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________________ ८. ९. १०. ११. १२. १३ १४. १५. १६. १७. १८. १९. २०. २१. २२. २३. २४. २५. २६. २७. संख्या में मलयसुन्दरी महाबलरास अपरनाम विनोदविलासरास यशोधररास लीलावती सुमतिविलासरास धर्मबुद्धिमंत्री अने पापबुद्धिराजानो रास शत्रुंजयतीर्थमालाउद्धाररास भुवन भानुकेवलीनो रास अपरनाम रसलहरीरास नेमिनाथशलोको शालिभद्रनो शलोको भरतबाहुबलिनो शलोको भावरत्नसूरिप्रमुख पांचपाटवर्णन चौबीसी दामन्नकरास वि०सं० १७७० / ई०स० १७१४ वि०सं० १७७० / ई०स० गच्छपरम्परारास इस कृति में राजविजयसूरि विजयरत्नसूरि, हीररत्नसूरि, जयरत्नसूरि और भावरत्नसूरि - इन पांच पट्टधर आचार्यों का विवरण दिया गया है। ढणमुनिनी सज्झाय वरदत्तगुणमंजरीरास सुदर्शन श्रेष्ठीरास विमलमेहतानो शलोको नेमिनाथराजीमतीबारमास ३०६ वि०सं०१७६६/ ई०स० १७१० वि०सं० १७६७ / ई०स० १७११ वि०सं०१७६७/ ई०स० १७११ वि०सं०१७६८ / ई० स० १७१२ वि०सं०१६६९ / ई०स० १७१३ वि०सं०१६६९/ ई०स० १७१३ Jain Education International (जयरत्न सूरि) 1 हरिवंशरास अपरनाम रसरत्नाकररास सूर्ययशा (भरतपुत्र) नो रास भाभापारसनाथनुं स्तवन इसके अतिरिक्त इनके द्वारा रचित अन्य स्तवन, सज्झाय और भास आदि भी बड़ी हैं। प्राप्त हुए १७१४ वि०सं०१७७२/ ई०स० १७१६ वि०सं०१७७२/ ई०स० १७१६ वि०सं०१७८२/ ई०स० १७२६ वि०सं०१७८२/ ई०स० १७२६ वि० सं० १७८५ / ई०स० वि०सं० १७९५ / ई०स० वि०सं०१७९५ / ई०स ०स० ० १७३९ वि०सं०१७९९/ ई०स० १७४३ १७२९ १७३९ वि०सं० १७५१ / ई०स० १६९५ में अरहन्त्रकरास के प्रतिलिपिकार मानरत्न' ने स्वयं को भावरत्नसूरि का शिष्य बताया है। इस भावरत्नसूरि को हीररत्नसूरि के पट्टधर और जयरत्नसूरि के पट्टधर भावरत्नसूरि से समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए अभिन्न माना जा सकता है। (हीररत्नसूरि) 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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