________________
१२१
सुमतिसाधुसूरि - लक्ष्मीसागरसूरि के निधन के पश्चात् सुमतिसाधुसूरि तपागच्छ के ५४वें पट्टधर बने। एक पट्टावली के अनुसार वि०सं० १४९४ में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १५११ में इन्होंने आचार्य रत्नशेखरसूरि से दीक्षा ग्रहण की। वि०सं० १५१८ में आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि ने इन्हें आचार्य पद प्रदान किया और वि० सं० १५५१ में इनका निधन हुआ।३६ इनके द्वारा रचित सोमसौभाग्यकाव्य और दशवैकालिक लघुटीका नामक कृतियाँ प्राप्त होती हैं। सोमसौभाग्यकाव्य में आचार्य सोमसुन्दरसूरि का जीवनचरित्र वर्णित है। लावण्यसमय गणि द्वारा रचित सुमतिसाधुविवाहलो" (रचनाकाल वि०सं० की १६वीं शताब्दी का मध्य) से इनके बारे में जानकारी प्राप्त होती है। सुमतिसाधुसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो वि० सं० १५३७ से वि० सं० १५४८ तक की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org