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अनन्तनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण है और आज सुमतिनाथ जिनालय, माधोलालबाबू की धर्मशाला, पालीताना में प्रतिष्ठापित है, प्रतिमा प्रतिष्ठापक आचार्य के रूप में विजयऋद्धिसूरि का नाम मिलता है।
श्री पूरनचन्द नाहर ने इस लेख की वाचना दी है, जो निम्नानुसार है : सं० १७९८ वैशाख सुदि १ सो (म) शा ० खिमचंद भार्या विश्व श्री अनन्त बिंबं प्र० भ० श्री विजयऋद्धि सूरि ।
वीरवंशावली में इनके मृत्यु की तिथि वि०सं० १८०६ बतलायी गयी है २ जो सत्य प्रतीत होती है।
वि०सं० १७८० में चौबीसी के रचनाकार ज्ञानविजय ने स्वयं को विजयऋद्धिसूरि का प्रशिष्य और हस्तिविजय का शिष्य कहा है।
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विजयऋद्धिसूरि
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हस्तिविजय
1
ज्ञानविजय (वि०सं० १७८० / ई०स०१७२४ में चौबीसी के
रचनाकार)
इन्हीं के काल में वि०सं० १७८३ में मानविजय की परम्परा के जीतविजय ने चन्द्रकेवलीरास की प्रतिलिपि की।
विजयसौभाग्यसूरि - विजयऋद्धिसूरि के पश्चात् विजयसौभाग्यसूरि उनके पट्टधर बने। इनके बारे में सोहमकुलपट्टावलीरास से ज्ञात होता है कि वि०सं० १८१४ में इनका निधन हुआ। * भरुच के निकट स्थित सीनोर नामक स्थान स्थित विजयलक्ष्मीसूरि की देहरी के पास इनकी चरणपादुका स्थापित है। इस पर वि०सं० १८१५ चैत्र सुदि १० का लेख उत्कीर्ण है। बुद्धिसागरसूरि ६ ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है:
सं० १८१५ वर्षे चैत्र सुदि १० वीरचंद भ० श्रीविजयसौभाग्यसूरीश्वरपादुकेभ्यो नमः सीनोरनगरे समस्तसंघेन का० श्रीकल्याणमस्तु शिवमस्तु ||
इनके बारे में विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है।
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विजयऋद्धिसूरि के द्वितीय पट्टधर विजयप्रतापसूरि हुए। मुनि कल्याणविजय जी के अनुसार इनका निधन भी वि०सं० १८१४ में हुआ। इसके अलावा इनके बारे में कोई विवरण नहीं मिलता। ठीक यही बात इनके पट्टधर विजयउदयसूरि के बारे में भी कही जा सकती है।
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विजयसौभाग्यसूरि के शिष्य एवं पट्टधर विजयलक्ष्मीसूरि हुए। वि०सं० १८१४ में इन्होंने गुरु से दीक्षा ग्रहण की और इसी वर्ष विजयसौभाग्यसूरि का निधन भी हो गया। चूंकि सोहमकुलपट्टावलीरास में विजयऋद्धिसूरि के दोनों पट्टधरों - विजयसौभाग्यसूरि और विजयप्रतापसूरि की मृत्यु की तिथि वि०सं० १८१४ बतलायी गयी है और विजयलक्ष्मीसूरि का दीक्षित होना भी इसी वर्ष में बतलाया गया है। ४९ यदि उक्त तथ्य को सही माना जाये तो यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि विजयप्रतापसूरि के पट्टधर विजयउदयसूरि के
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