SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि०सं० १४४७ से लेकर वर्तमान युग तक की हैं। प्रस्तुत पुस्तक में इनमें से महत्त्वपूर्ण और आवश्यक साक्ष्यों का उपयोग करते हुए इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। तपागच्छ का उल्लेख करने वाले प्रारम्भिक साक्ष्यों में इस गच्छ के आदिपुरुष जगच्चन्द्रसूरि के (शिष्य एवं) पट्टधर देवेन्द्रसूरि द्वारा रचित कृतियों की प्रशस्तियां द्रष्टव्य हैं। नव्यपंचकर्मग्रन्थसटीक' की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है: जगच्चन्द्रसूरि (तपा विरुद्धारक) देवेन्द्रसूरि (नव्यपंचकर्मग्रन्थसटीक के कर्ता) सुदर्शनाचरित की प्रशस्ति में उनके द्वारा दी गयी गुरु-परम्परा निम्नानुसार है: चैत्रगच्छीय भुवनचन्द्रसूरि देवभद्र (गणि) सूरि जगच्चन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि (सुदर्शनाचरित के रचनाकार) विजयचन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि के गुरुभ्राता विजयचन्द्रसूरि के शिष्य क्षेमकीर्ति द्वारा रचित बृहत्कल्पवृत्ति की प्रशस्ति में रचनाकार ने जगच्चन्द्रसूरि को देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरि के गुरुभाई के रूप में उल्लिखित करते हुए इन्हें देवभद्रसूरि का शिष्य कहा है: धनेश्वरसूरि भुवनचन्द्रसूरि देवभद्रसूरि जगच्चन्द्रसूरि देवेन्द्रसूरि विजयचन्द्रसूरि वज्रसेन पद्मचन्द्र क्षेमकीर्ति (वि०सं० १३३२ में बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति के रचनाकार) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy