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विवेकधीरगणि ने वि०सं० १५८७/ई०स० १५३१ में शत्रुजयोद्धारप्रबन्ध की रचना की। जयवंतमुनि अपरनाम गुणसौभाग्यसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं -- १. अंतरंगगीत
२. अजितनाथगीत ३. कर्णेन्द्रियगीत
४. कर्णेन्द्रियपरवश हरिणगीत ५. घ्राणेन्द्रियगीत
६. नेमिराजीमतिवारमास ७. नेत्रपरवश पतंगगीत
पंचेन्द्रियगीत मनभमरागीत
१०. वैराग्यगीत ११. स्पर्शेन्द्रियगीत
१२. स्थूलिभद्रकोशालेख १३. श्रृंगारमंजरी (रचनाकाल १४. सीमंधरजिनस्तवन
वि०सं०१६१४)
धर्मरत्नसूरि के दूसरे शिष्य विद्यामंडन हुए। वि० सं० १५८७ और १५९७ के प्रतिमालेखों में इनका नाम मिलता है।
क्रमांक वि०सं० तिथि/मिति
लेख का स्वरूप प्राप्तिस्थान
संदर्भग्रन्थ
१.
१५८७ पौष वदि ६
रविवार
सुपार्श्वनाथ की धातु प्रतिमा का लेख
संभवनाथदेरासर, पादरा
जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २ लेखांक १०.
२.
१५८७
शांतिनाथ जिना०, वही, भाग २, नदियाड
लेखांक ३८३.
३.
१५९७ पौष वदि ६
रविवार
जिनप्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
धर्मनाथ जिना०, उपलो गभारो, अहमदाबाद
वही, भाग १, लेखांक ११०७.
विद्यामंडनस्रि के शिष्यों के रूप में जयमंडन, विवेकमंडन, रत्नसागर (द्वितीय), सौभाग्यरत्न और सौभाग्यमंडन का नाम मिलता है। संभवनाथ जिनालय, खंभात में प्रतिष्ठापित सुपार्श्वनाथ की धातु की एक प्रतिमा पर प्रतिष्ठापक के रूप में वृद्धतपागच्छ के सौभाग्यरत्नसूरि का नाम मिलता है। लेख के पाठ के अनुसार यह प्रतिमा वि०सं० १६३४ फाल्गुन सुदि १० सोमवार को प्रतिष्ठापित की गयी है। मुनि जिनविजयजी ने इस लेख के प्रतिष्ठापक सौभाग्यरत्नसूरि और विद्यामंडनसूरि के शिष्यों में हुए सौभाग्यरत्न को एक ही माना है। इस काल के पश्चात् इस शाखा से सम्बद्ध अन्य कोई साक्ष्य नहीं मिलता।
उक्त सभी साक्ष्यों के आधार पर वृद्धतपागच्छ/रत्नाकरगच्छ-भृगुकच्छीयशाखा के मुनिजनों की एक तालिका संकलित की जा सकती हैं, जो इस प्रकार हैं :
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