SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशकीय श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समुदाय पूर्व मध्यकाल से ही विभिन्न गच्छों में विभाजित होता रहा। इसमें समय के साथ-साथ विभिन्न नये-नये गच्छ अस्तित्व में आये और नामशेष भी हो गये किन्तु कुछ गच्छ अपने जन्म से लेकर आज भी अविच्छिन्न रूप से चले आ रहे हैं। ऐसे गच्छों में तपागच्छ का स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। आचार्य जगच्चन्द्रसूरि को वि०सं० १२८५ में आघाटपुर के शासक जैत्रसिंह से 'तपा' विरुद् प्राप्त हुआ जिसके आधार पर उनकी शिष्यसंतति तपागच्छीय कहलायी। इस गच्छ में देवेन्द्रसूरि, सोमसुन्दरसूरि, मुनिचन्द्रसूरि, अकबर प्रतिबोधक आचार्य हीरविजयसूरि, उनके शिष्य विजयसेनसूरि, प्रशिष्य विजयदेवसूरि, महान् वादी उपा० यशोविजय जी आदि अनेक प्रभावक और विद्वान् आचार्य एवं मुनिजन हो चुके हैं और आज भी बड़ी संख्या में ऐसे मुनिजन विद्यमान हैं। अन्य गच्छों की भांति इस गच्छ से भी समय-समय पर विभिन्न शाखायें निकलीं, जिनमें संविग्नपक्षीय शाखायें आज भी विद्यमान हैं। ये संविग्नपक्षीय शाखायें भी आज विभिन्न समुदायों में विभक्त हैं और यही तपागच्छ का वर्तमान स्वरूप है। गच्छों के इतिहास पर अभी तक कोई भी शोध कार्य नहीं हुआ था। संस्थान के प्रवक्ता डॉ० .शिवप्रसाद ने इस कमी को पूर्ण करते हुए अनेक वर्षों के सतत् अध्यवसाय के बाद प्रामाणिक ढंग से तपागच्छ सहित विभिन्न गच्छों का इतिहास लिखा है। प्रस्तुत पुस्तक तपागच्छ के इतिहास के प्रथम भाग का प्रथम खंड है। इसके अन्तर्गत लेखक ने तपागच्छ का प्रारम्भ से लेकर २०वीं शताब्दी तक के इतिहास को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया है। इसके प्रकाशन सम्बन्धी कार्यों की जिम्मेदारी विद्यापीठ के ही प्रवक्ता डॉ० विजय कुमार जैन ने वहन की है अतः हम उनके भी आभारी हैं। अन्त में हम सुन्दर अक्षर सज्जा के लिये बीज़ विजनेस सेन्टर, महामण्डल नगर, लहुराबीर, वाराणसी और मुद्रण के लिये वर्धमान मुद्रणालय, भेलूपुर, वाराणसी के प्रति अपना आभार प्रकट करते हैं। देवेन्द्र राज मेहता मंत्री प्राकृत भारती अकादमी जयपुर Jain Education International दिनाङ्क: २३.१२.२००० For Private & Personal Use Only भूपेन्द्र नाथ जैन मंत्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy