________________
२६८
वि०सं० १५७१ से वि०सं०१५९७ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है 1:4
१.
१५७१
तिथिविहीन
देवकुलिका का लेख, आदिनाथ जिनालय, हस्तिकुण्डी (हथंडी)
२.
३.
४.
५.
१५७६
माघ सुदि ५ गुरुवार
१५८८
ज्येष्ठ सुदि ५ गुरुवार
१५९१
वैशाख वदि ६ शुक्रवार
१५९७ चैत्र सुदि १३ गुरुवार
शांतिनाथ जिनालय, शांतिनाथपोल, अहमदाबाद
वही
संभवनाथ जिनालय, बालूचर, मुर्शिदाबाद
जैनमंदिर, चाणस्मा
मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३३.
Jain Education International
बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३११.
वही, भाग २, लेखांक १३२५.
नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ५४.
बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक १३१.
इन्द्रनंदिसूरि के चौथे शिष्य संयमसागर का भी उल्लेख मिलता है। इनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही किन्हीं अन्य साक्ष्यों से इस सम्बन्ध में कोई जानकारी ही प्राप्त होती है। इनके शिष्य के रूप में हंसविमल का नाम मिलता है।
सौभाग्यनन्दि के पट्टधर हंससंयम हुए, जिनके समय की वि०सं० १६०६ में लिखित एक ग्रन्थ की प्रति प्राप्त हुई है २ । हंससंयम के शिष्य हंसविमल का नाम वि०सं० १६२१ के एक शिलालेख में उत्कीर्ण है। यह शिलालेख विमलवसही, आबू से प्राप्त हुआ
है । इस शाखा से सम्बद्ध यह अंतिम साक्ष्य है।
संयमसागर के शिष्य हंसविमल तथा हंससंयम के शिष्य हंसविमल एक ही व्यक्ति थे अथवा अलग-अलग! पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में इस सम्बन्ध में ठीक-ठीक कुछ भी कह पाना कठिन है, फिर भी समसामयिकता, नामसाम्य, गच्छसाम्य आदि को देखते हुए दोनों हंसविमलसूरि को एक ही व्यक्ति माना जा सकता है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org