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वि०सं० १८९३ में ही लिखी गयी सम्यकत्त्वकौमुदीरास की प्रशस्ति में भी पं० तेजरत्न का नाम मिलता है । ३२
तेजरत्न के शिष्य गुणरत्न द्वारा भी इसी वर्ष चैत्र सुदि ३ रविवार को गजसिंहकुमाररास की प्रतिलिपि की गयी । ३३
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हीररत्नसूर की परम्परा के पं० मयांकररत्न द्वारा वि०सं० १८९६ / ई०स० १८४० में जम्बूरास और वि०सं० १९१० में अजितसेनकनकावतीरास की प्रतिलिपि की गयी। इनकी प्रशस्तियों में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
हीररत्नसूर
उदयरत्न
1
उत्तमरत्न 1
जिनरत्न
1
क्षमारत्न |
राजरत्न 1
मयांकररत्न (प्रतिलिपिकार)
मयांकररत्न के गुरु राजरत्न का ऊपर उल्लेख आ चुका है जिनके द्वारा लिखी गयी उत्तमकुमारनोरास की वि०सं० १८५२ की प्रति प्राप्त हुई है।
वि०सं० १८९८ / ई० स०१८४२ में लिखी गयी महावीरस्तवकबालावबोध की प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार विवेकरत्न ने स्वयं को मुक्तिरत्नसूरि का प्रशिष्य और देवेन्द्ररत्न का शिष्य कहा है
:
मुक्तिरत्नसूरि
1
देवेन्द्ररत्नसूरि
1
विवेकरत्न (वि०सं० १८९८ / ई० स० १८४२ में महावीर - स्तवकबालावबोध के प्रतिलिपिकार)
वि०सं० १९९२ में लिखी गयी चन्द्रराजारास की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि कीर्तिरत्नसूरि की परम्परा में हुए मुनि जयरत्न के पठनार्थ उक्त कृति की प्रतिलिपि की गयी ।
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