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भुवनकीर्ति
रत्नकीर्ति (वि० सं० १७२७ में स्त्रीचरित्ररास के प्रतिलिपिकार)
हेमविजय
सुमतिविजय रामविजय (वि० सं० १४४९ में रत्नकीर्तिसूरिचउपइ एवं रात्रिभोजनरास के कर्ता)
गुणविजय अपरनाम गुणसागरसूरि
'वि०सं० १७०७-३४ के मध्य रचित भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता पद्मसुन्दर भी इसी शाखा के थे। अपनी कृति के अन्त में उन्होंने गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
धनरत्नसूरि
अमररत्नसूरि
देवरत्नसूरि
जयरत्न
राजसुन्दर
भुवनकीर्ति
पद्मसुन्दर (वि०सं० १७०७-३४ के
मध्य भगवतीसूत्रबालावबोध के कर्ता)
रत्नकीर्ति
चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार नयसिंहगणि २ भी इसी गच्छ के थे। अपनी कृति की प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका दी है, जो इस प्रकार है :
रत्नसिंहसूरि
उदयवल्लभसूरि
ज्ञानसागरसूरि
उदयसागरसूरि
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