमालेखसंग्रह, बिजापुर भाग १, लेखांक ४३६ आदिनाथ जिनालय, वही, भाग २, माणेक चौक, खंभात लेखांक १००७ चीटरवाने कर मंदिर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, दिल्ली लेखांक ५०७ १४. १५. १६. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२५ १७. १४८९ पौष वदि १२ शुक्रवार १४९३ तिथिविहीन १८. वही, भाग २, लेखांक ११४० जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९३६ जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ८७ वही, लेखांक ९१ १९. १४९६ ज्येष्ठ सुदि १० बुधवार १४९९ फाल्गुन वदि ६ २०. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा सुपार्श्वनाथ का पंचायती बड़ा पर उत्कीर्ण लेख मंदिर, जयपुर अजितनाथ की धातु की प्रतिमा वीर जिनालय, रीज रोड, पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबार कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा जैनमंदिर, सम्मेतश्खिर, पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पर उत्कीर्ण लेख मुम्बई अजितनाथ देरासर, सुतार की खड़की, अहमदाबाद पद्मप्रभ की प्रतिमा बालावसही, शत्रुजय पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा बड़ा देरासर, लींबड़ी पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, पर उत्कीर्ण लेख चौकसीपोल, खंभात २१. १५०० तिथिविहीन जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३४२ शत्रुजयवैभव, लेखांक ८८ २२. १५०० वैशाख सुदि ५ २३. १५०१ माघ सुदि १३ गुरुवार १५०३ आषाढ़ वदि ७ सोमवार प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १७९ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ७९९ २४. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५. १५०३ माघ वदि २ गुरुवार १५०३ माघ वदि सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ जिनालय, मेहसाणा पार्श्वनाथ जिनालय, भरुच प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक १९७ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३०७ २६. २७. शांतिनाथ देरासर, अहमदाबाद वही, भाग १, लेखांक ११३७ १५०३ फाल्गुन वदि २ बुधवार १५०४ ज्येष्ठ सुदि १० सोमवार २८. शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बावन जिनालय, हठी भाई की बाड़ी, अहमदाबाद जैनमंदिर, कतार ग्राम २९. १५०४ ३०. १५०५ वैशाख...... जेनमंदिर, नेमभाई की बाड़ी, सूरत वही, भाग १, लेखांक ७७६ प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २०४ वही, लेखांक २१४ एवं जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग १, लेखांक ५९७ प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २१७ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३०८ ३१. जैनमंदिर, कतार ग्राम १५०६ माघ सुदि ५ रविवार १५०७ वैशाख वदि २ गुरुवार तीर्थंकर की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नमिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ३२. शांतिनाथ देरासर, कनासानो पाड़ो, पाटण Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ ३३. १५०७ ज्येष्ठ सुदि २ वही, भाग १, लेखांक १०८६ वही, भाग १, लेखांक १०४५ ३४. १५०७ ३५. वही, भाग १, लेखांक ११४५ १५०७ ज्येष्ठ सुदि १० सोमवार १५०८ आषाढ़ सुदि २ सोमवार ३६. वही, भाग १, लेखांक २०० मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पार्श्वनाथ देरासर, देवसानो पर उत्कीर्ण लेख पाड़ो, अहमदाबाद सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा शांतिनाथ जिनालय, पर उत्कीर्ण लेख शेखनोपाडो, अहमदाबाद चन्द्रप्रभ की धातु की प्रतिमा शांतिनाथ दोरासर. पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा जैनमंदिर, ऊंभा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा जगवल्लभ पार्श्वनाथ देरासर, पर उत्कीर्ण लेख नीशापोल, अहमदाबाद मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पोरवालों का मंदिर, पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा अजितनाथ देरासर, स्तार की पर उत्कीर्ण लेख खड़की, अहमदाबाद सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा आदिनाथ जिनालयश कठगोला, पर उत्कीर्ण लेख मुर्शिदाबाद ३७. ३८. पुणे १५०८ आषाढ़ सुदि ९ शुक्रवार १५०९ ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवार १५०९ आषाढ़ सुदि २ सोमवार १५०९ पौष वदि १० गुरुवार वही, भाग १, लेखांक १२१७ प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २५४ जैनधात्प्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३४३ जेनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६९ -३९. ४०. Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१. ४२. ४३. ४४. ४५. ४६. ४७. ४८. १५०९ १५०९ १५१० १५१० १५१० १५१० माघ सुदि ५ गुरुवार १५१० ज्येष्ठ सुदि ३ गुरुवार १५१० फाल्गुन सुदि ३ गुरुवार वैशाख वद ५ सोमवार "" "" माघ सुदि १० २२८ पद्मप्रभ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुविधिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख वीरजिनालय, पायधुनी, मुम्बई जेनमंदिर, भांदक अनन्तनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शीतलनथ जिनालय, उदयपुर अजितनाथ जिनालय, सुतार की खड़की, अहमदाबाद बड़ा जिनालय, हिम्मतनगर थीरुशाह का दोरासर, जेसलमेर सुविधिनाथ की धातु की पंचतीर्थी वीरदेरासर, अहमदनगर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बालावसही, शत्रुंजय जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ११७ वही, लेखांक ११३ जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०८६ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १३४४ प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक २६३ जैनलेखसंग्रह, भाग ३, लेखांक २४५८ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ५९० शत्रुंजयवैभव, लेखांक १२५ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९. ५०. ५१. ५२. ५३. ५४. ५५. ५६. ५७. १५११ ज्येष्ठ वदि ९ शनिवार पौष वदि ६ गुरुवार १५१३ वैशाख सुदि ५ गुरुवार १५११ १५१३ १५१३ पौष सुदि १३ रविवार १५१४ माघ सुद २ शुक्रवार १५१४ माघ सुदि २... " १५१४ १५१५ ज्येष्ठ वद १२ शुक्रवार २२९ विमलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख " संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ देरासर, कनसानो पाड़ो जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पाटण भाग २, लेखांक ३११ जलमंदिर, मधुबन, सम्मेतशिखर आदिनाथ जिनालय, बालूचर, मुशिदिरवार जेनमंदिर, लध्वाड़ चिन्तामणि जी का मंदिर, बीकानेर अभिनन्दनस्वामी कर देरासर, करबटीया पार्श्वनाथ देरासर, साणंद बावन जिनालय, पेयापुर अजितनाथ की धातु की प्रतिमा आदिनाथ चैत्य, पर उत्कीर्ण लेख थराद जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १६९६ वही, भाग १, लेखांक ३४ वही, भाग २, लेखांक १७०० बीकानेर जैनलेखसंग्रह, लेखांक ९७४ जेनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४८४ वही, भाग १, लेखांक ६४० वही, भाग १, लेखांक ६९० जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १५४ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ५८. ५९. १५१६ आषाढ़ सुदि ९ शुक्रवार १५१६ पौष वदि ४ गुरुवार १५१७ माघ सुदि ४ सोमवार आदिनाथ की धातु की प्रतिमा गौड़ीपार्श्वनाथ देरासर, पर उत्कीर्ण लेख विजापुर अभिनन्दनस्वामी की प्रतिमा शीतलनाथ जिनालय, रिणी, पर उत्कीर्ण लेख तारानगर संभवनाथ की धातु की प्रतिमा दि० जेनमंदिर, कांडाली, पर उत्कीर्ण लेख मध्य प्रदेश वीर जिनालय, रीज रोड, ६०. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ४५० बीकानेरजैनसंग्रह, लेखांक २४४८ जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक १६३ जेनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९९३ वहीं, भाग १, लेखांक ६२२ ६१. १५१७ " ६२. १५१८ माघ सुदि १० मंगलवार श्रेयांसनाथ की धात् की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, रायपुर Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३१ वि० सं० १५०१ में भवभावनासूत्रबालावबोध एवं नेमीश्वरचरित्र के कर्ता माणिक्यसुन्दरगणि" रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे। वि०सं०१५१४ में लिखी गयी उत्तराध्ययनसूत्रअवचूरि की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार उदयमंडन' ने स्वयं को रत्नसिंहसूरि का शिष्य कहा है। वि०सं० १५०७ में वाक्यप्रकाशऔक्तिक के रचनाकार उदयधर्म भी रत्नसिंहसूरि१७ के ही शिष्य थे। वि० सं० १५०९ में रत्नचूड़ामणिरास एवं वि० सं० १५१६ में जम्बूरास के कर्ता ने अपना नाम उल्लिखित न करते हुए स्वयं को मात्र रत्नसिंहसूरिशिष्य कहा है। रत्नसिंहसूरि शिष्य द्वारा रचित गिरनारतीर्थमाल नामक एक कृति प्राप्त होती है। इसमें स्तम्भतीर्थ के श्रेष्ठी शाणराज द्वारा गिरनार पर इन्द्रनीलतिलकप्रासाद१९ नामक जिनालय बनवाने की बात भी कही गयी है। शाणराज द्वारा यहां विमलनाथ के परिकर का निर्माण कराने का उल्लेख वि० सं० १५२३ के एक शिलालेख में प्राप्त होता है। आचार्य विजयधर्मसूरि ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है: " संवत् १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरौ श्री वृद्धतपापक्षेगच्छनायक भट्टाकर श्री रत्नसिंहसूरिणां तथा भट्टाकर उदयवल्लभसूरिणां (च) उपदेशेन। व्य० श्रीराणा सं० भूभवप्रमुखश्रीसंघेन श्री विमलनाथपरिकर: कारित:प्रतिष्ठाता गच्छाधीशपूज्यश्रीज्ञानसागरसूरिभिः।" यह शिलालेख आज उपलब्ध नहीं होता। शाणराज की गिरनार प्रशस्ति२१ की प्रारंभिक पंक्तियां ही वहां से प्राप्त हुई हैं शेष अंश नहीं मिलता किन्तु सद्भाग्य से इसका अधिकांश भाग बृहद्पौशालिकपट्टावली में प्राप्त हो जाता है। महीवालकथा, कुमारपालचरित, शीलदूतकाव्य, आचारोपदेश आदि के रचनाकार एवं वि०सं० १५२३ तक विभिन्न जिनप्रतिमाओं के प्रतिष्ठापक चारित्रसुन्दरगणि२२ तथा वि०सं० १४९७ में संग्रहणीबालावबोध और वि०सं० १५२९ में क्षेत्रसमासबालावबोध के कर्ता दयासिंहगणि२३ भी इन्हीं रत्नसिंहसूरि के शिष्य थे। वि०सं० १५१६ में लिखी गयी उत्तराध्ययनसूत्र की एक प्रति से ज्ञात होता है कि इसे रत्नसिंहसूरि की शिष्या धर्मलक्ष्मी महत्तरा२४ के पठनार्थ लिखा गया था। रत्नसिंहसूरि के शिष्य एवं पट्टधर उदयवल्लभसूरि२५ हुए जिनके द्वारा वि०सं० १५२० के लगभग रचित क्षेत्रसमासबालावबोध नामक कृति प्राप्त होती है। वि०सं० १५१८-२१ तक के कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है जिनका विवरण इस प्रकार है : १. १५१८ ज्येष्ठ सुदि शीतलनाथ की धातु की वर्धमान शाह का प्राचीनलेखसंग्रह, ___३ शनिवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देरासर, जामनगर लेखांक ३२३ २. १५१५ जयेल वाद वासुपूज्य स्वामी की सेठ नरसीनाथा का जैनलेखसंग्रह, २ शनिवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मन्दिर, पालीताणा भाग १, लेखांक ६६१ Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ ३. १५१९ माघ वदि मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर संभवनाथ देरासर, वही, भाग ३, ५ शुक्रवार उत्कीर्ण लेख जैसलमेर लेखांक २४२२ ४. १५१९ माघ सुदी विमलनाथ की धातु की वीरजिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, १३ बुधवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख रीजरोड, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ९३० ५. १५२० वैशाख...? विमलनाथ की धातु की जैन मंदिर, लालबाग जैनधातुप्रतिमालेख, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुम्बई भाग १, लेखांक १७८ ६. १५२१ वैशाख सुदि शीतलनाथ की प्रतिमा पर पार्श्वनाथ जिनालय, जैनलेखसंग्रह, भाग २, १० उत्कीर्ण लेख लश्कर, ग्वालियर लेखांक १४०७ ७. १५२१ ज्येष्ठ सुदि संभवनाथ की प्रतिमा पर गौड़ीपार्श्वनाथ वही, भाग १, १३ गुरुवार उत्कीर्ण लेख जिनालय, अजमेर लेखांक ५३५ ८. १५२१ " सुमतिनाथ की धातु की जैनदेरासर, डभोई जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख ___ भाग १, लेखांक २० उदयवल्लभसूरि की दो शिष्याओं-रत्नचूला महत्तरा एवं प्रवर्तिनी विवेकश्री का उल्लेख मिलता२६ है। इनके पट्टधर ज्ञानसागरसूरि हुए जिनके द्वारा वि०सं० १५१७ में रचित विमलनाथचरित्र और अन्य कृतियाँ प्राप्त होती हैं। इन्हीं के लहिया लौका (लौकांशाह) ने वि०सं० १५२८ में अपने नाम से लोंकागच्छ का प्रवर्तन किया जिससे श्वेताम्बर सम्प्रदाय मूर्तिपूजक और अमूर्तिपूजक-दो भागों में विभक्त हो गया। वि० सं० १५२२-१५५३ तक के जिनप्रतिमाओं में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में ज्ञानसागरसूरि का नाम मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है: १. १५२२ -- शांतिनाथ की धातु की चौमुखजी देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद भाग १, लेखांक १४१ २. १५२३ वैशाख सुदि कुन्थुनाथ की धातु की पार्श्वनाथ जिनालय, प्राचीनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मांडल लेखांक, ३७५ ३. १५२४ वैशाख सुदि कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर पुण्डरीक स्वामी की शत्रुजयवैभव, ३ सोमवार उत्कीर्ण लेख ट्रॅक, शत्रुजय लेखांक १८२ ४. १५२४ विमलनाथ की धातु की पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देवसानो पाड़ो, भाग १, लेखांक १०८४ अहमदाबाद ५. १५२५ वैशाख वदि नमिनाथ की धातु की जैनदेरासर, पाटडी प्राचीनलेखसंग्रह, ११ रविवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ३९८ ६. १५२७ ज्येष्ठ वदि जैनमंदिर, ऊँझा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ७ सोमवार भाग १, लेखांक २०३ ७. १५२७ " वासुपूज्य की धातु की शांतिनाथ देरासर, वही, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख करबटीया लेखांक ४९१ भाग १ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३३ - ८. १५२८ वैशाख सुदि सुविधिनाथ की धातु की आदिनाथ चैत्य, जैनप्रतिमालेखसंग्रह, ५ गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख थराद संपा-दौलतसिंह लोढ़ा, लेखांक ४९ ९. १५२८ ज्येष्ठ सुदि कुन्थुनाथ की चौबीसी चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैनलेखसंग्रह, भाग २, ९ रविवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख जिनालय, सुंधिटोला, लेखांक १५९० लखनऊ १०. १५२८ माघ सुदि संभवनाथ की चौबीसी आदिनाथ जिनालय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैन१३ गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख खराड़ी लेखसंदोह, लेखांक २ एवं जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २०१३ ११. १५२८ फाल्गुन सुदि कुन्थुनाथ की धातु की जैनमंदिर, ऊँझा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ८ सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक १७८ १२. १५२९ ज्येष्ठ वदि ६ श्रेयांसनाथ की धातु की नवखंडा पार्श्वनाथ प्राचीनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देरासर, घोघा लेखांक ४२४ १३. १५५३ वैशाख वदि... वासुपूज्य की धातु की वीरजिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पायधुनी, मुम्बई लेखांक २६५ १४. १५... तिथिविहीन ७२ तीर्थंकरों का पट्ट नवचतुष्किका का लेख,अर्बुदप्राचीनजैन बनवाने का उल्लेख करने लूणवसही, आबू -लेखसंदोह, लेखांक २६३ वाला शिलालेख एवं प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १३० ज्ञानसागर के पट्टधर उदयसागर हुए। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित वि०सं० १५३२१५५६ तक की जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं इनका विवरण इस प्रकार है : १. १५३२ ज्येष्ठ वदि आदिनाथ की प्रतिमा पर प्रेमाभाई हेमाभाई जैनलेखसंग्रह, भाग १, १३ बुधवार उत्कीर्ण लेख टोंक, शत्रुजय लेखांक ६८१ २. १५३३ पौष वदि १ सुपार्श्वनाथ की धातु की श्रेयांसनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख फताशाह की पोल, भाग १, लेखांक १३८४ अहमदाबाद ३. १५३२ पौष सुदि १५ आदिनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, उत्कीर्ण लेख लेखांक २१३ ४. १५३३ पौष सुदि पार्श्वनाथ की धातु की बावनजिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, १५ सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पेथापुर भाग १, लेखांक ६८३ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख जिनालय, लेखांक १४४४ रौशनमुहल्ला, आगरा ६. १५३४ मार्गशीर्ष सुदि मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर जैनमंदिर, सिंहपुरी वही, भाग १, १० रविवार उत्कीर्ण लेख लेखांक ४२४ ७. १५३५ पौष वदि शांतिनाथ की धातु की पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ६ शुक्रवार प्रतिमा पर उत्कीण लेख देवसानो पाड़ो.. भाग १, लेखांक १०८० अहमदाबाद ८. १५३६ वैशाख वदि संभवनाथ की धातु की मनमोहन पार्श्वनाथ. वही, भाग १, लेखांक २४३ ११ शुक्रवार चौबीसी प्रतिमा पर देरासर, पाटण उत्कीर्ण लेख ९. १५३६ मोतीशाह की ट्रॅक, शत्रुजयवैभव, शवंजय लेखांक २२१ १०. १५३६ ज्येष्ठ वदि पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैनलेखसंग्रह, भाग २, ४ मंगलवार उत्कीर्ण लेख जिनालय, लेखांक १४४५ रौशनमुहल्ला, आगरा ११.१५३६ -- सम्भवनाथ की प्रतिमा पर रामचन्द्रजी का मंदिर, जैनलेखसंग्रह, भाग १, उत्कीर्ण लेख वाराणसी लेखांक ४२० १२. ५१४२ माघ वदि कुंथुनाथ की चौबिसी जैनदेरासर, डभोई जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ९ शनिवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक १३ १३. १५४३ वैशाख वदि शांतिनाथ की धातु की शांतिनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेख, १० शुक्रवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख दादर, मुम्बई लेखांक २४५ १४. १५४३ ज्येष्ठ सुदि संभवनाथ की धातु की जैन देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ११ शनिवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मोटीदेसाई पोल, सूरत भाग १, लेखांक ६०५ १५. १५४४ वैशाख सुदि वासुपूज्य की धातु की शांतिनाथ जिनालय जैनधातुप्रतिमालेख, ७ शुक्रवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भिंडीबाजार, मुम्बई लेखांक २४८ १६. १५४६ माघ सुदि २ संभवनाथ की धातु की जैनदेरासर, सौदागर- जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पोल, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ७९२ १७. १५४६ माघ सुदि वासुपूज्य की प्रतिमा पर संभवनाथजिनालय, जैनलेखसंग्रह, भाग १, १० रविवार उत्कीर्ण लेख अजीमगंज, बंगाल लेखांक २४ १८. १५४९ ज्येष्ठ सुदि चन्द्रप्रभ की प्रतिमा पर आदिनाथ जिनालय बीकानेरजैनलेखसंग्रह, ५ सोमवार उत्कीर्ण लेख लूणकरणसर, बीकानेर लेखांक २४९८ १९. १५४९ कार्तिक वदि आदिनाथ की प्रतिमा पर सीमंधरस्वामी का जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, १ सोमवार उत्कीर्ण लेख मंदिर, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ११९० Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ २०. १५५१ वैशाख सुदि सुविधिनाथ की धातु की सेठ जी का घर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, १३ गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देरासर, कोटा लेखांक ८६१ २१. १५५१ माघ वदि आदिनाथ की प्रतिमा पर त्रैलोक्यदीपक प्रासाद, जैनलेखसंग्रह, भाग १, २ सोमवार उत्कीर्ण लेख राणकपुर लेखांक ७०७ २२. १५५२ माघ वदि संभवनाथ की प्रतिमा पर सुमतिनाथ जिनालय, शत्रुजयवैभव, १२ बुधवार उत्कीर्ण लेख माधवलालबाबू की लेखांक २५२ धर्मशाला. पालीताणा २३. १५५३ वैशाख सुदि आदिनाथ की धातु की जैनदेरासर. महुआ प्राचीनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ४८९ २४. १५५३ मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर घर देरासर, दिल्ली जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक १८७९ २५. १५५४ पौष वदि विमलनाथ की धातु की जगवल्लभ पार्श्वनाथ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, शुक्रवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देरासर, नीशापोल, भाग १, लेखांक १२५१ अहमदाबाद २६. १५५४ माघ वदि आदिनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, २ गुरुवार उत्कीर्ण लेख लेखांक २५४ २७. १५५४ फाल्गुन सुदि शांतिनाथ की प्रतिमा पर नवखंडा पार्श्वनाथ घोघातीर्थ, पृ० २५. २ गुरुवार उत्कीर्ण लेख देरासर, घोघा २८. १५५६ वैशाख सुदि१३ जिनालय के दरवाजे के जैनमंदिर, हमीरगढ़ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाऊपर उत्कीर्ण लेख जैनलेखसंदोह, लेखांक २३६ उदयसागर के प्रशिष्य एवं शीलसागर के शिष्य डूंगरकवि द्वारा रचित माहबावनी नामक कृति प्राप्त होती है।२८ उदयसागर के पट्टधर लब्धिसागर हुए जिनके द्वारा वि०सं० १५५६ में रचित ध्वजकुमारचौपाई और श्रीपालकथा (वि०सं० १५५७) आदि कृतियाँ मिलती हैं।२९ वि०सं० १५६१ से १५६६ तक के कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है।३० वि०सं० १५७२ से १५९१ तक के कुछ प्रतिमालेखों में धनरत्नसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है। इनका विवरण इस प्रकार है : १. १५७२ फाल्गुन सुदि श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर चौमुखजी देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ८ सोमवार उत्कीर्ण लेख ईडर भाग १, लेखांक १४४१ २. १५७६ वैशाख सुदि चन्द्रप्रभ की धातु की बृहत्ज्ञानभंडार, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, ६ सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक २५३९ (उक्त प्रतिमा लेख में धनरलसूरि के साथ-साथ उनके गुरुभ्राता सौभाग्यसागरसूरि का भी उल्लेख है) Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ जोधपुर ३. १५७६ वैशाख सुदि शांतिनाथ की धातु की शांतिनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, ६ सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भिंडीबाजार, मुम्बई लेखांक २९० ४. १५७७ ज्येष्ठ सुदि सुमतिनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, ५ शनिवार उत्कीर्ण लेख लेखांक २७५ ५. १५८२ ज्येष्ठ सुदि वीरजिनालय, जैनलेखसंग्रह, भाग १, १० शुक्रवार लेखांक ६१८ ६. १५८४ चैत्र वदि शांतिनाथ की धातु की दीरजिनालय, वडनगर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ५ गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भाग १, लेखांक ५४५ (उक्त लेख में भी धनरलसूरि के साथ-साथ सौभाग्यसागरसूरि का नाम मिलता है) ७. १५८७ वैशाख सुदि आदिनाथ की धातु की बावन जिनालय, वही, भाग १, ७ सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पेथापुर लेखांक ६९२ ८. १५८९ .. श्रेयांसनाथ की धातु की वही वही, भाग १, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ६९४ ९. १५९० वैशाख सुदि शांतिनाथ की धातु की भीलड़ियाजी तीर्थ श्रीप्रतिमालेखसंग्रह, ५ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख लेखांक ३६४ १०. १५९१ वैशाख वदि अजितनाथ की धातु की सुमतिनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, २ सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख भायखला, मुम्बई लेखांक ३०० ११. १५९१ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १२६४ वि०सं० १५७६ से १५८९ तक के कुछ प्रतिमालेखों में सौभाग्यसागरसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। इनका विवरण निम्नानुसार है : १. १५७६ वैशाख सुदि जैन मंदिर, पटना जैनलेखसंग्रह, भाग १, ६ सोमवार लेखांक २९३ गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, पायधुनी, मुम्बई लेखांक २९२ बृहद्ज्ञानभंडार, बीकानेर बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक २५३९ (जैसा कि पूर्व में उल्लेख आ चुका है उक्त प्रतिमा लेख में धनरत्नसूरि का भी नाम मिलता है) ४. १५७९ वैशाख सुदि पंचायती मंदिर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, ६ सोमवार सराफा बाजार, ग्वालियर लेखांक १३८७ शांतिनाथ जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, लीमडीपाड़ा, पाटण भाग १, लेखांक २८१ धर्मनाथदेरासर, उपलो वही, भाग १, लेखांक ११०८ गभारो, अहमदाबाद (उक्त तीनों लेखों में धनरलसूरि के पट्टधर के रूप में सौभाग्यसागरसूरि का उल्लेख है) Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३७ __लब्धिसागरसूरि के दो शिष्यों- धनरत्नसूरि और सौभाग्यसागरसूरि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। सौभाग्यसागर के शिष्य उदयसौभाग्य द्वारा वि०सं० १५९१ में रचित हेमप्राकृतढुंढिका नामक कृति प्राप्त होती है।३१ इनके एक शिष्य द्वारा रचित चम्पकमालारास (वि० सं० १५७८) नामक कृति मिलती है। इसके रचनाकार ने स्वयं अपना नाम न देते हुए मात्र ‘सौभाग्यसागरसूरिशिष्य'३२ कहा है। लब्धिसागरसूरि धनरत्नसूरि सौभाग्यसागरसूरि उदयसौभाग्य सौभाग्यसागरसूरिशिष्य (वि०सं० १५९१ में हैमप्राकृत पर ढुंढ़िका (वि०सं० १५७८ के कर्ता) में चम्पकमालारास के रचनाकार) लब्धिसागरसूरि के पट्टधर धनरत्नसूरि का विशाल शिष्य परिवार था जिनमें अमररत्नसूरि, तेजरत्नसूरि, देवरत्नसूरि, भानुमेरुगणि, उदयधर्म, भानुमंदिर आदि उल्लेखनीय हैं। धनरत्नसूरि द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, यही बात इनके पट्टधर अमररत्नसूरि के बारे में कही जा सकती है। अमररत्नसूरि के पट्टधर उनके गुरुभ्राता तेजरत्नसूरि हुए जिनके शिष्य देवसुन्दर का नाम वि०सं० १६३७ के प्रशस्तिलेख२३ में प्राप्त होता है। तेजरत्नसूरि के दूसरे शिष्य लावण्यरत्न हुए जिनकी परम्परा में हुए सुखसुन्दर ने वि०सं० १७३९ में कल्पसूत्रसुबोधिका की प्रतिलिपि की। इसकी प्रशस्ति५ में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: तेजरत्नसूरि लावण्यरत्न ज्ञानरत्न जयसुन्दर रत्नसुन्दर विवेकसुन्दर सहजसुन्दर सुखसुन्दर (वि०सं० १९३९ में कल्पसूत्रसुबोधिका के प्रतिलिपिकार) Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ चूंकि उक्त प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार ने अपनी लम्बी गुरु-परम्परा दी है, अत: इस शाखा के इतिहास के अध्ययन में यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानी जा सकती है। अमररत्नसूरि के दूसरे पट्टधर देवरत्नसूरि भी इन्हीं के गुरुभ्राता थे। इनके शिष्य जयरत्न द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनकी परम्परा में हुए कनकसुन्दर गणि द्वारा वि०सं० १६६२-१७०३ के मध्य रचित विभिन्न रचनायें मिलती हैं३६, जो इस प्रकार हैं.. १- कर्पूरमंजरीरास (वि० सं० १६६२) २- गुणधर्मकनकवतीप्रबन्ध सगालसाहरास (वि० सं० १६६७) देवदत्तरास रूपसेनरास (वि० सं० १६७३) जिनपालितसज्झाय ७- दशवकालिकसूत्रबालावबोध ८- ज्ञाताधर्मकथाङ्गस्तवन (वि० सं० १७०३) अपनी कृतियों की प्रशस्तियाँ में रचनाकार द्वारा दी गयी गुरु-परम्परा निम्नानुसार है: अमररत्नसूरि देवरत्नसूरि जयरत्नसूरि विद्यारत्न कनकसुन्दरगणि (वि० सं० १६६२-१७०३ के मध्य विभिन्न कृतियों के रचनाकार) जयरत्न के दूसरे शिष्य भुवनकीर्ति हुए जिनके पट्टधर रत्नकीर्ति५८ ने वि०सं० १७२७ में स्त्रीचरित्ररास की प्रतिलिपि की। रत्नकीर्ति के शिष्य सुमतिविजय द्वारा वि०सं० १७४९ में रचित रत्नकीर्तिसूरिचउप३३९ नामक कृति प्राप्त होती है। सुमतिविजय द्वारा रचित रात्रिभोजनरास नामक एक अन्य कृति भी प्राप्त होती है। रत्नकीर्तिसूरिचउपइ में रचनाकार ने अपने अन्य गुरु भ्राताओं--रामविजय, हेमविजय और गुणविजय का भी नाम दिया है। वि०सं० १७३४ में रत्नकीर्तिसूरि के निधन के पश्चात् गुणविजय गुणसागरसूरि के नाम से उनके पट्टधर बने। इनके द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है, और न ही किसी प्रतिमालेख में नाम मिलता है। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३९ भुवनकीर्ति रत्नकीर्ति (वि० सं० १७२७ में स्त्रीचरित्ररास के प्रतिलिपिकार) हेमविजय सुमतिविजय रामविजय (वि० सं० १४४९ में रत्नकीर्तिसूरिचउपइ एवं रात्रिभोजनरास के कर्ता) गुणविजय अपरनाम गुणसागरसूरि 'वि०सं० १७०७-३४ के मध्य रचित भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता पद्मसुन्दर भी इसी शाखा के थे। अपनी कृति के अन्त में उन्होंने गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : धनरत्नसूरि अमररत्नसूरि देवरत्नसूरि जयरत्न राजसुन्दर भुवनकीर्ति पद्मसुन्दर (वि०सं० १७०७-३४ के मध्य भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता) रत्नकीर्ति चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार नयसिंहगणि २ भी इसी गच्छ के थे। अपनी कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार है : रत्नसिंहसूरि उदयवल्लभसूरि ज्ञानसागरसूरि उदयसागरसूरि Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० लब्धिसागरसूरि धनरत्नसूरि मुनिसिंहगणि नयसिंहगणि (वि० सं० १६२५ के आस-पास चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार) नयसिंहगणि द्वारा रचित अन्य कोई कृति नहीं मिलती। ir धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमेरुगणि हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य नयसुन्दर३ अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे। इनके द्वारा रचित कृतियां इस प्रकार हैं : रूपरत्नमाला २- शत्रुजयोद्धारस्तवन नवसिद्धिस्तवन सीमंधरवीनतीस्तवन शत्रुजयउद्धार (वि०सं० १६३८/ई०स० १५७२) ६- स्थूलिभद्रएकबीसो जुहारमित्रसज्झाय गिरनारतीर्थोद्धाररास ९- यशोधरनृपचौपाई (वि०सं० १६१८/ई०स० १५५२) १०. रूपचन्द्रकंवररास (वि०सं० १६३७/ई०स० १५७१) ११- गिरनारतीर्थोद्धारप्रबन्ध १२- प्रभावती (उदयन) रास (वि०सं० १६४०/ई०स० १५७४) १३- सुरसुन्दरीरास (वि०सं० १६४६/ई०स० १५९०) १४- नलदमयन्तीचरित्र (वि०सं० १६६५/ई०स० १६०९) १५- शीलशिक्षारास (वि०सं० १६६९/ई०स० १६१३) १६- शंखेश्वरपार्श्वस्तवन १७- पार्श्वनाथस्तवन १८- आत्मबोधकुलक १९- सारस्वतव्याकरणवृत्ति २०. बृहदपोशालिकपट्टावली नयसुन्दर की शिष्या साध्वी हेमश्री द्वारा रचित कनकावतीआख्यान (रचनाकाल वि०सं० १६४४/ई०स० १५८८) और मौनएकादशीस्तुतिथोयसंग्रह नामक कृतियां मिलती हैं।" Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४१ 5. कर्मविवरणरास के रचनाकार लावण्यदेव भी तपागच्छ की इसी शाखा से सम्बद्ध थे। अपनी कृ ते के अन्त में उन्होंने प्रशस्ति के अन्तर्गत गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: धनरत्नसूरि 1 उदयधर्म जयदेव 1 लावण्यदेव (कर्मविवरणरास के कर्ता) धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमंदिर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु वि०सं० १६१२/ ई०स० १५५६ में रचित देवकुमारचरित्र के कर्ता ने स्वयं को भानुमंदिरशिष्य के रूप में सूचित किया है। : धनरत्नसूर 1 भानुमंदिर I भानुमंदिर शिष्य (वि०सं० १६१२ / ई०स० १५५६ में देवकुमारचरित्र के कर्ता) मुनि कांतिसागर के अनुसार गलियाकोट स्थित संभवनाथ जिनालय में ही प्रतिष्ठापित एक जिनप्रतिमा पर वि०सं० १७८१ का एक लेख उत्कीर्ण है, जिसमें देवसुन्दरसूरि की शिष्य परम्परा की एक पट्टावली दी गयी है, जो इस प्रकार है : धनरत्नसूरि 1 अमररत्नसूरि तेजरत्नसूर I देवसुन्दरसूरि 1 विजयसुन्दरसूरि 1 लब्धिचन्द्रसूरि 1 Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ - विनयचन्द्रसूरि धरच उदयचन्द्रसूरि जयचन्द्रसूरि इस प्रकार विक्रम सम्वत् की १८वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक तपागच्छ की बृहद्पौशालिक शाखा का अस्तित्त्व सिद्ध होता है। उक्त सभी साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर तपागच्छ की इस प्राचीन शाखा के मुनिजनों का वंशवृक्ष प्रस्तुत है : Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - नयप्रभ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित तपागच्छबृहदपौशालिकशाखा के मुनिजनों की तालिका धनेश्वरसूरि (चैत्रगच्छीय) भुवनचन्द्रसूरि (चैत्रगच्छीय) देवभद्रगणि (चैत्रगच्छीय) जयच्चन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि (बृहद्पौशालिकशाखा के प्रवर्तक) (तपागच्छ के आदिपुरुष) वज्रसेनसूरि पाचन्द्र क्षेमकीर्ति हेमकलशसूरि रत्नाकरसूरि रत्नप्रभसूरि मुनिशेखरसूरि धर्मदेवसूरि ज्ञानचन्द्रसूरि अभयसिंहसूरि जयतिलकसूरि रत्नसागरसूरि धर्मशेखरसूरि माणिक्यसूरि जयशेखरसूरि रत्नसिंहसूरि (रत्नाकरगच्छ-भृगुकच्छीय शाखा के प्रवर्तक) (जयशेखरसूरि शाखा के प्रवर्तक) चैत्रगच्छ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनरत्नसूरि उदयमंडन उदयधर्म रत्नसिंहसूरिशिष्य उदयवल्लभ माणिक्यसुंदरगणि चारित्रसुंदरगणि दयासिंहगणि महत्तराधर्मलक्ष्मी महत्तरा रत्नचूला प्रवर्तिनी विवेकश्री ज्ञानसागरसूरि उदयधर्म माणिक्यरल उदयसागर । मंगलधर्म शीलसागर लब्धिसागर डूंगरकवि धनरत्नसूरि सौभाग्यसागरसूरि अमररत्नसूरि तेजरत्नसूरि देवरलसूरि मुनिसिंह विजयसुंदर भानुमेरुगणि उदयधर्म भानुमंदिर उदयसौभाग्य सौभाग्यसूरिशिष्य क्वसुंदरसूरि लावण्यरत्न जयरत्न राजसुन्दर नयसिंहगणि नयसुन्दर जयदेव भानुमंदिरशिष्य विजयसुंदरसूरि ज्ञानरत्न भुवनकीर्ति विद्यारत्न पद्मसुन्दर साध्वीहेमश्री लावण्यदेव लब्धिचन्द्रसूरि जयसुन्दर रत्नकीर्ति कनकसुन्दर विनयचन्द्रसूरि रत्नसुन्दर सुमतिविजय घरचन्द्रसूरि विवेकसुन्दर उदयचन्द्रसूरि सहजसुन्दर सुखसुन्दर जयचन्द्रसूरि Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४३ संदर्भ । । "बृहद्पौशालिकपट्टावली” मुनि जिनविजय, संपा०- विविधगच्छीय पट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१ ई० पृष्ठ २४. "बृहद्पौशालिकपट्टावली", वही, पृष्ठ १३-३६. मुनि कल्याणविजय, संपा०-पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १७४-१८१. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ भाग ९, द्वितीयसंशोधित संस्करण, संपा०-डा० जयन्तकोठारी, मुम्बई १९९७ ई०, पृष्ठ ७४-८५. तत्पादाम्बुजरोलम्बावपुष्यति ................ । अभूवन् भूरिभाग्याढया: श्रीजगच्चद्रसूरयष्ट्व ।।८।। देवेन्द्रसूरिसंज्ञस्तेषामाद्यो बभूव शिष्यलवः । श्रीविजयचन्द्रसूरिस्तया द्वितीयो गुणस्त्वाद्यः ॥९॥ चक्रे भव्यावबोधाय संप्रदायात्तथागमात् सच्छ्राद्धदिनकृत्यस्य वृत्तिर्देवन्द्रसूरिभिः ॥१०॥ श्रीविजयचन्द्रसूरिप्रमुखैर्विद्वद्गणैर्गुणगारिष्ठैः । स्वपरोपकारानिरतैस्तदैव संशोधिता चेयम् ॥११।। -------------------------------- ........................ ---------------------------------- देवेन्द्रसूरिकृत श्राद्धदिनकृत्य की प्रशस्ति उद्धृत-मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ २३-२४. C. D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Palm Leaf Mss in the Jaina Bhandars at Pattan, G.O.S., No. 76, Baroda 1937 A.D., Pp-354-56. द्रष्टव्य संदर्भ क्रमांक २. स्वान्ययोरुपकाराय श्रीमद्देवेन्द्रसूरिणा । धर्मरत्नास्य टीकेयं सुखबोधा विनिर्ममे ॥८॥ श्रीहेमकलशवाचकपण्डितवर धर्मकीर्तिमुख्यबुधैः । स्वयरसमयैककुशलैस्तदैव संशोधिता चेयम् ॥९॥ देवेन्द्रसूरिकृत धर्मरत्नप्रकरणवृत्ति की प्रशस्ति उद्धृत - मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ ३. जीवनचंद साकरचंद झवेरी, संग्राहक और संशोधक-आनन्दकाव्यमहोदधि, भाग ६, श्री देवचंद लालभाई पुस्तकोद्धारे, ग्रन्थांक ४३, मुम्बई १९१८ ई०स०, प्रस्तावना लेखक-श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई, पृष्ठ १०. हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृतसाहित्यनोइतिहास, भाग २, खंड १, श्री मुक्तिकमल जैनमोहनमाला, ग्रन्थांक ६४, बड़ोदरा १९६८ ई०स०, पृष्ठ ३५६-५७. Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ रत्नाकरसूरि के उपदेश से वि०सं० १३७०/ई०स० १३१४ में स्तम्भतीर्थ में हेमचन्द्रकृत शब्दानुशासन की प्रतिलिपि की गयी। P.Peterson, A Fifth Report of Operation in search of Sanskrit Mss in Bombay Circle. April 1892 - March 1895, P-110 Vidhatri Vora. Ed - Catalogue of Gujrati Mss : Muni Shree Punya Vijay jis Collection. L.D. Series No. 71. Ahmedabad. 1978. A.D. P166. P.Peterson, A Fifth Report of Operation in search of Sanskrit Mss in Bombay Circle, No 51, Ibid. No. 396 वृद्धतपागच्छ/रत्नाकरगच्छ की इस शाखा का विवरण स्वतंत्र रूप से यथा स्थान दिया गया है। जिनरत्नसूरि की शिष्य परम्परा का विवरण इसी आलेख के साथ दिया गया है। मोहनलाल दलीचंददेसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीयसंशोधित संस्करण, संपा०-डा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ई०स०, पृष्ठ ८५ और आगे. A.P.Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit i Prakrit Mss : Muni Shree Punya Vijvajis Collection, Part 1, L.D.Series No.2, Ahmedabad, 1963 A.D.. No - 991. P-81. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ७४९. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ ९८-१०१. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १, अहमदाबाद १९५३ ई०, पृष्ठ ११६-११८. विजयधर्मसूरि, संपा०- प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, भाग १, भावनगर वि०सं० १९७८ ई०, पृष्ठ ५६-५७. James Burges, Antiquities of Kathiawad and Kuchh, Reprint Varanasi 1971 A.D. Pp. 159-61. जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ६८१, ६८६. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ ६२-६३. मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, जयपुर १९९० ई०स०, पृष्ठ १८६. मुनि कांतिसागर, पूर्वोक्त, पृष्ठ १८७-८८. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ १२९-३०. त्रिपुटी महाराज, संपा० - पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, श्रीचारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४४, अहमदाबाद १९५० ई०स०, पुरवणी, पृष्ठ २४०-४१. H.D. Velanker, Jinratnakosha, P - 358. Vidhatri Vora, Catalogue of Gujrati Mss: Muni Shree Punya l'ijayjis Collection, P-850. Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४५ ३०. مه له سه जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ७५७, ७७५. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ २१३. (१) १५६१ वैशाख सुदि १३ शुक्रवार, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११८३. (२) १५६५ ज्येष्ठ सुदि ६ शुक्रवार, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९८५. (३) १५६६ माघ सुदि ५ सोमवार, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७६६. A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss: Muni Shree Punya Vijyajis Collection. Part II. L.D.Series No. 5. No.6085. P-390-1. जैनगूर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ २७४-७६. श्री विनयसागर जी के अनुसार यह प्रशस्ति संभवनाथ जिनालय, गलियाकोट के एक चैत्यालय पर उत्कीर्ण है। उन्होंने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है: ।।ॐ।। संवत् १६३७ वर्षे माह सुदि ५ सोमे वागडदेशे राउल श्रीसहसमलजी विजयराज्ये श्रीकोटनगरवास्तव हुंबडज्ञातीव वृद्धशाखायां। गां० श्रीउदयसिंह सुत गां० नाभा सु० गां० दाखा सुत गां० आणंद भार्या दाडिमदे सुत गां० घीसकर भार्या कनकादे अमरी सुपराणदे रूपादे। सुपराणदे सुत गां० धीरू माऊ वीला भा० कनकादे सुत गां० थीसकरा भार्या कल्याणदे रूपा भार्या केसरदे गां० घीसकर वि। हेनीबाई रङ्गाबाई चगा। समस्त कुटुम्बश्रेयसे श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवलिका कारिता। श्रीचन्द्रप्रभबिंबं स्थापितं श्रीवृद्धतपागच्छे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्री देवसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठितं। श्रेयसे। शुभंभवतु। यात्रा शुभंभवतु। श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री पं० विनयचारित्र पं० विमलरत्न पं० जयसिंह पं० वीसल चेला आणंदरत्न लिखितम्।। म०विनयसागर, संपा०-प्रतिष्ठालेखसंग्रह, जिनमणिमाला : चतुर्थमणि, कोटा १९५३ ई०, लेखांक १०३४. ॥ॐ।। संवत् १६३७ वर्षे माह सुदि ५ वागडदेशे राउल श्रीसहसमलजी विजयराज्ये श्रीकोटनगरवास्तव्य हंबडज्ञातीय वृद्धशाखायां गांधी.. श्रीपाल भ्रातृ गां० धीहर जयपाल भार्या सरूपदे सुत गांधी गांगा भार्या मेलादे ह०...................भार्या खीमदे सुत गांधी सांगा गांधी जेवंतया भार्या स०.....मदि सुत गांधी बल गांधी जेवंत भार्या भगादे सुत गांधी भारिमल्ल भार्या मिलापदे समस्तकुटुम्बयुतेन श्रेयसे श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवकुलिका कारापिता श्रीवृद्धतपापक्षे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भ० श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भ० श्रीदेवरत्नसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभंभवतु।। वही, लेखांक, १०३३. ॥सम्वत् १६३७ वर्षे फागुण सुदि ५ बुधे बागडदेशे राउलश्री सहसमल श्रीविजयराज्ये श्री गिरपुरवास्तव्य हुंबडज्ञातीय वृद्धशाखीय मढासाआ जीवा भार्या Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ - - जीवादे सुत गुढसीआ भार्या भाखणादे मू......भार्या जूढिआ समस्तकुटुम्बयुतेन श्रीकोटनगरमध्ये श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवकुलिकाकारी(रि)ता मध्ये श्रीसुविधिनाथबिंब स्वस्य श्रेयसेः श्रीवृद्धतपागच्छे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्री ५ श्रीदेवसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठित शुभंभवतु।। पं० विनयचारित्र पं० विमलरत्न पं० जयसिंह पं० ज्ञानरत्न पं० वीरत्न शि० आणंदरत्नेनलिखित।। वही, लेखांक १०३२. 38-34. A.P.Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss : Asuni Shrec Punya Vijyajis Collection, Part I, No.645, P-51. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीयसंशोधित संस्करण, भाग ३, पृष्ठ १०-१७, ३७३-७४. Vora. Catalogue of Gujrati Mss : Muni Shree Punya Vijayjis Collection, P-1. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीयसंशोधित संस्करण, भाग ४, पृष्ठ १६९. मुनि जिनविजय, संग्रा०संपा०-जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, प्रवर्तक श्रीकांतिविजयजी जैन ऐतिहासिक ग्रन्थमाला:पुष्प ७, भावनगर १९२६ ई०स० पृष्ठ १-१३. रास सार, पृष्ठ१-५. वही, पृष्ठ १३. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग ४, पृष्ठ १६३-६४. वही, भाग १, पृष्ठ ३७९-८०. वही, भाग २, पृष्ठ ९३-१११ ४४. वही, भाग २, पृष्ठ २३०. वही, भाग १, पृष्ठ ३४५-४६. ४६. वही, भाग २, पृष्ठ ५३. मुनि कांतिसागर, पूर्वोक्त, पृष्ठ १३३-३४ ४०. ४३. ४५. ४७. Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धतपागच्छ - जयशेखरसूरिशाखा बृहद् पौशालिक शाखा के अन्तर्गत जैसा कि हम देख चुके हैं यद्यपि जयतिलकसरि के एक शिष्य जयशेखरसूरि की शिष्य सन्तति वृद्धतपागच्छ की एक स्वतंत्रशाखा के रूप में अस्तित्त्व में आयी, तथापि इसका कोई अन्य नाम नहीं मिलता। इस शाखा के मुनिजन स्वयं को वृद्धतपागच्छीय बतलाते हैं अध्ययन की सुविधा के लिये हम इसका नामकरण वृद्धतपागच्छजयशेखरसूरिशाखा कर रहे हैं। जयशेखरसूरि द्वारा रचित कोई ग्रन्थ नहीं मिलता किन्तु इनके द्वारा वि० सं० १४८८ माघ वदि ४ शुक्रवार को प्रतिष्ठापित अजितनाथ की धातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जो आज महावीर जिनालय, पायधुनी मुम्बई में संरक्षित है। मुनि कान्तिसागर जी ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : सम्वत् १४८८ माघ वदि २ शुक्रे श्री वायडजा(ज्ञा)तीय लींबा भा० चांपलदे सुत सूराकेन भा० सूहवदेसहितेन माताश्रेयसे अजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्तपापक्षे श्रीजयशेखरसूरिभिः। जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ७९ जयशेखरसूरि के शिष्य एवं पट्टधर जिनरत्नसूरि हुए जिनके द्वारा वि० सं० १५०३ से १५४४ के मध्य प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। इनका विवरण इस प्रकार है: क्रमांक संवत् तिथि/मिति १. १५०३ आषाढ़ सुदि १०शुक्रवार लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मुनिसुव्रत की पार्श्वनाथ जिना०, प्राचीनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर देलवाड़ा, उदयपुर लेखांक २०० उत्कीर्ण लेख २. १५०३ " वल्लभविहार, पालीताना वालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव लेखांक ९९. वही, लेखांक १३४. ३. ४. १५१२ वैशाख सुदि ३ वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५१६ वैशाख सुदि १ चन्द्रप्रभ की सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५१७ वैशाखसुदि ३ वासुपूज्य की सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५१७ माधवदि ८ सुमतिनाथ की सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखलाडोल संग्रह, भाग १, लेखांक ४६४. वीरजिनालय, वैदों बीकानेरजैनलेखसंग्रह, का चौक, बीकानेर लेखांक १२४५. ५. शांतिनाथ जिना०, प्राचीनलेखसंग्रह, राधनपुर लेखांक ३०७. Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १७. १८. १५२० वैशाखसुदि १२ अजितनाथ की बुधवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५२२ माघसुदि ९ शनिवार १५२२ १५२२ १५२२ १५२२ १६. १५३० १५२७ पौष वदि १ २४८ माघ सुदि १३ रविवार १५२३ वैशाख वदि ४ कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर शुक्रवार उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५२३ वैशाख सुदि ३ सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५३४ फाल्गुन सुदि ३ गुरुवार सुमतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५३२ ज्येष्ठ वदि १३ शांतिनाथ की बुधवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुन्थुनाथ की प्रतिमा उत्कीर्ण लेख चन्द्रप्रभ की की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धातु वीर जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेखरीजरोड, अहमदाबाद संग्रह, भाग २, लेखांक ९४०. भीलडियातीर्थ बीकानेर जैनमंदिर, प्रांतीज शांतिनाथ जिना ०. लींबडीपाड़ा. पाटण बीकानेर जैनदेरासर, सौदागरपोल. अहमदाबाद बालावसही, शत्रुंजय गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, अजमेर गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, बीजापुर वासुपूज्य जिनालय, मेड़ता जैनमंदिर, सूरत जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ३५७. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२७७. प्राचीनलेखसंग्रह, लेखांक ३६२. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक २६७. बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १६०८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक ७८६. शत्रुंजयवैभव, लेखांक १७७. जैनलेखसंग्रह, भाग १. लेखांक ५३८. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४५१. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७५५. प्राचीन लेखसंग्रह, लेखांक ४५७. Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४९ १९. १५३५ माघ........। कन्नाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ जिना० मडार अर्बदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ८९. २०. १५३६ आ सुविधिनाथ जिना०, प्राचीनलेखसंग्रह, घोघा लेखांक ४७१. २१. १५४१ वैशाख.... संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिना०, करेडा जैनलेखसंग्रह. भाग २, लेखांक १९१४. २२. १५४४ वैशाख दि ३ सोमवार समतिनाथ की महावीर जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, धात् की प्रतिमा झवेरीवाड़, लेखांक ७९ पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद २३. १५५१ वैशाख वदि १० संभवनाथ की आदिनाथ जिना०, जैनधातुप्रतिमालेख, गुरुवार चौबीसी प्रतिमा पायधनी, लेखांक २६०. पर उत्कीर्ण लेख मुम्बई वि०सं० १५१८ में इनके द्वारा प्रतिलिपि की गयी सूरिमन्त्र नामक पुस्तक की एक प्रति मुनि पुण्यविजयजी के संग्रह में हैं। सुमतिनाथमुख्य बावनजिनालय, मातर में संरक्षित और जिनरत्नसूरि द्वारा वि०सं० १५२५ में स्थापित श्रेयांसनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में हेमसुन्दरगणि का नाम भी मिलता है, जो इनके शिष्य प्रतीत होते हैं। जिनरत्नसूरि के एक शिष्य धनेश्वरसूरि हुए, जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित तीन जिनप्रतिमायें मिली हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है : १. १५१८ फाल्गुन वदि श्रेयांसनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, ६ गुरुवार धातु की प्रतिमा मालपुरा लेखांक ५८८ पर उत्कीर्ण लेख २. १५२३ वैशाख सुदि ३ सुमतिनाथ की बालावसही, शर्बुजयवैभव, गुरुवार प्रतिमा पर शजय लेखांक १७७. उत्कीर्ण लेख ३. १५३६ फाल्गुन शांतिनाथ की प्रातिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का बीकानेरजैनलेखसंग्रह, मंदिर, बीकानेर लेखांक १०९९ जिनरत्नसूरि के एक शिष्य जिनसाधु हुए, जिनके द्वारा रचित मृगावतीस्वाध्याय और भरतबाहुबलिरास (रचनाकाल वि०सं० १५५०/ई०स० १४९४) नामक कृतियाँ प्राप्त होती हैं। इनके एक शिष्य (नाम अज्ञात) द्वारा वि०सं० १५४८/ई०सं० १४९२ में श्राद्धप्रतिक्रमणस्तवक की प्रतिलिपि की गयी। प्रशस्ति का पाठ निम्नानुसार है :३ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० __ सं० १५४८ वर्षे माघ वदि १३ शुक्रवारे सुषालयपुरे श्रीवृद्धतपापक्षे प्रभुभट्टारककलिकाकालश्रीगौतमावतारषट्त्रिंशतसूरि (? गुण) विराजमानगच्छाधीशश्रीपूज्य-श्री ५ जिनरत्नसूरिगुरु-तत्पट्टे श्रीजिनसाधुसूरि-तशिष्येणालेखि। जिनरत्नसूरि जिनसाधुसूरि (वि०सं० १५५०/ई०स० १४९४ में भरतबाहुबलिरास । तथा अन्य कृतियों के कर्ता) जिनसाधुसूरिशिष्य (वि०सं० १५४८/ई०स० १४९२ में श्राद्धप्रति क्रमणस्तवक के प्रतिलिपिकार) जिनरत्नसूरि के एक अज्ञात नाम शिष्य द्वारा वि०सं० १५३२ में रचित मंगलकलशरास नामक कृति प्राप्त होती है। वि० सं० १५४८ में लिखी गयी उत्तराध्ययनसूत्र' की दाता प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि तपागच्छ के जिनरत्नसूरि के शिष्य पुण्यकीर्तिगणि के शिष्य साधुसुन्दरगणि के पठनार्थ एक श्रावक परिवार द्वारा उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि करायी गयी। जिनरत्नसूरि पुण्यकीर्तिगणि साधुसुन्दरगणि (वि०सं० १५४८ में इनके पठनार्थ उत्तराध्ययनसूत्र की प्रतिलिपि की गयी) चूंकि उक्त प्रशस्ति में जिनरत्नसूरि और उनके शिष्यों को तपागच्छ से सम्बद्ध बताया गया है किन्तु तपागच्छ की वृद्धशाखा को छोड़कर अन्य किसी शाखा में उक्त नामधारी मुनिजन उक्त काल में नहीं हुए हैं अत: इस में उल्लिखित जिनरत्नसूरि को वृद्धतपागच्छीय जिनरत्नसूरि से अभिन्न मानने में कोई बाधा नहीं है। वृद्धतपागच्छीय सोमशीलगणि द्वारा वि०सं० १५९० में लिखी गयी पर्यन्ताराधना की एक प्रति मुनि पुण्यविजयजी के संग्रह में है। इसकी प्रशस्ति के अन्तर्गत प्रतिलिपिकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : जयशेखरसूरि जिनरत्नसूरि पं० पुण्यकीर्तिगणि पं० साधुसुन्दरगणि Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५१ पं० सोमधर्मगणि पं० सोमशीलगणि (वि०सं० १५९०/ई०स० १५३४ मे पर्यन्ताराधना के प्रतिलिपिकार) पं० सोमशीलगणि के प्रगुरु पं० साधुसुन्दरगणि द्वारा वि०सं० १५४८ में लिखी गयी उत्तराध्ययनसूत्र की चर्चा ऊपर की जा चुकी है। वि०सं० १५४८/ई० स० १४९२ में सारशिखामणरास के रचनाकार संवेगसुन्दर भी इसी शाखा से सम्बद्ध थे। श्रीमोहनलाल दलीलचंद देसाई ने इनकी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : जयशेखरसूरि जिनसुन्दरसूरि जिनरत्नसूरि जयसुन्दर संवेगसुन्दर (वि०सं० १५४८ में सारशिखामणरास के रचनाकार) जैसा कि पूर्व में विभिन्न साक्ष्यों में हम देख चुके हैं जयशेखरसूरि के पट्टधर के रूप में जिनरत्नसूरि का नाम मिलता है न कि जिनसुन्दरसूरि का ; अत: सारशिखरमाणरास के प्रशस्तिगत विवरण को स्वीकार करते हुए जिनरत्नसूरि को जिनसुन्दरसूरि का गुरु मानना उचित प्रतीत होता है। इस प्रकार उक्त प्रशस्तिगत गुरु परम्परा की तालिका को इस प्रकर रखा जा सकता है : जयशेखासूरि - जिनरत्नसूरि - जिनसुन्दरसूरि - जयसुन्दर - संवेगसुन्दर । वि०सं० १५२९ के एक प्रतिमालेख में भी संवेगसुन्दर का नाम मिलता है। Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. २५२ संदर्भ A. P. Shah Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss: Muni Shree Punya Vijayjis Collection, Part II. L.D. Series No. Ahmedabad 196 A.D., No. 4921. Vidhatri Vora, Ed. Catalogue of Gujrati Mss, P502. A. P. Shah, lbid, Part I. No. 854. P-73. जैनगूर्जरकविओं, भाग १, पृष्ठ १५२-५३. अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा० प्रशस्तिसंग्रह, अहमदाबाद वि०सं० १९९३, भाग २, पृष्ठ ५०, प्रशस्तिक्रमांक १९७. A.P. Shah. Ibid, part I. No. 557, P-46. Vora, Ibid, P-678. जैनगूर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ १९२-९४. पूरनचन्द नाहर, संण० जैनलेखसंग्रह, भाग २, " लेखांक १७६६. बृहदपौशालिक शाखा की यह उपशाखा कब और किस कारण अस्तित्त्व में आयी, इस सम्बन्ध में हमें आज कोई जानकारी नहीं प्राप्त होती । Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयशेखरसूरि और उनकी शिष्य-परम्परा की तालिका जयतिलकसूरि जयशेखरसूरि रत्नसिंहसूरि जिनरत्नसूरि पुण्यकीर्तिगणि जिनसुन्दरसूरि जिनरलसूरिशिष्य हेमसुन्दर जिनसाधु धनेश्वरसूरि जयसुन्दर साधुसुन्दरगणि जिनसाधुशिष्य संवेगसुन्दर सोमधर्मगणि Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धतपागच्छ/ रत्नाकरगच्छ भृगुकच्छीयशाखा जैसा कि पिछले पृष्ठों में कहा जा चुका है जयतिलकसूरि के एक शिष्य रत्नसागर से बृहद्तपागच्छ की भृगुकच्छीयशाखा अस्तित्त्व में आयी। शांतिनाथ जिनालय, पादरा में प्रतिष्ठापित वासुपूज्य की चौबीसी प्रतिमा पर वि०सं० १४७८ का एक लेख उत्कीर्ण है। बुद्धिसागरसूरि ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : सं० १४७८ वर्षे पौष सुदि १५ बुधे मोढज्ञातीय ठ० बहुरा भा० मनू पु०ठ० धर्मा भार्या राणी सु००० वरसिंहेन भार्या वयडू भ्रातृ नरसिंह रयणायर सुत समधर घोघर सहसां हांसा नागराज समस्तकुटुम्बसहितेन निजश्रेयोऽर्थं श्रीवासुपूज्यादि चतुर्विंशतिजिनपट्टक: कारितः प्रतिष्ठितस्तपाश्रीरत्नसागरसूरिक्रमेण श्रीजिनतिलकसूरिपट्टे श्रीज्ञानकलशसूरिभिः शुभं भवतु। जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९ जैसा कि उक्त लेख से स्पष्ट है, इसमें प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में ज्ञानकलशसूरि का नाम मिलता है, साथ ही उनके गुरु जिनतिलक और प्रगुरु रत्नसागर का भी उल्लेख है : रत्नसागरसूरि जिनतिलकसूरि ज्ञानकलशसूरि (वि०सं० १४७८/ई०स० १४२२ में वासुपूज्य की धातु की चौबीसी प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) ज्ञानकलशसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित वि०सं० १४८८-८९ की जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं। बुद्धिसागरसूरि ने इनकी वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : संवत् १४८८ वर्षे वैशाख सुदि १३ रवौ श्रीबद्धगोत्रे श्रीहंबडज्ञातीयव० नरसिंहभार्यावा० जाम् तया (श्रे० देवडभार्यादेवलदे?) पुत्रठ० हीराठ० वईराठ० पेथाकेन श्रीआदिनाथ (बिंबं) कारापितं स्वश्रेयसे प्रतिष्ठितं श्रीवृद्धतपापक्षे भट्टा० श्रीज्ञानकलस(श)सूरिभि: शुभं भवतु।। जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ७०३. प्रतिष्ठास्थान - महावीर जिनालय, गीपटी, खंभात । संवत् १४८९ वर्षे वैशाख सुदि ३ बुधे श्रीहंबडज्ञातीयमहं० सूरा भार्या वा० सोमलदेपुत्रमहं० वणसीपत्नीवा० शाणीपु० सं० वीरधवलभार्यावाईचापूयुतेन स्वकुटुंबश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीज्ञानकलस(श)सूरिभिः शुभं भवतु।। वही, भाग २, लेखांक ३२३. प्रतिष्ठास्थान - मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच संवत १४८९ वर्षे वैशाख सुदि ३ बुधे श्रीहंबडज्ञातीयठ० राजसीहभार्यावा० राजलदे तयोः पुत्रठ० माजाप्रियावा० नान्हीसुतठ० हेमराजभार्या तेजलदेयुतेन श्रीधर्मनाथबिंबं स्वश्रेयसे Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४ कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीवृद्धतपापक्षे भट्टा० श्रीज्ञानकलससूरिभिः।। वही, भाग २, लेखांक ११४६ प्रतिष्ठास्थान - श्रीसंभवनाथ जिनालय, बोलपीपलो, खंभात महावीर जिनालय मेड़ता में प्रतिष्ठापित कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर वि० सं० १५१२ फाल्गुन सुदि ८ शनिवार का एक लेख उत्कीर्ण है। श्री पूरनचन्द नाहर ने इसका पाठ दिया है, जो इस प्रकार है : संवत् १५१२ फाल्गुन सुदि ८ शनिवार श्री उसभ से० भार्या माणिकदे सुत रणाग्र भार्यायां ४० पिधा भार्या चां सुतयो याते जूरमाण श्री कुंथुनाथ विवं (बिंबं) कारितं प्रतिष्ठित (तं) श्रीबृहद् तपापंकज श्री बि (वि) जयतिलक सूरि पट्टे श्री विजय धर्म सूरि श्रीभूयात्।। जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ७९७. जैसा कि लेख से स्पष्ट है, इसमें विजयतिलकसूरि के पट्टधर विजयधर्मसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उल्लेख है। विजयतिलकसूरि विजयधर्मसूरि (वि०सं० १५१२ में कुन्थुनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक) विजयधर्मसूरि के पट्टधर विजयरत्नसूरि हुए। इनके द्वारा वि०सं० १५१३ से वि०सं० १५३७ के मध्य प्रतिष्ठापित कई जिन प्रातिमायें मिली हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : क्रमांक वि० सं० तिथि/मिति लेख का स्वरूप प्राप्तिस्थान १. १५१३ वैशाख सुदि २ सुमतिनाथ की पद्मप्रभ जिना०, सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख संदर्भग्रन्थ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भाग २, लेखांक ४३६. खेड़ा सातमा पर १५२९ आषाढ़वदि ३ सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख अनन्तनाथ जिना०, वही, भाग २, खारवाड़ो, खंभात लेखांक १०४०. ___३. १५२९ आषाढ़वदि ३ वासुपूज्य की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नवपल्लव पार्श्वनाथ वही, भाग २, जिना०,बोलपीपलो, लेखांक १०९४. खंभात ४. १५३७ वैशाख सुदि १० शांतिनाथ की सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मनमोहन पार्श्वनाथ वही, भाग २, जिनालय, मीयागाम लेखांक २७३. ५. १५३७ " शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख सुमतिनाथ जिना०, वही, भाग २, चोलापोल,खंभात लेखांक ६९२. Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६. ७. ८. ९. १. २. ३. १५३७ ४. १५३७ १५३७ १५३७ १५४४ वैशाख सुदि ६ गुरुवार १५५२ पौष वदि ७ सोमवार २५५ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख कुंथुनाथ प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख शिलालेख वि०सं० १५७३ / ई०स० १५१७ के पूर्व रचित श्रीपालचरित्र के रचनाकार धर्मधीर बृहद्तपागच्छ की भृगुकच्छ शाखा से सम्बद्ध विजयरत्नसूरि के शिष्य थे। विजयरत्नसूरि के दूसरे शिष्य धर्मरत्नसूरि हुए, जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १५४४ से वि०सं० १५८७ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार हैं : क्रमांक वि० सं० तिथि/मिति लेख का स्वरूप प्राप्तिस्थान संदर्भग्रन्थ श्रेयांसनाथ की नटोदादा की ट्रंक शत्रुंजयवैभव, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५५५ वैशाख सुदि ३ अजितनाथ की शनिवार प्रतिमा का लेख १५८७ वैशाख.... शांतिनाथ जिना०, खंभात शामला पार्श्वनाथ जिना, डभोई धर्मनाथ जिना०, भोई शांतिनाथ देरासर, वीसनगर जैनमंदिर, हमीरगढ़ सुविधिनाथ जिना ०, घोघा, काठियावाड़ पार्श्वनाथ की प्रतिमा का लेख शत्रुंजय बालावसही, वही, भाग २, लेखांक ७३७. वही, भाग १ लेखांक ३४. वही, भाग १. लेखांक ५८. वही भाग १. लेखांक ५२७. लेखांक २३४ अ. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, (आबृ, भाग ५), लेखांक २३४. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७७१ धर्मरत्नसूर के एक शिष्य विनयमंडन हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती परन्तु इनके शिष्यों विवेकधीरगणि और जयवंतमुनि अपरनाम गुणसौभाग्यसूरि द्वारा रचित कृतियां प्राप्त होती हैं । शत्रुंजयवैभव, लेखांक २८१. Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ विवेकधीरगणि ने वि०सं० १५८७/ई०स० १५३१ में शत्रुजयोद्धारप्रबन्ध की रचना की। जयवंतमुनि अपरनाम गुणसौभाग्यसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं -- १. अंतरंगगीत २. अजितनाथगीत ३. कर्णेन्द्रियगीत ४. कर्णेन्द्रियपरवश हरिणगीत ५. घ्राणेन्द्रियगीत ६. नेमिराजीमतिवारमास ७. नेत्रपरवश पतंगगीत पंचेन्द्रियगीत मनभमरागीत १०. वैराग्यगीत ११. स्पर्शेन्द्रियगीत १२. स्थूलिभद्रकोशालेख १३. श्रृंगारमंजरी (रचनाकाल १४. सीमंधरजिनस्तवन वि०सं०१६१४) धर्मरत्नसूरि के दूसरे शिष्य विद्यामंडन हुए। वि० सं० १५८७ और १५९७ के प्रतिमालेखों में इनका नाम मिलता है। क्रमांक वि०सं० तिथि/मिति लेख का स्वरूप प्राप्तिस्थान संदर्भग्रन्थ १. १५८७ पौष वदि ६ रविवार सुपार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का लेख संभवनाथदेरासर, पादरा जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २ लेखांक १०. २. १५८७ शांतिनाथ जिना०, वही, भाग २, नदियाड लेखांक ३८३. ३. १५९७ पौष वदि ६ रविवार जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ जिना०, उपलो गभारो, अहमदाबाद वही, भाग १, लेखांक ११०७. विद्यामंडनस्रि के शिष्यों के रूप में जयमंडन, विवेकमंडन, रत्नसागर (द्वितीय), सौभाग्यरत्न और सौभाग्यमंडन का नाम मिलता है। संभवनाथ जिनालय, खंभात में प्रतिष्ठापित सुपार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा पर प्रतिष्ठापक के रूप में वृद्धतपागच्छ के सौभाग्यरत्नसूरि का नाम मिलता है। लेख के पाठ के अनुसार यह प्रतिमा वि०सं० १६३४ फाल्गुन सुदि १० सोमवार को प्रतिष्ठापित की गयी है। मुनि जिनविजयजी ने इस लेख के प्रतिष्ठापक सौभाग्यरत्नसूरि और विद्यामंडनसूरि के शिष्यों में हुए सौभाग्यरत्न को एक ही माना है। इस काल के पश्चात् इस शाखा से सम्बद्ध अन्य कोई साक्ष्य नहीं मिलता। उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर वृद्धतपागच्छ/रत्नाकरगच्छ-भृगुकच्छीयशाखा के मुनिजनों की एक तालिका संकलित की जा सकती हैं, जो इस प्रकार हैं : Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५७ __ जयतिलकसरि रत्नसागरसूरि 'प्रथम रत्नसिंहसूरि जिनतिलकसूरि ज्ञानकलशसूरि (वि०सं० १४७८-८९) प्रतिमालेख विजयतिलकसूरि (वि०सं० १४९६) " विजयधर्मसूरि (वि० सं० १५०८-१२)" विजयरत्नसूरि (वि०सं० १५१३-३७)'' . धर्मरत्नसूरि (वि० सं० १५४४-८७) प्रतिमालेख धर्मधीर (वि०सं० १५७३ के पूर्व श्रीपालकथा के कर्ता) विनयामंडन विद्यामंडनसूरि विवेकधीरगणि (वि० सं० १५८७/ ई० स० १५३१ में शत्रुजयोद्धारप्रबंध के कर्ता जयवंतमुनि जयमंडन विवेकमंडन रत्नसागर सौभाग्यरत्नहरि सौभाग्यमंडन अपरनाम (द्वितीय) (वि० सं० गुणसौभाग्य १६३४ सूरि वि० सं० प्रतिमालेख) १६१४ में शृंगारमंजरी के कर्ताः कई अन्य रचनायें उपलब्ध Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ३. संदर्भ जिनरत्नकोश, पृ० ३९७. वही, पृ० ३७३. जैनगूर्जरकविओ, द्वितीयसंशोधितसंस्करण, भाग २, पृ० ६९-७१ और आगे Vidhatri Vora, Ibid. P-739-42. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११११. विवेकधीरगणि, शत्रुजयोद्धारप्रबन्ध, प्रस्तावना. मूलग्रन्थ उपलब्ध न होने से यह संदर्भ श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई कृत जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ७०-७१ के आधार पर दिया गया है। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-कमलकलशशाखा तपागच्छीय आचार्य सोमसुन्दरसूरि के शिष्य और मुनिसुन्दरसूरि, रत्नशेखरसूरि आदि के आज्ञानुवर्ती आचार्य सोमदेवसूरि अपने समय के समर्थ कवि और प्रमुख वादी थे। मेवाड़ के शासक राणाकुम्भा, जूनागढ़ के शासक खेंगार और चांपानेर के शासक जयसिंह को अपनी काव्यकला से इन्होंने प्रभावित किया था। इनके द्वारा रचित सिद्धान्तस्तवअवचूरि, कथामहोदधि, चतुर्विंशतिजिनस्तोत्र, युस्मदस्महष्टादशस्तव की अवचूरि (रचनाकाल वि०सं० १४९७/ई०स० १४४१) आदि कृतियां मिलती हैं। वि० सं० १५१७, १५१८ और १५२० के प्रतिमा लेखों में इनका नाम मिलता है। दिल्ली स्थित नवघरे के मंदिर में भगवान् शांतिनाथ की प्रतिमा पर वि०सं० १५१७ वैशाख सुदि ८ का एक लेख उत्कीर्ण है। इसमें रत्नशेखरसूरि और लक्ष्मीसागरसूरि के साथ सोमदेवसूरि का भी नाम मिलता है। अचलगढ़ स्थित चौमुख जिनालय में प्रतिष्ठापित आदिनाथ की प्रतिमा पर वि०सं० १५१८ वदि४ का एक लेख उत्कीर्ण है। इसमें तपागच्छीय आचार्य सोमसुन्दरसूरि के पट्टधर के रूप में मुनिसुन्दरसूरि और जयचन्द्रसूरि तथा इन दोनों के पट्टधर के रूप में रत्नशेखरसूरि एवं रत्नशेखरसूरि के शिष्य के रूप में सोमदेवसूरि और लक्ष्मीसागरसूरि का नाम मिलता है। ठीक यही बात इसी जिनालय में प्रतिष्ठापित इसी समय की शांतिनाथ और नेमिनाथ की प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेखों से भी ज्ञात होती है। पार्श्वनाथदेरासर, देवसानो पाड़ो, अहमदाबाद में संरक्षित अभिनन्दन स्वामी की धातु की प्रतिमा वि०सं० १५२० आषाढ़ सुदि २ गुरुवार का एक लेख उत्कीर्ण है। इसमें सोमदेवसूरि का उल्लेख करते हुए उन्हें लक्ष्मीसागरसूरि का शिष्य कहा गया है। ठीक यही बात वि० सं० १५२० के दो अन्य प्रतिमालेखों; वि०सं० १५२१ के एक प्रतिमालेख एवं वि०सं० १५२२ के दो प्रतिमालेखों के बारे में भी कही जा सकती है। इनका विवरण इस प्रकार है: १. १५२० कुन्थुनाथ की धातु की प्रतिमा सीमंधर स्वामी का देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, पर उत्कीर्ण लेख उपलो गभारो, अहमदाबाद भाग १, ११९९ २. १५२० विमलनाथ की धातु की प्रतिमा शान्तिनाथ जिनालय, वही, भाग १, पर उत्कीर्ण लेख शांतिनाथ पोल, अहमदाबाद लेखांक १२५८ वासुपूज्य की धातु की प्रतिमा संभवनाथ देरास, वही, भाग १, पर उत्कीर्ण लेख झवेरीवाड़, अहमदाबाद लेखांक ८३४ शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा आदिनाथ जिनालय, वही, भाग १, पर उत्कीर्ण लेख माणेकचौक, खम्भात लेखांक १०५४ ५. १५२१ जैन देरासर, बड़ोदरा प्राचीनलेखसंग्रह, माघ सुदि १३ लेखांक ३५५ Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ६. १५२२ संभवनाथ की धातु की प्रतिमा गौड़ीजी का मंदिर, पौष वदि पर उत्कीर्ण लेख उदयपुर १. गुरुवार ७. रत्नशेखरसूरि के पश्चात् लक्ष्मीसागरसूरि तपागच्छ के नायक बने तब सोमदेवसूरि ने अपने शिष्य शुभलाभ को आचार्य पद प्रदान कर सुधानन्दनसूरि नाम दिया। वि०सं० १५११ में लिखी गयी शांतिनाथचरित की प्रतिलेखन प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उक्त प्रति सोमदेवसूरि के शिष्य के उपदेश से लिखी गयी' । सोमदेवसूरि के एक अन्य शिष्य चारित्रहंसगणि हुए जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती किन्तु इनके शिष्य सोमचारित्र ने वि०सं० १५४१/ ई०स० १४८५ में गुरुगुणरत्नाकरकाव्य की रचना की । इस काव्य में आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि का जीवनवृत्तांत वर्णित है। जैनदेरासर, डभोई सोमदेवसूरि के एक शिष्य सुमतिसुन्दर हुए जिनके उपदेश से चालिग (?) नामक एक श्रावक, जो राणकपुर स्थित त्रैलोक्यदीपक प्रासाद के निर्माता धरणाशाह के भाई रत्नसिंह का पुत्र और मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी का धर्मभ्राता था, ने राणा लक्षसिंह की अनुमति से अचलगढ़ पर विशाल चौमुख प्रासाद का निर्माण कराया और उसमें पित्तल की १२० मन वजन की जिन प्रतिमा प्रतिष्ठापित करायी। १. सुमतिसुन्दरसूरि के उपदेश से मांडवगढ़ के संघवी वेलाक ने सुल्तान से फरमान प्राप्त कर संघ के साथ जीरापल्ली, अर्बुदगिरि, राणकपुर आदि तीर्थों की यात्रा की " । सुधानन्दनसूरि के एक शिष्य (नाम अज्ञात) ने वि०सं० १५३३ / ई०स० १४७७ के आस-पास ईडरगढ़चैत्यपरिपाटी २ की रचना की। सुमतिसुन्दर के शिष्य कमलकलश हुए। इन्हीं से वि०सं० १५५४ वा १५५५१३ ( अन्य मतानुसार वि० सं० १५७२ १ ४ ) में तपागच्छ की एक नई उपशाखा - कमलकलशशाखा अस्तित्व में आयी। किस कारण से और कहाँ इस शाखा का जन्म हुआ, इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती। २. कमलकलशसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १५५१ से लेकर १६०३ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : वि०सं० तिथि/मिति १५५१ वैशाख सुदि १३ पद्मप्रभ की गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५५३ वैशाख सुदि वही, लेखांक ३६१ लेख का स्वरूप प्राप्तिस्थान महावीरस्वामी का मंदिर, बीकानेर जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १६ शांतिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख नेमिनाथ का पंचायती बड़ा मंदिर, अजीमगंज, मुर्शिदाबाद संदर्भग्रन्थ अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, संपा०बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२५३. पूरनचन्द नाहर, संपा जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १५. Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. १५५३ फाल्गुन सुदि४ शांतिनाथ की धातु की प्रतिमा उत्कीर्ण लेख जैनमंदिर, चाणस्मा बुद्धिसागरसूरि. संपा। जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११५. ४. १५६० वैशाख सुदि३ वासुपूज्य की धातु आदिनाथ चैत्य, प्रतिमा पर थराद उत्कीर्ण लेख दौलत सिंह लोढा, संपा०, जैनप्रतिमालेखसंग्रह, लेखांक १२५. १६०३ माघ वदिरा बारसाख पर महावीर जिनालय, मुनिजयन्तविज्य, शुक्रवार उत्कीर्ण लेख पीडवाड़ा संपा०, अर्बुदाचल प्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ३८२. एवं जैनलेखसंग्रह भाग १, लेखांक९४९. . कमलकलशसूरि के एक शिष्य भुवनसोमगणि हुए जिन्होंने वि०सं० १५५१ में डीसा में आनन्दभुवन के पठनार्थ दशवैकालिकसूत्र की प्रतिलिपि की। आनन्दभुवन कौन थे! भुवनसोमगणि और कमलकलशसूरि से उनका क्या सम्बन्ध था! इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। कमलकलशसूरि के एक शिष्य कुलउदय गणी हुए जिनकों अचलगढ़ स्थित ऋषभदेव लघुप्रासाद में उत्कीर्ण वि०सं० १५५८ कार्तिक वदि १३ के एक शिलालेख में उल्लेख मिलता है।१५५ ___कमलकलशसूरि के पट्टधर उनके दूसरे शिष्य जयकल्याणसूरि हुए। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कई जिन सलेख प्रतिमायें मिली हैं, जिनका विवरण निम्नानुसार है : १. गुरुवार उदयपुर २. वि० सं० तिथि/मिति लेख का स्वरूप प्राप्तिस्थान संदर्भग्रन्थ १५६६ फाल्गुन वदि६ पार्श्वनाथ की शीतलनाथ जिना०, जैनलेखसंग्रह. भाग २, प्रतिमा पर लेखांक ११०३. उत्कीर्ण लेख १५६६ फाल्गुन सुदि१० शिलालेख चतुर्मुख विहार, मुनि जयन्तविजय, आदिनाथ प्रासाद, संपा०, अर्बुदप्राचीनअचलगढ़ जैनलेखसंदोह, लेखांक ४६४,४७१, ४७३,४७४,४८२, ४८३ एवं ४८४. मुनिजिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग२, लेखांक २६३, २६८. १५६६ फाल्गुन सुदि १० आदिनाथ की आदिनाथ जिना०, जैनलेखसंत्रह. भाग २, सोमवार प्रतिमा पर अचलगढ़ लेखांक २०२७-२०२. उत्कीर्ण लेख ३. Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ४. ५. ६. १५६७ वैशाख वदि१ अजितनाथ की घर देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखगुरुवार प्रतिमा पर बड़ोदरा संग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक २४६. १५७२ वैशाख सुदि५ धर्मनाथ की पार्श्वनाथजिनालय, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, सोमवार प्रतिमा पर नाहटों की गवाड़, लेखांक १५११. उत्कीर्ण लेख बीकानेर १५७३ फाल्गुन वदि२ वासुपूज्य की धातु वासुपूज्य जिनालय, वही, लेखांक १३८९. रविवार की चौबीसी बीकानेर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५७५ फाल्गुन वदि ४ संभवनाथ की अजितनाथ जिना०, जैनलेखसंग्रह, भाग २, प्रतिमा पर कटरा, अयोध्या. लेखांक १६४६. उत्कीर्ण लेख १५८७ पौष सुदि ६ सुमतिनाथ जिना०, विनयसागर, संपा०, रविवार जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९७७. ७. ८. जयकल्याण के एक शिष्य चारित्रसुन्दर अपरनाम चरणसुन्दर१६ हुए जो वि०सं० १५६६ फाल्गुन सुदि १० को अचलगढ़ पर निर्मित आदिनाथ प्रासाद में प्रतिमाप्रतिष्ठा के समय उपस्थित थे। जयकल्याण के एक अन्य शिष्य विमलसोम हुए जिनके द्वारा रचित न कोई कृति मिलती है और न ही कोई जिन प्रतिमा। ठीक यही बात इनके शिष्य लक्ष्मीरत्न के बारे में भी कही जा सकती है, किन्तु इनके शिष्य ने (अपने को लक्ष्मीरत्नशिष्य बतलाते हुए) वि०सं० की १७वीं शताब्दी में सुरप्रियरास की रचना की।१७ कमलकलशशाखा से सम्बद्ध अगला साक्ष्य इसके लगभग १०० वर्ष पश्चात् का है। वि०सं० १६५६ में कोकशास्त्रचतुष्पदी के कर्ता नर्बुदाचार्य ने स्वयं को कमलकलशशाखा के मतिलावण्य का शिष्य कहा है। चारित्रसुन्दर एवं लक्ष्मीरत्न आदि के साथ इनका क्या सम्बन्ध रहा, प्रमाणों के अभाव में यह जान पाना कठिन है। कमलकलशशाखा से सम्बद्ध अगला साक्ष्य इसके लगभग १३५ वर्ष पश्चात् का है। यह वि०सं० १७८५ का एक शिलालेख है। जो विमलवसही, आबू१९ से प्राप्त हुआ है। इसमें कमलकलशशाखा के पद्मरत्नसूरि और उनके शिष्यों-उमंगविजय, भावविजय आदि द्वारा यहां की यात्रा करने का उल्लेख है। जैन मंदिर माकरोरा, सिरोही से प्राप्त वि०सं० १७९० के एक शिलालेख में तपागच्छीय कमलकलशशाखा के रत्नसूरि और उनके शिष्य कमलविजयगणि के चातुर्मास करने का उल्लेख है। जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं वि०सं० १७८५ के लेख में पद्मरत्नसूरि का नाम आ चुका है, अत: वि० सं० १७९० के शिलालेख° में उल्लिखित रत्नसूरि को समसामयिकता, Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामसाम्य आदि के आधार पर उक्त पद्मरत्नसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। इस आधार पर दोनों शिलालेखों में उल्लिखित भावविजय और कमलविजय परस्पर गुरुभ्राता सिद्ध होते हैं। नर्बुदाचार्य और भावरत्नसूरि के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता। भावरत्नसूरि (वि०सं० १७८५-९०) शिलालेख भावविजय कमलविजय कमलकलशशाखा से सम्बद्ध अगला साक्ष्य वि०सं० १८३८ का एक लेख२१ है जो अचलगढ़ से प्राप्त हुआ है। यह लेख इस शाखा के हर्षरत्नसूरि और सुन्दरविजयगणि की चरण पादुका पर उत्कीर्ण है। ___ चूंकि वि०सं० १७८५ और १७९० में इस शाखा के आचार्यों का रत्नान्त नाम मिलता है, यही बात वि०सं० १८३८ के चरणपादुका के लेख में भी हम देखते हैं, अत: यह कहा जा सकता है कि भावरत्नसूरि के पश्चात् और वि० सं० १८३८ के पूर्व कमलकलशशाखा में हर्षरत्नसूरि नामक आचार्य हुए जिनके शिष्य जीवणविजय ने वि०सं० १८३८ में अपने गुरु की चरणपादुका स्थापित करायी। उक्त साक्ष्यों के आधार पर इस शाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : द्रष्टव्य तालिका - १. ऋषभदेव जिनालय, अचलगढ में उत्कीर्ण वि.सं० १९६३ वैशाख शुक्ल ११ शुक्रवार के एक अभिलेख में इस शाखा के भट्टारक यशोभद्रसूरि की पादुका और अपनी पादुका को भट्टारक विजयमहेन्द्रसूरि ने सिरोहीदेश के अचलदुर्ग में श्रीकेशरी सिंह के राज्य में स्थापित करायी। मुनि जयन्तविजय-अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४९०। मूल लेख की वाचना निम्नानुसार है: सं. १९६३ वैशाख सुदि ११ शुक्रवासरे कमलकलशशाखायां श्रीमतपागच्छे भट्टारक श्रीयशोभद्रसूरीश्वर पुन:निजपादुक० भट्टारक श्री विजयमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितम् (ता) श्री सिरोहीदेशे श्रीकेशरीसिंधराज्ये श्रीअचलमहादुर्गे। चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, लाज, अचलगढ़ में उत्कीर्ण वि०सं० १९७७ ज्येष्ठ वदि १३ रविवार के एक शिलालेख में इस शाखा के पट्टधर मुनिजनों के नाम मिलते हैं, जो इस प्रकार है: कमलकलशसूरि-जयकल्याणसूरि-भट्टरक विशालसूरि-भ०लक्ष्मीरत्नसूरि-भ० हंसरत्नसूरिभ०कल्याणरत्नसूरि-भ० धर्मरत्नसूरि-भ० देवरत्नसूरि-भ० जयरत्नसूरि- भ० पद्मरत्नसरिभ० हर्षरत्नसूरि-भ० राजेन्द्रसूरि-भ० यशोभद्रसूरि-भरविरत्नसूरि-विद्यमान कमलकलशगच्छ (शाखा) पति विजयमहेन्द्रसूरि। लेख में इनकी पादुका स्थापित करने का उल्लेख है। मुनि जयन्तविजयअर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ४८२। __ यहीं से प्राप्त उक्त तिथि एवं संवत् के उल्लेख वाला एक अन्य शिलालेख भी है जिसमें उक्त आचार्य द्वारा चिन्तामणि पार्श्वनाथ के जिनालय की प्रतिष्ठा का उल्लेख हैं, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लंखांक ४८३। वि०सं० १९७८ के उक्त शिलालेख में Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ प्राप्त इस शाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा को नामवाली के आधार पर कमलकलश शाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की पूर्वक्ति तलिका के जो नवीन स्वरुप प्राप्त होता है वह इस प्रकार है : द्रष्टव्य तालिका - २. इस प्रकार वि०सं० की २० वीं शताब्दी तक इस शाखा का किसी न किसी प्रकार अस्तित्व बना रहा। Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-कमलकलशशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की तालिका-१ रत्नशेखरसूरि लक्ष्मीसागरसूरि सोमदेवसूरि सुमतिसुन्दर रत्नहंसद्रणि सुधानंदनसूरि सुधानंदनसूरिशिष्य चारित्रहंस कमलकला सोमचरित्र (कमलकलशशाखा मतिलावण्य नर्बुदाचार्य । भुवनसोमणि कुलउदयगणि जयकल्याणसूरि चारित्रसुन्दर अपरनाम चरणसुन्दर विमलसेन लक्ष्मीरत्न लक्ष्मीरत्नशिष्य पद्मरत्नसूरि, पं. भावविजयगणि आदि .तपागच्छ-मुख्य परम्परा जारी.. हर्षरत्नसूरि सुन्दरविजयगणि जीवणविजय Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-कमलकलशशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की तालिका-२ लक्ष्मीसागरसूरि सुधानन्दनसूरि सुधानन्दनसूरिशिष्य रत्नशेखरसूरि सोमदेवसूरि सुमतिसुन्दर रत्नहंसगणि चारित्रहंस कमलकलशसूरि सोमचारित्र भुवनसोमगणि कुलउदयगणि जयकल्याणसूरि चारित्रसुन्दर विमलसोम विशालसूरि लक्ष्मीरत्नसूरि लक्ष्मीरत्नसूरिशिष्य भ.हंसरत्नसूरि भ. कल्याणसूरि भ. धर्मरत्नसूरि भ. देवरत्नसूरि भ. जयरत्नसूरि भ. पद्मरत्नसूरि भ. हर्षरत्नसूरि पं. सुन्दरविजयगणि जीवणविजय भ. राजेन्द्रसूरि भ. यशोभद्रसूरि भ. रविरत्नसूरि भ. विजयमहेन्द्रसूरि Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ १-२. “तपागच्छ-कमलकलशशाखा की पट्टावली" मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, संपा०, जयन्त कोठारी, पृष्ठ १०६ - ७. ४. ५. ६. ७. ८. पूरनचंद नाहर, संपा०-संग्रा० - जैनलेखसंग्रह, भाग १, कलकत्ता १९१८ ई०, लेखांक ४८३. मुनि जिनविजय, संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, भावनगर १९२१ ० स०, लेखांक २६४. वही, लेखांक २६५, २६७. मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४६७, ४६९. बुद्धिसागरसूरि, संपा० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १०६०. तपागच्छ- कमलकलशशाखा की पट्टावली देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ १०६. मुनि चतुरविजय, संपा० - श्रीजैनस्तोत्रसन्दोह, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ १०४. मोहनलालदलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ७२९, पृष्ठ ५०२. वही, कंडिका ७२५, पृष्ठ ४९९-५००. वही, कंडिका ७२६, पृष्ठ ५००. वही, कंडिका ७२६, टिप्पणी, पृष्ठ ४९९. द्रष्टव्य-संदर्भ संख्या ७. १०. ११. १२. १३. १४. १५. वही, पृष्ठ ११०-११. मुनि चतुरविजय, पूर्वोक्त, प्रस्तावना, पृष्ठ ११०. १५ अ. मुनि जयन्तविजय, वही, लेखांक ४८८ १६. मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, लेखांक ४६४, ४७१, ४७३, ४७४, ४८२, ४८३ एवं ४८४. मुनि जिनविजय, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक २६३, २६८. १७. जैनगूर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ २४४-४५. १८. Vidhatri Vora, Ed. Catalogue of Gujarati Mss. Muni Shree Punya Vijayji's Collecetion, L. D. Series, No - 71, Ahmedabad 1978, P-477 जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृष्ठ ३००, ३०३. १९. अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक १९७. २०. जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ९७०. २१. अर्बुदप्राचीन जैनलेखसंदोह, लेखांक ४८९. Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-कुतुबपुरा शाखा का इतिहास तपागच्छ के ५०वें पट्टधर प्रसिद्ध रचनाकार आचार्य सोमसुन्दरसूरि के शिष्य और मुनिसुन्दरसूरि, रत्नशेखरसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि आदि के आज्ञानुवर्ती सोमदेवसूरि हुए। इनके एक शिष्य सुधानन्दन हुए जिनके प्रशिष्य कमलकलशसूरि से तपागच्छ की कमलकलशशाखा अस्तित्व में आयी। सोमदेवसूरि के दूसरे शिष्य रत्नहंसगणि की शिष्यसंतति के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। सोमदेवसूरि के तीसरे शिष्य चारित्रहंस हुए जिनके शिष्य सोमचारित्र ने वि०सं० १५४१ में गुरुगुणरत्नाकरकाव्य की रचना की। सोमदेवसूरि के चौथे शिष्य रत्नमंडनगणि हुए। इनके द्वारा रचित रंगरत्नाकरनेमिफाग (रचनाकाल वि०सं० १४९९/ ई०स० १४४३), जल्पमंजरी, नारीनिरासफाग, सुकृतसागर (रचनाकाल वि०सं० १५१७/ ई०स० १४६१) आदि रचनायें प्राप्त होती हैं।' रत्नमंडनगणि के शिष्य सोमजय हुए। लक्ष्मीसागरसूरि द्वारा इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ। मंत्रीश्वर गदाशाह द्वारा निर्मित १०८ मन वजन की ऋषभदेव की पित्तल की एक प्रतिमा जो आबू स्थित भीमाशाह के मंदिर में संरक्षित है, जिस पर उत्कीर्ण वि०सं० १५२५ फाल्गुन सुदि ७ शनिवार के चार लेख और वि० सं० १५२९ के एक लेख तपागच्छीय आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि, जिनहंस, सुमतिसुन्दरगणि आदि के साथ सोमजय और उनके शिष्य जिनसोम का भी नाम मिलता है। जिनसोम द्वारा रचित स्तम्भनपार्श्वजिनस्तोत्र, ऋषभवर्धमानजिनस्तोत्र, तारंगामंडनअजितनाथजिनस्तवन, महावीरस्तवन आदि कृतियां मिलती हैं।' सोमजय के दूसरे शिष्य इन्द्रनंदि हुए, जिनके द्वारा प्रतिष्ठिापित कई जिनप्रतिमायें मिलती हैं, जो वि० सं० १५४० से वि०सं० १५७९ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : क्रमांक संवत् तिथि/मिति प्राप्तिस्थान १. १५४० ज्येष्ठ सुदि २ सोमवार सुविधिनाथ जिनालय, पित्तलहर, आबू संदर्भग्रन्थ मुनि जयन्तविजय संपा०, अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४३२, ४३४, ४३५. १५४८ तिथिविहीन ३. १५५६ माघ सुदि६ सीमंधरस्वामी का मंदिर, अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, बीकानेर संपा०, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक ११९०. शांतिनाथ जिनालय, आचार्य बुद्धिसागर, संपा०, खंभात जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ८९८. घर देरासर, बड़ोदरा वही, भाग २,लेखांक २३१. जैनमंदिर, सूतटोला, पूरनचन्द नाहर, संपा०, वाराणसी जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४०४. ४. ५. १५५८ आषाढ़ सुदि८ १५५९ आषाढ़ सुदि८ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६७ ६. १५६१ ज्येष्ठ सुदि २ सोमवार १५६३ आषाढ़ सुटि....गुरुवार सुमतिनाथ मुख्यबावन आचार्य बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, जिनालय, मातर भाग २, लेखांक ५०६. घर देरासर, लखनऊ । पूरनचन्द नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६१० शांतिनाथ जिनालय, आचार्य बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, कनासानो पाड़ो, पाटण भाग १, लेखांक ३७५. संभवनाथ देरासर, पादरा वही, भाग २, लेखांक १५. १५६३ " १०. १५६९ मितिविहीन आदिनाथ जिनालय, नाडलाई नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८४९ तथा मुनि जिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३३८. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८५७. ११. १५७१ मितिविहीन वही तथा मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३३९. १२. १५७९ मितिविहीन जैनमंदिर, भांमासर, बीकानेर नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३५४. वि० सं० १५५८ में इन्होंने अपने एक शिष्य धर्महंस को कुतुबपुरा नामक ग्राम में अपने पट्ट पर स्थापित किया। कुतुबपुरा नामक स्थान से अस्तित्त्व में आने के कारण इसका नाम कुतुबपुराशाखा पड़ा। धर्महंस द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है किन्तु इनके शिष्य इन्द्रहंस द्वारा रचित कुछ कृतियाँ मिलती हैं जो इस प्रकार हैं१. भुवनभानुचरित्र (वि०सं० १५५४/ई०स० १४९८) २. उपदेशकल्पवल्लीटीका (वि०सं० १५५५/ई०स० १४९९) ३. बलिनरेन्द्रकथा (वि०सं० १५५७/ई०स० १५०१) ४. विमलचरित्र (वि०सं० १५७८/ई०स० १५२२) इन्द्रनन्दिसूरि के एक शिष्य सिद्धान्तसागर ने वि०सं० १५७० में दर्शनरत्नाकर की रचना की। सिद्धान्तसागर की शिष्यपरम्परा आगे चली अथवा नहीं इस सम्बन्ध में हमारे पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इन्द्रनन्दिसूरि के एक अन्य शिष्य सौभाग्यनन्दि हुए, जिनके द्वारा रचित मौनएकादशीकथा नामक कृति प्राप्त होती है। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ वि०सं० १५७१ से वि०सं०१५९७ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है 1:4 १. १५७१ तिथिविहीन देवकुलिका का लेख, आदिनाथ जिनालय, हस्तिकुण्डी (हथंडी) २. ३. ४. ५. १५७६ माघ सुदि ५ गुरुवार १५८८ ज्येष्ठ सुदि ५ गुरुवार १५९१ वैशाख वदि ६ शुक्रवार १५९७ चैत्र सुदि १३ गुरुवार शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथपोल, अहमदाबाद वही संभवनाथ जिनालय, बालूचर, मुर्शिदाबाद जैनमंदिर, चाणस्मा मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३३. बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३११. वही, भाग २, लेखांक १३२५. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५४. बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३१. इन्द्रनंदिसूरि के चौथे शिष्य संयमसागर का भी उल्लेख मिलता है। इनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही किन्हीं अन्य साक्ष्यों से इस सम्बन्ध में कोई जानकारी ही प्राप्त होती है। इनके शिष्य के रूप में हंसविमल का नाम मिलता है। सौभाग्यनन्दि के पट्टधर हंससंयम हुए, जिनके समय की वि०सं० १६०६ में लिखित एक ग्रन्थ की प्रति प्राप्त हुई है २ । हंससंयम के शिष्य हंसविमल का नाम वि०सं० १६२१ के एक शिलालेख में उत्कीर्ण है। यह शिलालेख विमलवसही, आबू से प्राप्त हुआ है । इस शाखा से सम्बद्ध यह अंतिम साक्ष्य है। संयमसागर के शिष्य हंसविमल तथा हंससंयम के शिष्य हंसविमल एक ही व्यक्ति थे अथवा अलग-अलग! पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में इस सम्बन्ध में ठीक-ठीक कुछ भी कह पाना कठिन है, फिर भी समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए दोनों हंसविमलसूरि को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-कुतुबपुराशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की तालिका जगच्चन्द्रसूरि सोमदेवसूरि रत्नहंसगणि रत्नमंडनगणि सुधानंदनसूरि सुमतिसुन्दरसूरि सुधानंदनसूरिशिष्य कमलकलशसूरि चारित्रहंस सोमचारित्र सोमजयसूरि जिनसोम इन्द्रनंदिसूरि (कुतुबपुराशाखा के आदिपुरुष) सिद्धान्तसागर धर्महंस संयमसागर सौभाग्यनंदिसूरि इन्द्रहंस हंसविमल हंससंयम हंसविमल Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - २६९ संदर्भ मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, पृष्ठ ४९८, कंडिका ७०९. मुनि चतुरविजय, मंत्राधिराजचिन्तामणि अपरनाम जैनस्तोत्रसंदोह, भाग २, प्रस्तावना, पृष्ठ १०४ तथा आगे। २-३. मुनि जिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, लेखांक २४५, २५१, २५२, २५६. मुनि जयन्तविजय, संपा० अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४०७,४०८, ४१०,४११,४१८,४१९,४७२. ४. मुनि चतुरविजयजी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १०५-१०७. ५. वही, पृष्ठ १०६. ६. मोहनलाल दलीचंद देसाई, पूर्वोक्त, पृष्ठ ५२४-२५, कंडिका ७७०-७२. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, संपा०, जयन्त कोठारी, “तपागच्छ कुतुबपुराशाखानिगममत पट्टावली'' पृष्ठ १०७. जैनसाहित्यनो......., कंडिका ७५८, ९. वही, कंडिका ७५८. १०. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ १०७. ११-१२वही। १३. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदप्राचीन......, लेखांक १९६. ; Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-लघुपौशाालिक शाखा अपरनाम हर्षकुलशाखा या सोमशाखा तपागच्छ से समय-समय पर विभिन्न कारणों से विभिन्न शाखायें अस्तित्त्व में आयीं। लघु पौशालिक शाखा भी एक है। यह शाखा हर्षकुलशाखा और सोमशाखा के नाम से भी जानी जाती है। प्राप्त विवरणानुसार तपागच्छ के ५५ वें पट्टधर आचार्य हेमविमलसूरि ने अपने शिष्य आनन्दविमल को सूरि पद प्रदान कर अपना पट्टधर नियुक्त किया था। बाद में आनन्दविमलसूरि द्वारा एक अल्पवयस्क बालिका को दीक्षा देने के कारण गुरु-शिष्य में परस्पर मतभेद हो गया जो आगे चलकर बढ़ता ही गया, तब हेमविमलसूरि ने अपनी मृत्यु से पूर्व सौभाग्यहर्ष को अपना पट्टधर नियुक्त किया, जिनकी परम्परा लघु पौशालिक शाखा के नाम से विख्यात हुई। इस शाखा का उक्त नामकरण क्यों हुआ, इस सम्बन्ध में आज हमें कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इस शाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये कुछ ग्रन्थ प्रशस्तियां, पुस्तक प्रशस्तियां तथा एक पट्टावली और सीमित संख्या में अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध हैं जिनके आधार पर इस शाखा के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करने का यहां प्रयास किया जा रहा है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है इस शाखा की एक पट्टावली भी मिलती है जो विक्रम सम्वत् की १९वीं शती के अंतिम चरण में संकलित गयी प्रतीत होती है। इसमें आचार्य हेमविमलसूरि के पट्टधर एवं इस शाखा के आदिपुरुष सौभाग्यहर्षसूरि से लेकर अंतिम पट्टधर रायचन्द्रजी तक हुए प्रत्येक पट्टधर आचार्यों का न्यूनाधिक विवरण प्राप्त होता है, जिसे एक तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है : तालिका - क्रमांक- १ आनन्दविमलसूरि ....... तपागच्छ मूल परम्परा जारी ........ हेमविमलसूरि (तपागच्छ के ५५ वें पट्टधर; वि०सं० १५८३ में स्वर्गस्थ सौभाग्यहर्षसूरि (वि० सं० १५८३ में गुरु वि०सं० १५९७ में स्वर्गस्थ ) I सोमविमलसूरि (वि० सं० १५९७ में आचार्य पद 1 हेमसोमसूरि (वि०सं० १६३६ में प्राप्त; वि० सं० १६३६ में स्वर्गस्थ ) गुरु के पट्टधर; वि०सं० १६७९ में स्वर्गस्थ ) 1 विमलसोमसूरि ( वि० सं० १६६७ में आचार्यपद प्राप्त, वि०सं० १६८८ मार्गशीर्ष सुदि १५ 1 को स्वर्गस्थ ) विशालसोमसूर | पट्टधर; Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७१ - उदयविमलसोमसूरि गजसोमसूरि मुनीन्द्रसोमसूरि राजसोमसूरि आणंदसोमसूरि देवेन्द्रविमलसोमसूरि मुनीन्द्रसोमसूरि तत्त्वविमलसोमसूरि केशरसोमसूरि पुण्यविमलसोमसूरि सोमजी कस्तूरसोमसूरि रत्नसोमसूरि रायचन्दजी (वि०सं० १८६८ में स्वर्गस्थ) जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं वि०सं० १५८३ में आचार्य हेमविमलसूरि के निधन के पश्चात् सौभाग्यहर्षसूरि उनके पट्टधर बने। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १५८४ से वि०सं० १५९५ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : १. सं० १५८४ वर्षे चैत्र वदि ५ गुरौ प्राग्वाट्ज्ञातीय वीसलनगर-वास्तव्य सं० रत्नाकेन भा० पूतलि पुत्र सं० कान्हा पुत्रा रमाई प्रमुखयुतेन श्रेयोर्थं श्रीकुन्थुनाथबिंब कारितं तपांगच्छे श्रीहेमविमलसूरि पट्टे श्रीसौभाग्यहर्षसूरिभिः॥ कुन्थुनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान-मोतीशाह की ट्रॅक, शजय, पालिताना मुनिकांतिसागर, संपा० शत्रुजयवैभव, लेखांक २७९. २. सं० १५८४ वर्षे चैत्र वदि ९ सोमे आमलेश्वरवास्तव्य ला० श्रीमाल० ज्ञा० श्रीजिनधर्मनिष्ठिकश्रे० सदाभा० नाथीपुत्रश्रे० जिणदासभा० पूतलिनाम्न्या भ्रा० श्रे० डूंगरश्रेष्ठिवर्द्धमान श्रे० हेमादियुतेन पुत्रभूपामंगासहितेन स्वश्रेयोऽर्थं श्रीमुनिसुव्रतचतु० का०प्र० तपागच्छे श्रीश्रीश्रीसौभाग्यहर्षसूरिभिः।। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ मुनिसुव्रत की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान-मुनिसुव्रत जिनालय, भरुच बुद्धिसागरसूरि, संपा०-जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३२९. ३. सं० १५८४ वर्षे माघ सुदि ९ गुरौ प्राग्वाट्ज्ञातीय दो० आशधर भा० माणिकि पुत्र हरषा भार्या हरषादे पुत्री रूपाई आत्मश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीसौभाग्यहरष (हर्ष) सूरिभिः।। चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - बालावसही, शत्रुजय, पालीताना मुनि कांतिसागर, पूर्वोक्त, लेखांक २८०. ४. सं० १५९५ वर्षे मा० व० ( ) दलुलिवास्तव्य हुंबडज्ञाति मुहडासीया श्रे० वीरपाल भा० मानूं पुत्र श्रे० नीसल भा० जीविणी पु० श्रे० लहुआकेन भा० ललतादे वृद्धभ्रातृ दो० आसा चांपा पोपट लखमादिकुटुम्बयुतेन श्रेयोर्थं श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं प्रति० तपा० श्रीहेमविमलसूरि तत्पट्टे श्रीसौभाग्यहर्षसूरिभिः।। श्रेयांसनाथ की धातु की पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख प्रतिष्ठास्थान - माणिकसागरजी का मंदिर, कोटा महो० विनयसागर, संपा०, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९९१. पूर्वप्रदर्शित पट्टावली के अनुसार वि०सं० १५९७ में सौभाग्यहर्षसूरि की मृत्यु के पश्चात् इनके शिष्य और पट्टधर सोमविमलसूरि ने इस शाखा का नायकत्त्व ग्रहण किया। लगभग ४० वर्षों तक इस शाखा का नेतृत्त्व करने के उपरान्त वि०सं० १६३६ में इनकी मृत्यु हुई। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित दो जिनप्रतिमायें मिली हैं जो वि०सं० १६०३ और वि०सं० १६२२ की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : प्रथम प्रतिमा पार्श्वनाथ की है जो आज आदिनाथ जिनालय, वेजलपुरा, भरुच में संरक्षित है। बुद्धिसागरसूरि ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है : स्वस्तिश्री संवत् १६०३ वर्षे वैशाख दि ५ दिने आमथडावास्तव्यमं० नरसिंगभार्यानामलदेपुत्रभाणाकेन निजश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीसोमविमलसूरिभिः।। द्वितीय प्रतिमा जो इन्होंने हीरविजयसूरि के साथ प्रतिष्ठापित की थी, आज अमीझरा पार्श्वनाथ जिनालय, जीरारवाड़ो, खंभात में है। बुद्धिसागरसूरि ने इस पंचतीर्थी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख की भी वाचना दी है जो निम्नानुसार है : संवत् १६२२ वर्षे माघ वदि २ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीयवृद्धशाखायां सा० भावडभार्यावा० सबूसुतदोसीज (?) नपालभार्या वा० जीवादेसुतदो० जयवंतेन श्रीश्रीचतुर्विंशतिपट्ट: कारापितः श्रीतपागच्छे श्री ५ सोमविमलसूरिप्रतिष्ठितं श्री ५ श्रीहीरविजयसूरिभि: प्रतिष्ठितं श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्यः।। Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७३ संभवनाथ की एक प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि०सं० १६२२ के लेख से से ज्ञात होता है कि इसकी प्रतिष्ठापना सोमविमलसूरि के समय हुई थी। लेख का मूलपाठ निम्नानुसार है: संवत् १६२२ वर्षे पौष वदि १ रवौ ओसवालज्ञातीय मडावरागोत्रे सा० धवकरणभार्यासिवादेपुत्रसा० पा.....भार्याअमर.....पुत्र सा० धनपति सर्वकुटुम्बश्रेयोऽर्थं श्री संभवनाथ बिंबं कारितं प्रति० श्री सोमविमलसूरि विजयराज्ये।। प्रतिष्ठास्थान - शांतिनाथ जिना०, कडाकोटडी, खंभात। सोमविमलसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं जो इस प्रकार हैं : धम्मिलरास - रचनाकाल वि० सं० १५९१ पौष सुदि १ शनिवार आनन्दविमलसूरिसज्झाय - रचनाकाल वि०सं० १५९६ चम्पक श्रेष्ठीरास - रचनाकाल वि० सं० १६२२ श्रेणिकरास क्षुल्लककुमाररास रत्नदृष्टांतस्वाध्याय राजीमतीस्वाध्याय मनुष्यभवोपरिदशदृष्टान्तना गीतो कुमरगिरीमण्डन शांतिनाथस्तवन दशवकालिकसूत्रबालावबोध ११. कुमारपालचरितकाव्य १२. कल्पसूत्रबालावबोध १३. चसिमा शब्द के १०१ अर्थ की सज्झाय (वि० सं० १६३२) १४. नेमिगीत १५. दसदृष्टांत त्रुटक वि०सं० १६०२ में रचित पट्टावलीसज्झाय भी इन्हीं की कृति है। वि० सं० १५९१ माघ सुदि १० को इन्होंने स्वरचित धम्मिलरास' की प्रतिलिपि करायी। वि०सं० १५९७ में इनके समय में विद्याविजयगणि के शिष्य श्रीविजयगणि द्वारा नन्दवारपुर (?) में सिद्धान्तविचाररास की रचना की। वि०सं० १५९७ में इनके उपदेश से भगवतीसूत्र की प्रतिलिपि करायी गयी। वि०सं० १६०४ में इन्होंने अपने शिष्यों-प्रशिष्यों के पठनार्थ अन्तकृद्दशांग की प्रतिलिपि करायी।१० सौभाग्यहर्षसूरि के दूसरे शिष्य और सोमविमलसूरि के गुरुभ्राता कल्याणजय ने वि० सं० १५९४ में कृतकर्मराजाधिकाररास की रचना की। सौभाग्यहर्षसूरि के एक शिष्य प्रमोदमंडन हुए जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, यही बात इनके शिष्य विमलमंडन के बारे में भी कही जा सकती है किन्तु इनके शिष्य रत्नविमल ने दामनकरास नामक ग्रन्थ की रचना की जिसकी वि०सं० १६३३ में लिखी गयी प्रति प्राप्त हुई है।१२ इसकी प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विमलसूरि 1 सौभाग्यहर्षसूरि 1 प्रमोदमंडन I विमलमंडन 1 रत्नविमल (वि०सं० १६३३ से पूर्व दामनकरास के कर्ता) विभिन्न ग्रन्थ प्रशस्तियों से सोमविमलसूरि की शिष्य परम्परा के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वि०सं० १६०५ में नवकाररास के कर्ता विमलचारित्र ने स्वयं को उक्त कृति की प्रशस्ति में संघचारित्र का शिष्य और सोमविमलसूरि का प्रशिष्य कहा है । १३ सोमविमलसूरि 1 संघचारित्र २७४ विमलचारित्र (वि० सं० १६०५ / ई०स० १५४९ में नवकाररास के रचनाकार) वि०सं० १६१८ / ई०स० १५६२ में सुरप्रियरास के प्रतिलिपिकर्ता लक्ष्मीचन्द्रगणि ने स्वयं को सोमविमलसूरि का शिष्य बताया है । १४ सोमवमलसूर । लक्ष्मीचन्दगणि (वि०सं० १६१८ / ई०स० १५६२ में सुरप्रियरास के प्रतिलिपिकार) सोमविमलसूरि की परम्परा में हुए देवशील ने वि०सं० १६१९ / ई०स० १५६३ में बेतालपच्चीसी की रचना की। १५ अपनी कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु - परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार है : सौभाग्यहर्षसूरि I सोमविमलसूरि । लक्ष्मीभद्र 1 उदयशील 1 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ - चारित्रशील प्रमोदशील देवशील (वि०सं० १६१९ द्वितीय श्रावण वदि ९ रविवार को बेतालपच्चीसी के रचनाकार) सोमविमलसूरि के एक शिष्य सोमरत्न हुए जिनके द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है किन्तु सोमरत्न के शिष्य विद्यासोम का वि०सं० १६८७/ई०स० १६३१ में शांतिनाथचरित के प्रतिलिपिकार के रूप में नाम मिलता है१६ - सोमविमलसूरि सोमरत्न विद्यासोम (वि०सं० १६८७/ई०स० १६३१ में शांतिनाथचरित के प्रतिलिपिकार) सोमविमलसूरि के एक शिष्य हेमसोम भी थे, जो उनके निधन के पश्चात् उनके पट्टधर बने। इस प्रकार उक्त साक्ष्यों के आधारपर सोमविमलसूरि के कुल ५ शिष्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। तालिका-क्रमांक-२ सोमविमलसूरि संघचारित्र लक्ष्मीभद्र लक्ष्मीचन्द्रगणि (वि०सं०१६१८ में सुरप्रियरास के प्रतिलिपिकार) उदयशील विमलचारित्र (वि० सं०१६०५ में नवकाररास के कर्ता) सोमरत्न हेमसोम (पट्टधर) विद्यासोम (वि० सं०१६८७ में शांतिनाथचरित के प्रतिलिपिकार) चारित्रशील प्रमोदशील देवशील (वि०सं०१६१९ में बेतालपंचवीसीरास के कर्ता) सोमविमलसूरि के वि०सं० १६३६ में निधन हो जाने के पश्चात् उनके शिष्य हेमसोम ने तपागच्छ की लघुपौशालिक शाखा का नायकत्त्व ग्रहण किया। वि०सं० १६६७ के एक Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ खण्डित प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है। लेख का मूलपाठ निम्नानुसार है : संवत् १६६७........ ..........तपागच्छे श्रीहेमसोमसूरिभिः .............. प्रतिष्ठास्थान - शामला पार्श्वनाथ जिनालय, डभोई, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २५. वि०सं० १६४६ में लिखी गयी कल्पान्तरवाच्यवृत्ति की प्रतिलेखन प्रशस्ति में भी इनका नाम मिलता है। इन्हीं के समय वि०सं० १६५४ में संघवीरगणि के शिष्य उदयवीरगणि ने पार्श्वनाथगद्यबन्ध लघुचरित्र की रचना की।८ वि०सं० १६७९ में इनका निधन हुआ। हेमसोमसूरि के पश्चात् विमलसोमसूरि ने इस शाखा का नेतृत्व किया। वि०सं० १६६७ के दो प्रतिमालेखों और वि०सं० १६७१ के एक शिलालेख में इनका नाम मिलता है। इन लेखों की वाचना निम्नानुसार है : संवत् १६६७ वैशाख वदि ७ बुधे श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्य उपकेशज्ञातीयवृद्धशाखायां सा० धर्मसीभा० धर्मादेसुतसा० कर्मसीभार्या .....भार्य सषमादेसुतउदयवंतरहीयायुतेन स्वकुटुम्बशेयोर्थ श्रीआदिनाथबिंबं कारितं तपागच्छे श्रीसोमविमलसूरिपट्टे श्रीहेमसोमसूरिभिः आचार्य श्रीविमलसोमसूरियुतैः प्रतिष्ठितं स्तम्भतीर्थे श्रीप्रतिष्ठाकारि श्रा० पाची।। प्रतिष्ठास्थान - श्री शांतिनाथ जिनालय, कडाकोटड़ी, खंभात बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६११. संवत् १६६७ वर्षे वैशाखवदि ७ बुधे श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्य ऊकेशज्ञातीयसा० कर्मसीभा० सषमादे स्वकुटुम्बश्रेयसे श्रीसुपार्श्वनाथबिंब कारितं तपागच्छे श्रीसोमविमलसूरिपट्टधारि श्रीहेमसोमसूरिभिः आचार्य श्रीविमलसोमसूरियुतैः प्रति० स्तम्भतीर्थे प्रतिष्ठाकारि श्रा० पांचीकेन।। सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान - कुन्थुनाथ जिनालय, मांडवीपोल, खंभात, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६४२. सं० १६७१ वर्षे वैशाख वदि ५ रवौ श्रीवागड़देशमण्डने भूभामिनीभालतिलकायमान सर्वनगर शिरोमणि श्रीगिरिपुरे वागड़महाराउल श्रीपुंजराजजीविजयराज्ये प्रधानपदधारि गांधी रघासुत रत्नगांधी श्रीजोगीदास मेघजीकलाजी विजयिनितन्नगरनिवासि लघुसज्जन प्राग्वाटज्ञाति शृंगारहार श्रेष्ठी मांडण भार्या शीलालंकारधारिणी मनरंगदे नाम्नी तदधिक प्रथमपुत्र सकलगुण सम्पूर्णदानादि कृतसुर होम वत् धर्मभारधुरंधर सुकृतजसवीरभार्या द्विक प्रथम भार्या जोडीमदे द्वितीया पागरदे प्रथम भार्या पुत्र रत्नकहानजी भ्रात॒ जोगा भार्या जोडीमदे पुत्र रहीया भगिनी द्वीकमइत्यादि सकलपरिवार श्रेयोर्थं श्रीसिहलाकारित श्रीपार्श्वनाथभुवने भद्रप्रासादः कारापितः प्रतिष्ठाकारापिता तपागच्छनायक श्रीपूज्यश्री५ श्रीसोमविमलसूरितच्छिष्यकलिकालसर्वज्ञ जगद्गुरु विरुद्धारि संप्रतिविजयमान श्रीपूज्यश्री५ हेमसोमसूरीश्वरपट्ट प्रभाकर तत्क्षण प्रत्यक्षणोत्तमावतार आचार्यश्रीविमलसोमसूरीश्वरआदेशात् महोपाध्याय श्री आनंदप्रमोदगणि शिष्यपंडितश्रेणीशिरोमणि पं० श्रीसकलप्रमोदगणि शिष्य पं० तेजप्रमोदगणि प्रतिष्ठाकृता।। Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७७ पार्श्वनाथ जिनालय, डूंगरपुर, ईडर से प्राप्त शिलालेख बुद्धिसागरसूरि, संपा०-जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १४६२. विमलसोमसूरि के पट्टधर विशालसोमसूरि हए। इनके द्वारा धोलका में धात् की पंचतीर्थी पट्ट की स्थापना की गयी।१९ इन्हीं के काल में वि०सं० १७०३ में संघसोम ने चौबीसी और राजरत्न ने वि०सं० १७०५ मे गजसिंहकुमाररास'१ की रचना की। विशालसोमसूरि के पट्टधर उदयविमलसोमसूरि हए। इनके पश्चात् क्रमश: गजसोम, मुनीन्द्रसोम, राजसोम और आनन्दसोम पट्टधर बने। इनके बारे में उक्त पट्टावली को छोड़कर अन्यत्र कोई जानकारी नहीं मिलती।२ आनन्दसोमसूरि के काल में वि०सं० १८७८ में उत्तमविजय ने धनपालशीलवतीरास की रचना की। आनन्दसोम के एक शिष्य भानु उदयसोम हुए। इन्होंने वि० सं० १८८९ में श्रीपालरास२४ की रचना की। इनके द्वारा नेमिनाथरसबेलि की वि०सं० १८९४ में की गयी प्रतिलिपि२५ भी प्राप्त हुई है। उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर लघुपौशालिकशाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका बनती है। दृष्टव्य तालिका क्रमांक ३. जैसा कि ऊपर इस पट्टावली में हम देख चुके हैं आनन्दसोम के शिष्य देवेन्द्रविमलसोम और मुनीन्द्रसोम से यह शाखा भी दो भागों में विभाजित हो गयी। देवेन्द्रविमलसोम के पश्चात् क्रमश: तत्त्वविमलसोम, पुण्यविमलसाम, कस्तूरसोम, रत्नसोम और अंतिम पट्टधर रायचन्दजी हुए जिनका वि०सं० १८६८ में निधन हुआ। इनके साथ ही तपागच्छ की इस शाखा की परम्परा भी समाप्त हो गयी। लघुपौशालिक शाखा की दूसरी उपशाखा जो मुनीन्द्रसोम से प्रारम्भ हुई थी, उसमें उनके पश्चात् केसरसोम और तत्पश्चात् सोमजी हुए। सोमजी के पश्चात् ही उनकी परम्परा समाप्त हो गयी। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ५-६. तपागच्छ-"लघुपौशालिक पट्टावली" मनि जिनविजय, संपा० - विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१ ई०, पृष्ठ ३७-४७. मुनि कल्याणविजय गणि, संपा०-पट्टावलीपरागसंग्रह, श्री कल्याणविजय शास्त्र संग्रह समिति, जालौर १९६६ ई०, पृष्ठ १८२-१८६. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ८५-८९. बुद्धिसागरसूरि, संपा०-जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ६३६. वही, लेखांक ७५२. वही, लेखांक ६१६. देसाई, पूर्वोक्त, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २-९. श्री अमृतलाल मगनलालशाह, संपा०- श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्री देशविरति धर्माराधक संघ, अहमदाबाद वि०सं० १९९३; भाग २, पृष्ठ ९२, प्रशस्ति क्रमांक ३२९. वही, भाग २, पृष्ठ ९७, प्रशस्ति क्रमांक ३५३. वही, भाग २, पृष्ठ ९७, प्रशस्ति क्रमांक ३५०. वही, भाग २, पृष्ठ १०१, प्रशस्ति क्रमांक ३७१. शीतिकण्ठ मिश्र, हिन्दीजैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, पार्श्वनाथ विद्याश्रम ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, वाराणसी १९८९ ई०, पृष्ठ ३४२-४३. वही, भाग २, पृष्ठ ३८६. शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृष्ठ ४८२. देसाई, पूर्वोक्त, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २१-२३. श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, पृष्ठ ११४, प्रशस्ति क्रमांक ४३१. शीतिकण्ठ मिश्र, पूर्वोक्त, भाग २, पृष्ठ २३१-३२. देसाई, पूर्वोक्त, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ११४-११६. १६. श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, पृष्ठ १९८, प्रशस्ति क्रमांक ६९८. वही, भाग २, पृष्ठ १३७, प्रशस्ति क्रमांक ५३०. १८-१९. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ९, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ८८. वही, भाग ४, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ७९-७९. २१. वही, भाग ४, पृष्ठ १४४-१४५. द्रष्टव्य-लेख के प्रारम्भ में दी गयी लघुपौशालिक शाखा की पट्टावली. देसाई, भाग ६, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २८२. वही, भाग ६, पृष्ठ ३१४. २५. वही, भाग ९, पृष्ठ ८९. १७. वही. भा २०. Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित तपागच्छ-लघुपौशालिक शाखा के मुनिजनों की गुरु-शिष्य परम्परा की तालिका आनन्दविमलसूरि प्रमोदमडन चारित्रशील .तपागच्छ-मुख्यपरम्परा... हेमविमलसूरि सौभाग्यहर्षसूरि (तपागच्छ-लघुपौशालिकशाखा के आदिपुरुष) कल्याणजय सोमविमलसूरि विमलमंडन संघचारित्र लक्ष्मीचन्दगणि लक्ष्मीभद्र सोमरत्न हेमसोमसूरि (पट्टधर) रत्नविमल विमलचारित्र उदयशील विद्यासोम विमलसोमसूरि विशालसोमसूरि प्रमोदशील गजसोमसूरि देवशील मुनीन्द्रसोमसूरि राजसोमसूरि आनन्दसोमसूरि भानुउदयसोम देवेन्द्रविमलसोमसूरि मुनीन्द्रसोमसूरि तत्त्वविमलसोमसूरि केसरसोमसूरि पुण्यविमलसोमसूरि कस्तूरसोमसूरि सोमजी रत्नसोमसूरि रायचन्दजी (वि.सं. १८६८ में स्वर्गस्थ) सोमजी Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-सागरशाखा तपागच्छ से समय-समय पर विभिन्न कारणों से अस्तित्त्व में आये विभिन्न उपशाखाओं में सागरशाखा भी एक है। तपागच्छीय उपाध्याय धर्मसागरगणि के प्रशिष्य और लब्धिसागर के शिष्य मुक्तिसागरगणि जो बाद में राजसागरसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए, से वि० सं० १६८६ में यह शाखा अस्तित्त्व में आयी। राजसागरसूरि को आचार्य पद दिलवाने में अहमदाबाद के राजमान्य जैन श्रावक श्रेष्ठी शांतिदास झवेरी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। तपागच्छ की यह शाखा सागरशाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस शाखा में वृद्धिसागरसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि, विनयसागर, कल्याणसागरसूरि, दयासागर, तिलकसागर, हेमसौभाग्य, शांतसौभाग्य, पुण्यसागरसूरि, उद्योतसागर, उदयसागर, आनन्दसागरसूरि, शांतिसागरसूरि आदि विभिन्न विद्वान मुनिजन हो चुके हैं। तपागच्छ की इस शाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये इससे सम्बद्ध विभिन्न मुनिजनों की कृतियों की प्रशस्तियों के साथ-साथ राजसागरसूरि, वृद्धिसागरसूरि और कल्याणसागरसूरि पर रचित निर्वाणरास भी उपलब्ध हुए हैं जिनसे गच्छ के इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इसके अलावा इस गच्छ की एक पट्टावली भी मिलती है जिसका संक्षिप्तसार गुजराती भाषा में श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई और हिन्दी भाषा में मुनि कल्याणविजयजी ने दिया है। इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। यहाँ उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर तपागच्छ की इस शाखा के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है : सागरशाखा की पट्टावली में प्रस्तुत गुरु-परम्परा को एक तालिका के रूप में इस प्रकार दर्शाया जा सकता है : (उपाध्याय धर्मसागरगणि) (लब्धिसागर) मुक्तिसागरगणि अपरनाम राजसागरसूरि (वि० सं० १६८६/ई०स० १६३० में । सागरशाखा के प्रवर्तक; वि०सं० १७२१ में मृत्यु) । वृद्धिसागरसूरि (वि०सं० १६ में सूरिपद प्राप्त; वि० सं० १७२ में । गच्छनायक; वि०सं० १७४७ में मृत्यु) लक्ष्मीसागरसूरि (वि०सं० १७४५ में सूरिपद प्राप्त; १७८८ में स्वर्गस्थ) कल्याणसागरसूरि (वि०सं० १७८८ में सूरिपद प्राप्त; वि०सं० १८११ । में स्वर्गस्थ) पुण्यसागरसूरि (वि०सं० १८०८ में सूरिपद प्राप्त; वि०सं० । में जिनप्रतिमा व गुरु की चरणपादुका के प्रतिष्ठापक) Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० उदयसागरसूरि (वि०सं० १८४५ के लेख में उल्लिखित) आनन्दसागरसूरि शांतिसागरसूरि (वि०सं० १८९२-१९०५) अभिलेखीय साक्ष्य उपलब्ध जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं, शाखा प्रवर्तक आचार्य राजसागरसूरि का सूरिपद प्राप्ति से पूर्व नाम मुक्तिसागरगणि था। अहमदाबाद के निकट बारेज नामक ग्राम में स्थित आदिनाथ जिनालय में रखी गयी शांतिनाथ की प्रतिमा पर वि०सं० १६८१ ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवार का एक लेख उत्कीर्ण है। इसमें प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में विजयदेवसूरि के परिवार के महोपाध्याय विवेकहर्षगणि के शिष्य के रूप में महोपाध्याय मुक्तिसागरगणि का नाम मिलता है। मुनि जिनविजय ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है : संवत् १६८१ वर्षे ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवासरे श्रीअहम्मदपुरवास्तव्यवृद्धशाखीयडीसावालज्ञातीय सा० वीरा भार्या बाई सुहडदे पुत्रेण सा० वर्धमान............... बाई बइजल पुत्र सा०.............लजी प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोऽर्थं सपरिकरं श्रीशांतिनाथबिंबं कारितं सा० श्रीशांतिदासप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरिपरिवारके महोपाध्यायश्रीविवेकहर्षगणिनामनुशिष्यमहोपाध्याय-श्रीश्रीमुक्तिसागरगणिभिः श्रियेस्तु।। मुक्तिसागरगणि द्वारा वि०सं० १६८२ ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवार को प्रतिष्ठापित ४ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। इनकी वाचनायें निम्नानुसार हैं : संवत् १६८२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवासरे श्री अहिमदाबाद नगरवास्तव्यश्रीओसवालज्ञातीय सा० सहसकिरणभार्यया बाई कुंवरि नाम्न्या स्वधेयो) श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं सा० शांतिदासकारितप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे भट्टारकश्रीविजयसेनसूरीश्वरपट्टालंकार भट्टारकश्रीविजयदेवसूरिपरिवारके महोपाध्यायविवेकहर्षगणीनामनुशिष्या (ष्यैः) महोपाध्यायश्रीमुक्तिसागरगणिभिः।। मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान - जैनमंदिर, सूरत के निकट स्थित लाइन्स में संदर्भग्रन्थ - मुनि जिनविजय, संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५४१. २. संवत् १६८२ वर्षे ज्येष्ठवदि ९ गुरौ अहिमदाबादनगरे ओसवालज्ञातीय सा० श्रीशांतिदास भार्यया श्रीआदिनाथबिं प्रतिष्ठापितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छे महोपाध्यायश्रीमुक्तिसागर...... आदिनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान - जैनमंदिर, सूरत के निकट लाइन्स में संदर्भग्रन्थ - मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ५४२ संवत् १६८२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवासरे श्रीअहिम्मदाबादवास्तव्य श्रीओसवालज्ञातीय सा० श्री वछा भार्या गोरदे सुत सा० सहस्त्रकिरण भार्या कुआरबाइ बाइ सोभागदे Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. २८१ पुत्रेण सुत सा पनजी प्रमुख कुटुंबयुतेन श्रीशत्रुंजयादितीर्थमहामह० पुरस्त रथयात्रासमवाप्तसंघपतितिलकेन सा० श्रीशांतिदासनाम्ना स्वश्रेयोर्थं श्री शीतलनाथबिंबं स्वयं कारितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छे भट्टारक श्रीविजयसेनसूरिपट्टालंकारभट्टारक श्रीविजयदेवसूरिपरिवारके महोपाध्याय श्रीविवेकहर्षगणिनामनुशिष्य महोपाध्याय श्रीमुक्तिसागरगणिभिः || शीतलनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान लोढण पार्श्वनाथ देरासर, डभोई संदर्भग्रन्थ - संवत् १६८२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ९ गुरौ श्रीअहमदाबाद वास्तव्य उसवालज्ञातीय वृद्धशाखा (खा) यां श्रीशांतिदास भा० वाई रूपाई सुत सा० पनजी कारितं श्रीशांतिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरि वरैकि (?) महोपाध्याय श्री श्री श्री मुनिसागर (मुक्तिसागर ) गणिभिः श्रेयोस्तु || शांतिनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान - शांतिनाथ जिनालय, सहादतगंज, लखनऊ संदर्भग्रन्थ - पूरनचन्द नाहर, संपा०, जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १६३५. वि०सं० १६८२ ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवार के उक्त चारों प्रतिमालेखों में समान रूप से मुक्तिसागरगणि और शांतिदास का नाम मिलता है। एक ही समय उत्कीर्ण कराये जाने के कारण इनमें स्वाभाविक रूप से भाषागत समानता भी दृष्टिगोचर होती है । यही भाषागत समानता हमें वि० सं० १६८१ ज्येष्ठ वदि ९ गुरुवार के लेख में भी दिखाई देती है, साथ ही इसमें भी मुक्तिसागरगणि और शांतिदास का नाम मिलता है, इस आधार पर इस लेख को भी वि० सं० १६८२ का ही मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती। दूसरे वर्ष सम्वत् १६८१ के ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष की नवमी की तिथि को भी गुरुवार ही रहा होगा, जैसा कि वर्ष १६८२ के ज्येष्ठ माह के कृष्णपक्ष की नवमी की तिथि को रहा, ऐसा होना संभव नहीं लगता । सागरशाखा की पूर्वोक्त पट्टावली में मुक्तिसागरगणि को लब्धिसागर का शिष्य और उपा० धर्मसागरगणि का प्रशिष्य कहा गया है वहीं उक्त अभिलेखीय साक्ष्यों में हम मुक्तिसागरगणि को विवेकहर्षगण के शिष्य के रूप में पाते हैं, अतः यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि दोनों मुक्तिसागर एक ही व्यक्ति हैं या अलग-अलग। इसका उत्तर यही है कि चूंकि शांतिदास द्वारा निर्मित जिनालय की प्रतिष्ठा का कार्य वि०सं० १६८२ में तपागच्छ की भट्टारक शाखा के आचार्य विजयदेवसूरि की परम्परा के विवेकहर्षगणि के निर्देशन में मुक्तिसागरगणि ने सम्पन्न किया था, अतः यही कारण है कि इस समय के प्रतिमालेखों में इन्हें विवेकहर्षगणि का शिष्य कहा गया है। इस प्रकार लब्धिसागर के शिष्य मुक्तिसागरगणि उक्त प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लिखित मुक्तिसागरगणि से अभिन्न सिद्ध होते हैं। बुद्धिसागरसूरि, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३६. श्रेष्ठी शांतिदास के प्रयत्न से वि०सं० १६८६ में मुक्तिसागरगणि को आचार्य पद प्राप्त हुआ और वे राजसागरसूरि के नाम से जाने गये ।" वि०सं० १६९८ पौष पूर्णिमा को इन्होंने वृद्धिसागर को आचार्यपद प्रदान कर अपना पट्टधर नियुक्त किया। अपने जीवन काल राजसागरसूरि ने बिम्बप्रतिष्ठा, पंडित तथा वाचकपद प्रदान, उपधान, मालारोपण आदि Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ धार्मिक विधि-विधानों के साथ-साथ विभिन्न तीर्थों की यात्रायें भी की। वि०सं० १७२१ में इनका निधन हुआ। राजसागरसूरि पर रची गयी तीन रचनायें आज उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार हैं : राजसागरसूरि के प्रशिष्य और वृद्धिसागरसूरि के शिष्य विनयसागर द्वारा रचित राजसागरसूरिसज्झाय (रचनाकाल वि० सं० १७१५) हेमसौभाग्य द्वारा रचित राजसागरसूरिनिर्वाणरास (रचनाकाल वि०सं० १७२१) हेमसौभाग्य ने अपने उक्त कृति में अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है : वृद्धिसागरसूरि सत्यसौभाग्य इन्द्रसौभाग्य हेमसौभाग्य (वि०सं० १७२१ राजसागरसूरिनिर्वाणरास के कर्ता) तिलकसागर द्वारा रचित राजसागरसूरिनिर्वाणरास' (रचनाकाल वि०सं० १७२१ के आसपास) तिलकसागर ने इस कृति के अन्त में अपनी गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है : वृद्धिसागरसूरि कृपासागर तिलकसागर (वि०सं० १७२१ के लगभग राजसागरसूरि निर्वाणरास के रचनाकार) राजसागरसूरि के प्रशिष्य और शांतिसागर के शिष्य दयासागर ने वि०सं० १७२२ में राजसागरसूरिनिर्वाणरास की प्रतिलिपि की।१०४ ।। राजसागरसूरि तथा श्रेष्ठी शांतिदास के बारे में उक्त रचनाओं से महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। राजसागरसूरि के पश्चात् उनके पट्टधर वृद्धिसागरसूरि हुए। दीपसौभाग्य द्वारा रचित वृद्धिसागरसूरिरास (रचनाकाल-वि०सं० १७४७ के आसपास) इनके बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। दीपसौभाग्य ने अपनी उक्त कृति के अन्त में अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : राजसागरसूरि वृद्धिसागरसूरि Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माणिक्यसौभाग्य 1 चतुरसौभाग्य 1 दीपसौभाग्य (वि०सं० १७४७ के आसपास वृद्धिसागरसूरिरास के २८३ रचनाकार) दीपसौभाग्य द्वारा वि० सं० १७३९ रचित चित्रसेनपद्मावतीचौपाई' नामक कृति भी प्राप्त होती है। उक्त रास के अनुसार वि०सं० १६८० में इनका जन्म हुआ था, वि०सं० १६८९ में इन्होंने अपनी माता के साथ पाटण में राजसागरसूरि से दीक्षा ग्रहण की और हर्षसागर नाम प्राप्त किया। गुरु के पास इन्होंने श्रमपूर्वक विद्याभ्यास किया और वि० सं० १६९८ में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ, तत्पश्चात् ये वृद्धिसागरसूरि के नाम से विख्यात हुए। अपने जीवनकाल में इन्होंने शत्रुंजय, तारंगा, गिरनार, राणकपुर, आबू आदि तीर्थों की यात्रायें की तथा विभिन्न धार्मिक विधि-विधानों का सम्यक् रूप से पालन किया। वि० सं० १७४७ में अहमदाबाद में इनका निधन हुआ। इनके निधन के समय इनके पास इनके विभिन्न शिष्य-यथा उपा० कांतिसागर, पं० क्षेमसागरगणि, नयसागरगणि, हितसागरगणि, वीरसागर, कीर्तिसागर आदि शिष्य उपस्थित थे। १३ वृद्धिसागरसूरि के पश्चात् उनके शिष्य लक्ष्मीसागरसूरि गच्छनायक बनाये गये। लक्ष्मीसागरसूरि के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती । वृद्धिसागरसूरिरास के अनुसार इनका पूर्वनाम निधिसागर था, वि०सं० १७४५ में वृद्धिसागरसूरि ने सूरि पद पर प्रतिष्ठित कर लक्ष्मीसागरसूरि नाम दिया था। ४ वि०सं० १७८८ में इन्होंने अपने एक शिष्य प्रमोदसागर को आचार्य पद प्रदान कर गच्छभार सौंप दिया। यही प्रमोदसागर कल्याणसागरसूरि के नाम से विख्यात हुए। १५ कल्याणसागरसूरि के बारे में इन्हीं के गुरुभ्राता क्षीरसागर के शिष्य माणिक्यसागर द्वारा रचित कल्याणसागरसूरिरास से विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । लक्ष्मीसागरसूरि कल्याणसागर सूरि क्षीरसागर | माणिक्यसागर (वि०सं० १८१७ फाल्गुन वदि ५ बुधवार को कल्याणसागरसूरिरास के रचनाकार) उक्त रास के अनुसार इन्होंने १० वर्ष की आयु में वि०सं० १७५२ में इन्होंने अपनी माता और अपने भाई के साथ लक्ष्मीसागरसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की। इनका नाम Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ प्रमोदसागर और इनके सहोदर भ्राता का नाम क्षीरसागर रखा गया। गुरु के साथ इन्होंने विभिन्न तीर्थस्थानों की यात्रायें की। वि०सं० १८०८ में अहमदाबाद में इन्होंने अपने एक शिष्य को आचार्य पद देकर पुण्यसागरसूरि नाम प्रदान किया जो वि०सं० १८११ में इनके निधन के पश्चात् गच्छनायक बने। १७ ८ सत्यसौभाग्य के पट्टधर इन्द्रसौभाग्य की परम्परा में हुए शांतसौभाग्य ने वि०सं० १७८७ मे गुजराती भाषा में अगडदत्तऋषिनीचौपाई " की रचना की। श्री देसाई ने शांतसौभाग्य की गुरु-परम्परा दी है १९, जो इस प्रकार है। : राजसागरसूरि वृद्धिसागरसूरि लक्ष्मीसागरसूरि 1 कल्याणसागरसूरि 1 ० सत्यसौभाग्य उपा० 1 उपा० इन्द्रसौभाग्य उपा० ० वीरसौभाग्य 1 प्रेमसौभाग्य I शांतसौभाग्य (वि०सं० १७८७ में पाटण में अगडदत्तऋषिनीचौपाई के रचनाकार) में शामलापार्श्वनाथ जिनालय, डभोई में संरक्षित आदिनाथ की धातु की प्रतिमा पर वि०सं० ० १८२८ फाल्गुन वदि २ शुक्रवार का एक लेख उत्कीर्ण१९अ है जिसमें पुण्यसागरसूरि का प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है। राधनपुर स्थित शांतिनाथ जिनालय के भोयरे एक मोटे पाषाणखण्ड पर ४१ पंक्तियों का एक शिलालेख उत्कीर्ण है। इस प्रशस्तिलेख की प्रथम १५ पंक्तियों में सागरगच्छ के प्रवर्तक राजसागरसूरि से लेकर पुण्यसागरसूरि तक के पट्टधरों की नामावली दी गयी है साथ ही वि०सं० १८३८ में पुण्यसागरसूरि द्वारा यहां जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करने की बात कही गयी है। प्रशस्ति की अगली पंक्तियों में जिनालय के निर्माता श्रावक परिवार का परिचय है। प्रशस्ति के अन्त में प्रशस्ति के रचनाकार अमृतसागर ने अपना परिचय देते हुए स्वयं को पुण्यसागरसूरि का शिष्य बतलाया है। पुण्यसागरसूरि के एक शिष्य ज्ञानसागर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य उद्योतसागर द्वारा रचित कुछ कृतियां मिलती हैं२२, जो इस प्रकार हैं : 10 Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८५ इक्कीसप्रकारीपूजा (रचनाकाल वि०सं० १८२३) अष्टप्रकारीपूजा (रचनाकाल वि०सं० १८२३) आराधना बत्तीसद्वारनो रास वीरचरित्रबेलि सम्यकत्त्वबारव्रतविवरण पुण्यसागरसूरि के पश्चात् उनके पट्टधर उदयसागर ने गच्छ का नायकत्त्व ग्रहण किया। शामला पार्श्वनाथ जिनालय, डभाई में संरक्षित चन्द्रप्रभ की धातु की एक प्रतिमा पर वि०सं० १८४५ फाल्गुन सुदि ३ का लेख उत्कीर्ण है। इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में उदयसागरसूरि का नाम मिलता है। बुद्धिसागरसूरि ३ ने इस लेख को वाचना दी है, जो इस प्रकार है : संवत् १८४५ फागुण सुद ३...............चन्द्रप्रभबिंबं श्री उदयसागरसूरिभिः।। यद्यपि इस लेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के गच्छ का निर्देश नहीं है, तथापि इस समय केवल सागरशाखा में ही उक्त नामधारी आचार्य हुए हैं अत: समसामयिकता की दृष्टि से उक्त प्रतिमालेख मे उल्लिखित उदयसागरसूरि को सागरशाखा के उदयसागरसूरि से अभिन्न माना जा सकता है। उदयसागरसूरि के समय में वि०सं० १८४२ में विवाहपटलबालावबोध और वि०सं० १८६३ में उपदेशमालाबालावबोध की प्रतिलिपि की गयी।२४ __उदयसागर के पश्चात् आनन्दसागर ने इस शाखा का नायकत्व ग्रहण किया। इनके बारे में हमें सागरशाखा की पट्टावली तथा कुछ प्रशस्तियों में नामोल्लेख के अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं मिलती। आनन्दसागरसूरि के पट्टधर शांतिसागरसूरि हुए। इनके भी प्रारम्भिक जीवन आदि के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती तथापि कुछ रचनाओं की प्रशस्तियों में इनका नाम मिलता है। तपागच्छीय मुनि क्षेमवर्धन द्वारा वि०सं० १८७०/ई०स० १८१४ में रचित शांतिदास अने वखतचंदसेठनो रास के अन्त में रचनाकार ने सागरशाखा के मुनिजनों की नामावली दी है जिसमें राजसागरसूरि से लेकर शांतिसागरसूरि तक का नाम मिलता है।२५ क्षेमवर्धन द्वारा ही वि०सं० १८७९/ई०स० १८२३ में रचित श्रीपालरास के अन्त में भी सागरगच्छ के नायक के रूप में इनका नाम मिलता है२६ - सागरगच्छ सोभाकर सुंदर, शांतिसागर सूरि रायो, तपागच्छ-विजयसंविग्न शाखा के प्रसिद्ध रचनाकार वीरविजय द्वारा वि०सं० १९०३ में रचित हठीसिंहनीसंघनु वर्णन अथवा हठीसिंहनी अंजनशलाकाना ढालिया में भी आचार्य शांतिसागरसूरि का प्रसंगवश नामोल्लेख हुआ है। ___ वि०सं० १८८९ से लेकर वि०सं० १९२१ तक के विभिन्न अभिलेखीय साक्ष्यों में शांतिसागरसूरि का नाम मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है : Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ _ आचार्य शांतिसागरसूरि के पश्चात् इस शाखा में कौन-कौन से मुनिजन हुए, अथवा उनके पश्चात् यह शाखा आगे चली या नहीं, इस बारे में जानकारी हेतु हमारे पास कोई भी साक्ष्य नहीं है। साक्ष्यों के अभाव में यह स्वीकार करना पड़ता है कि २०वीं शती के प्रथम चरण के पश्चात् इस शाखा का स्वतंत्र अस्तित्त्व समाप्त हो गया होगा और इसके अनुयायी तपागच्छ की किन्हीं अन्य शाखाओं में सम्मिलित हो गये होंगे। Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर निर्मित तपागच्छ-सागरशाखा (सागरगच्छ) के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की तालिका शांतिसागर दयासागर उपा० धर्मसागर लब्धिसागर उपा० मुक्तिसागर अपरनाम राजसागरसूरि वृद्धिसागरसूरि विनयसागर सत्यसौभाग्य कृपासागर लक्ष्मीसागरसूरि कांतिसागर क्षेमसागर नयसागर आदि इन्द्रसौभाग्य तिलकसागर क्षीरसागर कल्याणसागरसूरि वीरसौभाग्य हेमसौभाग्य माणिक्यसागर ज्ञानसागर पुण्यसागरसूरि प्रेमसौभाग्य उद्योतसागर उदयसागरसूरि शांतिसौभाग्य शांतिसागरसूरि आनन्दस Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ९. मोहनलाल दलीचद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ८४-८५. यहाँ पट्टावली का प्रारम्भ विजयसेनसूरि से दिया गया है। मुनि कल्याणविजयगणि, संपा०- पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ २१२-१४. संपा० - प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५३८. त्रिपुटीमहाराज, जैनपरम्परानो इतिहास, भाग ४, श्री चारित्रस्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६०, भावनगर १९८३ई०, पृष्ठ १३२-३३. "राजसागरसूरिनिर्वाणरास' रचनाकार तिलकसागर मुनि जिनविजय, संपा० - जैनऐतिहासिकगुर्जरकाव्यसंचय, प्रवर्तक श्रीकांति विजय जैन इतिहास माला, पुष्प ७, श्रीआत्मानन्दसभा, भावनगर १९२६ई०, पृष्ठ ४५-६७; राससार, वही, पृष्ठ २१-२७. वही, पृष्ठ ५२-५३. ८. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा०- जयन्तकोठारी, पृष्ठ २७४-७५. वही, पृष्ठ ३०५-३०६. द्रष्टव्य - संदर्भ क्रमांक ५. १०.अ. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३०७. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३५-३६. विजयधर्मसूरि, संपा०- ऐतिहासिकराससंग्रह,भाग ३, यशोविजयजैनग्रन्थमाला, भावनगर सं० १९७८, पृष्ठ ४८-५९ तथा मूलरास, पृष्ठ ४९-५६. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३३-३५. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ ५६. वही, पृष्ठ ५२-५३. वही, पृष्ठ ५६, पादटिप्पणी, मुनि जिनविजय, जैनऐतिहासिक........, पृष्ठ २५४-२६४; राससार, पृष्ठ १७०-७३. १७. वही, राससार, पृष्ठ १७३. १८-१९. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ५, नवीन संशोधित संस्करण, पृष्ठ ३३७-३८. १९अ. बुद्धिसागर, संपा०- जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३५. २०. जिनविजय, संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४६०, राधनपुर प्रशस्ति, पृष्ठ ३००-३०५. २१.. पुण्यसागरसूरीणां शिष्यैरमृतसागरैः। ११. Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ कृता प्रशस्ति: शस्तेयं विलसत्सर्वमंगला।। श्रियः सं० राधनपुर प्रशस्ति की अंतिम पंक्ति, मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, पृष्ठ ३०५. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ६, पृष्ठ १०९-११४. संपा० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३१, वि० सं० १८४३ और १८४५ के लेखों में भी प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उदयसागरसूरि का नाम मिलता है। द्रष्टव्य, वही, भाग १, लेखांक ४६, ५९. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ९, पृष्ठ ९५. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ६, पृष्ठ १८१-८४. वही, पृष्ठ १८५. वही, पृष्ठ २४८. Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-विजयाणंदसूरि शाखा तपागच्छ की विभिन्न शाखाओं में विजयानन्दसूरिशाखा अपरनाम आनन्दसूरिशाखा भी एक है । तपागच्छीय आचार्य विजयसेनसूरि के शिष्य रामविजय (बाद में विजयतिलकसूरि) इस शाखा के आदिम आचार्य माने जाते हैं। विजयतिलकसूरि के पट्टधर विजयाणंदसूरि हुए जिनकी शिष्यसंतति उनके नाम के आधार पर विजयाणंदसूरिशाखा या आणंदसूरिशाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस शाखा में विजयराजसूरि, विजयमानसूरि, विजयऋद्धिसूरि, विजयसौभाग्यसूरि, विजयलक्ष्मीसूरि आदि कई आचार्य हुए हैं। विजयानंद सूरिशाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये इससे सम्बद्ध मुनिजनों की अल्पसंख्या में प्राप्त रचनाओं की प्रशस्तियों तथा उनके समय में लिखी गयी विभिन्न रचनाओं की प्रतिलिपिप्रशस्तियों से पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। इसी प्रकार वीरवंशावली' ( रचनाकाल वि०सं० १९वीं शती का प्रारम्भ) और दीपविजय द्वारा रचित सोहमकुलपट्टावलीसज्झाय (रचनाकाल वि०सं० १८७७) से इस शाखा के इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है। संभवतः उक्त दोनों साक्ष्यों के आधार पर ही श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई और मुनिश्री कल्याणविजयगणि' ने इस शाखा के पट्टधर आचार्यों की एक नामावली प्रस्तुत की है। इस शाखा से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं जो वि०सं० १६७१ से लेकर वि०सं० १८६८ तक के हैं। यहाँ उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर इस शाखा के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत है । जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है वीरवंशावली और सोहमकुलपट्टावलीसज्झाय के अनुसार आचार्य विजयसेनसूरि ने अपने शिष्य विजयदेवसूरि को अपना पट्टधर नियुक्त किया था। इस समय आचार्य हीरविजयसूरि का शिष्य समुदाय - सागर और विजय- इन दो समुदायों में बंटा हुआ था। आचार्य विजयदेवसूरि का झुकाव सागरों की ओर देखकर उनके गुरु विजयसेनसूरि अत्यन्त क्षुब्ध हो गये और उन्होंने रामविजय नामक एक विद्वान् मुनि को आचार्य पद देकर विजयतिलकसूरि नाम रखा। इस प्रकार हीरविजयसूरि की शिष्यसंतति जो विजयसेनसूरि के समय तक प्रायः अखंड रूप से रही, अब औपचारिक रूप से दो भागों में विभाजित हो गयी। विजयदेवसूरि की शिष्य संतति से तपागच्छ की मूलपरम्परा आगे चली तथा विजयतिलकसूरि की शिष्यसंतति आगे चलकर विजयाणंदसूरिशाखा अपरनाम आणंदसूरिशाखा के नाम से जानी गयी। श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई और मुनि कल्याणविजयगणि ने इस शाखा के मुनिजनों की जो नामावली दी है, वह इस प्रकार है : आचार्य विजयसेनसूरि आचार्य विजयतिलकसूरि (वि०सं० १६५१ में जन्म; वि०सं० १६६२ में दीक्षा; वि०सं० १६७३ में आचार्य पद; वि०सं० १६७६ में मृत्यु) 1 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९० आचार्य विजयाणंदसूरि आचार्य विजयराजसूरि (वि०सं० १६४२ में जन्म; वि०सं० १६५१ में दीक्षा; वि०सं० १६७६ में आचार्य पद; वि०सं० १७११ में निधन) (वि० सं० १६७९ में जन्म; वि० सं० १६८९ में दीक्षा; वि० सं० १७०४ में आचार्यपद; वि० सं० १७४२ में स्वर्गस्थ) (वि० सं० १७०७ में जन्म; वि०सं० १७१९ में दीक्षा; वि० सं० १७३१ में उपाध्यायपद; वि०सं० १७३६ में आचार्य पद; वि०सं० १७७० में आचार्य विजयमानसूरि स्वर्गस्थ) आचार्य विजयऋद्धिसूरि दीक्षा; (वि० सं० १७२७ में जन्म; सं० १७४२ में विसं० १७६६ में आचार्य पद; वि०सं० १७९७ में निधन) विजयसौभाग्यसूरि विजयप्रतापसूरि विजयलक्ष्मीसूरि (वि० सं० १७९७ में विजयतिलकसूरि (वि० सं० १८३७ में स्वर्गस्थ) जन्म; वि०सं०१८१४ में दीक्षा; वि०सं० १८५८ में स्वर्गस्थ) विजयदेवेन्द्रसूरि (वि० सं० १८५७ में आचार्यपद; वि०सं० १८६१ में स्वर्गवास) विजयमहेन्द्रसूरि (वि० सं० १८२७ में दीक्षा; वि०सं० १८६१ में आचार्यपद; । वि० सं० १८६५ में स्वर्गस्थ) विजयसमुद्रसूरि (वि०सं० १८६५ में आचार्य पद) इन्हीं के समय वि०सं० १८७७ में दीपविजय ने सोहमकुलपट्टावली सज्झाय की रचना की थी। विजयधनेश्वरसूरि (वि०सं० १८९३) प्रतिमालेख विजयविद्यानन्दसूरि (वि०सं० १९११) लेख वीरवंशावली तथा सोहमकुलपट्टावलीसज्झाय में इस शाखा के पट्टधर आचार्यों की विभिन्न तिथियों में प्राय: मतभेद है किन्तु उनके पट्टक्रम के बारे में दोनों ही साक्ष्यों में कोई भी अन्तर नहीं है। विजयतिलकसूरि-जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं वि०सं० १६५१ में इनका जन्म हुआ था; वि०सं० १६६२ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और रामविजय नाम प्राप्त किया। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वि०सं० १६७३ में इन्हें सिरोही में आचार्यपद प्राप्त हुआ और वि०सं० १६७६ में इनका निधन हुआ। यह सूचना वीरवंशावली से ज्ञात होती है। आचार्य हीरविजयसूरि की परम्परा में हुए दर्शनविजय द्वारा रचित विजयतिलकसूरिनिर्वाणरास (रचनाकाल वि०सं० १६९७) से भी इनके बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। वि०सं० १६७४ में जीवविजय द्वारा लिखित शांतिनाथस्तवन', वि०सं० १६७४ में ही संघविजयगणि के शिष्य वृद्धिविजय द्वारा लिखी गयी श्राद्धप्रतिक्रमणवृत्ति, वि०सं० १६७५ में देवविजय के शिष्य मानविजय द्वारा लिखित सप्तपदार्थी और वि०सं० १६७५ चैत्र सुदि २ को लिखी गयी मृगावतीआख्यान की प्रति में विजयतिलकसरि का सादर उल्लेख करते हुए उक्त ग्रन्थों की प्रतिलिपियों को उनके काल में लिखा बतलाया गया है। आदिनाथ जिनालय, सिरोही में प्रतिष्ठापित हीरविजयसूरि की प्रतिमा पर वि०सं० १६७१ का एक लेख उत्कीर्ण है। इस लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में विजयसेनसूरि के शिष्य विजयतिलकसूरि का नाम मिलता है। मुनि जयन्तविजयजी१२ ने इस लेख की वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : सं० १६७१ वर्षे वै० शु० ३ बुधे भट्टा० श्रीहीरविजयसूरिमूर्तिः प्राग्वाटज्ञातीय सा पुजा भा०वा० उछरगदेनाम्न्या स्वसुत तेजपाल तत्सुत सा० वस्तुपाल वर्धमान प्रमुख श्रेयोर्थं कारित (ता) प्रति: तपागच्छे भ० श्रीविजयसेनसूरि पट्टधारि श्रीविजयतिलकसूरिभिः श्रीरस्तु संघस्य।। यदि मुनिश्री की उक्त वाचना सही माना जाये तो वीरवंशावली द्वारा दी गयी विजयतिलकसूरि को आचार्यपद प्राप्ति की उक्त तिथि (वि०सं० १६७३) की प्रामाणिकता संदिग्ध हो जाती है। वसन्तगढ़ के एक जिनालय में एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण वि०सं० १६७५ का एक लेख मुनि जयन्तविजयजी'३ को प्राप्त हुआ है। उन्होंने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है : ॐ॥संवत् १६७५ वर्षे तपागच्छभट्टारकपुरंदर भट्टारक श्रीश्रीश्री श्रीश्रीश्रीश्रीविजयतिलकसूरिविजय (यिनि) राज्यमाने महोपाध्याय श्री ५ श्रीसोमविजयगणि शिष्यपंडितश्री ३ अमृतविजयगणि नेमविजय मु० कनकविजय चवरडिया नगरे चोमासुं रहीया श्रीश्रीशांतिनाथ रा कृता।। उक्त लेख में उल्लिखित मुनिजन आचार्य विजयतिलकसूरि के आज्ञानुवर्ती माने जा सकते हैं। विजयाणंदसूरि-विजयतिलकसूरि के निधन के पश्चात् ये उनके पट्टधर बने। इन्हीं के नाम पर तपागच्छ की इस शाखा का नामकरण विजयाणंदसूरिशाखा या आणंदसूरिशाखा हुआ प्रतीत होता है। उपा० मेघविजय के प्रशिष्य और लब्धिविजय के शिष्य भाणविजय (भानुविजय) द्वारा रचित विजयाणंदसूरिनिर्वाणसज्झाय (रचनाकाल वि०सं०१७११) से इनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। विजयाणंदसूरि द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है किन्तु इनकी परम्परा के मुनिजनों द्वारा Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ कतिपय रचित और प्रतिलिपि की गयी विभिन्न ग्रन्थों की प्रतियों की प्रशस्तियों में इनका सादर उल्लेख मिलता है। विजयाणंदसूरि के प्रशिष्य तेजविजय ने वि०सं० १६८२/ई०स० १६२६ में शांतिनाथस्तव५ की रचना की। कृति के अन्त में उन्होंने अपने गुरु-प्रगुरु का सादर उल्लेख किया है : विजयाणंदसूरि विजयविबुध तेजविजय (वि०सं० १६८२/ई०स० १६२६ में शांतिनाथस्तव के रचनाकार) वि०सं० १६८६/ई०स० १६३० में विजयाणंदसूरि के एक श्रावक शिष्य वाना ने जयानन्दरास१६ की रचना की। कृति के अन्त में रचनाकार ने अपने गुरु का सादर स्मरण किया है। परिशिष्टपर्व की वि० सं० १६९६/ई०स० १६३७ की लिखी गयी प्रति की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसके प्रतिलिपिकार कनकविजय, शांतिविजय, शिवविजय आदि विजयाणंदसरि के शिष्य थे। इन्होंने स्वपठनार्थ उक्त कृति की प्रतिलिपि की थी। शांतिविजय के शिष्य मानविजय हुए जिनके द्वाग रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं। १७५ इनका विवरण इस प्रकार है : १. भवभावना बालावबोध (वि० सं० १७२५) २. सुमतिकुमारस्तव (वि० सं० १७२८ के आसपास) गुरुतत्त्वप्रकाश (वि० सं० १७३१) धर्मसंग्रह (वि०सं० १७३१) उत्तराध्ययनबालावबोध (वि० सं० १७४१) नयविचाररास चौबीसी चौबीस जिननमस्कार सिद्धचक्रस्तवन १०. गुणस्थानगर्भित शांतिनाथविज्ञप्तिरूपस्तव ११. आठमदसज्झाय १२. श्रावकना २१ गुणसज्झाय १३. श्रावकबारव्रत सज्झाय वि०सं० १६९८ के तीन प्रतिमालेखों में मानविजय को विजयाणंदसूरि के शिष्य के रूप में दर्शाया गया है जबकि अपनी विभिन्न कृतियों की प्रशस्तियों में मानविजय ने स्वयं को विजयाणंदसूरि का प्रशिष्य और शांतिविजय का शिष्य बताया है: विजयाणंदसूरि voie शांतिविजय Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२३ मानविजय (रचनाकार) वि०सं० १७३२/ई०स० १६७६ में लिखी गयी सुबोधिकावृत्ति की प्रशस्ति१८ में प्रतिलिपिकार ने स्वयं को विजयाणंदसूरि का प्रशिष्य और विजयगणि का शिष्य कहा है। विजयाणंदसूरि विजयगणि गुणविजय (वि० सं० १७३२/ई०स० १६७६ में सुबोधिका वृत्ति के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १६८३ फाल्गुन वदि ४ के तीन प्रतिमालेखों ९ तथा वि० सं० १६९१ के एक प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में विजयाणंदसूरि का नाम मिलता है। इसी प्रकार वि०सं० १६९८ के तीन लेखों२१ में इनके शिष्य मानविजय और प्रशिष्य अमृतविजय का नाम मिलता है। वि० सं० १६९८ के ही दो अन्य लेखों२२ में केवल अमृतविजय और उनके प्रगुरु विजयाणंदसूरि का नाम मिलता है। प्रसिद्ध श्रावक कवि ऋषभदास ने स्वरचित नवतत्त्वरास (वि० सं० १६७६), हीरविजयसूरिनोबारहबोलनोरास (वि०सं० १६८४), मल्लिनाथरास (वि०सं० १६८५) आदि की प्रशस्तियों में उन्हें विजयाणंदसूरि के काल में रचा बताया है।२३ यही बात वि०सं० १६७९ में संघविजय द्वारा रचित अमरसेनवयरसेनराजर्षिआख्यान की प्रशस्ति४, वि०सं० १६७८ में कीर्तिविजय द्वारा प्रतिलिपित सामाचारी की प्रशस्ति२५, वि०सं० १६८८ में अमृतविजय द्वारा प्रतिलिपित विचारसारप्रकीर्णक की प्रशस्ति२६ और उनके शिष्य मुक्तिविजय द्वारा लिखित वि०सं० १६९४ की प्राकृतनाममाला की प्रशस्ति में भी कही गयी है। वि०सं० १६९७-१७३५ के मध्य भावविजय द्वारा रचित विभिन्न कृतियों की प्रशस्तियों में विजयतिलकसूरि और उनके पट्टधर विजयाणंदसूरि का सादर उल्लेख मिलता है२८ जिससे स्पष्ट होता है कि ये उनके आज्ञानुवर्ती रहे होंगे। विजयराजसूरि-वि०सं० १७११ में विजयाणंदसूरि के निधन के उपरान्त इन्होंने तपागच्छ की इस शाखा का नायकत्त्व ग्रहण किया। इनके द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती है। वि०सं० १७०६ से वि० सं० १७२१ तक के प्रतिमालेखों में प्रतिमा-प्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है : क्रमांक वि०सं० तिथि/मिति प्राप्तिस्थान संदर्भग्रन्थ १. १७०६ ज्येष्ठ सुदि १३ रविवार कुन्थुनाथ जिनालय, बुद्धिसागर, संपा०, मांडवीपोल, खंभात जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ६४८. २. १७०६ ज्येष्ठ......गुरुवार नेमिनाथ जिनालय, पूरनचन्दनाहर, संपा०, मुर्शिदाबाद जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १०१४. Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ३. १७१० ज्येष्ठ सुदि ६ गुरुवार शांतिनाथ जिनालय, नदियाड ४. बालावसही, शत्रुजय १७१० ज्येष्ठ सुदि ६ गुरुवार बुद्धिसागर, प्रोक्त. भाग २, लेखांक ३८१. मुनि कांतिसागर, संपा०, शजयवैभव,लेखांक ३०६ए तथा मुनिजिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २. लेखांक ३१. ५. १७१० ज्येष्ठ सुदि ६ घर देरासर, लखनऊ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६१४. १७१० पौष वदि ६ गुरुवार सुमतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, सीनोर भाग २, लेखांक ३६८. ७. १७२१ ज्येष्ठ सुदि ३ रविवार अरनाथ जिनालय, वहीं, भाग २, जीरारवाड़ो, खंभात लेखांक ७७१. ८. १७२१ ऋषभदेव का लघुप्रासाद, मुनि जयन्तविजयजी, संपा०, अचलगढ़ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग ५), लेखांक ४८५. एवं मुनि जिनविजयजी, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २६९. १७२१ गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, कोलर लेखांक २४३. १०. १७२१ अजितनाथ जिनालय, वही, लेखांक २५७. सिरोही ११. १७२१ वीरजिनालय, रीजरोड, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ९९०. जीवविचारप्रकरण२९ की वि०सं० १७१७ की और भवभावनास्तवक की वि०सं० १७२६ में लिखी गयी प्रतियों की प्रशस्तियों में विजयराजसूरि का सादर उल्लेख मिलता है। ठीक यही बात वि०सं० १७३२ में रचित अतिचारमयबत्तीस श्रीमहावीरस्तव? और रतनपालरास२ (वि०सं० १७३२) की प्रशस्तियों में भी कही गयी है। कर्मग्रन्थबालावबोध की एक प्रति मुनिराज श्री पुण्यविजयजी के संग्रह में संरक्षित३ है। इस प्रति की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसे विजयराजसूरि के काल में लिखा गया था, परन्तु रचनाका : हीं दिया गया है। श्रीअम्बालाल शाह ने इसे वि०सं० १६५० में लिखित बतलाया है जो वस्तुतः भ्रामक, और सत्यता से परे है। विजयराजसूरि के शिष्य ऋद्धिविजय द्वारा रचित वरदत्तगुणमंजरीरास (वि०सं० १७०३) और रोहिणीरास (वि० सं० १७१६) Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामक कृतियां मिलती हैं।३४अ वि० सं० १७४२ के बाद विजयराजसूरि का निधन हुआ। विजयराजसूरि के एक अन्य शिष्य दानविजय द्वारा वि० सं० १७५० में कल्पसूत्र पर रची गयी दानदीपिका नामक कृति प्राप्त होती है ऐसा मुनि कांतिसागर जी ने उल्लेख किया विजयराजसूरि ऋद्धिविजय (वि० सं० १७०३ में वरदत्तगुणमंजरीरास एवं वि०सं० १७१६ में रोहिणीरास के कर्ता) दानविजय (वि०सं० १७५० में कल्पसूत्र-दानदीपिका के कर्ता) विजयमानसूरि-वि०सं० १७४२ में विजयराजसूरि के निधन के पश्चात् विजयमानसूरि ने इस शाखा का नायकत्त्व ग्रहण किया। इनके द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती है। वि०सं० १७७० में इनका देहान्त हुआ। वि०सं० १७५१ में कल्पसूत्रस्तवक३६ और वि०सं० १७५७ में संग्रहणीसूत्र के प्रतिलिपिकार महिमाविजय ने स्वयं को विजयमानसूरि का शिष्य बतलाया है। वि०सं० १७७६ के आस-पास इनके शिष्य आनन्दविजय ने क्षेत्रसमास पर बालावबोध की रचना की।३८ वि०सं० १७९५ में भाष्यत्रय के प्रतिलिपिकार पं० माणिक्यविजय ने स्वयं को पं० हर्षविजय का शिष्य और विजयमानसूरि का प्रशिष्य कहा है: विजयमानसूरि पं० हर्षविजय महिमाविजय (वि० सं० १७५१ में कल्पसूत्रस्तवक और वि०सं० १७५७ में संग्रहणीसूत्र के प्रतिलिपिकार) आनन्दविजय (वि०सं०१७७६ के आसपास क्षेत्रसमासबालावबोध के रचनाकार) पं० माणिक्यविजय (वि०सं० १७९५ में भाष्यत्रय के प्रतिलिपिकार) विजयऋद्धिसूरि-वि०सं० १७७० में विजयमानसूरि के निधन के पश्चात् विजयऋद्धिसरि उनके पट्टधर बने। सोहमकुलपट्टावली में इनके मृत्यु की तिथि वि०सं० १७९७ दी गयी है।३९ वि०सं० १७९५ में इनके द्वारा अपने गुरु की चरणपादुका स्थापित करने का उल्लेख मिलता है। मुनि जयन्तविजयजी ने इस लेख की वाचना निम्नानुसार दी है : ___ सं० १७९५ भ० हीरविजयसूरि भ० विजयसेनसूरि भ० विजयतिलकसूरि भ० विजयाणंदसूरि भ० विजयराजभूरि भ० विजयमानसूरीणां पादुका प्रतिष्ठिता श्रीविजयऋद्धिसूरिभिः इसी प्रकार वि० सं० १७९८ वैशाख सुदि १ सोमवार के एक प्रतिमालेख, २ . Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है और आज सुमतिनाथ जिनालय, माधोलालबाबू की धर्मशाला, पालीताना में प्रतिष्ठापित है, प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में विजयऋद्धिसूरि का नाम मिलता है। श्री पूरनचन्द नाहर ने इस लेख की वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : सं० १७९८ वैशाख सुदि १ सो (म) शा ० खिमचंद भार्या विश्व श्री अनन्त बिंबं प्र० भ० श्री विजयऋद्धि सूरि । वीरवंशावली में इनके मृत्यु की तिथि वि०सं० १८०६ बतलायी गयी है २ जो सत्य प्रतीत होती है। वि०सं० १७८० में चौबीसी के रचनाकार ज्ञानविजय ने स्वयं को विजयऋद्धिसूरि का प्रशिष्य और हस्तिविजय का शिष्य कहा है। ४३ विजयऋद्धिसूरि 1 हस्तिविजय 1 ज्ञानविजय (वि०सं० १७८० / ई०स०१७२४ में चौबीसी के रचनाकार) इन्हीं के काल में वि०सं० १७८३ में मानविजय की परम्परा के जीतविजय ने चन्द्रकेवलीरास की प्रतिलिपि की। विजयसौभाग्यसूरि - विजयऋद्धिसूरि के पश्चात् विजयसौभाग्यसूरि उनके पट्टधर बने। इनके बारे में सोहमकुलपट्टावलीरास से ज्ञात होता है कि वि०सं० १८१४ में इनका निधन हुआ। * भरुच के निकट स्थित सीनोर नामक स्थान स्थित विजयलक्ष्मीसूरि की देहरी के पास इनकी चरणपादुका स्थापित है। इस पर वि०सं० १८१५ चैत्र सुदि १० का लेख उत्कीर्ण है। बुद्धिसागरसूरि ६ ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है: सं० १८१५ वर्षे चैत्र सुदि १० वीरचंद भ० श्रीविजयसौभाग्यसूरीश्वरपादुकेभ्यो नमः सीनोरनगरे समस्तसंघेन का० श्रीकल्याणमस्तु शिवमस्तु || इनके बारे में विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है। ४७ विजयऋद्धिसूरि के द्वितीय पट्टधर विजयप्रतापसूरि हुए। मुनि कल्याणविजय जी के अनुसार इनका निधन भी वि०सं० १८१४ में हुआ। इसके अलावा इनके बारे में कोई विवरण नहीं मिलता। ठीक यही बात इनके पट्टधर विजयउदयसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। विजयसौभाग्यसूरि के शिष्य एवं पट्टधर विजयलक्ष्मीसूरि हुए। वि०सं० १८१४ में इन्होंने गुरु से दीक्षा ग्रहण की और इसी वर्ष विजयसौभाग्यसूरि का निधन भी हो गया। चूंकि सोहमकुलपट्टावलीरास में विजयऋद्धिसूरि के दोनों पट्टधरों - विजयसौभाग्यसूरि और विजयप्रतापसूरि की मृत्यु की तिथि वि०सं० १८१४ बतलायी गयी है और विजयलक्ष्मीसूरि का दीक्षित होना भी इसी वर्ष में बतलाया गया है। ४९ यदि उक्त तथ्य को सही माना जाये तो यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि विजयप्रतापसूरि के पट्टधर विजयउदयसूरि के Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ sin x s wg v नायकत्त्व को विजयसौभाग्यसूरि के आज्ञानुवर्ती मुनिजनों ने भी स्वीकार किया होगा और जब वि०सं० १८३७ में विजयउदयसूरि का निधन हो गया तब उस समय तक विजयलक्ष्मीसूरि भी काफी वयस्क हो चुके रहे थे और उन्होंने ही अपने गुरु विजयसौभाग्यसूरि और उनके गुरुभ्राता विजयप्रतापसूरि के अनुयायी मुनिजनों का नेतृत्त्व संभाला होगा। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि विजयऋद्धिसूरि के पश्चात् इस शाखा में जो भेद पड़ चुका था, वह विजयलक्ष्मीसूरि के समय में समाप्त हो गया। विजयलक्ष्मीसूरि द्वारा संस्कृत और गुजराती भाषा में रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं।" १. ज्ञानदर्शनचारित्र संवादरूपवीरस्तव (रचनाकाल वि०सं० १८२७) २. षट्अष्टह्निकस्तवन (वि० सं० १८३४) उपदेशप्रासाद-वृत्तिसहित (वि०सं० १८४३) वीसस्थानकपूजास्तवन (वि० सं० १८४५) चौबीसी ज्ञानपंचमी (अथवा सौभाग्यपंचमी) देववंदन रोहिणीसज्झाय भगवतीसज्झाय ९. मृगापुत्रसज्झाय १०. ज्ञानपंचमीसज्झाय वि०सं० १८४४ वैशाख सुदि १० के एक प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में विजयलक्ष्मीसूरि का नाम मिलता है। मुनि जिनविजय जी ने इस लेख की वाचना दी है५१, जो इस प्रकार है। श्री पार्श्वनाथ भी डभंजन जी संवत् १८४४ वैशाख सु० १० गुरौ श्रीवारेजावास्तव्यसमस्तसंघेन कारिता श्री विजयलक्ष्मीसूरिभिः प्र०॥ वि० सं० १८५८ या १८५९ में इनकी मृत्यु हुई। सीनोर ग्राम में इनकी चरणपादुका स्थापित है जिसपर वि० सं० १८६८ का एक लेख उत्कीर्ण है।" लेख का मूलपाठ इस प्रकार है : सं० १८६८ श्रावण व० १२ बुध श्रीसीनोरग्रामे समस्तसंघेन का० श्रीविजयलक्ष्मीसूरिपादुकेभ्यो नमः॥ विजयलक्ष्मीसरि के पश्चात् विजयदेवेन्द्रसरि, विजयमहेन्द्रसूरि और विजयसमुद्रसूरि ने क्रमश: इस शाखा का नेतृत्त्व किया। सोहमकुलपट्टावलीरास में इनका विवरण मिलता है। विजयसमुद्रसूरि के समय में ही कविराज दीपविजय ने उक्त रास की वि०सं० १८७७ में रचना की-३ थी। दीपविजय द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ प्राप्त होती हैं।५४ ।। विजयसमुद्रसूरि के पट्टधर विजयधनेश्वरसूरि हुए। श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाई ने वि०सं० १८९३ के एक प्रतिमालेख में इनका नाम मिलने का उल्लेख किया है।५५ परन्तु वह प्रतिमालेख कहां से प्राप्त हुआ है, उक्त लेख कहां प्रकाशित है, इन बातों की उन्होंने कोई स्पष्ट रूपसे जानकारी नहीं दी है। बावन जिनालय, पेथापुर में अजितनाथ की धातु की एक प्रतिमा संरक्षित है जिसपर वि०सं० १८९३ माघ सुदि १० बुधवार का लेख उत्कीर्ण है। यह सम्भवत: वही प्रतिमा हो Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ सकती है जिसका श्रीदेसाई ने उल्लेख किया है । ६ वस्तुतः विजयलक्ष्मीसूरि के पश्चात् इस शाखा में कोई प्रभावशाली मुनि या आचार्य नहीं हुए अतः शीघ्र ही इसका अस्तित्त्व समाप्त हो गया प्रतीत होता है। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजयसेनसूरि विजयदेवसूरि (तपागच्छ-मुख्यपरम्परा) विवुधविजय तेजविजय विजयतिलकसूरि (विजयाणंदसूरिशाखा के.आदिपुरुष) विजयाणंदसूरि कनकविजय शांतिविजय शिवविजय मानविजय अमृतविजय कुंवरविजयगणि विजयराजसूरि (पट्टधर) गुणविजय ऋद्धिविजय दानविजय विजयमानसूरि (पट्टधर) महिमाविजय आनन्दविजय पं. हर्षविजय विजयऋद्धिसूरि (पट्टधर) विजयसौभाग्यसूरि विजयप्रतापसूरि हस्तिविजय विजयलक्ष्मीसूरि विजयउदयसूरि ज्ञानविजय विजयदेवेन्द्रसूरि विजयमहेन्द्रसूरि विजयसमुद्रसूरि विजयधनेश्वरसूरि विजयविद्यानन्दसूरि Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ मुनि जिनविजय, संपा० - विविधगच्छीय पट्टावली संग्रह, पृष्ठ १६०-२२७. मुनि ज्ञानविजय, संपा०- श्रीपट्टावलीसमुच्चय, भाग २, श्रीचारित्रस्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४४, अहमदाबाद १९५०ई०स०, पृष्ठ ९६-१२०. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा०- डॉ० जयन्त कोठारी, पृष्ठ ८९-९३. संपा०-पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ २०५-२११. पूर्वोक्त, पृष्ठ २२४. मुनि विद्याविजयजी, संपा०- ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग ४, भावनगर वि०सं० १९७७ मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ १८० - १८१. श्री अमृतलाल मगनलाल शाह, संपा०- प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, पृष्ठ १८३, प्रशस्तिक्रमांक ७२६. वही, भाग २, पृष्ठ १८५, प्रशस्तिक्रमांक ७३२. वही, भाग २, पृष्ठ १८४, प्रशस्तिक्रमांक ७३१. मुनि जयन्तविजय, संग्रा०/संपा०, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक २५४. वही, लेखांक ४४७. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ १८८-८९. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ २४८-४९. वही, भाग ३, पृष्ठ २६८-७०. श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक २७३, पृष्ठ २०३. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ ३५९-६५. प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक ९२६, पृष्ठ २४६. बुद्धिसागरसूरि, संपा० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ६०९, भाग २, लेखांक २५४, ५८६. श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा, संपा०-बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १८२७. मुनि जयन्तविजय, संग्रा०-संपा०- अबुर्दप्राचीनजैनलेखसंदोह, लेखांक ४७८,४७९,४८०. वही, लेखांक ४७६-४७७. १५. १६. १७. १७अ. १८. २२. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३. २४. २५. २६. ३०० देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ २३-७९. वही, भाग ३, पृष्ठ १५७. प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक ७४६, पृष्ठ १८७. २७. २८. २९. A.P. Shah, Catalogue of Sanskrit......, Part-I, No. 3650, P-203. प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक ८९२, पृष्ठ २३९. ३०. ३१-३२. शीतिकंठ मिश्र, हिन्दीजैनसाहित्यका इतिहास, मरु-गुर्जर, भाग ३, पार्श्वनाथ विद्यापीठ ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ९१, वाराणसी १९९७ ई० स०, पृष्ठ ४७३, ५३१. ३३. A.P. Shah, Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss...., Part-I, No. 3157, P-173. Ibid, P-404-405. ३५. ३६. ३७. ३८. ३९. ४०. A. P. Shah, Ed., Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss. Muniraj Shree Panya Vijayaji's Collection, Part-I, No. 3343, P-189. प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक ७३१, पृष्ठ २०५. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ ३२२-३२९. ३४. ३४अ. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ ७४-७५. मुनि कांतिसागर, शत्रुंजयवैभव, पृष्ठ २१२. प्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक ९८८, पृष्ठ २६०. वही, भाग २, प्रशस्तिक्रमांक १०११, पृष्ठ २६६. देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ९७४. पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, पृष्ठ १००. मुनि जयन्तविजय, अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक २५९. पूरनचंद नाहर, संग्रा०: संपा०- जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७४५. विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ २२७. देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ५, संपा०- जयन्तकोठारी, पृष्ठ ३१०-११. वही, भाग ४, पृष्ठ ४००. ५०. ५१. ४१. ४२. ४३. ४४. ४५. ४६. पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, पृष्ठ १०१. जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ २०६. ४७. ४८-४९. पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, पृष्ठ १०१. लेखांक ३७१. देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ६, पृष्ठ १२२-१२५. प्राचीन जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५३४. Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०१ ५२. बुद्धिसागर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३७२ श्री विजयानंदसूरि पटधारी, समुद्रसूरि गच्छराज; तस राजें स्तवना कीधी, दिनदिन चढत दिवाजा रे. मु०२० संवत अढार सत्योत्तर (१८७७) वरसे, शक सत्तर बेहेताल; श्री सुरत बंदिरमें गाई, सोहम कुलगणमाल रे. मु० २१ पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, पृष्ठ ११९. वही, आमुख, पृष्ठ ४-५.. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ९३. बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ७१० - ५४. ५६. Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-राजविजयसूरिशाखा अपरनाम रत्नशाखा __तपागच्छ की नामशेष शाखाओं में राजविजयसूरि शाखा अपरनाम रत्नशाखा भी एक है। विजयराजसूरि इस शाखा के आदिपुरुष कहे जा सकते हैं और उनके शिष्य एवं पट्टधर रत्नविजय से यह शाखा रत्नशाखा के नाम से भी विख्यात् हुई। राजविजयसूरि - पट्टावलीगतविवरणानुसार वि०सं० १५६४ में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम देवदत्त और माता का नाम देवलदेवी था। इनका बचपन का नाम रामकुमार था। वि० सं० १५७१ में इन्होंने उपकेशगच्छ में दीक्षा ली और वि०सं० १५८४ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होकर उपकेशगच्छ की परम्परानुसार देवगुप्तसूरि के पट्टधर के रूप में कक्कसूरि नाम प्राप्त किया। इनकी परम्परा में हुए उदयरत्न नामक सुप्रसिद्ध रचनाकार द्वारा रचित भावरत्नसूरिप्रमुखपांचपाटवर्णनगच्छपरम्परारास के अनुसार इन्होंने महमूद नामक शासक की बीबी का सर्पदंश दूरकर उसे स्वस्थ किया था। इसके अलावा इन्होंने अनेक चमत्कारों से उसे प्रभावित किया जिससे प्रसन्न होकर उसने इन्हें राजवल्लभसूरि नाम दिया। वि०सं० १६१३ में इन्होंने क्रियोद्धार कर के सम्पूर्ण परिग्रह त्याग दिया और वि०सं० १६१५ में तपागच्छीय आचार्य आनन्दविमलसूरि के पास योगोद्वहन कर राजविजयसूरि नाम प्राप्त किया। उस समय यह भी निश्चित हुआ कि आनन्दविमलसूरि के पट्टधर विजयदानसूरि होंगे तथा राजविजयसूरि युवराज पद पर रहेंगे और समय आने पर विजयदानसूरि के पट्टधर होगें। आनन्दविमलसूरि के निधन के बाद विजयदानसूरि उनके पट्टधर हुए किन्तु उन्होंने बाद में एक बालक को दीक्षित कर हीरहर्ष नाम दिया और उसे अपना पट्टधर घोषित कर दिया। यही हीरहर्ष बाद में आचार्य पद पर हीरविजयसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए और राजविजयसूरि ने उनसे अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। वि०सं० १६२४ में झींझुवाड़ा में इनका निधन हुआ। तत्पश्चात् इनके शिष्य रत्नविजय को तपागच्छ-कमलकलशशाखा के आचार्य लक्ष्मीरत्नसूरि ने सूरि पद प्रदान कर राजविजयजी का पट्टधर घोषित किया। इसी समय निश्चित किये गये शर्त के अनुसार इस शाखा के सभी मुनिजनों के रत्लान्त नाम रखे जाने लगे और इसका एक नाम रत्नशाखा भी प्रचलित हो गया। रत्नविजयसूरि के पश्चात् इस शाखा में हीररत्नसूरि, जयरत्नसूरि, भावरत्नसूरि, दानरत्नसूरि, मुक्तिरत्नसूरि आदि कई प्रभावशाली आचार्य हो चुके हैं। सुप्रसिद्ध रचनाकार उदयरत्न, हंसरत्न, हर्षरत्न आदि भी तपागच्छ की इसी शाखा से सम्बद्ध थे। इस शाखा के विभिन्न मुनिजनों द्वारा बड़ी संख्या में अनेक रचनाओं की प्रतिलिपियां तैयार की गयीं, जिनकी प्रशस्तियों में इस शाखा के विभिन्न मुनिजनों का उल्लेख मिलता है जो इस शाखा के इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इस शाखा की एक पट्टावली भी मिलती है, जो विक्रम सम्वत् की २०वीं शती में रची गयी प्रतीत होती Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०३ है। इसमें राजविजयसूरि से लेकर अंतिम पट्टधर भाग्यरत्नसूरि तक का नाम मिलता है। इसके रचनाकार कौन हैं! यह कब और कहां रची गयी है, इस बारे में कोई सूचना नहीं मिलती। फिर भी इस शाखा के मुनिजनों की नामावली और उनसे सम्बद्ध तिथियों की जानकारी के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है। इस शाखा से सम्बद्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का नितान्त अभाव है, अतः उदयरत्न द्वारा रचित भावरत्नसूरिप्रमुखपांचपाटवर्णनगच्छपरम्परारास, ग्रन्थप्रशस्तियां और पुस्तकप्रशस्तियां एवं इस शाखा की एकमात्र उपलब्ध पट्टावली, जिसका ऊपर उल्लेख आ चुका है, को तपागच्छ की इस शाखा के इतिहास के अध्ययन का आधार बनाया गया है। मोहनलाल दलीचंद देसाई और मुनि कल्याणविजय जी ने इस शाखा की पट्टावली का सार दिया है जिसके अनुसार इससे सम्बद्ध आचार्यों का क्रम इस प्रकार है : राजविजयसूरि ( रत्नशाखा के आदिपुरुष) 1 रत्नविजयसूरि (वि०सं० १६२४ में सूरि पद; वि०सं० १६७५ में निधन ) हीररत्नसूरि (वि० सं० १६६१ में आचार्य पद, वि०सं० १६७५ में भट्टारकपद; वि०सं० १७१५ में स्वर्गस्थ ) जयरत्नसूर भावरत्नसूर दानरत्नसूर (वि० सं० १६९९ में राजनगर में आचार्यपद; वि०सं० १७१५ में भट्टारकपद; वि०सं० १७३४में स्वर्गस्थ ) (वि० सं० १७३४ में भट्टारकपद; वि०सं० १७७२ में स्वर्गस्थ ) (वि० सं० १७७२ में भट्टारकपद; वि०सं० १८२४ में स्वर्गस्थ ) कीर्तिरत्नसूरि I मुक्तिरत्नसूरि (वि०सं० १८७४ में सूरिपद; वि०सं० १८७६ में निधन ) I पुण्योदयरत्नसूरि (विसं० १८७६ में सूरिपद, वि०सं० १८९० में स्वर्गस्थ ) T अमृतरत्नसूरि (विसं० १८९० में सूरिपद) चन्द्रोदयरत्नसूरि 1 सुमतिरत्नसूर भाग्यरत्नसूरि Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ मुनि कल्याणविजय जी ने जयरत्नसूरि के पट्टधर के रूप में हेमरत्नसूरि का नाम दिया है, जबकि प्रशस्तियों में जयरत्नसूरि के पट्टधर के रूप में भावरत्नसूरि का ही नाम मिलता है। मुनिश्री के उक्त कथन का क्या आधार है? यह ज्ञात नहीं होता। रत्नशाखा के आदिपुरुष राजविजयसूरि और उनके पट्टधर रत्नविजयसूरि तथा रत्नविजयसूरि के पट्टधर हीररत्नसूरि द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है। ठीक यही बात इस शाखा के अन्य पट्टधरों के बारे में भी कही जा सकती है। किन्तु इस शाखा के विभिन्न रचनाकारों व प्रतिलिपिकार मुनिजनों ने अपनी कृतियों और प्रतिलिपियों की प्रशस्तियों में अपने पूर्वजों का सादर उल्लेख किया है। वि० सं० १६९३/ई०स० १६३७ में लिखी गयी प्रेमलासतीरास की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार मानविमल ने अपने गुरु जसविमल और प्रगुरु हीररत्नसूरि का सादर उल्लेख किया है : हीररत्नसूरि जसविमल मानविमल (वि० सं० १६९३/ई०स० १६३७ में प्रेमलासतीरास के प्रतिलिपिकार) वि० सं० १६९६/ई०स० १६४० में रची गयी नेमिजिनरास अपरनाम वसंतविलास की प्रशस्ति में रचनाकार हर्षरत्न ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : हीररत्नसूरि लब्धिरत्न सिद्धिरत्न हर्षरत्न (वि० सं० १६९६/ई० स० १६४० में नेमिजिनरास अपरनाम वसंतविलास के रचनाकार) वि०सं० १७१४/ई०स० १६५८ में लिखीगयी कल्याणमंदिरस्तोत्र की प्रतिलेखन प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार देवरत्न ने स्वयं को हीररत्नसूरि की परम्परा को बतलाते हुए अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है : हीररत्नसूरि पं० लब्धिरत्नगणि शुभरत्न राजरत्न देवरत्न (वि० सं०१७१४/ई०स० १६५८ में कल्याणमंदिर-स्तोत्र के रचनाकार) Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०५ वि०सं० १६३६ में रची गयी आठकर्मनोरास की एक प्रतिलिपि, जिसमें प्रतिलेखनकाल नहीं दिया गया है, की प्रशस्ति में कहा गया है कि उक्त रचना हीररत्नसूरि के शिष्य विनयरत्न के भ्राता विवेकरत्न के पठनार्थ लिखी गयी थी। चूंकि हीररत्नसूरि का समय (वि०सं० १६७५-१७१४) सुनिश्चित है, अत: उक्त प्रतिलिपि का भी यही समय माना जा सकता है। हीररत्नसूरि विनयरत्न विवेकरत्न (इनके पठनार्थ आठकर्मनो रास की प्रतिलिपि की गयी) १८वीं शताब्दी के प्रसिद्ध रचनाकार उदयरत्न भी हीररत्नसूरि की परम्परा के थे। वि०सं० १७४६/ई०स० १६९० में इनके द्वारा लिखी गयी दानदीपिका की एक प्रति प्राप्त हुई है। इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : हीररत्नसूरि लब्धिरत्न महोपाध्याय सिद्धिरत्न पं० मेघरत्न अमररत्न उदयरत्न (वि०सं० १७४६/ई०स० १६९० में दानदीपिका के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १७४३/ई०स० १६८७ में लिखी गयी शुकराजरास की प्रति की प्रशस्ति में भी उदयरत्न का प्रतिलिपिकार के रूप में नाम मिलता है। उदयरत्न द्वारा वि०सं० १७४९ से १७९९ के मध्य रचित विभिन्न रचनायें प्राप्त हुई हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : जम्बूस्वामीरास वि०सं०१७४९/ई०स० १६८३ अष्टप्रकारीपूजारास . वि०सं०१७५५/ई०स० १६९९ स्थूलिभद्ररास वि०सं० १७५९/ई०स० १७०३ शंखेश्वरपार्श्वनाथनो छंद वि०सं०१७५९/ई०स० १७०३ राजसिंहरास अपरनाम नवकाररास वि०सं०१७६२/ई०स० १७०६ ब्रह्मचर्यनी नववाडसज्झाय वि०सं०१७६३/ई०स० १७०७ वि०सं० १७६५/ई०स० १७०९ बारव्रतरास Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. ९. १०. ११. १२. १३ १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. संख्या में मलयसुन्दरी महाबलरास अपरनाम विनोदविलासरास यशोधररास लीलावती सुमतिविलासरास धर्मबुद्धिमंत्री अने पापबुद्धिराजानो रास शत्रुंजयतीर्थमालाउद्धाररास भुवन भानुकेवलीनो रास अपरनाम रसलहरीरास नेमिनाथशलोको शालिभद्रनो शलोको भरतबाहुबलिनो शलोको भावरत्नसूरिप्रमुख पांचपाटवर्णन चौबीसी दामन्नकरास वि०सं० १७७० / ई०स० १७१४ वि०सं० १७७० / ई०स० गच्छपरम्परारास इस कृति में राजविजयसूरि विजयरत्नसूरि, हीररत्नसूरि, जयरत्नसूरि और भावरत्नसूरि - इन पांच पट्टधर आचार्यों का विवरण दिया गया है। ढणमुनिनी सज्झाय वरदत्तगुणमंजरीरास सुदर्शन श्रेष्ठीरास विमलमेहतानो शलोको नेमिनाथराजीमतीबारमास ३०६ वि०सं०१७६६/ ई०स० १७१० वि०सं० १७६७ / ई०स० १७११ वि०सं०१७६७/ ई०स० १७११ वि०सं०१७६८ / ई० स० १७१२ वि०सं०१६६९ / ई०स० १७१३ वि०सं०१६६९/ ई०स० १७१३ (जयरत्न सूरि) 1 हरिवंशरास अपरनाम रसरत्नाकररास सूर्ययशा (भरतपुत्र) नो रास भाभापारसनाथनुं स्तवन इसके अतिरिक्त इनके द्वारा रचित अन्य स्तवन, सज्झाय और भास आदि भी बड़ी हैं। प्राप्त हुए १७१४ वि०सं०१७७२/ ई०स० १७१६ वि०सं०१७७२/ ई०स० १७१६ वि०सं०१७८२/ ई०स० १७२६ वि०सं०१७८२/ ई०स० १७२६ वि० सं० १७८५ / ई०स० वि०सं० १७९५ / ई०स० वि०सं०१७९५ / ई०स ०स० ० १७३९ वि०सं०१७९९/ ई०स० १७४३ १७२९ १७३९ वि०सं० १७५१ / ई०स० १६९५ में अरहन्त्रकरास के प्रतिलिपिकार मानरत्न' ने स्वयं को भावरत्नसूरि का शिष्य बताया है। इस भावरत्नसूरि को हीररत्नसूरि के पट्टधर और जयरत्नसूरि के पट्टधर भावरत्नसूरि से समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए अभिन्न माना जा सकता है। (हीररत्नसूरि) 1 Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I ३०७ भावरत्नसूरि (वि०सं० १७३४-१७७२) मानरत्न (वि० सं० १७५१ / ई०स० १६९५ में अरहन्त्रकरास के प्रतिलिपिकार) मुनि मानरत्न द्वारा वि०सं० १७५४ में लिखी गयी रत्नसंचय" और वि०सं० १७५८ में लिखित दशवैकालिकबालावबोध" की प्रतियां भी प्राप्त हुई हैं। विक्रम सम्वत् की १८वीं शताब्दी के मध्य में इस शाखा में हंसरत्न नामक एक रचनाकार हुए हैं। उनके द्वारा रचित कुछ कृतियां मिलती हैं जो इस प्रकार हैं : चौबीसी वि०सं० १७५५ / ई० स० १६९९ वि०सं० १७८६ / ई०स० १. २. शिक्षाशतदूहा १७३० ३. अध्यात्मकल्पद्रुमबा लावबोध ४. शत्रुंजयमहात्म्य श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने इनकी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: ३ राजविजयसूरि 1 हीररत्नसूर 1 लब्धिरत्न | राजरत्न I लक्ष्मीरत्न I ज्ञानरत्न 1 हंसरत्न (रचनाकार) १४ वि०सं० १७६० / ई०स० १७०४ में लिखी गयी चन्द्रमुनिरास की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उक्त प्रति आचार्य भावरत्नसूरि के काल में लिखी गयी थी और इसके प्रतिलिपिकार के रूप में नयरत्न का नाम मिलता है। नयरत्न कौन थे, इस बारे में उक्त प्रशस्ति से कोई जानकारी नहीं मिलती, तथापि उनके रत्नान्त नाम होने तथा उनके द्वारा रत्नसूरि का सादर उल्लेख करने से उन्हें भावरत्नसूरि का शिष्य मानने में कोई बाधा नहीं है । Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ भावरत्नसूरि नयरत्न (वि०सं० १७६०/ई०स० १७०४ में चन्द्रमुनिरास के प्रतिलिपिकार) वि० सं० १७६१/ई०स० १७०५ में लिखी गयी रघुवंशकाव्यवृत्ति के प्रतिलिपिकार भावरत्नसूरि और राजविजयसूरिशाखा के आचार्य भावरत्नसूरि को समसामयिकता, गच्छसाम्य, नामसाम्य आदि बातों को देखते हुए एक ही व्यक्ति सिद्ध होते हैं। वि०सं० १७७३/ई०स० १७१७ में लिखीगयी प्रतिक्रमणभाष्य की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार तेजरत्न ने स्वयं को हीररत्नसूरि का प्रशिष्य और धनरत्न का शिष्य कहा है१६. हीररत्नसूरि धनरत्न तेजरत्न (वि०सं० १७७३/ई०स० १७१७ में प्रतिक्रमणभाष्य के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १७७३/ई०स० १७१७ में ही लिखीगयी साधुप्रतिक्रमणबालावबोध की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार के रूप में उक्त तेजरत्न के शिष्य सुबुद्धिरत्न का नाम मिलता है। भावरत्नसूरि की परम्परा में हुए कनकरत्न द्वारा वि० सं० १७९४/ई०स० १७३८ में लिखी गयी नर्मदासुन्दरीनोरास की प्रति उपलब्ध हुई है। इसकी प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : भावरत्नसूरि महोपाध्याय पंडित शांतिरत्न पंडित हस्तिरत्न पंडित कनकरत्न (वि०सं० १७९४ में नर्मदासुन्दरीनोरास के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १७९५/ई०स०१७३९ में लिखी गयी पंचाख्यान की प्रशस्ति१९ में प्रतिलिपिकार तिलकरत्न ने स्वयं को हीररत्नसूरि की परम्परा को बतलाते हुए अपनी गुरुपरम्परा निम्नानुसार दी है : हीररत्नसूरि लब्धिरत्न हेमरत्न तिलकरत्न (वि०सं० १७९५/ई०स० १७३९ में पंचाख्यान के प्रतिलिपिकार) Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०९ राजविजयसूरिशाखा के आचार्य दानरत्नसूरि (वि० सं० १७७२- १८२४) और वि० सं० १८०७/ई०स० १७५१ में लिखी गयी श्रीपालरास के प्रतिलिपिकार दानसागरसूरि निश्चय ही एक ही व्यक्ति हैं। इन्हीं के काल में वि०सं० १८१४ में मोहनरत्न ने आगमसार की प्रतिलिपि की।२१ उक्त मोहनरत्न संभवत: इनके शिष्य रहे होंगे। वि० सं० १८४९/ई० स० १७८३ में अज्ञात रचनाकार कृत धन्नाचरितबालावबोध के प्रतिलिपिकार हर्षरत्न भी इसी शाखा के थे। श्री देसाई ने इनकी गुरु-परम्परा निम्नानुसार दी है२२ : भावरत्नसूरि महो०पं० शांतिरत्न पं० हस्तिरत्न पं० कनकरत्न पं० बुद्धिरत्न पं० धर्मरत्न पं० हर्षरत्न (प्रतिलिपिकार) दानरत्नसूरि (वि०सं० १७७२-१८२४) के पश्चात् कीर्तिरत्नसूरि ने इस शाखा का नेतृत्त्व संभाला। वि०सं० १८५.०/ई०स० १७९४ में लिखी गयी मानतुंगमानवतीनोरास नामक कृति के प्रतिलिपिकार मयारत्न ने स्वयं को कीर्तिरत्नसूरि का शिष्य बतलाया है२३: कीर्तिरत्नसूरि मयारत्न (वि०सं० १८५०/ई०स० १७९४ में मानतुंगमान वतीरास के प्रतिलिपिकार) वि० सं० १८५२/ई०स० १७९६ में पूर्वोक्त हर्षरत्न ने ढालमंजरी की प्रतिलिपि की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने लम्बी गुर्वावली दी है, जिसे श्री देसाई ने उद्धृत किया है२४ वि० सं० १८५२/ई०स० १७९६ में उत्तमकुमारनोरास के रचनाकार पं० राजरत्न भी इसी शाखा के थे। इसकी प्रशस्ति२५ में उन्होंने अपनी गुर्वावली दी है, जो निम्नानुसार है: Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - हीररत्नसूरि उदयरत्न उत्तमरत्न जिनरत्न क्षमारत्न पं० राजरत्न (वि०सं० १८५२/ई०स० १७९६ में उत्तमकुमारनोरास के रचनाकार) इन्हीं राजरत्न के शिष्य मयांकररत्न द्वारा वि०सं० १८९६ में लिखी गयी जम्बूस्वामीरास की प्रति प्राप्त हुई है।६ वि० सं० १८५६/ई०स० १८०० में रत्नपालरास के प्रतिलिपिकार मंछाराम भी स्वयं को हीररत्नसूरि की परम्परा का बतलाते हैं। इसकी प्रतिलिपि में उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा निम्नानुसार दी है२७ : हीररत्नसूरि धनरत्न तेजरत्न जोधरत्न लावण्यरत्न गोविन्दरत्न मंछाराम (वि० सं० १८५६/ई०स० १८०० में रत्नपालरास के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १८६३/ई०स० १८०७ में लिखी गयी जम्बूस्वामीरास की प्रति की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार रंगरत्न ने स्वयं को दानरत्नसूरि की परम्परा का बतलाया है२८: दानरत्नसूरि कल्याणरत्न कुशलरत्न रंगरत्न (प्रतिलिपिकार) Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीर्तिरत्नसूरि के पट्टधर मुक्तिरत्नसूरि हुए। इनके शिष्य पं० सौभाग्यरत्न द्वारा लिखी गयी कुमारपालरास की वि०सं० १८६९/ई०स० १८१३ की एक प्रति प्राप्त हुई है।२९ मुक्तिरत्नसूरि पं० सौभाग्यरत्न (वि०सं० १८६९/ई०स० १८१३ में ___ कुमारपालरास के प्रतिलिपिकार) वि० सं० १८८२/ई० स० १८२६ में श्रीपालरास के प्रतिलिपिकार प्रेमरत्न ने स्वयं को भावरत्नसूरि की परम्परा का बतलाते हुए अपनी गुर्वावली दी है : भावरत्नसूरि मानरत्न समतिरत्न माणिक्यरत्न प्रेमरत्न (वि०सं० १८८२/ई०स० १८२६ में श्रीपालरास के प्रतिलिपिकार) इस प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार प्रेमरत्न द्वारा तत्कालीन गच्छनायक पुण्योदयात्नसूरि का नाम नहीं दिया गया है जो गच्छनायक .. घटते हुए प्रभाव का द्योतक माना जा सकता है। वि०सं० १८९३ पौष सुदि १ रविवार को लिखित जयविजयकुंवरप्रबन्ध के प्रतिलिपिकार तेजरत्न भी इसी शाखा के थे। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा निम्नानुसार दी है३१ : कीर्तिरत्नसूरि पंन्यास पं० मयारत्न पं० सौभाग्यरत्न पं० राजेन्द्ररत्न पं० तेजरत्न (वि०सं० १८९३/ई०स० १८३७ में जयहि कुंवरप्रबन्ध के प्रतिलिपिकार) Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ वि०सं० १८९३ में ही लिखी गयी सम्यकत्त्वकौमुदीरास की प्रशस्ति में भी पं० तेजरत्न का नाम मिलता है । ३२ तेजरत्न के शिष्य गुणरत्न द्वारा भी इसी वर्ष चैत्र सुदि ३ रविवार को गजसिंहकुमाररास की प्रतिलिपि की गयी । ३३ ३४ 31% हीररत्नसूर की परम्परा के पं० मयांकररत्न द्वारा वि०सं० १८९६ / ई०स० १८४० में जम्बूरास और वि०सं० १९१० में अजितसेनकनकावतीरास की प्रतिलिपि की गयी। इनकी प्रशस्तियों में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : हीररत्नसूर उदयरत्न 1 उत्तमरत्न 1 जिनरत्न 1 क्षमारत्न | राजरत्न 1 मयांकररत्न (प्रतिलिपिकार) मयांकररत्न के गुरु राजरत्न का ऊपर उल्लेख आ चुका है जिनके द्वारा लिखी गयी उत्तमकुमारनोरास की वि०सं० १८५२ की प्रति प्राप्त हुई है। वि०सं० १८९८ / ई० स०१८४२ में लिखी गयी महावीरस्तवकबालावबोध की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार विवेकरत्न ने स्वयं को मुक्तिरत्नसूरि का प्रशिष्य और देवेन्द्ररत्न का शिष्य कहा है : मुक्तिरत्नसूरि 1 देवेन्द्ररत्नसूरि 1 विवेकरत्न (वि०सं० १८९८ / ई० स० १८४२ में महावीर - स्तवकबालावबोध के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १९९२ में लिखी गयी चन्द्रराजारास की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि कीर्तिरत्नसूरि की परम्परा में हुए मुनि जयरत्न के पठनार्थ उक्त कृति की प्रतिलिपि की गयी । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-राजविजयसूरिशाखा अपरनाम रत्नशाखा के मुनिजनों की गुरु-परम्परा की तालिका हीरविजयसूरि विजयदानसूरि राजविजयसूरि रत्नविजयसूरि हीररत्नसूरि उदयरत्न पं. धनरत्न लब्धिरत्न उत्तमरत्न पं. तेजरत्न हेमरत्न शुभरत्न राजरत्न। सिद्धिरत्न जिनरल सुबुद्धिरत्न जोधरत्न तिलकरत्न देवरत्न राजरत्न I लक्ष्मीरत्न पं. राजरत्न हंसरत्न जसविमल विनयरत्न विवेकरत्न जयरत्नसूरि मानविमल (पट्टधर) हर्षरत्न मेघरत्न क्षमारत्न लावण्यरत्न अमरत्न .तपागच्छ-मुख्य परम्परा जारी.. गोविन्दरत्न ज्ञानरत्न शिवरत्न मछाराम उदयरत्न उत्तमरत्न जिनरत्न क्षमारत्न राजरत्न II मयांकररत्न Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनि नयरत्न मानरत्न कल्याणरत्न तपागच्छ-राजविजयसूरिशाखा के हीररत्नसूरि के शिष्य परम्परा की तालिका हीररत्नसूरि जयरत्नसूरि भावरत्नसूरि पं. शांतिरत्न दानरत्नसूरि पं. हस्तिरत्न सुमतिरल कीर्तिरत्नसूरि पं. कनकरत्न माणिक्यरत्न पं. बुद्धिरत्न प्रेमरत्न रंगरत्न देवेन्द्ररत्न पुण्योदरत्नसूरि सौभाग्यरत्न पं. धर्मरत्न विवेकरत्न अमृतरत्नसूरि पं. हर्षरत्न चन्द्रोदयरत्नसूरि तेजरत्न ॥ सुमतिरत्नसूरि गुणरत्नसूरि भाग्यरत्नसूरि कुशलरत्न मयारत्न राजेन्द्ररत्न मानरत्न जयरत्न Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३ श्री देसाई ने उक्त प्रति की प्रशस्ति के आधार पर जयरत्न की गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : कीर्तिरत्नसूरि > मयारत्न > सौभाग्यरत्न > राजेन्द्ररत्न > गुणरत्न -> मानरत्न -> जयरत्न (वि०सं० १९१२/ई०स० १८५६ में इनके पठनार्थ चन्द्रराजारास की प्रतिलिपि की गयी।) उक्त प्रशस्ति को इस शाखा से सम्बद्ध अंतिम साक्ष्य माना जा सकता है। विभिन्न प्रशस्तियों के आधार पर संकलित उक्त छोटी-छोटी गुर्वावलियों के समायोजन से इस शाखा की पट्टावली को जो नवीन स्वरूप प्राप्त होता है, वह इस प्रकार है : द्रष्टव्य-तालिका-१-२. जैसा कि हम इस शाखा के प्रारम्भिक पृष्ठों में ही देख चुके हैं मुक्तिरत्नसूरि के पश्चात् इस शाखा में क्रमश: पुण्योदयरत्नसूरि, अमृतरत्नसूरि, चन्द्रोदयरत्नसूरि, सुमतिरत्नसूरि और भाग्यरत्नसूरि पट्टधर बने, परन्तु इनमें से किसी का भी उक्त पट्टावली को छोड़ कर अन्यत्र कोई उल्लेख नहीं मिलता है। किसी रचनाकार या प्रतिलिपिकार मुनि द्वारा अपनी रचनाओं या प्रतिलिपि की प्रशस्तियों में तत्कालीन गच्छनायक या शाखाप्रमुख का उल्लेख न करना निश्चय ही गच्छनायक के महत्त्वहीन होने का द्योतक है और गच्छनायक का महत्त्वहीन होना उस गच्छ या शाखा के महत्त्वहीन होने का परिचायक है। ठीक यही बात राजविजयसूरिशाखा के अंतिम पांच आचार्यों के बारे में भी कही जा सकती है। वर्तमान में इस शाखा का अस्तित्त्व केवल इतिहास के पृष्ठों तक ही सीमित है। Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. ३. ४. ५. ६. १४. १५. १६. १७. १८. १९. ७. ८. ९. १०. ११. १२-१३. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ १५७. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. मोहन लालदलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ९५ ९८. मुनि कल्याणविजय गणि, पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १९६-१९९. अमृतलाल मगनलालशाह, श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ७२४, पृष्ठ २०४. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ३, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ८९. देसाई, वही, भाग ३, पृष्ठ ३१४. अमृतलाल मगनलाल शाह, पूर्वोक्त, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक ८१९, पृष्ठ २२३. देसाई, पूर्वोक्त, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ १६६. देसाई, वही, भाग ४, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ३२२. वही, पृष्ठ ३८-३९. वही भाग ५, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ७६- ११४. वही भाग ४, पृष्ठ ६७. शाह, पूर्वोक्त, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १००७, पृष्ठ २६५. वही, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १०२५, पृष्ठ २६९. ३१४ संदर्भ शाह, पूर्वोक्त, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १०३४, पृष्ठ २७१. वही, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १०४५, पृष्ठ २७३-७४. वही, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १११८, पृष्ठ २८९. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३८६. वही भाग ५, पृष्ठ १३९. शाह, पूर्वोक्त, भाग २, प्रशस्ति क्रमांक १२४५, पृष्ठ ३१८. देसाई, पूर्वोक्त भाग ४, पृष्ठ २५: वही भाग ५, पृष्ठ २५२. वही, भाग ६, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ३३४. वही भाग ५, पृष्ठ १४८. 1 वही, भाग ६, पृष्ठ १०८. वही भाग ६, पृष्ठ १९६-१९८. वही, भाग ५, पृष्ठ ८०. वही, भाग ५, पृष्ठ १४४-४५. वही, भाग ५, पृष्ठ ८०. वही, भाग ४, पृष्ठ १०२. वही भाग ४, पृष्ठ २२. , Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१५ ا لله الله الله الله वही, भाग ४, पृष्ठ ४४४. वही, भाग २, पृष्ठ १९४. वही, भाग ६, पृष्ठ ८०. वही, भाग ५, पृष्ठ ८०. वही, भाग ४. पृष्ठ ११८. वही, भाग ६. पृष्ठ १९६-१९८. वही, भाग ६, पृष्ठ ७१. वही, भाग ५, पृष्ठ १५४-५५. الله به الله لر Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तपागच्छ-विमलशाखा तपागच्छ से उद्भूत विभिन्न शाखाओं में विमलशाखा भी एक है। तपागच्छ के ५६वें पट्टधर आचार्य आनन्दविमलसूरि के शिष्य हर्षविमल की परम्परा में हुए धीरविमलगणि के शिष्य नयविमल (ज्ञानविमलसूरि) से यह शाखा अस्तित्त्व में आयी। इस शाखा में ज्ञानविमलसूरि के पश्चात् क्रमशः सौभाग्यसागरसूरि, सुमतिसागरसूरि, विबुधविमलसूरि और महिमाविमलसूरि हए। विमलशाखा के इतिहास के अध्ययन के लिये स्रोत के रूप में इस शाखा के आदिपुरुष ज्ञानविमलसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियों की प्रशस्तियां अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं।' इसी प्रकार इस शाखा के चतुर्थ पट्टधर विबुधविमलसूरि की कृतियों की प्रशस्तियां भी उक्त दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। ज्ञानविमलसूरिरास और विबुधविमलसूरिरास से भी उक्त दोनों आचार्यों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण विवरण प्राप्त होते हैं। इसके अलावा इस गच्छ की एक पट्टावली" भी मिली है, जिसका सार श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाई ने गुजराती भाषा में प्रस्तुत किया है। इस शाखा से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिले हैं जो वि० सं० १७५१ से लेकर वि०सं० १८४८ तक के हैं। यहाँ सभी साक्ष्यों के आधार पर इस शाखा के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, इस शाखा की एक पट्टावली प्राप्त हुई है, जिसका सार श्री देसाई ने प्रस्तुत किया है। इसे तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है : विजयप्रभसूरि (तपागच्छ के ६१वें पट्टधर) ज्ञानविमलसूरि (वि०सं० १६९४ में जन्म; वि०सं० १७०२ में दीक्षा, । वि०सं० १७२७ में पंन्यासपद; वि०सं० १८४८-४९ में आचार्यपद; वि०सं० १७८२ में निधन) सौभाग्यसागरसूरि सुमतिसागरसूरि विबुधविमलसूरि (वि० सं० १७९८ में सूरिपद; वि०सं०१८१४ में । स्वर्गस्थ) महिमाविमलसूरि (वि० सं० १८१३ में सूरिपद प्राप्त; वि०सं० १८२० में इनके काल में विबुधविमलसूरिरास की रचना हुई) ज्ञानविमलसूरि अपने युग के श्रेष्ठतम रचनाकारों में से एक थे। इनके द्वारा संस्कृत, प्राकृत और गुजराती भाषा में रची गयी अनेक कृतियां मिलती हैं जिनमें से कुछ निम्नानुसार हैं: १. नरभवदृष्टान्तोपनयमाला २. साधुवंदनारास वि०सं० १७२८ जम्बूस्वामिरास वि० सं० १७३७ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१७ - नवतत्त्वबालावबोध वि०सं० १७३९ रणसिंहराजर्षिरास वि०सं० १७४० श्रमणसूत्रबालावबोध वि०सं० १७४३ प्रश्नद्वात्रिंशिकास्तोत्रं स्वोपज्ञबालावबोधयुक्त वि०सं० १७४५ श्रीपालचरित वि०सं० १७४५ साढात्रणसौगाथानास्तवनोबालावबोध दसदृष्टान्तनीसज्झाय प्रश्नव्याकरणसूत्रवृत्ति संसारदावानलस्तुतिवृत्ति बारव्रतग्रहणरास वि०सं० १७५० रोहिणीअशोकचन्द्ररास वि०सं० १७५० दीवालीकल्पबालावबोध वि०सं० १७६३ १६. आनन्दघनचौबीसीबालावबोध वि०सं० १७६९ त्रणभाष्यबालावबोध वि०सं० अध्यात्मकल्पद्रुमबालावबोध वि० सं० १७७० १९. चन्द्रकेवलीरास अपरनाम आनन्दमंदिररासवि० सं० १७७० २०. पाक्षिकसूत्रबालावबोध वि०सं० १७७३ २१. योगदृष्टिनीसज्झायबालावबोध २२. पर्युषणमहापर्वनीसज्झाय २३. शांतिनाथकलश पार्श्वनाथकलश साधुवन्दना अपरनाम गुरु-परम्परा ढाल (रचनाकाल वि०सं० १७२८) में इन्होंने अपनी लम्बी गुर्वावली दी है, जो इस प्रकार है : जगच्चन्द्रसूरि (तपागच्छ के प्रवर्तक) १७. ......... १८. आनन्दविमलसूरि Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विजयदानसूरि 1 हीरविजयसूरि 1 विजयसेनसूरि ' विजयदेवसूरि 1 विजयप्रभसूरि पत्तन नयर तणे तस पासे, पद श्रीविजयप्रभसूरीनें पाटें, पक्ष ज्ञानविमलसूरी संप्रति दीपे, तेजे ३१८ हर्षविमल 1 (वि) जयविमल 1 कीर्तिविमल 1 विनयविमल 1 नयविमल अपरनाम ज्ञानसागरसूरि वि०सं० १७७० में रचित चन्द्रकेवलीरास अपरनाम आनन्दमंदिररास की प्रशस्ति में भी (नयविमल) ज्ञानविमलसूरि ने उक्त गुर्वावली दी है, साथ ही वि०सं० १७४९ में स्वयं को प्राप्त आचार्यपद और अपने नूतन नाम ज्ञानविमलसूरि का भी उल्लेख किया है आचारीजपद ज्ञानविमल इति, नाम थयुं सुप्रसिद्धजी ॥ १३ ॥ निधि युग मुनि शशी संवत : माने (१७४९) फागण सुदि पंचमी दिवसेंजी, पाम्या सुभ देसेजी || १४ || संवेगी सुहाया जी, तरणी सवाया जी ॥ १५ ॥ 1 धीरविमल अज्ञात कर्तृक ज्ञानविमलसूरिरास के अनुसार वि०सं० १६९४ में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १७०२ में विनयविमलगण से दीक्षा ग्रहण की और धीरविमल के शिष्य बनकर नयविमल नाम प्राप्त किया। अमृतविमलगणि और मेरुविमलगणि के पास इन्होंने विद्याध्ययन किया। वि० सं० १७२७ माघ सुदि १० को मारवाड़ में सादड़ी के पास स्थित घाणेराव नामक स्थान पर विजयप्रभसूरि ने इन्हें पंडित (पंन्यास) पद प्रदान किया। वि० सं० १७४८ में इन्हें संडेर ग्राम में विजयप्रभसूरि की आज्ञा से महिमासागरसूरि ने आचार्य पद प्रदान किया और इस समय से ये ज्ञानविमलसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए । कवि दीपसागरगणि के शिष्य सुखसागर द्वारा रचित प्रेमविलासरास के अनुसार वि०सं० १७७७ में सूरत के श्रेष्ठी प्रेमजी पारेख ने ज्ञानसागरसूरि के उपदेश से शत्रुंजयतीर्थ की यात्रा हेतु संघ निकाला था। उक्त रास में इसका विस्तृत विवरण पाया जाता है। कवि सुखसागर के गुरु दीपसागरगणि किसके शिष्य थे! ज्ञानसागरसूरि से उनका क्या सम्बन्ध था, इस बारे में न तो उक्त कृति से और न ही सुखसागर की अन्य रचनाओं से इस सम्बन्ध में कोई जानकारी प्राप्त होती हैं। . Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१९ ज्ञानसागरसूरि ने सूरत, खंभात, राजनगर (अहमदाबाद), पाटण, राधनपुर, सादड़ी, घाणेराव, सिरोही, पालिताना, जूनागढ़ आदि स्थानों पर विहार किया। वि०सं० १७८२ में ८९ की आयु में खंभात में इनका निधन हुआ।१२। खरतरगच्छीय देवचन्द्रउपाध्याय से भी आचार्य ज्ञानविमलसूरि का घनिष्ठ सम्बन्ध था। ज्ञानविमलसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं, जो वि० सं० १७५१ से लेकर वि०सं० १७६९ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालय, शकोपुरा, खंभात में ज्ञानविमलसूरि की चरणपादुका प्रतिष्ठापित है। इस पर वि०सं० १७८४ मार्गशीर्ष वदि ६ बुधवार का लेख उत्कीर्ण है। बुद्धिसागरसूरि ने इस लेख की वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : संवत् १७८४ मार्गसिरवदि ६ दिने बुधवासरे श्रीस्तंभतीर्थबंदिरे श्रीतपागच्छे सुविहितभट्टारक श्री आणंदविमलसूरिपट्टप्रभावकश्रीविजयदानसूरि तत्पट्टे भ० हीरविजयसूरिपट्टे सद..... विजयसेनसूरिपट्टे भ० श्रीविजयदेवसूरिपट्टप्रभावकसकलभ० पुरंदरभ० श्रीविजयप्रभसूरिपट्टे संविज्ञपक्षे भट्टारकप्रभुश्रीज्ञानविमलसूरीश्वरचरणपादुका: शुभं भवतु॥ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९११. ज्ञानविमलसूरि के पट्टधर सौभाग्यसागरसूरि हुए। इनके बारे में इस शाखा की पट्टावली तथा प्रशस्तियों में नामोल्लेख के अलावा अन्य कोई जानकारी नहीं मिलती। खरतरगच्छीय बड़ा जिनालय, तुलापट्टी, कलकत्ता में संरक्षित धातु की एक जिनप्रतिमा पर वि०सं० १७८४ फाल्गुन सुदि ५ का एक लेख उत्कीर्ण है। मुनि कांतिसागर जी ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है : संवत् १७८४ वर्षे फाल्गन सुदि ५ रवौ स्तम्भतीर्थवास्तव्यः अकेशवंछो (उपकेशवंशीय) संघवी जवराजीसुतासंघवी मंगल जी भा संघ बहुतयो श्री स्वयंप्रभ जिनबिम्बं कारितम् मोक्षमानाय तपागच्छ............भ...........सौभाग्यसागरसूरिभिः।। जैनधातुप्रतिमालेख. भाग १, लेखांक ३२६. उक्त प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में उल्लिखित तपागच्छीय सौभाग्यसागरसूरि को संविग्नपक्षीय ज्ञानविमलसूरि के पट्टधर सौभाग्यसागरसूरि से समसामयिकता, नामसाम्य और गच्छसाम्य आदि बातों को देखते हुए अभिन्न माना जा सकता है। सौभाग्यसागरसूरि के पश्चात् सुमतिसागरसूरि ने विमलशाखा का नायकत्त्व ग्रहण किया। इनके समय में ऋषिविमल के शिष्य लक्ष्मीविमल (बाद में विबुधविमलसूरि) ने वि०सं० १७८० में वीसी की रचना की। यह बात इस कृति की प्रशस्ति से ज्ञात होती है: आकाश (वसु) सागर विधुवर्षे, विजयदशमी जाण रे, गुरु वासर अति मनोहर, वीसी चढी परमाण रे। ऊपर हम देख चुके हैं कि वि० सं० १७८२ में शाखा प्रवर्तक ज्ञानविमलसूरि का निधन हुआ था। वि०सं० १७८४ में उनके पट्टधर सौभाग्यसागरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमा प्राप्त हुई है अत: सौभाग्यसागरसूरि के पश्चात् ही सुमतिसागरसूरि ने विमलशाखा का नायकत्त्व ग्रहण किया होगा। यदि पूर्वोक्त वीसी की सूचना को प्रामाणिक मानें तो ऐसी स्थिति Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० में यह स्वीकार करना होगा कि वि०सं० १७८० में ज्ञानविमलसूरि की विद्यमानता में ही उनके पट्टधर सौभाग्यसागरसूरि ने भी अपना पट्टधर नियुक्त कर दिया होगा और ऐसा होना नितान्त अस्वाभाविक नहीं लगता। सौभाग्यसागरसूरि और उनके पट्टधर सुमतिसागरसूरि के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध था? वे परस्पर गुरुभ्राता थे अथवा गुरु-शिष्य, प्रमाणों के अभाव में इस बात का निर्णय कर पाना कठिन है। पट्टावली की सूचना के अनुसार वि०सं० १७८८/ई० ०स० १७३२ में सुमतिसागरसूरि का निधन हो चुका था।" इस प्रकार मात्र ६ वर्षों के भीतर ही इस शाखा के तीन पट्टधर आचार्य ज्ञानविमलसूरि- सौभाग्यसागरसूरि - सुमतिसागरसूरि दिवंगत हो गये । सुमतिसागरसूरि के पट्टधर लक्ष्मीविमल अपरनाम विबुधविमलसूरि हुए। वि०सं० १८२० में रचे गये विबुधविमलसूरिरास" से इनके बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। प्राप्त विवरणानुसार विबुधविमलसूरि का आचार्य पद प्राप्ति से पूर्व नाम लक्ष्मीविमल था और वे आनन्दविमलसूरि के शिष्य हर्षविमल की परम्परा में हुए ऋद्धिविमल के प्रशिष्य और कीर्तिविमल के शिष्य थे। उक्त रास के अनुसार सीतपुर नामक स्थान में इनका जन्म हुआ था, वि०सं० १७८८ में सुमतिसागरसूरि से इन्होंने शंखेश्वर महातीर्थ में आचार्य पद प्राप्त किया। इनका निधन वि०सं० १८१४ में औरंगाबाद नामक स्थान पर हुआ। इनके द्वारा रचित वीसी (रचनाकाल वि०सं० - १७८०) का ऊपर उल्लेख किया जा चुका है। वि०सं० १८१३ में रचित सम्यकत्त्वबालावबोधरास भी इन्हीं की कृति मानी जाती है। इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि वि०सं० १८१३ में इन्होंने अपने शिष्य महिमाविमल को औरंगाबाद में सूरि पद प्रदान कर दिया था। १७ ८ महिमाविमलसूरि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। वि०सं० १८२० / ई० स०१७६४ में रचित विबुधविमलसूरिरास जिसका ऊपर उल्लेख आ चुका है, इन्हीं के काल में रचा गया था। चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, शकोपुरा, खंभात में इनकी चरणपादुका स्थापित है, जिस पर वि०सं० १८४८ माघ सुदि १० गुरुवार का लेख उत्कीर्ण है। बुद्धिसागरसूरि ने इस लेख की वाचना निम्नानुसार दी है : संवत् १८४८ वर्षे माहसुदि १० गुरौ भट्टारक श्री १०८ श्रीज्ञानविमलसूरि तत्पट्टे श्रीलक्ष्मीविमलसूरि तत्पट्टे श्रीमहिमाविमलसूरिचरणपादुका कारापिता खंभायतनगरे । । उक्त लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि वि०सं० १८४८ के पूर्व महिमाविमलसूरि का निधन हो चुका था। इनके पश्चात् विमलशाखा के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती, इससे यही प्रतीत होता है कि महिमाविमलसूरि के निधन के साथ ही इस शाखा का अस्तित्त्व भी समाप्त हो गया। Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. ४. ३२१ संदर्भ पंन्यास मुक्तिविमलगणि, संग्राहक - संशोधक, प्राचीनस्तवनरत्नसंग्रह, भाग १. श्रीदयाविमल जैनग्रन्थमाला, अंक ५, प्रकाशक - श्रीश्रेष्ठी जमनाभाई भृगुभाई, मनसुखभाई की पोल, अहमदाबाद १९१७ ई०स०. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ४, द्वितीय संशोधित संस्करण पृष्ठ ३८२-४१८. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३०९-१०. पंन्यास मुक्तिविमलगणि, पूर्वोक्त, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ १७ - २१. मुनि जिनविजय, संपा० - जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी जैन ऐतिहासिक ग्रन्थमाला, पुष्प ६, भावनगर १९२६ ई०स०, पृष्ठ २२-३६, राससार, पृष्ठ १०-१४. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३८३-८५, भाग ९, पृष्ठ ८३-८४. पंन्यास मुक्तिविमलगणि, पूर्वोक्त, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ ११-१२. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३८३-८५. ५-६. ७. ८. ९. वही, पृष्ठ ३९७-९८. १०. पंन्यास मुक्तिविमलगणि, पूर्वोक्त, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ ११-१२. ११-१२ . वही, प्रस्तावना, पृष्ठ ५-६. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ९, पृष्ठ ९७. १३. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३०९-१०. वही, भाग ९, पृष्ठ ९७. १४. १५-१६. मुनि जिनविजय, संपा०- जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ २२-२६. १७- १८. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३०९-१०. १९. २०. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ २२-२६, राससार, पृष्ठ १०-१४. बुद्धिसागर, संपा० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९१२. Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रन्थ - सूची अर्बुदप्राचीनजैनलेखसंदोह, संपा० मुनि जयन्तविजय, प्रका० - श्रीदीपचंद बांठिया, मंत्री, श्री विजयधर्मसूरि ग्रन्थमाला, उज्जैन वि० सं० १९९४. अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, संपा०- मुनि जयन्तविजय, प्रका० - यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि०सं० २००५. ३२२ - श्री आनन्दकाव्यमहोदधि - भाग ६, संपा० - जीवनचन्द साकरचन्द झवेरी, प्रका०देवचंद लालभाई पुस्तकोद्धारे, मुम्बई १९१९ई०. आपणाकविओ, लेखक केशवराम काशीराम शास्त्री, प्रका०- गुजरात विद्या सभा, अहमदाबाद १९७८ ई०. आरासणातीर्थ अपरनाम कुम्भारियाजीतीर्थ, लेखक - मुनिश्री विशालविजयजी, प्रका०- यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर १९६१ ई०. उत्तर भारत में जैनधर्म ( ई०पू० ८०० से ५२६ ई० तक), अंग्रेजी में लेखक चिमनलाल जैसिंह शाह, हिन्दी अनुवादक, कस्तूरमल बांठिया, प्रका०- सेवा मंदिर, रावटी, जोधपुर १९९० ई०. ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग १ - ४, संपा०- विजयधर्मसूरि, प्रका०- यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर वि०सं० १९७२-७८. ऐतिहासिकलेखसंग्रह, लेखक - पं० लालचन्द भगवानदास गांधी, प्रका०- सयाजीराव साहित्यमाला, बड़ोदरा १९६२ ई०. कृपारसकोश, रचनाकार- शांतिचन्द्र उपा०, प्रका०- श्रीकांतिविजय इतिहासमाला, भावनगर वि० सं० १९७३. गुरुगुणरत्नाकरकाव्य, संपा० मुनि इन्द्रविजय, प्रका० यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी वीर सम्वत् २४३७. गुजरातना सारस्वतो, लेखक - 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(प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व),पी-एच.डी. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. पद : पूर्व रिसर्च एसोसिएट, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय. प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी. सम्पादक : श्रमण लेखन : जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन (शोधप्रबन्ध), प्रकाशित. अचलगच्छ का इतिहास, प्रकाशित. प्रकाशित शोध-निबन्ध : 60 प्रो. सागरमल जैन,प्रो. एम.ए. ढ़ांकी, साहित्य महारथी श्री भंवरलालजी नाहटा,महोपाध्याय विनयसागर आदि के सानिध्य में विभिन्न श्वेताम्बर गच्छों के इतिहास का लेखन कार्य. For Private &Pers Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Our Important Publications 1. Studies in Jaina Philosophy Dr. Nathamal Tatia 100.00 2. Jaina Temples of Western India Dr. Harihar Singh 200.00 3. Jaina Epistemology Dr. I.C. Shastri 150.00 4. Concept of Pancasila in Indian Thought Dr. Kamla Jain 50.00 5. Concept of Matter in Jaina Philosophy Dr. J.C. Sikdar 150.00 6. Jaina Theory of Reality Dr. J.C. Sikdar 150.00 7. Jaina Perspective in Philosophy & Religion . Dr. Ramji Singh 100.00 8. Aspects of Jainology (Complete Set : Vols. 1 to 7) 2200.00 9. An Introduction to Jaina Sadhana Prof. Sagarmal Jain 40.00 10. Pearls of Jiana Wisdom Dulichand Jain 120.00 11. Scientific Contents in Prakrit Canons Dr. N.L. Jain 300.00 12. The Heritage of the Last Arhat : Mahavira Dr. C. Krause 20.00 13. The Path of Arhat T.U. Mehta 100.00 14. Multi-Dimensional Application of Anekantavada Ed. Prof. S.M. Jain & Dr. S.P. Pandey 500.00 15. The World of Non-living Dr. N.L. Jain 400.00 16. अष्टकप्रकरण अनु.-डॉ.अशोक कुमार सिंह 200.00 17. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (सम्पूर्ण सेट सात खण्ड) 630.00 18. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास (सम्पूर्ण सेट चार खण्ड) 760.00 19. जैन प्रतिमा विज्ञान डॉ. मारुतिनन्दन तिवारी 150.00 20. महावीर और उनके दशधर्म प्रो. भागचन्द्र जैन 80.00 21. वज्जालग्गं (हिन्दी अनुवाद सहित) पं. विश्वनाथ पाठक 80.00 22. प्राकृत हिन्दी कोश सम्पा.-डॉ. के.आर. चन्द्र 400.00 23. जैन धर्म और तान्त्रिक साधना प्रो. सागरमल जैन 350.00 24. गाथा सप्तशती (हिन्दी अनुवाद सहित) पं. विश्वनाथ पाठक 60.00 25. सागर जैन-विद्या भारती (तीन खण्ड) प्रो. सागरमल जैन 300.00 26. गुणस्थान सिद्धान्त : एक विश्लेषण प्रो. सागरमल जैन 60.00 27. भारतीय जीवन मूल्य प्रो. सुरेन्द्र वर्मा 75.00 28. नलविलासनाटकम् सम्पा.- डॉ. सुरेशचन्द्र पाण्डे 60.00 29. अनेकान्तवाद और पाश्चात्य व्यावहारिकतावाद डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह 150.00 30. दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन डॉ. अशोक कुमार सिंह 125.00 31. पञ्चाशक-प्रकरणम् (हिन्दी अनुवाद सहित) अनु.- डॉ. दीनानाथ शर्मा | 250.00 32. सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय 100.00 33. जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ हीराबाई बोरदिया 50.00 34. मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म डॉ. (श्रीमती) राजेश जैन 160.00 35. भारत की जैन गुफाएँ डॉ. हरिहर सिंह 150.00 36. महावीर की निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श भगवतीप्रसाद खेतान 65.00 37. मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन डॉ. फूलचन्द जैन 80.00 38. जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन डॉ. शिवप्रसाद 100.00 39. बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैन दृष्टि से समीक्षा डॉ. धर्मचन्द्र जैन 200.00 40. अचलगच्छ का इतिहास डॉ. शिवप्रसाद 300.00 Parswanatha Vidyapitha, Varanasi-221005 INDIA