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कर्मविवरणरास के रचनाकार लावण्यदेव भी तपागच्छ की इसी शाखा से सम्बद्ध थे। अपनी कृ ते के अन्त में उन्होंने प्रशस्ति के अन्तर्गत गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है:
धनरत्नसूरि
1
उदयधर्म
जयदेव
1
लावण्यदेव (कर्मविवरणरास के कर्ता)
धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमंदिर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु वि०सं० १६१२/ ई०स० १५५६ में रचित देवकुमारचरित्र के कर्ता ने स्वयं को भानुमंदिरशिष्य के रूप में सूचित किया है।
:
धनरत्नसूर
1
भानुमंदिर
I
भानुमंदिर शिष्य (वि०सं० १६१२ / ई०स० १५५६ में देवकुमारचरित्र के कर्ता)
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मुनि कांतिसागर के अनुसार गलियाकोट स्थित संभवनाथ जिनालय में ही प्रतिष्ठापित एक जिनप्रतिमा पर वि०सं० १७८१ का एक लेख उत्कीर्ण है, जिसमें देवसुन्दरसूरि की शिष्य परम्परा की एक पट्टावली दी गयी है, जो इस प्रकार है
:
धनरत्नसूरि
1
अमररत्नसूरि
तेजरत्नसूर
I
देवसुन्दरसूरि
1
विजयसुन्दरसूरि
1
लब्धिचन्द्रसूरि
1
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