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३३ सोमसुन्दरसूरि के विशाल शिष्य परिवार में कई प्रसिद्ध विद्वान् और प्रभावक आचार्य हुए हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
१. मुनिसुन्दरसूरि - सोमसुन्दरसूरि के प्रथम शिष्य और पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि अपने युग के प्रख्यात् आचार्यों में एक थे। वि०सं० १४२६ अथवा वि०सं० १४३६ में इनका जन्म हुआ। वि० सं० १४४३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की, वि०सं० १४६६ में इन्हें वाचक पद प्राप्त हुआ। वि०सं० १४७८. में सोमसुन्दरसूरि ने इन्हें सूरि पद प्रदान किया और वि० सं० १५०३ में इनकी मृत्यु हुई। इनके सम्बन्ध में आगे विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
२. भावसुन्दर - इन्होंने उज्जैन में 'पानविहारमंडन महावीरस्तवन' २६ की रचना की। इनके बारे में विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है।
३. भुवनसुन्दरसूरि - इनके द्वारा रचित कृतियाँ इस प्रकार हैं -- १. परब्रह्मोत्थापन स्थलवाद २. महाविद्याविडंबनवृत्ति ३. महाविद्याविडंबनटिप्पणविवरण ४. लघुमहाविद्याविडंबन ५. व्याख्यान
४. जयचन्द्रसूरि - इनके द्वारा रचित प्रत्याख्यानस्थानविवरण, सम्यकत्त्वकौमुदी और प्रतिक्रमणविधि नामक कृतियां३८ प्राप्त हुई हैं। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें भी पर्याप्त संख्या में प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १४९६ से वि० सं० १५०६ तक की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है--
वि०सं० १४९६ १ प्रतिमालेख वि०सं० १५०० १ प्रतिमालेख वि०सं० १५०२ ५ प्रतिमालेख वि०सं० १५०३ १७ प्रतिमालेख वि० सं० १५०४ ९ प्रतिमालेख वि०सं० १५०५ १७ प्रतिमालेख वि०सं० १५०६ १ प्रतिमालेख
जयचन्द्रसूरि के शिष्ध जिनहर्षगणि हुए जिनके द्वारा रचित वस्तुपालचरित (वि०सं० १४९७), रमणसेहरीकहा, विंशतिस्थानप्रकरण (विचारामृतसंग्रह), प्रतिक्रमणविधि (वि०सं० १५२५), आरामशोभाचरित्र, अनघराघववृत्ति, अष्टभाषामय सीमंधरजिनस्तवन आदि कृतियां मिलती हैं।३०
जिनहर्षगणि की शिष्यसंतति में साधुविजय, शुभवर्धन आदि मुनि हुए।
दीपमालिकाकल्प (रचनाकाल वि०सं० १४८३) के रचनाकार जिनसुन्दरसूरि भी सोमसुन्दरसूरि के ही शिष्य थे।
सोमसुन्दरसूरि के एक शिष्य अमरसुन्दर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं
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