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१८९३ "
लेख
१९०४ "
आदिनाथ की
वही, लेखांक १२७९ पाषाण की प्रतिमा
पर उत्कीर्ण लेख १९०२ कार्तिक सुदि २ जिन प्रतिमा पर .. जैनधातुप्रतिमालेख, उत्कीर्ण लेख
परिशिष्ट, पृष्ठ ८ १९०४ वैशाख सुदि १५ मल्लिनाथ की शांतिनाथ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनगुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण जिनालय, लेखसंदोह, लेखांक २७३
साड़वाड़ा संभवनाथ की
वही, लेखांक २७४ प्रतिमा पर उत्कीर्ण
लेख श्रीपूज्य विजयदेवेन्द्रसूरि के निधन के पश्चात् उनके दो पट्टधर हुए, प्रथम विजयधरणेन्द्रसूरि और द्वितीय विजयकल्याणसूरि। इनसे अलग-अलग शिष्य परम्परायें चलीं।
श्रीपूज्य विजयधरणेन्द्र के पश्चात् क्रमश: विजयराजसूरि, विजयमुनिचन्द्रसूरि, विजयकल्याणसूरि और विजयमहेन्द्रसूरि श्रीपूज्य बने। इन सभी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। इनके पश्चात् यह परम्परा समाप्त हो गयी। १२ ।
श्रीपूज्य विजयदेवेन्द्रसूरि के दूसरे पट्टधर श्रीपूज्य विजयकल्याणसूरि के पट्टधर श्रीपूज्य विजयप्रमोदसूरि हुए। श्रीपूज्य विजयप्रमोदसूरि के शिष्य श्रीपूज्य विजयराजेन्द्रसूरि जी हुए जिन्होंने यति परम्परा में व्याप्त शिथिलाचार का त्याग कर वि० सं० १९२५ में क्रियोद्धार कर जैनधर्म में नई स्फूर्ति पैदा की।११३ आचार्य विजयराजेन्द्रसूरि जी की परम्परा स्वतंत्र रूप से चली।
आचार्य विजयप्रभसूरि की शिष्य संतति को तालिका के रूप में निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है:
विजयप्रभसूरि (वि०सं० १७४९ में स्वर्गस्थ)
श्रीपूज्य विजयरत्नसूरि (वि०सं० १७७३ में स्वर्गस्थ)
श्रीपूज्य विजयक्षमासूरि
श्रीपूज्य विजयधर्मसूरि (वि०सं० १८२५-१८३९) यंत्रलेख एवं चरणपादुकालेख
श्रीपूज्य विजयजिनेन्द्रसूरि (वि०सं० १८४३-१८८३) प्रतिमालेख
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