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________________ २६७ ६. १५६१ ज्येष्ठ सुदि २ सोमवार १५६३ आषाढ़ सुटि....गुरुवार सुमतिनाथ मुख्यबावन आचार्य बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, जिनालय, मातर भाग २, लेखांक ५०६. घर देरासर, लखनऊ । पूरनचन्द नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १६१० शांतिनाथ जिनालय, आचार्य बुद्धिसागर, पूर्वोक्त, कनासानो पाड़ो, पाटण भाग १, लेखांक ३७५. संभवनाथ देरासर, पादरा वही, भाग २, लेखांक १५. १५६३ " १०. १५६९ मितिविहीन आदिनाथ जिनालय, नाडलाई नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८४९ तथा मुनि जिनविजय, संपा०, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ३३८. नाहर, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक ८५७. ११. १५७१ मितिविहीन वही तथा मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ३३९. १२. १५७९ मितिविहीन जैनमंदिर, भांमासर, बीकानेर नाहर, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक १३५४. वि० सं० १५५८ में इन्होंने अपने एक शिष्य धर्महंस को कुतुबपुरा नामक ग्राम में अपने पट्ट पर स्थापित किया। कुतुबपुरा नामक स्थान से अस्तित्त्व में आने के कारण इसका नाम कुतुबपुराशाखा पड़ा। धर्महंस द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है किन्तु इनके शिष्य इन्द्रहंस द्वारा रचित कुछ कृतियाँ मिलती हैं जो इस प्रकार हैं१. भुवनभानुचरित्र (वि०सं० १५५४/ई०स० १४९८) २. उपदेशकल्पवल्लीटीका (वि०सं० १५५५/ई०स० १४९९) ३. बलिनरेन्द्रकथा (वि०सं० १५५७/ई०स० १५०१) ४. विमलचरित्र (वि०सं० १५७८/ई०स० १५२२) इन्द्रनन्दिसूरि के एक शिष्य सिद्धान्तसागर ने वि०सं० १५७० में दर्शनरत्नाकर की रचना की। सिद्धान्तसागर की शिष्यपरम्परा आगे चली अथवा नहीं इस सम्बन्ध में हमारे पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इन्द्रनन्दिसूरि के एक अन्य शिष्य सौभाग्यनन्दि हुए, जिनके द्वारा रचित मौनएकादशीकथा नामक कृति प्राप्त होती है। इनके द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें भी प्राप्त हुई हैं जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003611
Book TitleTapagaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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