SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ ४. ५. ६. १५६७ वैशाख वदि१ अजितनाथ की घर देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखगुरुवार प्रतिमा पर बड़ोदरा संग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख लेखांक २४६. १५७२ वैशाख सुदि५ धर्मनाथ की पार्श्वनाथजिनालय, बीकानेरजैनलेखसंग्रह, सोमवार प्रतिमा पर नाहटों की गवाड़, लेखांक १५११. उत्कीर्ण लेख बीकानेर १५७३ फाल्गुन वदि२ वासुपूज्य की धातु वासुपूज्य जिनालय, वही, लेखांक १३८९. रविवार की चौबीसी बीकानेर प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख १५७५ फाल्गुन वदि ४ संभवनाथ की अजितनाथ जिना०, जैनलेखसंग्रह, भाग २, प्रतिमा पर कटरा, अयोध्या. लेखांक १६४६. उत्कीर्ण लेख १५८७ पौष सुदि ६ सुमतिनाथ जिना०, विनयसागर, संपा०, रविवार जयपुर प्रतिष्ठालेखसंग्रह, लेखांक ९७७. ७. ८. जयकल्याण के एक शिष्य चारित्रसुन्दर अपरनाम चरणसुन्दर१६ हुए जो वि०सं० १५६६ फाल्गुन सुदि १० को अचलगढ़ पर निर्मित आदिनाथ प्रासाद में प्रतिमाप्रतिष्ठा के समय उपस्थित थे। जयकल्याण के एक अन्य शिष्य विमलसोम हुए जिनके द्वारा रचित न कोई कृति मिलती है और न ही कोई जिन प्रतिमा। ठीक यही बात इनके शिष्य लक्ष्मीरत्न के बारे में भी कही जा सकती है, किन्तु इनके शिष्य ने (अपने को लक्ष्मीरत्नशिष्य बतलाते हुए) वि०सं० की १७वीं शताब्दी में सुरप्रियरास की रचना की।१७ कमलकलशशाखा से सम्बद्ध अगला साक्ष्य इसके लगभग १०० वर्ष पश्चात् का है। वि०सं० १६५६ में कोकशास्त्रचतुष्पदी के कर्ता नर्बुदाचार्य ने स्वयं को कमलकलशशाखा के मतिलावण्य का शिष्य कहा है। चारित्रसुन्दर एवं लक्ष्मीरत्न आदि के साथ इनका क्या सम्बन्ध रहा, प्रमाणों के अभाव में यह जान पाना कठिन है। कमलकलशशाखा से सम्बद्ध अगला साक्ष्य इसके लगभग १३५ वर्ष पश्चात् का है। यह वि०सं० १७८५ का एक शिलालेख है। जो विमलवसही, आबू१९ से प्राप्त हुआ है। इसमें कमलकलशशाखा के पद्मरत्नसूरि और उनके शिष्यों-उमंगविजय, भावविजय आदि द्वारा यहां की यात्रा करने का उल्लेख है। जैन मंदिर माकरोरा, सिरोही से प्राप्त वि०सं० १७९० के एक शिलालेख में तपागच्छीय कमलकलशशाखा के रत्नसूरि और उनके शिष्य कमलविजयगणि के चातुर्मास करने का उल्लेख है। जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं वि०सं० १७८५ के लेख में पद्मरत्नसूरि का नाम आ चुका है, अत: वि० सं० १७९० के शिलालेख° में उल्लिखित रत्नसूरि को समसामयिकता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy