SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ ३. १७१० ज्येष्ठ सुदि ६ गुरुवार शांतिनाथ जिनालय, नदियाड ४. बालावसही, शत्रुजय १७१० ज्येष्ठ सुदि ६ गुरुवार बुद्धिसागर, प्रोक्त. भाग २, लेखांक ३८१. मुनि कांतिसागर, संपा०, शजयवैभव,लेखांक ३०६ए तथा मुनिजिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २. लेखांक ३१. ५. १७१० ज्येष्ठ सुदि ६ घर देरासर, लखनऊ नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६१४. १७१० पौष वदि ६ गुरुवार सुमतिनाथ जिनालय, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, सीनोर भाग २, लेखांक ३६८. ७. १७२१ ज्येष्ठ सुदि ३ रविवार अरनाथ जिनालय, वहीं, भाग २, जीरारवाड़ो, खंभात लेखांक ७७१. ८. १७२१ ऋषभदेव का लघुप्रासाद, मुनि जयन्तविजयजी, संपा०, अचलगढ़ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाजैनलेखसंदोह, (आबू, भाग ५), लेखांक ४८५. एवं मुनि जिनविजयजी, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक २६९. १७२१ गौड़ीपार्श्वनाथ जिनालय, मुनि जयन्तविजय, पूर्वोक्त, कोलर लेखांक २४३. १०. १७२१ अजितनाथ जिनालय, वही, लेखांक २५७. सिरोही ११. १७२१ वीरजिनालय, रीजरोड, बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, अहमदाबाद भाग १, लेखांक ९९०. जीवविचारप्रकरण२९ की वि०सं० १७१७ की और भवभावनास्तवक की वि०सं० १७२६ में लिखी गयी प्रतियों की प्रशस्तियों में विजयराजसूरि का सादर उल्लेख मिलता है। ठीक यही बात वि०सं० १७३२ में रचित अतिचारमयबत्तीस श्रीमहावीरस्तव? और रतनपालरास२ (वि०सं० १७३२) की प्रशस्तियों में भी कही गयी है। कर्मग्रन्थबालावबोध की एक प्रति मुनिराज श्री पुण्यविजयजी के संग्रह में संरक्षित३ है। इस प्रति की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसे विजयराजसूरि के काल में लिखा गया था, परन्तु रचनाका : हीं दिया गया है। श्रीअम्बालाल शाह ने इसे वि०सं० १६५० में लिखित बतलाया है जो वस्तुतः भ्रामक, और सत्यता से परे है। विजयराजसूरि के शिष्य ऋद्धिविजय द्वारा रचित वरदत्तगुणमंजरीरास (वि०सं० १७०३) और रोहिणीरास (वि० सं० १७१६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy