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देवसुन्दरसूरि के चौथे शिष्य साधुरत्न ने वि०सं० १४५६ में यतिजीतकल्प पर वृत्ति की रचना की। इसी काल के आस-पास इनके द्वारा रचित नवतत्त्वअवचूरि' नामक कृति भी प्राप्त होती है।
उन्हीं के ही पांचवें शिष्य सोमसुन्दरसूरि अपने समय के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार थे। इनके सम्बन्ध में आगे विस्तार से विवरण दिया गया है।
छठे शिष्य साधुराजगणि द्वारा वि०सं० १४७० के लगभग साधारणजिनस्तुति की वृत्ति के साथ रचना की गयी। प्रो० हरि दामोदर वेलणकर ने उक्त वृत्ति के रचनाकार का नाम श्रुतसागर बताया है२५, जो भ्रांति है।२८ ।।
सातवें शिष्य क्षेमंकर गणि द्वारा रचित सिंहासनबत्तीसी२९ (रचनाकाल वि० सं० १४५० के आसपास) नामक कृति मिलती है।
उक्त विवरणों को एक तालिका के रूप में निम्न प्रकार से रखा जा सकता है...
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