________________
३.
संदर्भ
मुनिसुन्दरसूरिकृत गुर्वावली (रचनाकाल वि० सं० १४६६ / ई०स० १४१०) श्लोक ८०-९६. यशोविजय जैनग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४, वाराणसी वीरसम्वत् २४३७, पृष्ठ ८-१०.
मुनि प्रतिष्ठासोम, सोमसौभाग्यपट्टावली (रचनाकाल वि० सं० १५२४ / ई०स० १४६८) मुनिदर्शनविजय, संपा०-पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, श्रीचारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक २२, वीरमगाम १९३३ ई०, पृष्ठ ३५-४०. धर्मसागर उपाध्याय, “श्रीतपागच्छपट्टावली - स्वोपज्ञ वृत्ति सहित " ( रचनाकाल वि०सं० १६४६ / ई०स० १५९० )
पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृष्ठ ५७. कल्याण विजयगणि, संपा०पट्टावलीपरागसंग्रह, जालोर १९६६ ई० स०, पृष्ठ १४५-४६. मुनि जिनविजय जी द्वारा संपादित विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह - (सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१ ई० ) में भी तपागच्छ और उसकी कुछ शाखाओं की पट्टावलियां प्रकाशित हैं।
तपागच्छ पट्टावली, वृद्धपौशालिक पट्टावली, लघुपौशालिक अपरनाम हर्षकुलशाखा या सोमशाखा की पट्टावली, विजयानंदसूरिशाखा अपरनाम आनंदसूरिशाखा की पट्टावली, तपागच्छ विमलशाखा की पट्टावली, तपागच्छ सागरशाखा की पट्टावली, तपागच्छ-रत्नशाखा अपरनाम राजविजयशाखा की पट्टावली, कमलकलशशाखा की पट्टावली, कुतुबपुराशाखा की पट्टावली, तपागच्छ - विमलसंविग्न, सागरसंविग्न और विजयसंविग्न शाखा की पट्टावलियां ।
उक्त सभी पट्टावलियों के लिये द्रष्टव्य
मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगुर्जरकविओ, द्वितीय संशोधित संस्करण, भाग ९, संपा० - जयन्त कोठारी, मुम्बई १९९७ ई०, पृष्ठ ४४-११४.
क्रमात् प्राप्त तपाचार्येत्यभिख्या भिक्षुनायकाः ।
समभूवन् कुले चान्द्रे, श्रीजगच्चन्द्रसूरयः ।। जगज्जनितबोधानां तेषां शुद्धचरित्रिणाम् । विनेयाः समजायन्त, श्रीमद्देवेन्द्रसूरयः ॥ स्वान्ययोरुपकाराय, श्रीमद्देवेन्द्रसूरिणा । स्वोपज्ञशतकटीका, सुबोधेयं विनिर्ममे ।। विबुधवरधर्मकीर्ति श्रीविद्यानन्दसूरिमुख्यबुधैः । स्वपरसमयैककुशलैस्तदैव संशोधिता चेयम् ।। यद् गदितमल्पमतिना, सिद्धान्तविरुद्धमिह किमपि शास्त्रे । विद्वद्भिस्तत्त्वज्ञैः प्रसादमाधाय तच्छोध्यम् ।। स्वोपज्ञशकटीकां कृत्वेमां यन्मयाऽर्जितं सुकृतम् ।
Jain Education International
"
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org