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________________ २३९ भुवनकीर्ति रत्नकीर्ति (वि० सं० १७२७ में स्त्रीचरित्ररास के प्रतिलिपिकार) हेमविजय सुमतिविजय रामविजय (वि० सं० १४४९ में रत्नकीर्तिसूरिचउपइ एवं रात्रिभोजनरास के कर्ता) गुणविजय अपरनाम गुणसागरसूरि 'वि०सं० १७०७-३४ के मध्य रचित भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता पद्मसुन्दर भी इसी शाखा के थे। अपनी कृति के अन्त में उन्होंने गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है : धनरत्नसूरि अमररत्नसूरि देवरत्नसूरि जयरत्न राजसुन्दर भुवनकीर्ति पद्मसुन्दर (वि०सं० १७०७-३४ के मध्य भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता) रत्नकीर्ति चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार नयसिंहगणि २ भी इसी गच्छ के थे। अपनी कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार है : रत्नसिंहसूरि उदयवल्लभसूरि ज्ञानसागरसूरि उदयसागरसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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