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________________ २४९ १९. १५३५ माघ........। कन्नाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख धर्मनाथ जिना० मडार अर्बदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, लेखांक ८९. २०. १५३६ आ सुविधिनाथ जिना०, प्राचीनलेखसंग्रह, घोघा लेखांक ४७१. २१. १५४१ वैशाख.... संभवनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख पार्श्वनाथ जिना०, करेडा जैनलेखसंग्रह. भाग २, लेखांक १९१४. २२. १५४४ वैशाख दि ३ सोमवार समतिनाथ की महावीर जिनालय, जैनधातुप्रतिमालेख, धात् की प्रतिमा झवेरीवाड़, लेखांक ७९ पर उत्कीर्ण लेख अहमदाबाद २३. १५५१ वैशाख वदि १० संभवनाथ की आदिनाथ जिना०, जैनधातुप्रतिमालेख, गुरुवार चौबीसी प्रतिमा पायधनी, लेखांक २६०. पर उत्कीर्ण लेख मुम्बई वि०सं० १५१८ में इनके द्वारा प्रतिलिपि की गयी सूरिमन्त्र नामक पुस्तक की एक प्रति मुनि पुण्यविजयजी के संग्रह में हैं। सुमतिनाथमुख्य बावनजिनालय, मातर में संरक्षित और जिनरत्नसूरि द्वारा वि०सं० १५२५ में स्थापित श्रेयांसनाथ की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख में हेमसुन्दरगणि का नाम भी मिलता है, जो इनके शिष्य प्रतीत होते हैं। जिनरत्नसूरि के एक शिष्य धनेश्वरसूरि हुए, जिनके द्वारा प्रतिष्ठापित तीन जिनप्रतिमायें मिली हैं। इनका विवरण निम्नानुसार है : १. १५१८ फाल्गुन वदि श्रेयांसनाथ की मुनिसुव्रत जिनालय, प्रतिष्ठालेखसंग्रह, ६ गुरुवार धातु की प्रतिमा मालपुरा लेखांक ५८८ पर उत्कीर्ण लेख २. १५२३ वैशाख सुदि ३ सुमतिनाथ की बालावसही, शर्बुजयवैभव, गुरुवार प्रतिमा पर शजय लेखांक १७७. उत्कीर्ण लेख ३. १५३६ फाल्गुन शांतिनाथ की प्रातिमा पर उत्कीर्ण लेख चिन्तामणि जी का बीकानेरजैनलेखसंग्रह, मंदिर, बीकानेर लेखांक १०९९ जिनरत्नसूरि के एक शिष्य जिनसाधु हुए, जिनके द्वारा रचित मृगावतीस्वाध्याय और भरतबाहुबलिरास (रचनाकाल वि०सं० १५५०/ई०स० १४९४) नामक कृतियाँ प्राप्त होती हैं। इनके एक शिष्य (नाम अज्ञात) द्वारा वि०सं० १५४८/ई०सं० १४९२ में श्राद्धप्रतिक्रमणस्तवक की प्रतिलिपि की गयी। प्रशस्ति का पाठ निम्नानुसार है :३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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