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७.
देहस्थितिप्रकरण दुषमाकालसंघस्तवन ऋषिमंडलस्तोत्र
९.
११. चतुर्विंशतिजिनस्तुति ८१३. गिरनारकल्प
६.
८.
१०.
१२.
अष्टापदकल्प
१४.
श्राद्धजीतकल्प
मुनि चतुरविजयजी ने इनके अनेक स्तवनों को जैनस्तोत्रसंदोह, प्रथम भाग प्रकाशित किया है। "
१.
२.
३.
धर्मघोषसूरि के पट्टधर सोमप्रभसूरि हुए। इनका जन्म वि०सं० १३१० में हुआ था। वि०सं० १३२१ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। वि० सं० १३३२ में सूरि पद प्राप्त हुआ और वि०सं० १३५७ में गुरु के निधन के पश्चात् ये उनके पट्टधर बने। इन्होंने कोंकण आदि प्रदेशों में जल की अधिकता और मारवाड़ आदि में जल की दुर्लभता के कारण तपागच्छीय मुनिजनों का विहार निषिद्ध कर दिया। इनके द्वारा रचित कृतियों में यतिजीतकल्पसूत्र, अट्ठाइस यमकस्तुतिओ श्रीमच्छर्यस्तोत्र आदि उल्लेखनीय हैं। इनके शिष्यों के रूप में विमलप्रभ, परमानंद, पद्मतिलक और सोमतिलक का नाम मिलता है। वि० सं० १३७३ / ई०स० १३१७ में इनके निधन के पश्चात् सोमतिलकसूरि ने तपागच्छ का नायकत्त्व ग्रहण किया।
सोमतिलकसूरि का जन्म वि०सं० १३३५ में हुआ था, वि०सं० १३६९ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १४२४ में इनका देहान्त हुआ । इनके द्वारा रचित कृतियाँ इस हैं
३
प्रकार
1:5
५.
सज्मक चतुर्विंशतिजिनस्तुतिवृत्ति तीर्थराजस्तुति
अट्ठाइस यमकस्तुतिओ पर वृत्ति
१०
बृहन्नव्यक्षेत्रसमास
सप्ततिशतस्थानप्रकरण (रचनाकाल वि०सं० १३८७ / ई०स० १३२१)
४.
चतुर्विंशति जिनस्तवनवृत्ति
६.
विचारसूत्र
७.
९.
कमलबन्धस्तवन
११. शत्रुंजययात्रावर्णन
चतुर्विंशतिजिनस्तवसंग्रह युग प्रधानस्तोत्र परिग्रहप्रमाणस्तवन
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इनके शिष्यों में पद्मतिलक, चन्द्रशेखर, जयानन्दसूरि, देवसुन्दरसूरि आदि का नाम मिलता है । पद्मतिलक द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु चन्द्रशेखर और जयानन्द द्वारा रचित कृतियां प्राप्त होती हैं।
चन्द्रशेखर द्वारा रचित कृतियों में उषित भोजनकथा, यवराजर्षिक था, श्रीमद्स्तम्भनकहारबंधस्तवन आदि का नाम मिलता है। १४
जयानन्दसूरि द्वारा रचित कृतियों में स्थूलभद्रचरित्र", देवप्रभस्तोत्र ६, साधारण जिनस्तोत्र आदि उल्लेखनीय हैं। जयानन्दसूरि को वि०सं० १४२० में आचार्यपद प्राप्त हुआ और वि०सं० १४४१ में देहान्त हुआ।
सोमतिलकसूरि के वि०सं० १४२० / ई०स० १३६४ में निधन के पश्चात् देवसुन्दरसूरि उनके पट्टधर बने। १८ वि०सं० १३९६ में इनका जन्म हुआ था, वि०सं० १४०४ में इन्होंने
८.
वीरस्तव
१०. साधारणजिनस्तुति
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