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जगच्चन्द्रसूरि :
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जैसा कि प्रारम्भ में हम देख चुके हैं. आचार्य जगच्चन्द्रसूरि इस गच्छ के आदि पुरुष माने जाते हैं। इनके द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है । जगच्चन्द्रसूरि के दो प्रमुख शिष्य थे - देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरि । गुरु के निधनोपरान्त देवेन्द्रसूरि उनके पट्टधर बने। ये अपने समय के प्रमुख विद्वानों में से एक थे। इन्होंने अपनी कृतियों में अपनी गुरु- परम्परा तथा कुछ में अपने साहित्यिक सहयोगी के रूप में अपने कनिष्ठ गुरुभ्राता विजयचन्द्रसूरि का उल्लेख किया है। देवेन्द्रसूरि ने विशेष रूप से गुजरात और मालवा में विहार किया। वि० सं० १३०२ में उज्जैन में इन्होंने वीरधवल नामक एक श्रेष्ठीपुत्र को दीक्षित कर उसका नाम विद्यानन्द रखा। कुछ समय पश्चात् वीरधवल का लघुभ्राता भी देवेन्द्रसूरि के पास दीक्षित हुआ और उसका नाम धर्मकीर्ति रखा गया'। २२ वर्ष तक मालवा में विहार करने के पश्चात् आचार्य देवेन्द्रसूरि स्तम्भतीर्थ (खंभात) पधारे। उनके कनिष्ठ गुरुभ्राता विजयसिंहसूरि ने इस अवधि में स्तम्भतीर्थ की उसी पौषधशाला में निवास किया जहाँ ठहरना आचार्य जगच्चन्द्रसूरि ने निषिद्ध कर दिया था। इस दरम्यान उन्होंने मुनिआचार के कठोर नियमों को भी शिथिल कर दिया। देवेन्द्रसूरि को ये सभी बातें ज्ञात हुईं और वे वहां न जाकर दूसरी पौषधशाला, जो अपेक्षाकृत कुछ छोटी थी, ठहरे। इस प्रकार जगच्चन्द्रसूरि के दो शिष्य एक ही नगर में एक ही समय दो अलग-अलग स्थानों पर रहे। बड़ी पौषधशाला में ठहरने के कारण विजयचन्द्रसूरि का शिष्य समुदाय बृहदपौशालिक तथा देवेन्द्रसूरि का शिष्यपरिवार लघुपौशालिक कहलाया।
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गुर्जरदेश में विहार करने के पश्चात् देवेन्द्रसूरि पुनः मालवा पधारे। वि० सं० १३२७/ ई० स० १२६१ में वहीं उनका देहान्त हो गया । " उन्होंने विद्यानन्दसूरि को अपना पट्टधर घोषित किया था किन्तु उनके निधन के मात्र १३ दिन पश्चात् विद्यानन्दसूरि का भी निधन हो गया। इन घटनाओं के ५ माह पश्चात् विद्यानन्द के छोटे भाई धर्मकीर्ति को धर्मघोषसूरि के नाम से देवेन्द्रसूरि का पट्टधर बनाया गया । '
देवेन्द्रसूरि द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं : १. श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति
२. नव्यपंचकर्मग्रन्थ सटीक
३. सिद्धपंचाशिका सटीक
४. धर्मरत्नप्रकरण बृहद्वृत्ति
६. चैत्यवन्दनादि ३ भाष्य
५. सुदर्शनाचरित्र
७. वन्दारुवृत्ति अपरनाम श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति
८. दानादि चार कुलक, जिसपर वि०सं० की १७वीं शती में विजयदानसूरि के प्रशिष्य एवं राजविजयसूरि के शिष्य देवविजय ने धर्मरत्नमंजूषा के नाम से वृत्ति की रचना की। इसके अलावा उनके द्वारा रचित कुछ स्तुति स्तोत्र भी मिलते हैं।
देवेन्द्रसूरि के पट्टधर धर्मघोषसूरि द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं :
संघाचार भाष्य
२.
भवस्थितिस्तव
४.
१.
३.
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कायस्थितिस्तवन स्तुतिचतुर्विंशति
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