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________________ अध्याय - ३ तपागच्छ का इतिहास 1. mix 3 भाग १, खंड १ (रत्नशेखरसूरि से २० वीं शती तक) रत्नशेखरसूरि - आचार्य सोमसुन्दरसूरि के शिष्य, मनिसन्दरसूरि के आज्ञानुवर्ती तपागच्छ के ५५ वें पट्टधर आचार्य रत्नशेखरसूरि का जन्म वि०सं० १४५७ (अन्य मतानुसार १४५२) में हुआ था, वि०सं० १४६३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, वि० सं० १४८३ में पंडित पद प्राप्त किया। वि० सं० १४८३ में वाचक पद और वि०सं० १५०२ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किये गये। मुनिसुन्दरसूरि के वि०सं० १५०३ में निधन होने के पश्चात् इन्होंने तपागच्छ का नायकत्त्व ग्रहण किया। वि०सं० १५१७ में इनकी मृत्यु हुई।' इनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियां प्राप्त होती हैं, जो इस प्रकार हैं: १. षडावश्यकवृत्ति २. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र पर अर्थदीपिका नामक वृत्ति (इसका संशोधन लक्ष्मीभद्रगणि ने किया) श्राद्धविधिवृत्ति - विधिकौमुदी (वि० सं० १५०६) रत्नचूड़रास (वि०सं० १५१० के आसपास) आचारप्रदीप (वि०सं० १५१६) (जिनहंसगणि ने इसके प्रणयन और संशोधन में सहायता की) लघुक्षेत्रसमास - अवचूरि हेमव्याकरण पर अवचूरि प्रबोधचन्द्रोदयवृत्ति मेहसाणामंडनपार्श्वनाथस्तवन १०. नवखंडपार्श्वनाथजिनस्तवन ११. अर्बुदाद्रिमंडनपावनमिस्तवन १२. चतुर्विंशतिजिनस्तवन पार्श्वस्तवन दशवैकालिकसूत्र की वि०सं० १५११ में लिखी गयी प्रति की पुष्पिका से ज्ञात होता है कि इनके उपदेश से हाथादि परिवार ने एक लाख श्लोक परिमाण ग्रन्थों का प्रतिलेखन कराया था। इन्हीं के उपदेश से वि०सं० १५१५ में श्रावक जइता और उसकी भार्या जयतलदेवी द्वारा विद्वद्जनों के पठनार्थ पुष्पमालाप्रकरण की प्रतिलिपि करायी गयी। रत्नशेखरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित बड़ी संख्या में सलेख जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०स० १५०२ से १५१७ तक की है। इनका विवरण तालिका के रुप में प्रस्तुत है ... w gv Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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