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________________ माणिक्यसौभाग्य 1 चतुरसौभाग्य 1 दीपसौभाग्य (वि०सं० १७४७ के आसपास वृद्धिसागरसूरिरास के २८३ रचनाकार) दीपसौभाग्य द्वारा वि० सं० १७३९ रचित चित्रसेनपद्मावतीचौपाई' नामक कृति भी प्राप्त होती है। उक्त रास के अनुसार वि०सं० १६८० में इनका जन्म हुआ था, वि०सं० १६८९ में इन्होंने अपनी माता के साथ पाटण में राजसागरसूरि से दीक्षा ग्रहण की और हर्षसागर नाम प्राप्त किया। गुरु के पास इन्होंने श्रमपूर्वक विद्याभ्यास किया और वि० सं० १६९८ में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ, तत्पश्चात् ये वृद्धिसागरसूरि के नाम से विख्यात हुए। अपने जीवनकाल में इन्होंने शत्रुंजय, तारंगा, गिरनार, राणकपुर, आबू आदि तीर्थों की यात्रायें की तथा विभिन्न धार्मिक विधि-विधानों का सम्यक् रूप से पालन किया। वि० सं० १७४७ में अहमदाबाद में इनका निधन हुआ। इनके निधन के समय इनके पास इनके विभिन्न शिष्य-यथा उपा० कांतिसागर, पं० क्षेमसागरगणि, नयसागरगणि, हितसागरगणि, वीरसागर, कीर्तिसागर आदि शिष्य उपस्थित थे। १३ वृद्धिसागरसूरि के पश्चात् उनके शिष्य लक्ष्मीसागरसूरि गच्छनायक बनाये गये। लक्ष्मीसागरसूरि के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती । वृद्धिसागरसूरिरास के अनुसार इनका पूर्वनाम निधिसागर था, वि०सं० १७४५ में वृद्धिसागरसूरि ने सूरि पद पर प्रतिष्ठित कर लक्ष्मीसागरसूरि नाम दिया था। ४ वि०सं० १७८८ में इन्होंने अपने एक शिष्य प्रमोदसागर को आचार्य पद प्रदान कर गच्छभार सौंप दिया। यही प्रमोदसागर कल्याणसागरसूरि के नाम से विख्यात हुए। १५ कल्याणसागरसूरि के बारे में इन्हीं के गुरुभ्राता क्षीरसागर के शिष्य माणिक्यसागर द्वारा रचित कल्याणसागरसूरिरास से विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । लक्ष्मीसागरसूरि कल्याणसागर सूरि क्षीरसागर | माणिक्यसागर (वि०सं० १८१७ फाल्गुन वदि ५ बुधवार को कल्याणसागरसूरिरास के रचनाकार) उक्त रास के अनुसार इन्होंने १० वर्ष की आयु में वि०सं० १७५२ में इन्होंने अपनी माता और अपने भाई के साथ लक्ष्मीसागरसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की। इनका नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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