SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तपागच्छ का वर्तमान इतिहास वस्तुत: तपागच्छीय संविग्न परम्परा का ही इतिहास है। इस गच्छ में ये तीन संविग्न परम्परायें अस्तित्व में आयी - १. विजयसंविग्न परम्परा, २. सागरसंविग्न परम्परा और ३. विमलसंविग्न परम्परा। उक्त तीनों संविग्न परम्परायें प्रारम्भ में मूल तपागच्छीय परम्परा की अनुगामी थी। धीरे-धीरे जब मूल परम्परा में क्रियाशील मुनिजनों की संख्या घटने लगी तब संविग्न परम्पराके मुनिजनो ने उनसे सम्बन्ध विच्छेद कर लिया और उनकी स्वतंत्र आचार्य परम्परा चलने लगी। तपागच्छीय संविग्न परम्परा आज निम्नलिखित समुदायों में विभक्त है: १. पंन्यास श्री धर्मविजयजी महाराज - (डहेलावाला) का समुदाय २. शासनसम्राट श्री विजयनेमिसूरि का समुदाय ३. बुद्धिसागरसूरि का समुदाय ४. आनन्दसागरसूरि का समुदाय ५. विजयसिद्धिसूरि (बापजी महाराज) का समुदाय ६. विजयनीतिसूरि का समुदाय ७. विजयमोहनसूरि का समुदाय ८. विजयलब्धिसूरि का समुदाय ९. विजयवल्लभसूरि का समुदाय १०. विजयकेशरसूरि का समुदाय ११. विजयकनकसूरि (बागड़) का समुदाय १२. विजयप्रेमसूरि का समुदाय १३. विजयभक्तिसूरि का समुदाय १४. विजयशांतिचन्द्रसूरि का समुदाय १५. हालारदेशोद्धारक विजयअमृतसूरि का समुदाय १६. मोहनलालजी महाराज का समुदाय १७. श्रीसौधर्मबृहद्तपागच्छ अपरनाम त्रिस्तुतिक समुदाय त्रिस्तुतिक समुदाय को छोड़कर उक्त सभी समुदाय का नामकरण समुदायप्रवर्तक आचार्यों के नाम पर ही हुआ है। इन सभी समुदायों में हो चुके पट्टधरों एवं सभी आचार्यों के जन्म , दीक्षा, आचार्यपद प्राप्ति, स्वर्गारोहण, स्वदीक्षित शिष्य, साहित्यनिर्माण, साहित्य सेवा एवं जीवन की विशिष्ट कार्यकलापों आदि की पूर्ण जानकारी जब तक प्राप्त नहीं हो पाती तब तक इन सभी के विषय में प्रामाणिक रूप से कुछ भी लिख पाना कठिन है। अभी हाल के वर्षों में श्री नन्दलाल देवलुक द्वारा सम्पादित शासनप्रभावक श्रमण भगवंतो नामक पुस्तक दो भागों में प्रकाशित हुई है। इसके द्वितीय भाग में उपरोक्त - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy