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८६. वरसिं सोल बहुतरि, खंभनयर चउमास;
करवा श्री अकबर पुरि, आव्या महिम निवासो रे।।४४।। जेठ बहुल एकादशी, प्रह उगमतइ भाण; चउसरणादि समाधिस्युं, हूइ गुरु निरवाणो रे॥४५॥ गुणविजयकृत - “विजयसेनसूरिनिर्वाणभास'
मुनि जिनविजय, संपा०- जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १७०. ८७.
इस शाखा का स्वतंत्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो इसी पुस्तक में यथास्थान
रखता है। ८८-८९. पं० बेचरदास दोशी, संपा० - देवानन्दमहाकाव्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक
७, अहमदाबाद-कलकत्ता १९३७ ई०स०, प्रस्तावना, पृष्ठ ८. ९०. वही, प्रस्तावना, पृष्ठ २-३. ९१. पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, संपा०- दिग्विजयमहाकाव्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक १४, मुम्बई १९४५ ई०स०, परिशिष्ट, पृष्ठ १३४-१४१. ९२. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ६९-७०. 93-94. Bhanuchandra Gani Charitra, Introduction, P-21. ९५. मुनि जिनविजय, संपा०- विज्ञप्तिलेखसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक,
मुम्बई १९६० ई०स०. संवत् सत्तर तेर आसाढ़ मास नी, सुदि आठमि दिन सुभ परईं ओ, ॥३४।।
"श्रीविजयदेवसूरिनिर्वाण", रचनाकार-सौभाग्यविजय जैनऐतिहासिकगुर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १७४.
एवं "राससार", वही, पृष्ठ ९०-९२. ९७. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ७०. ९८. मुनि जिनविजय, संपा० - विज्ञप्तिलेखसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५१,
मुम्बई १९६० ई०सं०, पृष्ठ १३७-१५०.
वही, पृष्ठ २०५-२१३; १००. वही, पृष्ठ १६२-१६५. १०१. वही, पृष्ठ १५९-१६१. १०२. वही, पृष्ठ १७९-१८४. १०३. वही, पृष्ठ १९५-१९८. १०४. श्रीतपागच्छ पट्टावलीसूत्र वृत्यनुसंधानं, रचनाकार-मेघविजय उपाध्याय, (रचनाकाल
वि० सं० १७३२/ई० सन् १६६६),
पट्टाल्ली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ९८-१०१. १०५. दिग्विजयमहाकाव्य, संपा-पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, सिंघी जैनग्रन्थमाला,
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