SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विमलसूरि 1 सौभाग्यहर्षसूरि 1 प्रमोदमंडन I विमलमंडन Jain Education International 1 रत्नविमल (वि०सं० १६३३ से पूर्व दामनकरास के कर्ता) विभिन्न ग्रन्थ प्रशस्तियों से सोमविमलसूरि की शिष्य परम्परा के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वि०सं० १६०५ में नवकाररास के कर्ता विमलचारित्र ने स्वयं को उक्त कृति की प्रशस्ति में संघचारित्र का शिष्य और सोमविमलसूरि का प्रशिष्य कहा है । १३ सोमविमलसूरि 1 संघचारित्र २७४ विमलचारित्र (वि० सं० १६०५ / ई०स० १५४९ में नवकाररास के रचनाकार) वि०सं० १६१८ / ई०स० १५६२ में सुरप्रियरास के प्रतिलिपिकर्ता लक्ष्मीचन्द्रगणि ने स्वयं को सोमविमलसूरि का शिष्य बताया है । १४ सोमवमलसूर । लक्ष्मीचन्दगणि (वि०सं० १६१८ / ई०स० १५६२ में सुरप्रियरास के प्रतिलिपिकार) सोमविमलसूरि की परम्परा में हुए देवशील ने वि०सं० १६१९ / ई०स० १५६३ में बेतालपच्चीसी की रचना की। १५ अपनी कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपने गुरु - परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार है : सौभाग्यहर्षसूरि I सोमविमलसूरि । लक्ष्मीभद्र 1 उदयशील 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy