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________________ २४१ 5. कर्मविवरणरास के रचनाकार लावण्यदेव भी तपागच्छ की इसी शाखा से सम्बद्ध थे। अपनी कृ ते के अन्त में उन्होंने प्रशस्ति के अन्तर्गत गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: धनरत्नसूरि 1 उदयधर्म जयदेव 1 लावण्यदेव (कर्मविवरणरास के कर्ता) धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमंदिर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु वि०सं० १६१२/ ई०स० १५५६ में रचित देवकुमारचरित्र के कर्ता ने स्वयं को भानुमंदिरशिष्य के रूप में सूचित किया है। : धनरत्नसूर 1 भानुमंदिर I भानुमंदिर शिष्य (वि०सं० १६१२ / ई०स० १५५६ में देवकुमारचरित्र के कर्ता) Jain Education International मुनि कांतिसागर के अनुसार गलियाकोट स्थित संभवनाथ जिनालय में ही प्रतिष्ठापित एक जिनप्रतिमा पर वि०सं० १७८१ का एक लेख उत्कीर्ण है, जिसमें देवसुन्दरसूरि की शिष्य परम्परा की एक पट्टावली दी गयी है, जो इस प्रकार है : धनरत्नसूरि 1 अमररत्नसूरि तेजरत्नसूर I देवसुन्दरसूरि 1 विजयसुन्दरसूरि 1 लब्धिचन्द्रसूरि 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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