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________________ श्रीपूज्य विजयदेवेन्द्रसूरि (वि० सं० १८८८-१९०४)" श्रीपूज्य विजयधरणेन्द्रसूरि श्रीपूज्य विजयकल्याणसूरि श्रीपूज्य विजयराजसूरि श्रीपूज्य विजयप्रमोदसूरि श्रीपूज्य विजयमुनिचन्द्रसूरि श्रीपूज्य विजयकल्याणसूरि श्रीपूज्य विजयराजेन्द्रसूरि (महान् क्रियोद्धारक एवं बृहद्सौधर्म तपागच्छ के प्रवर्तक) श्रीपूज्य विजयमहेन्द्रसूरि तपागच्छीय श्रीपूज्यों का अनुयायी यति समुदाय बहुत विशाल संख्या में था। उत्तर भारत के प्राय: सभी भागों में इनका प्रभाव था। ये यति ज्योतिष, तंत्र-मंत्र, वैद्यक आदि सभी विद्याओं में निपुण थे। यह यति समुदाय विजय, कुशल, माणिक्य आदि विभिन्न शाखाओं में विभक्त था। धार्मिक संस्कारों एवं कर्मकाण्डों को बनाये रखने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इस समुदाय में शिथिलाचार के अत्यधिक बढ़ जाने के कारण संविग्नपक्षीय साधुपरम्परा का उदय हुआ। संविग्नपक्षीय मुनिजनों के आचार के प्रभाव के कारण इन यतिजनों का प्रभाव तेजी से घटने लगा और ये गोरजी (गुरांसा या गुरुजी) के नाम से जाने गये। धीरे-धीरे यतिजन उपाश्रयों के स्वामी होते हुए भी प्रभावशून्य हो गृहस्थ वेश में आ गये। आज तो यह स्थिति है कि कोई भी वेशधारी यति दिखलाई नहीं देता और यह परम्परा अंब नाममात्र की ही बची है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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