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१०६.
१०७.
१०८.
१०९.
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११३.
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११५.
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ग्रन्थांक १४, मुम्बई १९४५.
इस ग्रन्थ की परिशिष्ट पृष्ठ १३४- १४१ पर भी उक्त पट्टावली प्रकाशित है। बुद्धिसागर, संपा०, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९४८. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक १७९७.
नाहर,
मुनि जिनविजय, संपा० प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३४०. जैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ११७७.
दिग्विजयमहाकाव्य, सर्ग १०, पृष्ठ ९४ - १०३.
“तपागच्छपट्टावली”, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ७१.
वही, पृष्ठ ७२-७३.
श्री देवेन्द्रमुनि, “श्रीसौधर्म बृहत्तपागच्छगुर्वावली”
अगरचन्द नाहटा तथा अन्य, संपा० श्रीमद्राजेन्द्रसूरिस्मारकग्रन्थ, बागरा वि० सं० २०१३, पृष्ठ १४८.
भगवानसहाय वशिष्ठ, श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी - जीवनयात्रा, राजगढ़ ई०स० १९९०, पृष्ठ १११ और आगे.
श्री भंवरलाल नाहटा, श्रीस्वर्णगिरिजालौर, कलकत्ता १९९५ई०, प्रस्तावना,
पृष्ठ ३.
श्री बाबूलालजैन ‘उज्जवल’, संपा०, समग्र जैन चातुर्मास सूची १९९७ ई०, पृष्ठ १३५-१३९.
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