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________________ १३ देवसुन्दरसूरि के चौथे शिष्य साधुरत्न ने वि०सं० १४५६ में यतिजीतकल्प पर वृत्ति की रचना की। इसी काल के आस-पास इनके द्वारा रचित नवतत्त्वअवचूरि' नामक कृति भी प्राप्त होती है। उन्हीं के ही पांचवें शिष्य सोमसुन्दरसूरि अपने समय के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार थे। इनके सम्बन्ध में आगे विस्तार से विवरण दिया गया है। छठे शिष्य साधुराजगणि द्वारा वि०सं० १४७० के लगभग साधारणजिनस्तुति की वृत्ति के साथ रचना की गयी। प्रो० हरि दामोदर वेलणकर ने उक्त वृत्ति के रचनाकार का नाम श्रुतसागर बताया है२५, जो भ्रांति है।२८ ।। सातवें शिष्य क्षेमंकर गणि द्वारा रचित सिंहासनबत्तीसी२९ (रचनाकाल वि० सं० १४५० के आसपास) नामक कृति मिलती है। उक्त विवरणों को एक तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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