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________________ २२२ रत्नाकरसूरि के पट्टधर रत्नप्रभसूरि और रत्नप्रभसूरि के पट्टधर मुनिशेखरसूरि का उक्त पट्टावली को छोड़कर अन्यत्र कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता, प्राय: यही बात धर्मदेवसूरि, ज्ञानचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर अभयसिंहसूरि के बारे में कही जा सकती है। अभयसिंहसूरि के पट्टधर जयतिलकसूरि हुए। इनके द्वारा रचित आबूचैत्यप्रवाडी (रचनाकाल वि०सं० १४५६ के आसपास) नामक कृति पायी जाती है। इनके उपदेश से अनुयोगद्वारचूर्णी १ और कुमारपालप्रतिबोध१२ की प्रतिलिपि तैयार की गयी। जयतिलकसूरि के शिष्यों में रत्नसागरसूरि, धर्मशेखरसूरि, रत्नसिंहसूरि, जयशेखरसूरि और माणिक्यसूरि का नाम मिलता है। रत्नसागरसूरि से बृहद्पौशालिकशाखा/रत्नाकरगच्छ की भृगुकच्छशाखा अस्तित्त्व में आयी। रत्नसिंहसूरि की शिष्य परम्परा बृहद्तपागच्छ की मुख्य शाखा के रूप में आगे बढ़ी, जबकि जयशेखरसूरि के शिष्य जिनरत्नसूरि की शिष्यसन्तति का स्वतंत्र रूप से विकास हुआ। जयतिलकसूरि के दो अन्य शिष्यों-धर्मशेखरसूरि और माणिक्यसूरि की शिष्य-परम्परा आगे नहीं चली। रत्नसिंहसूरि तपागच्छ की बृहद्पौशालिकशाखा के प्रभावक आचार्य थे। वि०सं० १४५९ से लेकर वि० सं० १५१८ तक के पचास से अधिक प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है। इनका संक्षिप्त विवरण. इस प्रकार है : रत्नसिंहसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित लेखों का विवरण इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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