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२०. १५५१ वैशाख सुदि सुविधिनाथ की धातु की सेठ जी का घर प्रतिष्ठालेखसंग्रह,
१३ गुरुवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देरासर, कोटा लेखांक ८६१ २१. १५५१ माघ वदि आदिनाथ की प्रतिमा पर त्रैलोक्यदीपक प्रासाद, जैनलेखसंग्रह, भाग १,
२ सोमवार उत्कीर्ण लेख राणकपुर लेखांक ७०७ २२. १५५२ माघ वदि संभवनाथ की प्रतिमा पर सुमतिनाथ जिनालय, शत्रुजयवैभव, १२ बुधवार उत्कीर्ण लेख माधवलालबाबू की लेखांक २५२
धर्मशाला. पालीताणा २३. १५५३ वैशाख सुदि आदिनाथ की धातु की जैनदेरासर. महुआ प्राचीनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
लेखांक ४८९ २४. १५५३
मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर घर देरासर, दिल्ली जैनलेखसंग्रह, भाग २, उत्कीर्ण लेख
लेखांक १८७९ २५. १५५४ पौष वदि विमलनाथ की धातु की जगवल्लभ पार्श्वनाथ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, शुक्रवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख देरासर, नीशापोल, भाग १, लेखांक १२५१
अहमदाबाद २६. १५५४ माघ वदि आदिनाथ की प्रतिमा पर बालावसही, शत्रुजय शत्रुजयवैभव, २ गुरुवार उत्कीर्ण लेख
लेखांक २५४ २७. १५५४ फाल्गुन सुदि शांतिनाथ की प्रतिमा पर नवखंडा पार्श्वनाथ घोघातीर्थ, पृ० २५.
२ गुरुवार उत्कीर्ण लेख देरासर, घोघा २८. १५५६ वैशाख सुदि१३ जिनालय के दरवाजे के जैनमंदिर, हमीरगढ़ अर्बुदाचलप्रदक्षिणाऊपर उत्कीर्ण लेख
जैनलेखसंदोह,
लेखांक २३६ उदयसागर के प्रशिष्य एवं शीलसागर के शिष्य डूंगरकवि द्वारा रचित माहबावनी नामक कृति प्राप्त होती है।२८ उदयसागर के पट्टधर लब्धिसागर हुए जिनके द्वारा वि०सं० १५५६ में रचित ध्वजकुमारचौपाई और श्रीपालकथा (वि०सं० १५५७) आदि कृतियाँ मिलती हैं।२९ वि०सं० १५६१ से १५६६ तक के कुछ प्रतिमालेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है।३०
वि०सं० १५७२ से १५९१ तक के कुछ प्रतिमालेखों में धनरत्नसूरि का प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में नाम मिलता है। इनका विवरण इस प्रकार है : १. १५७२ फाल्गुन सुदि श्रेयांसनाथ की प्रतिमा पर चौमुखजी देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, ८ सोमवार उत्कीर्ण लेख ईडर
भाग १, लेखांक १४४१ २. १५७६ वैशाख सुदि चन्द्रप्रभ की धातु की बृहत्ज्ञानभंडार, बीकानेरजैनलेखसंग्रह,
६ सोमवार प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख बीकानेर लेखांक २५३९ (उक्त प्रतिमा लेख में धनरलसूरि के साथ-साथ उनके गुरुभ्राता सौभाग्यसागरसूरि का भी उल्लेख है)
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